आखिरकार मुझे पापा का लण्ड मिल ही गया

मैं कभी नहीं मानता था कि इन्सेस्ट सच हो सकता है। लेकिन कुछ दिन पहले मैंने देखा कि इन्सेस्ट एक सच्चाई है। और एक बात बताऊँ… इन्सेस्ट बहुत इरोटिक है… नॉर्मल बॉय-गर्ल स्टफ से ज़्यादा इरोटिक। मैंने खुद कभी इन्सेस्ट नहीं किया (डर लगता है), किया है तो इमैजिनेशन में।

खैर, जो स्टोरी मैं लिख रहा हूँ वो एक लड़की की ज़ुबानी है।

मैं ज़ोहरा, उम्र 20 साल।
मैं अपने माँ-बाप की अकेली औलाद हूँ। हम गाँव में रहते थे। मेरे पापा खेती-बाड़ी करते हैं। जब मैं छोटी थी तो पापा ने मुझे गाँव के स्कूल में डाल दिया। वो स्कूल 12वीं तक था। 12वीं के बाद मैंने पापा से कहा कि मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ पर हमारे गाँव में कोई कॉलेज नहीं था इसलिए मुझे शहर आना पड़ा। शहर आकर मेरा एडमिशन एक गर्ल्स कॉलेज में हो गया और मैं शहर में ही एक गर्ल्स हॉस्टल में रहने लगी।
पापा ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं इसलिए उन्होंने मुझे कहा था कि पढ़ाई के मामले में मैं जैसे ठीक समझूँ कर लूँ।

शहर आकर मैं तो हक्की-बक्की रह गई। शहर की लड़कियों के कपड़े देखकर मुझे लगा कि मुझे वापस गाँव चले जाना चाहिए… कहीं मैं शहर के माहौल में बिगड़ न जाऊँ। लेकिन फिर सोचा कि मुझे तो पढ़ाई से मतलब है नाकि माहौल से। पापा कभी शहर नहीं आए थे। मेरा एडमिशन कराने भी मैं अपनी स्कूल की मैडम के साथ आई थी। अगर पापा शहर आते और यहाँ की लड़कियों के कपड़े देखते तो शायद मुझे यहाँ कभी न पढ़ने देते।

हमारे गाँव में लड़कियाँ सिर्फ़ सलवार सूट ही पहनती थी और वो भी काफ़ी लूज़। शहर में तो किसी लड़की को लूज़ का मतलब ही नहीं पता था। जिसे देखो टाइट जीन्स, टाइट टी-शर्ट, स्लीवलेस शर्ट, स्कर्ट, और अगर सलवार कमीज़ तो वो भी बहुत टाइट। यहाँ तक कि हमारे कॉलेज की टीचर्स भी ब्लाउज़ पहनती तो डीप कट और कुछ टीचर्स तो साड़ी नाभि के नीचे बाँधती थी। लेकिन मैं तो वही लूज़ सलवार कमीज़ पहनती थी। शहर में जहाँ देखो दीवारों पर एडल्ट फ़िल्मों के पोस्टर लगे होते थे जिसमें हीरो-हिरोइन नंगे होकर प्यार कर रहे होते थे।
हमारे हॉस्टल की लॉबी में एक टी.वी. भी था। क्योंकि हमारे गाँव में टी.वी. नहीं था इसलिए मुझे टी.वी. चलाना नहीं आता था लेकिन हॉस्टल में एक लड़की ने मुझे सिखा दिया। टी.वी. पर ऐड्स, फ़िल्में और गाने देखकर मैं हैरान रह गई। मुझे लगा कितनी गंदगी है शहर में।

इन सब चीज़ों ने मेरे अंदर एक अजीब सी हलचल मचा दी थी। रोज़ रात को सोते वक़्त मैं ये सोचती थी कि शहर में इतना नंगापन क्यों है। एक दिन हॉस्टल के टी.वी. पर मैं अकेली ही एक फ़िल्म देख रही थी। फ़िल्म में लड़का लड़की के होंठों पर किस करता है। मैंने सोचा क्या होंठों पर भी किस होती है। फिर लड़का लड़की के मुँह में अपनी जीभ डाल देता है और दोनों एक-दूसरे की जीभ चाटते हैं। ये सब देखकर मुझे कुछ होने लगा और मैंने टी.वी. बंद कर दिया। लेकिन सोचा देखती हूँ क्या-क्या होता है सो टी.वी. फिर से ऑन कर दिया। अब लड़का लड़की की शर्ट ऊपर करके उसके पेट पर किस कर रहा होता है, फिर वो लड़की की शर्ट उतारकर उसके ब्रेस्ट दबाने और चूसने लगता है, फिर लड़की की जीन्स निकालता है, फिर कच्छी (पैंटी) और फिर उसके टाँगों के बीच में चाटने लगता है। फिर वो अपनी पैंट उतारकर अपना लंड लड़की की चूत में डालकर आगे-पीछे करने लगता है। ये सब देखकर मेरी हालत ख़राब हो गई और मैं टी.वी. बंद करके सोने चली गई। ऐसी फ़िल्म रोज़ आती थी और मैं रोज़ ही देखती थी।
मैंने नोटिस किया कि ये सब देखने में मुझे मज़ा आता है और सोचने लगी कि असली में सेक्स करने में कितना मज़ा आता होगा। अब मुझे पता चला कि शहर की लड़कियाँ इरोटिक कपड़े क्यों पहनती हैं… असल में उन्हें सेक्स में मज़ा आता है और वो उसे बुरा नहीं मानती।

हमारे कॉलेज की कुछ छुट्टियाँ हुईं तो मैं गाँव चली आई। पापा मम्मी मुझे देखकर बहुत ख़ुश हुए। कुछ देर तक मेरी पढ़ाई के बारे में पूछकर पापा खेत में चले गए और मैं मम्मी से बातें करती रही। दोपहर हुई तो मम्मी ने कहा:
मम्मी: ज़ोहरा, मैं तेरे पापा को खेत में रोटी देने जा रही हूँ।
मैं: लाओ मम्मी, मैं दे आती हूँ, बहुत दिनों से अपने खेत भी नहीं देखे, खेतों की भी बहुत याद आती है।
मम्मी: ठीक है, तू ही दे आ, पहले भी तो तू ही जाती थी।
मैं पापा का रोटी का टिफ़िन लेकर खेत में चल दी।

पापा खेत में सिर्फ़ लुंगी पहनते थे। पापा को मैंने पहले भी ऐसे देखा था लेकिन आज पता नहीं मुझे अंदर से कुछ हो रहा था। पापा की अच्छी-ख़ासी मसल्स थी और चेस्ट चौड़ी। पापा का चेहरा मासूम था। पापा ने लुंगी अपनी नाभि के नीचे बाँधी हुई थी और उनका पूरा बदन पसीने से भरा था। पापा ज़मीन में फावड़ा (टूल टू डिग ग्राउंड) चला रहे थे।
मैं: पापा।
पापा: अरे ज़ोहरा, तू।
मैं: पापा रोटी लाई हूँ।
पापा: अपनी मम्मी को ही आने देती, तू सफ़र करके आई है, थक गई होगी।
मैं: नहीं तो।

