Indian family Sex Story मेरा नाम राजेश कुमार शर्मा है। मैं एक विधुर हूँ, मेरी पत्नी कुसुम की मृत्यु गर्भावस्था के दौरान हो गई थी। मेरे परिवार में एक बहन और एक छोटा भाई है। मेरा छोटा भाई सुरेश कुमार शर्मा एक प्रतिष्ठित बैंक में काम करता है और उसकी पत्नी रिया शर्मा भी उसी बैंक में नौकरी करती है। मेरी बहन बबिता की शादी हो चुकी है और वह अपने पति के साथ उसी शहर में रहती है। मैं, सुरेश और रिया दिल्ली में अपने घर में रहते हैं। मैं मूल रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी का हूँ, लेकिन पिछले दस सालों से दिल्ली में रह रहा हूँ। मैं एक सरकारी स्कूल में गणित का शिक्षक हूँ। मैं अपनी जिंदगी से खुश हूँ और दोबारा शादी करने का इरादा नहीं रखता, क्योंकि मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था। लेकिन, मैं बहुत सेक्सी और हॉट हूँ… मेरी उम्र 38 साल है, कद 5 फीट 10 इंच, रंग गोरा और शरीर फिट, क्योंकि मैं रोज जिम जाता हूँ।
मेरी बहन बबिता मुझसे छोटी है, लेकिन सुरेश से थोड़ी बड़ी। उसकी उम्र 32 साल है, रंग सांवला, और वह एक सुंदर और आकर्षक महिला है। उसका पति सुनील कुमार शर्मा एक अस्पताल में क्लर्क है। शादी के पांच साल बाद भी बबिता माँ नहीं बन पाई थी। इस वजह से उसके सास-ससुर उससे नफरत करने लगे थे। उन्हें हर हाल में पोता चाहिए था। बबिता की सास उसे ताने मारती थी, उसे अपमानित करती थी। सुनील भी अपनी माँ-बाप का ही साथ देता था और कुछ नहीं बोलता। यह समस्या इतनी गंभीर हो गई थी कि हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। बबिता मेरे और सुरेश की इकलौती बहन थी। मैंने उसे बेटी की तरह पाला था, और मेरी पत्नी कुसुम भी उसे बेटी की तरह मानती थी। लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। उनके आगे किसकी चलती है?
यह कहानी का मुख्य हिस्सा है। एक शनिवार की शाम को मैं अपनी बहन बबिता के घर गया। बबिता घर पर नहीं थी, वह बाजार गई हुई थी। उसके सास-ससुर ने मेरा आदर-सत्कार किया। थोड़ी देर बाद बबिता लौट आई। मुझे देखते ही वह दौड़कर मेरे पास आई और गले लग गई। मैंने उसे अपनी बाहों में लिया। बबिता फूट-फूटकर रोने लगी। मैं घबरा गया और बोला, “क्या हुआ, क्यों रो रही हो?” पास खड़ी उसकी सास ने कहा, “कल इसके पेट में दर्द था। इलाज करा दिया है, अब ठीक है।” इतना कहकर सास-ससुर वहाँ से चले गए।
जब बबिता चुप हुई, तो मैंने पूछा, “खुलकर बता, क्या बात है?” बबिता ने कहा, “पहले आप कुछ खा-पी लो।” मैंने जवाब दिया, “उसकी चिंता मत करो, मैं सब ले चुका हूँ। चल, मेरे कमरे में चलते हैं।” हम दोनों बबिता के कमरे में चले गए। कमरे में जाते ही बबिता रोते हुए बोली, “भैया, मुझे यहाँ से ले चलो। मैं यहाँ पागल हो जाऊँगी। ये लोग सही नहीं हैं। रोज-रोज मुझे ताने देते हैं, मारते हैं, भला-बुरा कहते हैं। कहते हैं कि मैं बांझ हूँ। शादी के छह साल बाद भी कोई बच्चा नहीं हुआ। मेरे सास-ससुर कहते हैं कि वे मेरे पति की दूसरी शादी कराएँगे। मैं आपको फोन करना चाहती थी, लेकिन डर था कि आप क्या सोचेंगे, इसलिए कुछ नहीं कहा।”
