आंटी सेक्सी फोटो वाली किताब पढ़ रही थी

मेरा नाम सुधीर है, उम्र 19 साल, और मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था। मैं एक औसत कद-काठी का लड़का हूँ, गेहुँआ रंग, चेहरे पर हल्की-सी मासूमियत, जो शायद मेरी उम्र की वजह से थी। हमारा मोहल्ला छोटा-सा था, जहाँ हर कोई एक-दूसरे को जानता था। हमारे घर के पास गली के नुक्कड़ पर एक स्टेशनरी की दुकान थी, जिसे मधु आंटी और उनके पति रमेश अंकल चलाते थे। मैं रोज़ सुबह वहाँ कुछ ना कुछ खरीदने जाता—पेंसिल, रबर, या कभी-कभी टॉफी-चॉकलेट।

मधु आंटी, उम्र लगभग 45 साल, पहाड़ी मूल की थीं। उनका रंग दूध-सा गोरा था, और चेहरा अभी भी आकर्षक था, हालांकि उम्र के साथ उनकी आँखों के नीचे हल्की झुर्रियाँ पड़ गई थीं। उनके बाल काले, घने, और हमेशा ढीले जूड़े में बँधे रहते। उनका फिगर भरा हुआ था—बूब्स ना बहुत बड़े, ना छोटे, लेकिन साड़ी में उनकी उभरी कमर और गोल गाँड हर किसी का ध्यान खींच लेती थी। उम्र की वजह से उनका पेट थोड़ा बाहर निकला था, लेकिन वो इसे साड़ी से ढकने की कोशिश करतीं। आंटी का स्वभाव मजाकिया था। वो हर किसी से हँस-हँसकर बात करतीं, और मुझे तो खास तवज्जो देती थीं। शायद इसलिए कि मैं रोज़ का ग्राहक था, और मेरी मासूम सूरत उन्हें पसंद थी। उनके तीन बच्चे थे—दो बेटियाँ और एक बेटा, जो जवान थे और शहर के कॉलेज में पढ़ते थे।

रमेश अंकल, आंटी के पति, लगभग 50 साल के थे। वो दुबले-पतले, गंजे होते जा रहे थे, और हमेशा ढीली-ढाली कमीज़ और पैंट में दिखते। उनका स्वभाव थोड़ा रूखा था, लेकिन दुकान के ग्राहकों से वो हमेशा बनाकर बात करते। सुबह की शिफ्ट आंटी संभालती थीं, जबकि अंकल दोपहर से शाम तक दुकान पर बैठते।

एक सुबह, मैं स्कूल के लिए निकला। घड़ी में सात बजे थे। सितंबर का महीना था, हल्की ठंड शुरू हो रही थी, और सुबह की हवा में ताज़गी थी। मैं अपनी साइकिल पर बैग टाँगे दुकान की ओर बढ़ा। दुकान का शटर आधा खुला था, और अंदर से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। मैंने साइकिल खड़ी की और अंदर झाँका। मधु आंटी एक स्टूल पर बैठी थीं, उनके हाथ में एक मोटी-सी किताब थी, और वो उसमें इतनी डूबी थीं कि उन्हें मेरी भनक तक नहीं लगी। मैं उनके सामने खड़ा रहा, लेकिन उनकी आँखें किताब से हटी ही नहीं।

आंटी ने उस दिन नीली साड़ी पहनी थी, जो उनकी गोरी कमर को और उभार रही थी। उनके जूड़े से कुछ बाल ढीले होकर उनके गालों पर लटक रहे थे। मैंने दो-तीन बार खाँसा, लेकिन कोई फायदा नहीं। मुझे शरारत सूझी। सोचा, आज आंटी को डराता हूँ। मैं चुपके से दुकान के काउंटर के पीछे घुसा और उनके ठीक पीछे खड़ा हो गया। जैसे ही मैंने “बू!” कहने के लिए मुँह खोला, मेरी नज़र उनकी किताब पर पड़ी। मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। किताब में नंगी चुदाई की रंगीन तस्वीरें थीं—औरतें और मर्द, अलग-अलग पोज़ में, बिल्कुल बेशर्मी से। मेरे गले में कुछ अटक गया। मैं 19 का था, लेकिन ऐसी चीज़ें मैंने सिर्फ दोस्तों की चोरी-छिपे दिखाई मैगज़ीनों में देखी थीं।

