मेरा नाम शिवांगी है। मैं अपने माँ-बाप की इकलौती बेटी हूँ, इसलिए बचपन से ही लाड़-प्यार में पली हूँ। माँ-बाप का बेपनाह प्यार बच्चों को बिगाड़ देता है, और मैं भी इससे अछूती नहीं रही। इस लाड़ और हर बात की आजादी ने मुझे बिंदास बना दिया। नतीजा ये हुआ कि मैं 18 साल की उम्र में, जब कॉलेज में नई-नई आई थी, एक लड़के को दिल दे बैठी। उस उम्र में समझ कम थी, और उसने मेरी नादानी का फायदा उठाया।
जब मेरी सहेलियाँ माहवारी की बातें सीख रही थीं, मैंने उस बेवफा के लिए अपनी कौमार्य खो दी। उसने सिर्फ दो बार मेरे साथ चुदाई की और फिर मुझे छोड़ दिया, कहकर कि मेरे बदन में वो मज़ा नहीं। मज़ा क्यों नहीं? क्योंकि उसे बड़े-बड़े चूचे और मोटी गांड चाहिए थी, भारी-भरकम जांघें चाहिए थीं। मगर मैं तो उस वक्त पतली-दुबली, छोटी-सी लड़की थी। मेरे पास जो था, वो मेरी उम्र और बदन के हिसाब से था। उसने मुझे साफ छोड़ दिया। मैं दिन-रात रोई, आंसुओं में डूबी रही। मगर एक बार चूत ने लंड का स्वाद चख लिया, तो फिर चैन कहाँ?
कॉलेज में दाखिल होते ही मेरे तीन बॉयफ्रेंड बन गए। तीनों एक से बढ़कर एक चोदू। कॉलेज के दिन बड़े मज़े में कटे। हर हफ्ते दो-तीन बार चुदाई तो पक्की थी। इस दौरान दो बार अबॉर्शन भी करवाना पड़ा, लेकिन किसी को भनक नहीं पड़ी। इस कच्ची उम्र में बार-बार चूत फड़वाने ने मुझे पूरी तरह बिगाड़ दिया। मैं बस उन चार-पाँच डेट्स के दिनों को मुश्किल से काटती थी, जब चुदाई नहीं हो पाती थी।
फिर बी.ए. में आई। मेरी चूत कभी लंड से खाली नहीं रही। पूरे कॉलेज में मेरी शोहरत थी। प्रोफेसर से लेकर कैंटीन का लड़का, चौकीदार तक, सब मेरे हुस्न के दीवाने थे। मैं जानती थी कि ये मर्द मेरे चूचे, चूत, गांड और चेहरे के पीछे पागल थे। सबका मकसद बस मुझे चोदना था। उनके दिल में मेरे लिए प्यार नहीं था, और मैं भी हँस-बोलकर अपना काम निकलवाती थी। लेकिन चुदाई सिर्फ अपने बॉयफ्रेंड्स से ही करवाती थी। फिर भी मेरी बदनामी इतनी फैल गई कि जब घरवालों ने रिश्ता ढूंढना शुरू किया, तो लोकल में तीन-चार रिश्ते टूट गए।
घरवालों ने फिर बाहर का लड़का ढूंढा। रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर का बेटा, प्रथमेश, जो कनाडा में जॉब करता था। शादी बड़े धूमधाम से हुई। मेरे तीनों बॉयफ्रेंड भी शादी में आए। दुल्हन के लिबास में मैं सोच रही थी कि ये कमीने मन ही मन हँस रहे होंगे कि साली सती-सावित्री बनकर बैठी है, और जब हमारी माशूका थी, तो कैसे उछल-उछलकर लंड लेती थी।
