यह कहानी सिर्फ मनोरंजन के लिए है, इसका असली पंचातय सीरीज से कोई लेना देना नहीं है। यह कहानी हमारे वेबसाइट के एक रीडर के द्वारा लिखी गयी है, उनके कहने पर उनका नाम बिना बताये यह कहानी प्रकाशित किया जा रहा है।
फुलेरा, उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गांव, जहां की गलियां मिट्टी की सादगी और गांव की रौनक से भरी थीं। सूरज ढल चुका था, और हवा में हल्की ठंडक घुल रही थी। गांव में सन्नाटा पसरा था, क्योंकि ज्यादातर लोग तीन गांव छोड़कर एक रिश्तेदार की शादी में गए थे। मंजू देवी, फुलेरा की पूर्व प्रधान, उम्र करीब 45 साल, सादी साड़ी और गंभीर चेहरा, अपने पति बृज भूषण के साथ शादी में शामिल होने गई थीं। बृज भूषण, करीब 50 साल के, भारी आवाज और ठेठ देहाती अंदाज वाले, अब कोई नया बिजनेस शुरू करने की सोच रहे थे। उनके साथ प्रहलाद चाचा, गांव के बुजुर्ग और मजाकिया इंसान, और विकास, पंचायत का चुलबुला कर्मचारी, भी शादी में गए थे। रिंकी, मंजू देवी की 22 साल की बेटी, गोरी, लंबे काले बाल, और गांव की सबसे सुंदर लड़की, जिसके गालों पर हल्की लालिमा और आंखों में शरारती चमक रहती थी, को घर की देखभाल के लिए अकेले छोड़ दिया गया था। गांव में घर को दो दिन तक खाली छोड़ना ठीक नहीं था, और एक जवान लड़की को अकेले छोड़ना भी जोखिम भरा था। इसलिए मंजू देवी ने सचिव जी, यानी अभिषेक त्रिपाठी को फोन किया।
अभिषेक, 28 साल का, स्मार्ट और पढ़ा-लिखा, पंचायत का सचिव, जो हाल ही में CAT परीक्षा पास करके MBA कॉलेज में दाखिला ले चुका था। वो अगले दो महीने में शहर जाने वाला था। उसका चेहरा सौम्य, आंखों में गहराई, और बातों में हल्की शरारत थी। मंजू देवी ने कहा, “सचिव जी, रिंकी अकेली है घर में। आप शाम को खाना हमारे घर पर ही खा लेना, और रात भी वही रुक जाना।” अभिषेक का दिल जोर से धड़का। वो खुश हुआ, लेकिन दिखावे के लिए बोला, “ठीक है, कोशिश करूंगा।”
शाम का वक्त था। अभिषेक ने अपने कमरे में अलमारी खोली। किताबों के नीचे, एक नया 12 कंडोम का पैकेट पड़ा था, जो उसने पिछले महीने ही खरीदा था। उसने सोचा था कि शायद कभी जरूरत पड़े। आज उसे लगा कि वो मौका आ सकता है। उसने पैकेट से तीन कंडोम निकाले और अपनी काली पैंट की बैक पॉकेट में डाल लिए। अपनी नीली शर्ट और पैंट को ठीक किया, पंचायत ऑफिस के अपने कमरे से निकला, और मंजू देवी के घर की ओर चल पड़ा।
रास्ते में उसका मन बेचैन था। रिंकी और उसका रिश्ता पिछले कुछ महीनों में गहरा हो चुका था। टंकी पर चोरी-छिपे मिलना, चैट पर प्यार भरी बातें, हल्की-फुल्की छेड़छाड़—ये सब उनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुका था। दो बार तो बात इतनी बढ़ी थी कि उनके होंठ एक-दूसरे को छूने वाले थे, लेकिन हर बार कोई न कोई रुकावट आ गई थी। अभिषेक को डर था कि कहीं एक गलत कदम से उसका सच्चा प्यार खो न जाए। रिंकी भी गांव की मर्यादाओं में बंधी थी। लेकिन वासना की आग दोनों को जलाए जा रही थी।
