नामर्द पति को छोड़कर ससुर के साथ रहती हूँ

Sasur Bahu XXX Sex Story, ससुर बहू की सेक्स कहानी: मेरा नाम रेखा है, उम्र 26 साल, और मैं दिल्ली के सुल्तानपुरी में रहती हूँ। मेरा मायका बागपत में है। मेरी शादी को तीन साल हो चुके हैं, लेकिन मेरे पति में एक कमी थी जो मेरे लिए सबसे बड़ी थी—वह नामर्द थे। दुनिया की सारी दौलत, अरबों की संपत्ति भी उस कमी को पूरा नहीं कर सकती थी। एक जवान औरत को अपने पति से सिर्फ़ भावनाएँ ही नहीं, शारीरिक सुख भी चाहिए। जब तक जिस्म की आग बुझती रहती है, पति-पत्नी का रिश्ता मज़बूत रहता है। लेकिन अगर उसमें कमी आ जाए, तो रिश्ता चंद दिनों में टूटने की कगार पर पहुँच जाता है।

आजकल आप सुनते हैं—फलाने की बीवी किसी और के साथ भाग गई, फलाने की बेटी शादी के दो साल बाद ही वापस आ गई, या फिर छह महीने में ही औरत किसी और के साथ चली गई। कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है? खाना-पीना, कपड़े-लत्ते तो कहीं भी मिल जाते हैं, लेकिन जो सपने एक जवान लड़का या लड़की शादी से पहले बुनता है—वो रातें, वो पल, वो जिस्मानी मज़े—अगर वो पूरे न हों, तो दिल टूट जाता है। मैं भी वही सपने देखा करती थी। शादी के बाद सोचती थी कि मेरा पति मुझे बाहों में भरेगा, मेरी जवानी को अपने प्यार से सींचेगा। लेकिन मेरे पति ने मेरे सपनों को चूर-चूर कर दिया।

शुरुआत में सब ठीक था। शादी के बाद कुछ दिन तो हमने प्यार भरे पल बिताए, लेकिन जल्दी ही मुझे एहसास हुआ कि मेरा पति मुझे संतुष्ट नहीं कर पा रहा था। वो मेरे पास आता, मुझे छेड़ता, मेरे कपड़े उतारता, मेरी चूचियों को मसलता, मेरी चूत पर हाथ फेरता, लेकिन जैसे ही बात आगे बढ़ती, उसका लंड ढीला पड़ जाता। कई बार तो उसने मेरा पेटीकोट खोला, मेरी पैंटी नीचे की, और जैसे ही अपना लंड मेरी चूत के पास लाया, उसका सारा माल बाहर निकल जाता। हर बार उसके मुँह से बस एक शब्द निकलता था—सॉरी।

पहले मैंने सोचा कि शायद ये शुरुआती बात है, धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा। लेकिन दिन, हफ्ते, महीने बीत गए, और हर रात वही कहानी। मैं तड़पती रह जाती, और वो सॉरी बोलकर सो जाता। मेरी जवानी धधक रही थी, मेरी चूत हर रात सुलग रही थी, लेकिन वो मेरी आग को बुझाने की बजाय और भड़का देता था। धीरे-धीरे हमारे बीच झगड़े शुरू हो गए। छोटी-छोटी बातों पर तू-तू मैं-मैं होने लगी। एक बार तो हमने पूरे हफ्ते तक एक-दूसरे से बात नहीं की। मैं उसे देखकर चिढ़ने लगी थी। मेरे लिए वो पति नहीं, बस एक बोझ बन गया था।

घर में मेरे पति के अलावा सिर्फ़ मेरे ससुर जी थे। मेरी सास का देहांत हो चुका था। ससुर जी 50 साल के थे, लेकिन उनकी उम्र उनके चेहरे पर नहीं झलकती थी। वो देखने में हट्टे-कट्टे, गोरे-चिट्टे, और मज़बूत इंसान थे। वो मेरे पति के इकलौते पिता थे, और घर का सारा ध्यान रखते थे। जब मेरे और पति के बीच रोज़ झगड़े होने लगे, मुझे किसी ऐसे शख्स की ज़रूरत थी जिससे मैं अपने दिल का हाल बता सकूँ। अपनी सहेलियों से मैं ऐसी बातें शेयर नहीं कर सकती थी—वो मुझ पर हँसतीं या मेरी बातें फैलातीं। लेकिन ससुर जी मेरे लिए एक सहारा बन गए।

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मैंने धीरे-धीरे उनसे अपनी सारी बातें शेयर करनी शुरू कीं। मैंने उन्हें बताया कि मेरे पति मुझे संतुष्ट नहीं कर पाते, कि मेरी जवानी बेकार जा रही है। ससुर जी चुपचाप मेरी बातें सुनते, मुझे तसल्ली देते। वो कहते, “बेटी, सब ठीक हो जाएगा। तुम परेशान मत हो।” लेकिन उनकी आँखों में मेरे लिए कुछ और ही भाव दिखने लगे। वो मेरा ज़्यादा ख्याल रखने लगे। अगर मुझे बाज़ार से कुछ चाहिए होता, तो मैं अब पति को नहीं, ससुर जी को कहती। वो तुरंत लाकर दे देते। मेरे खाने-पीने, कपड़ों, यहाँ तक कि मेरी छोटी-छोटी ख्वाहिशों का भी ध्यान रखने लगे।