शादी हो गई। सुहागरात भी हुई। मैंने जानबूझकर दर्द का नाटक किया, खूब रोई, जैसे मेरी चूत पहली बार फट रही हो। घरवाले खुश कि उन्हें सीलपैक माल मिला। शादी के बाद हनीमून पर गए। वहाँ दिन-रात चुदाई ही चली। जब भी मौका मिलता, प्रथमेश मुझे पेलता। लेकिन कुछ बातें मुझे खटक रही थीं। पहली, उसका लंड छोटा था, मुश्किल से चार-साढ़े चार इंच। मैं तो शादी से पहले छह-सात इंच के लंड ले चुकी थी। दूसरी, वो जल्दी झड़ जाता था, पाँच-सात मिनट में ही हाँफने लगता। मेरे बॉयफ्रेंड्स तो आधा-आधा घंटा मेरी चूत में अपने पत्थर जैसे लंड डाले रखते थे।
फिर भी मैंने प्रथमेश को हौसला दिया। उसे धीरे-धीरे टाइम बढ़ाने को कहा। वो मेहनत करता रहा। अब वो 10-12 मिनट तक चुदाई करने लगा था। मैं सोचती थी, ठीक है, अब इसके साथ ही जिंदगी गुजारनी है। कोई नया पंगा नहीं लेना। सिर्फ अपने पति के साथ रहूँगी। लेकिन ये खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी। प्रथमेश को कनाडा वापस जाना था। वो दो महीने की छुट्टी पर आया था। मेरे कनाडा जाने के कागज-पत्र तैयार होने में टाइम लग गया। फिर एक दिन वो जहाज चढ़कर चला गया।
मैं अकेली रह गई। पहले तो खूब रोई। दिन-रात आंसुओं में डूबी रही। घर में सिर्फ मैं और मेरे ससुरजी थे। प्रथमेश की बड़ी बहन भी कुछ दिन बाद अपने ससुराल चली गई। इतना बड़ा घर खाली! मैंने धीरे-धीरे खुद को संभाला। घर के कामों में ध्यान लगाया। कामवाली सारा काम कर जाती थी, तो मेरे पास करने को कुछ नहीं था। मायका भी दूर था, फोन पर बात तो होती थी, लेकिन वो काफी नहीं था। ससुरजी ज्यादातर अपने कमरे में रहते या दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाते।
उन्होंने कहा था कि पड़ोस में सहेलियाँ बना लो, लेकिन मुझे सहेलियों से ज्यादा दोस्त पसंद थे। मैं किसी से ज्यादा घुली-मिली नहीं। सारा दिन घर में बोर होती। टीवी भी कितना देख लो? एक दिन दोपहर को मैं खिड़की के पास खड़ी थी, बाहर देख रही थी। तभी मेरी नजर पड़ोस के घर पर गई। कुछ हलचल दिखी। ध्यान से देखा तो एक मर्द बिल्कुल नंगा खड़ा था। उसका लंबा, मोटा लंड साफ दिख रहा था। फिर पड़ोस की बहू आई, उसने लंड पकड़ा और मुँह में लेकर चूसने लगी। “स्स… चप… चप…” चूसने की आवाजें मेरे दिमाग में गूंजने लगीं। दो मिनट बाद वो बेड पर लेट गए, मुझे दिखना बंद हो गया। मैं आधा घंटा खिड़की पर खड़ी रही, लेकिन वो फिर दिखे नहीं।
मैं बेड पर लेट गई। दिमाग में उस मर्द का मूसल जैसा लंड घूम रहा था। मन कर रहा था कि पड़ोस में जाऊँ, घंटी बजाऊँ और पूछूँ, “क्या मैं आपका लंड ले सकती हूँ?” लेकिन ये मुमकिन नहीं था। मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैं ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी। पूरा मेकअप किया। साड़ी उतारी। शीशे में खुद को ब्लाउज और पेटीकोट में देखा। गोल, उभरे चूचे, सपाट पेट, मोटी गांड, भरी-भरी जांघें, गोरा रंग, सुंदर चेहरा—मेरा फिगर लाजवाब था। फिर भी मैं प्यासी क्यों?