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अभिषेक ने मंजू देवी के घर का दरवाजा खटखटाया। रिंकी ने दरवाजा खोला। उसने हल्के गुलाबी रंग की सलवार-कमीज पहनी थी, जो उसके गोरे रंग पर खूब जंच रही थी। उसके लंबे काले बाल खुले थे, और चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। “आइए, सचिव जी,” उसने धीमी आवाज में कहा और उसे बरामदे में बिठाया। गांव का घर था, बरामदे में एक पुरानी लकड़ी की चारपाई और कुछ कुर्सियां थीं। दोनों चारपाई पर बैठे और बातें शुरू हुईं। पहले गांव की बातें—बृज भूषण अब कोई बिजनेस शुरू करना चाहते थे, प्रहलाद चाचा को विधायकी का चुनाव लड़ने की सलाह दी जा रही थी।
लेकिन धीरे-धीरे बातें प्यार की ओर मुड़ गईं। “सचिव जी, आप शहर चले जाएंगे, फिर मुझसे बात भी तो नहीं करेंगे,” रिंकी ने हल्के शिकायती लहजे में कहा, उसकी उंगलियां चारपाई की रस्सी से खेल रही थीं। अभिषेक ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराया, “रिंकी, तुम्हें लगता है मैं तुम्हें भूल जाऊंगा? तुम मेरे लिए कितनी खास हो, ये तो तुम जानती हो।” रिंकी के गालों पर लालिमा छा गई। उसने धीरे से कहा, “फिर भी, सचिव जी, आप दूर चले जाएंगे। मेरे लिए तो ये गांव ही सब कुछ है।” अभिषेक ने उसका हाथ पकड़ा, “रिंकी, मैं जहां भी रहूं, तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी।” उसकी आवाज में गर्मजोशी थी। रिंकी ने उसकी आंखों में देखा, और दोनों के बीच एक गहरा सन्नाटा छा गया।
“मैं अभी आती हूं,” रिंकी अचानक उठी और अपने कमरे की ओर चली गई। अभिषेक को लगा कि शायद वो नाराज हो गई। लेकिन सच कुछ और था। रिंकी की चूत उनकी बातों और हल्के-हल्के छूने से पूरी गीली हो चुकी थी। वो आज चुदने के मूड में थी। अब तक वो अपनी चूत के दाने को अभिषेक की फोटो देखकर मसलती थी, लेकिन आज वो सचिव जी के लंड का स्वाद लेना चाहती थी। अपने कमरे में पहुंचकर उसने अलमारी खोली। उसने एक स्पेशल दिन के लिए खरीदी हुई लाल रंग की फैंसी पैंटी और ब्रा निकाली, जो उसने पिछले महीने शहर से खरीदी थी। उसने अपनी गुलाबी सलवार-कमीज उतारी, लाल ब्रा और पैंटी पहनी, और ऊपर से एक लाल रंग की साड़ी लपेट ली। साड़ी सादी लेकिन टाइट थी, जो उसके 34 इंच के चूचे और 36 इंच की गांड को उभार रही थी।
वो वापस बरामदे में आई और अभिषेक को आवाज दी, “सचिव जी, मेरे कमरे में आ जाइए, खाना निकाल दिया है।” अभिषेक थोड़ा हैरान हुआ, लेकिन उठकर उसके पीछे कमरे में चला गया। कमरे में खाना तो था नहीं। रिंकी लाल साड़ी में खड़ी थी, उसके चूचे साड़ी के ऊपर से उभरे हुए थे, और उसकी कमर की गोलाई साफ दिख रही थी। अभिषेक ने हकबकाते हुए पूछा, “रिंकी, खाना कहां है?” रिंकी धीमे कदमों से उसके पास आई, उसकी सांसें तेज थीं। वो इतने करीब थी कि उनकी सांसें एक-दूसरे से टकरा रही थीं। “सचिव जी, आज का डिनर कुछ और है,” उसने धीमी, कामुक आवाज में कहा।
अभिषेक का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वो रिंकी की आंखों में डूब गया। “रिंकी, तुम सच में मेरे लिए बहुत खास हो। मैं तुम्हें कभी दुख नहीं देना चाहता,” उसने गंभीरता से कहा। रिंकी ने उसका हाथ पकड़ा, “सचिव जी, मुझे पता है आप मेरे लिए क्या महसूस करते हो। मैं भी तो वही महसूस करती हूं।” उसकी आवाज में प्यार और वासना का मिश्रण था। दोनों की नजरें मिलीं, और फिर धीरे-धीरे उनके होंठ एक-दूसरे के करीब आए।
