मेरा नाम रंजना है। मैं 30 साल की एक खूबसूरत औरत हूँ। मेरी 38 साइज़ की भारी-भरकम चुचियाँ और पतली कमर किसी का भी दिल धड़का देने के लिए काफी हैं। मेरी सुंदरता ऐसी है कि देखने वाले पागल हो जाते हैं। मेरे आसपास हमेशा मर्दों की भीड़ मंडराती रहती थी, मगर मैंने कभी किसी को भाव नहीं दिया। मेरी चूत अभी तक अनछुई थी, कुंवारी थी।
शुरुआत से ही मेरे पीछे दीवानों की कमी नहीं रही। कॉलेज के दिनों में भी लड़के मेरे पीछे पड़े रहते थे। लेकिन मैं उन परिंदों पर अपनी जवानी का रस बर्बाद करने में यकीन नहीं रखती, जो फूल का रस चूसकर उड़ जाते हैं। मैंने एमबीबीएस किया और अब सिल्लॉन्ग के एक छोटे से कस्बे के सरकारी अस्पताल में ऑर्थोपेडिक वॉर्ड में काम करती हूँ। यहाँ कई डॉक्टर मेरे दीवाने हैं, पर मेरी पसंद कुछ अलग है।
मैं मर्दों से दूरी बनाए रखती हूँ। इस वजह से कुछ लोग मुझे घमंडी और नखरीली कहते हैं, लेकिन उनकी बातों का मुझे कभी बुरा नहीं लगा। असल में मैं बहुत शर्मीली हूँ। आज तक मुझे कोई ऐसा मर्द नहीं मिला, जो मेरे दिल को भाए। मेरे घरवाले भी मेरी शादी को लेकर परेशान थे। कई लड़कों की तस्वीरें भेज चुके थे, पर मैंने हर बार मना कर दिया। उम्र बढ़ती जा रही थी, तो मम्मी-पापा की चिंता जायज़ थी। मैंने उनसे साफ कह दिया था कि उनकी चिंता छोड़ें और मेरी छोटी बहन का ध्यान रखें। जिस दिन मुझे कोई पसंद आएगा, मैं उसे उनसे मिलवाऊँगी।
यहाँ अस्पताल में एक डॉक्टर है, डॉ. थापा। बड़ा दिलफेंक। उसका कई नर्सों और लेडी डॉक्टर्स के साथ चक्कर चलता रहता है। वो कई दिनों से मेरे पीछे पड़ा था, पर मैंने उसे कभी तवज्जो नहीं दी। एक बार उसने अंधेरी जगह पर मुझे पकड़कर जबरदस्ती करने की कोशिश की। मेरी चुचियों को जोर से मसलने लगा। मैंने गुस्से में अपने घुटने से उसकी टाँगों के बीच ऐसा मारा कि वो दर्द से बिलबिला उठा। मैं उसकी पकड़ से छूटकर भाग गई। उसके बाद तो मैंने उसकी ऐसी ठुकाई की कि उसने मेरी तरफ देखना तक छोड़ दिया। जब भी मुझसे मिलता, सिर झुकाकर निकल जाता।
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इतनी मगरूर, शर्मीली और ठंडी लड़की आखिरकार किसी के प्यार में पड़ ही गई। वो भी ऐसा कि मैंने उस पर अपनी जवानी, अपना सब कुछ लुटा दिया। वो मर्द न तो डॉक्टर जितना खूबसूरत था, न WWF के पहलवानों जैसी बॉडी वाला, और न ही कोई अमीरजादा। बस एक साधारण सा इंसान, मेरे स्टेटस से कहीं नीचे। उससे मिलने के बाद मेरे मम्मी-पापा के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखीं, पर मैंने उन्हें मना लिया। आखिरकार, मेरी खुशी को सबसे ऊपर रखते हुए उन्होंने हमारी शादी करवा दी। अब मैं आपको बताती हूँ कि हमारे बीच प्यार का ये पौधा कैसे उगा।
बात उस दिन की है, जब मैं शाम 6 बजे वॉर्ड में राउंड पर थी। मेरे साथ एक नर्स थी। हम एक-एक मरीज को चेक कर रहे थे। पहले केबिन्स में भर्ती मरीजों को देखा, फिर जनरल वॉर्ड की ओर बढ़े। मैं हर मरीज की केस हिस्ट्री देखते हुए उनकी हालत नोट कर रही थी। जनरल वॉर्ड एक बड़ा हॉल था, जिसमें बीस बेड्स थे। कोने में हल्का अंधेरा था। चेक करते-करते मैं कोने की ओर बढ़ी। तभी नर्स किसी काम से वापस लौट गई। मैं अकेली थी, पर आखिरी मरीज था, तो मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। ये मेरा रोज का रुटीन था, ऐसे हालात की तो मैं आदी थी।
कोने के बेड पर एक 30-32 साल का हट्टा-कट्टा मर्द लेटा था। उसके पैर में डिसलोकेशन था। मैं उसके पास पहुँची और उसका मुआयना करने लगी। चार्ट देखते हुए मैंने उसकी ओर देखा। वो एक तंदुरुस्त नौजवान था, जिसके चेहरे में गजब का आकर्षण था। मेरी आँखें कुछ पल के लिए उसकी आँखों में अटक गईं। ऐसा लगा मानो मैं उसके नजरों के जादू में बंध गई। वो पीठ के बल लेटा था, एक पतली चादर सीने तक ओढ़े हुए। उसकी रिपोर्ट देखते-देखते मेरी नजर उसकी कमर पर गई।
उसकी कमर के पास चादर टेंट की तरह उभरी हुई थी। साफ पता चल रहा था कि उसका लंड खड़ा था। उसके हाथों की हल्की हरकत बता रही थी कि वो अपने लंड को सहला रहा था। मैं कुछ पल तक उसके लंड के उभार को देखती रही। चादर के सबसे ऊपरी हिस्से पर, जहाँ उसके लंड का सुपारा था, एक गीला धब्बा दिख रहा था, जो उसके प्रीकम का सबूत था। वो मुझे एकटक देखते हुए अपने लंड पर जोर-जोर से हाथ चला रहा था। मैं घबरा गई। मेरा गला सूखने लगा। मैं जाने को मुड़ी, तभी उसने धीरे से कहा, “डॉक्टर, मेरे दाएँ पैर को थोड़ा घुमा दें, ताकि मैं करवट ले सकूँ।”
