Neighbor sex story – Rooftop fucking sex story – Bhabhi ko pel diya sex story: हेलो दोस्तों, मैं अरशद। आज वो पूरी कहानी बताने जा रहा हूँ जो तीन-चार महीने पहले शुरू हुई थी और आज तक चल रही है। सब कुछ इतना साफ-साफ याद है जैसे कल की बात हो।
हमारे घर के ठीक बगल में एक तीन मंजिला मकान है। नीचे दो फ्लैट में किराएदार रहते हैं और सबसे ऊपर वाली छत पर एक परिवार रहता है। पति का नाम शकील है, गाँव-कस्बे का व्यापार है, हफ्ते में तीन-चार दिन बाहर रहता है। उसकी बीवी का नाम मैं उस वक़्त तक नहीं जानता था, बस इतना पता था कि एक छह-सात साल का बेटा है, सोनू। वो औरत देखने में साँवली थी, लेकिन जिस्म ऐसा कि रात को सपने में भी लंड खड़ा हो जाए। चेहरा साधारण, पर चूचियाँ भारी, गाँड़ उभरी हुई, कमर पतली। उम्र करीब 32-33 के आसपास होगी।
एक दिन दोपहर के करीब डेढ़ बजे थे। मैं गर्लफ्रेंड से फोन पर बात कर रहा था। वो मूड में थी, फोन सेक्स करने लगी। मैं छत पर टहलते-टहलते गरम हो गया था। उसने पूछा, “क्या कर रहे हो जान?” मैंने मज़ाक में कहा, “नहाने जा रहा हूँ।” वो और उत्तेजित हो गई, गंदी बातें करने लगी। अचानक फोन कट गया। मैं पूरा जोश में था, लंड लोअर में तना हुआ। सोचा नीचे जाकर मूठ मार लूँ फिर नहा लूँगा।
घर में कोई नहीं था, मम्मी-पापा बाहर गए थे। मैं बाथरूम में घुसा, दरवाज़ा खुला ही छोड़ा। लोअर-पैंट उतारी, लंड बाहर आया तो देखा झांटें बहुत बड़ी हो गई हैं। सोचा पहले साफ कर लूँ। रेज़र और क्रीम निकाली। जैसे ही नीचे झुका, नज़र बाहर की तरफ़ गई। ऊपर वाले फ्लोर की खिड़की से वो औरत मुझे देख रही थी। उसने हल्की गुलाबी सलवार-कमीज़ पहनी थी, दुपट्टा सिर पर था। मेरी नज़र उससे मिली तो वो हड़बड़ा कर पीछे हटी, लेकिन वापस झाँकने लगी।
मैंने सोचा आज मौक़ा है। मैंने जानबूझकर सब धीरे-धीरे किया। पहले लंड को हल्का-हल्का हिलाया, फिर क्रीम लगाकर झांटें साफ करने लगा। बीच-बीच में ऊपर देखता। वो अब खुलकर देख रही थी। उसने एक हाथ अपनी चूची पर रखा और हल्के-हल्के दबाने लगी। दूसरा हाथ पेट पर से नीचे ले गई। कुछ देर बाद वो अंदर चली गई। मैंने अपना काम पूरा किया, नहाया और बाहर आ गया। उस दिन रात भर उसकी साँवली चूचियाँ और भरी गाँड़ दिमाग में घूमती रहीं।
अगले दिन दोपहर में मैं दोस्त से बात करते हुए छत पर गया। वो वहाँ कपड़े सुखा रही थी। मेरी नज़र मिली तो उसने शरमाते हुए मुस्कान दी। मैंने भी हल्का सा स्माइल किया और नीचे आ गया। फिर दो-तीन दिन ऐसे ही नज़रों का खेल चलता रहा। कभी वो छत पर आती, मैं भी ऊपर चला जाता। कभी वो मुझे देखकर होंठ चबाती, कभी मैं लंड को लोअर में हल्का दबाकर दिखाता।
