सभी पाठकों को नमस्ते! अन्तर्वासना की कृपा से लंड को खड़ा कर देने वाली और चूत में उंगली डालने को मजबूर करने वाली कामुक कहानियाँ यहाँ पढ़ने और लिखने को मिलती हैं। दोस्तों, मेरा वादा है कि मेरी ये कहानी पढ़कर तुम गर्म हो जाओगे। अगर पास में चूत या लंड का इंतज़ाम नहीं है, तो लड़के मुट्ठ मार लेंगे और लड़कियाँ अपनी चूत में उंगली डालकर पानी निकाल लेंगी—बिंदास!
मैं आगरा का वीशु कपूर हूँ, 25 साल का जवान लड़का, कद-काठी मज़बूत। इन दिनों अहमदाबाद में एक मसाज पार्लर में मसाज बॉय का काम करता हूँ। ये बात एक हफ्ते पहले की है—25 अप्रैल 2025 का दिन। मेरे घर के पास एक परिवार रहता है—एक बुजुर्ग दंपति और उनकी जवान विधवा बेटी, काजल (बदला हुआ नाम)। उन बुजुर्गों को मैं मौसी-मौसा कहता था, क्योंकि वो मेरी मौसी के पड़ोसी थे। काजल को मैं प्यार से दीदी बुलाता था। उसकी उम्र 22-24 साल के बीच होगी। उसका पति इंडियन आर्मी में था, जिसे कश्मीर में आतंकियों ने मार डाला। सरकार ने उनके परिवार को ढेर सारा पैसा दिया, पर भरी जवानी में पति चला जाए तो पैसा क्या लौटा सकता है?
जब भी मैं दीदी को देखता, मुझे उन पर तरस आता। सोचता, बेचारी की जवानी बेकार जा रही। लेकिन भगवान की मर्ज़ी के आगे क्या कर सकता था? उनके यहाँ पैसे की कमी नहीं थी, पर बिना पति के ज़िंदगी पहाड़ जैसी कटती है। मेरे मन में उनके लिए कोई गलत ख्याल नहीं था, क्योंकि मैंने उन्हें कभी उस नज़र से नहीं देखा।
लेकिन उस दिन सब बदल गया। सुबह मैं दाढ़ी बनाकर नहाने के लिए आँगन में गया। मैं पजामे, पैंट या जीन्स के नीचे कुछ नहीं पहनता—बस एक सफेद गमछा लपेट लिया। बाथरूम में छिपकली थी, तो आँगन में नहाने लगा। गमछा पानी से भीग गया और मेरे लंड पर चिपक गया। मेरा लंड लंबा-मोटा है, गमछे में टेंट बन गया। बड़े-बड़े टट्टे और लंड का आकार साफ दिख रहा था—जैसे कोई मूसल बाहर आने को बेकरार हो। मैं मेन गेट बंद करना भूल गया था, और इसी चूक ने सारा खेल बना दिया।
दीदी अचानक घर में घुस आईं। उनका फिगर—34-30-36, लंबाई 5 फुट 6 इंच, रंग दूध सा गोरा। टाइट सलवार-कमीज़ में उनकी चूचियाँ उभरी हुई थीं, गांड मटक रही थी, होंठ गुलाबी—काम की देवी लग रही थीं। मुझे नहाते देख वो रुक गईं। उनकी नज़र मेरे लंड पर टिक गई। गमछे से चिपका लंड देखकर उनकी आँखों में चमक आ गई, जैसे भूखी शेरनी को शिकार मिल गया। मैं साबुन मल रहा था, उनकी तरफ पीठ थी, पर वो मेरे लंड को घूरती रहीं।
नहाने के बाद मैंने पजामा पहना, ऊपर कुछ नहीं डाला। लंड अभी गीला था, पजामे में साफ उभर रहा था। दीदी बोलीं, “वीशु, अगर तुम्हारे पास वक्त हो तो संडे को हमारा कूलर फिट कर देना।” उनकी आवाज़ सुनकर मैं चौंका, “ये कौन आ गया?” मैंने लंड को हाथ से छिपाने की कोशिश की, पर पजामा पतला था—लंड का पूरा ढांचा दिख रहा था। मैंने कहा, “दीदी, मैं कल दिल्ली जा रहा हूँ। कुछ क्लाइंट्स की कॉल आई है। संडे को वहाँ पहुँचूँगा।” दीदी बोलीं, “कब लौटोगे?” मैंने कहा, “पक्का नहीं कह सकता।” वो बोलीं, “क्यों?” मैंने बताया, “क्लाइंट्स के कॉल्स हैं। वहाँ जाकर पता चलेगा कि कितनी औरतें मेरी सर्विस लेंगी।”