मैंने ब्लाउज के हुक खोले, उसे उतारा। पेटीकोट भी नीचे गिरा दिया। पिंक ब्रा-पैंटी में मेरा गोरा बदन कितना सेक्सी लग रहा था। फिर मैंने ब्रा और पैंटी भी उतार दी। मेरा नंगा, सुडौल बदन किसी भी मर्द का लंड खड़ा कर दे। लेकिन मेरे पास लंड क्यों नहीं? मैं लंड की भूखी क्यों हूँ? मैंने सोचा, मेरे इस खूबसूरत बदन में कोई कमी तो नहीं। लेकिन अगले पल मन में ख्याल आया, “नहीं, सिर्फ मेरा पति, और कोई नहीं!” यही सोचकर मैं बेड पर लेट गई और अपनी चूत सहलाने लगी। “उम्म… आह…” मैं तड़पती रही, चूत मसलती रही। आखिर मेरा पानी छूट गया। स्खलन के बाद भी मैं नंगी ही बेड पर पड़ी रही।
उस रात फिर मैंने हाथ से किया, लेकिन हाथ से वो मज़ा नहीं आता। स्खलन तो हो जाता, पर संतुष्टि नहीं मिलती। मैंने ऐसी चीजें ढूंढनी शुरू कीं, जो लंड की तरह मेरी चूत में जा सकें—खीरा, मूली, गाजर, बैंगन, बेलन। लंड की कमी तो पूरी हो गई, लेकिन चूमने-चाटने की तमन्ना कहाँ पूरी होती? मेरी प्यास बढ़ती जा रही थी।
एक दिन मैं ससुरजी को चाय देने उनके कमरे में गई। घर का माहौल खुला था। मैं जींस-टीशर्ट, कैप्री, कुछ भी पहन लेती थी। उस दिन मेरी टीशर्ट का गला गहरा था। मैं अपने कमरे में ही रहती थी, और ससुरजी मेरे कमरे में नहीं आते। अगर नंगी भी रहूँ, तो कोई डर नहीं था। लेकिन उस दिन जब मैं उनके कमरे में गई, वो सो रहे थे। उनके पाजामे में से उनका तना हुआ लंड साफ दिख रहा था। मैंने अंदाजा लगाया, कम से कम सात-आठ इंच का होगा, और मोटा भी। ये ख्याल आते ही मेरी चूत में खुजली होने लगी। मैंने खुद को समझाया, “हट पागल, ये तो ससुरजी हैं, इनके साथ कैसे?”
मैंने चाय रखी, तो उनकी आँख खुल गई। मैं जैसे ही झुकी, उनकी नजर मेरी टीशर्ट के गले से मेरे चूचों पर पड़ी। दो सेकंड तक वो गौर से देखते रहे, फिर नजर हटा ली। मैं वापस आ गई। जब सेक्स की तलब लगी हो, तो सपने भी वैसे ही आते हैं। उसी रात मुझे सपना आया कि मैं ससुरजी का लंड चूस रही हूँ। नींद खुली तो चूत पानी-पानी थी।
मैं उठी, सारे कपड़े उतारे, बिल्कुल नंगी होकर उनके कमरे के बाहर खड़ी हो गई। उनका दरवाजा खुला था। मैंने देखा, वो सो रहे थे। मैंने दरवाजे के पास से सिर थोड़ा आगे किया और उनकी तरफ देखते हुए अपनी चूत में उंगली करने लगी। “उम्म… आह…” जैसे-जैसे जोश बढ़ा, मैं उनके दरवाजे के सामने पूरी तरह खड़ी हो गई। बड़ी मुश्किल से अपनी सिसकारियाँ दबाईं और खड़े-खड़े स्खलित हो गई। मन कर रहा था कि ससुरजी उठें, मुझे पकड़ लें, मैं उनका लंड चूसूँ, और वो मुझे दबाकर पेलें। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
अगली रात मैं फिर उनके कमरे के सामने थी। इस बार मेरे पास बैंगन था। मैं उसे ससुरजी का लंड समझकर अपनी चूत में डाल रही थी। “आह… उम्म…” मैं और दिलेर हो गई। उनके कमरे में चली गई, कार्पेट पर लेट गई। बैंगन से अपनी चूत चोद रही थी कि तभी बत्ती जल गई। मैंने चौंककर देखा, ससुरजी बेड पर अधलेटे मुझे देख रहे थे। मैं घबरा कर भागी, बैंगन भी वहीं छोड़ आई। बहुत शर्मिंदगी हुई। मैंने ये क्या कर दिया? ससुरजी मेरे बारे में क्या सोचेंगे?