फिर पापा रोटी खाने लगे। मैं पापा के बदन को देख रही थी। पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मेरे पापा कितने मस्कुलर हैं, कितनी चौड़ी चेस्ट है और चेस्ट पे बाल कितने अच्छे लगते हैं और नाभि भी प्यारी है। मैं सोचने लगी ये मुझे क्या हो गया है, भला कोई बेटी अपने पापा को इस एंगल से देखती है, पर क्या करूँ, कंट्रोल नहीं होता। जब पापा रोटी खा चुके तो मैं खेत से वापस आते वक़्त यही सोचती रही कि ये मुझे क्या हो गया है, मेरा दिल कुछ करना चाहता है, पर क्या करना चाहता है मैं ये न समझ पाई।
रात को हम लोग ज़मीन पर ही चादर बिछाकर सोते थे। मेरी आँखों के सामने बार-बार पापा की बॉडी आ रही थी। मैं पापा और मम्मी के बीच सोती थी, अभी मैं उनके लिए बच्ची थी।
रात को सोते वक़्त मुझे लगा कोई मेरे स्टनों (ब्रेस्ट) पर हाथ फेर रहा है। फिर धीरे-धीरे वो हाथ मेरे स्टनों को दबाने लगे। मुझे भी मज़ा आने लगा। फिर वो हाथ मेरी टाँगों (लेग्स) के बीच में रब करने लगे, मुझे लगा कि ये मेरे पापा ही हैं… मैं उनकी छाती पर हाथ फेरने लगी और उनकी लुंगी उतारने लगी… उन्होंने मेरी सलवार निकाल दी… फिर मेरी कच्छी (पैंटी)… और मेरी चूत को जैसे ही उन्होंने किस किया… मेरी आँख खुल गई… देखा तो ये मेरा सपना था… पापा तो एक तरफ़ सो रहे थे…
लेकिन मेरी टाँगों के बीच में सच में आग लगी हुई थी। क्या एक बेटी अपने बाप से सेक्स का सपना भी देख सकती है? एक तरफ़ तो मुझे गिल्टी फील हो रही थी तो दूसरी तरफ़ मुझे मज़ा भी आ रहा था।

खैर, अगले दिन दोपहर को मैं फिर पापा को खेत पे खाना देने गई।
पापा: ले आई खाना।
मैं: हाँ पापा, चलो काम छोड़ो और पहले खा लो।
पापा खाने लगे।
मैं: पापा, मेरे कॉलेज में सब लड़कियाँ नए-नए कपड़े पहनकर आती हैं, और मैं वही पुराने।
पापा: तो बेटी नए कपड़े सिलवालो।
मैं: गाँव से हर बार सिलवाती हूँ, इस बार शहर से सिलवालूँ?
पापा: क्यों?
मैं: शहर में कपड़ों की क्वालिटी गाँव से अच्छी है और पैसों का कोई ख़ास फ़र्क नहीं है, मेरी कॉलेज की सहेलियाँ वहीँ से सिलवाती हैं।
पापा: ठीक है, जाते वक़्त मुझसे पैसे लेती जाना और सिलवालेना लेकिन जब अगली बार गाँव आ तो नए कपड़े अपनी माँ को दिखाना ज़रूर।
मैं: ठीक है।

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अगले दिन मुझे शहर वापस जाना था। पापा ने मुझे पैसे दे दिए थे।
जब मैं चलने लगी तो उस वक़्त पापा खेत में थे।
मैं: मम्मी, मैं जाने से पहले पापा से खेत पर मिल के आती हूँ।
मम्मी: कोई बात नहीं बेटी, उन्हें पता तो है ही कि तूने जाना है।
मैं: कोई बात नहीं, बस एक मिनट में आती हूँ।
मैं खेत में पापा से मिलने चली आई। पापा हमेशा की तरह सिर्फ़ लुंगी में थे।
मैं: पापा।
पापा: अरे ज़ोहरा।
मैं: पापा मैं जा रही हूँ।
मैं पापा से लिपट गई और इमोशनल होकर बोली।
मैं: पापा मुझे आपकी बहुत याद आती है।
पापा: बेटी याद तो हमें भी बहुत आती है तुम्हारी।
मैं पापा के नंगे बदन से लिपटी हुई थी… पापा की पीठ पर हाथ फेर रही थी… मेरे स्टन पापा की चेस्ट के टच में थे…
पापा: बेटी मेरे पसीने से तेरे कपड़े ख़राब हो जाएँगे।
मैं पापा से और कस के लिपट गई और हल्के-हल्के अपने ब्रेस्ट पापा की चेस्ट से रगड़ने लगी।
मैं: पापा अगर मुझे आपकी बहुत याद आए तो मैं क्या किया करूँ?
इस रगड़ाई में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था… पापा क्या समझते… वो बहुत भोले थे।
पापा: जब भी तुम्हें बहुत याद आए तो कुछ दिनों के लिए गाँव आ जाया करो।
अब मैं पापा से अलग हुई लेकिन अपने हाथ मैंने पापा की चेस्ट पर फेरने लगी।
मैं: जल्द ही हमारी कॉलेज की कुछ और छुट्टियाँ होंगी तो मैं आ जाऊँगी… अच्छा तो अब चलती हूँ।
पापा: अच्छा बेटी… ख़ुश रहो।
ख़ुश तो मैं अपनी तमन्ना पूरी करने पर ही हूँगी… मैंने दिल में सोचा।
शहर आकर भी मैं पापा के जिस्म को ना भुला पाई। इतनी बार तो पापा से सपने में सेक्स करते हुए मेरी चूत गीली हो जाती थी।
मैंने फ़ैसला कर लिया कि मेरी प्यास को मेरे पापा ही बुझाएँगे।
मैंने अगले दिन लेडी टेलर से सूट सिलवाए… मैंने कमीज़ को टाइट सिलवाया और सलवार को भी… मैंने कमीज़ को काफ़ी डीप-कट सिलवाया और सामने कुछ बटन रखवाए…
फिर मैंने एक शॉप पर जाकर एक स्कर्ट, टाइट और छोटा टॉप और एक मैक्सी (फुली कवर्ड नाइटी) ली।
मुझे ये पता था कि कुछ दिनों बाद मम्मी अपने मायके चली जाएँगी और दो हफ़्तों से पहले नहीं आएँगी।

मैंने कॉलेज से दो हफ़्तों की लीव ली और चल दी गाँव…

आज मैंने अपना पुराना गाँव वाला कमीज़-सलवार पहना था इन केस मम्मी न गई हो तो… शाम को गाँव पहुँची तो घर में कोई नहीं था। मैं खेत की तरफ़ चल दी। अब खेत की फ़सल मेरी हाइट से ऊँची हो गई थी इसलिए कोई खेत में आसानी से दिखता नहीं था… मैंने सोचा ये भी तो अच्छा ही है।

इतनी ऊँची फ़सल में मैंने पापा को ढूँढ ही लिया।

मैं: पापा… मैं आ गई।

मैं पापा से जाकर लिपट गई… और हाँ… पापा सिर्फ़ लुंगी में थे।

पापा: अरे बेटी, तू कब आई?

मैं: अभी-अभी, पहले घर गई थी तो वहाँ कोई ना था।

मैं अपने ब्रेस्ट पापा की चेस्ट से रगड़ने लगी… मज़ा आ रहा था।

पापा: तेरी मम्मी अपने मायके गई है…

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मैं: कब गई मम्मी?