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मैं कुछ देर वैसे ही खड़ा रहा, मेरा दिमाग सुन्न हो गया। मेरे जिस्म में एक अजीब-सी सनसनी दौड़ रही थी। तभी आंटी की नज़र मुझ पर पड़ी। वो चौंककर किताब बंद करने लगीं, लेकिन फिर हँस पड़ीं। “अरे, सुधीर, तू कब से पीछे खड़ा है? दूरदर्शन हो रहा है, बेटा?” उनकी आवाज़ में शरारत थी। मैं शर्म से लाल हो गया। मेरी ज़बान लड़खड़ाई, “आ…आंटी, वो…मुझे चॉकलेट चाहिए। स्कूल जाना है।”

वो हँसकर बोलीं, “हाँ-हाँ, चॉकलेट तो दे दूँगी, लेकिन तुझे भी मुझे चॉकलेट देनी पड़ेगी।” उनकी आँखों में एक चमक थी, जो मुझे समझ नहीं आई। मैंने बैग से पैसे निकाले और बोला, “आंटी, गंदी बात मत करो। जल्दी दो ना।” लेकिन मेरे शरीर में कुछ और ही चल रहा था। मैं उस वक्त अंडरवियर नहीं पहनता था, और मेरा 5 इंच का लंड पैंट में तनकर साफ दिख रहा था। आंटी की नज़र मेरी पैंट पर गई, और वो मुस्कुराईं।

“अच्छा, बेटा, इतना शरमा क्यों रहा है? किताब देखकर डर गया?” उन्होंने किताब उठाई और मेरे सामने लहराई। मैंने नज़रें झुका लीं। वो बोलीं, “चल, कोई बात नहीं। तू तो मेरा प्यारा बच्चा है। ले, ये चॉकलेट रख। लेकिन एक शर्त है।” मैंने पूछा, “क…क्या?” वो बोलीं, “बैग यहाँ रख। ये तीन चॉकलेट बैग में डाल, और पीछे वाले बाथरूम में जा। मैं अभी आती हूँ।”

मैं हक्का-बक्का रह गया। “आंटी, स्कूल…” मैंने विरोध किया। वो बोलीं, “अरे, बस दस मिनट। मैंने तुझे इतनी चॉकलेट दीं, अब नखरे मत कर।” उनकी आवाज़ में एक अजीब-सी मिठास थी। मैंने सोचा, दस मिनट में क्या बिगड़ेगा? मैं चुपके से बाथरूम की ओर चला गया। बाथरूम छोटा-सा था, टाइल्स पुरानी पड़ चुकी थीं, और एक हल्की-सी नमी की गंध थी। मैं अंदर बैठ गया, मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।

कुछ ही पल में आंटी अंदर आईं। उनके हाथ में वही किताब थी। वो दरवाज़ा बंद करके मेरे पास आईं और बिना कुछ कहे मेरी शर्ट के बटन खोलने लगीं। मैं घबरा गया। “आंटी, ये क्या…” मेरी आवाज़ काँप रही थी। वो बोलीं, “चुप रह, बेटा। कुछ नहीं होगा।” उन्होंने मेरी पैंट भी उतार दी। मैं सिर्फ बनियान में रह गया, अपने लंड को हाथों से छुपाने की कोशिश करते हुए।

