पड़ोसन की सील पैक बेटी

जब मैं आगरा से ट्रांसफर होकर कानपुर आया, तो नया शहर मेरे लिए नई चाहतों का सबब बन गया। मैंने जो मकान किराए पर लिया, उसके ठीक सामने गुप्ताइन का घर था। गुप्ताइन, यानी मिसेज गुप्ता, 45 साल की थीं, लेकिन उनका मेन्टेनेंस ऐसा कि 40 की भी नहीं लगती थीं। चुस्त साड़ी में लिपटी उनकी भरी हुई कमर, गोरा चेहरा, और वो हल्की सी मुस्कान—दिल को चुराने के लिए काफी थी। गुप्ता जी बैंक में मैनेजर थे, सख्त मिजाज और हमेशा काम में डूबे रहने वाले। उनका एक बेटा था, 20-22 साल का, ग्रेजुएशन पूरा करके नौकरी की तलाश में भटक रहा था। और फिर थी उनकी बेटी, डॉली, 18 साल की, इंटर में पढ़ने वाली, जिसके बारे में सोचते ही मेरा दिल और लंड दोनों बेकाबू हो जाते थे।

शुरुआत में मेरा टारगेट गुप्ताइन थीं। उनकी वो गदराई चूचियाँ, जो साड़ी के नीचे उभरती थीं, और वो चाल, जो हर कदम पर उनके चूतड़ों को हिलाती थी—सब कुछ मेरे दिमाग में चुदाई का तूफान ला रहा था। लेकिन धीरे-धीरे मेरा ध्यान डॉली पर चला गया। वो कोई फिल्मी हसीना नहीं थी—दुबला-पतला शरीर, सांवला रंग, और 5 फीट 6-7 इंच का कद। लेकिन उसकी आँखें, वो बोलती हुई, शरारत भरी आँखें, और वो मुस्कुराते होंठ—बस, यही मेरे दिल में आग लगाने के लिए काफी थे। उसकी छोटी-छोटी चूचियाँ, जो टाइट कुर्ते में सख्त निप्पल्स के साथ उभरती थीं, और वो हल्के से उभरे हुए चूतड़—हर बार उसे देखकर मेरा लंड सलामी देने लगता था।

एक सुबह मैं कार निकाल रहा था। हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। सामने देखा तो गुप्ता जी स्कूटर निकाल रहे थे, और डॉली छाता लिए खड़ी थी, उसका कुर्ता बारिश में हल्का-हल्का गीला होकर उसके जिस्म से चिपक गया था। मैंने मौका देखकर पूछा, “गुप्ता जी, सुबह-सुबह कहाँ?”
उन्होंने बताया, “डॉली का एग्जाम है, स्कूल तक छोड़ने जा रहा हूँ।”
मैंने तुरंत कहा, “अरे, मैं तो उधर ही जा रहा हूँ। डॉली को छोड़ दूँगा।”
थोड़ी ना-नुकुर के बाद गुप्ता जी मान गए, और डॉली मेरी कार में आ बैठी। उसने हल्का सा शरमाते हुए अपनी आँखें झुकाईं, लेकिन उसकी मुस्कान में कुछ शरारत थी। रास्ते में मैंने उससे स्कूल, दोस्तों, और थोड़ी मस्ती भरी बातें कीं। उसकी हंसी और वो मासूम जवाब मेरे लंड को और उकसा रहे थे।

इसके बाद कई बार मैंने डॉली को स्कूल ड्रॉप किया। हर बार वो मेरी कार में बैठती, अपने बालों को सहलाती, और मेरी बातों पर हल्का-हल्का हँसती। गुप्ताइन भी मुझे देखकर मुस्कुराने लगी थीं, जैसे मेरी मदद से खुश हों। लेकिन मेरा मन अब पूरी तरह डॉली पर अटक चुका था। उसकी वो टाइट चूचियाँ, सांवली चमकती त्वचा, और वो मासूमियत भरी शरारत—सब कुछ मुझे उसकी चुदाई के सपनों में खींच रहा था।

एक दिन गुप्ता जी ने बताया कि शनिवार को डॉली का एक पेपर लखनऊ में है। उन्हें खुद लेकर जाना था, लेकिन मैंने मौका लपक लिया। “गुप्ता जी, मैं तो शनिवार को लखनऊ जा रहा हूँ। दो घंटे का काम है। डॉली को सेंटर ड्रॉप कर दूँगा और वापसी में ले आऊँगा।” गुप्ता जी पहले हिचकिचाए, लेकिन मेरी बातों ने उन्हें मना लिया। अब मेरे दिमाग में बस एक ही खयाल था—डॉली की चूत को अपने लंड से रगड़ने का मौका।