दीदी ने मेरे लंड को टेढ़ी नज़र से देखते हुए कहा, “कैसी सर्विस देता है तू?” वो अपनी चूचियाँ खुजाने लगीं, कमीज से निप्पल झलक रहे थे। मैंने सोचा, अब छिपाने का क्या फायदा? बोला, “दीदी, मैं जिगोलो हूँ।” वो बनावटी अंदाज़ में बोलीं, “जिगोलो क्या होता है?” उनकी नज़र मेरे लंड पर थी, जो अब पजामे में तनने लगा था। मैंने हाथ हटाया और कहा, “सच में नहीं जानतीं?” वो तने लंड को घूरते हुए बोलीं, “नहीं।”
मैंने समझाया, “जिगोलो मतलब मर्द सेक्स वर्कर। जो औरत अपने पति से चुदाई में संतुष्ट न हो, उसे मैं चोदकर खुश करता हूँ। बदले में उससे पैसे लेता हूँ।” दीदी ने “ओह…” कहा और बेशर्मी से बोलीं, “तेरा लंड दिखा ज़रा।” मैंने सोचा, मौका है, मत छोड़। पजामा नीचे खिसकाया। मेरा लंड उछलकर बाहर आया—लंबा, मोटा, सुपारा लाल, नसें फूली हुईं। दीदी के मुँह से निकला, “हाय राम, तेरा लंड तो बहुत मोटा-लंबा है। इसे कैसे संभालता है?” उनके मुँह से “लंड” सुनकर मेरी हवस जाग गई। उनकी जवानी चोदने लायक लगने लगी।
दीदी ने अपनी चूचियाँ उभारते हुए कहा, “वीशु, इसे छू लूँ?” मैंने कहा, “हाँ दीदी, क्यों नहीं? मेरा लंड तो तुम जैसी औरतों के लिए ही बना है।” दीदी आगे बढ़ीं, दोनों हथेलियों में मेरा लंड पकड़ा और घुटनों पर बैठ गईं। फिर मेरे लंड पर एक लंबा, गीला चुम्बन जड़ दिया। उनका गरम मुँह मेरे लंड पर लगा, तो वो तनकर सलामी देने लगा। दीदी ने सुपारा खोलकर मुँह में ठूंस लिया और जीभ से चाटने लगीं। लॉलीपॉप की तरह चूस रही थीं—चप्प-चप्प… चूस्स-चूस्स… उनकी गर्म साँसें मेरे टट्टों को छू रही थीं। वो सुपारे को चाटतीं, फिर पूरा लंड मुँह में लेने की कोशिश करतीं। मैं सिसकारने लगा, “आहह… दीदी, मज़ा आ रहा है। क्या चूसती हो!” उनका मुँह मेरे लंड पर ऊपर-नीचे हो रहा था, गीली-गीली आवाज़ें कमरे में गूँज रही थीं।
तभी कॉलबेल बजी। मैंने दीदी को अंदर वाले कमरे में भेजा, पजामा ऊपर चढ़ाया और गेट खोलने गया। लेकिन लंड तना हुआ था—लोहे की रॉड सा। उसे दबाने की कोशिश की, पर वो कहाँ मानने वाला था। गेट पर पड़ोस की ज्योति (बदला हुआ नाम) खड़ी थी—22-23 साल की लड़की। मैंने पूछा, “क्या काम है?” वो बोली, “भैया, पापा ने बुलाया है। जल्दी चलो।” मैंने कहा, “तू जा, मैं आता हूँ।” गेट बंद करके अंदर आया। दीदी से बोला, “दीदी, अभी जाओ। फिर कभी आना। ज्योति के पापा ने बुलाया है।” दीदी मुझसे लिपटकर बोलीं, “वीशु, तेरा लंड गज़ब है। इसे मेरी चूत और गांड में कब डालेगा?” मैंने उनकी चूचियाँ मसलते हुए कहा, “दीदी, मैं चुदाई के पैसे लेता हूँ।” वो बोलीं, “मुझसे भी लेगा?” मैंने कहा, “अगर मैं मुफ्त में चोदने लगा तो खाऊँगा क्या?” दीदी हँस पड़ीं और बोलीं, “ठीक है। मेरा कूलर कब फिट करेगा?” मैंने कहा, “दिल्ली से लौटकर सब ठीक कर दूँगा।” वो हँसकर चली गईं।