पापा: आज सुबह ही तो… उसे पता होता कि तूने आना है तो रुक जाती।

इसीलिए तो मैं शाम को आई हूँ… तुम क्या जानो। मैं पापा को और कस के लिपट गई।

पापा: ज़ोहरा, तू तो कुछ ज़्यादा ही उदास रहने लगी हो।

मैंने सोचा सब कुछ अभी करने से काम बिगड़ सकता है… आख़िर एक बाप अपनी बेटी को इतनी आसानी से नहीं चोदेगा… मुझे अपने पापा के डंडे को अपनी चूत की तरफ़ धीरे-धीरे आकर्षित करना होगा। मैं अलग हुई।

मैं: हाँ पापा, घर की याद कुछ ज़्यादा ही आने लगी है… खैर, मैं घर चलती हूँ आप जल्दी आ जाना।

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पापा: ठीक है…

घर आकर मैं प्लान सोचने लगी। मुझे पता था कि अगर मैं एकदम से ओपन हो गई तो बात बिगड़ सकती है… मैं चाहती थी कि पापा ख़ुद ही बेबस हो जाएँ और उन्हें लगे कि इस काम के वो ख़ुद भी रिस्पॉन्सिबल हैं।

मैंने सोचा सारा काम कल से शुरू किया जाए। रात को हम बाप-बेटी एक साथ तो सोए लेकिन मैंने कुछ नहीं किया… और पापा ने क्या करना था, उनके लिए तो मैं बेटी के अलावा और कुछ न थी। मैं रात को भी वही पुराने सलवार-कमीज़ में सोई।

अगले दिन सुबह मैंने पापा के लिए नाश्ता बनाया।

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मैं: पापा, मैं दोपहर को खेत पर रोटी ले आऊँगी।

पापा: अच्छा…

पापा के जाने के बाद मैं नहाई और अपना शहर में सिलवाया हुआ टाइट, डीप-कट सूट पहना।

दोपहर हुई तो पापा का खाना खेत पर लेकर चल दी… मैं तो एक्साइटमेंट से मरी जा रही थी। मेरे डीप-कट कमीज़ में से मेरे उभार (ब्रेस्ट) काफ़ी एक्सपोज़्ड थे… बटन खोलने की देर थी कि उभार साफ़ दिखते… ब्रा तो आज मैंने पहनी ही नहीं थी।

मैं: पापा।

पापा: ज़ोहरा, ले आई रोटी।

मेरा सूट फ्लोरोसेंट ग्रीन कलर का था…

जब पापा ने मुझे देखा तो वो थोड़े हैरान से हुए… आख़िर अपनी बेटी के उभारों की झलक पहली बार मिली थी।

मैं: चलो पहले खा लो।

पापा: तूने खा लिया?

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मैं: मुझे अभी भूख नहीं है।

पापा रोटी खाने लगे।

मैं: पापा, आपने मेरा सूट नहीं देखा।

पापा: हाँ, रंग अच्छा है… पर क्या ये थोड़ा टाइट और छोटा नहीं है…

मैं: छोटा… कहाँ से?

पापा: सामने से…

मैं: सामने से? कहाँ सामने से?

पापा: सामने से… मेरा मतलब है… छाती से…

मैं: ओह… छाती से, नहीं तो, ये तो शहर में आम है।

पापा: क्या तुम्हें कॉलेज में ऐसे सूट पहनने देते हैं?

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मैं: सब ऐसे पहनते हैं… बल्कि ये तो कुछ भी नहीं…

पापा: कोई मुझे बता रहा था कि शहर का माहौल ऐसा ही है।

मैं: हाँ वो तो है… लेकिन मुझे तो अपने पर कंट्रोल है।

पापा: अच्छी बात है बेटी… तुझे अपने आप को ऐसे माहौल से बचा के रखना चाहिए।

पापा ने रोटी खा ली तो मैं घर जाने के लिए चली, दो-तीन क़दम पर ही मैंने पैर (फुट) मुँड़ने (स्प्रेन) का बहाना किया और गिर गई।

मैं: ओह… पापा…

पापा भागते हुए आए।

पापा: क्या हुआ बेटी?

मैं: पापा… पैर मुँड़ (स्प्रेन) गया… बहुत दर्द हो रही है।

पापा ने मेरा सैंडल निकाला और देखने लगे।

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पापा: कहाँ से मुँड़ा है… कहाँ दर्द हो रही है?

मैं: ओह… पापा… बहुत दर्द हो रही है।

पापा: चल घर चल… कोई दवा लगा ले… चल बेटी खड़ी हो।

मैं जैसे ही खड़ी होकर थोड़ा चलने की कोशिश की तो फिर से गिर गई।

पापा: अरे, क्या हुआ बेटी… चला नहीं जा रहा?

मैं: नहीं पापा… चलने में तो और भी दुखता है।

पापा: बेटी, थोड़ी कोशिश कर, घर जाकर दवा लगाकर ही दर्द ख़त्म होगा, घर तो जाना ही है, हिना…

मैं फिर से उठी, थोड़ा चली पर फिर गिर पड़ी।

मैं: नहीं पापा, मुझसे बिल्कुल नहीं चला जा रहा।

पापा: फिर तो तुझे उठा के ही ले जाना पड़ेगा।

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यही तो मैं चाहती थी… पापा मुझे उठाएँ… उनका एक हाथ मेरी टाँगों के नीचे और दूसरा हाथ मेरी पीठ के नीचे… और मैं उनके नंगे जिस्म से चिपकी हुई…

जब पापा मुझे उठा रहे थे तो मैंने जल्दी से अपने सूट के सामने के बटन खोल दिए… और मेरे आधे से ज़्यादा उभार बाहर आ गए।

अब मैं पापा की गोद में थी और मेरी छाती खुला दरबार बनी हुई थी।

मैं: पापा बहुत दर्द हो रही है।

पापा ने मेरी तरफ़ देखा तो उनकी आँखें पहले वहीँ गईं तो मैं चाहती थी…

मेरे उभारों को देखते हुए बोले।

पापा: बस बेटी घर चल के सब ठीक हो जाएगा।

मैंने झूठ-मूठ में आँखें बंद कर लीं और देखा कि पापा रुक-रुक कर मेरी गोलाइयाँ (ब्रेस्ट) देख रहे हैं… किसी बाप के सामने उसकी बेटी की आधी छाती नंगी हो तो वो बेचारा खुल के देख भी नहीं सकता…

पापा ने मुझे उठा रखा था, इसलिए मेरी हिप्स पापा की पेनिस की हाइट पर थी… सडनली मुझे हिप्स पर कुछ हार्ड फील हुआ… मैं समझ गई ये क्या… मेरे पापा का लोड़ा… आज बाप-बेटी कितने पास होकर भी कितने दूर थे… डंडे और छेद में मुश्किल से चार इंच का फ़ासला था।

घर पहुँचते ही पापा ने मुझे लिटा दिया… मेरी आँखें बंद थी… पर छाती तो खुली थी।

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पापा: बेटी घर आ गया है।

मैं: पापा, कुछ करो ना… दर्द हो रहा है।

पापा: अलमारी में दवा रखी है… मैं लाता हूँ।

पापा डिस्प्रिन की गोली लाए और साथ में पानी। पानी पीते वक़्त मैंने जान-मूझकर पानी अपने ब्रेस्ट पर गिरने दिया… अब मेरे आधे नंगे उभारों पर पानी था। मैंने गोली ले ली और फिर से आँखें बंद करके लेट गई… पापा बार-बार मेरे उभारों को देख रहे थे… जवान बेटी के गीले उभार… बाप करे तो क्या करे।

मैंने सोचा इतना काफ़ी है अभी के लिए।

मैं: पापा, आपको जाना है तो जाओ, खेत में काम पूरा कर आओ, अब दर्द में पहले से फ़र्क है।

पापा: ठीक है… मैं जल्द ही काम करके आता हूँ।

मैंने सोचा काम करके आता हूँ या काम करने आता हूँ…

रात को पापा आए तो मैं थोड़ा चलने लगी थी।

पापा: बेटी फ़र्क पड़ा?

