मेरा नाम स्वीटी है। मैं 23 साल की कुंवारी लड़की हूँ, पंजाब के लुधियाना में अपनी फैमिली के साथ रहती हूँ। मेरे पापा प्राइवेट जॉब करते हैं, दिनभर दफ्तर में मेहनत करते हैं और शाम को थककर घर लौटते हैं। मेरी माँ की तीन साल पहले बीमारी से मौत हो गई थी, तब से घर में बस मैं, पापा, मेरा छोटा भाई और दादी रहते हैं। माँ के जाने के बाद पापा थोड़े चुप-चुप से रहने लगे थे, लेकिन मेरे सामने हमेशा हँसते-बोलते। मैंने कई बार उनकी आँखों में एक अजीब सी उदासी देखी, जैसे कोई कमी सी थी। मैं 23 की हो चुकी थी, कॉलेज में पढ़ती थी, और लड़कियों वाली बातें तो मेरे दिमाग में भी घूमती थीं। दोस्तों के साथ सेक्स की बातें सुनती, पॉर्न के बारे में उनके मुँह से सुनकर मन में एक अजीब सी हलचल होती। लेकिन मैंने कभी ऐसा कुछ करने की हिम्मत नहीं की थी। मेरी चूत में कई बार वो गुदगुदी होती, पर मैं बस अपनी उंगलियों से उसकी खुजली मिटाती थी।
ये बात उस दिन की है जब दादी अपने भाई के साथ वैष्णो देवी दर्शन करने गई थीं। घर में सिर्फ मैं और पापा थे। उस दिन पापा शाम को घर आए, चेहरा थका-थका सा था। मैंने उनके लिए खाना बनाया, हमने साथ बैठकर खाना खाया। पापा ने मेरे हाथ की सब्जी की तारीफ की, बोले, “स्वीटी, तू तो अपनी माँ से भी अच्छा खाना बनाती है।” मैंने हँसकर कहा, “बस पापा, आप तो ऐसे ही बोलते हो।” खाना खाकर पापा अपने कमरे में चले गए, और मैं किचन में बर्तन साफ करने लगी। रात के करीब 8:30 बजे थे, मैं हॉल में बैठकर टीवी पर सीरियल देख रही थी। पुराना सा सोफा, जिसकी सीट थोड़ी फटी हुई थी, उस पर लेटकर मैं सीरियल में डूबी थी। लेकिन सीरियल की कहानी धीमी थी, और मेरी आँखें भारी होने लगीं। अचानक मुझे ख्याल आया कि पापा को दूध देना भूल गई। वो अक्सर रात को दूध पीकर सोते थे, और माँ के जाने के बाद मैं ही ये जिम्मेदारी संभालती थी।
मैंने किचन में जाकर दूध गर्म किया, एक स्टील के गिलास में डाला, थोड़ी शक्कर मिलाई और पापा के कमरे की तरफ चल दी। हमारा घर पुराना सा है, लकड़ी की सीढ़ियाँ चरमराती हैं। पापा का कमरा पहली मंजिल पर है, और उसका दरवाजा हमेशा हल्का सा खुला रहता है। जैसे ही मैं कमरे के पास पहुँची, मुझे कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई दीं। पहले तो लगा शायद टीवी की आवाज है, लेकिन जब मैंने ध्यान से सुना तो वो सिसकारियों जैसी थीं, जैसे कोई औरत आह-आह कर रही हो। मेरे कदम रुक गए, दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मैंने सोचा, शायद पापा कोई फिल्म देख रहे हैं। लेकिन फिर मुझे वो आवाजें कुछ ज्यादा ही कामुक लगीं।