मैंने उसे तसल्ली दी, “इसमें घबराने की क्या बात है? आज नहीं तो कल बच्चा हो जाएगा। और वैसे भी, तुम बूढ़ी तो हुई नहीं। वक्त पर सब ठीक हो जाएगा।” बबिता ने जवाब दिया, “लेकिन ये लोग नहीं समझते। कहते हैं कि मैं यहाँ से चली जाऊँ और तब तक न आऊँ जब तक मेरी गोद में बच्चा न हो।” मैंने गुस्से में कहा, “क्या बेवकूफी है? लाओ, मैं अपने दामाद से बात करता हूँ।” बबिता ने मना किया, “कोई फायदा नहीं। वो भी इनके साथ देता है। कहीं आपकी बदनामी न हो जाए।”
मैंने कहा, “नहीं-नहीं, मैं बात करता हूँ। तुम बैठो।” मैं कमरे से निकलकर सीधे बबिता के सास-ससुर के पास गया और विनम्र स्वर में बोला, “बाबूजी, ये क्या है? बबिता जो बता रही है, क्या वो सच है?” ससुर चुप रहे, लेकिन सास ने तल्खी से कहा, “जो कह रही है, ठीक कह रही है। हम अपने बेटे की दूसरी शादी कराएँगे। ये बांझ है। शादी के छह साल हो गए, लेकिन कोई बच्चा नहीं हुआ। हम कब तक इंतजार करें? हमें भी भगवान के पास जाना है। अपनी बहन को ले जाओ। मैं अपने बेटे की दूसरी शादी कराऊँगी।”
मैंने गुस्से में कहा, “और अगर दूसरी वाली से भी बच्चा नहीं हुआ तो क्या तीसरी शादी करेंगे?” सास ने जवाब दिया, “जब की तब देखी जाएगी।” मैंने कहा, “आप लोग पागल हो गए हैं। भावनाओं में बहना नहीं चाहिए। और वैसे भी, छह साल ही हुए हैं, पूरी जिंदगी तो नहीं बीती। आप ऐसा नहीं कर सकते।” सास ने तंज कसते हुए कहा, “मेरी बेटी को देखो, चार साल में दो-दो बच्चों की माँ बन गई, और ये?” मैंने जवाब दिया, “हर इंसान का हिसाब अलग होता है। प्लीज, ऐसा मत करो।”
इस बार ससुर बोले, “हमने प्लान कर लिया है। मेरे दोस्त की बेटी है, सुंदर है और पैसे भी दे रहे हैं। अपनी बहन को ले जाओ। शादी में जो दिया था, वो लौटा देंगे।” मैं निराश हो गया। मन तो हुआ कि दो-दो झापड़ मार दूँ, लेकिन रिश्ते की मर्यादा को देखते हुए चुप रहा। मैं वापस बबिता के कमरे में आ गया। बबिता ने पूछा, “भैया, क्या हुआ?” मैंने कहा, “तुम घबराओ मत, कोई न कोई रास्ता निकाल लूँगा। चलने की तैयारी करो। एक घंटे में निकलते हैं। अपना सामान बाँध लो। मैं एक फोन करता हूँ।”
मैं बाहर निकला और बबिता के पति संतोष को फोन किया। वह घर आने की तैयारी कर रहा था। फोन की घंटी बजी, उसने उठाया। संतोष: “हैलो…” मैं: “हाँ, मैं बोल रहा हूँ। कैसे हो?” संतोष: “ठीक हूँ। आप बताओ।” मैं: “ये मैं क्या सुन रहा हूँ? अपने माँ-बाप को क्यों नहीं समझाते? ऐसी बेहूदा बातें करते हैं। अगर बच्चा नहीं होता तो सारी गलती लड़की की होती है? क्या समझ लिया है? मैं इसलिए फोन कर रहा हूँ कि ये क्या माजरा है?” संतोष: “जी, मम्मी पुराने ख्यालों की हैं। उन्हें बच्चा चाहिए। वे अपनी जिद पर अड़ी हैं। मैंने समझाने की कोशिश की, लेकिन क्या करूँ? घर जाते ही शुरू हो जाती हैं। एक तरफ माँ है, दूसरी तरफ पत्नी।” मैं: “उन्हें समझाया तो जा सकता है। और ये क्या, दूसरी शादी की बात करते हैं?” संतोष: “उन्हें कहने दीजिए। मैं दूसरी शादी करूँगा ही नहीं। मैं बबिता से बहुत प्यार करता हूँ। आप फिक्र मत करें, समय पर समझा दूँगा।” मैं: “मैं बबिता को अपने घर ले जा रहा हूँ, अभी।” संतोष: “ले जाइए। दरअसल, मैंने ही कहा था कि कुछ दिनों के लिए मायके चली जाओ। तबीयत बदल जाएगी।”