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मैं: हाँ पापा, थोड़ा-थोड़ा।

फिर हमने रोटी खाई…

अब मेरा जलवा दिखाने का टाइम आ गया था… मैंने शहर से ली हुई मैक्सी (फुली कवर्ड नाइटी) पहनी… इस मैक्सी का एडवांटेज ये था कि ये बिना कुछ एक्सपोज़ किए भी सब कुछ एक्सपोज़ कर सकती थी… मैंने लिपस्टिक और रूज़ भी लगा लिया… मैक्सी पहन के मैं पापा के सामने आई तो पापा मुझे देखकर थोड़े हैरान और थोड़े ख़ुश भी। हैरान इसलिए कि उन्होंने पहली बार ऐसी ड्रेस देखी थी और ख़ुश इसलिए कि उनकी बेटी सुंदर लग रही थी।

मैं: पापा, मैंने ये शहर से ये कपड़े भी लिए हैं… कैसे हैं?

पापा: अच्छे हैं, पर इसमें नींद आ जाएगी?

मैं: और क्या, शहर में तो लड़कियाँ और औरतें रात को यही पहनकर सोती हैं।

पापा: अच्छा।

ज़मीन पे बिस्तर लग चुका था… मैं पापा के पास जाकर बैठ गई।

मैं: पापा, जो दवा आपने शाम को दी थी वो बहुत पुरानी हो चुकी है और उसका असर नहीं होगा।

पापा: अच्छा… मुझे तो पता ही नहीं था…

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मैं: धीरे-धीरे दर्द बढ़ रहा है।

हमारे गाँव में दर्द के लिए सरसों का गर्म तेल लगाते थे… मुझे पता था कि पापा मुझे तेल लगाने के लिए ज़रूर कहेंगे… नहीं कहेंगे तो मैं ख़ुद कह दूँगी… तेल से ही तो सारा रास्ता खुलेगा।

पापा: फिर एक काम कर, सरसों का गर्म तेल लगा ले।

ओह यस…

पापा: तू मत उठ, मैं तेल गर्म करके लाता हूँ।

पापा तेल ले आए।

पापा: ले बेटी, लगा ले।

मैं: लाओ।

मैंने मैक्सी थोड़ी सी ऊपर की और हाथों से थोड़ा-थोड़ा तेल लगाने लगी।

मैं: ओoooo… आआआ…

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पापा: क्या हुआ?

मैं: तेल लगाने पे और दर्द होता है… मैं नहीं लगाती।

पापा: दर्द होना मतलब इसका असर हो रहा है… लगा ले बेटी… तभी ठीक होगा।

मैंने थोड़ा सा तेल और लगाया।

मैं: ओoooo… मुझसे नहीं लगेगा।

पापा: इस वक़्त तेरी मम्मी को यहाँ होना चाहिए था… ला मैं लगाता हूँ।

मैंने थोड़ी सी मैक्सी ऊपर कर ली… पापा मुझे पैर पे तेल लगाने लगे।

मैं: ओooह्ह… आआ… मर गई…

पापा: तेल से तो अच्छे से अच्छा दर्द ठीक हो जाता है…

मैं: ओooह्ह… पापा… दर्द पूरी टाँग में आ रहा है।

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मैं लेट गई और मैक्सी और ऊपर कर ली… मैंने अपनी दूसरी टाँग थोड़ी ऊपर कर ली ताकि पापा को मैक्सी के अंदर का सीन दिख सके… पापा थोड़ा शर्मा रहे थे और थोड़ा घबरा रहे थे।

मैं: पापा, थोड़ा तेल टाँग पे भी लगाओ…

मैंने अपनी टाँगें खोल दीं और दोनों घुटने (नीज़) ऊपर की तरफ़ कर दिए जिससे कि पापा को मेरी टाँगों के बीच में से मेरी सफ़ेद (व्हाइट) कच्छी (पैंटी) दिखने लगे…

अब पापा की नज़र मेरी टाँगों के बीच में से मेरी कच्छी पर थी।

मैं: ओoo… पापा… दर्द तो ऊपर बढ़ता जा रहा।

पापा: बेटी हिम्मत से काम ले… तेल ख़त्म हो गया है… मैं और गर्म करके लाता हूँ।

तेल तो ठंडा हो जाएगा… पर बाप-बेटी तो गर्म हो रहे थे।

पापा: मैं और तेल ले आया… ज़ोहरा ये काम तेरी मम्मी को करना चाहिए…

मैं: ठीक है तो आप छोड़ दो… दर्द थोड़ी देर से ही सही पर अपने आप ही ठीक हो जाएगा।

पापा: नहीं, कभी-कभी बाप को ही माँ का धर्म निभाना पड़ता है… चल बता कहाँ लगाना है।

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मैं: पापा, दर्द दूसरी टाँग में भी हो रहा है… आप दोनों टाँगों पर लगा दो।

पापा मेरी दोनों टाँगों के बीच में बैठ गए और तेल लगाने लगे।

मैं: पापा घुटनों पर भी लगा दो।

पापा: बेटी तेल लगने से तेरे ये नए कपड़े तो ख़राब नहीं होंगे।

मैं: हो सकता है… मैं थोड़ा ऊपर कर लेती हूँ।

मैंने मैक्सी थाइज़ तक ऊपर कर ली… अब मेरी नीज़ ऊपर… टाँगें खुलीं… मैक्सी थाइज़ तक… और पापा मेरी टाँगों के बीच में… मेरी चूत उनके फेस के सीध में…

मैं: पापा, आप तेल बहुत अच्छा लगाते हो… कुछ-कुछ आराम मिल रहा है।

पापा: तेरी मम्मी की भी दर्द होती है तो मैं ही लगाता हूँ… इसलिए मुझे तजुर्बा हो गया है।

मैं: अच्छा… पापा अब मैं पेट के बल (विथ स्टमक टुवार्ड्स फ्लोर) लेट जाती हूँ और आप टाँगों के पिछले भाग पर भी अच्छी तरह तेल लगा दो।

मैं पेट के बल लेट गई… मैंने मैक्सी थोड़ा और कर लिया… अब मैक्सी मेरी हिप्स तक आ गई थी… मेरा मक़सद अपने बाप को अपनी फ्लेशी हिप्स दिखाने का था… मेरी टाँगें तो एक तरह से पूरी एक्सपोज़्ड थी…

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मैंने थोड़ा सा मुड़कर देखा तो पापा मेरी हिप्स को देख रहे थे… हलाकि मेरी हिप्स अभी एक्सपोज़्ड नहीं थी…

मैं: एक बात बोलूँ… इस वक़्त आप मेरी मम्मी हो ना।

पापा: हाँ।

मैं: पहले मम्मी मेरी सरसों के तेल से मालिश किया करती थी, इसलिए मेरी हड्डियाँ मज़बूत थी, अब नहीं करती तो हड्डियाँ नाज़ुक हो गई हैं।

पापा: हो सकता है… मालिश तो करनी ही चाहिए।

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मैं: तो अगर आपको कोई दिक्कत नहीं है तो आप मेरी मालिश ही कर दो… अगर आपको कोई दिक्कत नहीं है तो, वरना मैं अब चार महीने बाद आऊँगी तो मम्मी से करा लूँगी।

पापा: अब तू चार महीने बाद आएगी… इस वक़्त मैं तेरी मम्मी हूँ… कर तो देता हूँ… लेकिन तू किसी को बताना मत… अपनी मम्मी को भी नहीं।

मैं: कभी नहीं बताऊँगी…

पापा: फिर मैं तेल और ले आता हूँ।

अब बात बन रही थी… गर्मी सही नहीं जा रही थी… लेकिन मुझे अब भी लग रहा था कि पापा की नीयत अब भी साफ़ है… मुझे लग रहा था कि उनके लिए मालिश का मतलब सिर्फ़ मालिश ही है और कुछ नहीं… खैर अब मैं फिर से सीधी लेट गई (पीठ के बल)… मैंने मैक्सी और ऊपर कर ली… कच्छी तक…