मैंने उसकी टाँगों की ओर देखा। उसके चेहरे की ओर देखने की हिम्मत नहीं थी। ऐसा लग रहा था मानो उसने मुझे चोरी करते पकड़ लिया हो। मैंने चारों ओर देखा, पर कोई नजर नहीं आया। ज्यादातर लोग उंघ रहे थे, कुछ अपने रिश्तेदारों से धीमी आवाज में बात कर रहे थे। कोई नर्स या हेल्पर नहीं दिखा। मैंने उसकी टाँगों को चादर के ऊपर से पकड़ने की कोशिश की, लेकिन ट्रैक्शन की वजह से पकड़ नहीं बन रही थी। “चादर के अंदर से पकड़ो,” उसने ऐसे सलाह दी मानो वो डॉक्टर हो और मैं मरीज।
मेरे हाथ काँप रहे थे। मैंने चादर को एक तरफ से हल्का सा उठाया और दूसरा हाथ अंदर डाला। चादर के नीचे वो पूरी तरह नंगा था। मैंने उसकी कमर को थामने की कोशिश की, पर नाकाम रही। फिर मैंने दोनों हाथों से उसकी दायीं टाँग को जोड़ों से पकड़ा। इस कोशिश में दो बार मेरा हाथ उसकी टाँगों के बीच लटकते उसके अंडकोषों को छू गया। मेरा पूरा बदन पसीने से तर हो गया। मैंने उसकी टाँग को उसकी सुविधा के हिसाब से घुमाया, तो उसने हल्की करवट ली। इस बीच चादर उसकी कमर से खिसक गई और उसका तना हुआ लंड मेरे सामने आ गया। काला, मोटा और लंबा लंड था। मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई।
“थैंक यू, डॉक्टर,” उसने मेरी हालत का मजा लेते हुए मुस्कुराकर कहा। मैं वहाँ से लगभग भागते हुए कमरे से निकल गई। मेरा बदन पसीने से लथपथ था। मैं अस्पताल के क्वार्टर में रहती थी। मैंने नर्स से तबीयत खराब होने का बहाना बनाया और सीधे घर जाकर ठंडे पानी से नहाई। मेरा दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि उसकी आवाज मेरे कानों में गूँज रही थी। मैंने फ्रिज से ठंडे पानी की बोतल निकाली और एक साँस में पूरी पी गई। ठंडा पानी धीरे-धीरे मेरे बदन को शांत करने लगा। कुछ देर बाद जब मैं सामान्य हुई, तो ड्यूटी पर लौट गई, लेकिन उस वॉर्ड में वापस नहीं गई।
रात को बिस्तर पर लेटी, तो वो घटना मेरे दिमाग में फिल्म की तरह चलने लगी। न जाने क्यों मेरे मन में गुदगुदी होने लगी। बार-बार मेरा मन उसी की ओर खींचा जा रहा था। मैंने अपने जज्बातों पर काबू करने की कोशिश की, लेकिन रात गहरी होने के साथ मेरा कंट्रोल ढीला पड़ता गया। आखिरकार, तड़पकर मैं रात 12:30 बजे फिर से अस्पताल की ओर चल पड़ी। उस वक्त चहल-पहल कम थी। मैं स्टाफ की नजरों से बचते हुए ऑर्थोपेडिक वॉर्ड में घुसी।
खुद को छिपाते हुए मैं जनरल वॉर्ड में पहुँची। ज्यादातर मरीज सो चुके थे। चारों ओर सन्नाटा था। कभी-कभी किसी के कराहने की आवाज ही माहौल को तोड़ रही थी। मैं वहाँ क्यों गई थी? क्या चाहती थी? मुझे खुद नहीं पता था। अगर कोई मेरी मौजूदगी का कारण पूछ लेता, तो मेरे पास जवाब नहीं होता। मैं इधर-उधर देखती हुई आखिरी बेड पर पहुँची। वो जगा हुआ था। मैंने उसकी ओर देखा। उसका नाम अरुण था, ये मैंने हिस्ट्री कार्ड से जाना। वो उसी हालत में था—उसका लंड खड़ा था और वो उस पर हाथ चला रहा था। चादर पर सूखा हुआ धब्बा बता रहा था कि उसका एक बार स्खलन हो चुका था।
मैं धीरे-धीरे उसके पास सरकी और उसका टेंपरेचर देखने के बहाने उसके माथे पर हाथ रखा। कुछ देर हाथ रखे रहने के बाद मैंने उसके चेहरे को सहलाना शुरू किया। अचानक चादर के नीचे से उसका हाथ निकला और मेरी कलाई को जोर से पकड़ लिया। मैंने छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ लोहे जैसी थी। हम दोनों के मुँह से एक शब्द नहीं निकला। हम दोनों इस बात का ख्याल रख रहे थे कि बगल के बेड पर सो रहे मरीज को कुछ पता न चले।
उसने मेरे हाथ को चादर के अंदर खींच लिया और अपनी टाँगों के जोड़ तक ले गया। मेरा हाथ उसके तने हुए लंड से टकराया। मेरे पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। उसने जबरदस्ती मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया। मैंने छुड़ाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसकी ताकत के आगे मेरी एक न चली। मेरा हाथ सुन्न होने लगा। वो मुझे छोड़ने के मूड में नहीं था। आखिरकार, हिचकते हुए मैंने उसके लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया। वो मेरे हाथ को पकड़कर अपने लंड पर ऊपर-नीचे चलाने लगा। ऐसा लग रहा था मानो मैंने कोई गर्म लोहा पकड़ लिया हो। उसका लंड मोटा और कम से कम 10 इंच लंबा था।