इस बातचीत के बाद मैं थोड़ा सामान्य हुआ। फिर मैंने पूछा, “एक बात बता, शादी के छह साल हो गए, तुम्हें कोई प्रॉब्लम तो नहीं हुई… मैरिटल लाइफ में?” संतोष: “कैसी प्रॉब्लम?” मैं: “यही कि…” मैंने हिचकते हुए कहा, “सेक्सुअल प्रॉब्लम।” संतोष: “नो… नो। हम पूरी तरह ठीक हैं। वैसे, हमने डॉक्टर से चेकअप भी करवाया है। बबिता का रिपोर्ट आ चुका है, और मेरा कल तक आएगा।”
शाम छह बजे मैं घर लौटा। संतोष पहले से ही आ चुका था। उसके चेहरे पर उदासी थी और हाथ में कुछ कागज थे। उसे देखकर मुझे लगा कि कुछ गड़बड़ है। मैंने पूछा, “क्या हुआ? चेहरा क्यों उतरा हुआ है?” संतोष: “कुछ नहीं। वो रिपोर्ट आ गई है।” मैं: “तो डॉक्टर को दिखाया?” संतोष: “वहीं से आ रहा हूँ। कह रहे हैं कि शुक्राणु की कमी है, जिससे बच्चा पैदा होता है। लेकिन इलाज करवाया जाए तो ठीक हो सकता है।” उसने सीना तानकर कहा। मैंने तसल्ली दी, “कोई बात नहीं। हम इलाज करवाएँगे। एक से एक डॉक्टर हैं। फिक्र मत करो।”
बबिता चाय लेकर आई और हम तीनों चाय पीने लगे। चाय पीने के बाद संतोष उठा तो मैंने कहा, “आज तुम यहीं रुक जाओ। कल रविवार है, चले जाना।” संतोष रुकना चाहता था, लेकिन अपनी माँ-बाप की वजह से बोला, “नहीं, मैं अगले हफ्ते आऊँगा।” मैंने कहा, “यार, उस बात को भूल जाओ। मैं हूँ ना, सब ठीक हो जाएगा। बबिता, जाओ खाना बनाओ।”
संतोष कुछ नहीं बोल सका। उसने अपनी माँ को फोन किया और कहा, “मैं किसी जरूरी काम से ऑफिस में हूँ। अगर देर हुई तो यहीं गेस्ट हाउस में रुक जाऊँगा।” फिर फोन काट दिया। बबिता खुश थी कि उसका पति आज रात उसके साथ रहेगा। वह सोच रही थी कि आज वह वो सब करेगी जो उसकी सास की वजह से नहीं कर पाई थी।
बबिता किचन में खाना बनाने का सामान जुटाने के बाद बाथरूम चली गई। नहाकर तैयार हुई और फिर किचन में खाना बनाने लगी। मैं और संतोष डाइनिंग रूम में टीवी देखने लगे। मैं एक विधुर था, लेकिन अपनी भावनाओं को काबू में रखता था। कुसुम के बाद मैंने किसी लड़की को नहीं छुआ था। मुझे कई बार चुदाई के ऑफर मिले थे, लेकिन मैंने इग्नोर कर दिया। मेरी पत्नी की मृत्यु का घाव अभी ताजा था। लेकिन अब अपनी भावनाओं को काबू करना मुश्किल हो रहा था। मुझे अपने छोटे भाई की पत्नी रिया बहुत पसंद थी। मैं उसे जी-जान से चाहता था। उसकी एक बात पर मैं दुम हिलाता था। लेकिन वह अपने पति के साथ रहती थी। छुट्टियों में कभी-कभी वह अपने भाई से मिलने दिल्ली आ जाती थी। वैसे वह भी दिल्ली की ही थी।
