Padosan Bhabhi sex story मेरा नाम ऋषि है और मैं रांची का रहने वाला हूँ। मैं 23 साल का एक साधारण सा लड़का हूँ, पतला-दुबला, गेहुंआ रंग, और चश्मा पहनने वाला। मेरे चेहरे पर हमेशा एक शरारती सी मुस्कान रहती है, जो शायद मेरे आसपास के लोगों को मेरी तरफ खींचती है। हम लोग रांची के एक पुराने मोहल्ले में किराए के मकान में रहते थे। मकान पुराना था, लेकिन साफ-सुथरा और हवादार। हमारा और मकान मालिक का परिवार इतना घुल-मिल गया था कि लगता ही नहीं था कि हम किराएदार हैं।
मकान मालिक के घर में चार लोग थे। अंकल, जिनका नाम रमेश था, 55 साल के आसपास, गंभीर मिजाज, लेकिन दिल के बड़े साफ। वो सुबह-सुबह फैक्ट्री में काम पर चले जाते थे। आंटी, जिन्हें हम सब शांति आंटी कहते थे, 50 साल की थीं, हमेशा साड़ी में लिपटी रहती थीं और घर-मोहल्ले की खबरें रखने में उस्ताद थीं। उनका बेटा, संजय भैया, 30 साल के थे, नेवी में जॉब करते थे। वो 6 महीने समुद्र में रहते और 6 महीने घर पर। और फिर थीं भाभी, मीनाक्षी, जिनकी वजह से ये कहानी लिखी जा रही है।
मीनाक्षी भाभी, 28 साल की, बला की खूबसूरत। उनकी तुलना अगर तमन्ना भाटिया से करूँ तो कम नहीं होगी। गोरा रंग, बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, और होंठ इतने गुलाबी कि देखते ही मन डोल जाए। उनकी चूचियाँ 36 इंच की थीं, भरी-भरी, गोरी-गोरी, जैसे किसी ने दूध की कटोरी उलट दी हो। उनका फिगर 36-28-36 का था, कमर पतली और गांड इतनी उभरी हुई कि साड़ी में भी उनकी हर अदा कातिलाना लगती थी। भाभी का शरीर ऐसा था जैसे यौवन का सारा रस उनके अंदर समा गया हो। वो जब चलती थीं, तो उनकी साड़ी का पल्लू हल्का सा लहराता और मोहल्ले के लड़कों की साँसें थम जाती थीं।
हमारे और उनके घर में इतना अच्छा रिश्ता था कि मैं उनके घर आता-जाता रहता था। भाभी मुझसे खुलकर हँसी-मजाक करती थीं। कभी मेरे गाल खींच देतीं, कभी मेरे बालों में उंगलियाँ फेरकर कहतीं, “ऋषि, तू तो बड़ा स्मार्ट हो रहा है!” उनकी बातों में एक अजीब सा जादू था, जो मुझे हमेशा उनकी तरफ खींचता था। मैं कई बार उनके नाम की मुठ मार चुका था, रात के अंधेरे में अपनी कल्पनाओं में खोकर। लेकिन ये सब मेरे मन की बात थी, मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि ये सच हो सकता है।
उस साल मैं 12वीं की परीक्षा की तैयारी कर रहा था। मेरे पिताजी मुझे पहले पढ़ाया करते थे, लेकिन अब उनकी जॉब की वजह से समय की कमी हो गई थी। मैंने कभी ट्यूशन नहीं लिया था, क्योंकि मुझे लगता था कि मैं खुद ही सब संभाल लूँगा। लेकिन 12वीं की पढ़ाई आसान नहीं थी, और मैं थोड़ा घबराया हुआ था। एक दिन भाभी हमारे घर आईं और माँ से बातें करने लगीं। मैं पास में ही टेबल पर किताबें फैलाए बैठा था, लेकिन मेरा ध्यान पढ़ाई से ज्यादा भाभी की बातों पर था।
