मैं, गायत्री, सतना की रहने वाली हूँ। मेरी उम्र 28 साल है, और मेरे पति, रमेश, 30 साल के हैं। रमेश मुझे इतना प्यार करता है कि मैं खुद को दुनिया की सबसे सुखी औरत मानती हूँ। उसकी हर नजर में मेरे लिए एक अनकहा वादा है, हर स्पर्श में एक गहरा प्यार। हर रात, जब वो मेरे करीब आता है, उसका गर्म हाथ मेरे जिस्म को सहलाता है, तो मेरे अंदर एक आग सी जल उठती है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से मेरे सामने एक ऐसी मुश्किल आ खड़ी हुई, जिसने मेरे दिल को झकझोर दिया। न चाहते हुए भी मुझे अपने पति को किसी और की बाहों में सौंपना पड़ा। आप सोच रहे होंगे, आखिर ऐसा क्या हुआ? मैं भी तो एक औरत हूँ, और अगर मैं अपनी देवरानी, कामिनी, की जगह खुद को रखकर सोचती, तो शायद मैं भी वही करती जो वो कर रही है। आखिर औरत का दिल और जिस्म, दोनों की अपनी भूख होती है, और जब वो भूख न बुझे, तो इंसान तड़प उठता है।
बात को शुरू से बताती हूँ, ताकि आपको सारा माजरा समझ आए। मेरे देवर, संजय, की शादी को अभी दो साल ही हुए थे। कामिनी, मेरी देवरानी, भोपाल के एक रईस और सभ्य घराने की लड़की है। वो एमए तक पढ़ी है, समझदार है, और उसकी खूबसूरती? हाय, क्या कहूँ! भगवान ने जैसे उसे अपने हाथों से गढ़ा हो। उसका मखमली गोरा बदन चाँदनी में चमकता था, कमर तक लहराते काले रेशमी बाल हवा में नाचते थे, गुलाबी होंठ जो किसी को भी ललचा दें, बड़ी-बड़ी सुडौल चूचियाँ जो उसकी साड़ी से बाहर झाँकती थीं, और वो उभरी हुई गाँड, जो हर कदम पर लचकती थी, मानो किसी को पुकार रही हो। उसका पेट इतना सपाट और सुराही जैसा कि देखकर मर्दों का दिल धक-धक करता था। उसकी कजरारी आँखें, जिनमें एक जादू सा था, किसी को भी घायल कर सकती थीं। मैं औरत होकर भी उसकी खूबसूरती पर फिदा थी। मेरे दोस्त कहते, “गायत्री, तेरी देवरानी तो किसी हीरोइन से कम नहीं! इसका हुस्न तो मर्दों को पागल कर दे!” मेरे देवर, संजय, तो उसके सामने साधारण से थे। वो पहले भी कामिनी की खूबसूरती के सामने फीके पड़ते थे, और अब तो भगवान ने उनसे सब कुछ छीन लिया।
शादी के सिर्फ आठ महीने बाद ही संजय का एक भयानक ट्रेन हादसे में दोनों पैर कट गए। वो पूरी तरह अपाहिज हो गए। डॉक्टरों ने बताया कि हादसे में उनके दिमाग की एक नस भी फट गई थी, जिसके बाद उनका दिमाग सही से काम नहीं करता। वो कभी बिना मतलब की बातें करने लगते, कभी हँसते, कभी रोने लगते, जैसे उनका अपने आप पर कोई काबू न हो। कभी वो अचानक चिल्लाते, “कामिनी, मैं तुम्हें दुनिया की हर खुशी दूँगा!” और अगले ही पल रोने लगते, “मैं बेकार हूँ, मैं कुछ नहीं कर सकता।” कामिनी, जो पहले हमेशा हँसती-खिलखिलाती थी, अब गुमसुम सी रहने लगी। उसकी आँखों में एक खालीपन सा दिखता था, जैसे उसकी जिंदगी से सारी रौनक चली गई हो। पहले वो अपने चेहरे और जिस्म का इतना ख्याल रखती थी—हर दिन नई साड़ी, हल्का मेकअप, काजल की पतली लकीर जो उसकी आँखों को और गहरा बना देती थी, और वो लिपस्टिक जो उसके होंठों को रसीला बना देती थी। लेकिन अब? वो बिना सजे-धजे, सादे कपड़ों में रहने लगी थी, जैसे उसे कुछ फर्क ही न पड़ता हो।