मैंने धीरे से दरवाजे की झिरी से अंदर झाँका। अंदर का नजारा देखकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। पापा बेड पर बैठे थे, उनकी पैंट और अंडरवियर नीचे खिसका हुआ था, और वो अपने लंड को हाथ में पकड़कर हिला रहे थे। टीवी पर एक नंगी औरत किसी मर्द के साथ चुदाई कर रही थी, उसकी सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थीं। पापा का लंड बड़ा और मोटा था, उसका सुपाड़ा चमक रहा था। मैंने पहले कभी असल में लंड नहीं देखा था, बस पॉर्न में देखा था। लेकिन पापा का लंड देखकर मेरे बदन में एक अजीब सी सनसनी दौड़ गई। मैं सहम सी गई, लेकिन मेरी नजरें उनके लंड से हट नहीं रही थीं।
मेरे हाथ में दूध का गिलास था, लेकिन मेरा ध्यान अब टीवी और पापा के लंड पर था। मैंने अनजाने में अपने चूचों को अपनी बांह से दबाना शुरू कर दिया। मेरी साँसें तेज हो रही थीं, और मेरी चूत में वो गुदगुदी फिर से शुरू हो गई। मैंने अपनी पजामी के ऊपर से ही चूत को सहलाना शुरू किया। पापा का लंड ऊपर-नीचे हो रहा था, और मैं उनकी हर हरकत को गौर से देख रही थी। टीवी पर औरत चिल्ला रही थी, “हाँ… और जोर से चोदो… आहह… मेरी चूत फाड़ दो!” पापा शायद इतने डूबे हुए थे कि उन्हें नहीं पता था कि दरवाजा खुला है, और उनकी बेटी बाहर खड़ी उनकी चुदाई की हरकतें देख रही है।
मैंने धीरे से पजामी में हाथ डाला, पैंटी के ऊपर से चूत को रगड़ना शुरू किया। मेरी चूत पहले से ही गीली हो चुकी थी, और उंगली लगते ही एक करंट सा दौड़ गया। मैंने पैंटी के अंदर उंगली डाली, मेरी चूत की फाँकें चिपचिपी हो रही थीं। मेरे अंदर जैसे आग सी भड़क रही थी। मैंने गिलास को फर्श पर रखा और खड़े-खड़े पापा के लंड को देखते हुए चूत में उंगली करने लगी। मेरी सिसकारियाँ दबाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मेरे मुँह से हल्की सी “आह… उह…” की आवाज निकल रही थी। पापा का लंड इतना बड़ा और तना हुआ था कि मेरा मन कर रहा था उसे छू लूँ, लेकिन मैं डर रही थी। मैंने अपनी चूत को और जोर से रगड़ा, मेरी जाँघें काँपने लगीं।
तभी मेरी टाँग गलती से दूध के गिलास से टकरा गई। गिलास छन्न की आवाज के साथ गिर गया, और सारा दूध फर्श पर फैल गया। मेरे तो होश उड़ गए। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, पापा ने फटाक से टीवी बंद किया और दरवाजे की तरफ दौड़े। वो इतनी जल्दी में थे कि पैंट पहनना भूल गए, उनका अंडरवियर जाँघों पर अटका हुआ था, और उनका लंड आधा तना हुआ लटक रहा था। मैं फर्श पर बैठी थी, गिलास उठाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मेरी नजरें उनके लंड पर टिकी थीं। पापा मुझे देखकर भौंचक्के रह गए, और मैं भी शर्म से लाल हो गई।
“स्वीटी… ये… तू… तू यहाँ क्या कर रही है?” पापा ने हकलाते हुए पूछा, लेकिन उनकी आँखों में शर्म के साथ-साथ कुछ और भी था। मैंने देखा कि उनका लंड फिर से तनना शुरू हो गया था। मेरी चूत अभी भी गीली थी, और मैं उनकी बात का जवाब नहीं दे पाई। मैं बस उनके लंड को देखती रही। पापा का लंड अब पूरी तरह खड़ा हो गया था, और वो मेरी नाक के पास झटके मार रहा था। जैसे वो कह रहा हो, “मुझे छू ले, स्वीटी… मुझे अपनी चूत में ले ले।”
