कॉलेज की छुट्टी के बाद मैं तेजी से बाहर निकला। मैं स्नातक का छात्र हूँ, और हर दिन की तरह, कॉलेज के गेट के बाहर एक ऑटो मेरा इंतज़ार कर रहा था। मैं जैसे ही उसमें बैठा, ऑटोवाला फटाफट स्मृति के स्कूल की ओर चल पड़ा। ये मेरा रोज का रुटीन था। पहले वो मुझे लेता, क्योंकि मेरे कॉलेज की छुट्टी 12:30 बजे हो जाती थी, और फिर स्मृति को, जो 19 साल की थी और 12वीं कक्षा में पढ़ती थी। उसका स्कूल 1:00 बजे छूटता था। कुछ ही मिनटों में मैं उसके कॉनवेंट स्कूल के सामने पहुँच गया। अभी 12:45 बजे थे, तो ऑटोवाला पास की दुकान पर चाय पीने चला गया।
मैंने अपने बैग से दो किताबें निकालीं, जो मेरे दोस्त ने दी थीं। एक में औरत-मर्द की नंगी तस्वीरें थीं, और दूसरी में इन्सेस्ट कहानियाँ थीं। कहानियों वाली किताब को मैंने बाद में पढ़ने के लिए रखा और तस्वीरों वाली किताब को अपनी इकोनॉमिक्स की किताब के बीच छुपाकर ऑटो में ही देखने लगा। तस्वीरें इतनी उत्तेजक थीं कि मेरा लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा। मेरे चेहरे की लालिमा बढ़ गई, और उत्तेजना में मैंने बैग को अपनी गोद में रख लिया ताकि मेरा खड़ा लंड छुप जाए। मैं उन तस्वीरों में औरत-मर्द की चुदाई की अलग-अलग पोजीशन देखने में डूब गया।
तभी स्कूल की घंटी बजी। मैंने जल्दी से किताबें बैग में ठूँसीं, अपने लंड को पैंट में ठीक किया, और ऑटो से उतरकर अपनी प्यारी बहन स्मृति का इंतज़ार करने लगा। हमारे परिवार की कहानी थोड़ी अलग है, जिसे मैं बताना जरूरी समझता हूँ। साल 2002 में एक सड़क हादसे में 41 लोग मारे गए थे, जिसमें मेरे और स्मृति के माता-पिता भी थे। हम दोनों अनाथ हो गए थे। उस हादसे में श्रीवास्तव जी का परिवार भी बिखर गया था, सिवाय उनके। तब से उन्होंने हमें अपने बच्चों की तरह पाला। मेरे और स्मृति के माता-पिता अलग-अलग थे, लेकिन हम अबोध थे, और श्रीवास्तव जी ने हमें अपने बच्चों की तरह बड़ा किया। बाद में, उन्होंने उसी हादसे में विधवा हुई एक नवविवाहित महिला से शादी कर ली। इस तरह हमारा एक नया परिवार बना।
हमारे वर्तमान माता-पिता, जिन्हें हम मम्मी-पापा कहते हैं, हमें बाइक या स्कूटर नहीं लेने देते, क्योंकि उन्हें हादसे का डर सताता है। ठीक 1:00 बजे मुझे अपनी खूबसूरत, गुड़िया-सी बहन स्मृति ऑटो की ओर आती दिखी। सचमुच, वो इतनी सेक्सी थी कि उसे देखकर किसी भी मर्द की रीढ़ में सिहरन दौड़ जाए। मैं उसकी खूबसूरती और सेक्सी अदा में पूरी तरह डूब चुका था, और वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती थी। बाहर की दुनिया के लिए हम भाई-बहन थे, लेकिन घर के कमरे में हम पति-पत्नी से भी बढ़कर थे। शायद आपको ये सुनकर अजीब लगे, लेकिन यही हकीकत थी। मैं 21 साल का था, और स्मृति 19 की।
हम अपने मम्मी-पापा के साथ शहर से थोड़ी दूर एक उपनगरीय इलाके में रहते थे। पापा 42 साल के थे और एक प्राइवेट बैंक में बड़े पद पर थे। मम्मी, जो 33 साल की थीं, सरकारी नौकरी करती थीं और बेहद खूबसूरत थीं। पापा भी आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे। इस नए शहर में पापा ने जानबूझकर शहर से बाहर एक शांत इलाके में बंगला खरीदा था। हमें स्कूल ले जाने और लाने के लिए उन्होंने एक ऑटो फिक्स कर रखा था। घर की ऊपरी मंजिल पर एक कमरे में मम्मी-पापा रहते थे, और दूसरे कमरे में मैं और स्मृति। स्कूल से घर तक का रास्ता ऑटो में करीब 25 मिनट का था।
स्मृति ऑटो के पास आई और मुस्कुराते हुए बोली, “और भाई, कैसे हो? ज्यादा इंतज़ार तो नहीं करना पड़ा?”