एक दिन वो किसी रिश्तेदार से फोन पर बात कर रही थी। मैं छत पर गया तो उसने ज़ोर से कहा, “हाँ दीदी, कुछ मर्द बिना कपड़ों के ज़्यादा हॉट लगते हैं।” फिर मेरी तरफ देखकर हँस दी। मैं समझ गया कि ये इशारा मेरे लिए ही है।
फिर वो दिन आया जब घर में फिर कोई नहीं था। मैं जानबूझकर दोपहर ढाई बजे बाथरूम में गया। दरवाज़ा खुला छोड़ा। खिड़की से देखा तो वो कुर्सी मेरी तरफ घुमाकर बैठ गई। मैंने आराम से कपड़े उतारे। लंड पूरा तना हुआ था। मैंने पहले उसे दोनों हाथों से पकड़कर हल्का-हल्का हिलाया, टोपे को रगड़ा, गोटों से खेला। फिर खूब देर तक मूठ मारी। उसकी नज़र एक सेकंड को भी नहीं हटी। वो होंठ चबा रही थी, एक हाथ अपनी चूची पर था।
मैंने छत पर जाकर फोन का नाटक किया। वो मुस्कुराई और बोली, “ऐसे हाथ से करते रहोगे तो हाथ दर्द करने लगेगा, कभी हमारे होंठों को भी आइसक्रीम खिलाया करो।” कहकर शरमाते हुए अंदर चली गई। मेरे तो मन में लड्डू फूटने लगे।
अगले दिन मैं फिर ऊपर गया। पूछा, “कल आप क्या कह रही थीं?” उसने आँखें मारते हुए कहा, “रात में आओ, सब समझा दूँगी।” मैंने पूछा, “पति नहीं होंगे?” बोली, “नहीं, गाँव गए हैं, दो-तीन दिन बाद आएँगे।”
शाम सात बजे मैं छत पर गया। हमारी छतें जुड़ी हुई हैं, बीच में सिर्फ़ एक फुट की दीवार थी। मैंने छलाँग लगाई और उसकी छत पर पहुँच गया। वो दरवाज़े पर खड़ी थी, हल्की गुलाबी नाइटी पहने, बाल खोले हुए। उसने मुझे अंदर ले जाकर वो कोना दिखाया जहाँ से मेरा पूरा बाथरूम साफ दिखता था। मैं मुस्कुराया, कुछ राज़ राज़ ही अच्छे लगते हैं।
फिर वो सीधे मुद्दे पर आई, “बताओ ना, कितने दिन में साफ करते हो अपना जंगल? दूर से तो बस छोटी सी टहनी दिखती है, पास से दिखाओ ना, नारियल का पेड़ है या केले का तना?” मैंने हँसते हुए कहा, “देख लो, लेकिन हमें भी तो अपने अंगूरों के दर्शन कराओ।” वो बोली, “कोई आ जाएगा।” मैंने कहा, “दरवाज़ा बंद करके आ जाओ।”
वो दरवाज़ा बंद करके आई तो बोली, “यहाँ सोनू सो रहा है, कहीं हमारी कुश्ती से उठ न जाए।” मैंने कहा, “चलो छत पर चलते हैं, वहाँ खुलकर बैटिंग होगी।”
छत पर पहुँचे तो हल्की ठंडी हवा चल रही थी। वो मेरे पास आई और धीरे से बोली, “अगर सिर्फ़ खड़े होने आए हो तो नीचे चलते हैं, अगर चादर बिछाने का इरादा है तो अब तक खड़े क्यों हो?”