मुझे और रमेश को उसकी चिंता सताने लगी थी। मैं उसकी हालत देखकर तड़प उठती थी। इतनी खूबसूरत, जवानी से भरी औरत, और अब उसकी जिंदगी में सिर्फ अंधेरा। मैं सोचती थी, क्या गलती थी इसकी? क्यों भगवान ने इसके साथ ऐसा किया? मेरे दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। मैं रमेश से अक्सर कहती, “कामिनी की जिंदगी तो जैसे रुक सी गई है। हमें कुछ करना चाहिए।” रमेश भी चिंता में रहता, लेकिन कहता, “गायत्री, हम क्या कर सकते हैं? भगवान की मर्जी है।” लेकिन मैं जानती थी, कुछ तो करना होगा।
दिवाली के दूसरे दिन की बात है। रात के करीब 10 बजे थे। मैं और रमेश अपने कमरे में लेटे हुए थे। मैंने लाल रंग की साटन की नाइटी पहनी थी, जो मेरे जिस्म से चिपक रही थी। मेरी चूचियाँ, जो 34C की थीं, उस नाइटी में उभर रही थीं, और रमेश की नजर बार-बार वहाँ टिक रही थी। वो मेरे बालों को सहला रहा था, और मैं उसके सीने पर सिर रखकर उसकी बातें सुन रही थी। हम हल्की-फुल्की बातें कर रहे थे। रमेश ने हँसते हुए कहा, “गायत्री, तुम आज फिर से 20 साल की लग रही हो। ये नाइटी तुम पर गजब ढा रही है।” मैंने शरमाते हुए कहा, “बस करो, अब इतनी भी जवान नहीं हूँ।” लेकिन मेरे अंदर एक गुदगुदी सी हो रही थी। तभी अचानक कामिनी के कमरे से सिसकियों की आवाज आई। पहले तो हमें लगा शायद कुछ गलत सुना। लेकिन फिर वो आवाज और तेज हुई, जैसे कोई दबे गले से रो रहा हो। हम दोनों चौंककर उठे। रमेश ने कहा, “ये क्या आवाज है?” मैंने कहा, “शायद कामिनी…” और हम दोनों तेजी से उसके कमरे की ओर भागे।
दरवाजे के पास पहुँचे तो मैंने दरवाजे की झिरी से झाँका। जो नजारा देखा, उसने मेरे होश उड़ा दिए। कामिनी पूरी तरह नंगी थी। उसका गोरा, मखमली बदन चाँदनी में चमक रहा था, जैसे कोई संगमरमर की मूर्ति हो। उसकी चूचियाँ, जो 36D की होंगी, हल्के-हल्के हिल रही थीं, और उनके गुलाबी निप्पल सख्त होकर तन गए थे। उसकी चूत, जो पूरी तरह साफ थी, गीली होकर चमक रही थी। वो संजय के ऊपर बैठी थी, उसकी जाँघों के बीच। वो अपने हाथों से संजय के लंड को सहला रही थी, लेकिन संजय का लंड बिल्कुल ढीला पड़ा था, जैसे उसमें जान ही न हो। कामिनी बार-बार कोशिश कर रही थी—कभी अपने हाथों से, कभी अपने होंठों से, कभी अपनी चूत को रगड़कर—लेकिन कुछ हो नहीं रहा था। वो हताश होकर सिसक रही थी। उसकी आँखों से आँसू टपक रहे थे, और वो बुदबुदा रही थी, “क्यों, संजय? क्यों नहीं हो पा रहा? मेरी चूत में आग लगी है… मैं तड़प रही हूँ…”
मैं समझ गई कि उसकी जवानी की आग बुझ नहीं रही। उसका जिस्म तड़प रहा था, लेकिन संजय कुछ कर नहीं पा रहा था। मेरे दिल में एक तूफान सा उठा। मैं चुपचाप वापस अपने कमरे में आ गई। रमेश ने पूछा, “क्या हुआ?” मैंने कहा, “कुछ नहीं, बस कामिनी उदास है।” लेकिन मेरे दिमाग में वो नजारा बार-बार घूम रहा था। रात भर नींद नहीं आई। मैं सोच रही थी कि भगवान ने कामिनी की किस्मत में क्या लिख दिया? इतनी कम उम्र में इतना बड़ा दुख? वो कितने मुश्किल दौर से गुजर रही है। मेरी आँखों के सामने उसकी सिसकियाँ, उसका नंगा बदन, और उसकी हताशा बार-बार आ रही थी।
