मेरा नाम कविता है। मैंने देर से पढ़ाई शुरू की थी, इसलिए जब मैं हाई स्कूल में थी, तब मेरी उम्र बाकी लड़कियों से ज्यादा थी। मेरी जवानी पूरी तरह खिल चुकी थी—चूचियां भारी, गोल-मटोल, और मेरी चाल में एक अदा थी, जो गाँव के स्कूल में सबका ध्यान खींचती थी। ये कहानी उसी वक्त की है, जब मास्टर जी की नजर मेरे ऊपर पड़ गई थी, और एक बारिश भरे दिन ने मेरी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। ये कहानी मैं आज तुम्हें बता रही हूँ—वो दिन, वो पल, जब मास्टर जी ने मेरी बूर की सील तोड़ दी थी।
मास्टर जी, जिनका नाम था रमेश सर, उम्र में मुझसे कहीं बड़े थे, लेकिन उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। वो हमेशा मुझे घूरते थे। मैं स्कूल में फ्रॉक पहनती थी, और ब्रा नहीं पहनती थी, क्योंकि गाँव में ये सब आम नहीं था। मेरी चूचियां फ्रॉक के ऊपर से हिलती थीं, और मेरे निप्पल साफ दिखाई देते थे। जब मैं क्लास में बैठती, तो मास्टर जी की नजरें मेरी चूचियों पर टिक जाती थीं। वो पास आते, मेरे गलत मैथ्स के जवाब को देखने के बहाने मेरी पीठ पर हाथ फेरते। उनकी उंगलियां मेरी रीढ़ पर रेंगती थीं, और मैं शरमा कर सिर झुका लेती। वो कहते, “कविता, इधर आ ना, तुझे समझाऊं,” लेकिन उनकी आवाज में कुछ ऐसा था, जो मेरे दिल को धक-धक कर देता। मैं भाग जाती, पर कहीं न कहीं मुझे उनकी वो नजरें अच्छी भी लगने लगी थीं।
समय के साथ मास्टर जी का ध्यान मुझ पर और बढ़ने लगा। वो अब खुलेआम मेरे बदन को निहारते। कभी-कभी क्लास के बाद मुझे रोक लेते, कहते, “कविता, तू बहुत होशियार है, थोड़ा और मेहनत कर।” लेकिन उनकी बातों से ज्यादा उनकी आँखें बोलती थीं। एक बार तो मैंने देखा, वो मेरे सामने खड़े होकर अपने पैंट के ऊपर से लंड को दबा रहे थे। मैं समझ गई थी कि वो क्या चाहते हैं। और सच कहूं, मुझे भी अब वो सब अच्छा लगने लगा था। मैं उनकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगी थी। कभी-कभी जानबूझकर अपनी फ्रॉक को थोड़ा ऊपर खिसका देती, ताकि मेरी जांघें दिखें। मास्टर जी की सांसें तेज हो जाती थीं, और मैं मन ही मन हंस पड़ती थी।
एक शनिवार की बात है। मॉर्निंग क्लास थी, और उस दिन बारिश का मौसम था। स्कूल खत्म होने के बाद अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। सारी लड़कियां और टीचर भागकर अपने-अपने घर चले गए। मैं भी घर पहुंच गई थी, लेकिन तभी याद आया कि मेरी घर की चाबी स्कूल में ही छूट गई थी। मम्मी-पापा नानी के घर गए थे, और वो देर रात तक लौटने वाले थे। चाबी मुझे ही दी थी, और मैं उसे स्कूल के डेस्क में भूल आई थी। गाँव का स्कूल था, ज्यादा दूर नहीं, सो मैं भागकर वापस स्कूल पहुंची। बारिश में मैं पूरी भीग चुकी थी। मेरी फ्रॉक मेरे बदन से चिपक गई थी, और मेरी चूचियां साफ दिख रही थीं। निप्पल तो ऐसे उभरे थे, जैसे फ्रॉक फाड़कर बाहर आने को बेताब हों।