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पापा तेल लेकर आ गए।

पापा: चल बेटी… लगता है आज सारा तेल मालिश में लग जाएगा।

मैं सीधे लेटी हुई थी… मैक्सी कच्छी तक चढ़ी हुई।

मैं: पापा, मालिश थोड़ा कस के करना… जैसे मम्मी करती हैं।

पापा मेरी टाँगों की मालिश कर रहे थे।

मैं: पापा मैंने शहर में टीवी देखा।

पापा: अच्छा… कौन सी फ़िल्में देखीं।

मैं: उसमें क्या-क्या दिखाते हैं मैं बता नहीं सकती।

पापा: ऐसा क्या दिखाते हैं।

मैं: टाँगें बाद में कर लेना… पहले ऊपर का भाग कर लो।

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पापा: ठीक है।

मैं: मैं कपड़े ऊपर करूँ तो आपको कोई दिक्कत तो नहीं है… आप एक काम करो… आप आँखें बंद कर लो मैं अपने कपड़े ऊपर चढ़ाती हूँ।

पापा: हाँ, ये ठीक है… इस तरह बाप-बेटी में पर्दा भी रहेगा।

माय फुट!

मैंने अपनी मैक्सी अपने गले (नेक) तक चढ़ा ली… अब मैं अपने पापा के सामने एक तरह से सिर्फ़ ब्रा और कच्छी में थी।

मैं: अब आप तेल की कटोरी को मेरे साइड में रख दो और ऊपर आके मेरे पेट मालिश करो… जैसे मम्मी करती हैं।

पापा ने तेल की कटोरी एक साइड में रखी… और डॉगी स्टाइल में मेरे ऊपर आ गए… एक हाथ ज़मीन पर रखा सपोर्ट के लिए और दूसरे हाथ से मेरे पेट पर तेल लगाने लगे… अब वो मेरे सामने नहीं बल्कि ऊपर थे इसलिए हम ऑलमोस्ट फेस टू फेस थे…

मैं: हाँ पापा… तो मैं कह रही थी कि जो चीज़ें टीवी पर दिखाते हैं वो आपने पहले कभी नहीं देखी होंगी।

पापा: ऐसा क्या है?

मैं: लेकिन मैं नहीं मानती कि वो सच्चाई है।

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पापा: क्या नहीं मानती?

मैं: वो दिखाते हैं कि… नहीं मैं वो बोल नहीं सकती।

पापा: बता ना… ऐसा क्या है?

मैं: नहीं… कैसे बोलूँ… नहीं बोल सकती…

पापा: ऐसा क्या है जो तू बोल नहीं सकती?

मैं: मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती कि ऐसा भी होता होगा?

पापा: क्या होता होगा?

मैं: करके देखूँ… पर आप बुरा तो नहीं मानोगे?

पापा: नहीं मानूँगा।

मैं: तो फिर अपना चेहरा इधर लाओ।

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मैंने पापा का फेस अपनी तरफ़ किया और उनके होंठों पर किस कर दिया… पापा ने आँखें खोल ली…

मैं: पापा आपने कहा था कि आप बुरा नहीं मानोगे।

पापा: मुझे याद है।

मैं: मालिश क्यों रोक दी… वो तो करते रहो।

पापा: क्या टीवी पर ये दिखाते हैं।

मैं: हाँ पापा… आप ही बताओ, क्या लड़का-लड़की एक-दूसरे से होंट (लिप्स) मिलाते हैं?

पापा: मैंने तो नहीं सुना।

मैं: टीवी में तो लड़का-लड़की ऐसे होंट मिलाते हैं जैसे होंट से होंट की मालिश कर रहे हो… पापा ये आप मालिश कर रहे हो या सिर्फ़ हाथ फेर रहे हो… अच्छी तरह करो… आप तो मेरे कपड़ों पर भी तेल लगा रहे हो… एक काम करो… आँखें खोल लो…

पापा: आँखें तो खोल लेता हूँ लेकिन तम किसी को बताना मत।

मैं: कहा ना… कभी नहीं बताऊँगी।

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अब पापा ने आँखें खोल ली और उनकी जवान बेटी ऑलमोस्ट फुली नंगी उनके सामने उनसे मालिश कराती हुई… अपनी बेटी का बदन देखते ही वो थोड़ा शर्मा गए…

