First sex of a virgin girl दो साल पहले की बात है, जब मैं पहली बार सोनी से मिला। वो अपने घर के बाहर खड़ी थी, अपने लंबे, घने बालों को संवार रही थी। उसका गोरा रंग, जैसे दूध सा चमकता था। उसके वक्ष, मानो दो पके हुए संतरे, टाइट कुर्ती में उभरे हुए, और उसकी गांड, एकदम गोल और भरी हुई, जैसे किसी ने संगमरमर को तराश कर बनाया हो। उसकी आँखें, गहरी और नशीली, जैसे किसी को अपने जाल में फंसा लें। चेहरा इतना मासूम कि कोई भी देखकर उसका दीवाना हो जाए। अभी उसने जवानी की दहलीज पर कदम रखा था, उम्र होगी कोई उन्नीस साल। मैं, सूरज, तब तेईस का था, कॉलेज में पढ़ता था और साथ में एक पार्ट-टाइम जॉब भी करता था। उसकी एक झलक ने मेरे दिल में आग सी लगा दी। मैंने ठान लिया कि चाहे जो हो, इसे तो पटाकर रहूंगा। pehli baar sex
मैं उससे बात करने के बहाने ढूंढने लगा। सोनी का घर मेरे ऑफिस के पास ही था, जहां से मैं रोज आता-जाता था। मैं कॉलेज में बी.कॉम कर रहा था और ऑफिस में डेटा एंट्री का काम करता था। सोनी की छोटी बहन नीतू, उम्र सोलह साल, और भाई गिरीश और मुकेश, क्रमशः चौदह और बारह साल के, अक्सर घर के बाहर खेलते दिखते। सोनी की मां, राधा आंटी, लगभग चालीस साल की थीं, खुले विचारों वाली, हमेशा साड़ी में सजी-संवरी। मैं रोज सोनी को देखने की कोशिश करता, कभी उसकी बालकनी की ओर ताकता, कभी रास्ते में रुककर उसकी एक झलक पाने की जुगत लगाता।
आखिरकार, मौका मिल ही गया। गणेशोत्सव का समय था। हमारे ऑफिस में हर साल गणेश स्थापना होती थी, पर मुझे ये नहीं पता था क्योंकि मैंने हाल ही में जॉब जॉइन की थी। उस दिन मैं ऊपर ऑफिस में कंप्यूटर पर काम कर रहा था। अचानक मेरे बॉस ने आवाज लगाई, “सूरज, नीचे आ जाओ! आरती शुरू होने वाली है!” मैंने जल्दी से काम बंद किया और नीचे चला गया। वहां मैंने देखा, सोनी अपनी छोटी बहन नीतू के साथ आरती के लिए आई थी। उसने गुलाबी सलवार-कमीज पहनी थी, दुपट्टा कंधे पर लटका हुआ, और चेहरा ऐसा कि जैसे कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो। उसे देखते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं।
सोनी ने मुझे देखा और हल्का सा मुस्कुराई। मैंने भी जवाब में एक शरमाती सी मुस्कान दी। वो सिर्फ खूबसूरत ही नहीं, दिल से भी प्यारी थी। उसने आरती शुरू की, उसकी आवाज में मिठास थी, जैसे कोई भजन गा रही हो। मैं एक मेज के कोने पर हाथ टिकाए खड़ा था, बार-बार उसे देख रहा था। उसने आरती पढ़ते हुए मुझे इशारे से सीधे खड़े होने को कहा। मैंने तुरंत उसका इशारा माना और हाथ जोड़कर सीधा खड़ा हो गया। ये देखकर वो हल्का सा मुस्कुराई, और मैं भी उसे देखकर हंस दिया।
आरती खत्म होने के बाद बॉस ने मुझे प्रसाद बांटने को कहा। मैंने थाली उठाई और सबको प्रसाद देने लगा। सोनी के पास पहुंचा तो उसका हाथ छुआ, उसकी उंगलियां नरम और ठंडी थीं। मेरे दिल में करंट सा दौड़ा। हमने थोड़ी देर बात की। उसे पता चला कि मैं कॉलेज के साथ जॉब करता हूं, तो उसकी आंखों में मेरे लिए इज्जत साफ दिखी। मुझे खुद पर गर्व हुआ। गणपति सात दिन तक ऑफिस में रहे, और इन सात दिनों में हम खूब घुलमिल गए। सोनी मुझे ऑफिस आते-जाते देखकर मुस्कुराती और “हाय” कहती। मैं भी जवाब में “हाय” बोलता, और हमारी दोस्ती पक्की होने लगी।
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गणेश विसर्जन के दिन हम शाम से रात तक साथ थे। उसने मुझे अपनी मां राधा आंटी से मिलवाया। आंटी ने मुझे देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा लड़का है, पढ़ाई के साथ कमाई भी करता है।” उनकी बात सुनकर मुझे और जोश आया। इन सात दिनों में हमने एक-दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान लिया था। अब मैं रोज ऑफिस जल्दी पहुंचता, रास्ते में सोनी से मिलता, और शाम को ऑफिस के बाद घंटों उससे बातें करता। राधा आंटी को कोई ऐतराज नहीं था, वो हमें खुलकर मिलने देती थीं।