मैं धीरे-धीरे उसके लंड पर हाथ चलाने लगी। कुछ देर बाद उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। जब उसने देखा कि मैं अब खुद उसके लंड को सहला रही हूँ, तो उसने मेरा हाथ छोड़ दिया। मैं उसी तरह उसके लंड को मुट्ठी में जकड़कर ऊपर-नीचे कर रही थी। कुछ देर बाद उसका शरीर अकड़ गया और उसने मेरे हाथों पर ढेर सारा चिपचिपा वीर्य उड़ेल दिया। मैंने झटके से उसका लंड छोड़ा और चादर से हाथ बाहर निकाला। मेरा पूरा हाथ गाढ़े सफेद वीर्य से सना था। उसने मेरा हाथ पकड़कर चादर से पोंछ दिया। मैं हाथ छुड़ाकर वहाँ से भाग आई।
घर पहुँचकर ही मैंने साँस ली। मेरी पैंटी पूरी तरह गीली हो चुकी थी। जब मैं थोड़ा सामान्य हुई, तो अपने हाथ को नाक के पास ले जाकर सूँघा। उसके वीर्य की खुशबू अभी भी मेरे हाथों में बसी थी। मैंने मुँह खोलकर एक उंगली अपनी जीभ से छुआई। वीर्य का स्वाद अजीब, लेकिन अच्छा लगा। पहली बार मैंने किसी मर्द के वीर्य का स्वाद चखा था। फिर तो मैंने सारी उंगलियाँ चाट लीं। चाटते हुए सोच रही थी कि काश उसने मेरा हाथ चादर से न पोंछा होता। मैंने अपने हाथ को होंठों पर रखकर अस्पताल की ओर एक फ्लाइंग किस उछाल दी।
रात भर मैं करवटें बदलती रही। जब भी झपकी आई, उसका चेहरा सामने आ गया। सपनों में वो मेरे बदन को मसलता रहा। बिना कुछ किए मैं कई बार गीली हो गई। न जाने उसमें ऐसा क्या था कि मेरा मन बेकाबू हो गया। जिसे जीतने के लिए लोग सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार थे, वो आज खुद पागल हो रही थी।
जैसे-तैसे सुबह हुई। मेरी आँखें नींद से भारी थीं। बदन टूट रहा था। ऐसा लग रहा था मानो रात मेरी सुहागरात थी। मैं तैयार होकर अस्पताल गई। राउंड पर निकली, लेकिन अरुण के बेड तक नहीं जा पाई। मैंने स्टाफ से उसके बारे में पूछा, तो पता चला कि वो गरीब है। शायद उसके घर में कोई नहीं, क्योंकि उससे मिलने कोई नहीं आता। किसी एक्सीडेंट में उसकी टाँग में चोट लगी थी। वो ट्रैक्शन पर था और बिस्तर से हिल भी नहीं सकता था।
मैं चुपके से काउंटर पर गई और अपनी जेब से पैसे देकर उसके लिए डीलक्स वॉर्ड बुक किया। नर्स को स्लिप देकर अरुण को डीलक्स वॉर्ड में शिफ्ट करने का ऑर्डर दिया। नर्स ने मुझे हैरानी से देखा, लेकिन मैंने काम में व्यस्त होने का बहाना बनाकर उसकी नजरों से बच लिया। सबके सामने उसके पास जाने में मुझे हिचक हो रही थी। मैंने तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर घर चली गई।
शाम को अस्पताल जाकर पता चला कि अरुण को डीलक्स वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया है। मैं लोगों की नजरों से बचकर रात 8 बजे उसके वॉर्ड में पहुँची। वहाँ मौजूद नर्स को मैंने बाहर भेज दिया। “तुम खाना खाकर आओ, मैं तब तक यहीं हूँ।” वो खुशी-खुशी चली गई।
मुझे देखकर अरुण मुस्कुराया। मैं भी मुस्कुराते हुए उसके पास गई। “कैसे हो?” मैंने पूछा।
“तुम्हें देख लिया, बस तबीयत ठीक हो गई,” उसने मुस्कुराते हुए कहा। मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया। दो बार की मुलाकात के बाद अब मैं उससे थोड़ा सहज हो गई थी। मैं उसका टेंपरेचर देखने के बहाने उसके बालों में उंगलियाँ फिराने लगी।
“मुझ पर इतना खर्चा क्यों किया, डॉक्टर?” अरुण ने पूछा।
“रंजना। मेरा नाम रंजना है। मुझे ये नाम अच्छा लगता है। तुम मुझे इसी नाम से बुलाओ,” मैं उसके बिस्तर पर बैठ गई।
उसने मेरा हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा। मैं जानबूझकर उसके सीने से लग गई। उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छुआ। “धन्यवाद, रंजना,” उसने धीरे से कहा।
मेरा पूरा बदन काँप रहा था। मैंने भी अपने होंठ उसके होंठों से सटा दिए और उन्हें चूसने लगी। तभी दरवाजे पर किसी ने नॉक किया। मजबूरन मुझे उससे अलग होना पड़ा। मैंने जल्दी से कपड़े ठीक किए। “मैं कल आऊँगी,” मैंने उसके कानों में फुसफुसाया और दरवाजा खोल दिया। एक नर्स खाना लेकर आई थी। मुझे वहाँ से जाना पड़ा, लेकिन मैंने अरुण से कह दिया कि कल से मैं उसके लिए घर से खाना लाऊँगी।