मैंने कहा, “नहीं यार, बिलकुल नहीं।” और उसकी ओर देखकर मुस्कुराया। उसके गाल गुलाबी हो गए थे, और आँखों में वासना की चमक साफ दिख रही थी। मैं सोच में पड़ गया कि स्मृति इतनी गर्म क्यों लग रही है? क्या स्कूल में कुछ हुआ था?
स्मृति ने ऑटो में बैठने के लिए एक पैर उठाया, और इस तरह अपनी स्कर्ट को हल्का-सा ऊपर खिसकने दिया कि उसकी चिकनी, गोरी जाँघें और पैंटी की झलक मुझे दिख गई। मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। वो मेरे बगल में शैतानी मुस्कान के साथ बैठ गई। मैं जानता था कि ये उसका मुझे तड़पाने का तरीका था। उसकी देह की महक ने मेरे नाक को भर दिया। मैंने गहरी साँस लेकर उसकी खुशबू को और अंदर खींचा।
स्मृति ने मेरी उत्तेजना भाँप ली और हँसते हुए बोली, “क्या बात है भाई, चेहरा इतना लाल क्यों हो गया? और आँखें भी लाल-लाल, बताओ तो?”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “स्मृति, तुम तो मेरे दोस्त मनीष को जानती हो। उसने मुझे दो गजब की किताबें दी हैं। तुम्हारा इंतज़ार करते हुए मैं वो देख रहा था। फिर तुमने ऑटो में चढ़ते वक्त अपनी पैंटी और जाँघें दिखा दीं। अब तुम मेरे बगल में बैठी हो, और तुम्हारी देह की खुशबू मुझे पागल कर रही है।”
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स्मृति हँसने लगी। ऑटोवाले ने गाड़ी स्टार्ट कर दी थी, और हम दोनों धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे ताकि वो न सुने। स्मृति मेरे दाहिने तरफ बैठी थी, अपनी किताबों को छाती से चिपकाए हुए। पथरीली सड़क पर ऑटो के हिलने से उसका संतुलन बिगड़ रहा था। उसने अपना बायाँ हाथ ऊपर उठाकर ऑटो का हुड पकड़ लिया। इससे उसकी चिकनी, पसीने से भीगी बगल मेरे सामने आ गई। उसकी स्कूल ड्रेस के ब्लाउज़ से ढकी बगल की तीखी गंध मेरे नाक में समा गई। मेरे बैग के नीचे मेरा लंड अब पूरी तरह खड़ा हो चुका था, जैसे वो बैग को ही उठा लेगा। स्मृति जानती थी कि उसकी बगल की गंध मुझे दीवाना बना देती है।
वो मुझे आँखों के कोने से देख रही थी, और सीट से पीठ टिकाकर आराम से बैठ गई। ऑटो के हिलने से उसकी किताबें उसकी चूचियों पर रगड़ रही थीं। जैसे ही ऑटो एक मोड़ पर मुड़ा, मैंने नाटक किया कि मैं लुढ़क रहा हूँ, और अपना चेहरा उसकी बगल में घुसा दिया। मैंने लंबी साँस खींचकर उसकी बगल को चाट लिया और हल्के से काट लिया। स्मृति के मुँह से “आह्ह!” की आवाज़ निकली। उसने मुझे “जानवर” कहकर डाँटा, “देखो भाई, तुम तो हरकत ही जानवरों वाली कर रहे हो! मेरी बगल को चाटकर गुदगुदा दिया और काट लिया। दर्द हो रहा है! तुम्हारी किताबों ने तुम्हें कुछ ज्यादा ही गर्म कर दिया है।”
मैंने हँसते हुए कहा, “अगर तुम मुझे इस तरह तड़पाओगी, तो यही सजा मिलेगी, मेरी प्यारी बहना! वैसे, तुम आज कुछ ज्यादा ही चुलबुली और शैतान लग रही हो। क्या बात है? तुम भी गर्म हो रही हो ना? बताओ!”