हम रोज फोन पर घंटों बात करने लगे। कभी प्यार भरे मैसेज, कभी दोस्ती के मस्ती भरे एसएमएस। जब भी हम मिलते, सोनी कभी मेरे हाथ पर चिमटी काटती, कभी गाल पर, कभी कमर पर। मैं हंसकर टाल देता। धीरे-धीरे हम साथ घूमने लगे, मॉल जाते, शॉपिंग करते। जनवरी आई, फिर फरवरी। वैलेंटाइन डे नजदीक था। सोनी मजाक में कहती, “सूरज, तुम भी किसी को 14 फरवरी को गुलाब दे देना!” मैंने हंसते हुए कहा, “हां, सोच रहा हूं तुझे ही रोज दे दूं!” उसने नखरे दिखाते हुए कहा, “मैं तुझसे रोज नहीं लूंगी!” मैंने मुंह बनाकर जवाब दिया, “तुझे देना ही कौन चाहता है!” पर मैं उसका इशारा समझ गया था। मुझे पता था, वो मुझसे प्यार करती है।
14 फरवरी को मैं जानबूझकर ऑफिस नहीं गया। सोनी ने मुझे कई बार कॉल किया, पर मैंने फोन स्विच ऑफ रखा। उसने मेरे ऑफिस के दोस्तों से पूछा, “सूरज आज क्यों नहीं आया?” मुझे पता था, वो मेरे बिना बेचैन है। रात आठ बजे मैं उसके घर पहुंचा। मुझे देखते ही उसकी आंखों में चमक आ गई। मैंने उसे कोने में, अंधेरे में बुलाया। वो फटाफट चली आई। मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा, “सोनी, आई लव यू!” और उसे एक लाल गुलाब दिया। उसकी आंखें नम हो गईं। उसने रोते हुए कहा, “आई लव यू टू!” मैंने उसके आंसू पोंछे और पूछा, “रो क्यों रही हो?” उसने कहा, “मुझे लगा तू उस दिन की बात से नाराज हो गया।” मैंने कहा, “मैं तुझसे कैसे नाराज हो सकता हूं?”
फिर मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उसके होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे नरम थे। मैं उन्हें चूसने लगा, वो भी मेरा साथ देने लगी। हमारी सांसें गर्म हो गईं। करीब पांच मिनट तक हम एक-दूसरे में खोए रहे। फिर हम अलग हुए और उसके घर में जाकर बैठ गए। रात दस बजे मैं अपने घर लौट गया।
अगले दिन जब हम सुबह मिले, तो एक-दूसरे को देखने का नजरिया बदल चुका था। अब हमें रोज की तरह खुलकर बात करने में अजीब लगता था। हमें डर था कि कोई हमें देख न ले। हम अब अकेले में मिलने की सोचते। दो-तीन दिन बाद सोनी ने बताया कि उसकी परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं। राधा आंटी ने मुझसे कहा, “सूरज, थोड़ा समय निकालकर सोनी को पढ़ा दिया कर।” मैंने खुशी-खुशी हां कर दी।
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अब मैं रोज ऑफिस के बाद सोनी को पढ़ाने उसके घर जाता। लेकिन उसके भाई-बहन इतना शोर मचाते कि पढ़ाई मुश्किल हो जाती। ये देखकर राधा आंटी ने पास के स्कूल के चौकीदार से बात की, और हमें वहां पढ़ने की जगह मिल गई। मैं रोज सोनी को एक-दो घंटे पढ़ाता, और बाकी समय हम प्यार भरी बातें करते।
एक शाम मैं सोनी को पढ़ाने उसके घर गया। उसने बताया कि राधा आंटी, गिरीश, नीतू और मुकेश को लेकर नानी के घर गई हैं और रात दस बजे तक आएंगी। उसने कहा, “मम्मी ने तुझे मुझे पढ़ाने को कहा है।” हम उसके कमरे में गए। मैं पलंग पर बैठकर उसे गणित सिखाने लगा। लेकिन आज सोनी कुछ ज्यादा ही चुलबुली थी। वो बार-बार मुझे आंख मार रही थी, चिमटी काट रही थी, गुदगुदी कर रही थी। मैं उसे पढ़ने को कहता, पर वो किसी और मूड में थी। उसने मेरे कान को दांतों से हल्का सा काटा और मेरे गाल पर चूम लिया।