अगले दिन मैंने बड़े जतन से हम दोनों के लिए खाना बनाया और शाम को उसके केबिन में पहुँची। नर्स मुझे देखकर मुस्कुराई। शायद उसे कुछ शक हो गया था। वो हमें अकेला छोड़कर चली गई। मैं उसके बेड पर बैठी और टिफिन खोलकर एक ही थाली में हम दोनों का खाना परोसा। वो मुझे बाहों में भरकर चूमना चाहता था, लेकिन मैंने उसे रोका।
“पहले खाना खा लो। तुम्हें भूख हो या न हो, मुझे तो बहुत जोर की भूख लगी है,” मैंने कहा। वो मेरी बात सुनकर हँस पड़ा। मैंने उसके बदन को सहारा देकर सिरहाने पर थोड़ा उठाया। इस कोशिश में मैं उसके बदन से लिपट गई। उसकी बदन की खुशबू मेरे दिल तक उतर गई। मैं एक कौर उसे खिलाती, तो दूसरा खुद खाती।
खाना खत्म होने के बाद मैंने अपने हाथ धोए और अरुण का मुँह पोंछकर उसे पानी पिलाया। उसने ग्लास मेरे हाथ से लेकर साइड टेबल पर रखा और मुझे अपनी ओर खींच लिया। मैं भी तो यही चाहती थी। मैं उसके बदन से लिपट गई। मेरे होंठों को चूमते हुए उसके हाथ मेरी चुचियों पर आ गए। ऐसा लगा जैसे मैं इन हाथों के स्पर्श के लिए ही तड़प रही थी। मैंने उसके हाथों पर अपने हाथ रखकर अपनी चुचियों को हल्के से दबवाया, अपनी सहमति जताते हुए।
वो मेरी चुचियों को मसलने लगा। मेरे हाथ चादर के अंदर घुसकर उसकी छाती को सहलाने लगे। मैं उसकी बलिष्ठ छाती पर हाथ फेर रही थी। मेरा हाथ नीचे गया, तो मैं चौंक पड़ी। आज उसने पायजामा पहन रखा था। मैंने उसकी ओर देखकर मुस्कुरा दिया।
“ये इसलिए, ताकि तुम्हारे सिवा कोई मेरे बदन तक न पहुँचे,” उसने कहा।
मेरे हाथ उसके पायजामे के नाड़े से उलझ गए। मैंने नाड़ा खोलकर हाथ अंदर डाला। उसका लंड मेरे स्पर्श से फुंफकार उठा। मैंने उसे बाहर निकालकर सहलाना शुरू किया। बीच-बीच में उसके अंडकोषों को भी सहला देती। वो बहुत उत्तेजित था। कुछ ही देर में उसका बदन अकड़ गया और उसने मेरे हाथों को अपने वीर्य से भर दिया। मेरे हाथ फिर उसके वीर्य से सन गए। वो मेरी चुचियों से खेल रहा था। मैंने हाथ बाहर निकालकर उसके सामने ही अपनी जीभ से उसका वीर्य चाटना शुरू किया। सारा वीर्य चाटकर साफ कर दिया।
“कैसा लगा?” अरुण ने पूछा।
“टेस्टी है। बहुत अच्छा लगा। अब तुम सो जाओ। नर्स के लौटने का समय हो गया। मैं चलती हूँ,” मैंने जल्दी से कपड़े ठीक किए। आधा घंटा हो चुका था। नर्स कभी भी लौट सकती थी। मैं जाने को मुड़ी, तो उसने मेरी बाँह पकड़कर रोका।
“नहीं, अरुण, मुझे जाना होगा। वरना पूरा अस्पताल मुझ पर हँसेगा,” मैंने उसकी पकड़ छुड़ाने की कोशिश की।
“ठीक है, लेकिन जाने से पहले एक…” कहकर उसने अपने होंठ ऊपर किए। मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर एक गहरा चुंबन दिया और कमरे से निकल गई।
अगले दिन, नर्स को खाने के लिए भेजकर मैंने कुंडी बंद कर ली। अरुण के पास जाते ही उसने मेरे चेहरे को चूम-चूमकर लाल कर दिया। मैंने खाने का टिफिन एक तरफ रखा और उसके सीने से लग गई। मैंने चादर पूरी तरह हटा दी और उसके पायजामे को खोलकर उसका लंड निकाल लिया। उसका लंड एकदम तना हुआ था। मैंने उसके लंड के सुपारे पर अपने होंठों से एक चुम्बन जड़ दिया।
उसने मेरे सिर को पकड़कर अपने लंड पर झुका दिया। मैंने शरारत से होंठ भींच लिए। वो अपने लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगा। मेरे होंठ उसके प्रीकम से गीले हो गए। कुछ देर बाद मैंने होंठ खोलकर उसका लंड अपने मुँह में ले लिया। पहले धीरे-धीरे, फिर जोर-जोर से चूसने लगी। वो मेरे सिर को पकड़कर अपने लंड पर दबाने लगा। काफी देर तक मुख मैथुन के बाद उसने मेरे सिर को जोर से दबाया। उसका लंड मेरे मुँह से होता हुआ गले में घुस गया।
उसका लंड फूलने लगा। मैं साँस लेने के लिए छटपटा रही थी। तभी उसके लंड से गर्म-गर्म वीर्य निकलकर मेरे गले से होता हुआ पेट में गया। मैंने सिर थोड़ा बाहर खींचा। मेरा पूरा मुँह उसके वीर्य से भर गया। होंठों के कोनों से वीर्य टपक रहा था। सारा वीर्य निकलने के बाद ही उसने मेरा सिर छोड़ा। मैंने प्यार से उसकी ओर देखते हुए सारा वीर्य गटक लिया। उसने मेरे होंठों से टपकते वीर्य को चादर से पोंछ दिया।
मेरी नजर अपनी कलाई पर पड़ी। काफी समय हो चुका था। मैंने दौड़कर बाथरूम में जाकर मुँह धोया। आईने के सामने बाल और कपड़े ठीक किए। “ऐसा लगता है, तुम मुझे एक दिन मार ही डालोगे,” मैंने उसके सीने से सटकर कहा। “गले में बहुत दर्द हो रहा है। तुम कितने गंदे हो! इस तरह मुँह में डालते हैं?”
