मेरा नाम अरुण है। मेरी उम्र अब 21 साल की है। मैं पहली बार अपनी कहानी आप सबके सामने पेश कर रहा हूँ, और मुझे यकीन है कि ये आपको बहुत पसंद आएगी। मेरे घर में मैं, मेरी माँ और मुझसे दो साल बड़ी बहन अंकिता रहती है। मेरी माँ एक कंपनी में मैनेजर हैं। ये कहानी तब की है जब मैं 18 साल का था, और अंकिता 20 साल की थी।
अंकिता इतनी खूबसूरत थी कि कोई भी उसे एक बार देखे तो बस देखता ही रह जाए। नीली आँखें, गोरा चेहरा, और मखमली त्वचा, इतनी नाजुक कि अगर कोई छू ले तो उंगलियों के निशान बन जाएँ। मानो कोई परी हो, या फिर किसी परी से कम भी नहीं। उस वक्त उसकी फिगर थी करीब 30-25-28। मैं भले ही 18 साल का था, लेकिन मेरे बड़े दोस्तों की संगत के कारण मुझे सेक्स के बारे में काफी कुछ पता था। जब भी अंकिता मेरे सामने झुकती, मेरी नजरें सीधे उसके टॉप के अंदर चली जातीं।
उस वक्त अंकिता कभी-कभार ही ब्रा पहनती थी, इसलिए मेरी आँखें सीधे उसकी चूचियों पर टिक जाती थीं। भगवान ने उसे फुरसत में बनाया होगा। गोरे-गोरे दूध जैसे स्तन, और उन पर गुलाबी निप्पल। कोई भी मर्द उसे देखे तो बस एक ही ख्वाहिश जागे कि कब इस कली को फूल बनाए। मेरा भी मन करता था कि कब मौका मिले और मैं उसके गर्म स्तनों पर अपने तपते होंठ रख दूँ। लेकिन फिर ख्याल आता कि वो मेरी बड़ी बहन है। अगर वो बुरा मान गई तो मैं उसकी आँखों में आँखें नहीं मिला पाऊँगा। यही डर मन में रहता था।
हमारे मोहल्ले के सारे लड़के अंकिता पर मरते थे, लेकिन अंकिता किसी को भाव नहीं देती थी, सिवाय रतन के। रतन उस वक्त अंकिता के साथ पढ़ता था, और दोनों की खूब बनती थी। जब भी रतन और अंकिता मिलते, दोनों के बीच मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान होता। मुझे शक था कि इन दोनों के बीच कुछ तो चल रहा है, लेकिन यकीन नहीं था।
एक बार मैंने अंकिता के बैग में रतन का लिखा एक लेटर देखा, और साथ में अंकिता का जवाब भी था। रतन ने लिखा था, “जान, कब तक तड़पाओगी? मुझे तुमसे अकेले में मिलना है।” और अंकिता ने जवाब दिया था, “मैं भी मिलना चाहती हूँ, बस मौके की तलाश में हूँ।”
वो मौका भी जल्दी आ गया। करीब एक हफ्ते बाद माँ को कंपनी के काम से तीन दिन के टूर पर जाना पड़ा। माँ ने नौकरानी के भरोसे हमें घर छोड़ दिया। उस दिन मैं स्कूल गया, लेकिन जल्दी छुट्टी लेकर घर भागा। घर पहुँचते ही मैंने नौकरानी से पूछा कि अंकिता कहाँ है। उसने बताया कि अंकिता ऊपर अपने बेडरूम में रतन के साथ स्कूल प्रोजेक्ट पर काम कर रही है और उसे डिस्टर्ब नहीं करना है।
ये सुनते ही मेरा दिल धड़क गया। मैं तुरंत ऊपर गया, लेकिन देखा कि अंकिता का कमरा अंदर से बंद था। हमारे बेडरूम अलग-अलग थे, लेकिन बाथरूम एक ही था, जिसके दो दरवाजे थे—एक मेरे कमरे में और एक अंकिता के कमरे में खुलता था। मैं अपने बेडरूम से बाथरूम में गया और बाथरूम की खिड़की से अंकिता के कमरे में झाँकने लगा।