मैं: थोड़े लंबे-लंबे हाथ चलाओ… टीवी पर तो लड़का लड़की की होंठों से इतनी अच्छी मालिश कर रहा था और आप तो हाथों से भी अच्छी नहीं कर रहे…
पापा: नहीं ऐसी बात नहीं है… अब मैं कस के करता हूँ।
पापा ने लुंगी और बनियान पहनी हुई थी।
मैं: पापा देखो ना, आपकी बनियान पर तेल लग रहा है, ये ख़राब न हो जाए… इसे निकाल दो।
पापा: ठीक है…
और पापा ने बनियान उतार दी… अब मेरी मैक्सी मेरे ब्रा से ऊपर थी, पापा सिर्फ़ लुंगी में थे और मेरे ऊपर चढ़कर मेरे पेट की मालिश कर रहे थे।
मैं: पापा… होंठ से होंठ मिलाना तो मैंने पहली बार देखा ही… लेकिन इससे बड़ी चीज़ भी देखी… जो मैं नहीं मानती कि असली में होता होगा।
पापा: अच्छा… क्या देखा?
मैं: बता नहीं सकती… अपना चेहरा इधर लाओ।
पापा का फेस अपने हाथों में लेकर मैं फिर से पापा के होंठों पे किस करने लगी… कुछ देर तक हमारे होंठ ऐसे ही एक-दूसरे से चिपके रहे… फिर पापा ने कहा।
पापा: पर ये तो तू बता चुकी है।
मैं: हाँ ये तो बता चुकी हूँ… अब जो करना है वो करने में थोड़ा सा अजीब लग रहा है… चलो करती हूँ… लाओ अपने होंठ।
हमने फिर से किस शुरू की। अब मैंने अपनी जीभ (टंग) पापा के होंठों पर चलाई और पापा के मुँह (माउथ) के अंदर डालनी चाही… पापा ने हल्के से अपना मुँह खोल दिया… तो मैंने अपनी जीभ पापा के मुँह में डाल दी…
मैं पापा की जीभ को चाटने लगी… अब पापा भी अपनी जीभ मेरी जीभ पर घुमाने लगे… उन्होंने अपनी जीभ मेरे दाँतों (टीथ) पर मारी… कुछ देर एक-दूसरे की जीभ चूसने के बाद पापा ने अपना फेस ऊपर किया…
मैं: पापा, अच्छा लगा?
पापा: मैंने तो ये सब पहली बार सुना… मेरा मतलब पहली बार किया है।
मैं: तो मैं कौन सा रोज़ करती हूँ… मैंने भी पहली बार किया, पापा एक बात कहूँ… आपकी जीभ है बड़ी स्वाद।
पापा: अच्छा…
मैं: मेरी जीभ का स्वाद आपको कैसा लगा?
पापा: हम्म…
मैं: याद नहीं तो फिर चख (टेस्ट) कर देख लो।
मैंने पापा का फेस पकड़कर अपनी तरफ़ लिया और अपनी जीभ बाहर निकाल दी… पापा मेरी जीभ को चाटने लगे… इस दौरान मैंने तेल की कटोरी से थोड़ा तेल लिया और पापा की पीठ पर लगाने लगी।
कुछ देर तक चाटने के बाद पापा अलग हुए…
मैं: पापा, अब तो बताओ कैसा है मेरी जीभ का स्वाद?
पापा: अच्छा है… पर तू ये सब किसी से बताना मत।
मैं: बिल्कुल नहीं… पापा मैं अपनी मैक्सी निकाल ही देती हूँ।
मैंने अपनी मैक्सी उतार दी… अब मैं सिर्फ़ ब्रा-पैंटी में थी और पापा सिर्फ़ लुंगी में…
मैं: पापा… अब आप मेरी पीठ (बैक) की मालिश करो।
ये कहकर मैं पेट (स्टमक) के बल लेट गई। पापा के सामने मेरी नंगी पीठ और मेरी हिप्स थी। पापा मेरी पीठ की मालिश करने लगे।
मैं: मेरे कूल्हों (हिप्स) पर लगाओ तेल… दबा-दबाकर करो मालिश…
पापा मेरे हिप्स पर तेल लगाने लगे… मेरी हिप्स उमर के हिसाब से बड़ी हैं।
मैं: पापा, आप मम्मी के कूल्हों (हिप्स) पर भी मालिश करते हो?
पापा: हाँ… लेकिन अब तो उसकी मालिश किए पाँच-छह साल हो गए।
पापा मेरी हिप्स की मालिश बहुत दबा-दबाकर कर रहे थे… मुझे यही था कि अब तक पापा का लौड़ा पूरी तरह कड़क हो चुका था…
मैं: पापा, चलो अब आप थोड़ा आराम कर लो… काफ़ी देर से मालिश कर रहे हो… कुछ देर मैं आपकी मालिश कर देती हूँ।
अब पापा लेट गए और मैं उनके ऊपर आ गई… मैंने हाथ में तेल लिया और उनकी छाती पर लगाने लगी… पापा की नज़रें मेरे बदन पे थी… उनकी जवान बेटी ब्रा-पैंटी में उनकी मालिश कर रही थी।
मैं: पापा आप अपनी लुंगी निकाल दो तो मैं आपकी टाँगों की भी मालिश कर दूँ।
मैं जानती थी कि पापा का लौड़ा खड़ा होगा।
पापा: नहीं बेटी… मुझे तो मालिश की ज़रूरत ही नहीं… तू ऊपर से ही कर ले।
मैं: क्यों पापा… आज आपने कच्छा (अंडरवियर) नहीं पहना?
पापा: पहना है… लेकिन मुझे मालिश की ज़रूरत नहीं…
मैं पापा के ऊपर डॉगी स्टाइल में थी… उनकी छाती पर तेल लगा रही थी…
मैं जहाँ मूझकर स्लिप कर गई और पापा के ऊपर आ पड़ी… हम दोनों के नंगे जिस्म कॉन्टैक्ट में आ गए… अब मैं पापा के ऊपर लेटी हुई थी… मेरे ब्रेस्ट पापा की छाती से सटे हुए थे।
मैं: ओह…
पापा: क्या हुआ?
मैं: पापा वो हाथ चिकने हैं ना इसलिए फिसल गए और मैं आपके ऊपर आ पड़ी… मैं थोड़ा थक गई हूँ… थोड़ी देर ऐसे ही रहो।
पापा: मेरी छाती पर तेल लगा है… तेरा कपड़ा (ब्रा) ख़राब हो जाएगा।
मैं: अब तो हो ही गया… जाने दो… लेकिन आपके हाथ ख़ाली हैं… आप मेरी पीठ की मालिश कर सकते हो।
अब पापा लेटे हुए थे, मैं पापा के ऊपर, अपने ब्रेस्ट पापा की छाती पर दबाए, और पापा के हाथ मेरी पीठ पर तेल मल रहे थे… दोनों में गर्मी बढ़ती जा रही थी… हम दोनों के नंगे पेट एक-दूसरे से सटे हुए थे।
मैं: ओह्ह… पापा… मेरी मालिश करो… अच्छी तरह…
पापा: ज़ोहरा क्या हम ठीक कर रहे हैं…? एक बाप-बेटी ऐसे करते हैं…
मैं: (धीरे आवाज़ में) कैसे…
पापा: जैसे तू और मैं कपड़ों के बिना एक-दूसरे से चिपके हुए हैं…
मैं: कपड़े पहने तो हैं… मैंने ब्रा और कच्छी और आपने लुंगी… बचपन में तो आपने मुझे बिल्कुल नंगा देखा होगा…
मैं अपने बूब्स पापा की छाती पे रगड़ने लगी…
पापा: बचपन की बात और थी… अब तू जवान है।
मैं: पापा… क्या आपको मेरा जिस्म अच्छा लगा…?
पापा: पर मैं तेरा बाप हूँ…
मैं: हम जो भी करेंगे मैं किसी से न कहूँगी… हम थोड़ा सा ही करेंगे… अब बताओ आपको मेरा जिस्म अच्छा लगा…?
पापा: हाँ… सच कहूँ तो तेरे कूल्हे (हिप्स) बहुत आकर्षक हैं…
ये कहकर पापा मेरे हिप्स को प्रेस करने लगे।
मैं: ओooo… पापा… बदन से बदन की मालिश का मज़ा ही कुछ और है… मेरे कूल्हों को दबाओ…
पापा: ओह्ह… ज़ोहरा… तेरे कूल्हे तो तेरी माँ से भी ज़्यादा अच्छे हैं…
मैं: पापा… आप मेरे ऊपर आ जाओ।
पापा मेरे ऊपर आ गए और मेरी गर्दन (नेक) को चूमने लगे।
मैं: ओoooo… पापा… आई लव यू सो मच… मैं आपसे कितना प्यार करती हूँ ये आप नहीं जानते… चूमो… अपनी बेटी को चूमो।
पापा: ज़ोहरा… तेरे बदन ने मुझे पागल कर दिया है…
मैं: आपकी मालिश ने मुझे भी पागल कर दिया है…
पापा का एक हाथ मेरे बूब पर गया और उसे हल्का-हल्का दबाने लगे… वे मेरी गर्दन और मेरा चेहरा चूमते जा रहे थे…
मैं: पाप्पा… ओoo… आपके चुम्बन मुझे पागल कर देंगे… ये आपका एक हाथ मेरी छाती पर क्यों है… क्या करोगे इसका?
पापा: जी चाहता है तेरी छाती को मसल दूँ…
मैं: ओयमाँ… जो करना है कर लो… मेरी छातियाँ मेरे पापा के काम नहीं तो किसके काम आएँगी… ये ब्रा बाप-बेटी के बीच में आ रहा है… निकाल दो इसे… कर दो मेरे संतरों (ऑरेंजेस) को आज़ाद…
पापा ने मेरा ब्रा निकाल दिया… वो मेरी छाती को देखते ही पागल से हो गए… दोनों हाथों से दोनों बूब्स को दबाने लगे…
पापा: ज़ोहरा… तेरी छातियाँ संतरे नहीं… नारियल (कोकोनट) हैं… कितने बड़े और भरे-भरे।
मैं: ओह्ह… दबाते रहो… कितना मज़ा आ रहा है… मैंने अपने नारियलों में आपके लिए बहुत सारा पानी भरा हुआ है… पियो ना अपनी बेटी का नारियल पानी…
ये कहने की देर थी कि पापा ने मेरे स्टन (बूब) अपने मुँह (माउथ) में ले लिए और चूसने लगे…
मैं: उम्म… आह्ह… ओooo… चूसो… ओoo… मेरे अच्छे पापा… दूध पियो मेरा…
पापा और ज़ोर से मेरे स्टन चूसने लगे… बीच-बीच में मेरे निप्स (निपल्स) को अपने दाँतों (टीथ) से काट रहे थे… जब भी वे मेरे निप्स को काटते, मेरी जान निकल जाती… लेकिन मज़ा आ रहा था…
मैं: ओoमाँ… सारा दूध पी जाओ मेरा… ख़ाली कर दो मेरे दूध के कटोरे… मैं आपकी माँ हूँ, और आप मेरे बेटे हो… मेरे बेटे मेरी छाती से दूध पी मेरी जान…