रिया की शादी से पहले एक लड़के के साथ उसका चक्कर था। उसकी शादी उसी लड़के से होने वाली थी, लेकिन अचानक उस लड़के पर एक आपराधिक वारदात का इल्जाम लग गया और उसे सात साल की सजा हो गई। रिया के माँ-बाप उसे इतने साल कुंवारी नहीं रखना चाहते थे, इसलिए उसकी शादी सुरेश से कर दी गई। यह खबर सुनते ही रिया का प्रेमी मलखान सिंह, जो उसका दीवाना था, ने जेल तोड़ने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। उसने एक अनजाने में मर्डर कर दिया था, जिसके लिए उसे सजा मिली थी। इसकी एक बड़ी कहानी है, जो मैं वक्त पर बताऊँगा।
आज भी मैं रिया के बारे में सोच रहा था कि तभी मेरे सेल फोन की घंटी बजी। मैंने फोन उठाया, रिया का कॉल था। मैं मुस्कुराया और बोला, “हाय, रिया, कैसी हो?” रिया: “जी, भैया, ठीक हूँ। आपको एक खुशखबरी देनी थी।” मैं: “कैसी खुशखबरी? हमें भी बता।” रिया: “वो आप इनसे सुन लीजिए, मैं नहीं बता सकती।” मैं: “ऐसी क्या बात है जो तुम नहीं बता सकती? प्लीज, पहेलियाँ मत बुझाओ, बता।” रिया ने फोन सुरेश को दे दिया। सुरेश ने फोन उठाते ही कहा, “हैलो, भैया, कैसे हैं?” मैं: “कैसे हो, भाई? आज क्या बात है? आज ही बबिता आई है।” सुरेश: “छोटी आई है? क्या बात है?” मैं: “हाँ, और बता, बहू क्या सुना रही थी? बीच में फोन तुम्हें दे दिया।” सुरेश: “जी, वो भैया… आप चाचा बनने वाले हैं। यही बताना चाहती थी।” मैं खुशी से झूम उठा, “अरे, भाई, मुबारक हो! बहुत-बहुत मुबारक हो! तुम ऐसा करो, तुम दोनों कल यहाँ आ जाओ। हम एक पार्टी करते हैं। और वैसे भी, बहू की गोदभराई का फंक्शन होता है। ये उसका पहला बच्चा है। बबिता भी है, तो प्लीज, आ जाओ।” सुरेश: “ठीक है, भैया, प्लान करते हैं।” सुरेश ने फोन बबिता को दिया। बबिता: “हैलो, सुरेश, कैसे हो? बहुत-बहुत मुबारक! ऐसा कर, तुम जल्दी आ जाओ भाभी को लेकर। कल रविवार है, शाम को पार्टी करते हैं।” सुरेश: “जी, दीदी, कोशिश करूँगा। वैसे भी रिया का मन था। और दिल्ली से उसके माँ-पिताजी का फोन आया था, वे भी बुला रहे हैं। तो कल आ जाएँगे। फिर फोन करता हूँ।” और उसने फोन काट दिया।
अगली सुबह छह बजे रिया और सुरेश न्यू दिल्ली रेलवे स्टेशन पर खड़े थे। वे मेरा इंतजार कर रहे थे। तभी मैं दिखा। दोनों खुश हो गए। रिया ने अपने सिर पर आँचल रख लिया और दोनों ने झुककर प्रणाम किया। मैंने उन्हें कंधों से उठाया और सुरेश के माथे को चूमकर प्यार किया। फिर मैंने रिया की तरफ देखा। वह बहुत सुंदर लग रही थी। उसका गोरा चेहरा कमल के फूल जैसा लग रहा था। शायद चुदाई के बाद लड़कियाँ और सुंदर हो जाती हैं। मैं उसकी गांड को देख रहा था, जो जरूरत से ज्यादा उभरी हुई थी। मेरा लंड खड़ा हो गया। फिर मैंने उसके पेट की ओर देखा, जो थोड़ा उभरा हुआ था। मेरी नजरों को देखकर रिया को शर्मिंदगी हुई और उसने नजरें फेर लीं। मुझे भी होश आया कि मैं स्टेशन पर हूँ। मैंने एक टैक्सी बुलाई और कहा, “बहू, चलो। तुम दोनों पीछे बैठो, मैं सामान लोड करता हूँ।”