शनिवार सुबह सात बजे मैं और डॉली लखनऊ के लिए निकल पड़े। उसने टाइट जींस और कुर्ता पहना था, जो उसके जिस्म को और उभार रहा था। उसकी चूचियाँ कुर्ते में सख्त निप्पल्स के साथ दिख रही थीं, और उसकी जींस में चूतड़ इतने टाइट कि हर कदम पर मेरी नजरें वहाँ अटक रही थीं। रास्ते में हम एक ढाबे पर रुके, चाय और गरम-गरम पराठे खाए। मैंने उससे उसकी जिंदगी की बातें पूछीं—वो अपने सख्त पापा से थोड़ी आजादी चाहती थी, और उसकी बातों में एक बगावती रंग था। मैं उसकी आँखों में देखकर हल्का-हल्का मजाक करता, और वो हँसकर जवाब देती। उसकी हंसी मेरे लंड को बार-बार खड़ा कर रही थी।

लगभग नौ बजे हम सेंटर पहुँचे। डॉली ने मेरे फोन से गुप्ताइन को फोन करके बताया कि वो पहुँच गई है। साढ़े नौ बजे वो पेपर देने अंदर चली गई। मैंने मौका देखकर एक अच्छे होटल में कमरा बुक किया, बैग रखा, और अपनी चुदाई की योजना को पक्का करने लगा। एक बजे डॉली का पेपर खत्म हुआ। वो बाहर आई, कार में बैठी, और खुशी से उछलकर बोली, “पेपर बहुत अच्छा हुआ!”
मैंने उसकी तारीफ की और कहा, “चल, पहले कुछ खाना खा लें। भूख लगी है।”

हम एक शानदार रेस्टोरेंट में गए। खाने के दौरान मैंने मजाक में कहा, “मेरा काम अभी पूरा नहीं हुआ। शायद रात को रुकना पड़े। मेरी दीदी यहाँ लखनऊ में रहती हैं, उनके घर रुक जाएँगे।” डॉली ने हामी भर दी और गुप्ताइन को फोन करके बता दिया। मैंने भी गुप्ताइन से बात करके उन्हें भरोसा दिलाया। लेकिन मेरे दिमाग में दीदी का घर नहीं, बल्कि होटल का कमरा था।

खाने के बाद मैंने कहा, “चार घंटे का टाइम कैसे काटें? चल, मॉल में पिक्चर देखते हैं।” डॉली को मेरा खुला खर्चा और स्टाइल पसंद आ रहा था। हमने एक रोमांटिक फिल्म देखी, पॉपकॉर्न खाया, और मैंने उसे एक टाइट मिडी ड्रेस गिफ्ट की। वो ड्रेस उसके सांवले जिस्म पर गजब ढा रही थी। उसकी आँखों में चमक थी, और मुझे लग रहा था कि वो मेरे करीब आने को तैयार है।

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शाम के सात बज गए। मैंने एक फर्जी कॉल का नाटक किया और कहा, “मेरा काम नहीं हुआ। रात रुकना पड़ेगा। दीदी का घर लखनऊ के दूसरे छोर पर है, इतनी दूर जाने से बेहतर है कि यहीं होटल में रुक जाएँ। होटल का मजा ही अलग होता है।” डॉली ने हल्का सा मुस्कुराकर हामी भर दी। मैंने गाड़ी होटल की तरफ मोड़ दी।

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होटल के कमरे में पहुँचते ही मैंने पूछा, “कमरा कैसा है?”
वो आँखें मटकाकर बोली, “बिल्कुल मस्त!”
हमने खाना पहले ही खा लिया था, तो अब बस रात का मजा लेना था। मैंने फ्रिज से कोकाकोला की बोतल निकाली, जिसमें मैंने पहले से व्हिस्की मिला रखी थी। मैंने दो घूंट पिए, फिर बोतल डॉली को दे दी। उसने भी दो-तीन घूंट लिए, और इस तरह हमने पूरी बोतल खाली कर दी। दो-दो पेग अंदर जाने से माहौल गर्म हो गया था। मेरे जिस्म में एक सनसनी सी दौड़ रही थी, और डॉली की आँखों में भी एक नशा सा दिख रहा था।