मैंने पापा के चेहरे की तरफ देखा। उनकी आँखों में अब शर्म नहीं, हवस थी। मैं थोड़ी और करीब सरकी, मेरा चेहरा उनके लंड के और पास आ गया। पापा के लंड ने और तेज झटके देने शुरू कर दिए। मैंने गिलास छोड़ दिया और धीरे से अपना हाथ उनके लंड पर रख दिया। पापा सिहर उठे, लेकिन वो खड़े रहे। उनका लंड गर्म और सख्त था, जैसे कोई लोहे की रॉड। मैंने उनकी चमड़ी को आगे-पीछे करना शुरू किया। पापा की साँसें तेज हो गईं, वो “सी… आह… स्वीटी…” की आवाजें निकालने लगे। मैं उनके लंड को बच्चों की तरह खिलौना समझकर खेलने लगी। उसका सुपाड़ा चमक रहा था, और उसकी गंध मेरे दिमाग में चढ़ रही थी।
पापा ने अचानक मेरे सिर को पकड़ा और अपना लंड मेरे मुँह में ठूंस दिया। “चूस इसे, स्वीटी… आह… चूस मेरे लंड को,” वो गुर्राए। मैंने पहली बार लंड मुँह में लिया था। उसकी गंध थोड़ी तीखी थी, लेकिन मुझे मजा आ रहा था। मैंने उनकी लार से सना हुआ लंड चूसना शुरू किया। पापा मेरे सिर को पकड़कर लंड को मेरे मुँह में अंदर-बाहर करने लगे। उनका सुपाड़ा मेरे गले तक जा रहा था, और मेरी आँखों में आँसू आ गए। लेकिन मैं रुकना नहीं चाहती थी। मैं उनकी हर धक्के के साथ और उत्तेजित हो रही थी।
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पापा ने मुझे खींचकर बेड पर लिटा दिया और दरवाजा बंद कर दिया। वो मेरे ऊपर चढ़ गए और मेरे होंठों को चूसने लगे। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं उनके चुंबन में खो गई। पापा ने मेरी नाइट ड्रेस को ऊपर खींचा और मेरे चूचों को ब्रा के ऊपर से दबाने लगे। मेरे चूचे बड़े और नरम थे, और पापा उन्हें जोर-जोर से मसल रहे थे। “आह… स्वीटी… तेरे चूचे कितने रसीले हैं… इन्हें चूसने का मन करता है,” पापा ने कहा, और उनकी आवाज में वो हवस थी जो मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी।
मैंने अपनी ब्रा उतार दी, और पापा मेरे निप्पलों पर टूट पड़े। वो मेरे भूरे निप्पलों को चूस रहे थे, हल्के से काट रहे थे। मेरे बदन में करंट दौड़ रहा था। “उई… पापा… आह… धीरे…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। पापा का एक हाथ मेरी पैंटी पर था, वो मेरी चूत को रगड़ रहे थे। मेरी पैंटी पूरी तरह गीली हो चुकी थी। पापा ने मेरी पैंटी उतार दी और मेरी टाँगें फैला दीं। वो मेरी चूत को देखकर बोले, “स्वीटी… तेरी चूत कितनी गुलाबी है… इसे चाटने का मन कर रहा है।”
पापा ने अपनी जीभ मेरी चूत की फाँकों पर रख दी। उनकी गर्म जीभ मेरी चूत को चाट रही थी, और मैं तड़प रही थी। “उई… माँ… पापा… आह… क्या कर रहे हो…” मैं चिल्ला रही थी। पापा मेरी चूत की पंखुड़ियों को चूस रहे थे, उनकी जीभ मेरी चूत के अंदर तक जा रही थी। मैंने उनके सिर को पकड़ लिया और अपनी चूत की तरफ दबाने लगी। मेरी जाँघें काँप रही थीं, और मैं बिस्तर पर मचल रही थी। पापa ने अपनी उंगली मेरी चूत में डाली और उसे अंदर-बाहर करने लगे। “आह… पापा… उई… मेरी चूत… आह…” मैं पागल सी हो रही थी।
