Hot Naukrani ke sath chudai हाय दोस्तो, मेरा नाम राघव है। मैं पुणे का रहने वाला हूँ, उम्र 20 साल, कद 5 फीट 10 इंच, रंग गोरा और बदन जिम में पसीना बहाकर थोड़ा गठीला बनाया हुआ। जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही हर जवान दिल में एक आग सी जलती है, वो आग जो चुदाई का पहला स्वाद चखने की तड़प जगाती है। चाहे वो मालिक हो या नौकरानी, लड़का हो या लड़की, हर कोई इस आग में जलता है। मेरी कहानी उस आग की है, जो मेरे दिल में धधक रही थी, और उसका इंधन बनी हमारी नौकरानी चंचल।
चंचल हमारे घर में कई सालों से काम करती थी। वो गाँव से आई थी, उम्र मेरे जितनी ही, यानी 20 साल। गोरा रंग, मासूम चेहरा, और अब जवानी की वजह से उसका बदन एकदम खिल चुका था। उसकी चूचियाँ 34C की थीं, जो हर बार सलवार-कमीज़ में उभरकर मेरी नज़रों को चुराती थीं। उसके चूतड़ भारी और गोल थे, जो चलते वक्त मटकते थे, मानो कोई नाच रहा हो। हम दोनों एक साथ जवान हुए थे, और शायद यही वजह थी कि मेरे मन में उसके लिए कुछ अलग ही ख्याल आने लगे थे।
मैंने दोस्तों से चुदाई की बातें सुनी थीं, ब्लू-फिल्में देखी थीं, लेकिन असल में कभी किसी लड़की को छुआ तक नहीं था। चंचल रोज़ मेरे सामने झाड़ू-पोंछा करती, और मैं चोरी-छिपे उसकी चूचियों को ताकता रहता। जब वो झुकती, तो उसका ब्लाउज नीचे सरकता, और उसकी गहरी खाई मेरे लंड को तड़पाने लगती। हर रात मैं बिस्तर पर लेटकर चंचल के बारे में सोचता, उसकी नंगी तस्वीर अपने दिमाग में बनाता, और मुठ मारकर अपनी आग शांत करता। लेकिन मन में बस एक ही ख्याल था- कब चंचल की चूत को चोदने का मौका मिलेगा?
मैं हमेशा चंचल को चोदने के सपने देखता, लेकिन न तो हिम्मत थी, न मौका। फिर एक दिन चंचल तीन महीने के लिए अपने गाँव चली गई। जब वो वापस आई, तो मैं उसे देखकर दंग रह गया। हमेशा सलवार-कमीज़ में दिखने वाली चंचल अब साड़ी में थी। उसकी साड़ी में लिपटा बदन किसी अप्सरा जैसा लग रहा था। उसकी चूचियाँ पहले से भी ज्यादा उभरी हुई थीं, शायद टाइट ब्लाउज की वजह से, या शायद सचमुच और बड़ी हो गई थीं। उसकी कमर पतली और चूतड़ इतने भारी कि साड़ी में मटकते हुए ऐसा लगता था, जैसे कोई मुझे जानबूझकर ललचा रहा हो। पता चला कि उसकी शादी तय हो चुकी थी, और शायद इसीलिए वो अब साड़ी पहनने लगी थी।
चंचल का रवैया भी बदल गया था। पहले वो मुझसे हँसकर बात करती थी, लेकिन अब उसकी नज़रों में कुछ और ही बात थी। वो मेरे आस-पास ज्यादा घूमती, झाड़ू लगाते वक्त जानबूझकर अपनी चूचियाँ दिखाती। उसकी साड़ी का पल्लू बार-बार सरकता, और मैं उसकी गोरी कमर और उभरी चूचियों को देखकर पागल हो जाता। मेरा लंड तो बस चंचल की बुर में घुसने को बेताब था, लेकिन मैं अभी भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
फिर एक दिन मौका मिल ही गया। मेरे मम्मी-पापा को किसी रिश्तेदार की शादी में एक हफ्ते के लिए जाना था। घर में सिर्फ मैं और चंचल रहने वाले थे। मम्मी-पापा को हम पर पूरा भरोसा था। उन्हें लगता था कि चंचल और मेरे बीच ऐसा कुछ हो ही नहीं सकता। वो बिना किसी शक के शादी में चले गए, और मैं मन ही मन खुश हो रहा था कि अब सात दिन तक चंचल के साथ अकेले रहने का मौका है।