मैंने उसकी गिफ्ट की हुई मिडी ड्रेस उसे दी और कहा, “जा, नहा ले और ये पहनकर दिखा।” वो बाथरूम चली गई। थोड़ी देर बाद वो नहाकर बाहर आई। वो ड्रेस उसकी टाइट चूचियों और चूतड़ों को और उभार रही थी। उसकी सांवली त्वचा पर वो ड्रेस ऐसी लग रही थी जैसे उसके जिस्म के लिए ही बनी हो। मैंने उसकी तारीफ की, “डॉली, तू तो इस ड्रेस में कयामत ढा रही है!” वो शरमाकर हँसी, और मैं नहाने चला गया।

नहाकर मैं टी-शर्ट और लोअर पहनकर लौटा, तो देखा कि डॉली बेड पर सो चुकी थी। शायद व्हिस्की का असर था। उसकी साँसें गहरी थीं, और वो मासूमियत भरे चेहरे के साथ सो रही थी। मैं उसके बगल में लेट गया। उसका सांवला जिस्म चादर के नीचे चमक रहा था, और मेरे लंड में तनाव बढ़ता जा रहा था। मैंने धीरे से उसकी ड्रेस की चेन खोली और उसे उतार दिया। फिर उसकी ब्रा और पैंटी भी हटा दी। अब वो मेरे सामने पूरी नंगी थी। उसकी छोटी-छोटी संतरे जैसी चूचियाँ, जिनके निप्पल्स हल्के भूरे और सख्त थे, उसकी चिकनी सांवली त्वचा, और उसकी टाइट चूत, जिसके आसपास हल्के-हल्के बाल थे—सब कुछ देखकर मेरा लंड फूलकर लोहे की रॉड बन गया। उसकी चूत की हल्की सी गंध मेरे नथुनों में घुस रही थी, और मेरे जिस्म में आग लग रही थी।

लेकिन उसे इस हाल में चोदने में मजा नहीं था। मैं चाहता था कि वो जागे, मेरे लंड का मजा ले, और उसकी चूत मेरे हर धक्के को महसूस करे। मैंने कमरे की लाइट बंद की, चादर ओढ़ ली, और उसे भी चादर में लपेट लिया। धीरे-धीरे मैंने उसकी चूचियों को सहलाना शुरू किया। मेरी उंगलियाँ उसके निप्पल्स पर हल्के-हल्के फिसल रही थीं, और वो सख्त होने लगे। मैंने एक चूची को मुँह में लिया और जीभ से उसके निप्पल को चाटने लगा। उसका स्वाद नमकीन और नशीला था। मेरी जीभ उसके निप्पल को गोल-गोल चाट रही थी, और मैं हल्के-हल्के दाँतों से काट रहा था। मेरा एक हाथ उसकी चूत पर चला गया। उसकी चूत की फांकों को मैंने उंगलियों से सहलाया, और धीरे-धीरे एक उंगली उसकी चूत के मुँह पर रगड़ने लगा। वो हल्की-हल्की गीली थी, जैसे सपने में भी उसका जिस्म गर्म हो रहा हो।

मैंने अपनी जीभ को उसकी दूसरी चूची पर ले गया, और अब दोनों चूचियों को बारी-बारी से चूसने लगा। मेरी उंगली उसकी चूत में हल्के-हल्के अंदर-बाहर होने लगी। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरी उंगली को जकड़ रही थी। मैंने उसकी चूत के दाने को हल्के से रगड़ा, और उसका जिस्म हल्का-हल्का काँपने लगा। करीब आधे घंटे तक मैं उसकी चूचियाँ चूसता और चूत सहलाता रहा। तभी उसकी नींद खुली। वो हल्के से बोली, “अंकल, बहुत नींद आ रही है।”
मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में और गहराई तक डाल दी, हल्के-हल्के अंदर-बाहर करते हुए कहा, “रानी, आज की रात सोने के लिए नहीं है। आज तेरी चूत को मेरे लंड का स्वागत करना है।”