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मैंने अपना एक हाथ पापा की लुंगी में डाला और लुंगी खोल दी… पापा ने अंदर कच्छा पहना था… पापा मेरा दूध पीने में मगन थे… मेरे निप्स को रुक-रुक के जीभ से चाटते… और दाँतों से काटते…

मैंने पापा की लुंगी में हाथ डाला… और उनके हिप्स को मसलने लगी… सच कहूँ तो मुझे पापा के हिप्स बहुत आकर्षक लगते थे… मैं इमेजिन किया करती थी कि उनके हिप्स कितने बड़े और कितने हार्ड होंगे…

मैंने पापा की सारी लुंगी निकाल दी… अब पापा सिर्फ़ कच्छे में और उनकी बेटी सिर्फ़ पैंटी में… मेरे दोनों हाथ पापा की हिप्स पर थे…

मैं: ओoo पापा… आपका जिस्म कितना कठोर (स्ट्रॉन्ग) है…

पापा: बेटी तेरे अंग जितने मुलायम हैं मेरे अंग उतने ही कठोर हैं… तेरा दूध बड़ा मीठा है… तू ख़ुद भी चीनी है…

बाप-बेटी के नंगे जिस्मों का मिलन और गर्म होता जा रहा था… पापा अब मेरा दूध ख़त्म करके मेरे पेट को चूम रहे थे… वो मेरी नाभि (नेवल) में अपनी जीभ चला रहे थे… मेरी चूत तो पूरी गीली हो चुकी थी… अब पापा मेरी काली पैंटी को चूम रहे थे…

मैं: ओoह्ह… पप्पा… म्म… य्य… ये… आपने… क्या कर दिया… है… मुझसे अब और सहेन नहीं होता… और मत तड़पाओ… ओo… बुझा… बुझा दो मेरी प्यास… बुझा दो अपनी प्यारी बेटी की प्यास…

पापा: अब मुझसे भी और सहेन नहीं हो रहा…

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ये कहके पापा ने पहले मेरी पैंटी निकाल दी… फिर अपना कच्छा… ओह नो… पापा का लौड़ा देखकर मैं घबरा गई… इतना मोटा…

पापा: चल मेरी बेटी…

मैं: ओह्ह… पापा… कितना मोटा डंडा है आपका… मुझे बहुत दर्द होगी।

पापा: थोड़ी दर्द तो होगी… लेकिन कुछ देर बाद अच्छा लगेगा… चल जल्दी कर… डलवा…

मैंने आँखें बंद (क्लोज़) कर लीं… पापा ने एक झटके में मेरी चूत में लौड़ा डाल दिया… मैं दर्द से कराह उठी…

मैं: ओह्ह… पापा… मैं मर जाऊँगी… निकाल लो इसे…

पापा: बस थोड़ी देर की ही बात है… सबर का फल बहुत मीठा होगा…

अब पापा लौड़े को मेरी चूत के अंदर-बाहर करने लगे… आगे… पीछे… आगे… पीछे… अंदर… बाहर… अंदर… बाहर… मुझे मज़ा आने लगा…

मैं: आह्ह… मेरे पापा…

पापा: ओह्ह… ज़ोहरा… मेरी जान… मेरे लौड़े की भूखी…

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मैं: मेरी जान… ले ले मेरी… मेरे हरामी बाप… आआ… ओoo… अपनी बेटी की ले रहा है… इतना मोटा डंडा है तेरा… करता रह अंदर-बाहर… आगे… पीछे… फ्फ…

पापा: आ… म्म… बेटी… तेरी चूत कितनी मज़ेदार है… जितना मुलायम तेरा बदन है… उतनी ही टाइट तेरी चूत है…

मैं: आयी… म्म्म्म… टुक्क… टुक्क्क… लेता रह मेरी… आह्ह… मेरी जान… मेरे बदन की मालिश तो बहुत कर ली… अब मेरे अंदर की मालिश भी कर… ओo पापा… कब से आपके लौड़े के लिए मर रही हूँ…

पापा ने धक्के और तेज़ कर दिए…

मैं: आआ… येह्ह्ह्ह्ह… और… और तेज़… और तेज़ डालो पापा… आआआआआआआआआआआआआआ… मेरा निकलने वाला है…

पापा: उश्श्ह्ह… ईश्ह्ह… आआ…

मैं: आ… ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… म्म्म्म्म्म्म्मा… आआआआआ… आhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh

मैं पूरी मस्ती में… मेरा निकल गया… मुझे इतना मज़ा आज तक नहीं आया था… चूत-रस निकलते समय मैं तो जन्नत में पहुँच गई थी… जब मेरा ऑर्गेज्म ख़त्म हुआ तो पापा ने मेरी चूत से अपना लौड़ा निकाल लिया… और मेरी चूत के ऊपर झड़ दिया… उनका गर्म-गर्म सेमेन का मेरी चूत और पेट पर गिरना बहुत अच्छा लगा…

हम दोनों थक गए थे… इसलिए झड़ते ही कुछ देर बाद सो गए…

सुबह मेरी आँख खुली तो पापा जाग चुके थे… उनके बाथरूम में नहाने की आवाज़ आ रही थी… मैं पूरी नंगी थी पर पापा मेरे ऊपर चादर डाल गए थे…

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मैंने जल्दी से उठकर कपड़े पहने और पापा के लिए नाश्ता बनाने लगी… मैंने स्कर्ट और टाइट टॉप पहना था… घी ख़त्म हो रहा था तो मैं शेल्फ़ पर चढ़ गई ड्रॉअर में से नया पैकेट निकालने के लिए… मैं शेल्फ़ पर चढ़के घी का पैकेट ढूँढ रही थी तभी पापा रसोई (किचन) में आ गए…

पापा: क्या हुआ… क्या ढूँढ रही है…

मैं: पापा वो घी का पैकेट नहीं मिल रहा था।

मैं शेल्फ़ पर खड़ी थी… पापा ज़मीन पर… हमारी शेल्फ़ इतनी ऊँची नहीं थी इसलिए… पापा का फेस मेरी हिप्स की हाइट तक था… मेरी स्कर्ट काफ़ी छोटी थी जिससे मेरी टाँगें नंगी थी… पापा धीरे से मेरे पास आए और मेरी टाँगों पर हाथ फेरने लगे… मैं तो घी निकालने में बिज़ी थी… पापा ने अपना हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर डाल लिया… और मेरी हिप्स को प्रेस करने लगे… मैंने कुछ नहीं कहा… क्यों कहती… पापा स्कर्ट के ऊपर से ही मेरी हिप्स पे किस करने लगे… उन्होंने मेरी स्कर्ट हिप्स से ऊपर कर दी… मैंने कच्छी नहीं पहनी थी… मेरी हिप्स पे किस करने लगे…

मैं: ओह… पापा…

पापा: ज़ोहरा… कल रात तेरे कूल्हों का सेवन (टेस्ट) नहीं किया…

पापा मेरे हिप्स/बट्स को जीभ से चाटने लगे………………………….पापा शेल्फ पर मेरी टांगों के बीच में बैठ गए और मेरी चूत पर जीभ मारने लगे…..मेरे जिस्म में से एक करंट सा दौड़ा..