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भाभी ने मुझसे पूछा, “ऋषि, कैसी चल रही है तेरी पढ़ाई? बोर्ड्स का टेंशन तो नहीं है न?” उनकी आवाज़ में एक गर्मजोशी थी, जो मुझे हमेशा अच्छी लगती थी। मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ भाभी, बस ठीक-ठाक चल रही है। थोड़ा टेंशन तो है।” माँ ने बीच में टोकते हुए भाभी से कहा, “मीनाक्षी, तू तो दिन भर घर पर रहती है। अगर फ्री हो तो ऋषि को थोड़ा पढ़ा दिया कर। इसके पापा को अब समय नहीं मिलता।” मैंने माँ की बात सुनी तो मन ही मन थोड़ा शरमा गया, लेकिन भाभी ने तुरंत हँसते हुए कहा, “अरे आंटी जी, बिल्कुल! मैं तो वैसे भी दिन भर बोर होती हूँ। ऋषि के साथ पढ़ाई करूँगी तो मेरा भी टाइम पास हो जाएगा।”
ये सुनकर मेरे मन में लड्डू फूटने लगे। भाभी के साथ समय बिताने का मौका, वो भी अकेले? मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा। तय हुआ कि अगले दिन से मैं भाभी के घर पढ़ने जाऊँगा।
अगले दिन मैं उनके घर गया। भाभी ने एक हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, जिसमें वो और भी खूबसूरत लग रही थीं। उनके कमरे में घुसते ही एक मादक सी खुशबू मेरी नाक में घुसी, शायद उनका परफ्यूम था। कमरा साफ-सुथरा था, बेड पर हल्की नीली चादर बिछी थी, और कोने में एक छोटा सा टीवी रखा था। भाभी ने कहा, “ऋषि, किताबें निकाल, मैं कुछ खाने-पीने का ले आती हूँ।” वो किचन में गईं और थोड़ी देर बाद कोल्ड ड्रिंक की बोतल और गरमागरम प्याज के पकौड़े ले आईं। पकौड़ों की खुशबू से मेरा मन और खुश हो गया।
पढ़ाई शुरू हुई। भाभी ने मुझे मैथ्स के कुछ सवाल समझाए। उनकी पढ़ाने की अदा भी कमाल थी। वो इतने प्यार से समझाती थीं कि मुश्किल से मुश्किल सवाल भी आसान लगने लगता था। लेकिन सच कहूँ, मेरा ध्यान पढ़ाई से ज्यादा उनकी साड़ी के पल्लू पर था, जो बार-बार उनके कंधे से सरक रहा था। उनकी गोरी चूचियों की झलक मुझे बार-बार दिख रही थी, और मैं मन ही मन सोच रहा था कि काश ये पल्लू और नीचे सरक जाए। फिर भी, मैंने खुद को कंट्रोल किया, क्योंकि परीक्षा का डर मेरे सिर पर सवार था।
पहला हफ्ता अच्छे से बीता। भाभी ने मुझे पूरी मेहनत से पढ़ाया, और मैंने भी मन लगाकर पढ़ाई की। लेकिन अगले रविवार को कुछ ऐसा हुआ, जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। उस दिन अंकल और आंटी किसी रिश्तेदार की शादी में गए थे। घर पर सिर्फ मैं और भाभी थे। मैं सुबह 10 बजे उनके घर पढ़ने के लिए गया। दरवाजा खुला था, लेकिन भाभी कहीं दिखाई नहीं दीं। मैंने आवाज़ लगाई, “भाभी! भाभी!” लेकिन कोई जवाब नहीं आया।