स्कूल में कोई नहीं था, सिवाय मास्टर जी के। वो ऑफिस में बैठे थे। मुझे देखते ही उनकी आँखें चमक उठीं। “कविता, क्या ढूंढ रही है?” उन्होंने पूछा। मैंने हांफते हुए कहा, “सर, मेरी चाबी यहीं रह गई है।” वो मुस्कुराए और बोले, “अरे, वो तो मेरे पास है। आ, ऑफिस में रखी है।” मैं ऑफिस में गई। बारिश की वजह से मेरे कपड़े भीगे हुए थे, और मेरी चूचियां पूरी तरह नजर आ रही थीं। मास्टर जी की नजरें मेरे बदन पर रेंग रही थीं। मैंने शर्म से अपनी चूचियों को हाथों से ढक लिया, लेकिन तभी बाहर बारिश और तेज हो गई। आंधी चलने लगी, खिड़कियां खटखटा रही थीं। मास्टर जी मेरे पास आए और धीरे से मेरे हाथ हटा दिए। मैंने कोई विरोध नहीं किया। मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई थी।
उन्होंने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और मेरे होठों को अपनी उंगलियों से छुआ। फिर उनकी उंगलियां मेरी चूचियों पर रुकीं। मेरे बदन में एक सिहरन दौड़ गई। “कैसा लग रहा है, कविता?” उन्होंने धीमी आवाज में पूछा। मैंने कुछ नहीं कहा, बस उनकी आँखों में देखती रही। उन्होंने मेरी चूचियों को धीरे-धीरे दबाया, और फिर पूछा, “दर्द तो नहीं हो रहा?” मैंने सिर हिलाकर ना कहा। तभी वो मेरे करीब आए और मेरे होठों को चूम लिया। उनका चुंबन गर्म था, जैसे मेरे अंदर की सारी शर्म को पिघला दे। उनकी उंगलियां मेरी चूचियों को मसल रही थीं, और मैं सिहर रही थी। मेरे बदन में एक अजीब सी गर्मी फैल रही थी।
अचानक मैंने खुद को छुड़ाया और बाहर की तरफ भागी। बारिश जोरों से हो रही थी, और मैं बीस कदम भी नहीं चली थी कि मुझे कुछ खींच रहा था—शायद मेरी अपनी चाहत। मैं वापस लौट आई। मास्टर जी ऑफिस के दरवाजे पर खड़े थे, मुझे देखकर मुस्कुराए। मैंने हांफते हुए कहा, “सर, आप जो कर रहे हैं, किसी को बताएंगे तो नहीं?” वो हंस पड़े और बोले, “पगली, मैं क्यों बताऊंगा? तू मेरी खास है।” उनकी बात सुनकर मैंने खुद को उनके हवाले कर दिया।
मास्टर जी ने मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। बारिश की आवाज बाहर गूंज रही थी, और ऑफिस का सन्नाटा मेरी सांसों की आवाज से टूट रहा था। उन्होंने मेरी फ्रॉक को धीरे-धीरे ऊपर उठाया और मेरे बदन को निहारने लगे। मेरी पैंटी भी बारिश में भीग चुकी थी। उन्होंने उसे उतार दिया और मुझे बेंच पर लिटा दिया। मैं पूरी तरह नंगी थी, और उनकी आँखों में एक भूख थी, जो मुझे और उत्तेजित कर रही थी। उन्होंने अपने कपड़े उतारे, और मैंने पहली बार उनका लंड देखा। वो मोटा, सख्त, और गर्म था। मेरे बदन में एक अजीब सी बेचैनी थी।
मास्टर जी मेरे पास आए और मेरे बूर को अपनी जीभ से चाटने लगे। दोस्तों, वो एहसास मैं बयान नहीं कर सकती। मेरे बदन में जैसे बिजली दौड़ रही थी। मेरी सांसें तेज हो गई थीं, और मेरे दांत अपने आप पीसने लगे। मैंने अपने पैरों को और चौड़ा कर दिया, जैसे मैं उन्हें और गहराई तक बुला रही थी। उनकी जीभ मेरे बूर के हर कोने को छू रही थी, और मैं सिहर रही थी। मेरे रोम-रोम में आग लग रही थी। मैंने खुद को पूरी तरह उनके हवाले कर दिया था।