तभी आंटी ने अपनी साड़ी खोलनी शुरू की। पहले साड़ी, फिर ब्लाउज़, फिर पेटीकोट। वो इतनी जल्दी में थीं कि कपड़े फर्श पर बिखर गए। उनके शरीर पर अब सिर्फ काली ब्रा और पैंटी थी। उनकी गोरी त्वचा बाथरूम की मद्धम रोशनी में चमक रही थी। उन्होंने ब्रा और पैंटी भी उतार फेंकी। मैं पहली बार किसी नंगी औरत को इतने करीब से देख रहा था। उनकी चूत क्लीन शेव थी, और उनके बूब्स भरे हुए, हल्के ढीले, लेकिन आकर्षक। मैं एक कोने में सिमट गया, मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था।

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आंटी मेरे पास आईं और मेरा लंड अपने हाथ में लिया। मैं पीछे हटने लगा। “आंटी, ये गंदा है।” मेरी आवाज़ में डर था। वो हँसकर बोलीं, “गंदा नहीं, बेटा। ये तो मज़े का सामान है। देख, किताब में भी यही सब है।” उन्होंने किताब खोली और एक तस्वीर दिखाई, जिसमें एक औरत मर्द का लंड चूस रही थी। “जल्दी कर, टाइम कम है,” वो बोलीं।

मैं चुप हो गया। तभी उन्होंने मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया। उनकी गर्म साँसें और जीभ का स्पर्श मेरे लिए नया था। मैं सिहर उठा। वो भूखी-सी चूस रही थीं, कभी लंड को पूरा मुँह में लेतीं, कभी मेरे आंड चाटतीं। “आआह…” मेरे मुँह से निकला। मुझे मज़ा आ रहा था, लेकिन साथ ही शर्म भी। वो किताब की तस्वीरें देखकर और जोश में आ रही थीं।

मैंने किताब में एक फोटो देखी, जिसमें मर्द औरत की चूत चाट रहा था। मैंने हिम्मत करके कहा, “आंटी, ये वाला करें?” वो हँस पड़ीं। “भोसड़ी के, चूत चाटेगा? अभी तो गंदा बोल रहा था।” फिर वो खड़ी हुईं। मैं उनकी नंगी चूत को देख रहा था, जो हल्की-सी गीली चमक रही थी। मैंने किताब की नकल करते हुए उनके बूब्स पकड़े और चूसने लगा। उनके निप्पल सख्त थे, और जैसे ही मैंने उन्हें मुँह में लिया, वो सिसकारीं, “सीईई… ऊऊऊ… चूस, राजा!”

मैंने पूछा, “दर्द हो रहा है?” वो बोलीं, “नहीं, बेटा। ये मज़े की आवाज़ें हैं। तू चूसता रह।” मैं उनके पेट को चाटते हुए नीचे उनकी चूत तक पहुँचा। उनकी चूत से हल्की-सी गंध आ रही थी, जो मुझे अजीब लेकिन उत्तेजक लगी। मैंने जीभ रखी तो नमकीन स्वाद आया। पहले अजीब लगा, फिर मज़ा आने लगा। आंटी ने मुझे फर्श पर लिटाया और मेरे मुँह पर अपनी गाँड रख दी। उनकी भारी गाँड मेरे चेहरे पर थी, और वो अपने गाँड के छेद को मेरे मुँह पर रगड़ने लगीं। “चाट, सुधीर! चाट डाल! आआआ… जीभ अंदर डाल!” वो चिल्ला रही थीं।

मैं उनकी चूत और गाँड चाट रहा था। उनकी सिसकियाँ बाथरूम में गूँज रही थीं। “हाआआई… चूस ले सारा रस, मेरी जान! मैं तुझे रोज़ चॉकलेट दूँगी!” उनकी नज़र मेरे तने हुए लंड पर पड़ी। वो बोलीं, “बेटा, इतना मस्त लंड? मुझे तो लगा छोटा-सा होगा। ये तो मेरी चूत को फाड़ देगा!” वो फिर मेरे लंड पर झुकीं और चूसने लगीं। हम 69 की पोज़िशन में थे। वो मेरी टाँगें चौड़ी करके मेरी गाँड भी चाटने लगीं। “आज सब साफ कर दूँगी, राजा!”