ये सुनते ही मेरे अंदर की आग भड़क गई। मैंने उसे कमर से पकड़कर अपनी तरफ खींचा और उसके मक्खन जैसे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो सिहर गई, “आह… अरशद…” उसने ब्रा नहीं पहनी थी, उसके मम्मे मेरे सीने से दबकर और सख्त हो गए। मैंने उसके होंठ चूसते हुए उसकी पीठ पर हाथ फेरा। वो भी मेरा साथ देने लगी।
मैंने धीरे-धीरे उसकी नाइटी ऊपर उठाई और सिर के ऊपर से निकाल दी। अब वो सिर्फ़ काली पैंटी में थी। उसके मम्मे भारी और निप्पल काले-गुलाबी। मैंने एक चूची मुँह में ली और चूसने लगा। वो सिसकारी, “आह्ह… ह्ह्ह… कितना अच्छा लग रहा है…” मैंने दूसरी चूची को हाथ से मसलते हुए निप्पल को उँगलियों से चिकोटा।
फिर मैंने उसे दीवार से सटा दिया और घुटनों पर बैठ गया। उसकी पैंटी के ऊपर से ही चूत को सूँघा, गंध इतनी तेज़ थी कि लंड फटने को हो गया। मैंने पैंटी का एलास्टिक नीचे किया और उसकी चिकनी चूत सामने थी। झांटें एकदम साफ़। मैंने जीभ से हल्का सा छुआ तो वो काँप गई, “ओह्ह… अरशद… कोई ऐसा करता है क्या…”
मैंने कहा, “बस मज़ा आने वाला है।” फिर मैंने उसकी चूत चाटनी शुरू की। जीभ अंदर-बाहर, क्लिट पर गोल-गोल। वो पागल हो गई, “आअह्ह्ह… ह्हीईई… खा जाओ मुझे… ऊउइइइ…” मैंने दो उँगलियाँ अंदर डालीं और तेज़ी से अंदर-बाहर करने लगा। उसकी चूत से चिपचिपी आवाज़ आने लगी।
फिर वो मेरे सर को दबाते हुए बोली, “अब मैं भी तो कुछ करूँ…” उसने मुझे खींचकर खड़ा किया और मेरा लोअर-पैंट एक साथ नीचे कर दिया। मेरा लंड बाहर आया तो वो चौंक गई, “अरे बाप रे… इतना मोटा… मेरा क्या होगा?” मैंने कहा, “बस मज़ा आएगा।”
उसने घुटनों पर बैठकर पहले लंड को प्यार से किस किया, फिर टोपे को मुँह में लिया और चूसने लगी। ग्ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग्ग… गीईई… गों गों गोग गोग… आवाज़ें आने लगी। वो आधा लंड मुँह में ले रही थी, बाकी हाथ से हिला रही थी। मैंने उसके बाल पकड़कर और अंदर धकेला। वो खाँसने लगी पर रुकी नहीं।
फिर हम 69 की पोज़ीशन में आ गए। मैं नीचे लेटा, वो मेरे मुँह पर चूत रखकर लंड चूसने लगी। मैंने उसकी गाँड़ फैलाकर जीभ से छेद तक चाटा। वो चिल्लाई, “आअह्ह्ह… गंदा मत करो… ऊईई माँ…” पर कमर और नीचे कर रही थी। पाँच-सात मिनट बाद वो झड़ने लगी, “बस्स… आ गया… आअह्ह्ह्ह्ह…” उसका रस मेरे मुँह में गिरने लगा। मैं भी उसके मुँह में झर गया।
दस-पंद्रह मिनट बाद मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। वो मेरे लंड से खेल रही थी। मैंने उसे उठाया और दीवार से सटाकर खड़ा किया। उसकी एक टाँग उठाकर लंड चूत पर रगड़ने लगा। वो गिड़गिड़ाने लगी, “अब डाल भी दो ना… और कितना तड़पाओगे…”
मैंने उसकी टाँगें चौड़ी कीं और लंड का सुपारा चूत पर रखा। एक हल्का सा धक्का मारा तो सुपारा अंदर चला गया। वो सिसकारी, “आअह्ह… धीरे से… बहुत मोटा है…” मैंने धीरे-धीरे पूरा लंड अंदर उतारा। उसकी चूत बहुत टाइट थी। फिर मैंने धीरे-धीरे धक्के देने शुरू किए। वो आह्ह… ह्ह्ह… कर रही थी।
धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाई। कभी तेज़, कभी धीरे। कभी उसकी चूचियाँ मसलता, कभी गाँड़ दबाता। वो भी कमर उछालकर साथ दे रही थी। करीब पंद्रह मिनट बाद वो फिर झड़ गई, “आअह्ह्ह… मर गई… ऊईईई…” मैंने भी उसकी चूत में पूरा माल छोड़ दिया।
हम दोनों वहीं छत पर लेट गए। वो मेरे सीने पर सर रखकर मेरे लंड से खेल रही थी। बोली, “आज तक किसी ने ऐसा मज़ा नहीं दिया।” मैंने कहा, “अब तो जब भी मौक़ा मिलेगा, कर लेंगे।”
तब से जब भी उसका पति बाहर होता है, हमारा प्रोग्राम पक्का रहता है। कभी छत पर, कभी उसके कमरे में, कभी बाथरूम में।
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