अगली रात, करीब बारह बजे, फिर से कामिनी के कमरे से शोर आया। इस बार वो चीख रही थी, रो रही थी। मैंने सुना, वो चिल्ला रही थी, “संजय, तुमने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी! मैं क्या करूँ? तुम मुझे कुछ दे नहीं पा रहे! न प्यार, न सुख, न कुछ! मेरी चूत में आग लगी है, और तुम्हारा लंड तो बेकार है!” उसकी आवाज में इतना दर्द था कि मेरा दिल बैठ गया। मैंने दरवाजे की झिरी से देखा। कामिनी ने कमरे का सारा सामान इधर-उधर फेंक दिया था। तकिए, चादर, कुछ शीशे की चीजें—सब बिखरा पड़ा था। वो अपनी नीली नाइटी में थी, लेकिन उसकी आँखें लाल थीं, बाल बिखरे हुए। संजय बिस्तर पर पड़ा था, बेबस। वो बस इतना कह रहा था, “मुझे माफ़ कर दो, कामिनी। मैं कुछ नहीं कर सकता। मेरी गलती नहीं है।”
मुझसे रहा नहीं गया। मैंने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुलने में पाँच मिनट लग गए। कामिनी ने जल्दी-जल्दी अपनी नाइटी ठीक की और दरवाजा खोला। उसकी आँखें लाल थीं, चेहरा आँसुओं से भीगा हुआ। उसने मुझे देखा और हड़बड़ाते हुए बोली, “दीदी, आप? इतनी रात को?” मैंने बहाना बनाया, “हाँ, कामिनी, मेरा सिर बहुत दुख रहा है। जरा बाम लेकर आ, और मेरे सिर की मालिश कर दे।”
वो बाहर आई, और मैंने उसे बाम से मालिश करने को कहा। जैसे ही वो मेरे सिर को दबाने लगी, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। मैंने उसकी आँखों में देखा और कहा, “कामिनी, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। मैं तुम्हारा दुख देखकर तड़प रही हूँ। तुम्हें जिस्मानी सुख की जरूरत है, और ये कोई गलत बात नहीं। इंसान को खाने-पहनने के अलावा और भी बहुत कुछ चाहिए होता है।” वो चुप थी, लेकिन उसकी साँसें तेज थीं। उसकी आँखों में शर्म और बेचैनी थी। मैंने हिम्मत जुटाकर कहा, “देख, तुम्हें यहाँ किसी चीज की कमी नहीं है। बस एक चीज की कमी है, और वो है जिस्म का सुख। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे पति, रमेश, से अपनी ये जरूरत पूरी कर लो। मैं उन्हें मना लूँगी। मैं तुम्हारे लिए अपने पति को शेयर करने को तैयार हूँ। बस तुम हाँ कहो।”
मेरी बात सुनकर कामिनी की आँखें छलक पड़ीं। वो फफककर रोने लगी। बोली, “दीदी, क्या बताऊँ? संजय का लंड बिल्कुल खड़ा नहीं होता। मैंने कितनी कोशिश की—अपने हाथों से, मुँह से, चूत से रगड़कर—लेकिन वो बेकार है। मेरी जवानी की आग बुझती ही नहीं। मैं दिन-रात तड़पती हूँ। मेरी चूत में ऐसी आग लगी है कि मैं पागल हो रही हूँ। एक दिन मैंने घंटों कोशिश की, उसका लंड अपनी चूत में घुसाने की, लेकिन कुछ हुआ ही नहीं। सेक्स के बिना मैं रह नहीं सकती, दीदी। अभी तो मेरी जवानी अपने चरम पर है। अगर आप मेरे लिए इतना बड़ा कदम उठा रही हैं, तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है।” उसकी आवाज में शर्म, हताशा, और एक अजीब सी उम्मीद थी।
मेरे दिल में भी एक तूफान सा चल रहा था। अपने पति को किसी और के साथ शेयर करने का ख्याल आसान नहीं था। लेकिन कामिनी की हालत देखकर मुझे लगा, अगर मैं उसकी मदद नहीं करूँगी, तो वो टूट जाएगी। मैंने उसे गले लगाया और कहा, “कामिनी, तू चिंता मत कर। मैं सब ठीक कर दूँगी।” उसने मेरे गले लगकर रोते हुए कहा, “दीदी, आप मेरे लिए भगवान हैं।”