पापा ने अपना लंड मेरी चूत पर रखा और मेरे होंठों को चूसते हुए धीरे से धक्का मारा। उनका लंड मेरी कुंवारी चूत में घुसने लगा। मुझे दर्द हुआ, लेकिन पापा ने मेरे मुँह को अपने होंठों से बंद रखा। “हूँ… हूँ… पापा… दर्द हो रहा है…” मैं कराह रही थी। पापा ने एक जोरदार धक्का मारा, और उनका 7 इंच का लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर घुस गया। “मम्मी… उई… माँ…” मैं चीख पड़ी। मेरी चूत से खून निकल रहा था, लेकिन पापा नहीं रुके। वो धीरे-धीरे लंड को अंदर-बाहर करने लगे। दर्द धीरे-धीरे मजा में बदलने लगा। मैं उनकी कमर को पकड़कर उनके धक्कों का जवाब देने लगी। “आह… पापा… चोदो मुझे… और जोर से…” मैं बेकाबू हो रही थी।
पापा ने अपनी स्पीड बढ़ा दी। उनका लंड मेरी चूत को रगड़ रहा था, और कमरे में सिर्फ हमारी सिसकारियाँ और बेड की चरमराहट गूँज रही थी। “स्वीटी बेटी… आह… तेरी चूत कितनी टाइट है… मन कर रहा है तुझे रातभर चोदूँ,” पापा गुर्रा रहे थे। मैं भी उनके लंड को और गहराई तक लेना चाहती थी। “हाँ पापा… चोदो… मेरी चूत फाड़ दो…” मैं चिल्ला रही थी। पापा के धक्के और तेज हो गए, उनका लंड मेरी चूत की दीवारों को रगड़ रहा था। मेरे चूचे हिल रहे थे, और पापा उन्हें मसलते हुए मुझे चोद रहे थे।
करीब 20 मिनट तक पापा ने मुझे चोदा। मेरी चूत दर्द और मजा दोनों से भर गई थी। अचानक पापा की स्पीड और तेज हो गई, और वो “आह… स्वीटी… मैं झड़ने वाला हूँ…” कहते हुए रुक गए। उनका गर्म माल मेरी चूत में छूट गया, और वो मेरे ऊपर ढह गए। मैं भी थककर चूर हो चुकी थी। हम दोनों कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहे। फिर मैंने देखा कि बेड की चादर पर खून और मेरी चूत का रस मिलकर लाल-लाल दाग बना चुके थे। मेरी कुंवारी चूत फट गई थी।
मैं उठी, अपनी पैंटी और नाइट ड्रेस उठाई, और बाथरूम में चली गई। गर्म पानी से अपनी चूत को धोया, लेकिन अंदर हल्का-हल्का दर्द अभी भी था। मन में एक अजीब सा मिश्रण था—शर्म, डर, और मजा। पापा ने मुझे उस रात के बाद कई बार चोदा। हर बार वो मेरी चूत को नए तरीके से चोदते, कभी मेरे चूचों को चूसते, कभी मेरी गांड को सहलाते। मैं भी उनके लंड की दीवानी हो गई थी। सात दिन बाद दादी और भाई वापस आ गए, और हमें मौके कम मिलने लगे। लेकिन जब भी मौका मिलता, पापा मेरी चूत को अपने लंड से भर देते।
छह महीने बाद मेरी जिंदगी में एक लड़का आया। उसका लंड भी पापा जितना ही दमदार था। उसने मुझे अलग-अलग जगहों पर चोदा, लेकिन वो कहानी फिर कभी। पापा के साथ की चुदाई ने मेरी वासना को जगा दिया था, और अब मैं हर रात किसी न किसी लंड के बारे में सोचती हूँ।