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पहला चुम्बन हल्का था, जैसे दोनों एक-दूसरे को आजमा रहे हों। रिंकी के होंठ नरम और गर्म थे, हल्की लिपस्टिक की महक अभिषेक को और उत्तेजित कर रही थी। अभिषेक ने उसे और करीब खींचा, उसकी साड़ी के ऊपर से उसकी 36 इंच की गांड को सहलाया। रिंकी ने एक हल्की सिसकारी भरी, “उफ्फ, सचिव जी…” दोनों अब पूरी तरह एक-दूसरे में खो गए। अभिषेक ने रिंकी की साड़ी के पल्लू को हल्के से खींचा, लेकिन रिंकी ने उसे रोका, “अभी रुको, सचिव जी। मुझे थोड़ा डर लग रहा है।” उसकी आवाज में हल्की घबराहट थी।
अभिषेक ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया, “रिंकी, मैं तुम्हें कभी कुछ गलत नहीं करने दूंगा। तुम मुझ पर भरोसा करती हो न?” रिंकी ने हल्के से सिर हिलाया, “हां, सचिव जी, मैं करती हूं।” दोनों फिर से चूमने लगे। अभिषेक की जीभ रिंकी की जीभ से मिली, और दोनों एक-दूसरे के मुंह में खो गए। रिंकी की साड़ी अब थोड़ी सरक गई थी, जिससे उसके चूचे की शेप साफ दिख रही थी। अभिषेक ने अपनी उंगलियां रिंकी की कमर पर फिराईं, फिर धीरे-धीरे उसकी साड़ी के ऊपर से उसके 34 इंच के चूचों को दबाया। रिंकी की सिसकारी तेज हो गई, “आह… सचिव जी, धीरे…” उसकी आवाज में मस्ती थी।
अभिषेक ने उसकी साड़ी को धीरे-धीरे उतारना शुरू किया। साड़ी का पल्लू कंधे से सरक गया, और फिर पूरी साड़ी फर्श पर गिर गई। अब रिंकी सिर्फ लाल ब्रा और पैंटी में थी। उसके 34 इंच के चूचे ब्रा में कैद थे, और उसकी चूत की शेप पैंटी के ऊपर से साफ दिख रही थी। अभिषेक ने अपनी नीली शर्ट उतारी, उसका सीना चौड़ा और हल्के बालों वाला था। रिंकी ने शरमाते हुए उसकी काली पैंट की बेल्ट खोली। अभिषेक का 6 इंच का लंड अब अंडरवियर में तन चुका था, उसकी शेप साफ दिख रही थी। रिंकी ने उसे देखा और शरमा गई। “सचिव जी, ये तो बहुत बड़ा है,” उसने हंसते हुए कहा।
अभिषेक ने उसे फिर से चूमा और उसकी ब्रा का हुक खोल दिया। रिंकी के 34 इंच के चूचे आजाद हो गए, उनके गुलाबी निप्पल सख्त थे। अभिषेक ने एक निप्पल को मुंह में लिया और चूसने लगा। रिंकी की सिसकारी कमरे में गूंज रही थी, “आह… उफ्फ… सचिव जी, ये क्या कर रहे हो…” उसका शरीर हल्का कांप रहा था। अभिषेक ने रिंकी को बिस्तर पर लिटाया और उसकी लाल पैंटी को धीरे-धीरे उतारा। रिंकी की चूत छोटी, गुलाबी, और पूरी गीली थी। उसने अपनी उंगलियों से उसकी चूत को सहलाया, लेकिन रिंकी की चूत इतनी टाइट थी कि उसकी छोटी उंगली भी अंदर नहीं जा रही थी। रिंकी ने दर्द से कराहा, “आह… धीरे, सचिव जी, दर्द हो रहा है।”
अभिषेक ने उसकी चूत को चाटना शुरू किया। उसकी जीभ रिंकी की चूत के दाने पर फिर रही थी, और रिंकी की सिसकारियां तेज हो रही थीं, “उफ्फ… आह… और करो, सचिव जी…” उसका शरीर कांप रहा था, और उसकी जांघें अभिषेक के चेहरे को और करीब खींच रही थीं। कई मिनट तक अभिषेक ने रिंकी की चूत को चाटा, उसका पानी बार-बार निकल रहा था। फिर उसने धीरे-धीरे अपनी उंगली अंदर डालने की कोशिश की। रिंकी ने फिर से कराहा, “नहीं… दर्द हो रहा है।”
