गाँव वाली काकी को चुदवाते हुए पकड़ा

मेरा नाम उमेश है। मैं अभी 23 साल का हूँ, लेकिन ये कहानी उस वक्त की है जब मैं 19 साल का था। मेरी हाइट 5 फीट 10 इंच है, जिम में पसीना बहाने की वजह से बॉडी कसी हुई है, और मेरा लंड 7 इंच लंबा और मोटा है। मेरी फैमिली में पापा की उम्र 44 साल और मम्मी की 41 साल है। हम मुंबई के रहने वाले हैं, जहाँ हमारा बड़ा बिजनेस है। गाँव में भी हमारी ढेर सारी जमीन है, और उसी सिलसिले में हम गाँव आए थे।

बात उस दिन की है जब मैंने अपने पापा को काकी के साथ चुदाई करते देख लिया। काकी का नाम सुनंदा था, और वो 45 साल की थीं। उनकी हाइट 5 फीट 5 इंच, गोरा-चिट्टा रंग, हट्टा-कट्टा जिस्म, और फिगर करीब 38-34-38। थोड़ा मोटापा था, लेकिन वो उनकी खूबसूरती को और निखार देता था। उनकी गहरी नाभि और भारी-भरकम चूचियाँ देखकर किसी का भी लंड खड़ा हो जाए। उस दिन पापा को काकी की चूत लेते देखकर मेरे मन में आग सी लग गई। मैंने ठान लिया कि मैं भी काकी की चुदाई करूँगा, चाहे कुछ भी हो जाए।

तीन दिन बाद पापा और मम्मी मुंबई लौटने लगे। मैंने कह दिया कि मैं गाँव में एक महीना रुकूँगा। मन में तो काकी की चूत का ख्याल था। गाँव में रहते हुए पहले दो-तीन दिन मैं चाचा के साथ खेतों पर गया। चाचा के साथ घूमते-फिरते वक्त एक दिन काकी रास्ते में मिलीं। उन्होंने मेरा हालचाल पूछा और घर आने का न्योता दिया। उनकी मुस्कान में एक अजीब सी चमक थी, जो मेरे लंड को और बेकरार कर गई।

घर लौटकर खाना खाया और मैं अपने नौकर कल्लू के पास चला गया। कल्लू गाँव का सीधा-सादा आदमी था, लेकिन उसकी आँखों में चालाकी थी। मैंने उससे सीधे बात शुरू की।

मैं: “कल्लू, तू भी काकी को ठोकता है ना?”

कल्लू (घबराते हुए): “नहीं हुकुम, मैंने कभी नहीं ठोका।”

मैं: “सच बोल, वरना तेरी नौकरी गई। तू पापा और काकी को चुपके से चुदाई करते देखता है, और इतना कुछ देखने के बाद तूने काकी की चूत ना मारी हो, ये मैं नहीं मानता।”

कल्लू पहले तो टालमटोल करता रहा, लेकिन मेरे डराने पर आखिरकार उसने कबूल कर लिया।

कल्लू: “जी छोटे हुकुम, मैं कभी-कभार सेठानी को ठोक लेता हूँ।”

मैं: “अच्छा, तो अब तुझे मेरे सामने काकी को चोदना होगा।”

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कल्लू (डरते हुए): “मतलब?”

मैं: “कल तू काकी को उसी रूम में लाएगा और चोदेगा। जब तू उनकी चुदाई कर रहा होगा, मैं बीच में आ जाऊँगा। फिर वो मुझे मना नहीं कर पाएँगी, और मुझे उनकी चूत मिल जाएगी।”

कल्लू: “लेकिन हुकुम, मैं उन्हें चोदने के लिए नहीं बुलाता। वो खुद बताती हैं कि कब चुदवाना है।”

मैं: “कोई बात नहीं। इस बार तू बुलाएगा।”

कल्लु: “लेकिन हुकुम?”

मैं: “बकवास मत कर। मुझे काकी की चूत चाहिए, और तुझे मेरी मदद करनी है। चाहे तुझे अच्छा लगे या ना।”

बेचारा कल्लू क्या करता? उसने हाँ कर दी। प्लान ये बना कि रात को वो काकी को मनाकर उस रूम में लाएगा और चोदेगा। जब वो दोनों रूम की ओर निकलेंगे, तो वो मेरे मोबाइल पर मिस कॉल देगा। मैं रात का इंतज़ार करने लगा। 12 बज गए, और मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। सोच रहा था कि इस बेवकूफ ने काम बिगाड़ दिया। तभी मेरा फोन बजा। मिस कॉल थी। मैं खुशी से उछल पड़ा और उस रूम की ओर चल दिया।

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खेतों के बीच से होते हुए मैं रूम के पास पहुँचा। दूर से देखा तो काकी और कल्लू रूम की ओर जा रहे थे। मैंने थोड़ा इंतज़ार किया और धीरे-धीरे उनके पीछे चल पड़ा, ताकि उन्हें शक न हो। वो दोनों रूम में दाखिल हुए, और मैं खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया। दो मिनट बाद रूम की लाइट जली। मैंने अंदर झाँका तो काकी ने लाल रंग का लहंगा-चोली पहना था। उनके खुले बाल और गोरा जिस्म देखकर मेरा लंड तन गया। काकी की गहरी नाभि और भारी चूचियाँ लहंगे में और भी सेक्सी लग रही थीं।।

