अंकल के अंडरवियर में उभरा लंड देखकर पागल हो गई मैं

Uncle sex story – Bade lund wala uncle sex story: आप सबने मेरी पहली कहानी “मेरे साथ पहली बार” पढ़ी थी, उसके लिए मुझे ढेर सारे मैसेज और मेल आए, बहुत अच्छा लगा, मगर सबको जवाब नहीं दे पाई, उसके लिए माफी चाहती हूँ।

अब असली कहानी पर आती हूँ।

वो ठंड के दिन थे, मैं अपनी मौसी के यहाँ छुट्टियाँ बिताने गई थी, कॉलेज की छुट्टियाँ जो चल रही थीं। मौसी के बिल्कुल बगल वाले घर में अरुण अंकल रहते थे, मौसाजी के बहुत करीबी दोस्त। उनका हमारे यहाँ आना-जाना रोज़ का था, कभी क्रिकेट मैच देखने, कभी चाय पीने। अंकल मुझसे भी बहुत प्यार से बात करते, हर बार मेरे लिए चॉकलेट या कोई न कोई गिफ्ट ज़रूर लाते।

एक दिन मौसी बोलीं, “रोमा, अनीता आंटी के पास मेरा एक बैग रह गया है, जाकर ले आओ।” मैं अंकल के घर गई। आंटी रसोई में सब्ज़ी काट रही थीं, हाथ गंदे थे। बोलीं, “हाँ बेटा, बैग मेरे बेडरूम की टेबल पर है, खुद ले लो।”

मैं बेडरूम में घुसी ही थी कि बाथरूम का दरवाज़ा खुला और अरुण अंकल सिर्फ़ काले अंडरवियर में बाहर निकले। पानी अभी भी उनके सीने पर टपक रहा था। मैं एकदम से स्तब्ध रह गई। अंकल ने मुझे देख मुस्कुराते हुए तौलिया लपेट लिया, मगर उस एक पल में उनके अंडरवियर का उभार मैंने साफ़ देख लिया था, इतना मोटा और लंबा कि मेरी नज़रें वहीं अटक गईं।

मैं जानबूझकर बैग ढूँढने का नाटक करने लगी, इधर-उधर देखती रही ताकि उन्हें और देख सकूँ। अंकल समझ गए। वो तौलिया लपेटे अलमारी के पास खड़े रहे, फिर धीरे से तौलिया खोलकर कपड़े निकालने लगे। उनका लंड अंडरवियर में हल्का सा हिल रहा था। मेरी साँसें तेज़ हो गई थीं।

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अचानक अंकल ने पूछा, “जो ढूँढ रही हो, मिल गया?” मैंने शरारत से कहा, “हाँ अंकल, मिल गया, बस आपके ही पास है।” बैग तो उनके ठीक पीछे था। मैं आगे बढ़ी और जानबूझकर पैर मुड़वाकर उनके ऊपर गिर पड़ी। मेरी कोहनी सीधे उनके लंड से टकराई। अंकल ने मुझे मज़बूती से थाम लिया, मेरे हाथ अनजाने में उनके उभार पर रुक गए। वो मुस्कुराए, मैं भी शर्मा कर मुस्कुराई। फिर मैं बैग लेकर भाग आई।

दो दिन बाद अनीता आंटी अपने मायके चली गईं। अंकल अब रोज़ हमारे यहाँ खाना खाने आने लगे। मैं उनकी पैंट की ज़िप की तरफ़ ही देखती रहती। एक रात अंकल नहीं आए तो मौसी ने मुझे भेजा, “जाकर अरुण को बुला लाओ।”

उनके घर गई तो अंकल कंप्यूटर पर कुछ देख रहे थे, दरवाज़ा खुला था। मैंने कहा, “चलो अंकल, खाना खा लो।” वो बोले, “रोमा, आज खाना यहीं ले आओ, थोड़ा काम है।” मैं खाना लेकर लौटी तो अंकल ने दरवाज़ा बंद किया और मेरा हाथ पकड़कर बोले, “उस दिन अंडरवियर में देखकर मुस्कुरा क्यों रही थी?”

मैंने हँसकर कहा, “आप भी तो मुस्कुरा रहे थे अंकल, और वो अंडरवियर में इतना मोटा-मोटा क्या था?” अंकल ने मेरी आँखों में देखकर कहा, “वो मेरा लंड है रोमा।” मैंने मासूमियत से पूछा, “इतना बड़ा-मोटा थोड़े होता है?” अंकल ने हँसते हुए पैंट की ज़िप खोली और अंडरवियर नीचे सरका दी। उस वक़्त लंड अभी छोटा था। मैंने मुँह बनाया, “ये तो कुछ खास नहीं लग रहा।”