अगले दिन मैंने रमेश को सारी बात बताई। मैंने उसे अकेले में बुलाया, जब हम अपने बगीचे में बैठे थे। मैंने कहा, “रमेश, मैं तुमसे एक जरूरी बात करना चाहती हूँ।” वो चौंका, बोला, “क्या हुआ, गायत्री? सब ठीक है ना?” मैंने गहरी साँस ली और सब कुछ बता दिया—कामिनी की हालत, उसकी तड़प, और मेरा फैसला। पहले तो वो नाराज होने का नाटक करने लगे। बोले, “गायत्री, ये क्या बोल रही हो? मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ? मैं तेरे साथ धोखा कैसे करूँ?” लेकिन मैं उनके दिल की बात समझ रही थी। उनकी आँखों में एक चमक थी, जो बता रही थी कि वो भी इस मौके को लेकर उत्साहित थे। मैंने उन्हें प्यार से समझाया, “रमेश, ये मेरे लिए आसान नहीं है। लेकिन कामिनी मेरी बहन जैसी है। उसकी जिंदगी बर्बाद हो रही है। तुम उसकी मदद करो, मेरे लिए।” आखिरकार वो मान गए। बोले, “ठीक है, गायत्री। अगर तुम्हें कोई ऐतराज नहीं, तो मैं तैयार हूँ। लेकिन ये सब सिर्फ तुम्हारे लिए।” मैं जानती थी, वो सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि अपनी भी भूख मिटाने को तैयार थे।
अगली रात मैंने खाना खाने के बाद कामिनी को अपने कमरे में बुलाया। मैंने काली रंग की साटन की नाइटी पहनी थी, जो मेरे जिस्म से चिपक रही थी। कामिनी ने हल्के गुलाबी रंग की नाइटी पहनी थी, जो उसके गोरे बदन पर गजब ढा रही थी। मैंने कामिनी को पास बुलाया और रमेश से कहा, “जी, आज से आप मुझे और कामिनी को एक समान समझें। उसका आप पर उतना ही हक है, जितना मेरा। वो आपको जेठ की नजर से भी देखेगी, और पति की नजर से भी। मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं।” कमरे में सन्नाटा छा गया। कामिनी और रमेश दोनों मुझे चुपचाप देख रहे थे। कामिनी की साँसें तेज थीं, और उसकी आँखों में शर्म और घबराहट थी। रमेश के चेहरे पर भी एक अजीब सी बेचैनी थी, लेकिन उसकी आँखों में वो चमक साफ दिख रही थी। मैंने कहा, “आप लोग बात करो। मैं सामने हलवाई की दुकान से मिठाई लाती हूँ। दुकान बंद होने वाली है।” ये कहकर मैं बाहर निकल गई, जानबूझकर उन्हें अकेले छोड़कर।
जब मैं आधे घंटे बाद वापस आई, तो कमरे का नजारा देखकर मेरी साँसें थम गईं। दरवाजा हल्का सा खुला था, और अंदर से कामिनी की सिसकारियाँ और रमेश की भारी साँसों की आवाजें आ रही थीं। मैंने धीरे से दरवाजे की झिरी से झाँका। कामिनी पूरी तरह नंगी थी। उसकी गुलाबी नाइटी फर्श पर बिखरी पड़ी थी। उसका गोरा, मखमली बदन पसीने से चमक रहा था, जैसे कोई मोती चाँदनी में नहा रहा हो। उसकी चूचियाँ, जो 36D की थीं, गोल और सख्त थीं, और उनके गुलाबी निप्पल तने हुए थे, जैसे किसी ने उन्हें चूस-चूसकर सख्त कर दिया हो। उसकी चूत, जो पूरी तरह साफ थी, गीली होकर चमक रही थी, और उसमें से पानी की बूँदें टपक रही थीं। रमेश ने उसकी दोनों टाँगें अपने कंधों पर उठा रखी थीं, और उसका मोटा, 7 इंच का लंड कामिनी की चूत में धीरे-धीरे अंदर-बाहर हो रहा था। कमरे में “थप-थप-थप” की आवाज गूँज रही थी, जैसे कोई गीली लकड़ी पर हथौड़ा मार रहा हो।