स्मृति बोली, “तुम मेरी सहेली शिवाली को जानते हो ना? उसने मुझे कल रात अपने घर की एक बहुत उत्तेजक घटना बताई। उसकी बातों ने मुझे इतना गर्म कर दिया कि मेरी चूत पूरी तरह गीली हो गई है। मेरी पैंटी मेरे चूत के पानी से भीग चुकी है।”
“सच में, डार्लिंग सिस? क्या हुआ, मुझे भी बताओ!” मैंने उत्सुकता से पूछा।
स्मृति ने धीमी आवाज़ में बताया, “कल रात शिवाली के घर उसका मामा आया था। उसने शिवाली और उसकी मम्मी को सिनेमा दिखाने ले गया। सिनेमाहॉल में उसका मामा और मम्मी एक-दूसरे से लिपटने-चिपटने लगे। घर लौटने के बाद, मामा ने रात में शिवाली की मम्मी को खूब चोदा। शिवाली ने मुझे बताया कि उसने अपनी मम्मी और मामा की चुदाई देखी। फिर मामा ने शिवाली को भी, उसकी मम्मी के सामने, नंगी करके खूब चोदा। शिवाली की मम्मी ने ये सब बड़े मज़े से देखा। तुम तो जानते हो, उसके पापा विदेश गए हैं।”
“वाह, शिवाली तो बड़ी लकी है! उसकी मम्मी और मामा के साथ चुदाई का ये अनुभव तो बहुत उत्तेजक है। बहना, मैं भी सोचता हूँ कि काश मैं तुम्हें और मम्मी को एक ही बिस्तर पर चोद पाऊँ। इन किताबों ने मुझे भी गर्म कर दिया है। चलो, जल्दी घर चलते हैं और जमकर चुदाई का मज़ा लेते हैं। मुझे लगता है, शिवाली की कहानी ने तुम्हें भी गर्म कर दिया है।”
“हाँ भाई, तुम सही कह रहे हो। मैं स्कूल की छुट्टी का इंतज़ार कर रही थी। मेरी चूत में खुजली हो रही है, और पानी निकल रहा है।” स्मृति ने वासना भरी आँखों से कहा।
“हाँ, मुझे तभी लगा था जब तुम स्कूल से निकल रही थीं। तुम बहुत गर्म लग रही थीं।” मैंने जवाब दिया।
“हाँ भाई, शिवाली की कहानी ने मेरी चूत में आग लगा दी। उसकी चुदक्कड़ मम्मी और चोदू मामा की बातों ने मेरी हालत खराब कर दी। मैं चाहती हूँ कि हम जल्दी घर पहुँचें और एक-दूसरे की बाहों में खो जाएँ।”
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हम घर से करीब 100 मीटर दूर थे कि अचानक एक ज़ोर की आवाज़ ने हमारा ध्यान भंग किया। ऑटो का टायर पंक्चर हो गया था। आसपास कोई रिपेयर की दुकान नहीं थी, और घर ज्यादा दूर भी नहीं था। हमने फैसला किया कि पैदल ही घर चलते हैं। हम दोनों ऑटो से उतरे और पैदल चल पड़े।
कुछ दूर चलने के बाद स्मृति ने मुस्कुराते हुए कहा, “भाई, तुम मेरे पीछे-पीछे चलो, मेरे साथ नहीं।”
मैंने हैरानी से पूछा, “पीछे क्यों?”