मैं कंट्रोल नहीं कर पाया और झड़ गया। मेरे लंड से गाढ़ा पानी निकला, जो वो पूरा पी गईं। मैंने पूछा, “ये क्या था?” वो बोलीं, “ये रस है, बेटा। अब तू जवान हो गया।” मेरा शरीर अकड़ गया था। तभी दरवाज़ा खटखटाया गया। आंटी ने पूछा, “कौन?” बाहर से रमेश अंकल की आवाज़ आई, “किसके साथ मज़े ले रही है? दरवाज़ा खोल!” मैं डर से काँपने लगा। आंटी बोलीं, “अरे, डर मत। ये तो रोज़ का ड्रामा है।”

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उन्होंने दरवाज़ा हल्का-सा खोला। अंकल ने अंदर झाँका और मुझे देखकर बोले, “इस बेचारे को क्यों फँसा रही है? मैं तो तुझे रोज़ नए-नए माल लाकर देता हूँ।” मैं शर्म से मर रहा था। आंटी बोलीं, “जाओ, दुकान संभालो। मैं दस मिनट में आती हूँ।” दरवाज़ा बंद करके वो मुझसे बोलीं, “बेटा, डर मत। तू मज़े ले।”

वो मेरे लंड को सहलाने लगीं। मेरा लंड फिर तन गया। वो हँसकर बोलीं, “वाह, ये तो जल्दी तैयार हो गया!” उन्होंने मेरे लंड पर अपनी चूत रगड़ी और धीरे-धीरे अंदर लिया। उनकी गीली चूत में मेरा लंड भट्टी की तरह गर्म लगा। वो मेरे हाथ उनकी चूचियों पर रखकर बोलीं, “मसल, राजा!” वो ज़ोर-ज़ोर से उछलने लगीं। “आआआई… चोद डाल! मेरी चूत फाड़ दे! ऊऊई…” पच-पच की आवाज़ें गूँज रही थीं।

मैं उनके वज़न से दब रहा था। मैंने कहा, “आंटी, साँस नहीं आ रही।” वो हँसकर उठीं और घोड़ी बन गईं। “अब मेरी गाँड मार, बेटा!” मैंने कोशिश की, लेकिन लंड अंदर नहीं गया। उन्होंने शैम्पू लिया, मेरे लंड और अपनी गाँड पर लगाया। फिर मेरा लंड सेट करके पीछे धकेला। मेरा लंड उनकी टाइट गाँड में फिट हो गया। “हाआआई… फाड़ दे, राजा!” वो चिल्लाईं। गाँड चूत से ज़्यादा टाइट थी, मज़ा दोगुना था।

फिर वो पलटीं, टाँगें चौड़ी कीं और बोलीं, “अब झाड़ दे मुझे!” मैंने धक्के तेज़ किए। वो तड़प रही थीं। “आआआई… मर गई!” पच-पच और फच-फच की आवाज़ें बाथरूम में गूँज रही थीं। आखिरकार वो झड़ गईं। उन्होंने मुझे साफ किया, कपड़े पहनाए, और बोलीं, “जा, बेटा।”

बाहर निकला तो अंकल हँस रहे थे। “चोद आया मेरी बीवी को?” मैं शर्म से ज़मीन में गड़ गया। आंटी बाहर आईं और बोलीं, “क्यों परेशान कर रहे हो? डर गया तो फिर नहीं आएगा।” उन्होंने मुझे चॉकलेट का पैकेट और फ्रूटी दी। “किसी से कुछ मत कहना। कल जल्दी आना।” मैंने सिर हिलाया और स्कूल चला गया। क्लास में लेट होने की सजा मिली, लेकिन मैं खुश था।

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