अंकिता ने पिंक टॉप और कैप्री पहनी थी। वो रतन की गोद में सिर रखकर उससे बातें कर रही थी। तभी रतन ने अंकिता के चेहरे से बालों की एक लट हटाकर उसके कान के पीछे रखी और उसके होंठ चूम लिए। अंकिता भी रतन के बालों में उंगलियाँ फिरा रही थी। ये देखकर मेरा लंड खड़ा हो गया। मैं सोचने लगा कि जिन होंठों को चूमने के लिए मैं हर रोज तड़पता हूँ, उन्हें कोई और मेरे सामने रगड़ रहा है।
रतन ने धीरे से अंकिता की चूचियों पर टॉप के ऊपर से हाथ रखा। अंकिता के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। उसने रतन का सिर जोर से पकड़ लिया। धीरे-धीरे रतन ने अपना हाथ टॉप के अंदर डाला और अंकिता की चूचियाँ मसलने लगा। ये देखकर मेरा लंड बेकाबू हो गया। मैंने अपनी पैंट उतार दी और अपने लंड को सहलाने लगा।
तभी रतन ने अंकिता को गोद से उठाया और उसका टॉप उतारने की कोशिश की। अंकिता ने पहले मना किया, लेकिन फिर उसने खुद ही टॉप उतारने में मदद की। अंकिता ने काली स्लिप पहनी थी। क्या कयामत लग रही थी! उसकी चूचियाँ स्लिप को फाड़कर बाहर आने को बेताब थीं। स्लिप के बाहर उसकी क्लीवेज साफ दिख रही थी। रतन ने उसकी क्लीवेज पर होंठ रख दिए। अंकिता के मुँह से सिसकी निकल गई।
फिर रतन ने उसकी स्लिप उतार दी। उसकी खुली छाती पर एक चूची का निप्पल रतन ने मुँह में लिया और दूसरी चूची को हाथ से मसलने लगा। अंकिता अलग-अलग तरह की सिसकियाँ ले रही थी— “आह्ह… उफ्फ…” रतन ने धीरे-धीरे अंकिता को बिस्तर पर लिटाया और आधा उस पर सवार होकर उसके होंठ चूमने लगा। वो उसकी चूचियाँ दबा रहा था। अंकिता के निप्पल तनकर नुकीले हो गए थे।
रतन उसे बेताबी से चूम रहा था—होंठ, आँखें, गला, छाती, पेट, हर जगह। अंकिता अब बहुत उत्तेजित हो रही थी। तभी रतन ने एक हाथ उसकी कैप्री में डाल दिया। अंकिता ने उसका हाथ खींच लिया और बोली, “नहीं रतन, ये सब शादी के बाद होता है।” लेकिन रतन ने कहा, “जब हम शादी करने ही वाले हैं, तो अब या तब, क्या फर्क पड़ता है?” इतना कहकर उसने कैप्री नीचे सरका दी। अंकिता ने पिंक पैंटी पहनी थी, और उसकी चूत वाला हिस्सा पूरी तरह गीला हो चुका था।
रतन ने होंठ चूमते हुए उस गीले हिस्से को मुट्ठी में भर लिया। अंकिता तड़प उठी, उसने अपनी टाँगें जोड़ लीं और रतन का हाथ अपनी टाँगों के बीच दबा लिया। रतन ने होंठ चूमते हुए धीरे से उसकी टाँगें अलग कीं और पैंटी के ऊपर से उसकी चूत को सहलाने लगा। अंकिता के नाखून रतन की गर्दन को नोच रहे थे। ये सब देखकर मेरा वीर्य छूट गया, लेकिन मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया।
रतन ने अंकिता की पैंटी नीचे सरका दी। उसकी चूत देखकर मैं पागल सा हो गया। गुलाबी होंठों वाली चूत पर हल्के-हल्के रोएँ थे। चूत के होंठ खुल रहे थे, मिल रहे थे। तभी रतन ने एक उंगली उसकी चूत में सरका दी। अंकिता तड़प उठी, उसके मुँह से गहरी सिसकियाँ निकल रही थीं— “आह्ह… उह्ह…” रतन ने जोर लगाकर उंगली और अंदर ठेलने की कोशिश की, लेकिन अंकिता उछल पड़ी और उंगली बाहर निकल गई।