उसने आँखें नचाते हुए कहा, “भाई, ऐसा करने में तुम्हारा ही फायदा है। आजमा कर देखो, तुम्हें मज़ा आएगा।”
मुझे स्मृति पर पूरा भरोसा था। वो हमेशा सोच-समझकर बोलती थी। अगर उसने पीछे चलने को कहा, तो ज़रूर कोई मज़ेदार बात होगी। मैंने उसे आगे जाने दिया और उसके पीछे-पीछे चलने लगा। सड़क सुनसान थी, सिवाय एक-दो कुत्तों के। इस इलाके में मकान भी बिखरे हुए थे। स्मृति धीरे-धीरे, अपने चूतड़ों को मटकाते हुए चल रही थी। उसका अंदाज़ इतना मादक था कि मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा। उसकी स्कर्ट में कैद गोल-मटोल चूतड़ हिल रहे थे, जैसे किसी मरे हुए मर्द का लंड भी खड़ा कर दें।
स्मृति अपनी गाण्ड की खूबसूरती से वाकिफ थी। वो अक्सर इसका इस्तेमाल मुझे तड़पाने के लिए करती थी। उसकी गाण्ड मम्मी की तरह ही जानलेवा थी। घर पहुँचते-पहुँचते उसके चूतड़ों का ये मस्ताना खेल देखकर मेरा सब्र टूट गया। मुझे लगा कि मेरा लंड अभी पानी छोड़ देगा। मैं तेजी से उसके पास पहुँचा और बोला, “मेरी सेक्सी सिस, तुम तो मुझे मार डालोगी! अब बर्दाश्त नहीं होता। जल्दी घर चलो!”
स्मृति ने हँसते हुए कहा, “भाई, क्या ये देखना इतना बुरा है कि तुम जल्दी घर जाना चाहते हो?”
“स्मृति, तुम मेरी हालत नहीं समझ रही। मेरा लंड फुंफकार रहा है। जब हम कमरे में होंगे और मेरा लौड़ा तेरी बुर में होगा, तभी चैन पड़ेगा। जल्दी कर!”
घर पहुँचते ही हमने देखा कि मम्मी घर पर नहीं थीं। वो अपने ऑफिस में थीं। घर पर सिर्फ खाना बनाने वाली आया थी। उसने बताया कि खाना तैयार होने में वक्त लगेगा। ये सुनकर हमें खुशी हुई, क्योंकि हम यही चाहते थे। हमने उसे कहा कि हम ऊपर अपने कमरे में होमवर्क करेंगे और खाना बनने के बाद वो चली जाए, हमें डिस्टर्ब न करे।
हम जल्दी से सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। स्मृति ने मुझे नीचे रोक दिया और खुद अपने चूतड़ों को मटकाते हुए, मादक अंदाज़ में सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। जब वो काफी ऊपर पहुँच गई, उसने अपने बाएँ हाथ से अपनी स्कर्ट को हल्का-सा ऊपर उठाया। उसकी मांसल, मोटी जाँघें और काली नाइलॉन की जालीदार पैंटी का निचला हिस्सा दिख गया। उसकी गाण्ड की झलक ने मेरे बदन में आग लगा दी। मैं दो-दो सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ तेजी से उसके पास पहुँचा। हम दोनों हँसते हुए अपने कमरे की ओर भागे।
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हमारे बदन में वासना की आग भड़क रही थी। हमने दरवाज़ा खोला, अपने बैग और किताबें एक तरफ फेंकीं, जूते उतारे, और एक-दूसरे की बाहों में समा गए। दरवाज़ा बंद तो किया, लेकिन लॉक करना भूल गए। मैंने स्मृति को अपनी बाहों में कस लिया और उसके चेहरे पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसने भी मुझे जकड़ लिया। उसकी कठोर चूचियाँ मेरी छाती में दब रही थीं। उसके निप्पलों की चुभन मुझे महसूस हो रही थी। उसकी कमर और जाँघें मेरी जाँघों से सटी थीं। मेरा खड़ा लंड उसकी स्कर्ट के ऊपर से उसकी चूत को ठोकर मार रहा था।