घर पहुँचते ही रिया का स्वागत हुआ। बबिता एक थाली में फूलों की माला, रोली और पानी का लोटा लेकर आई। उसने रिया की आरती उतारी और फिर दोनों जोड़ों को माला पहनाई। बबिता ने कहा, “वेलकम, भाभी! वेलकम!” फिर सब घर में आ गए। बबिता किचन में चाय बनाने चली गई। मैं और सुरेश अपने कारोबार और टूर के बारे में बात करने लगे। रिया को बोरियत होने लगी तो वह भी किचन में चली गई। उसने पीछे से बबिता को पकड़ लिया और बोली, “बताओ, मेरी जान, कैसी हो? कोई इम्प्रूवमेंट हुआ या नहीं?” बबिता: “क्या भाभी, अब आप जैसा मेरा नसीब तो है नहीं।” रिया: “क्या मतलब?” बबिता: “मतलब साफ है। खेत तभी भीगता है जब पाइप में पानी हो।” रिया: “क्या मतलब? तो क्या जमाई जी…?” और वह चुप हो गई, क्योंकि सामने से सुरेश आ रहा था। सुरेश: “बबिता, सिर फटा जा रहा है। चाय दे दो।” बबिता: “तुम बैठो, मैं अभी सबके लिए लाती हूँ।” सुरेश: “ओके, मैं बाथरूम जाता हूँ, फ्रेश होने। तौलिया दे दो।” बबिता: “वहाँ हैंगर पर है, ले लो।” सुरेश बाथरूम चला गया। फिर दोनों की बातचीत शुरू हुई। रिया: “तो बताओ, क्या बात है? खुलकर बताओ।” बबिता: “आप फ्रेश हो लो, बाद में बताती हूँ।”
बबिता चार प्याले चाय लेकर डाइनिंग हॉल में आई। मैं और सुरेश बबिता के बारे में ही बात कर रहे थे। रिया वहाँ नहीं थी, शायद अपने कमरे में थी। बबिता ने चाय का प्लेट रखा और रिया को बुलाने चली गई। उसने झाँककर देखा तो रिया साड़ी पहन रही थी। बबिता ने पीछे से उसे पकड़ लिया और उसकी एक चूची को दबाते हुए बोली, “क्या बात है, ये तो मालदा आम हो गया है। लगता है रोज पेलाई होती होगी।” दोनों के बीच ऐसी बातें कभी-कभी हो जाती थीं। रिया: “अरे, तुम अपना देखो। तुम भी तो कश्मीर की कली लग रही हो।” बबिता: “हाँ, लेकिन ये फूल कब बनेंगे, पता है?” रिया: “हाँ, अब बताओ, क्या बात है? और जेठ जी भी कुछ अजीब बातें कर रहे हैं।” बबिता: “जी, वो मेरी सास मुझे हमेशा ताने देती है कि मैं बांझ हूँ। मैं बच्चा पैदा नहीं कर सकती।” रिया: “किसने कहा? कोई भी औरत अकेले बच्चा पैदा नहीं कर सकती। बिना मर्द के… और अगर मर्द ही खराब हो तो औरत क्या कर सकती है?” बबिता: “हमने बहुत समझाया, लेकिन अम्मा को कुछ समझ नहीं आता। वे बस एक ही बात कहती हैं—दूसरी शादी, अपने बेटे की दूसरी शादी।” रिया: “और अगर दूसरी शादी में भी नहीं हुआ तो? तीसरी?” बबिता खामोश हो गई। “वही समझ नहीं आता कि क्या करूँ। संतोष जी कहाँ हैं?” रिया: “वो कभी तुम्हारी तरफ तो कभी अम्मा की तरफ हो जाते हैं।” रिया: “संतोष जी से मैं बात करती हूँ। नंबर दो।”
रिया ने नंबर डायल किया और संतोष से बात शुरू की। संतोष: “गुड मॉर्निंग, भाभी। आ गईं? वेलकम टू दिल्ली।” रिया: “थैंक्स। और बताओ, क्या चल रहा है?” संतोष: “सब ठीक है।” रिया: “सुना है आप दूसरी शादी कर रहे हैं?” संतोष घबरा गया और बोला, “न-न-नहीं, ऐसी बात नहीं है। कुछ प्रॉब्लम है, ठीक हो जाएगा।” रिया: “कुछ नहीं, बहुत बड़ी प्रॉब्लम है।” संतोष: “जी, मैं जानता हूँ। मैं क्या कर सकता हूँ?” रिया: “प्रेग्नेंट। आप प्रेग्नेंट कर सकते हैं।” संतोष शर्माते हुए: “प्रेग्नेंट?” रिया: “हाँ। और मुझे लगता है कि आप हिजड़ा हैं।” रिया ने उसके दिल पर चोट की। संतोष: “क्या मतलब है आपका?” रिया: “ठीक कह रही हूँ। जो इंसान अपनी बीवी को खुश नहीं रख सकता, उसे शादी करने का कोई अधिकार नहीं।” संतोष: “आप ठीक