काकी: “तूने मुझे आज यहाँ क्यों बुलाया? मैंने तो कहा था कि मुरारी के बापू दो दिन बाद शहर जा रहे हैं। फिर मैं आती।”

कल्लू: “सेठानी, जब आपका मन होता है, मैं कभी मना नहीं करता। जब जने कहते वो।, जने वके तैयार रहता हूँ।”

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काकी: “अब तू मुझे मना करेगा? तेरी इतनी हिम्मत?”

कल्लू: “नहीं सेठानी, मैं तो बस…”

काकी (हँसते हुए): “अरे डर मत, मजाक कर रही हूँ। तू मेरा इतना ख्याल रखता है, इसलिए मैं आज आ गई।”

फिर काकी ने कल्लू को अपनी बाहों में खींच लिया और उसके होंठों को चूसने लगीं। वो दोनों एक-दूसरे से चिपक गए।। पाँपते हुए, चूसते हुए, जैसे एक-दूसरे को खा जाएँ।। करीब 7 मिनट तक वो एक-दूसरे के होंठों को चूमते रहे।। इस बीच कल्लू ने काकी की गाँड को लहंगे के ऊपर से दबाना शुरू किया। उनकी गाँड इतनी मुलायम और भारी थी कि कल्लू के हाथ बार-बार उसी पर लौट रहे थे। मैं बाहर खिड़की से ये सब देख रहा था, और मेरा लंड मेरी पैंट में तन गया था। मैंने हाथ से उसे सहलाने लगा।

किस्सिंग रुकने के बाद काकी ने कल्लू का कुता उतर दिया। अब वो सिर्फ धोती में था। काकी ने अपना ब्लाउज खोला, और अंदर उन्होंने ब्रा नहीं पहनी थी। उनकी गोरी-गोरी चूचियाँ बाहर लटक रही थीं, इतनी बड़ी और रसीली कि कल्लू पागल हो गया। वो उनकी चूचियों पर टूट पड़ा। दोनों हाथों से उन्हें मसला, फिर एक चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा। काकी उसके सिर में हाथ फेर रही थीं और सिसकारियाँ ले रही थीं, “आहह… उम्म्म… चूस ले… और चूस!”

कल्लू कभी दाहिनी चूची चूसता, तो कभी बाईं। 10 मिनट तक वो काकी की चूचियों से खेलता रहा। फिर उसने मुँह उठाया और काकी को फिर से चूमने लगा। चूमते-चूमते उसने काकी के लहंगे का नाड़ा खोल दिया। एक झटके में लहंगा नीचे गिर गया। काकी ने अपने पैरों से उसे साइड में कर दिया। अब काकी सिर्फ लाल रंग की पैंटी में थीं।। उनकी गहरी नाभि और थोड़ा बाहर निकला पेट उन्हें और सेक्सी बना रहा था।

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दो-तीन मिनट तक चूमने के बाद काकी नीचे बैठीं और कल्लू की धोती खोल दी। उसने गाँव वाला बड़ा सा कच्छा पहना था। काकी ने कच्छे के ऊपर से ही उसके लंड को सहलाया। कल्लू ने आँखें बंद कर लीं और सिसकारी भरी। फिर काकी ने एक झटके में कच्छा नीचे खींच दिया। कल्लू का लंड बाहर आ गया, कम से कम 8 इंच का, लेकिन पतला। काकी ने उसे हाथ में लिया और सहलाने लगीं। कल्लू मज़े में आँखें बंद किए हुए था। फिर काकी ने उसका लंड मुँह में ले लिया और चूसने लगीं।

कल्लू के हाथ काकी के बालों में थे। वो उनके सिर को धीरे-धीरे आगे-पीछे कर रहा था। काकी 5 मिनट तक उसका लंड चूसती रहीं, “चप्प… चप्प…” की आवाज़ें रूम में गूँज रही थीं। फिर कल्लू ने काकी को खड़ा किया और उन्हें गेहूँ की बोरियों के ढेर के पास ले गया। काकी ने बोरियों का सहारा लिया और चूचियाँ टिकाकर खड़ी हो गईं। उनकी पीठ मेरी तरफ थी। कल्लू ने काकी की पैंटी घुटनों तक खींच दी और घुटनों के बल बैठकर उनकी गाँड और चूत चाटने लगा।

वो काकी की चूत में उंगली डालकर चाटता रहा। काकी आँखें बंद किए सिसकार रही थीं, “आह… उहह… ओह… चाट ले… और चाट!” काकी ने अपनी गाँड हिलानी शुरू कर दी। उनकी गाँड का हर हिल्कोरा देखकर मेरा लंड और तन रहा था। मैं बाहर मूठ मार रहा था, लेकिन रुकना नहीं चाहता था।

कल्लू: “सेठानी, आपकी चूत इतनी रसीली है कि जीभ हटाने का मन नहीं करता।”

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काकी: “आहह… उम्म्म… तो कौन कह रहा है हटा? बस चाटते रह!”