अंकल बोले, “हाथ लगा कर देखो, अभी दिखाता हूँ।” जैसे ही मैंने उँगलियों से छुआ, उनका लंड मेरे हाथ में फड़कने लगा, तेज़ी से खड़ा होता गया, मोटा होता गया। मैं हैरान थी। अंकल ने मुझे खींचकर गले लगाया, मेरे होंठ चूमने लगे। मैं भी पागल हो गई, उनका मुँह चूमने लगी। मगर फिर अचानक रुक गई, “आज नहीं अंकल, मौसी इंतज़ार कर रही होंगी।”

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अंकल ने मेरे कानों में फुसफुसाया, “कल करोगी मेरे साथ?” मैंने हाँ कह दी। पूरी रात नींद नहीं आई।

अगले दिन मैंने मौसी से झूठ बोला, “अंकल ने कंप्यूटर ठीक करने बुलाया है।” और सीधे उनके घर पहुँच गई। अंकल सिर्फ़ अंडरवियर में थे, मुझे देखते ही गोद में उठाया और बेडरूम में ले गए। दरवाज़ा बंद करते ही मेरे होंठों पर टूट पड़े, जीभ अंदर डालकर चूसने लगे। मैंने भी उनकी जीभ चूस ली।

अंकल ने मेरा टॉप ऊपर उठाया, ब्रा के ऊपर से ही मेरे स्तन दबाने लगे, फिर ब्रा का हुक खोलकर मेरे गुलाबी निप्पल्स को मुँह में लेकर चूसने लगे, “आह्ह अंकल… ह्ह्ह… कितना अच्छा लग रहा है…” मैं उनके बालों में उँगलियाँ फेर रही थी। उनका लंड अंडरवियर फाड़कर बाहर आने को बेताब था। मैंने खुद अंडरवियर नीचे खींच दी। लंड एकदम सीधा खड़ा था, सुपारे जैसा लाल।

अंकल ने मुझे बिस्तर पर लिटाया, मेरी जीन्स और पैंटी एक साथ उतार दी। मैं शरम से अपनी चूत ढकने लगी। अंकल ने मेरे हाथ हटाए और मेरी गीली चूत पर होंठ रख दिए, “ओह्ह्ह रोमा… कितनी मीठी हो तुम…” और पागलों की तरह चाटने लगे। मैं तड़प उठी, “आआह्ह्ह अंकल… ह्ह्ह्ह… ऐसे मत करो… आह्ह्ह्ह ओह्ह्ह…” मेरी कमर अपने आप ऊपर उठने लगी। अंकल ने जीभ अंदर तक घुसाई, चूत का सारा रस चाट गए।

फिर वो मेरे ऊपर आए, अपना मोटा लंड मेरी चूत पर रगड़ने लगे। मैंने काँपती आवाज़ में कहा, “अंकल… धीरे… दर्द होगा…” अंकल ने मेरे होंठ चूमे और धीरे-धीरे अंदर धकेला। पहले सिर्फ़ सुपारा गया, फिर एक ज़ोर का झटका, पूरा लंड अंदर तक। मैं चीख पड़ी, “आआआह्ह्ह्ह… अंकल… मर गई… ह्ह्ह्ह…” आँखों में आँसू आ गए।

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अंकल मेरे ऊपर पूरी तरह लेट गए, मेरे स्तन चूसते रहे, निप्पल्स काटते रहे, जब तक दर्द कम नहीं हुआ। फिर धीरे-धीरे कमर हिलाई। अब दर्द मज़े में बदलने लगा, “आह्ह अंकल… और ज़ोर से… हाँ… आह्ह्ह…” मैं उनकी पीठ पर नाखून गड़ा रही थी। अंकल ने स्पीड बढ़ाई, बेड जोर-जोर से हिलने लगा, “थप थप थप” की आवाज़ें आने लगीं।

मैं पहले झड़ गई, मेरी चूत ने उनका लंड पूरी तरह भींच लिया, “आआआह्ह्ह्ह… अंकल… मैं गई… ओह्ह्ह्ह…” मगर अंकल नहीं रुके। लंड निकाला, मेरी चूत फिर से चाटी, फिर मेरे स्तनों के बीच लंड डालकर टिटफक करने लगे। मैं फिर से गर्म हो गई। अंकल ने मुझे घोड़ी बनाया, पीछे से लंड अंदर ठूका और ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगे, “ले रोमा… ले मेरा लंड… आज तुझे पूरा चोद दूँगा…” मैं बस चिल्ला रही थी, “हाँ अंकल… चोदो मुझे… आह्ह्ह ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह…”

अंत में अंकल ने लंड बाहर निकाला और मेरी चूत व पेट पर अपना गाढ़ा माल उड़ेल दिया। हम दोनों पसीने से तर, एक दूसरे को चूमते हुए काफी देर तक लेटे रहे। फिर मैं नहाकर, उन्हें एक लंबा किस देकर घर लौट आई।

ये थी मेरी अरुण अंकल के साथ पहली चुदाई की पूरी दास्तान। कैसी लगी आपको?

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