मैंने उसकी चूचियों को और जोर से चूसा, और मेरी उंगली की रफ्तार बढ़ा दी। उसकी चूत अब और गीली हो गई थी, और उसकी साँसें तेज होने लगी थीं। वो हल्की-हल्की सिसकारियाँ ले रही थी, “उफ्फ… अंकल… आह…” मैंने उसकी एक चूची को दाँतों से हल्का सा काटा, और मेरी दूसरी उंगली उसकी चूत में डाल दी। उसकी चूत की दीवारें मेरी उंगलियों को जकड़ रही थीं, और उसका रस मेरी उंगलियों पर चिपक रहा था। मैंने अपनी जीभ से उसकी चूची के चारों ओर गोल-गोल चाटा, और फिर उसकी निप्पल को जोर से चूसा। उसका जिस्म अब पूरी तरह गर्म हो चुका था।

मैं बाथरूम गया, पेशाब करके लौटा, और चुपके से उसके बगल में लेट गया। एक मिनट बाद ही डॉली मेरे पास खिसक आई। उसने अपना हाथ मेरे सीने पर फेरना शुरू किया, और फिर मेरा हाथ पकड़कर अपनी चूत पर रख दिया। मैं समझ गया कि अब वो पूरी तरह गर्म हो चुकी है। मैंने उसकी चूची फिर से मुँह में ली, और उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया। वो मेरे लोअर के ऊपर से ही मेरे लंड को सहलाने लगी। उसका हाथ मेरे लंड की मोटाई और सख्ती को टटोल रहा था, जैसे वो उसे महसूस करना चाहती हो। मैंने अपना लोअर और टी-शर्ट उतार दी। अब हम दोनों पूरी तरह नंगे थे, एक-दूसरे से लिपटे हुए।

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उसने मेरे होंठों को चूसना शुरू किया, और मैंने भी उसके होंठों का रसपान किया। उसकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं उसकी जीभ को चूस रहा था। उसकी टाइट चूचियाँ मेरी छाती से रगड़ रही थीं, और उसकी चूत मेरे लंड से बार-बार टकरा रही थी। मैंने उसकी कमर को पकड़कर उसे और करीब खींच लिया। उसकी साँसें मेरे चेहरे पर गर्म हवा की तरह लग रही थीं। वो अपनी चूत को मेरे लंड पर रगड़ने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बार-बार चूक रही थी। आखिरकार उसने मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ लिया और अपनी चूत के मुँह पर रगड़ने लगी। उसकी सिसकारियाँ अब तेज हो गई थीं, “आह… उफ्फ… अंकल… ये क्या हो रहा है…”

मैंने उसका हाथ हटाया, और अपनी उंगलियों से उसकी चूत के लबों को फैलाया। उसकी चूत का मुँह छोटा सा, गुलाबी, और गीला था। मैंने अपने लंड का सुपारा उसकी चूत पर रखा और हल्का सा दबाव डाला। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि सुपारा भी बड़ी मुश्किल से अंदर गया। मैंने उसके चूतड़ों को सहलाना शुरू किया। मेरी उंगलियाँ उसके चूतड़ों की नरम त्वचा पर फिसल रही थीं, और मैं धीरे-धीरे अपने लंड को उसकी चूत में धकेलने लगा। उसकी चूत की गर्मी और टाइटनेस मेरे लंड को जकड़ रही थी, जैसे वो उसे पूरा निगल लेना चाहती हो।

मैंने अपने बैग से कोल्ड क्रीम और कॉन्डम निकाला। ढेर सारी क्रीम लेकर मैंने अपने लंड पर मल दी। मेरा लंड चमक रहा था, और उसकी नसें फूलकर और सख्त हो गई थीं। मैंने डॉली की चूत पर भी क्रीम लगाई, मेरी उंगलियाँ उसकी चूत के लबों पर फिसल रही थीं, और वो सिसकारियाँ ले रही थी। मैंने उसे पीठ के बल लिटाया, उसके चूतड़ों के नीचे तकिया रखा, और कमरे की लाइट जला दी। वो शरमाकर बोली, “अंकल, लाइट बंद कर दीजिए प्लीज!”
मैंने लंड का सुपारा उसकी चूत पर रखते हुए कहा, “काहे का अंकल? अब ये राजा बाबू है, अपनी रानी को संभालो!”