अगले दिन शर्म के मारे उनके सामने नहीं जा पाई। चाय-नाश्ता कामवाली से भिजवाया। लेकिन दोपहर का खाना तो मुझे ही देना था। जब मैंने खाना परोसा, वो बोले, “बेटा, मैंने प्रथमेश से बात की है। वो जल्दी तुम्हें ले जाएगा। तब तक सब्र रखो।” उनकी बात में बहुत कुछ छुपा था।
मगर चूत की आग कहाँ बुझती है? अगली रात मैं फिर नंगी होकर ड्रॉइंग रूम में चली गई। सोफे पर बैठकर मूली से अपनी चूत चोद रही थी। “उम्म… आह… हाय…” मेरी सिसकारियाँ निकल रही थीं। तभी ड्रॉइंग रूम की लाइट जली। सामने ससुरजी खड़े थे। “बेटा, ये क्या कर रही हो? इतनी बेबस हो गई हो?” मैं टूट पड़ी। फर्श पर गिरकर फूट-फूटकर रोने लगी। “पापा, मुझसे नहीं होता। मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन मैं मर जाऊँगी।”
ससुरजी मेरे पास आए। उन्होंने प्यार से मेरे बदन पर शाल डाली। मैं उनके कंधे से लगकर रो रही थी। वो मुझे समझा रहे थे, “कोई बात नहीं, मेरा बच्चा। कभी-कभी इंसान अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाता। घबरा मत, मैं हूँ न। सब ठीक हो जाएगा।” उनकी बातों ने मुझे ढांढस बंधाया, लेकिन मेरे मन में आग बढ़ती जा रही थी। मैंने उनके पाजामे के ऊपर से उनका लंड पकड़ लिया और बोली, “पापा, मुझे ये चाहिए।”
वो चौंक गए। “शिवांगी, बेटा, ये क्या किया?” मैंने उनकी बात अनसुनी की। कामवासना में अंधी होकर मैंने उनके पाजामे का नाड़ा खींच दिया। उनका काला, मोटा, लंबा लंड मेरे सामने था। उन्होंने अंदर चड्डी नहीं पहनी थी। मैं फर्श पर बैठ गई, उनका लंड हाथ में पकड़ा और मुँह में ले लिया। “आह…” लंड का वो जाना-पहचाना स्वाद! मैंने जोर-जोर से चूसा। “स्स… चप… चप…” मेरी चूसने की आवाजें कमरे में गूंज रही थीं। ससुरजी ने पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन मैंने लंड को मजबूती से पकड़ रखा था। देखते-देखते उनका लंड तनकर सात इंच का मूसल बन गया।
मैंने शाल उतारी और ससुरजी को धक्का देकर सोफे पर गिराया। “पापा, आज मेरी चूत की आग बुझाओ। मुझे चोदो, प्लीज!” मैंने उनके कमीज़ के सारे बटन खोले, उनके बालों भरे सीने पर हाथ फेरा, उनके चूचुक उंगलियों से मसले। “आह… उफ्फ… स्स…” उनकी सिसकारियाँ निकलीं। वो भी गर्म हो चुके थे। मैं उनकी गोद में बैठ गई, उनका लंड अपनी चूत पर सेट किया और धीरे-धीरे अंदर लिया। “आह… कितना मोटा है…” मेरी सिसकारी निकली।
ससुरजी ने मेरे होंठों को चूम लिया। “शिवांगी, तू इतनी गर्म क्यों है? तेरी चूत तो आग उगल रही है!” मैंने उनके होंठ चूसे, उनकी जीभ अपने मुँह में ली। “पापा, मुझे प्यार करो, मेरी चूत को चोदो!” वो बोले, “रुक साली, मादरचोद! तेरी चूत की आग अभी बुझाता हूँ!” उन्होंने मुझे कालीन पर लिटाया और एक ही धक्के में पूरा लंड मेरी चूत में उतार दिया। “आह…!” मेरी चीख निकली। “धप… धप…” चुदाई की आवाजें गूंजने लगीं।
वो पीछे हटे और फिर एक जोरदार धक्के में लंड मेरी चूत की आखिरी दीवार से टकराया। “पापा, और जोर से! मेरी चूत फाड़ दो!” मैं चिल्लाई। उन्होंने मेरे चूचे पकड़े और नींबू की तरह निचोड़ दिए। “आह… पापा, धीरे! दर्द होता है!” मेरी चीख निकली। वो बोले, “अब धीरे नहीं, तूने मेरे लंड को जगा दिया। आज तेरी चूत की माँ चोद दूँगा!”
उनके धक्के इतने जोरदार थे कि मेरा पूरा बदन हिल रहा था। “धप… धप… आह… उम्म…” मैं सिसकार रही थी। वो मेरे होंठ चूस रहे थे, मेरे चूचे मसल रहे थे। “शिवांगी, तेरी चूत कितनी टाइट है! तू तो जवान मर्द को भी पागल कर दे!” मैंने कहा, “पापा, तुम्हारा लंड तो पत्थर जैसा है। प्रथमेश का तो इसके सामने कुछ भी नहीं!”