स्मृति अपनी चूत को मेरे लंड पर रगड़ रही थी। हमारे होंठ एक-दूसरे से चिपके थे। मैं उसके रसीले होंठों को चूस रहा था, हल्के से काट रहा था। मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी, और उसकी जीभ से खेलने लगा। उसके हाथ मेरी पीठ और चूतड़ों को दबा रहे थे। मैं भी उसकी गाण्ड की दरार में स्कर्ट के ऊपर से उंगली फेर रहा था।
कुछ देर बाद मैंने उसे छोड़ा। वो बिस्तर पर गई, अपने घुटनों को बिस्तर के किनारे पर टिकाया, और इस तरह झुकी जैसे कुछ ढूँढ रही हो। उसने गर्दन घुमाकर मुझे देखा, मुस्कुराई, और अपनी स्कर्ट को ऊपर उठा दिया। उसकी नाइलॉन पैंटी में कैद गोल चूतड़ मेरे सामने थे। उसकी चूत का उभार पैंटी से साफ दिख रहा था, और पैंटी का वो हिस्सा पूरी तरह गीला था। मैं दौड़कर उसके पास पहुँचा और अपना चेहरा उसकी चूत और गाण्ड के बीच घुसा दिया। उसकी चूत के पानी और पसीने की मादक गंध ने मुझे पागल कर दिया। मैंने उसकी भीगी पैंटी को चाट लिया।
स्मृति “आह्ह… ओह्ह…” की सिसकारियाँ ले रही थी। उसने मुझे पैंटी उतारने को कहा। मैंने उसकी चूत और गाण्ड को चूमा, उसके चूतड़ों को दांतों से हल्के से काटा, और उसकी गंध को गहरी साँस लेकर अपने फेफड़ों में भरा। मेरा लंड अब दर्द कर रहा था। मैंने अपनी पैंट और अंडरवियर उतार दिया। स्मृति की मांसल जाँघों को पकड़कर मैं उसकी पैंटी के ऊपर से चूत चाटने लगा। चूत का पानी पैंटी से रिस रहा था। मैंने पैंटी समेत उसकी बुर को मुँह में भर लिया। “चप… चप…” की आवाज़ें कमरे में गूँज रही थीं।
पैंटी का बीच का हिस्सा उसकी चूत और गाण्ड की दरार में फंस गया था। मैं उसकी गाण्ड पर भी मुँह मार रहा था। स्मृति की उत्तेजना बढ़ रही थी। वो अपने कूल्हों को मटकाकर अपनी चूत और गाण्ड को मेरे चेहरे पर रगड़ रही थी। “आह्ह… भाई… और चाटो… ओह्ह…” वो सिसक रही थी।
मैंने धीरे से उसकी पैंटी उतार दी। उसके गोरे, चिकने चूतड़ों को देखकर मेरा लंड फुंफकार उठा। उसकी गाण्ड का भूरा छेद किसी फूल की कली जैसा था। मैं जानता था कि स्मृति ने वादा किया था कि किसी खास मौके पर मुझे उसकी गाण्ड मारने का मौका मिलेगा। उसकी चूत की गुलाबी पंखुरियाँ फड़फड़ा रही थीं, और वो पूरी तरह गीली थी। मैंने अपने हाथ उसकी गाण्ड की दरार में फेरते हुए उसकी चिकनी, बिना झांटों वाली चूत को सहलाया। मेरी उंगलियों पर उसका रस लग गया। मैंने उसे सूँघा और जीभ से चाट लिया।
स्मृति “उह्ह… आह्ह…” की सिसकारियाँ ले रही थी। उसने कहा, “भाई, तुमने मेरी चूत और गाण्ड को जी भरकर देख लिया। अब शुरू करो ना!”