रमेश ने पहले कामिनी की नाइटी को धीरे-धीरे ऊपर उठाया था। उसकी गुलाबी नाइटी को उसने कामिनी की कमर तक सरकाया, और फिर एक झटके में उसे सिर के ऊपर से खींचकर फर्श पर फेंक दिया। कामिनी की गोरी जाँघें खुली थीं, और उसकी चूत, जो गीली हो चुकी थी, हल्के से चमक रही थी। रमेश ने अपनी शर्ट और पैंट उतारी, और उसका लंड, जो पहले से तन चुका था, बाहर निकल आया। उसका लंड मोटा और सख्त था, जैसे कोई लोहे का रॉड। उसकी नसें उभरी हुई थीं, और उसका सुपारा गुलाबी और चमकदार था। कामिनी की आँखें उस लंड को देखकर चमक उठीं, लेकिन उसमें शर्म भी थी। वो बोली, “भैया… ये… इतना बड़ा… मेरी चूत में कैसे जाएगा?” रमेश ने हँसते हुए कहा, “कामिनी, तू चिंता मत कर… मैं तेरी चूत को इतना गीला कर दूँगा कि ये आसानी से अंदर चला जाएगा…”
रमेश ने पहले कामिनी की चूचियों को अपने हाथों में लिया। उसने दोनों चूचियों को जोर-जोर से दबाया, जैसे कोई आटा गूँथ रहा हो। कामिनी की सिसकारी निकल गई, “आआह… भैया… धीरे… मेरी चूचियाँ दुख रही हैं…” लेकिन उसकी सिसकारी में मज़ा साफ झलक रहा था। रमेश ने उसके निप्पल को अपने मुँह में लिया और जोर-जोर से चूसने लगा। उसकी जीभ कामिनी के निप्पल पर गोल-गोल घूम रही थी, और वो उन्हें हल्के से काट भी रहा था। कामिनी की चूत और गीली हो गई, और वो अपनी गाँड को बिस्तर पर रगड़ने लगी। वो चीखी, “उफ्फ… भैया… मेरी चूचियों को चूस डालो… आआह… कितना मज़ा आ रहा है…”
रमेश ने फिर अपनी उँगलियाँ कामिनी की चूत पर फेरीं। उसकी चूत इतनी गीली थी कि उसकी उँगलियाँ फिसल रही थीं। उसने अपनी दो उँगलियाँ कामिनी की चूत में डालीं और धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगा। “चप-चप” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। कामिनी की साँसें तेज हो गईं, और वो चीखी, “आआह… भैया… मेरी चूत में आग लग रही है… और तेज करो…” रमेश ने अपनी उँगलियाँ और तेजी से चलाईं, और कामिनी की चूत से पानी बहने लगा। उसने कामिनी की चूत के दाने को अपनी उँगली से रगड़ा, और कामिनी की चीख और तेज हो गई, “उउउ… भैया… मैं पागल हो जाऊँगी… मेरी चूत को चोद डालो…”
रमेश ने अब अपना लंड कामिनी की चूत के मुँह पर रखा। उसका सुपारा कामिनी की चूत के होंठों को छू रहा था, और कामिनी की चूत बार-बार सिकुड़ रही थी, जैसे वो लंड को अपने अंदर खींचना चाहती हो। रमेश ने धीरे से एक धक्का मारा, और उसका लंड का सुपारा कामिनी की चूत में घुस गया। कामिनी की चीख निकल गई, “आआह… भैया… ये बहुत मोटा है… मेरी चूत फट जाएगी…” रमेश ने कहा, “कामिनी, तू रिलैक्स कर… मैं धीरे-धीरे डालूँगा… तेरी चूत को आज मैं जन्नत दिखाऊँगा…” उसने धीरे-धीरे अपना लंड और अंदर धकेला, और “थप” की आवाज के साथ उसका आधा लंड कामिनी की चूत में समा गया। कामिनी की चूत इतनी टाइट थी कि रमेश का लंड उसमें जकड़ सा गया था। वो बोला, “उफ्फ… कामिनी… तेरी चूत तो इतनी टाइट है… जैसे कोई कुंवारी चूत हो…”
रमेश ने अब अपनी कमर को तेजी से हिलाना शुरू किया। उसका लंड कामिनी की चूत में पूरी तरह अंदर-बाहर होने लगा। हर धक्के के साथ “थप-थप-थप” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। कामिनी की चूचियाँ जोर-जोर से हिल रही थीं, और वो चीख रही थी, “हाय… हाय… भैया… आआह… तेरा लंड मेरी बच्चेदानी तक जा रहा है… उफ्फ… मेरी चूत को फाड़ डालो… और जोर से…” रमेश ने उसकी टाँगें और ऊपर उठाईं, और अब उसका लंड कामिनी की चूत की गहराई तक जा रहा था। कामिनी की चूत से पानी बह रहा था, जो बिस्तर को भिगो रहा था। हर धक्के के साथ “चप-चप” की आवाज आ रही थी, जैसे कोई गीली चीज में कुछ जोर से डाल रहा हो।
