आज मैं तुम्हें अपनी ज़िंदगी की एक ऐसी सच्ची और गर्मागर्म कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो मेरे दिलो-दिमाग को झकझोर कर रख देती है। ये मेरी ज़िंदगी का वो देसी मसाला है, जिसे मैंने पहले किसी के साथ शेयर करने की हिम्मत नहीं जुटाई। लेकिन अब दिल में आग सी लगी है, सोचा, क्यों न ये चटपटी बात तुम सबके साथ बाँट लूँ। यकीन मानो, ये कहानी तुम्हारे जिस्म में भी गर्मी भर देगी।
इस कहानी में मेरे अलावा चार और लोग हैं, जो इसके मज़ेदार किरदार हैं—मेरी अम्मी, मेरी छोटी बहन ज़ेबा, मेरी बीवी शमा, और मेरी खाला। इन सबकी इज़्ज़त का ख्याल रखते हुए मैंने सारे नाम बदल दिए हैं, ताकि मोहल्ले वालों या रिश्तेदारों में कोई हंगामा न मचे।
मेरा नाम परवेज़ अख़्तर है। उम्र 30 साल, और मैं एक देसी मर्द हूँ, जो अपनी ज़िंदगी की आग को बुझाने की जुगत में रहता है। मेरे अब्बू की पाँच साल पहले एक ट्रक हादसे में मौत हो गई थी। वो रेलवे में क्लर्क थे, सो उनकी जगह मुझे अनुकंपा पर नौकरी मिल गई। अब मैं घर का इकलौता कमाऊ मर्द था। Bhai bahan suhagrat
अब्बू के जाने के एक साल बाद मेरे अब्बू के दोस्त की बेटी शमा से मेरी शादी हो गई। शमा थी तो सीधी-सादी, लेकिन बिस्तर पर उसका जलवा देखने लायक था। चार साल बाद शमा पेट से हो गई। घर में खुशी का ठिकाना न था। आखिर घर का चिराग जो जलने वाला था। लेकिन वक़्त का खेल देखो, नौ महीने बीतते देर न लगी, और डिलीवरी का दिन आ गया। बदकिस्मती ने ऐसा खेल खेला कि बच्चा तो पैदा हुआ, लेकिन शमा हमें छोड़कर चली गई। डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की, मगर ऊपरवाले का फैसला कुछ और था।
इस हादसे ने हमारे घर को गम के अंधेरे में डुबो दिया। मेरा बेटा, शान, अभी दूध पीता बच्चा था। उसकी परवरिश की सारी ज़िम्मेदारी मेरी अम्मी और मेरी जवान बहन ज़ेबा पर आ पड़ी। ज़ेबा उस वक़्त बस 21 साल की थी, लेकिन उसने शान को अपनी गोद में ऐसा समेटा, जैसे वो उसकी अपनी औलाद हो।
उस वक़्त घर में उदासी का आलम था। दो महीने बाद ज़ेबा का फाइनल एग्ज़ाम था, फिर भी वो दिन-रात शान के पीछे लगी रहती। आधी-अधूरी पढ़ाई के बावजूद उसने एग्ज़ाम दिया और सेकंड डिवीज़न में पास भी हो गई। ज़ेबा मुझसे 9 साल छोटी थी, और घर की लाडली थी। मैंने उसे गिफ्ट में एक नया एंड्रॉयड फोन दिलवाया। फोन देखकर वो इतनी खुश हुई कि चिल्लाई, “भाईजान, थैंक्यू!” और मेरे गले लग गई। उसकी मुलायम चूचियाँ मेरे सीने से टकराईं, और पहली बार मुझे उसके गदराए जिस्म का अहसास हुआ। मेरा लंड पजामे में हलचल करने लगा।
ज़ेबा थी ही ऐसी माल, जिसे देखकर किसी का भी दिल डोल जाए। गोरा-चिट्टा रंग, 34-28-34 का फिगर, और जवानी ऐसी कि जैसे फटने को तैयार। उसके भरे-भरे कूल्हे और उभरी चूचियाँ देखकर मेरा मन मचलने लगा। पहले मैंने उसे कभी ऐसी नज़रों से नहीं देखा था, लेकिन उस दिन उसके जिस्म का स्पर्श मेरे दिल में आग लगा गया। मैं बार-बार शान को देखने के बहाने उसके करीब जाने की कोशिश करने लगा। मन में गलत ख्याल आते, पर मैं उन्हें झटकने की कोशिश करता। मगर दिल है कि मानता ही नहीं।