अब मेरे अंदर का शैतान जाग गया। मैंने उसे पलंग पर धकेल दिया और उसके ऊपर लेट गया। मैंने उसके होंठों को चूसना शुरू किया। वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी। “सूरज, और जोर से चूस,” उसने सिसकारी भरी। मैं उसके गले पर, कंधों पर, कानों पर चूमने लगा। उसकी उंगलियां मेरे सीने पर फिसल रही थीं। हमारी सांसें तेज हो गई थीं। मैंने उसका कुर्ता ऊपर उठाया, उसने मेरी शर्ट के बटन खोलने शुरू किए। उसने सफेद ब्रा पहनी थी, जो उसके गोरे स्तनों को और उभार रही थी। मैंने ब्रा के ऊपर से ही उसके स्तनों को चूसना शुरू किया। “आह्ह… सूरज, ऐसे ही… और कर,” वो सिसकारियां ले रही थी।
मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खींचा और उसे उतार दिया। अब वो सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी। उसकी पैंटी हल्की गीली हो चुकी थी। मैंने उसके पूरे बदन को चूमा, पैरों से लेकर सिर तक। फिर मैंने अपने कपड़े उतारे, अब मैं सिर्फ अंडरवियर में था। उसकी सिसकारियां तेज हो गई थीं, “उफ्फ… सूरज, ये क्या कर रहा है… आह्ह!” मैंने उसकी ब्रा का हुक खोला। उसके स्तन, जैसे दो गोल संतरे, मेरे सामने थे। मैंने एक को दबाया, दूसरा मुंह में लिया। उसके निप्पल सख्त हो चुके थे। मैंने उन्हें दांतों से हल्का सा काटा। “आह्ह… धीरे… दर्द हो रहा है!” वो चिल्लाई, पर उसकी आवाज में मजा साफ झलक रहा था।
मैंने उसकी पैंटी उतारी। उसकी चूत एकदम चिकनी थी, हल्के रोएं, गुलाबी और गीली। मैंने उसकी चूत पर जीभ फेरी। “उह्ह… सूरज, ये क्या… आह्ह… मत रुक!” वो सिसकारियां ले रही थी। उसकी चूत से गर्माहट और नमी टपक रही थी। मैंने उसकी जांघों को चूमा, उसकी चूत को और चाटा। वो पागल सी हो रही थी, “सूरज, अब बस… कुछ कर… उफ्फ!” मैंने अपना अंडरवियर उतारा। मेरा लंड, सात इंच का, एकदम तना हुआ था। मैंने उसे उसकी चूत के मुहाने पर रखा।
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“सोनी, तैयार है?” मैंने पूछा। उसने शरमाते हुए सिर हिलाया। मैंने धीरे से धक्का मारा। मेरा लंड उसकी चूत की गहराई में घुसा। “आह्ह… सूरज… दर्द हो रहा है!” वो चिल्लाई। उसकी आंखों से आंसू निकल आए। मैं रुक गया, उसके होंठों को चूमा। “बस थोड़ा सा, सह ले,” मैंने कहा। थोड़ी देर बाद उसका दर्द कम हुआ। मैंने फिर धक्के शुरू किए, धीरे-धीरे। “उह्ह… सूरज… और… आह्ह!” वो मेरा साथ देने लगी।
कमरा हमारी सांसों और सिसकारियों से भर गया। “फच-फच” की आवाजें गूंज रही थीं। मैंने उसे कसकर पकड़ा और धक्के तेज किए। “सूरज, और जोर से… चोद मुझे!” वो चिल्लाई। मैंने उसे पलटाया, अब वो घोड़ी बन गई। मैंने पीछे से उसकी चूत में लंड डाला। “आह्ह… उफ्फ… सूरज, ये तो जन्नत है!” उसकी सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं। मैंने उसकी गांड पर हल्का सा थप्पड़ मारा, “कैसी लग रही है मेरी चुदाई?” मैंने पूछा। “बस… और जोर से… फाड़ दे मेरी चूत!” वो चिल्लाई।
मैंने उसे फिर सीधा किया, उसकी टांगें उठाईं और कंधों पर रखीं। अब मैं गहरे धक्के मार रहा था। “फच-फच… छप-छप” की आवाजें तेज हो गई थीं। उसकी चूत गीली और गर्म थी। “सूरज… मैं… आह्ह… झड़ने वाली हूं!” उसने कहा। मैंने और तेज धक्के मारे। उसका बदन कांपने लगा, वो जोर से सिसकारी, “उह्ह… आह्ह… बस!” और वो झड़ गई। मेरे लंड पर उसका गर्म रस महसूस हुआ। मैं भी झड़ने वाला था। मैंने लंड बाहर निकाला, खून और रस से सना हुआ था। मैंने अपना वीर्य बेडशीट पर गिराया।
हम दोनों हांफ रहे थे। सोनी लंगड़ाते हुए उठी, उसने अपनी पैंटी और ब्रा पहनी। मैंने भी कपड़े पहने। बेडशीट पर खून का दाग था। मैंने उसे धोया, पर दाग पूरी तरह नहीं गया। सोनी ने चाय बनाई, और मैंने जानबूझकर थोड़ी चाय दाग पर गिरा दी ताकि कोई शक न करे। फिर हम पढ़ाई में लग गए।
रात साढ़े दस बजे राधा आंटी अपने बच्चों के साथ आईं। मैंने उनसे सामान्य बात की और अपने घर चला गया।
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दोस्तो, ये मेरे पहले प्यार की सच्ची कहानी है। आपको कैसी लगी, जरूर बताएं!