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मैं उनके कमरे में गया और बेड पर बैठ गया। टीवी ऑन किया, लेकिन मेरा मन नहीं लगा। थोड़ी देर बाद मैं बेड पर लेट गया। तभी मेरे हाथ तकिए के नीचे गए, और मुझे कुछ सख्त सा महसूस हुआ। मैंने उत्सुकता में तकिया हटाया तो दो मैगजीन निकलीं। मैंने जैसे ही उन्हें खोला, मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। मैगजीन में नंगी लड़कियों की तस्वीरें थीं, ज्यादातर विदेशी मॉडल्स। कुछ तस्वीरों में लड़कियाँ लंड चूस रही थीं, तो कुछ में वो अलग-अलग पोज में चुदाई कर रही थीं। मैंने पहले भी ब्लू फिल्में देखी थीं, लेकिन ऐसी मैगजीन पहली बार देखी थी।
मेरा लंड तुरंत खड़ा हो गया। मैंने एक तस्वीर देखी, जिसमें एक रूसी लड़की एक काले लंड को मुँह में लिए हुए थी। उसकी आँखें बंद थीं, और चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे वो जन्नत में हो। मैंने सोचा, “काश मेरा लंड भी कोई ऐसे चूसे!” धीरे-धीरे मेरा हाथ मेरी पैंट में चला गया। मैंने लंड बाहर निकाला और मुठ मारने लगा। मेरा 7 इंच का लंड पूरा तन चुका था, और मैं अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था। मुझे बिल्कुल ख्याल नहीं रहा कि मैं भाभी के कमरे में हूँ।
तभी अचानक एक जोरदार आवाज़ आई, जैसे कोई बर्तन गिर गया हो। मेरी गांड फट गई! मैंने झट से लंड को पैंट में डाला और दरवाजे की तरफ देखा। भाभी वहाँ खड़ी थीं, उनके चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था। वो एक नीली साड़ी में थीं, और उनके बाल हल्के गीले थे, शायद वो नहाकर आई थीं। मैं समझ गया कि उन्होंने मुझे मुठ मारते देख लिया था। मेरी साँसें रुक गईं। अगर ये बात घर पर गई, तो पिताजी मुझे मार-मारकर भूत बना देंगे।
मैं तुरंत किचन में उनके पीछे गया। वो गैस पर कुछ बना रही थीं। मैं उनके पास खड़ा हो गया और डरते-डरते बोला, “भाभी, प्लीज माफ कर दीजिए। मैंने गलती कर दी। ऐसा फिर कभी नहीं होगा।” मेरी आवाज़ काँप रही थी। मैंने उनके पैर पकड़ लिए और रोने जैसी हालत हो गई। भाभी ने मुझे देखा और थोड़ी देर चुप रहीं। फिर उन्होंने गहरी साँस ली और बोलीं, “ऋषि, तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसी हरकत करते हुए? ये मेरा कमरा है!” मैंने फिर माफी माँगी, “भाभी, सच में माफ कर दीजिए। मैं बस… वो मैगजीन देखकर… प्लीज माँ को मत बताना।”
शायद मेरी हालत देखकर उन्हें दया आ गई। वो थोड़ा नरम पड़ीं और बोलीं, “ठीक है, ऋषि। इस उम्र में ये सब नॉर्मल है। लेकिन अगली बार ध्यान रखना।” उनकी बातों से मेरा डर थोड़ा कम हुआ। फिर मैंने हिम्मत करके पूछा, “भाभी, एक बात पूछूँ? आप नाराज़ तो नहीं होंगी न?” वो हल्का सा मुस्कुराईं और बोलीं, “पूछ, क्या बात है?”