ज़ेबा मेरी सगी बहन थी, लेकिन थी तो एक हूर की तरह। शमा के जाने के बाद मेरी ज़िंदगी सूनी पड़ गई थी। रातें अकेले बिस्तर पर तड़पते गुज़रती थीं। लेकिन ज़ेबा का शान के लिए ममता भरा प्यार और उसका भरा-पूरा जिस्म देखकर मेरे दिल में वासना की चिंगारी सुलगने लगी। अब मेरी नज़रें उसके मम्मों और कूल्हों पर ठहरने लगीं। जब वो चलती, तो उसके नितंबों की थिरकन देखकर मेरा लंड सलामी देने लगता।
मैं जानबूझकर अम्मी के सामने शान को चूमते वक़्त ज़ेबा की तरफ इशारा करके मज़ाक करता, “जा, अपनी मम्मी की गोद में। अब तेरी मम्मी यही है।” ज़ेबा ये सुनकर शरम से लाल हो जाती, और उसकी शरम मेरे दिल में और आग भर देती।
मेरी अम्मी थीं तो बुज़ुर्ग, लेकिन उनकी नज़रें बाज़ की तरह थीं। उन्होंने कई बार मुझे ज़ेबा को चोरी-छिपे ताकते हुए पकड़ लिया। वो समझ गईं कि मेरी नज़रों में भाई का प्यार नहीं, बल्कि एक मर्द की भूख थी। ज़ेबा के लिए मेरी चाहत देखकर वो कुछ सोच में पड़ गईं।
एक दिन मौका देखकर अम्मी ने मुझसे पूछा, “बेटा, तूने अपनी ज़िंदगी के बारे में क्या सोचा? शान के लिए और अपनी खुशी के लिए तुझे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए।” मैंने कहा, “नहीं अम्मी, मैं शादी नहीं करूँगा। सौतेली माँ तो सौतेली होती है, पता नहीं शान के साथ कैसा बर्ताव करे।” अम्मी ने गहरी साँस ली और बोलीं, “बेटा, अगर तू बुरा न माने तो एक बात कहूँ?” मैंने कहा, “हाँ, बोलो अम्मी।”
अम्मी बोलीं, “जब ज़ेबा शान को माँ का प्यार दे सकती है, तो तुझे बीवी का सुख क्यों नहीं दे सकती?” ये सुनकर मेरा दिल धक-धक करने लगा। अम्मी ने मेरे मन की बात कह दी थी। मैंने दिखावे के लिए कहा, “अम्मी, ये क्या बोल रही हो? ज़ेबा मेरी सगी बहन है, ये कैसे हो सकता? समाज क्या कहेगा?”
अम्मी ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, मैंने तेरी आँखों में ज़ेबा के लिए वो आग देखी है, जो मुझसे छुप नहीं सकती। मेरी नज़रें धोखा नहीं खातीं।” मैंने कहा, “अम्मी, ज़ेबा कभी इसके लिए तैयार नहीं होगी। वो मुझसे इतनी छोटी है, उसके अपने सपने होंगे। वो मुझे क्यों अपनाएगी?”
अम्मी ने कहा, “बेटा, तुम दोनों मेरी दो आँखें हो। तुम्हारे सिवा मेरा इस दुनिया में और कौन है? ज़ेबा अब जवान हो चुकी है। उसकी जवानी का पहला रसीला फल तू ही चख। अगर वो कहीं और ब्याह दी गई, तो हमसे दूर चली जाएगी। मैं चाहती हूँ कि मेरे दोनों बच्चे मेरे सामने रहें। ज़ेबा मुझे बहू के रूप में भी मंज़ूर है। मैं उससे बात करूँगी।”
अम्मी का ये फैसला सुनकर मेरे मन में लड्डू फूटने लगे। मैंने हल्का सा विरोध छोड़कर कहा, “अम्मी, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।”
मुझे एक पुरानी घटना याद आ गई, जो आज भी मेरे जिस्म में सिहरन पैदा कर देती है। कुछ साल पहले की बात है, जब ज़ेबा जवान हो रही थी। एक इतवार को मैं छत पर बने कमरे में ऑफिस का हिसाब-किताब देख रहा था। शमा उस वक़्त अपनी डिलीवरी के लिए अपने मायके गई थी। मैं काम से थककर छत पर हवा खाने निकला, तो देखा कि नीचे आँगन में ज़ेबा मादरज़ात नंगी नहा रही थी।