मैं: ऊउश्श्ह्ह्ह्ह्ह…..ओह..पापा ये क्या कर रहे हो….

पापा: चुप कर…..मुझे नाश्ता करने दे….

मैं: मेरी चूत का नाश्ता…..ऊउम्म…ओओ……..चाटो………….एक बेटी नाश्ते में अपने बाप को अपनी चूत से ज्यादा और क्या दे सकती है……….आआआआआ……पेट भर के खाओ अपनी बेटी की चूत……ओये…………..हाय…..मेरे पिताजी………खालो अपनी बेटी की जवां चूत………..ऊउफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ………………..इसपे आपका ही तो नाम लिखा है……मेरी चूत में अपनी जीभ तो घुस्साओ…….ओओओओओ…

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पापा मेरी चूत में अपनी जीभ घुसा घुसा के चाटने लगे….

पापा: चल अब ज़मीन पर आ जा..

मैं शेल्फ से उतर के ज़मीन पे आ गयी……..पापा ज़मीन पर बैठ गए…मैंने खड़े होकर टांगें खोल ली…पापा ने बैठ कर मेरी टांगों के बीच अपना मुँह (फेस) दे कर कहा..

पापा: चल अब अपने कुल्हे मेरी तरफ कर..

मैंने अपनी हिप्स पापा के फेस की तरफ कर दी

पापा: मेरी जान अब तेरे कुल्हों को चखना है……घुटनों के बल हो जा

मैं डॉगी स्टाइल में आ गयी जिस-से कि मेरी हिप्स आसानी से खुल जायें……………………….पापा ने मेरी दोनों हिप्स को पकड़ कर अलग किया……और मेरे हिप्स के बीच के भाग में जीभ मारने लगे………………मेरी हिप्स के बीच में बाल हैं…..वह उन बालों को भी चाटने लगे…………धीरे धीरे वह मेरे पीछे का छेद (अस्सहोल) चाटने लगे………………

मैं: ओओओह्ह्ह्ह…..पापा…..आई ..लव..यू……….आह्ह…कितना अच्छा लग रहा है……..इस छेद के बारे में तो मैंने खुद भी कभी नहीं सोचा……ओओओ……..अपनी जीभ डालो इसमें…..अपनी बेटी के हर को छेद को भोग लो…………

मैं: जानमैन आप ज़रा लेट जाओ………….मैं आपके मुँह के ऊपर बैठती हूँ

पापा लेट गए और मैं पापा के मुँह के ऊपर पॉटी करने की पोजीशन में बैठ गयी…………मैंने टीवी पर 69 पोजीशन देखी थी………पापा मेरा अस्सहोल चाट रहे थे…उसमें जीभ दे रहे थे….मैंने पापा की लुंगी उतार दी……उन्होंने कच्छा नहीं पहना था…….शायद सोच कर आये थे कि अपनी जवान बेटी को फिरसे चोदना है……….लुंगी उतार कर मैंने पापा का कठोर मोटा लौड़ा हाथ में ले लिया………………फिर थोड़ा झुक कर मैंने लौड़ा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी………………

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पापा: आआआह्ह्ह्ह…………ज़ोहरा………ये तूने कहाँ से सीखा……………ये तो तेरी माँ ने भी आज तक नहीं किया

मैं: पापा सीखा कहीं नहीं….सोचा जब आप नाश्ता कर रहे हो तो मैं भी नाश्ता कर लू…………….जब मैं आपका डंडा चूसती हूँ तो आपको कैसा लगता है ?..

पापा: बहुत अच्छा लगता है………चूसती रह..

मैं फिरसे पापा का लौड़ा चूसने लगी और पापा मेरा पीछे का छेद…………………कुछ देर बाद

पापा: चल बेटी………..चाटना और चूसना बहुत हो गया……अब घुसाने वाला काम किया जाए……….चल अपने दोनों हाथों और घुटनों पर हो जा……….घोड़ी (horse) बन……………

मैं: क्यों साले…….घुसाने के लिए घोड़ी बनने की क्या ज़रूरत है

पापा: तेरे पीछे के छेद में घुसाना है….

मैं: साले कहाँ कहाँ घुसाएगा……….

मैं घोड़ी बन गई…………………पापा ने अपना लौड़ा मेरे टट्टी के छेद पे रखा और धीरे धीरे अंदर करने लगे………मुझे दर्द हो रहा था पर मैं अब कुछ भी रोकना नहीं चाहती थी……इसलिए सोचा दर्द सह लिया जाए……पापा ने पूरा लौड़ा मेरी गांड में डाल दिया………मैं दर्द से कराह उठी..

मैं: ओह्ह……हरामी बाप…..क्या कर दिया ये………मेरी जान निकाल दी…ऊऊऊ….उईईई..

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पापा: मेरी जान थोड़ा सह ले…फिर बहुत मज़ा आएगा कल रात जैसे…….

फिर पापा अंदर बाहर अंदर बाहर करने लगे………….मेरा दर्द भी कम हो गया

मैं: ओऊऊऊऊऊऊ……..पापा……मारो मेरी……..लेलो अपनी बेटी की………..चोद दो मुझे………आगे से भी…पीछे से भी….ऊपर से और नीचे से भी……….आयीी…..रात चूत ली थी…अब गांड लेलो…

पापा: साली….अपने बाप से मालिश करवाती है….तेल लगवाती है………अपने पापा को अपना दूध पिलाती है……और अब अपनी गांड मरवाती है………बेशरम तेरा बदन बहुत मखमली है…….तेरा बाप तेरे जवां बदन का मज़ा लेकर रहेगा..

मैं: तो मैं भी तो यही चाहती हूँ…….आआआआ……मेरे पापा मेरे हर एक छेद में अपना मोटा डंडा घुसाएँ…..मेरे छेदों को अपने डंडे से रोज़ साफ करें…….एक दूसरे के बदन को रोज़ भोगें..

पापा: उफ़ तेरे ये बड़े बड़े गोरे कुल्हे…….तेरी मीठी गांड……

मैं: ईईईई……..पीछे का छेद न होता तो कितना मज़ा अधूरा रह जाता…..कितनी मीठी दर्द है अपने बाप से गांड मरवाने में….

कुछ देर मेरी गांड मारने के बाद पापा ने गांड से निकाल कर लौड़ा मेरी फुद्दी में डाल दिया और फिर शुरू हो गए…

मैं: आआआह्ह….श्ह्ह्ह…..पापा..मेरा एक भी छेद न छोड़ना……

पापा: ज़ोहरा…….मेरी जानमन………मेरी चूतिया बेटी………तेरा हर छेद मक्खन है…..तेरा बदन भी मक्खन है

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मैं: मेरे बेटीचोद पापा……..मेरी जान…………..चोद दो अपनी जवान बेटी को………लेलो इसकी……..मारलो इसकी….बेरहम बन जाओ….बेशरम बन जाओ…….

पापा: मेरी मस्त बेटी…..रोज़ मुझे अपना दूध पिलाएगी न…………मेरी मलाई खाएगी न

मैं: पापा और तेज़…मैं निकलने वाली हूँ…….और तेज़…….yes……..आआआआआय्यी

मैं निकल गई………

कुछ बाद पापा ने मेरी फुद्दी से लौड़ा निकाला……और लौड़ा मेरे मुँह के पास ले आए…..मैंने उनका लौड़ा मुँह में डाल कर उनकी सारी मलाई खाली….

अब मैं और पापा जब मम्मी नहीं होती तो घर में प्यार करते हैं…..और जब मम्मी होती हैं तो खेत में।

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