उस दिन दोपहर को मैं कॉलेज से वापस आया। गर्मी बहुत थी, और घर में सन्नाटा। मैंने देखा चंचल रसोई में थी, लेकिन उसने साड़ी नहीं पहनी थी। सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में थी। उसका पेटीकोट कमर तक खोंसा हुआ था, और उसकी गोरी, चिकनी टाँगें साफ दिख रही थीं। उसका ब्लाउज इतना टाइट था कि उसकी चूचियाँ बाहर निकलने को बेताब थीं। उसकी गोरी कमर और भारी चूतड़ों को देखकर मेरा लंड पैंट में तन गया, और ऐसा लगा जैसे वो अभी फट जाएगा।
मैं ड्राइंग रूम में जाकर सोफे पर बैठ गया और चंचल को खाना लाने को कहा। जब चंचल खाना लेकर आई, तो मैंने देखा कि उसने गहरे गले का ब्लाउज पहना था, जिसमें से उसकी आधी चूचियाँ बाहर झाँक रही थीं। उसकी गोरी चूचियों के बीच की गहरी खाई को देखकर मेरा लंड पैंट में तंबू बनाकर खड़ा हो गया। मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और खाना खाने लगा। चंचल मेरे सामने सोफे पर बैठ गई। उसने अपना पेटीकोट कमर में खोंसा हुआ था, जिससे उसकी चिकनी टाँगें घुटनों तक नज़र आ रही थीं।
खाना खाते वक्त मेरी नज़र चंचल पर गई, और मैं सन्न रह गया। चंचल ने अपनी टाँगें फैलाकर बैठ रखा था, और उसका पेटीकोट जाँघों तक उठा हुआ था। उसकी गोरी, चिकनी जाँघें देखकर मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। ऐसा लगा कि मैं पैंट में ही झड़ जाऊँगा। चंचल मुझे देखकर हल्के से मुस्कुराई और बोली, “और कुछ लोगे क्या, राघव?”
मैंने हड़बड़ाते हुए ‘ना’ में सिर हिलाया और चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खत्म करने के बाद मैं अपने कमरे में चला गया। चंचल मेरे पीछे-पीछे आई और बोली, “क्या हुआ राघव? खाना अच्छा नहीं लगा क्या?”
मैंने कहा, “नहीं चंचल, खाना तो बहुत अच्छा था।”
वो हँसते हुए बोली, “तो फिर इतनी जल्दी कमरे में क्यों आ गए? जो देखा वो पसंद नहीं आया क्या?” ये कहते हुए उसने अपने पेटीकोट के ऊपर से अपनी बुर पर हाथ फेरा। उसकी आँखों में शरारत थी, और मैं समझ गया कि चंचल भी चुदाई का खेल खेलने को तैयार है।
मेरे अंदर की आग और भड़क उठी। मैंने हिम्मत जुटाई और धीरे से चंचल के पास गया। उसे अपनी बाँहों में भर लिया और बिना कुछ बोले उसके होंठों को चूमने लगा। चंचल भी मुझसे लिपट गई। उसने मेरे होंठों को ऐसे चूमा जैसे बरसों की प्यासी हो। वो मेरे कान के पास फुसफुसाई, “राघव, मैं तुम्हारी प्यास में मर रही थी। मुझे जवानी का असली मज़ा दे दो।”
उसकी बात सुनकर मेरा लंड और सख्त हो गया। मैंने चंचल को अपनी गोद में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया। वो हँसते हुए बोली, “अरे, इतनी जल्दी क्या है, मेरे राजा?” मैंने उसकी साड़ी का पल्लू हटाया और उसका ब्लाउज खोलने लगा। उसका गोरा बदन मेरे सामने था, और उसकी चूचियाँ काले ब्लाउज में कैद थीं। मैंने उसका ब्लाउज उतारा, और उसकी काली ब्रा में उसकी चूचियाँ और भी सेक्सी लग रही थीं। मैंने जल्दी से अपनी शर्ट और पैंट उतार दी, और अब मैं सिर्फ अंडरवियर में था।