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अभिषेक ने अपनी जेब से एक कंडोम निकाला और अपने 6 इंच के लंड पर चढ़ाया। उसने रिंकी की टांगें फैलाईं और अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ा। रिंकी की सांसें रुक रही थीं, “सचिव जी, मैं डर रही हूं।” अभिषेक ने उसे चूमा और कहा, “रिंकी, मैं धीरे करूंगा। तुम मुझ पर भरोसा करो।” उसने धीरे-धीरे अपने लंड को रिंकी की चूत में डालने की कोशिश की। रिंकी की चूत इतनी टाइट थी कि लंड का सुपड़ा भी मुश्किल से अंदर गया। रिंकी चीख पड़ी, “आह… नहीं… निकालो, बहुत दर्द हो रहा है।” अभिषेक रुक गया और उसे चूमने लगा। उसने फिर से उसकी चूत को चाटा, ताकि वो और गीली हो जाए। कई मिनट बाद, उसने फिर कोशिश की। इस बार लंड का सुपड़ा अंदर चला गया, और रिंकी की चूत से हल्का खून निकला। वो कांप रही थी, “सचिव जी, धीरे… मैं मर जाऊंगी।”
अभिषेक ने धीरे-धीरे अपने लंड को आगे-पीछे किया। रिंकी की सिसकारियां अब दर्द और मजे का मिश्रण थीं, “आह… उफ्फ… सचिव जी, और करो…” पहला राउंड धीरे-धीरे चला। अभिषेक ने अपने 6 इंच के लंड को रिंकी की चूत में पूरा डाला और धीमे-धीमे धक्के मारे। रिंकी की सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं, “आह… सचिव जी… हाय… और जोर से…” उसकी जांघें अभिषेक की कमर को जकड़ रही थीं। करीब 12 मिनट बाद अभिषेक झड़ गया। रिंकी भी कांपते हुए झड़ चुकी थी। दोनों पसीने से तर थे, और रिंकी की लाल ब्रा और पैंटी फर्श पर पड़ी थी।
थोड़ी देर बाद, रिंकी ने अभिषेक के लंड को फिर से सहलाया। वो फिर से तन गया। रिंकी ने हंसते हुए कहा, “सचिव जी, आप तो थकते नहीं।” उसने एक नया कंडोम उसके लंड पर चढ़ाया। इस बार रिंकी ऊपर आई। उसने धीरे-धीरे अभिषेक के लंड पर बैठने की कोशिश की। उसकी चूत अभी भी टाइट थी, लेकिन अब थोड़ा आसान था। वो धीरे-धीरे ऊपर-नीचे हुई, और उसकी सिसकारियां फिर शुरू हो गईं, “आह… सचिव जी… ये बहुत अच्छा लग रहा है…” अभिषेक ने उसकी 36 इंच की गांड को पकड़ा और उसे और तेज करने में मदद की। रिंकी के 34 इंच के चूचे उछल रहे थे, और अभिषेक ने उन्हें दबाया। रिंकी की सिसकारी और तेज हो गई, “उफ्फ… सचिव जी… दबाओ और जोर से…” दूसरा राउंड 15 मिनट तक चला, और दोनों फिर से झड़ गए। रिंकी अभिषेक के सीने पर लेट गई, उसकी सांसें अभी भी तेज थीं।
अगले दिन शाम को, रिंकी को फिर से वासना ने घेर लिया। उसने एक काले रंग की सलवार-कमीज पहनी, दुपट्टा कंधे पर डाला, और चुपके से पंचायत ऑफिस पहुंची। गांव में लोग शादी से लौट सकते थे, इसलिए जोखिम बहुत था। लेकिन यही जोखिम रिंकी को उत्तेजित कर रहा था। रास्ते में उसने चारों तरफ देखा, सुनिश्चित किया कि कोई उसे देख न रहा हो। पंचायत ऑफिस का दरवाजा हल्का खुला था। अभिषेक अंदर अकेले था, टेबल पर कुछ फाइलें देख रहा था। उसने रिंकी को देखा और चौंक गया, “रिंकी, तुम यहां? कोई देख लेगा!”