हैं। लेकिन मैं इलाज करा रहा हूँ ना। ऐसा नहीं कि मैं सेक्स में बिल्कुल फेल हूँ। मुझमें पूरी ताकत है एक औरत को खुश करने की। लेकिन शुक्राणु का प्रॉब्लम है। रिपोर्ट आई है कि शुक्राणु डेड हैं। लेकिन इलाज से ठीक हो सकता है। आज शाम को आ रहा हूँ, बात करता हूँ।” फोन कट गया। रिया ने बबिता की तरफ देखते हुए कहा, “देखा, हकीकत पता चल गया ना? फिक्र मत करो, मैं तेरी अम्मा से भी बात करूँगी और तेरे पति से भी। दुनिया में कोई ऐसा कष्ट नहीं जिसका इलाज न हो। बस विश्वास होना चाहिए। चलें?” दोनों चाय पीकर उठ गईं और शाम की पार्टी की तैयारी करने लगीं।
शाम छह बजे गोदभराई की रस्म शुरू हुई। मोहल्ले की तमाम औरतें आईं। बबिता और कुछ खास दोस्त भी थे। औरतों की पार्टी चल रही थी। मैं, सुरेश और संतोष मेहमानों के स्वागत में लगे थे। करीब 200 लोग इस समारोह में शामिल हुए। रिया एक कुर्सी पर बैठी थी। बबिता और एक अधेड़ उम्र की औरत ने उसकी आरती उतारी और एक चादर ओढ़ाई। सब औरतें बलैया लेने लगीं। रिया को बहुत अच्छा लग रहा था। वह आगे बढ़कर बबिता को गले लगा लिया। फिर कुछ गाने का दौर चला। गीत, संगीत और कुछ अश्लील इशारों के साथ गाने बजे। इन अश्लील इशारों से कई औरतों की चूत से पानी बहने लगा था। लेकिन इस समारोह में मर्द नहीं थे। उनका अलग प्रोग्राम था, जिसे मैं और सुरेश संभाल रहे थे। करीब एक घंटे बाद खाने का दौर चला और नौ बजे प्रोग्राम खत्म हो गया।
अब घर में सिर्फ मैं, रिया, सुरेश, बबिता और संतोष रह गए थे। सुरेश ने कुछ ज्यादा शराब पी ली थी। उसे नींद आ रही थी, लेकिन मेरी वजह से वह बैठा था। उसकी आँखें देखकर मैंने कहा, “सुरेश, जाओ, कमरे में सो जाओ। बहू, तुम भी चली जाओ। थक गई होगी। सुबह बात करते हैं।” बबिता और संतोष भी चले गए। मैं वहीँ रुककर रिया के बारे में सोचने लगा। कितनी सुंदर लड़की है। प्रेग्नेंट होने के बाद तो औरतें और सुंदर हो जाती हैं। यह सोचकर मैं मुस्कुराया और अपने माथे पर एक थप्पड़ मारकर शर्मा गया। फिर उठकर अपने कमरे में सोने चला गया।
सुबह करीब आठ बजे डाइनिंग टेबल पर सब इकट्ठा हुए। रिया अब काफी फ्रेश दिख रही थी। वह थोड़ी फ्रैंक थी। बाहर वह आँचल रखती थी, लेकिन घर में नहीं। आज वह सूट में थी, लेकिन दुपट्टा नहीं पहना था। उसकी चूचियाँ साफ दिख रही थीं। उसे देखते ही मेरा लंड खड़ा हो गया। मैं एक हाथ से अपने लंड को दबाते हुए चाय और नाश्ता कर रहा था। चुप्पी सुरेश ने तोड़ी। सुरेश: “हाँ, तो जीजाजी, क्या सोचा?” संतोष: “कल एक डॉक्टर के पास जा रहे हैं, इलाज के लिए।” सुरेश: “ठीक हो जाएगा। बेकार की बातें मत करो।” संतोष: “मैं तो कुछ नहीं कहता, लेकिन माँ थोड़ी कड़ी हैं। उन्हें समझाया नहीं जाता।” रिया: “आप उनकी चिंता मत करो। मैं देख लूँगी।” संतोष: “भाभी, वो… आपको पता है?” रिया शर्माते हुए: “हाँ, बबिता ने सब बता दिया। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं। भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा। ठीक है?” संतोष ने घड़ी देखी और बोला, “अब मैं चलूँगा। कल के लिए तैयारी करनी है। बॉस कनाडा जा रहे हैं। मैं निकलता हूँ। शाम को नहीं आ सकता। कल घर जाऊँगा।” वह चला गया। उसे जाते हुए सबने प्रश्नवाचक नजरों से देखा। सुरेश ने भी अपनी बाइक निकाली और बोला, “भैया, मैं भी एक दोस्त से मिलकर आता हूँ। वो नेहरू प्लेस में है।” मैं: “ठीक है, लेकिन लंच तक आ जाना। हम लोग वेट करेंगे।”