वो हँसते हुए मेरे गले और गालों को सहलाने लगा। मुझे इतना सुकून कभी नहीं मिला था। फिर हमने एक-दूसरे को खाना खिलाया। थोड़ी देर बाद नर्स ने दरवाजा खटखटाया। मैं तुरंत कमरे से निकल गई।
इसी तरह, जब भी मौका मिलता, मैं लोगों की नजरों से बचकर अपने महबूब से मिलती। हम एक-दूसरे को चूमते, सहलाते और प्यार करते। वो मेरी चुचियों को खूब मसलता, मेरे निपल्स को खींचता और दबाता। मैं रोज उसके लंड को मुँह में लेकर उसका वीर्य निकाल देती। उसका वीर्य मुझे बहुत पसंद था। वो मुझे अपनी ओर खींचकर लिटाता और मेरे पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर मेरी पैंटी खिसकाकर मेरी चूत को सहलाता। बीच-बीच में मेरी चूत में उंगली भी डाल देता। लेकिन इससे ज्यादा हम कुछ कर नहीं पाते थे। पकड़े जाने और बदनामी का डर जो था।
धीरे-धीरे उसकी टाँग ठीक हो गई। मैं उसे अपने कंधे का सहारा देकर कमरे में चलाती। वो किसी नर्स की मदद लेने से मना कर देता। तभी अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई। मुझे वायरल फीवर हो गया था। तेज बुखार की वजह से मैं दो-तीन दिन बिस्तर से हिल भी नहीं पाई। जब थोड़ा ठीक हुई, तो हल्के बुखार में भी मैं अस्पताल पहुँची।
मैं सीधे अरुण के केबिन में गई। मुझे पता था कि वो मुझसे नाराज होगा, क्योंकि मैं इतने दिनों तक उससे मिल नहीं पाई थी। किसी को खबर भी नहीं भेज पाई, क्योंकि इसके लिए सब कुछ बताना पड़ता, जो मैं नहीं चाहती थी। लेकिन जब मैं वहाँ पहुँची, तो कमरा खाली था। पूछने पर पता चला कि उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है। मैंने उसकी हिस्ट्री शीट में उसका पता ढूँढने की कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं मिला। मेरी हालत पागलों जैसी हो गई। जिसे मैंने दिल से लगाया, वो मेरी बेवकूफी की वजह से मुझसे दूर हो गया।
मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि इतने दिन साथ रहे, फिर भी मैंने उसका पता नहीं पूछा। मैंने उसे हर जगह ढूँढा, लेकिन वो ऐसे गायब हुआ जैसे सुबह की ओस। मैं पहली बार किसी पराए मर्द के बिछड़ने पर रोई। मेरी सहेली बिपाशा, जो मेरे साथ क्वार्टर शेयर करती थी, ने भी बहुत खोजा, लेकिन मैंने किसी को कुछ नहीं बताया। मैंने पहली बार किसी से प्यार किया था। वो जैसा भी था, मुझे अच्छा लगता था। वो गरीब था, लेकिन उसमें कुछ खास था।
कहते हैं न, दिल किसी नियम को नहीं मानता। घरवाले शादी के लिए परेशान कर रहे थे। मेरे मम्मी-पापा आज़ाद ख्यालों के थे, इसलिए उन्होंने कह दिया था कि मैं जिसे चाहूँ, उससे शादी कर लूँ। लेकिन मैं सोचती थी कि क्या वो भी मुझे उतना ही चाहता था? या मैंने ही उससे एकतरफा प्यार कर लिया था? शायद उसे मेरे बदन से खेलने में मजा आता था। अगर वो मुझे चाहता, तो कम से कम एक बार अपने प्यार का इजहार तो करता।
छह महीने बीत गए। मैंने अपने दिल को समझा लिया कि शायद मेरी किस्मत में कोई नहीं। मैंने घरवालों से साफ कह दिया कि मुझे बार-बार परेशान न करें, मैं शादी नहीं करूँगी। मैं उसी अस्पताल और उसी कमरे में सिमट गई थी। हाँ, जब भी उस केबिन के सामने से गुजरती, तो नजरों से बचकर एक बार अंदर जरूर झाँक लेती। क्यों? नहीं पता। शायद दिल को अभी भी उम्मीद थी कि अरुण फिर से उस केबिन में मिलेगा।
फिर अचानक वो मिल गया। मैंने तो उम्मीद छोड़ दी थी। एक दिन मैं अस्पताल के लिए निकली, तो सामने के बगीचे में एक जाना-पहचाना चेहरा पौधों की कटाई करता दिखा। उसकी पीठ मेरी ओर थी। पीछे से वो बहुत परिचित लग रहा था।
“सुनो, माली!” जैसे ही वो मुड़ा, मैं ठिठक गई। “त…तू?” सामने अरुण खड़ा था। मेरा प्यार, मेरा अरुण। मैं उसे एकटक देख रही थी। मुँह से बोल नहीं निकले। मेरा दिमाग और बदन कुछ पल के लिए सुन्न हो गए।
“र…मैडम,” अरुण ने जैसे मुझे नींद से जगाया। “मैं यहाँ माली का काम करता हूँ। आप खुद को संभालिए, नहीं तो कोई गलत मतलब निकाल सकता है। आप यहाँ डॉक्टर हैं और मैं एक साधारण माली…”
मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। “तुम आज शाम 6 बजे मेरे घर आना। बहुत जरूरी काम है। आओगे न?” मैंने कहा। उसका जवाब न आता देख मैंने धीरे से कहा, “तुम्हें मेरी कसम।” फिर मैं तेजी से अस्पताल में चली गई। मुझे पता था कि अगर मैंने मुड़कर देखा, तो अपने जज्बातों पर काबू नहीं रख पाऊँगी।
अस्पताल में मेरा मन नहीं लगा। मैंने तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर घर भाग आई। आज किसी काम में ध्यान नहीं लग रहा था। शाम को अरुण आने वाला था। मैंने बाजार से कुछ सामान खरीदा—रजनीगंधा के फूल, एक झीना रेशमी गाउन, रात का डिनर और तीन बोतल बियर। एक लड़की के लिए बियर खरीदना कितना मुश्किल है, ये मुझे उस दिन पता चला। बड़ी मुश्किल से किसी को पैसे देकर बियर मँगवाया।
मैं शाम 4 बजे से तैयार होने लगी। हल्का मेकअप किया, परफ्यूम लगाया। फिर ट्रांसपेरेंट ब्रा और पैंटी के ऊपर रेशमी गाउन पहन लिया। गुलाबी गाउन इतना पारदर्शी था कि मेरा गुलाबी बदन साफ दिख रहा था। मैंने बिस्तर पर साफ सफेद रेशमी चादर बिछाई। रूम स्प्रे से कमरे में रहस्यमयी माहौल बनाया। रजनीगंधा के फूल बेड के सिरहाने पर सजा दिए।
6 बजे तक मैं बेताब हो उठी। बार-बार घड़ी देखकर चहलकदमी कर रही थी। 6:10 पर डोरबेल बजी। मैं दौड़कर दरवाजे पर गई। पीपहोल से देखकर पक्का किया कि वो अरुण ही है। दरवाजा खोलते ही मैंने उसे अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद करके उससे लिपट गई। उसे चूम-चूमकर उसका मुँह भर दिया।