रिंकी ने दरवाजा बंद किया और ताला लगा दिया। “सचिव जी, कोई नहीं आएगा। सब शादी में व्यस्त हैं,” उसने धीमी आवाज में कहा। उसने अपना दुपट्टा उतारा और अभिषेक के पास गई। अभिषेक ने उसे अपनी बाहों में खींच लिया और चूमना शुरू किया। रिंकी की सलवार-कमीज अभी भी बदन पर थी, लेकिन अभिषेक ने उसकी कमीज को ऊपर उठाया और उसके 34 इंच के चूचों को दबाया। रिंकी ने सिसकारी भरी, “आह… सचिव जी, यहां टेबल पर ही…”
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अभिषेक ने टेबल पर पड़ी फाइलें हटाईं और रिंकी को टेबल पर बिठा दिया। उसने रिंकी की सलवार का नाड़ा खोला और नीचे सरका दिया। रिंकी ने अपनी काली पैंटी उतारी, और अभिषेक ने अपनी पैंट और अंडरवियर उतार दिया। उसने अपनी जेब से एक कंडोम निकाला और अपने 6 इंच के लंड पर चढ़ाया। रिंकी की चूत अभी भी टाइट थी, लेकिन अब वो गीली थी। अभिषेक ने अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ा, और रिंकी की सिसकारी फिर शुरू हो गई, “उफ्फ… सचिव जी, डाल दो…”
अभिषेक ने धीरे-धीरे अपने लंड को रिंकी की चूत में डाला। रिंकी ने टेबल को जोर से पकड़ा, “आह… धीरे… दर्द हो रहा है।” अभिषेक ने धीमे-धीमे धक्के मारे, और रिंकी की सिसकारियां तेज हो गईं, “आह… और जोर से, सचिव जी…” ऑफिस की कुर्सी हल्की चरमराई, लेकिन दोनों इतने खोए थे कि उन्हें कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। अभिषेक ने रिंकी के चूचों को कमीज के ऊपर से दबाया, और रिंकी ने अपनी कमीज ऊपर उठा दी। उसकी ब्रा पहले ही उतर चुकी थी। अभिषेक ने उसके निप्पल चूसे, और रिंकी की सिसकारियां और तेज हो गईं, “आह… सचिव जी… और चूसो…”
करीब 10 मिनट तक अभिषेक ने रिंकी को टेबल पर चोदा। दोनों पसीने से तर थे। रिंकी ने अभिषेक की कमर को अपनी टांगों से जकड़ लिया, “सचिव जी, और तेज…” अभिषेक ने अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ाई, और रिंकी झड़ गई। उसकी चूत का पानी टेबल पर टपक रहा था। अभिषेक भी कुछ देर बाद झड़ गया।
चुदाई के बाद, रिंकी ने जल्दी से अपनी सलवार-कमीज ठीक की और दुपट्टा लपेट लिया। अभिषेक ने भी अपनी पैंट पहनी। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और हंसे। रिंकी ने कहा, “सचिव जी, ये तो बहुत मजा आया, लेकिन अब मुझे जाना होगा। कोई आ न जाए।” अभिषेक ने दरवाजा खोला, चारों तरफ देखा, और रिंकी को बाहर निकाला। रिंकी चुपके से घर की ओर चली गई, और अभिषेक अपने ऑफिस के कमरे में वापस लौट गया।
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