ये नज़ारा ऐसा था कि मेरा लंड पजामे में तंबू बन गया। ज़ेबा का गोरा-चिट्टा जिस्म, छोटी सी उभरी चूत, जो बता रही थी कि उसका माहवारी शुरू हो चुका है। उसकी पतली कमर, गदराए कूल्हे, और छोटे-छोटे रसीले मम्मे—हाय, क्या दिलकश नज़ारा था। मैंने चुपके से मोबाइल निकाला और उसकी नंगी जवानी की वीडियो बना ली। उस वीडियो को देखकर मैं रातों को तड़पता और सोचता कि कौन खुशकिस्मत होगा, जो ज़ेबा की चूत का उद्घाटन करेगा। लेकिन अब किस्मत ने पलटा खाया, और ज़ेबा मेरी झोली में गिरने वाली थी। Bahan ki chudai
अम्मी ने दो दिन बाद ज़ेबा से बात की। पहले तो ज़ेबा गुस्सा हो गई, लेकिन अम्मी ने उसे समझाया। दूसरी शादी के खर्चे, शान के साथ सौतेली माँ का बर्ताव, और ये डर कि कहीं कोई और औरत मुझे बहका न ले—इन सब बातों ने ज़ेबा को सोचने पर मजबूर कर दिया। अम्मी ने कहा, “बेटी, शान तुझे अपनी माँ मानता है। तू कम से कम अपने बच्चे के साथ भेदभाव तो नहीं करेगी।”
ये सुनकर ज़ेबा शरम से लाल हो गई और बोली, “हाय अम्मी, आप भी ना!” अम्मी ने मौका देखकर कहा, “बेटी, हालात को देखकर कोई सही फैसला ले, जिससे सबका भला हो। तेरे भाई ने भी शान के लिए हामी भर दी है।” ज़ेबा ने झिझकते हुए एक हफ्ते का वक़्त माँगा।
अब ज़ेबा मुझसे नज़रें चुराने लगी। उसकी शरम और लज्जा देखकर मेरा मन और मचलने लगा। लेकिन पाँच दिन बीत गए, और ज़ेबा का कोई जवाब नहीं आया। मुझे डर लगा कि कहीं वो मना न कर दे। मैंने एक देसी जुगाड़ भिड़ाया। एक फेक आईडी से मैंने ज़ेबा के मोबाइल पर 15-16 पॉर्न वीडियो भेज दीं। कुछ में भाई-बहन की चुदाई थी, तो कुछ में नीग्रो और यूरोपियन लड़कियों की थ्रीसम मस्ती।
रात को अम्मी के सोने के बाद मैंने ज़ेबा के कमरे के की-होल से झाँका। शान बगल में सो रहा था, और ज़ेबा मोबाइल में वीडियो देख रही थी। उसकी साँसें तेज़ थीं, और चेहरा लाल था। मैं समझ गया कि मेरा तीर निशाने पर लगा है।
अगली सुबह मैंने दूसरा दाँव खेला। अम्मी के घुटनों में दर्द था, सो मैंने उनके दर्द का फायदा उठाया। मैं नहाने बाथरूम में गया, लेकिन जानबूझकर तौलिया नहीं लिया। 15 मिनट बाद मैंने अम्मी को आवाज़ दी, “अम्मी, मैं तौलिया भूल गया, ज़रा दे दो।” अम्मी ने ज़ेबा को पुकारा, “बेटी, मेरे पैर दुख रहे हैं, ज़रा परवेज़ को तौलिया दे आ।”
ज़ेबा ने दरवाजा खटखटाया, और मैंने फट से दरवाजा खोल दिया। मेरे जिस्म पर एक कपड़ा नहीं था। मेरा 9 इंच का लंड तोप की तरह तना हुआ था। ज़ेबा की नज़र मेरे लंड पर पड़ी, और उसका मुँह खुला रह गया। वो बुदबुदाई, “बाप रे, इतना बड़ा!”
मैंने शरारत से कहा, “ज़ेबा, देख, ये तुझे सलामी दे रहा है।” और अपने लंड को तीन-चार बार हिलाया। ज़ेबा शरम से लाल होकर बोली, “धत भाईजान, आप भी ना!” और भाग गई। लेकिन उसकी आँखों में मैंने वासना की चमक देख ली थी। मेरे पॉर्न वीडियो और लंड के दीदार ने उसके जिस्म में आग लगा दी थी।
शाम को ऑफिस से लौटा, तो अम्मी ने खुशखबरी दी कि ज़ेबा ने हामी भर दी है। मेरा प्लान कामयाब हो गया। अब अगली कहानी में मैं बताऊँगा कि कैसे ज़ेबा से मेरा निकाह हुआ, और कैसे मैंने उसकी सील-पैक चूत का मज़ा लिया।
अगला भाग: सगी बहन से निकाह करके सुहागरात-2