वो बोले, “चल, घोड़ी बन!” मैं झट से घोड़ी बन गई। उन्होंने पीछे से मेरी चूत में लंड डाला और पेलने लगे। “धप… धप…” मेरी गांड पर उनके थप्पड़ पड़ रहे थे। “आह… पापा, मारो! मेरी गांड लाल कर दो!” मैं चिल्लाई। वो बोले, “तेरी आँख तो मैंने पहले ही पहचान ली थी। लेकिन ये नहीं सोचा था कि तू मेरे लंड की भूखी बन जाएगी।”
मैंने कमर हिलाते हुए कहा, “पापा, एक दिन भी नहीं काट पाई। प्रथमेश के जाने के बाद हर रात मैंने अपनी चूत में उंगली की, बैंगन डाला, मूली डाली। लेकिन तुम्हारा लंड… आह… ये तो जन्नत है!” वो बोले, “अब तुझे कुछ और नहीं चाहिए। मेरा लंड हमेशा तेरे लिए तैयार रहेगा!”
फिर उन्होंने मुझे लिटाकर मेरे ऊपर चढ़ गए। मेरे चूचे दबाते हुए पीछे से चूत मार रहे थे। “धप… धप… आह… उम्म…” मैंने कहा, “पापा, मेरा होने वाला है। मुझे सीधा होने दो।” वो हटे, मैं सीधी लेटी। ससुरजी मेरे ऊपर चढ़ गए। मैंने उन्हें अपनी बाहों में भर लिया, टाँगें उनकी कमर पर लपेट दीं। “पापा, मेरे होंठ चूसो! मेरे चूचे दबाओ! जोर से चोदो! आह… मारो… और मारो!” मैं चिल्लाई। “धप… धप… आह… उम्म…” मैं झड़ गई। ससुरजी से चिपक गई, जैसे कोई गोंद हो।
जब मैं शांत हुई, तो लेट गई। लेकिन ससुरजी तो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे। मैंने उनके सीने पर हाथ फेरते हुए कहा, “पापा, आप तो बड़े जवान मर्द हो। आपका तो हो ही नहीं रहा!”
वो हँसे, “अरे बेटा, देसी जड़ी-बूटी खाता हूँ। इतनी जल्दी माल नहीं गिरने दूँगा।”
मैंने कहा, “तो कोई बात नहीं। जितनी देर आप कर सकते हो, करो। मैं सारी रात चुद सकती हूँ।”
वो बोले, “और मैं सारी रात चोद सकता हूँ!”
फिर अगले 20 मिनट तक और जोरदार चुदाई हुई। “धप… धप… आह… उम्म…” वो मेरी चूत को रगड़ते, मेरे चूचे चूसते, मेरी गांड पर थप्पड़ मारते। “शिवांगी, तेरी चूत तो रसीली मलाई है!” मैंने कहा, “पापा, तुम्हारा लंड मेरी चूत का राजा है!” आखिरकार उनका माल झड़ा। मेरी चूत उनके गर्म वीर्य से भर गई। मैं संतुष्ट, निश्चिंत होकर छत की ओर देख रही थी। वैसे ही सो गई।
सुबह चार बजे फिर लगा जैसे ससुरजी ने मुझे चोदा। इस बार 50 मिनट तक पेला। “धप… धप… आह… उम्म…” वो मेरे होंठ चूस रहे थे, मेरे चूचों पर दाँत गड़ा रहे थे। “शिवांगी, तू मेरी रानी है!” मैंने कहा, “पापा, तुम मेरे मर्द हो!” फिर उन्होंने मुझे गोद में उठाकर मेरे बेड पर लिटा दिया।
सुबह 9 बजे के बाद उठी। मैंने नाइट ड्रेस पहनी थी। बाथरूम में नहाते वक्त शीशे में देखा, मेरे चूचों, कमर और पेट पर उंगलियों और दाँतों के निशान थे। ससुरजी अपने कमरे में थे। कामवाली ने चाय बनाई थी। मैं तैयार होकर चाय लेकर उनके कमरे में गई, लेकिन उन्होंने ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
अगले महीने प्रथमेश वापस आ रहा है, मुझे हमेशा के लिए कनाडा ले जाने। अब मैं सोच रही हूँ, जाऊँ या न जाऊँ? और एक बात, मैं प्रेग्नेंट हूँ। इसमें कोई शक नहीं कि बच्चा ससुरजी का है। लेकिन क्या प्रथमेश इसे कबूल करेंगे?
आपको ये कहानी कैसी लगी? क्या मुझे प्रथमेश के साथ कनाडा जाना चाहिए, या ससुरजी के साथ यहीं रहना चाहिए? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएँ।