सभी लंड धारियों को मेरा लंडवत नमस्कार और चूत की रानियों को उनकी गुलाबी चूत में उंगली करते हुए सलाम! मैं हूँ अर्जुन—26 साल का जवान, गोरा-चिट्टा, चौड़ी छाती, मर्दाना बदन, और आँखों में ऐसी हवस कि हर औरत माल लगती है। मेरा 8 इंच का लंड शहर में बदनाम है—जो चूत देखी, उसका भोसड़ा बनाया। मैं एक सरकारी स्कूल में शिक्षामित्र हूँ, जहाँ बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ मेरी नज़रें माल ढूँढती हैं। आज ऐसी ही एक कहानी सुनाता हूँ—ताज़ा, गर्म, और इतनी कामुक कि लंड तन जाएँगे, चूतें रस टपकाएँगी। तो तैयार हो जाइए, दोस्तों, इस चुदाई के तूफान के लिए!
हमारे स्कूल में मासूमी नाम की एक टीचर नई-नई आई थी। पहली बार देखा तो दिमाग़ हिल गया। उम्र 25 की, कुंवारी, गोरी, फिगर 34-32-36—चूचे गोल, टाइट, जैसे दो रसीले संतरे, कमर पतली, और गांड इतनी भरी कि सलवार-सूट में लहराती थी। होंठ गुलाबी, आँखें कजरारी, और चाल ऐसी कि लंड फनफनाए। वो अच्छे घर की थी—हमेशा चुस्त सलवार-सूट, दुपट्टा लपेटे, चूचे छुपाए रखती। पर जितना वो छुपाती, मेरी हवस उतनी भड़कती। मैं सोचता, “बस एक बार ये कली मेरे बिस्तर पर आए, चूत और गांड का बाजा बजा दूँ!” मैं शादीशुदा था, पर हवस का क्या—वो तो दिल-दिमाग़ पर सवार रहती है।
पहले दिन वो क्लास में बच्चों को पढ़ा रही थी। नीला सलवार-सूट, चूचे सूट में कसे, हर साँस के साथ हिल रहे। मैं पीछे खड़ा उसकी गांड ताड़ रहा था—36 इंच, गोल, मुलायम। मन हुआ अभी पकड़कर मसल दूँ। पर स्कूल था, बच्चों की भीड़। मैंने खुद को रोका, पर लंड ने बगावत कर दी। उसी दिन से मासूमी मेरे ख्वाबों की रानी बन गई। रोज़ उसे देखता—कभी गुलाबी सूट में, कभी हरे दुपट्टे में। वो किताबें बाँटती, मैं उसकी कमर की लचक देखता। उसका दुपट्टा हवा में उड़ता, चूचों की शेप झलकती—मेरा लंड तंबू बन जाता।
कुछ दिन बाद हमारी बात शुरू हुई। वो शर्मीली थी, सलीके से जवाब देती। मैंने दोस्ती का जाल बिछाया। नया सूट पहनती, मैं तारीफ करता, “मासूमी, आज तो तू किसी हीरोइन सी लग रही है!” वो सिर झुकाकर “थैंक्यू” बोलती, और उसकी गुलाबी गालों की लाली मेरे लंड में आग लगा देती। धीरे-धीरे हमारी दोस्ती पक्की हुई। हम साथ में गरीब बच्चों को पढ़ाते—वो ब्लैकबोर्ड पर लिखती, मैं उसकी गांड के कर्व्स गिनता। एक साल बीता, हम अच्छे दोस्त बन गए। पर मासूमी मेरी लाइन न लेती—मेरा शादीशुदा होना आड़े आता। फिर भी उसकी आँखों में शरारत थी—वो मुझे लाइक करती थी, बस हाँ बोलने में वक़्त लग रहा था।
मैं मौके ढूँढता। स्कूल की भीड़ में उसकी कमर छूता, दुपट्टा खींचता—वो हँसकर टाल देती। पर मेरा लंड बेकाबू। रोज़ बाथरूम में मासूमी के नाम की मूठ मारता। “मासूमी, तेरी चूत चूसूँगा… तेरी गांड फाड़ूँगा…” सोचकर लंड हिलाता। एक दिन गड़बड़ हो गई। दोपहर का वक़्त, बच्चे बाहर खेल रहे थे। मैं बाथरूम में—पैंट नीचे, 8 इंच का लंड हाथ में, ज़ोर-ज़ोर से हिलाते हुए चिल्लाया, “मासूमी, बस एक बार चूत दे दे! कितनी मस्त माल है तू! आई लव यू… तेरी बुर चाटूँगा, चोदूँगा!” दरवाज़ा बंद करना भूल गया। उसी वक़्त मासूमी बाथरूम की ओर आई—पेशाब की हाजत थी।
दरवाज़ा खुला। उसने मुझे देखा—लंड फड़फड़ाता, मेरी आँखें हवस में लाल। वो चौंकी, आँखें फटीं, और भाग गई। मैं शर्मिंदा—सोचा, अब नौकरी गई। क्या सफाई दूँ? कुछ दिन बात बंद। मैं चुप, वो चुप। फिर एक दिन वो खुद बोली, “अर्जुन, उस दिन तू मेरे नाम की मूठ मार रहा था न?” मैंने सिर झुकाकर कहा, “हाँ…” वो हँसी, “मज़ा आया था?” मैं चौंका, “बहुत!” वो बोली, “अच्छा, अब से ध्यान रख। दरवाज़ा बंद कर लिया कर!” उसकी आँखों में शरारत, होंठों पर मुस्कान। मुझे हरी झंडी मिल गई—मासूमी चुदवाने को तैयार थी।
दिन गुज़रते गए। मेरी हवस बढ़ती गई। मासूमी अब खुलने लगी थी—कभी मेरी तारीफ करती, कभी आँखों से इशारा। मैं उसकी हर अदा पर फिदा। एक दिन मौका मिला। स्कूल का स्टोररूम—पुरानी किताबें, धूल भरे रजिस्टर, और एक लकड़ी की मेज़। वहाँ कोई न जाता—अँधेरा, गुप्त। मासूमी किताबें लेने गई। मैं पीछे-पीछे। दरवाज़ा बंद किया। उसे कमर से पकड़ा। वो चौंकी, “अर्जुन, ये क्या?” मैंने उसकी आँखों में देखा, “आज मूठ नहीं, तुझे चोदूँगा, मासूमी!” उसे कसकर जकड़ा, पीछे से गले पर चूमा। उसका गोरा गला गर्म, पसीने की खुशबू। मैंने गाल चूमे, कान की लौ चाटी। वो सिसकारी, “स्स… छोड़… उफ्फ…” पर उसका जिस्म ढीला पड़ रहा था।
मैंने गले, कंधे, गाल चूमे—ज़ोर-ज़ोर से। उसकी साँसें तेज़, “अई… सी…” वो बोली, “अर्जुन, स्कूल में मत कर! बच्चा देख लेगा, नौकरी जाएगी!” मैंने कहा, “बच्चे बाहर हैं। आज तेरी जवानी का रस पी जाऊँगा!” उसे पलटाया, कंधों से पकड़ा। वो शर्म से लाल—आँखें चुराने लगी। मैंने उसके होंठों पर मुँह रखा। उसने कॉपर ब्राउन लिपस्टिक लगाई थी—होंठ रसीले, चमकते। मैं चूसने लगा—ज़ोर-ज़ोर से, लिपस्टिक चट कर गया। वो “हम्म… स्स…” करती रही। मैंने उसे सीने से लगाया, पीठ सहलाई—उसकी रीढ़ पर उंगलियाँ फेरी। वो धीरे-धीरे साथ देने लगी। “आई लव यू, अर्जुन…” वो बहकी। मैंने कहा, “लव यू, जान!” और चूमाचाटी का तूफान चला।
मेरा लंड तन गया—8 इंच, मोटा, गर्म। मासूमी भी गर्म—वो मेरे गाल चूमने लगी, बाँहों में जकड़ा। उसके 34 इंच के चूचे मेरे सीने से रगड़ रहे थे—कड़े, रसीले। मेरे हाथ पीठ से फिसलकर गांड पर गए—36 इंच, नरम, मुलायम। मैंने सलवार के ऊपर से दबाया—ज़ोर-ज़ोर से, गोल-गोल मसला। वो “अई… उफ्फ… स्स…” चीखी। मैंने गांड सहलाई, उंगलियाँ दरार में डाली। “साली, अपने संतरे दबाने दे!” मैं जोश में बोला। उसने दुपट्टा फेंका, चूचे सामने। मैंने सूट के ऊपर से दबाए—कड़े, गर्म। वो “उई… आह…” करती रही। सूट टाइट था—चूचे बाहर न आए। मैंने ज़ोर लगाया, पर नाकाम। फिर मेरा हाथ नीचे गया—सीधा चूत पर।
सलवार के ऊपर से चूत सहलाई—गीली, गर्म। वो मेरे कंधे पर झुकी, पैर फैलाए। मैं ज़ोर-ज़ोर से रगड़ने लगा। वो “अई… सी… हा…” चीखी। उसकी सिसकारियाँ मुझे पागल कर रही थीं। मैंने और तेज़ रगड़ा—सलवार गीली। वो जन्नत में—पैर ढीले, साँसें तेज़। तभी एक बच्चा स्टोररूम में घुसा, “सर, बच्चे हल्ला कर रहे हैं!” मैंने गुस्से में चिल्लाया, “जा, चुप करा! आ रहा हूँ!” बच्चा भागा। मैं फिर मासूमी पर टूटा। 15 मिनट तक सलवार के ऊपर चूत रगड़ी—वो तड़प रही थी। फिर नीचे बैठा, सलवार की डोरी खोली। पैंटी के साथ नीचे सरकाई—काली झाँटें, गुलाबी चूत, गीली।
“जान, खड़ी रह, बुर चाटने दे!” मैंने कहा। वो पैर फैलाकर खड़ी। मैंने मुँह चूत पर लगाया—नमकीन रस, मादक खुशबू। जीभ डाली—सुप-सुप चाटा। वो “आउ… हम्म… सी… हा…” चीखी। उसकी झाँटें मेरी नाक में—काली, घुंघराली। मैंने जीभ अंदर-बाहर की, चूत के होंठ चबाए। वो “अई… मम्मी…” चिल्लाई, हाथ मेरे बालों में। 20 मिनट चाटा—वो दो बार झड़ी, रस टपका। तभी बाहर से आवाज़, “मास्टर साहब!” पेरेंट्स फीस के लिए आए। मज़ा किरकिरा। हमने कपड़े ठीक किए, बाहर निकले। पर अब लंड ने ठान लिया था—मासूमी को चोदना है।
कुछ दिन बाद मौका मिला। शुक्रवार था—बच्चे कम, आधा स्कूल खाली। इंटरवल हुआ। मैंने मासूमी को इशारा किया—वो स्टोररूम चली गई। मैं पीछे। दरवाज़ा बंद, कुंडी चढ़ाई। “मासूमी, आज तेरा भोसड़ा बनाऊँगा!” मैंने कहा। स्टोररूम में धूल, पुरानी किताबें, और वो लकड़ी की मेज़—आज चुदाई का मंच। मासूमी ने गुलाबी सलवार-सूट उतारा—गोरा बदन, चमकता। मैंने शर्ट-पैंट फेंकी, कच्छा उतारा—लंड तना, 8 इंच। मासूमी मेज़ पर लेटी, ब्रा-पैंटी खोली। चूचे आज़ाद—34 इंच, गोल, काले निप्पल सख्त। मैंने हाथों में लिए, ज़ोर-ज़ोर से दबाए—जैसे आटा गूंथा। वो “उंह… हूँ… अई…” चीखी। मैंने चूचे मसले, निप्पल उंगलियों से कचोरे। फिर मुँह लगाया—एक निप्पल चूसा, दूसरा दबाया। वो “ओह… स्स… अर्जुन…” सिसकारी। मैंने निप्पल काटे, चबाए—रसीले, गर्म। 15 मिनट चूसे—वो पागल सी, कमर हिलाने लगी।
“चल, मेरा लंड चूस!” मैंने कहा। वो मेज़ से उतरी, नीचे बैठी। मेरे लंड को पकड़ा—मोटा, गर्म। “चूस, जान! रंडी की तरह!” मैं बोला। उसने लंड चूचे पर रगड़ा—34 इंच के संतरे, गर्म। फिर मुँह में लिया—जीभ टोपे पर, ज़ोर-ज़ोर से चूसा। मैं “हूँ… ऊँ… सी…” सिसकारी। वो रंडी सी चूसने लगी—लंड मुँह में अंदर-बाहर। मैंने उसका सिर पकड़ा, मुँह में चोदा—थूक से लंड चमका। मेरी गोलियाँ कड़क—वो सहलाने लगी। 20 मिनट चूसा—मेरे रोंगटे खड़े, लंड फटने को।
“मेज़ पर लेट!” मैंने कहा। वो लेटी। चूत साफ—गुलाबी, गीली। मैंने मुँह लगाया, चाटने लगा—रस नमकीन, मादक। वो “मम्मी… सी… हा… ऊँ…” चीखी। मैंने चूत के होंठ चबाए, जीभ अंदर डाली। वो “चाट, अर्जुन! मेरी भोसड़ी फाड़ दे!” चिल्लाई। 15 मिनट चाटा—वो झड़ी, रस टपका। मैंने लंड फेटा, चूत पर सेट किया। “डाल, अर्जुन! कुचल दे!” वो बोली। मैंने धक्का मारा—लंड अंदर। वो “आह… मम्मी…” चीखी। मैंने पैर फैलाए, ज़ोर-ज़ोर से ठोका। चप-चप की आवाज़—मेज़ हिलने लगी। वो “तेज़… और…” चिल्लाई। मैंने कमर नचाई—लंबे-लंबे धक्के। चूत गीली, लंड चमक रहा था।
मैंने उंगलियाँ उसकी उंगलियों में फँसाई, धक्के मारे—प्यार से, फिर तेज़। वो मेज़ पर हिल रही थी—चूचे उछल रहे थे। मैंने एक चूचा पकड़ा, निप्पल काटा। वो “उफ्फ… हा…” चीखी। मैं झड़ने वाला था। “मासूमी, अंदर?” वो बोली, “हाँ, अर्जुन!” मैं चूत में झड़ गया—गर्म माल, ढेर सारा। दोनों हाँफते हुए रुके। कपड़े पहने, बाहर निकले—पसीने से तर, दिल धड़कता। अब मासूमी बिंदास चुदवाती है—स्टोररूम हमारा रासलीला का अड्डा। दोस्तों, ये चुदाई कैसी लगी? ज़रूर बताइए!