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मैंने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “भाभी, वो मैगजीन में जो लड़की लंड चूस रही थी, असल में भी लड़कियाँ ऐसा करती हैं?” भाभी ने मेरी बात सुनी और एक पल के लिए उनकी आँखें चमक उठीं। फिर वो हँसते हुए बोलीं, “हाँ ऋषि, करती हैं। लेकिन हर लड़की शुरू में थोड़ा नखरे दिखाती है। अगर तुम उसे प्यार से मनाओ, अच्छे से ट्रीट करो, तो वो सब कुछ करने को तैयार हो जाती है।” उनकी बात सुनकर मेरा लंड फिर से तन गया, और मुझे लगा कि वो मेरी पैंट की उभरी हुई शेप को देख रही थीं।
अचानक भाभी ने कहा, “जा, बाहर का दरवाजा बंद कर आ।” मैं तुरंत गया और दरवाजे की कुंडी लगा दी। मन में एक अजीब सी हलचल थी। क्या होने वाला था? मैं वापस कमरे में आया और भाभी के पास बैठ गया। वो बोलीं, “खड़ा हो जा। आज मैं तुझे कुछ नया सिखाती हूँ।” मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं। भाभी नीचे घुटनों के बल बैठ गईं। उनकी नीली साड़ी फर्श पर फैल गई थी, और उनका ब्लाउज़ इतना टाइट था कि उनकी चूचियाँ बाहर आने को बेताब थीं।
भाभी ने मेरी पैंट का बटन खोला और निक्कर को नीचे खींच दिया। मेरा लंड, जो पहले से ही तना हुआ था, उनके सामने आ गया। वो 7 इंच का था, मोटा और सख्त, गुलाबी टोपा चमक रहा था। भाभी ने उसे अपने नरम हाथों में लिया और अंगूठे से टोपे को सहलाने लगीं। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे शरीर में करंट दौड़ गया हो। मैंने हल्के से सिसकारी भरी, “आह्ह…” भाभी ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराईं। फिर वो बोलीं, “तुझे मज़ा आ रहा है न?” मैं बस सिर हिलाकर हाँ में जवाब दे पाया।
भाभी ने धीरे से मेरे लंड को अपने होंठों के पास लाया और टोपे को चूम लिया। फिर उन्होंने अपनी जीभ निकाली और लंड के सिरे को चाटना शुरू किया। उनकी गर्म जीभ मेरे लंड पर फिसल रही थी, और मैं सातवें आसमान पर था। मैंने बिना सोचे कहा, “भाभी, इसे मुँह में लो ना!” भाभी ने हल्का सा हँसते हुए कहा, “अरे, इतनी जल्दी क्या है?” लेकिन फिर उन्होंने मेरा पूरा लंड अपने मुँह में ले लिया और चूसना शुरू कर दिया।
उनके मुँह की गर्मी और नरमी मेरे लंड को पागल कर रही थी। वो कभी धीरे-धीरे चूसतीं, तो कभी तेजी से, जैसे कोई लॉलीपॉप चूस रहा हो। उनके होंठ मेरे लंड के चारों तरफ लिपट गए थे, और उनकी जीभ हर बार टोपे को छू रही थी। मैंने उनके सिर को पकड़ लिया और धीरे-धीरे उनके मुँह में लंड को आगे-पीछे करने लगा। “आह्ह… भाभी… कितना मज़ा आ रहा है!” मैं बुदबुदाया। भाभी के गले तक मेरा लंड जा रहा था, और वो बिना रुके चूस रही थीं। उनकी सिसकारियाँ, “उम्म… उम्म…” मेरे कानों में मधुर संगीत की तरह गूंज रही थीं।