तभी रतन ने अपनी पैंट उतारी। उसकी अंडरवियर में तंबू बना था। उसने अंडरवियर उतार दी और उसका लंड बाहर आ गया। उसका लंड करीब 5 इंच का था और 1.5 इंच मोटा। अंकिता की आँखें बंद थीं। रतन ने अंकिता का हाथ उठाकर अपने लंड पर रख दिया। अंकिता ने पहले हाथ हटा लिया, लेकिन रतन ने फिर से उसका हाथ अपने लंड पर रखा। अंकिता धीरे-धीरे उसे दबाकर नापने लगी। रतन के मुँह से भी सिसकियाँ निकल रही थीं— “उफ्फ… जान…”
फिर रतन अंकिता की दोनों टाँगों के बीच लेट गया और एक हाथ से अपने लंड को पकड़कर उसकी चूत में डालने की कोशिश करने लगा। लेकिन वो अनाड़ी था, कई कोशिशों के बाद भी कुछ नहीं हुआ। फिर रतन उठा, उसने एक बड़ा तकिया लिया और अंकिता की गांड के नीचे रख दिया। उसने अंकिता की दोनों टाँगें अलग-अलग कीं और घुटनों के बल उनके बीच बैठ गया।
तभी अंकिता ने पूछा, “जान, हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे ना?” रतन ने कहा, “प्यार में कुछ गलत नहीं होता, मेरी जान।” इतना कहकर उसने अपने लंड को अंकिता की चूत के छेद पर रखा और धीरे से दबाया। अंकिता दर्द से कराह उठी— “आह्ह… धीरे…” रतन ने अंकिता की कमर पकड़ी और एक जोरदार झटका मारा। करीब 3 इंच लंड अंदर घुस गया।
अंकिता इस झटके को सह न सकी। वो जोर से चीखने वाली थी, लेकिन रतन ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। अंकिता तड़प रही थी, उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे। मैंने देखा कि अंकिता की चूत से खून निकल रहा था। रतन अंकिता पर झुका और उसके गाल पर चूमकर उसके आँसू चाटने लगा। फिर वो उसके होंठ चूसने लगा और दोनों चूचियाँ दबाने लगा। करीब 10 मिनट बाद अंकिता कुछ शांत हुई।
रतन ने थोड़ा सा लंड बाहर निकाला और फिर अंदर कर दिया। अंकिता के मुँह से हल्की सिसकी निकली— “उह्ह…” वो आँखें बंद करके पड़ी थी। थोड़ी देर बाद रतन ने एक और झटका मारा और पूरा लंड अंदर कर दिया। अब रतन अंकिता के ऊपर लेट गया और उसे चूमने लगा। करीब 5 मिनट बाद रतन ने लंड थोड़ा बाहर निकाला और फिर घुसा दिया। फिर निकाला, फिर घुसा दिया। धीरे-धीरे उसने स्पीड बढ़ाई।
अब अंकिता के चेहरे पर सुकून नजर आने लगा। वो भी अब रतन का साथ दे रही थी। उसके मुँह से अलग-अलग आवाजें निकल रही थीं— “आह्ह… उह्ह… ओ माँ… रतन, मैं तुझे प्यार करती हूँ… आह्ह…” रतन ने स्पीड और बढ़ाई। करीब 15 मिनट बाद अंकिता रतन को जकड़ने लगी, उसे रोकने लगी। तभी रतन भी उसकी चूत में ही झड़ गया।
दोनों एक-दूसरे से लिपट गए। करीब आधे घंटे बाद दोनों अलग हुए। रतन ने कहा, “जान, मैं एक और राउंड खेलना चाहता हूँ।” लेकिन अंकिता ने कहा, “अभी दो दिन और बचे हैं। और अब अरुण के आने का वक्त हो गया है। तुम अभी जाओ, मैं बाद में मिलूँगी।”
दोस्तो, ये मेरी सच्ची कहानी है। आपको कैसी लगी, जरूर बताना। आगे मैं आपको बताऊँगा कि अगले दिन मैंने अंकिता को कैसे ब्लैकमेल किया।
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Very nice story