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मैंने उसकी पतली कमर को दोनों हाथों से पकड़ा और लंड को धीरे-धीरे अंदर धकेला। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि सुपारा अंदर जाते ही उसकी आँखें छलक आईं। मैं रुक गया, उसके आँसुओं को पोंछा, और उसकी चूचियों को फिर से चूसना शुरू किया। मेरी जीभ उसकी निप्पल्स पर गोल-गोल घूम रही थी, और मैं हल्के-हल्के काट रहा था। उसका जिस्म धीरे-धीरे ढीला पड़ने लगा। मैंने अपनी एक उंगली उसकी चूत के दाने पर रखी और हल्के-हल्के रगड़ने लगा। उसकी सिसकारियाँ फिर से शुरू हो गईं, “आह… उफ्फ… अंकल… ये क्या कर रहे हो…”

मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को और अंदर धकेला। उसकी चूत की दीवारें मेरे लंड को जकड़ रही थीं, और उसका रस मेरे लंड पर चिपक रहा था। मैंने अपनी कमर को हल्का-हल्का हिलाना शुरू किया, और हर धक्के के साथ मेरा लंड उसकी चूत की गहराई में उतर रहा था। उसकी साँसें तेज हो रही थीं, और वो अपनी कमर उठाकर मेरा साथ देने लगी। मैंने उसकी चूचियों को और जोर से मसला, और मेरी जीभ उसके निप्पल्स को चूस रही थी। उसकी चूत अब पूरी तरह गीली हो चुकी थी, और हर धक्के के साथ एक चप-चप की आवाज कमरे में गूँज रही थी।

मैंने रफ्तार बढ़ाई। मेरा लंड उसकी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, और उसकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल रही थीं, “आह… उफ्फ… और जोर से… अंकल… बस करो…” मैंने उसकी टांगें फैलाईं और अपने कंधों पर रख लीं। अब मेरा लंड उसकी चूत की गहराई को छू रहा था। उसकी चूत का दाना मेरे लंड से रगड़ रहा था, और वो पागलपन की हद तक सिसकार रही थी। मैंने अपने दोनों हाथों से उसके चूतड़ पकड़े और जोर-जोर से धक्के मारने शुरू किए। उसकी चूचियाँ हर धक्के के साथ उछल रही थीं, और उसकी चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी।

मैंने कॉन्डम चढ़ाया और फिर से लंड को उसकी चूत में डाल दिया। अब मैं पूरी ताकत से चोद रहा था। उसकी चूत की गर्मी और टाइटनेस मुझे जन्नत का मजा दे रही थी। हर धक्के के साथ उसकी सिसकारियाँ तेज हो रही थीं, “आह… उफ्फ… राजा बाबू… और जोर से…” मैंने उसकी कमर को और टाइट पकड़ा, और मेरे धक्के अब इतने तेज थे कि बेड हिल रहा था। उसकी चूत का रस मेरे लंड पर चिपक रहा था, और कमरे में उसकी सिसकारियों और बेड की चरमराहट की आवाज गूँज रही थी।

आखिरकार मेरा लंड पिचकारी छोड़ने को तैयार था। मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और सारा माल कॉन्डम में भर गया। मैं निढाल होकर उस पर लेट गया। हम दोनों पसीने से तरबतर थे। मैंने टॉवल से पसीना पोंछा, फ्रिज से जूस निकाला, और हम दोनों नंगे ही एक-दूसरे से लिपटकर सो गए।

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रात के तीन बजे मेरी नींद खुली। पेशाब करके लौटा, तो देखा डॉली गहरी नींद में थी। मैंने उसकी चूचियों को सहलाना शुरू किया। वो धीरे-धीरे जागी और मेरे सीने से चिपक गई। मैंने अपना मुँह उसकी चूत के पास ले जाकर उसके लबों पर जीभ फेरनी शुरू की। उसकी चूत की गंध और स्वाद मुझे पागल कर रहे थे। वो कसमसाने लगी। मैंने उसका हाथ अपने लंड पर रखा, और वो उसे सहलाने लगी। फिर मैंने उसका सिर पकड़कर अपने लंड पर ले गया। वो समझ गई और मेरे लंड को चाटने लगी। थोड़ी देर में उसने लंड को मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मेरा लंड मूसल की तरह टाइट हो गया।

मैं पीठ के बल लेट गया और उसे अपने ऊपर खींच लिया। उसकी चूचियाँ मेरे मुँह में थीं, और मैं उन्हें चूस रहा था। वो अपनी चूत को मेरे लंड पर रगड़ रही थी। मैंने क्रीम की शीशी उठाई और कहा, “लो, राजा को तैयार कर दो।” उसने मेरे लंड पर क्रीम मल दी, और मैंने उसकी चूत पर भी। फिर मैंने उसे अपनी कमर पर बिठाया और लंड का सुपारा उसकी चूत पर रखकर धीरे-धीरे अंदर धकेला। वो उछलने लगी, और हर उछाल में मेरा लंड उसकी चूत की गहराई को छू रहा था।