धीरे-धीरे हमारा रिश्ता बदलने लगा। वो अब मेरे ससुर कम, और एक दोस्त ज़्यादा लगने लगे। कभी-कभी वो मुझसे मज़ाक करते, मेरी तारीफ करते। कहते, “रेखा, तुम तो ऐसी लगती हो जैसे अभी-अभी दुल्हन बनकर आई हो।” उनकी बातें सुनकर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती। मैं भी उनके साथ हँसने-बोलने लगी। मेरे पति को ये सब खटकने लगा। एक दिन उसने मुझसे पूछा, “आजकल तू और पापा इतने करीब कैसे हो गए? क्या चल रहा है?” मैं गुस्से में आ गई। मैंने कहा, “तुमसे रिश्ता निभाया नहीं जाता, और अब मुझे सवाल पूछते हो? मैं तुम्हारी गुलाम नहीं हूँ। एक पत्नी को अपने पति से जो चाहिए, वो तुम दे नहीं पाते, तो क्या मैं अपनी ज़िंदगी यूं ही बर्बाद कर दूँ?”

उस दिन हमारा झगड़ा इतना बढ़ गया कि मेरे पति ने गुस्से में घर छोड़ दिया। वो अपने पैतृक गाँव राजस्थान चला गया। अब घर में सिर्फ़ मैं और ससुर जी रह गए। मैं उदास थी, लेकिन कहीं न कहीं मेरे दिल में एक आज़ादी का एहसास भी था। मैं अब उस बोझ से मुक्त थी। करवा चौथ का व्रत आया। मैंने दिनभर भूखी-प्यासी रहकर व्रत रखा। शाम को चाँद निकला, तो मैंने अपने पति को व्हाट्सएप पर कॉल किया। ससुर जी मेरे पास ही बैठे थे। पति का मैसेज आया, “जिसके लिए तुमने मुझे छोड़ा, उसी का दीदार कर व्रत खोलो। आज से मैं तुम्हारा कोई नहीं।” मैंने गुस्से में फोन बंद किया। ससुर जी ने मुझे तसल्ली दी, “रेखा, तुम उदास मत हो। मैं हूँ ना तुम्हारे साथ।”

मैं छत पर गई, चाँद को जल चढ़ाया, छलनी से देखा। ससुर जी मेरे पास आए और मुझे पानी पिलाकर मेरा व्रत खुलवाया। उस रात मैंने लाल साड़ी पहनी थी। ब्यूटी पार्लर जाकर मैंने पूरा मेकअप करवाया था। शरीर के एक-एक बाल साफ करवाए थे। मैं सचमुच दुल्हन की तरह सजी थी। मेरी साड़ी का पल्लू मेरी चूचियों को ढक रहा था, लेकिन मेरा गोरा बदन और गहरी नाभि साफ़ दिख रही थी। नीचे उतरकर मैंने ससुर जी के पैर छुए। उन्होंने मुझे पकड़कर उठाया और अपनी बाहों में भर लिया। मेरी बड़ी-बड़ी चूचियाँ उनके चौड़े सीने से टकराईं। मैंने महसूस किया कि उनका लंड तनकर खड़ा हो गया था। मेरे जिस्म में बिजलियाँ दौड़ने लगीं। मेरी साँसें तेज़ हो गईं।

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ससुर जी ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया। उनकी उंगलियाँ मेरे गालों से होती हुई मेरे होंठों पर रुकीं। मेरी आँखें बंद हो गईं। उन्होंने धीरे से मेरे कंधों को सहलाया, फिर उनका हाथ मेरी चूचियों पर आ टिका। मैं सिहर उठी। मेरे बदन में आग लग गई थी। उन्होंने मेरे ब्लाउज़ के हुक खोल दिए। पीछे से मेरी ब्रा का हुक खुला, और मेरी भारी-भरकम चूचियाँ आज़ाद हो गईं। ससुर जी ने उन्हें अपने हाथों में लिया, धीरे-धीरे सहलाया, फिर मसलना शुरू किया। मेरी सिसकारियाँ निकलने लगीं। मैंने उन्हें अपनी बाहों में कस लिया। हम दोनों बेडरूम की ओर बढ़ गए।

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बेड पर पहुँचते ही ससुर जी ने मेरी साड़ी का पल्लू खींच दिया। मेरा पेटीकोट का नाड़ा खोलकर उन्होंने उसे नीचे सरका दिया। मैंने लाल रंग की जालीदार पैंटी पहनी थी, जो मेरी चूत को मुश्किल से ढक रही थी। ससुर जी ने उसे भी एक झटके में उतार फेंका। अब मैं उनके सामने पूरी नंगी थी। मेरी चूत पहले से ही गीली हो चुकी थी। उन्होंने मेरी टाँगें फैलाईं और मेरी चूत पर अपना हाथ फेरा। गरम-गरम पानी मेरी चूत से रिस रहा था। वो बीच में बैठ गए और मेरी चूत को चाटने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को सहला रही थी। मैं अंगड़ाइयाँ ले रही थी, मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं—आह्ह… ऊह्ह… ससुर जी, ये क्या कर रहे हो! उनकी उंगलियाँ मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रही थीं, और वो मेरे रस को चाट रहे थे। मेरी चूचियाँ उनकी हर हरकत के साथ उछल रही थीं।