कल्लू: “सेठानी, हुकुम अभी चोदकर गए हैं। मेरा लंड तो आपको अब मजा दे ही नहीं पाएगा।”

काकी: “उसकी बात छोड़… आहह… वो तो किसी की भी जान निकाल देता है। लीला की किस्मत है, रोज़ ऐसा तगड़ा लंड लेती होगी।”

कल्लू: “आप भी तो हुकुम को देखते ही गाँड उठा लेती हैं।”

काकी: “बु… आहह… अपने काम पर ध्यान दे!”

कल्लू अब खड़ा हुआ। उसने अपना लंड काकी की चूत पर रगड़ा। काकी ने उसका लंड पकड़ा और अपनी चूत के छेद पर लगाया।। कल्लू ने एक ज़ोर का झटका मारा, और उसका लंड काकी की चूत में घुस गया। “आच्छटट…” की आवाज़ आई। काकी ने सिसकारी भरी, “आहह… उफ्फ!”

कल्लू ने दो मिनट तक वैसे ही खड़े रहकर। काकी की गर्दन और कंधों पर चूमा। फिर धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए। “पट्ट… पट्ट…” की आवाज़ के साथ उसका लंड काकी की चूत में अंदर-बाहर होने लगा। काकी सिसकार रही थीं, “आह… उहह… धीरे… ओहह…” लेकिन तीन-चार मिनट में ही कल्लू झड़ गया। उसने अपना लंड बाहर निकाला और हाँफने लगा।

मुझे हँसी आ गई। इतना बड़ा लंड और 5 मिनट भी नहीं टिका। मेरा तो अभी पानी भी नहीं निकला था। काकी ने पास पड़ी चुन्नी उठाई और अपनी चूत से कल्लू का पानी साफ किया। मुझे उम्मी नहीं थी कि वो इतनी जल्दी झड़ जाएगा। मैंने सोचा कि अब मेरा मौका है। मैं एकदम से रूम में दाखिल हुआ।

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काकी बिल्कुुल नॉर्मल थीं। मुझे देखते ही बोलीं, “आ गया ना, मुझे चोदने?”

मेरे तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई। मैं हक्का-बक्का काकी को देख रहा था। तभी काकी हँसने लगीं।

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“चिंता मत कर, बेटा। कल्लू ने मुझे सब बता दिया। चल, अब नंगा हो जा और आ जा मेरे पास।”

मैं हैरान था, लेकिन खुशी से पागल भी। मैंने जल्दी से अपने कपड़े उतारे। कल्लू ने कहा, “हुकुम, मुझे माफ करना।”

मैं: “कोई बात नहीं, मुझे तो काकी की चूत चाहिए थी, वो मिल गई।”

काकी: “बस अब ज्यादा देर मत कर। मुझे डबल लंड का मज़ा दे।”

काकी ने मेरा लंड पकड़ा और मुँह में ले लिया। “चप्प… चप्प…” की आवाज़ के साथ वो मेरा लंड चूसने लगीं। मैंने उनकी चूत चाटी, जो अभी भी गीली थी और रसीली। फिर मैंने और कल्लू ने मिलकर काकी की चुदाई शुरू की। काकी को बोरियों का सहारा था। मैंने पीछे से उनका लंड उनकी चूत में डाला, और कल्लू ने उनकी चूचियाँ चूसने का काम लिया।

“आहच्छटट… पट्ट… पट्ट…” की आवाज़ें रूम में गूँज रही थीं। काकी चिल्ला रही थीं, “आह… चोदो… और ज़ोर से… उहह…!” मैंने धक्के तेज़ किए। उनकी चूत इतनी गीली थी कि मेरा लंड आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था। काकी की गाँड हर धक्के पर हिल रही थी, और उनकी सिस्कारियाँ मुझे और पागल कर रही थीं।

काकी: “उमेश… आहह… तेरा लंड… उफ्फ… कितना तगड़ा है…!”

मैं: “काकी, आपकी चूत तो जन्नत है… आह!”

कल्लू उनकी चूचियों को चूस रहा था, और मैं पीछे से धक्के मार रहा था। 15 मिनट तक मैंने काकी की चूत ठोकी। फिर मैंने अपना लंड निकाला और काकी के मुँह में दिया। वो चूसने लगीं। आखिर में मैं उनकी चूत में ही झड़ गया। काकी हाँफ रही थीं, लेकिन उनकी आँखों में तृप्ति थी।

उस एक महीने में हम तीनों ने खूब मज़े किए। हर रात हम उस रूम में मिलते, और काकी की चुदाई होती। कभी मैं, कभी कल्लू, और कभी हम दोनों मिलकर। काकी की रसीली चूत और भारी गाँड का मज़ा हमें कभी नहीं आया।

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