फिर मैं ज्योति के घर गया। वहाँ उसके मम्मी-पापा सब थे। नमस्ते की और पूछा, “क्यों बुलाया?” अंकल बोले, “वीशु, एक काम कर देगा?” मैंने कहा, “हाँ अंकल, जो बन पड़ेगा, करूँगा।” अंकल बोले, “मुझे राजकोट जाना है। ज्योति के एडमिशन की कल आखिरी तारीख है। इसकी एम.ए. की मार्कशीट नहीं आई। मेरी कार ले जा, आज ज्योति को यूनिवर्सिटी ले जाकर मार्कशीट ले और कॉलेज में दाखिला करवा दे। ये काम कर दे तो तेरा एहसान न भूलूँगा।” मैंने कहा, “अंकल, एहसान की बात न करें। मैं कर Explodedूँगा।” ज्योति से बोला, “जल्दी तैयार हो।” वो बोली, “भैया, 10 मिनट रुकें, मैं आती हूँ।” मैं “ठीक” बोलकर घर लौट आया।
तभी दीदी ने मुझे घर में घुसते देख लिया। मेरे पीछे-पीछे आ गईं और मेन गेट बंद कर दिया। मैं समझ गया—दीदी की चूत में आग लगी है। वो अंदर कमरे में आईं, घुटनों पर बैठीं, मेरा पजामा खींचा और लंड बाहर निकाला। फिर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगीं—चट्ट-चट्ट… स्स्स्स… उनका मुँह गर्म था, सुपारा चूसकर लाल कर दिया। लंड फूलकर मोटा मशरूम बन गया, पूरा तन गया। दीदी मस्ती में चूस रही थीं—कभी जीभ से सुपारे को सहलातीं, कभी टट्टों को मुँह में लेतीं। मैं सिसकारने लगा, “आहह… दीदी, क्या मज़ा दे रही हो। पूरा ले लो ना।” वो लंड को गले तक ठूंस रही थीं, जैसे भूखी रंडी को मोटा डंडा मिल गया हो।
10 मिनट बाद ज्योति आई। मेरी सिसकारियाँ सुनीं और कमरे के गेट पर खड़े होकर तमाशा देखने लगी। दीदी मेरे लंड को चूस रही थीं, मैं जोश में डूबा था। फिर मेरा पानी छूट गया—पूरा दीदी के मुँह में। गाढ़ा, गर्म माल उनके गले से नीचे उतरा। वो चाटकर साफ कर रही थीं। झड़ने के बाद नज़र उठाई तो ज्योति गेट पर थी। मैंने लंड निकाला और बाहर भागा। ज्योति अपनी सलवार-चड्डी खिसकाकर चूत में उंगली कर रही थी। आँखें बंद, आहें भर रही थी— “आहह… ऊहह…” उसकी चूत गीली थी, उंगली अंदर-बाहर हो रही थी। मैंने उसकी बाँह पकड़ी, “ज्योति, ये क्या कर रही है?” वो घबराकर बोली, “भैया, मेरी चूत रोज़ परेशान करती है। उंगली से मज़ा लेती हूँ।” मैं समझ गया—इसकी चूत की सील अभी बची है। पर वक्त देखकर बोला, “चल, यूनिवर्सिटी चलें।”
हम बाइक से निकले। रास्ते में गड्ढों की वजह से बोला, “पकड़ ले।” उसने मेरी कमर पकड़ी। उसके मम्मे मेरी पीठ पर रगड़ने लगे—मोटे, नरम। मैंने पूछा, “ये सब कब से कर रही है?” वो बोली, “क्या भैया?” मैंने कहा, “चूत में उंगली।” उसने मम्मों को रगड़ते हुए कहा, “अक्सर उंगली से प्यास बुझाती हूँ।” मैंने पूछा, “कोई बॉयफ्रेंड है?” वो बोली, “नहीं।” मैंने कहा, “तो ढूँढ ले, लंड डलवा ले।” वो चुप रही, पर मुझसे खुल गई।
कॉलेज पहुँचे। फीस भरी, फॉर्म जमा किया। ज्योति को घर छोड़ा। उसके पापा को फोन करके बताया। वो खुश हुए। उसकी मम्मी ने खाना खिलाया। फिर मैं घर आकर दिल्ली की तैयारी करने लगा।
दोस्तों, अगले हिस्से में चुदाई का पूरा रस बरसेगा। मेल का इंतज़ार है: vishukpr2104@gmail.com। कहानी जारी है।
कहानी का अगला भाग : विधवा दीदी ने अपनी कुंवारी सहेली को चुदवाया
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