“कहाँ चले गए थे? मेरी एक बार भी याद नहीं आई?” मैंने शिकायत की।
“मैं यहीं था, लेकिन जानबूझकर तुमसे नहीं मिला। कहाँ तुम और कहाँ मैं। चाँद और सियार की जोड़ी अच्छी नहीं लगती,” उसने कहा।
मैंने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। “खबरदार, जो मुझसे दूर जाने की सोची। अगर जाना ही था, तो पहले क्यों आए? मेरी जिंदगी में हलचल मचाकर भागने की सोच रहे थे? वो सब जो हमारे बीच केबिन में हुआ, वो खेल था? टाइमपास?” मैंने गुस्से में कहा।
“नहीं, तुम मुझे गलत समझ रही हो…” उसने सफाई देनी चाही।
“और ये आप-आप बंद करो। तुम और तू मेरे कानों में ज्यादा अच्छा लगता है,” मैंने कहा।
“लेकिन मेरी बात तो सुनो…” उसने फिर कोशिश की।
“बैठ जाओ,” कहकर मैंने उसे धक्का देकर सोफे पर बिठा दिया। मैंने मन ही मन ठान लिया था कि अब शर्म की कोई दीवार नहीं खींचूँगी। हम इतना आगे बढ़ चुके थे कि अब शर्म का कोई मतलब नहीं था। मैंने फ्रिज से बियर की बोतल निकाली और कॉर्क खोलकर ग्लास में उड़ेला। ग्लास में उफनता झाग मेरे जज्बातों को बयान कर रहा था। मैं उसके पास सटकर बैठ गई और ग्लास उसके होंठों के पास ले गई।
जैसे ही उसने ग्लास को छूने के लिए होंठ बढ़ाए, मैंने ग्लास पीछे खींचकर अपने होंठ आगे कर दिए। अरुण मुस्कुराते हुए मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मैंने ग्लास उसके होंठों से लगाया। उसने मेरी ओर देखते हुए एक घूँट में ग्लास खाली कर दिया।
“बताओ, इनमें से कौन ज्यादा नशीला है? मैं या ये?” मैंने उत्तेजक अंदाज में बाल पीछे करते हुए कमर पर हाथ रखकर टाँगें फैलाकर खड़ी हो गई। उसने मेरी बाँह पकड़कर मुझे अपनी गोद में खींच लिया। हमारे होंठ मिले। मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और उसके मुँह के अंदर फिराने लगी। काफी देर बाद जब हम अलग हुए, मैंने ग्लास उसके हाथ में थमाया और खड़ी हो गई।
“तुम्हें मेरी ये बहुत पसंद थीं न?” मैंने अपनी चुचियों की ओर इशारा करते हुए उसके होंठों के पास आकर पूछा। उसने सिर हिलाकर हामी भरी।
“खोलकर नहीं देखोगे?” मैंने बिना उसका जवाब सुने गाउन की डोर खींचकर खोल दी। गाउन सामने से पूरी तरह खुल गया। मेरा गुलाबी बदन सिर्फ ब्रा और पैंटी से ढका था। मैंने गाउन उतारकर फेंक दिया। वो मेरे लगभग नंगे बदन को एकटक देख रहा था। मैं उसकी ओर झुकी और ब्रा का एक स्ट्रैप खींचकर छोड़ा। स्ट्रैप वापस अपनी जगह पर आ गया, लेकिन उसके दिल में एक टीस छोड़ गया। वो चुपचाप मेरे बदन को निहार रहा था। शायद उसे मेरी इतनी बोल्ड हरकत की उम्मीद नहीं थी।
आज पहली बार मेरे अंदर कामुक लहरें उफन रही थीं। सर्द जिंदगी के बाद आज मेरा बदन गर्मी से झुलस रहा था। मैं उसके पास आई और दोनों पैर फैलाकर उसकी गोद में बैठ गई। उसके सिर को पकड़कर अपनी एक चुची पर दबा दिया। “लो, इन्हें चूमो। ये सिर्फ तुम्हारे लिए हैं। अब भी लगता है कि हमारे बीच कोई दीवार है?” उसके होंठ मेरी चुचियों पर फिर रहे थे।
“ब्रा खोल दो,” मैंने उसके कानों में फुसफुसाया। उसकी कोई हरकत न देख मैंने खुद ब्रा उतार दी। आज मैं इतनी उत्तेजित थी कि जरूरत पड़ी, तो अरुण को रेप करने को भी तैयार थी। “देखो, ये कितने बेताब हैं तुम्हारे होंठों के लिए। कितने दिनों से तड़प रही थीं…” मैंने उसके होंठों से अपनी निपल्स सटा दीं। पहले वो थोड़ा झिझका, फिर धीरे से उसने मेरी एक निपल मुँह में ले ली और जीभ से गुदगुदाने लगा।
“कैसी हैं?” मैंने शरारत से पूछा।
उसके मुँह में मेरी निपल होने की वजह से सिर्फ “उम्म्म” जैसी आवाज निकली।
“मुझे कुछ समझ नहीं आया। ठीक से बताओ,” मैंने कहा।
उसने मुँह उठाकर मेरे होंठों के पास अपने होंठ लाकर कहा, “बहुत अच्छी। मैंने कभी इतनी हसीन साथी की कल्पना भी नहीं की थी। मैं एक गरीब…” मैंने उसके मुँह पर हाथ रखकर उसे चुप कराया।
“बस, अब सिर्फ प्यार करो। मैंने अपनी जिंदगी में कभी अपने जज्बातों को आवारा नहीं होने दिया। लेकिन आज मैं झूमना चाहती हूँ। आज सिर्फ तुमसे प्यार पाना चाहती हूँ,” मैंने कहा। उसने फिर से मेरी चुचियों पर होंठ लगा दिए। मैंने उसके सिर को अपनी चुचियों के बीच की खाई में दबा दिया।
“आह्ह्ह… प्लीज, आज मुझे निचोड़ लो। मेरा सारा रस पी जाओ,” मैं उसके बालों में उंगलियाँ फिराते हुए बुदबुदाई। उसने मेरी निपल को मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसना शुरू किया। मैं “आआआह्ह… उम्म्म… ओह्ह्ह” जैसी आवाजें निकाल रही थी। मैंने उसके दूसरे हाथ को अपनी दूसरी चुची पर रखकर दबवाया। कुछ देर बाद उसने दूसरी निपल चूसनी शुरू की। उसके हाथ मेरे बदन पर रुई की तरह फिर रहे थे। कुछ देर बाद उसने मुँह उठाकर कहा, “रंजना, अब भी संभल जाओ। अभी भी वक्त है। मेरे और तुममें जमीन-आसमान का फर्क है।”
मैं गुस्से में एक झटके से उठी। मैंने अपनी पैंटी भी नोच डाली। अब मैं उसके सामने पूरी तरह नंगी थी, जबकि वो पूरे कपड़ों में था। मेरा चेहरा गुस्से से लाल था। “देखो, इस बदन की एक झलक पाने के लिए लोग बेचैन हैं। और मैं आज तुम्हारे सामने बेशर्म होकर नंगी खड़ी हूँ, और तुम मुझसे भाग रहे हो। अगर कोई मुझे इस हाल में देख ले, तो अपनी आँखों पर यकीन नहीं करेगा। सब मुझे कठोर और मगरूर समझते हैं। और तुम? देखो, मुझे तुम्हारे सामने गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। अगर इतना ही सोचना था, तो पहले दिन ही मुझसे दूर हो जाते। क्यों हवा दी मेरे जज्बातों को?”