मैं ये सब देखकर हैरान थी, लेकिन मेरी चूत भी गीली हो रही थी। मेरी नाइटी मेरे जिस्म से चिपक रही थी, और मेरी चूचियाँ सख्त होकर तन गई थीं। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने अपनी नाइटी उतारी और बिस्तर पर चढ़ गई। मेरी चूचियाँ, जो 34C की थीं, तनकर बाहर निकल आईं। मेरे निप्पल सख्त हो गए थे, और मेरी चूत से पानी टपक रहा था। मैंने अपनी चूत कामिनी के मुँह के पास ले जाकर रगड़नी शुरू की। कामिनी ने मेरी चूत को चाटना शुरू किया, और उसकी जीभ मेरी चूत के दाने को छू रही थी। मैं सिसकार उठी, “आआह… कामिनी… चाट मेरी चूत को… उफ्फ… तू तो कमाल है…” मैंने उसकी चूचियाँ जोर-जोर से दबानी शुरू कीं। उसकी चूचियाँ इतनी मुलायम थीं कि मेरे हाथों में समा नहीं रही थीं। मैंने उसके निप्पल को मरोड़ा, और वो चीखी, “दीदी… आआह… मेरी चूचियों को दबा दो… उफ्फ… कितना मज़ा आ रहा है…”
रमेश अब और तेज धक्के मार रहा था। उसका लंड कामिनी की चूत में इतनी तेजी से अंदर-बाहर हो रहा था कि कमरे में “थप-थप-चप-चप” की आवाज गूँज रही थी। वो बोला, “कामिनी, तेरी चूत तो जन्नत है… मैं तेरी चूत को चोद-चोदकर फाड़ दूँगा…” कामिनी चीखी, “भैया… और जोर से… मेरी चूत को चोद डालो… आआह… मैं झड़ने वाली हूँ…” मैंने अपनी चूत को और जोर से कामिनी के मुँह पर रगड़ा, और वो मेरी चूत को चूसने लगी। मैंने अपनी उँगलियों से अपनी चूत का पानी निकाला और कामिनी के मुँह में डाला। वो उसे चूसने लगी जैसे कोई भूखी शेरनी हो। मैंने कहा, “कामिनी, ले, मेरी चूत का रस पी ले… आज से हम दोनों साथ-साथ चुदवाएँगी…”
करीब डेढ़ घंटे तक ये चुदाई चलती रही। कामिनी की चीखें, रमेश के धक्के, और मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। रमेश ने कामिनी की टाँगें और ऊपर उठाईं, और उसकी चूत में इतने जोरदार धक्के मारे कि कामिनी की चीखें और तेज हो गईं, “आआह… भैया… मेरी चूत… उउउ… मैं झड़ रही हूँ…” उसकी चूत से पानी का फव्वारा सा निकला, और वो निढाल हो गई। रमेश ने एक जोरदार “आआह…” के साथ अपना सारा वीर्य कामिनी की चूत में उड़ेल दिया। उसका गर्म वीर्य कामिनी की चूत में भर गया, और कुछ बूँदें बिस्तर पर टपक गईं।
हम तीनों हाँफ रहे थे। कमरे में सिर्फ हमारी साँसों की आवाज थी। रमेश ने हाँफते हुए कहा, “थैंक यू गायत्री, तुम्हारे जैसी पत्नी दुनिया में कोई नहीं। तुमने मेरी और कामिनी की जिंदगी बना दी।” कामिनी ने मेरी ओर देखा, उसकी आँखें आभार से भरी थीं। वो बोली, “थैंक्स दीदी, आपके जैसी जेठानी और भैया जैसे जेठ हम जैसे अभागन को मिले ताकि वो अपनी वासना की आग को अपने ही घर में बुझा सके।”
मैंने हँसते हुए कहा, “कामिनी, अब से हम दोनों साथ-साथ अपनी जवानी का मज़ा लेंगी।” हम तीनों हँस पड़े।
दोस्तों, आपको मेरी ये घर बुर की चुदाई की कहानी कैसी लगी? क्या आपने कभी ऐसी सिचुएशन फेस की है, जहाँ दिल और जिस्म की जरूरतों ने आपको मुश्किल में डाला हो? नीचे कमेंट में जरूर बताएँ। अपने दोस्तों के साथ फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर शेयर करें।
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