ससुर जी ने अपने कपड़े उतारे। जब मैंने उनका लंड देखा, तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। उनका लंड 9 इंच लंबा और 3 इंच मोटा था, बिल्कुल एक काले साँप की तरह तना हुआ। मैंने उसे अपने हाथ में लिया, सहलाया, और फिर अपने मुँह में ले लिया। मैं उसे चूसने लगी, जैसे कोई भूखी शेरनी अपने शिकार को चबा रही हो। उनकी सिसकारियाँ निकलने लगीं। वो मेरे बालों को पकड़कर मेरे मुँह में अपना लंड और गहरा घुसा रहे थे। मैंने उनकी गोटियों को सहलाया, उनके लंड को जीभ से चाटा। उनका लंड मेरे मुँह में फूल रहा था।

फिर ससुर जी ने मुझे बेड पर लिटाया। मेरी कमर के नीचे तकिया रखा ताकि मेरी चूत और ऊपर उठ जाए। उन्होंने अपने मोटे लंड को मेरी चूत के छेद पर टिकाया। मैंने अपनी टाँगें और फैला दीं। एक जोरदार धक्के के साथ उनका पूरा लंड मेरी चूत में समा गया। मैं चीख उठी—आह्ह… मर गई! लेकिन वो रुके नहीं। उन्होंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। मेरी चूत उनके लंड को लपेट रही थी। हर धक्के के साथ मेरी चूचियाँ उछल रही थीं। मेरे मुँह से तरह-तरह की आवाज़ें निकल रही थीं—आह्ह… ऊह्ह… ससुर जी, और ज़ोर से… चोद दो मुझे!

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वो मेरे ऊपर झुके, मेरी चूचियों को मुँह में लिया, मेरे निप्पल्स को काटने लगे। मैं दर्द और मज़े के बीच झूल रही थी। फिर उन्होंने मुझे पलट दिया और घोड़ी बना दिया। पीछे से उनका लंड मेरी चूत में फिर से घुसा। इस बार उनके धक्के और तेज़ थे। मेरी चूत उनके लंड को चूस रही थी। मैं चिल्ला रही थी—आह्ह… फाड़ दो मेरी चूत… और ज़ोर से! उन्होंने मेरी गांड पर थप्पड़ मारे, मेरे बाल खींचे, और मुझे जंगली बिल्ली की तरह चोदा।

करीब एक घंटे तक वो मुझे हर तरह से चोदते रहे। कभी मुझे अपनी गोद में बिठाकर, कभी मुझे दीवार के सहारे खड़ा करके, कभी मेरे मुँह में लंड देकर। मैंने भी उनका पूरा साथ दिया। मेरी चूत बार-बार झड़ रही थी, लेकिन वो रुके नहीं। आखिरकार, उन्होंने मुझे फिर से लिटाया, मेरी टाँगें अपने कंधों पर रखीं, और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। मैं चीख रही थी, मेरी चूत उनके लंड को कस रही थी। आखिरी धक्के के साथ उनका गरम-गरम माल मेरी चूत में छूट गया। मैं भी उसी वक्त झड़ गई। हम दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे से लिपट गए।

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करीब आधे घंटे तक हम वैसे ही नंगे लेटे रहे, एक-दूसरे को सहलाते हुए। फिर हम उठे, और ससुर जी ने अपने हाथों से मुझे खाना खिलाया। मैंने भी उन्हें अपने हाथों से खाना खिलाया। खाने के बाद हम छत पर टहलने गए। वहाँ ससुर जी ने मुझे अपनी सास का एक हार गिफ्ट किया—5 तोले का सोने का हार। उन्होंने कहा, “रेखा, तुम मेरी ज़िंदगी का सबसे कीमती तोहफा हो। आज से तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं होने दूँगा।” उनकी बातें सुनकर मेरा दिल भर आया।

आज हम दोनों एक-दूसरे के साथ पति-पत्नी की तरह रहते हैं। ससुर जी ने मुझे वो सुख दिया, जो मेरे पति कभी नहीं दे पाया। मेरे पति राजस्थान में अपनी ज़िंदगी बिता रहे हैं, और मैं यहाँ ससुर जी के साथ अपनी जवानी के मज़े ले रही हूँ। मेरी जवानी की आग अब ससुर जी के लंड से शांत होती है। मैं खुश हूँ, और मुझे कोई पछतावा नहीं। आप ही बताएँ, क्या मैंने कुछ गलत किया? मेरी ज़िंदगी अब रंगीन है, और मैं इसे जी भरकर जी रही हूँ।

 

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