चंचल ने मेरे लंड को अंडरवियर के ऊपर से सहलाया और बोली, “हाय राघव, तुम्हारा लंड तो बड़ा मोटा है। आज तो मेरी बुर की खैर नहीं।” उसकी बात सुनकर मैं और जोश में आ गया। मैंने उसकी ब्रा के हुक खोले, और उसकी गोरी चूचियाँ आज़ाद हो गईं। वो 34C की चूचियाँ फड़फड़ाने लगीं, और उनके गुलाबी निप्पल्स ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने चेरी रख दी हो। मैंने उसकी एक चूची को अपने मुँह में लिया और चूसने लगा। “आह्ह… राघव… और चूसो… ओह्ह…” चंचल सिसकारियाँ भरने लगी। मैंने उसकी दूसरी चूची को अपने हाथ से मसला, और उसका निप्पल मेरी उंगलियों के बीच दब गया।
चंचल की सिसकारियाँ तेज हो रही थीं। “उम्म… राघव… और जोर से… आह्ह…” मैंने उसका पेटीकोट खींचकर उतार दिया। अब वो सिर्फ काली चड्डी में थी। उसकी गोरी जाँघें और चिकनी बुर की शेप उस चड्डी में साफ दिख रही थी। मैंने उसकी चड्डी पर हाथ फेरा, और वो गीली हो चुकी थी। चंचल ने मेरी तरफ देखा और बोली, “राघव, अब और मत तड़पाओ… मेरी बुर को चाटो ना…”
मैंने उसकी चड्डी उतारी, और उसकी गुलाबी बुर मेरे सामने थी। एकदम चिकनी, बिना झाँटों की, जैसे कोई गुलाब की पंखुड़ियाँ। मैंने पहली बार किसी की बुर इतने करीब से देखी थी। मेरा दिमाग सुन्न हो गया। चंचल ने मेरा सिर पकड़ा और अपनी बुर पर रख दिया। “चाटो ना, राघव… मेरी बुर को चूसो…” उसकी आवाज़ में तड़प थी। मैंने अपनी जीभ उसकी बुर पर रखी और चाटना शुरू किया। उसका नमकीन स्वाद मेरे मुँह में घुल गया। “आह्ह… उम्म… राघव… और अंदर… ओह्ह…” चंचल की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। मैंने अपनी जीभ को उसकी बुर के अंदर तक डाला, और उसका रस पीने लगा। उसकी बुर गर्म और गीली थी, और हर चाट के साथ वो और तड़प रही थी।
करीब 15 मिनट तक मैं उसकी बुर चाटता रहा। “पच-पच” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी, और चंचल की सिसकारियाँ तेज हो रही थीं। “आह्ह… राघव… अब बर्दाश्त नहीं होता… डाल दो अपना लंड… मेरी बुर की आग बुझाओ…” उसकी बात सुनकर मैंने अपना अंडरवियर उतारा। मेरा 7 इंच का लंड लोहे की तरह सख्त था। चंचल ने उसे देखा और बोली, “हाय राम… इतना बड़ा… मेरी बुर तो फट जाएगी…” लेकिन उसकी आँखों में शरारत थी।
मैंने उसकी टाँगें फैलाईं और अपना लंड उसकी बुर के मुँह पर रखा। उसकी बुर इतनी गर्म थी कि लगा जैसे मेरा लंड जल जाएगा। मैंने धीरे से धक्का मारा, लेकिन लंड अंदर नहीं गया। मुझे अनुभव नहीं था, और चंचल की बुर भी टाइट थी। मैं थोड़ा झेंप गया। चंचल हँसते हुए बोली, “अरे मेरे बुद्धू, थोड़ा प्यार से कर… जरा वैसलीन लगा अपने लंड पर…”
मैंने वैसलीन निकाली और अपने लंड पर खूब सारी क्रीम लगाई। फिर उसकी टाँगें और चौड़ी कीं और अपना लंड उसकी बुर के छेद पर टिकाया। “आह्ह… राघव… धीरे…” चंचल ने कहा। मैंने उसकी कमर पकड़ी और एक जोरदार धक्का मारा। “चटाक” की आवाज़ के साथ मेरा लंड आधा अंदर घुस गया। चंचल चीख पड़ी, “उई माँ… आराम से… मेरी बुर फट गई…” उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वो मुस्कुरा भी रही थी।
मैंने देखा कि उसकी बुर से हल्का सा खून निकल रहा था। मैं घबरा गया और बोला, “चंचल, बहुत दर्द हो रहा है क्या? निकाल लूँ?”