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कुछ देर बाद मैंने भाभी को खींचकर बेड पर बिठाया। अब बारी मेरी थी। मैंने उनकी साड़ी का पल्लू हटाया। उनका गोरा जिस्म मेरे सामने था, और ब्लाउज़ में उनकी चूचियाँ उभरी हुई थीं। मैंने उनके होंठों को चूमना शुरू किया। उनके होंठ इतने रसीले थे कि मैं रुक ही नहीं पा रहा था। फिर मैंने उनके गाल, कान और गर्दन को चूमा। उनकी गर्दन से एक मादक खुशबू आ रही थी, जो मुझे और उत्तेजित कर रही थी। मैंने उनके ब्लाउज़ के हुक खोलने की कोशिश की, लेकिन मेरे हाथ काँप रहे थे। भाभी हँस पड़ीं और बोलीं, “अरे, रुक, मैं खोल देती हूँ।”
उन्होंने अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्लाउज़ और ब्रा दोनों खोल दिए। जैसे ही मैंने उनकी चूचियाँ देखीं, मेरी साँसें थम गईं। गोरी-गोरी, भरी-भरी चूचियाँ, जिनके ऊपर गुलाबी चुचूक थे, जैसे मुझे बुला रहे हों। मैंने तुरंत उनके एक चुचूक को मुँह में लिया और चूसना शुरू किया। “आह्ह… ऋषि…” भाभी सिसकारीं। मैंने उनकी दूसरी चूची को हाथ से दबाया, वो इतनी नरम थी कि मेरे हाथ में समा ही नहीं रही थी। भाभी मेरे सिर को अपनी चूचियों में दबा रही थीं, और उनकी साँसें तेज हो रही थीं।
मैं धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ा। उनकी साड़ी पहले ही खुल चुकी थी। मैंने उनके पेटीकोट का नाड़ा खींचा और उसे नीचे सरका दिया। अब भाभी सिर्फ एक काली पैंटी में थीं। उनकी जाँघें गोरी और चिकनी थीं, और पैंटी के ऊपर से उनकी चूत की हल्की सी उभर दिख रही थी। मैंने अपनी जीभ पैंटी के ऊपर रखी और चूसना शुरू किया। भाभी की सिसकारी निकली, “आह्ह… ऋषि, ये क्या कर रहा है!” मैंने उनकी पैंटी उतार दी और उनकी चूत को देखा। गुलाबी, चिकनी, और हल्का सा गीली। मैंने बिना देर किए अपनी जीभ उनकी चूत पर रख दी और चाटना शुरू कर दिया।
“आह्ह… हाय… ऋषि… और चूस… और अंदर!” भाभी चिल्लाईं। मैंने अपनी जीभ को नुकीला करके उनकी चूत के अंदर डाला और चोदने लगा। भाभी की चूत से हल्का सा नमकीन स्वाद आ रहा था, जो मुझे और पागल कर रहा था। भाभी अपनी गांड उठा-उठाकर मेरे मुँह में अपनी चूत रगड़ रही थीं। “आह्ह… हाय… चूस ले मेरी चूत को… पूरा चूस!” वो चादर को खींच रही थीं, जैसे कोई मछली बिना पानी के तड़प रही हो।
कुछ देर बाद भाभी बोलीं, “ऋषि, अब बस भी कर! चोद दे मुझे!” उनकी आवाज़ में एक भूख थी। मैंने कहा, “भाभी, आज मैं आपको ऐसी चुदाई दूँगा कि आप भूल नहीं पाएँगी!” मैंने उनकी गांड के नीचे एक तकिया रखा और उनके पैर अपने कंधों पर रख लिए। मेरा लंड उनकी चूत के मुहाने पर था। मैंने पहले लंड को उनकी चूत पर रगड़ा, जिससे भाभी तड़प उठीं। “मादरचोद! डाल दे ना! कितना तड़पाएगा!” वो गुस्से में बोलीं।
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मैंने उनके होंठों को चूमा और एक जोरदार झटका मारा। मेरा लंड उनकी चूत में पूरा घुस गया। “आह्ह्ह!” भाभी की चीख निकली। उनकी चूत गीली थी, लेकिन इतनी टाइट कि मेरा लंड उसमें जकड़ सा गया था। मैंने धीरे-धीरे झटके मारना शुरू किया। “पच… पच… पच…” चुदाई की आवाज़ कमरे में गूंज रही थी। भाभी अपनी गांड उठा-उठाकर मेरे लंड को पूरा ले रही थीं। “आह्ह… ऋषि… और जोर से… चोद दे अपनी भाभी को!” वो चिल्ला रही थीं।
मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी। भाभी की चूत किसी भट्टी की तरह गर्म थी, और मेरा लंड उसमें बार-बार अंदर-बाहर हो रहा था। “आह्ह… आह्ह… फाड़ दे मेरी चूत… मादरचोद… और जोर से!” भाभी की गालियाँ मुझे और उत्तेजित कर रही थीं। मैंने उनके पैरों को और ऊपर उठाया और गहरे झटके मारने शुरू किए। उनकी चूचियाँ हर झटके के साथ उछल रही थीं। मैंने एक हाथ से उनकी चूची पकड़ी और दबाने लगा। “आह्ह… हाय… चोद ना… और जोर से!” भाभी की सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थीं।
थोड़ी देर बाद मैंने कहा, “भाभी, अब घोड़ी बनो!” भाभी तुरंत पलट गईं और अपनी गोरी गांड मेरी तरफ कर दी। मैंने उनके बाल पकड़े और लंड को उनकी चूत में पेल दिया। “पच… पच… पच…” चुदाई की आवाज़ और तेज हो गई। मैंने उनकी गांड पर दो जोरदार चांटे मारे, जिससे उनकी चीख निकली, “आह्ह… मादरचोद… मार डालेगा क्या!” लेकिन उनके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी।
मैंने उनकी चूत को ताबड़तोड़ चोदा। भाभी चिल्ला रही थीं, “आह्ह… ऋषि… और जोर से… फाड़ दे मेरी चूत को… आज से मैं तेरी रंडी हूँ!” उनकी बातें सुनकर मेरा जोश और बढ़ गया। मैंने उनके बाल खींचे और और तेजी से चोदने लगा। उनकी चूत इतनी गीली हो चुकी थी कि मेरा लंड आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था।
कुछ देर बाद भाभी बोलीं, “ऋषि, मैं झड़ने वाली हूँ!” और तभी उनकी चूत ने पानी छोड़ दिया। उनकी सिसकारियाँ, “आह्ह… आह्ह…” कमरे में गूंज रही थीं। लेकिन मेरा अभी बाकी था। मैंने कहा, “भाभी, मेरा अभी नहीं हुआ!” भाभी हँसते हुए बोलीं, “अरे, मेरे होते हुए तुझे टेंशन लेने की क्या ज़रूरत?”
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वो उठीं और मेरे लंड को फिर से मुँह में ले लिया। इस बार वो और जोश के साथ चूस रही थीं। उनकी जीभ मेरे लंड के हर हिस्से को चाट रही थी। मैंने कहा, “भाभी, पूरा अंदर लो ना!” वो बोलीं, “तेरा लंड इतना बड़ा है, गले में अटक जाता है!” लेकिन फिर भी उन्होंने कोशिश की और मेरा लंड गहरे तक लिया।
मैंने कहा, “भाभी, चलो 69 करें!” हम दोनों 69 की पोजीशन में आ गए। मैं उनकी चूत को फिर से चाटने लगा, और वो मेरा लंड चूस रही थीं। उनकी चूत का स्वाद मेरे मुँह में था, और वो मेरे लंड को लॉलीपॉप की तरह चूस रही थीं। “उम्म… उम्म…” उनकी सिसकारियाँ मेरे लंड पर कंपन पैदा कर रही थीं। कुछ ही देर में मैंने अपना सारा पानी उनके मुँह में छोड़ दिया, और उसी वक्त भाभी ने भी अपना पानी मेरे मुँह में छोड़ दिया।
हम दोनों थककर बेड पर लेट गए। भाभी ने मुझे अपनी बाहों में लिया और मेरे माथे को चूमते हुए कहा, “ऋषि, आज से जब भी मन करे, मेरी चूत मार लेना। मैं तेरी हूँ।” मैंने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा, “भाभी, ये तो बस शुरुआत है। अगली बार आपकी गांड भी लूँगा।” भाभी हँस पड़ीं और बोलीं, “हाँ, मादरचोद, वो भी तुझे ही दे दूँगी।”
तो दोस्तों, ये थी मेरी पहली चुदाई की कहानी। आगे मैंने भाभी की गांड भी मारी, वो फिर कभी बताऊँगा। आपको मेरी ये कहानी कैसी लगी?
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