मैं और देर नहीं करना चाहता था। मैंने अपनी जीभ उसकी चूत के होंठों पर रखी और चाटना शुरू किया। उसका रस नमकीन था। मैंने उसकी चूत को उंगलियों से खोला और अपनी जीभ को कड़ा करके उसकी चूत की सुरंग में घुसा दिया। मैंने उसके छोटे से भगनासे को चाटना शुरू किया। “आह्ह… ओह्ह… भाई…” स्मृति की चूत मचल रही थी। मैंने भगनासे को होंठों में दबाकर चूसा और जीभ से कुरेदा।
स्मृति ने एक ज़ोरदार धक्का अपनी चूत से मेरे मुँह पर मारा। “आह्ह… भाई… और चाटो… ओह्ह… मेरी चूत में आग लगी है…” वो सिसक रही थी। मैंने उसकी पेशाब की नली को उंगलियों से फैलाया और जीभ से चाटने लगा। उसकी तीखी गंध ने मुझे और पागल कर दिया। “आह्ह… भाई… तुम मुझे मार डालोगे… चूसो… मेरी चूत को चूस लो… ओह्ह… मेरे चोदू भाई… मेरी बुर का रस पी जाओ…” वो चिल्ला रही थी।
मैं उसकी चूत को चूस रहा था, और वो गंदी-गंदी गालियाँ बक रही थी। “हाँ, माँ के लौड़े… तू मुझे चोद… साले, तेरी माँ की बुर फाड़ दूँगी… चूस मेरी चूत को… मेरी बुर की धज्जियाँ उड़ा दे… आह्ह… हरामी… और ज़ोर से चाट… मेरी चूत में जीभ पेल… ओह्ह… चोदू भाई… मेरी बुर खा जा…” उसकी गालियाँ मुझे और उत्तेजित कर रही थीं।
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उसकी चूत से पानी रिस रहा था। “आह्ह… भाई… मेरा निकलने वाला है… ओह्ह… चूसो… मेरी चूत का रस पी जाओ… सीईई…ईई…” स्मृति ने एक ज़ोरदार सिसकारी भरी, और उसकी चूत से गर्म रस का फव्वारा छूट गया। मैंने उसका एक-एक बूँद चाट लिया। वो बिस्तर पर पेट के बल गिर गई। उसकी चूत अभी भी फड़फड़ा रही थी। मैंने अपना चेहरा उसकी जाँघों से निकाला।
स्मृति पेट के बल लेटी थी, कमर से नीचे पूरी नंगी। उसकी आँखें बंद थीं, और होंठ हल्के खुले थे। वो गहरी साँसें ले रही थी। उसका एक पैर घुटने से मोड़ा हुआ था, और दूसरा फैला हुआ। उसकी गुलाबी चूत और भूरी गाण्ड का छेद मेरे सामने थे, जैसे मुझे बुला रहे हों। मेरा लंड अब दर्द कर रहा था। उसका सुपारा लाल टमाटर जैसा हो गया था। मैं गहरी साँसें लेकर अपनी उत्तेजना को काबू करने की कोशिश कर रहा था।
मैं स्मृति के बगल में बिस्तर पर बैठ गया। उसने आँखें खोलीं और मेरे खड़े लंड को देखकर मुस्कुराई। “ओह भाई… तुमने मुझे जन्नत दिखा दी… मैं बहुत दिनों बाद इतना झड़ी हूँ… तुम्हारा लंड तो लोहे की रॉड जैसा है… मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि मेरे भाई के लौड़े को भी चूत चाहिए…”
उसने मेरा लंड अपने हाथों में लिया और सहलाने लगी। “आओ भाई… तुम्हारा लंड खुजली कर रहा होगा… मैं तैयार हूँ… तुम्हारा खड़ा लौड़ा देखकर मेरी चूत फिर से मचल रही है…”
मैंने कहा, “स्मृति, अगर तुम्हारी इच्छा नहीं है, तो कोई बात नहीं। मैं अपने लंड को हाथ से झाड़ लूँगा।”
“नहीं भाई! तुम अपनी बहन के होते हुए ऐसा कैसे कर सकते हो? मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूँ कि अपने भाई को तड़पता छोड़ दूँ।” उसने प्यार से कहा। “चलो, चढ़ जाओ अपनी बहन की चूत पर… मेरी बुर चोद दो… जल्दी से चुदाई शुरू करें।”
मैंने उसके होंठों पर एक गहरा चुम्बन लिया और उसके मलाईदार चूतड़ों को मसलते हुए कहा, “स्मृति, फिर से घुटनों के बल हो जाओ। मैं तुम्हें पीछे से चोदना चाहता हूँ।”