मैंने उसका हाथ पकड़कर खींचा और उसे बेडरूम में ले गई। उसे बेड के पास खड़ा करके मैं उसके कपड़ों पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी। कुछ ही देर में वो भी मेरी तरह नंगा हो गया। आज पहली बार मैंने उसे पूरी तरह नग्न देखा। केबिन में वो हमेशा पायजामा पहने रहता था, जिसे ढीला करके मैं उसके लंड को प्यार करती थी। मैंने उसे धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया और उस पर चढ़ बैठी।
मैं उसके शरीर के हर अंग को चूमने-चाटने लगी। उसके निपल्स को दाँतों से हल्के से काटा। उसके होंठों से अपने होंठ रगड़ते हुए मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो भी मेरी जीभ चूसने लगा। मेरे हाथ उसके लंड को सहला रहे थे। मैं उसके पैरों की उंगलियों से शुरू करके ऊपर बढ़ने लगी। मेरे होंठ उसकी टाँगों के जोड़ तक पहुँचे। मैंने जीभ निकालकर उसके अंडकोषों पर फिराना शुरू किया। फिर मैंने उसका लंड चूमा और उसे मुँह में लेकर चूसने लगी। उसका लंड और बड़ा और मोटा हो गया। उसका साइज़ देखकर मैं सिहर गई कि ये तो मेरी चूत को फाड़ देगा।
“तू कितना शैतान है। इसने मुझे ऐसा रोग लगाया कि ये मेरा नशा बन गया। आज मैं इसे अपनी चूत के पानी से ठंडा करूँगी,” मैंने कहा। मैंने उसे उल्टा करने की कोशिश की, तो उसने खुद करवट बदलकर मेरी कोशिश आसान कर दी। मैंने उसके पीठ पर होंठ फिराने शुरू किए। उसका बदन मेहनत की वजह से सख्त और बलिष्ठ था। मुझे अपने कोमल बदन को उसके बदन से रगड़ने में मजा आ रहा था। मैंने उसकी पूरी पीठ और नितंबों पर जीभ फिराकर उसे खूब प्यार किया।
काफी देर तक हम एक-दूसरे के बदन से खेलते रहे। फिर मैंने उसकी ओर देखकर कहा, “आज मैं अपना कौमार्य तुम्हें सौंप रही हूँ। मेरे पास इससे कीमती कुछ नहीं। ये दिखाता है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए कितना प्यार है। प्लीज, मुझे लड़की से औरत बना दो।”
मैंने उसे चित लिटाया और उसके खड़े लंड के दोनों ओर अपने घुटनों को मोड़कर बैठ गई। मैंने उसके लंड को अपनी चूत के मुँह पर रखकर जोर लगाया, लेकिन अनाड़ी होने और मेरी चूत के छोटे साइज़ की वजह से लंड अंदर नहीं गया। मैंने फिर कमर उठाकर उसके लंड को अपने हाथों से सेट किया और जोर से नीचे बैठी, लेकिन लंड फिर फिसल गया। मैंने झुंझलाकर उसकी ओर देखा।
“कुछ करो न! कैसे मर्द हो? मैं कोशिश कर रही हूँ, और तुम चुपचाप पड़े हो। क्या हो गया तुम्हें?” मैंने गुस्से में कहा।
तब उसने अपनी झिझक छोड़कर मुझे बिस्तर पर पटक दिया। मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी चूत को चूम लिया। “हाँ, ये हुआ न असली मर्द! वाह, मेरे शेर! मसल दो मुझे। मेरी सारी गर्मी निकाल दो,” मैंने उत्तेजित होकर कहा। उसने अपनी जीभ मेरी चूत में डाल दी। मैंने दोनों हाथों से अपनी चूत की फाँकों को चौड़ा करके उसकी जीभ का स्वागत किया। वो मेरी चूत में जीभ फिराने लगा। मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ने लगी। मैं चाहती थी कि वो अब मेरी चूत की खुजली शांत कर दे। मैंने उसके सिर को अपनी चूत पर दबाना शुरू किया। मेरी कमर बिस्तर छोड़कर उसकी जीभ को पाने के लिए ऊपर उठने लगी। काफी देर तक मेरी गीली चूत पर जीभ फिराने के बाद वो उठा। मैं तो उसकी जीभ से ही एक बार झड़ चुकी थी।
“राआज… बस, और नहीं। प्लीज, अब और मत तड़पाओ। मेरी चूत को अपने लंड से फाड़ डालो। आआह्ह… आज मुझे पता चला कि इसमें कितना मजा है। उम्म्म…” मैंने तड़पते हुए कहा। उसने मेरी टाँगें उठाकर अपने कंधों पर रखीं और अपने लंड को मेरी टपकती चूत पर रखकर एक जोरदार धक्का मारा।
“आआआआह्ह… उउउउईई… माँ!” उसका लंड मेरे कौमार्य की झिल्ली तक पहुँच गया। उसने मेरी ओर देखकर मुस्कुराया।
“ये तुम्हारे लिए है, मेरी जान। इसे मैंने तुम्हारे लिए ही बचा रखा था। लो, इस पर्दे को हटाकर मुझे अपना लो,” मैंने कहा।