फिर मास्टर जी ने अपना लंड मेरे बूर पर रगड़ा। मैं कराह उठी। उन्होंने धीरे से लंड को मेरे बूर के मुहाने पर रखा और एक हल्का सा धक्का दिया। लंड फिसल गया। बारिश की वजह से मेरा बूर गीला था, लेकिन वो इतना टाइट था कि लंड अंदर नहीं जा रहा था। उन्होंने मेरे बूर पर थूक लगाया और अपने लंड पर भी। फिर उन्होंने दोबारा कोशिश की। इस बार लंड का सुपारा मेरे बूर में घुस गया। मुझे तेज दर्द हुआ, और मैं चीख पड़ी। मास्टर जी रुक गए, मेरी चूचियों को सहलाया, और धीरे से बोले, “बस थोड़ा सा, कविता। अब मजा आएगा।” उन्होंने फिर से धक्का दिया, और इस बार उनका पूरा लंड मेरे बूर में समा गया। मैं दर्द से कराह रही थी, लेकिन उनकी उंगलियां मेरी चूचियों को मसल रही थीं, और धीरे-धीरे दर्द कम होने लगा।
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वो धीरे-धीरे आगे-पीछे करने लगे। हर धक्के के साथ मेरा दर्द कम हो रहा था, और एक अजीब सा मजा मेरे बदन में फैल रहा था। मास्टर जी की सांसें तेज थीं, और उनकी आँखों में एक जुनून था। वो मेरे होठों को चूम रहे थे, मेरी चूचियों को मसल रहे थे, और हर धक्के के साथ मेरे बूर को और गहराई तक चोद रहे थे। मैं भी अब उनके साथ लय में थी। मेरी कराहें बारिश की आवाज में मिल रही थीं। “हाय… सर… और जोर से…” मैंने खुद को कहते सुना। मास्टर जी ने मेरी बात मान ली और अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी। उनका लंड मेरे बूर को चीर रहा था, और मैं उस दर्द और मजा के बीच खो गई थी।
करीब दस मिनट बाद मास्टर जी झड़ गए। उन्होंने अपना सारा माल मेरे पेट पर गिरा दिया। उनकी सांसें अभी भी तेज थीं। मैं बेंच पर पड़ी थी, मेरे बदन में एक अजीब सी सुकून की लहर थी। लेकिन जब मैंने अपने बूर को देखा, तो वहां खून था। मैं डर गई। “ये क्या, सर?” मैंने घबराते हुए पूछा। मास्टर जी ने मुझे गले लगाया और बोले, “अरे, पगली, ये पहली बार होता है। तेरा परदा टूटा है। अब सब ठीक है।” उनकी बात सुनकर मेरा डर कम हुआ। मैंने अपने कपड़े पहने, लेकिन बारिश में भीगने की वजह से मेरी फ्रॉक फिर से चिपक गई थी। मैंने चाबी ली और घर की ओर भागी।
घर पहुंचकर मैंने कपड़े बदले, लेकिन मेरा मन उसी पल में अटक गया था। मास्टर जी का वो गर्म स्पर्श, उनकी जीभ का मेरे बूर पर रेंगना, और उनका लंड जो मेरे अंदर तक गया था—ये सब मेरे दिमाग में बार-बार घूम रहा था। लेकिन फिर भी मैंने फैसला किया कि मैं उन्हें दोबारा ऐसा मौका नहीं दूंगी। कई बार मास्टर जी ने मुझे समझाने की कोशिश की, कहा कि अब खून नहीं निकलेगा, लेकिन मैं डर के मारे दोबारा उनके पास नहीं गई।
अब मैं दिल्ली में रहती हूँ। नर्सिंग का कोर्स कर रही हूँ। लेकिन सच कहूं, मेरी चूत फिर से लंड के लिए तड़प रही है। वो सिहरन, वो गर्मी, वो मजा—सब कुछ मुझे फिर से चाहिए। लेकिन अब क्या करूं? कोई रास्ता बताओ, दोस्तों। मेरी चूत की प्यास कैसे बुझे?