बबिता किचन में चली गई। रिया वहीँ बैठी थी और कोई मैगजीन पढ़ रही थी। मैं उसके पास गया और बोला, “और बताओ, तुम्हें अब कैसा लग रहा है?” रिया: “मतलब?” मैं: “वही कि पहले एक लड़की, फिर एक औरत, और अब माँ बनने वाली हो। हाउ डू यू फील अबाउट इट?” रिया: “ग्रेट। ये तो हर औरत का सपना होता है। आप नहीं समझेंगे।” मैं: “क्यों?” रिया: “क्योंकि आप औरत नहीं हैं।” मैं: “तो समझा दो।” रिया: “उसके लिए कुछ समय चाहिए।” मैं: “तो ठीक है। ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूँ।” रिया: “आज आपको ऑफिस नहीं जाना?” मैं: “आज छुट्टी है। रविवार।” रिया: “तो ये लोग?” मैं: “झूठ बोल रहे हैं। संतोष इसलिए गया कि कहीं मैं कुछ और न पूछ लूँ।” रिया: “वाकई, ये तो गलत है। अब बच्चा नहीं हो रहा तो इसमें एक लड़की क्या कर सकती है? ये तो मर्द को देखना चाहिए ना।” मैं: “ये स्त्री-प्रधान देश है।” रिया: “अब आप ही देखो। शादी के चार साल बाद भी कोई बच्चा नहीं हुआ। ये बात और है कि दीदी चल बसीं। लेकिन चार साल तो बर्बाद हो गए।” उसने तंज कसा। मैं: “ऐसा नहीं है। दरअसल, शुरू के दो साल हमने परिवार नियोजन का इस्तेमाल किया। फिर आखिरी दो साल वो बीमार होने लगी। मैं उसे प्रेग्नेंट नहीं करना चाहता था।” रिया: “लेकिन बीमार क्यों?” मैं: “पेट में कोई स्टोन था। पैनक्रियास में। उसका ऑपरेशन नहीं होता। दवाइयों से गिराना पड़ता है। लेकिन जब वो ठीक हुई, एक एक्सीडेंट में चली गई।” मेरी आँखों में पानी आ गया। रिया को भी आँसू आ गए। वह आगे बढ़ी और मुझे गले लगा लिया। “कोई बात नहीं, भगवान के आगे किसका चलता है? आप दूसरी शादी कर लीजिए। मेरी नजर में एक लड़की है। आप कहें तो बात करते हैं।” मुझे रिया की चूचियों का स्पर्श महसूस हो रहा था। मेरा लंड खड़ा हो चुका था, लेकिन मैंने अपनी जाँघों से दबा रखा था। तभी किचन में बर्तन गिरने की आवाज आई। हम दोनों अलग हो गए। रिया शर्मिंदगी में डूब गई और मैंने एक आँख मार दी।
जी हाँ, शादी से पहले से ही हम दोनों में चक्कर था। लेकिन किसी वजह से रिया की शादी सुरेश से हो गई थी। फिर भी रिया मुझे एक सच्चे दोस्त की तरह मानती थी। वह मुझसे सब कुछ शेयर करती थी और एक अच्छी गृहिणी की जिम्मेदारी निभाती थी। वह फ्रैंक थी, तभी तो मेरे लिए एक लड़की का ऑफर दे दिया।
रिया दौड़कर किचन में गई। बबिता गिरी हुई थी और कराह रही थी। रिया: “क्या हुआ? गिरी कैसे?” बबिता: “भाभी, वो… मैं ये बर्तन रख रही थी कि खूँटी कवर गई और मैं धड़ाम से गिर गई।” रिया ने उसे सहारा देकर उठाया और स्टूल पर बिठा दिया। “तुम जाओ, मैं देख लेती हूँ। आराम करो।” उसने सहारा देकर बबिता को उसके कमरे तक पहुँचाया।