उसने एक और जोरदार धक्का मारा। उसका लंड मेरी चूत को फाड़ता हुआ पूरा अंदर समा गया। “ऊऊऊफ्फ… मार ही डालोगे क्या? उउउईई… माँ, मर गई!” मैं तड़पने लगी। वो लंड को पूरा अंदर डालकर कुछ देर रुका। फिर मेरे ऊपर लेट गया और मेरे होंठों को चूमने लगा। मैंने भी उसके होंठ दाँतों के बीच दबाकर चूमे। इससे मेरा ध्यान दर्द से हट गया। मैं पूरी तरह उत्तेजित थी। मैंने अपने नाखून उसकी पीठ में गड़ा दिए, जिससे हल्का-हल्का खून रिसने लगा।
धीरे-धीरे मेरा दर्द गायब हो गया। उसने लंड को पूरा बाहर निकाला और मुझे सिर से पकड़कर थोड़ा उठाया। लंड पर खून के कुछ कतरे लगे थे। मैं खुशी से झूम उठी। मैंने उसके लंड को पकड़कर अपनी टाँगें चौड़ी कीं और उसे अपनी चूत में डाल लिया। उसने फिर से लंड को जड़ तक मेरी चूत में घुसा दिया। फिर लंड को थोड़ा बाहर निकालकर वापस अंदर डाला। फिर तो उसने जोर-जोर से धक्के लगाए। “चट्ट… चट्ट… फच… फच…” की आवाजें कमरे में गूँजने लगीं। मैं “आआह्ह… उम्म्म… ओह्ह्ह… और जोर से… फाड़ दो मेरी चूत को!” चिल्ला रही थी। मैं नीचे से भी उसका साथ दे रही थी। 45 मिनट तक जबरदस्त चुदाई के बाद उसने मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य उड़ेल दिया।
मैं तब तक तीन बार झड़ चुकी थी। वो थककर मेरे ऊपर लेट गया। मैं उसकी मर्दानगी की कायल हो चुकी थी। हम एक-दूसरे को चूम रहे थे और बदन पर हाथ फेर रहे थे। कुछ देर बाद वो बगल में लेट गया। मैंने उसकी छाती पर सिर रखकर उसके सीने के बालों से खेलना शुरू किया। वो मेरे बालों से खेल रहा था।
“थैंक यू,” मैंने कहा। “मैं आज बहुत खुश हूँ। मेरा हर अंग तुम्हारी मर्दानगी का दीवाना हो गया। तुम्हारा लंड इतना जबरदस्त है कि इसके धक्कों ने मेरी हालत पतली कर दी। लेकिन खुश मत होना, आज सारी रात मैं तुम्हारी बरबादी करूँगी।”
“क्यों, अभी भी मन नहीं भरा?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
“इतनी जल्दी मन भरेगा भी तो कैसे?” मैंने कहा। वो मेरे निपल्स से खेलते हुए हँसने लगा। मैंने उसकी आँखों में झाँकते हुए पूछा, “बोलो, मुझसे प्यार करते हो? देखो, ये चादर हमारे मिलन की गवाह है।” मैंने चादर पर लगे खून के धब्बों की ओर इशारा किया। उसने सिर हिलाया।
“मुझसे शादी करोगे? धत, मैं भी कैसी पगली हूँ। आज तक मैंने तुमसे ये भी नहीं पूछा कि तुम शादीशुदा हो या नहीं, और देखो, मैंने तुम्हें सब कुछ दे दिया।”
“अगर मैं कहूँ कि मैं शादीशुदा हूँ, तो?” उसने कुटिल मुस्कान के साथ पूछा।
“तो क्या? मेरी किस्मत। अब तो तुम ही मेरे सब कुछ हो। चाहे जिस रूप में मुझे स्वीकार करो,” मेरी आँखें नम हो गईं।
“जब सब सोच लिया, तो फेरों का इंतजाम कर लो। मैं अपने घर खबर कर देता हूँ,” उसने कहा।
“येस्स!” मैंने दोनों हाथ हवा में उठाए और उस पर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी। इस बार उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया। एक और मराठन राउंड चला। इस बार मैं उसके लंड पर चढ़कर चुदाई कर रही थी। अब शर्म किसलिए? ये तो मेरा होने वाला शोहर था।
काफी देर तक चुदाई के बाद उसने मुझे चौपाया बनाया और पीछे से अपना लंड मेरी चूत में डालकर धक्के मारने लगा। “फच… फच… चट्ट… चट्ट…” की आवाजें गूँज रही थीं। मैं “आआह्ह… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दो… उम्म्म…” चिल्ला रही थी। मेरी नजर सिरहाने की ड्रेसिंग टेबल के शीशे पर पड़ी। हमारी जोड़ी कमाल की लग रही थी। वो पीछे से धक्के मार रहा था, और मेरी बड़ी-बड़ी चुचियाँ आगे-पीछे उछल रही थीं। मैंने पोजीशन बदलकर शीशे के सामने आ गई। उसका मोटा काला लंड मेरी चूत में जाता हुआ देखकर मैं और उत्तेजित हो गई।
मैं एक के बाद एक कई बार झड़ती रही, लेकिन उसका अभी भी नहीं निकला था। काफी देर तक वो धक्के मारता रहा। फिर उसने मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य उड़ेल दिया। उसका वीर्य मेरी चूत से उफनकर बिस्तर पर गिर रहा था। वो थककर मेरे ऊपर गिर पड़ा। मैं उसके वजन को संभाल नहीं पाई और उसके नीचे ढेर हो गई। हम दोनों पसीने से लथपथ थे। कुछ देर तक एक-दूसरे को चूमते हुए लेटे रहे।
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