वो कराहते हुए बोली, “नहीं राघव… ये पहली बार का दर्द है… आह्ह… बस पेलते रहो… मज़ा आएगा…” मैंने धीरे-धीरे धक्के मारना शुरू किया। उसकी बुर अब गीली हो चुकी थी, और मेरा लंड आसानी से अंदर-बाहर होने लगा। “पच-पच… फच-फच…” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। चंचल की सिसकारियाँ तेज हो रही थीं, “आह्ह… उम्म… और जोर से… पेलो मेरी बुर को… फाड़ दो इसे…”
मैंने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। हर धक्के के साथ उसकी चूचियाँ उछल रही थीं, और उसकी सिसकारियाँ मेरे जोश को दोगुना कर रही थीं। “आह्ह… राघव… और अंदर… ओह्ह… मेरी बुर को चोद डालो…” चंचल अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर मेरा साथ दे रही थी। मैंने उसकी कमर को और सख्ती से पकड़ा और पूरी ताकत से पेलना शुरू किया। “फट-फट… पच-पच…” की आवाज़ तेज हो गई। चंचल की बुर मेरे लंड को जकड़ रही थी, जैसे वो उसे निचोड़ना चाहती हो।
करीब 20 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद मुझे लगा कि मेरा लंड फटने वाला है। मैंने कहा, “चंचल… कुछ हो रहा है… मेरा पानी निकलने वाला है…”
वो चीखी, “आह्ह… मेरी बुर में ही निकालो… मैं भी झड़ रही हूँ… उम्म… आह्ह…” बस, अगले ही पल मेरे लंड से पिचकारी छूटी, और मैंने चंचल की बुर को अपने माल से भर दिया। चंचल भी तड़प उठी और मुझे अपने सीने से भींच लिया। उसकी बुर ने मेरे लंड को और सख्ती से जकड़ लिया, जैसे वो मेरा सारा माल निचोड़ लेना चाहती हो।
हम दोनों थककर निढाल हो गए। मैं चंचल के ऊपर ही लेट गया, और हम दोनों की साँसें तेज़-तेज़ चल रही थीं। कुछ मिनट बाद हम शांत हुए और एक-दूसरे से लिपटकर लेट गए। मेरी पहली चुदाई का अनुभव इतना जबरदस्त था कि मेरे पास उठने की ताकत भी नहीं बची थी।
एक घंटे बाद चंचल उठी और अपने कपड़े पहनने लगी। मेरा लंड फिर से तन गया, और मैंने उसे फिर से बिस्तर पर खींच लिया। वो हँसते हुए बोली, “अरे मेरे राजा, अभी तो पूरा हफ्ता बाकी है। इतनी जल्दी क्या है? मैं तुझे और मज़ा दूँगी।”
उसके बाद पूरे हफ्ते हमने अलग-अलग तरीकों से चुदाई का खेल खेला।
आपको मेरी और चंचल की पहली चुदाई की कहानी कैसी लगी? कमेंट में ज़रूर बताएँ।