थोड़ी देर बाद वो थक गई। मैंने कहा, “अच्छा, अब घोड़ी बन जा।”
वो हँसते हुए बोली, “घोड़ी? वो कैसे?”
मैंने उसे पलटकर घोड़ी की पोजीशन में लाया, उसके चूतड़ों को फैलाया, और कॉन्डम चढ़ाकर लंड को उसकी चूत में डाल दिया। इस पोजीशन में उसकी चूत और टाइट लग रही थी। मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। हर धक्के के साथ वो “आह… उफ्फ…” कर रही थी। रफ्तार बढ़ी, और मेरा लंड उसकी चूत में पूरी तरह समा रहा था। वो बोली, “अंकल, थोड़ा रुको!”
मैंने लंड बाहर निकाला और पूछा, “क्या हुआ?”
वो लेटते हुए बोली, “थक गई।”

मैंने उसे सीधा लिटाया, उसके चूतड़ों के नीचे तकिया रखा, और फिर से लंड उसकी चूत में डाल दिया। मैं उसके ऊपर लेट गया, उसकी चूचियाँ मलने लगा, और होंठों को चूसने लगा। धीरे-धीरे रफ्तार बढ़ी, और अब वो भी अपनी कमर उठाकर मेरा साथ देने लगी। मैंने उसकी टांगें अपने कंधों पर रखीं, और पूरी ताकत से धक्के मारने शुरू किए। उसकी चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी, और उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह… उफ्फ… बस करो… और जोर से…”

आखिरकार मेरा लंड फिर से पिचकारी छोड़ने को तैयार था। मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और सारा माल कॉन्डम में भर गया। मैं निढाल होकर उस पर लेट गया। उसने टॉवल से मेरा पसीना पोंछा, और हम दोनों फिर से चुम्बन में खो गए। रात भर चुदाई के बाद सुबह पांच बजे हम सोए।

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सुबह साढ़े नौ बजे नींद खुली। मैं बाथरूम गया, नहाया, और तैयार हो गया। डॉली को जगाया, “उठ, दस बज गए।”
वो “अरे बाप रे!” कहकर बाथरूम में घुस गई। हमने जल्दी से नाश्ता किया। मैंने नोटिस किया कि उसकी चाल बदली हुई थी। मैंने पूछा, “क्या हुआ?”
उसने अपनी चूत पर हाथ रखकर कहा, “यहाँ दर्द हो रहा है।”

मैंने उसे बेड पर बिठाया, उसकी सलवार और पैंटी उतारी। उसकी चूत फूलकर लाल हो गई थी। मैंने कोल्ड क्रीम से उसकी चूत की मालिश शुरू की। साथ ही अपनी पैंट की चेन खोलकर लंड बाहर निकाला और कहा, “रानी, अब चूत को आराम चाहिए। तू अपने मुँह और हाथ से राजा को खुश कर दे।”

उसने मेरा लंड चूसना शुरू किया। कभी वो मुँह से चूसती, कभी हाथ से ऊपर-नीचे करती। मैं उसकी चूत की मालिश करता रहा। आखिरकार मैंने कहा, “मुँह खोल, सारा माल गटक जाना। ये सबसे अच्छा पेनकिलर है।” उसने मेरा लंड मुँह में लिया, और मैंने उसके सिर को पकड़कर जोर-जोर से हिलाना शुरू किया। कुछ ही देर में मेरा वीर्य उसके मुँह में फव्वारा बनकर निकला, और उसने उसे गटक लिया।

मैंने उसकी चूत पर हाथ फेरते हुए पूछा, “रानी, अब कैसा लग रहा है?”
वो हँसकर बोली, “अब बहुत आराम है।”
मैंने उसे कपड़े पहनने को कहा और खुद भी तैयार हो गया। मैंने रिसेप्शन पर ड्राइवर बुलवाया। गाड़ी में बैठकर हम कानपुर के लिए निकल पड़े। डॉली मेरी गोद में सिर रखकर सो गई। रास्ते में मैं उसकी चूचियों को सहलाता रहा, और मन ही मन सोच रहा था कि ये सिर्फ शुरुआत है।

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