स्मृति ने तुरंत पोजीशन ले ली। उसने अपने पैर फैलाए और अपनी चूत को मेरे लिए खोल दिया। मैंने फिर से उसकी चूत को चाटा, उसे और गीला किया। “चप… चप…” की आवाज़ गूँज रही थी। मैंने उसके चूतड़ों को फैलाया और उसकी गाण्ड के छेद को अपनी थूक से गीली उंगली से सहलाने लगा। उसकी गाण्ड टाइट थी, लेकिन मैं उसे फिंगर करता रहा।
स्मृति सिसक रही थी, “आह्ह… भाई… अब देर मत करो… मैं गर्म हो चुकी हूँ… अपनी छिनाल बहन को चोद दो… मेरी चूत में लंड पेल दो… ओह्ह… जल्दी करो…”
मैंने अपने लंड का सुपारा उसकी गीली चूत के छेद पर रखा और एक ज़ोरदार धक्के में पूरा लंड अंदर पेल दिया। “आह्ह…” स्मृति की चीख निकली। उसकी गर्म, रसीली चूत ने मेरे लंड को जकड़ लिया। “मादरचोद… तूने तो रंडी समझकर ठोक दिया… साले, मेरी चूत फट जाएगी… जरा धीरे नहीं पेल सकता, हरामी?” वो चिल्लाई।
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मैं हँसते हुए धक्के मारने लगा। “फच… फच…” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। स्मृति ने भी अपनी गाण्ड पीछे धकेलकर मेरे लंड को अपनी चूत में लिया। मैंने उसके ब्लाउज़ के ऊपर से उसकी चूचियों को दबाना शुरू किया। उसके निप्पल कठोर थे। “आह्ह… भाई… और ज़ोर से… ऐसे ही चोदो… ओह्ह… मेरी बुर को फाड़ दो…” वो सिसक रही थी।
मैं तेजी से धक्के मार रहा था। “हाय मेरी रंडी बहन… तेरी चूत कितनी टाइट है… ओह्ह… ले मेरा लंड… अपनी बुर में ले…” मैं भी सिसक रहा था।
स्मृति चिल्ला रही थी, “आह्ह… चोद मेरे हरजाई भाई… और ज़ोर से… मेरी चूत को फाड़ दे… सीईई… ओह्ह… कुत्ते, और ज़ोर से पेल… बहनचोद… मेरी बुर का भोसड़ा बना दे… आह्ह… मेरा निकलने वाला है…”
मैंने अपने लंड को पूरा बाहर निकाला और फिर से उसकी चूत में पेल दिया। “फच… फच…” की आवाज़ तेज हो गई। मैं उसकी चूचियों को मसल रहा था, और मेरी छाती उसके चूतड़ों पर रगड़ रही थी। स्मृति कुतिया की तरह कूक रही थी, “आह्ह… चोद मेरे राजा… मेरे बहन के लौड़े… और ज़ोर से… सीईई… मेरी चूत का पानी निकल रहा है… ओह्ह… चोदू भाई… मेरी बुर को चोद…”
वो झड़ने लगी। उसकी चूत से गर्म रस बह रहा था। मैं भी झड़ने के कगार पर था। “आह्ह… मेरी रंडी… लंडखोर साली… मेरा भी निकलने वाला है… ले मेरे लंड का पानी अपनी चूत में…” मैं चिल्लाया।
तभी एक ज़ोरदार आवाज़ ने हमारा ध्यान भंग किया। मैंने दरवाज़े की ओर देखा। मम्मी वहाँ खड़ी थीं, गुस्से से लाल। वो चिल्ला रही थीं, “तुम दोनों पापी हो! ये क्या कर रहे हो? भाई-बहन होकर ये कुकर्म? मैंने तुम्हें ये सिखाया था?”
मैंने जल्दी से अपना लंड स्मृति की चूत से निकाला। मेरा पानी अभी निकलने वाला था, लेकिन मम्मी के आने से रुक गया। तभी मेरे लंड से एक तेज धार निकली, और कुछ बूँदें मम्मी की साड़ी और पेट पर जा गिरीं। मैं डर गया और अपनी पैंट ढूँढने लगा। स्मृति ने भी अपनी स्कर्ट ठीक की। मम्मी “छी छी…” कहते हुए कमरे से बाहर चली गईं।
हम दोनों डर के मारे खड़े रहे। हिम्मत नहीं हो रही थी कि कमरे से बाहर जाएँ। हमने अपने कपड़े पहने और चुपचाप खड़े रहे।
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