मेरी माँ ने मुझे मेरे कमीने टीचर से चुदवाया

मैं रिया, 23 साल की हूँ। आज मैं तुम्हें अपनी ज़िंदगी की वो कहानी सुनाने जा रही हूँ, जो मेरे जिस्म और दिल पर हमेशा के लिए छाप छोड़ गई। ये बात तब की है जब मैं 18 साल की थी, बारहवीं में पढ़ रही थी, और मेरी मम्मी और उनके कमीने आशिक़ ने मुझे गंदे कामों की दुनिया में धकेल दिया। ये कहानी सुनकर तुम शायद चौंक जाओ, शायद मज़ा लो, लेकिन मेरे लिए ये एक ऐसा सच है, जो मुझे आज भी रातों को जगाए रखता है।

हम दिल्ली के एक पुराने मोहल्ले में रहते थे। हमारा घर छोटा सा था—नीचे एक तंग सा लिविंग रूम, किचन, और ऊपर दो बेडरूम। गर्मियों में छत पर सोते, और सर्दियों में घर के अंदर ही दुबके रहते। मेरे पापा बैंक में क्लर्क थे। सुबह 7 बजे निकल जाते, और रात 10-11 बजे तक लौटते। घर आने पर वो बस खाना खाते, टीवी पर क्रिकेट या न्यूज़ देखते, और खर्राटे मारते हुए सो जाते। मम्मी, जो 38 साल की थीं, देखने में अभी भी कमाल की थीं। उनकी गोरी चमड़ी, भरा हुआ जिस्म, और काले घने बाल किसी को भी ललचा सकते थे। लेकिन पापा का ध्यान सिर्फ़ अपनी जॉब और शराब पर था। मम्मी अकेले में बैठकर सिगरेट फूँकती थीं, और उनकी आँखों में एक खालीपन दिखता था। मैं, उनकी इकलौती बेटी, अपनी पढ़ाई और जवानी के ख़्वाबों में खोई रहती थी। लेकिन घर का ये ठंडा माहौल मुझे भी खाए जा रहा था।

ये कोई पाँच साल पहले की बात है। मैं बारहवीं में थी, और मैथ्स में एकदम कच्ची थी। बोर्ड एग्ज़ाम सिर पर थे, और मम्मी को मेरी टेंशन रहती थी। एक दिन वो बोलीं, “रिया, मैंने तेरे लिए एक मैथ्स टीचर रखा है। विक्रम नाम है। वो तुझे अच्छे से पढ़ाएगा।” विक्रम सर, 28 साल के, लंबे-चौड़े, और देखने में स्मार्ट थे। उनकी आँखों में शरारत थी, और मुस्कान में वो बात जो लड़कियों को आसानी से फँसा ले। पहली बार जब वो घर आए, मम्मी ने उन्हें लिविंग रूम में बिठाया, और मुझे ऊपर अपने बेडरूम में बुलाया। मम्मी ने सख़्ती से कहा, “रिया, विक्रम सर जो कहें, वो करना। मैथ्स में पास होना ज़रूरी है।” फिर मुझसे बोलीं, “जा, किचन में उनके लिए चाय बना कर ला।”

मैं किचन में चली गई। चाय बनाते वक़्त मैंने सुना कि मम्मी और विक्रम सर की हँसी की आवाज़ें आ रही थीं। मम्मी की आवाज़ में एक अजीब सी नरमी थी, जो पापा के साथ कभी नहीं दिखती थी। मेरे मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा। जब मैं चाय लेकर बेडरूम में गई, तो मेरे होश उड़ गए। मम्मी की साड़ी का पल्लू फर्श पर लटक रहा था, उनका ब्लाउज़ का एक बटन खुला था, और विक्रम सर की शर्ट पर मम्मी का पाउडर स्मज हुआ था। उनकी शर्ट पर मम्मी के लंबे बाल भी चिपके थे, जैसे वो दोनों अभी कुछ गड़बड़ कर रहे हों। मुझे देखते ही मम्मी ने जल्दी से साड़ी ठीक की, और विक्रम सर ने किताब खोलकर नॉर्मल होने की कोशिश की। मम्मी बोलीं, “रिया, अब पढ़ाई शुरू कर।” लेकिन मेरी आँखें उस सीन से हट नहीं रही थीं। मैं समझ गई थी—मम्मी और विक्रम सर के बीच कुछ तो पक रहा था।

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विक्रम सर हर रोज़ शाम 5 बजे आते। हम मम्मी के बेडरूम में पढ़ाई करते, क्योंकि वहाँ एक पुरानी लकड़ी की टेबल थी, और बाहर गली के बच्चों का शोर नहीं आता था। वो मुझे फॉर्मूले समझाने के बहाने मेरे क़रीब बैठते। कभी मेरे कंधे पर हाथ रखते, तो कभी मेरी जांघों को हल्का सा दबाते। उनकी उंगलियाँ मेरे जिस्म पर रेंगती थीं, जैसे वो मुझसे कुछ चाहते हों। मुझे ये सब ग़लत लगता था, लेकिन उनकी गर्म छुअन में एक अजीब सा करंट था। मैं चुप रहती, क्योंकि मम्मी से ये बात कहने की हिम्मत नहीं थी। मम्मी तो ख़ुद उनके साथ कुछ कर रही थीं। मैं किससे अपनी बात कहती?

एक दिन मैं कुछ याद करने वाला चैप्टर भूल गई। विक्रम सर गुस्से में बोले, “रिया, तू कुछ भी पढ़ती नहीं हो। दिमाग़ में भूसा भरा है क्या?” इतना कहकर उन्होंने मेरी गोल चूचियों की चुटकी ली। मेरी टाइट चूचियाँ उनके हाथों में दब गईं, और मैं सिहर उठी। दर्द के साथ एक अजीब सा मज़ा भी आया। वो बोले, “मैं तेरी मम्मी से बात करूँगा। तुझे सबक़ सिखाना पड़ेगा।” और किचन की तरफ़ चले गए, जहाँ मम्मी रोटियाँ बेल रही थीं।

मैं डरते-डरते उनके पीछे गई। किचन का दरवाज़ा थोड़ा खुला था। मैंने देखा, मम्मी ने विक्रम सर को देखते ही पूछा, “तुम्हारा काम हो गया?” विक्रम सर ने कहा, “हाथ ही रखने नहीं देती, चूत क्या देगी। मेरा तो लंड बड़ा हो गया है, उसे शांत करना पड़ेगा।” मम्मी ने हँसते हुए कहा, “मैं हूँ ना!”

इतना कहकर मम्मी ने किचन का दरवाज़ा हल्का सा बंद किया और विक्रम सर की पैंट का ज़िप खोल दिया। उनका मोटा, काला लंड बाहर आया। मैंने ऐसा लंड पहले कभी नहीं देखा था—लंबा, नसों से भरा, और सख़्त। मम्मी ने उसे अपने मुँह में लिया और चूसने लगीं। उनका मुँह उनके लंड पर ऊपर-नीचे हो रहा था, जैसे कोई भूखी औरत खाना खा रही हो। विक्रम सर की सिसकारियाँ निकल रही थीं, “आह… और ज़ोर से चूस… तू कमाल है!” मम्मी की साड़ी खिसक गई थी, और उनकी चूचियाँ ब्लाउज़ से बाहर झाँक रही थीं। मेरी चूत में चींटियाँ रेंगने लगी। मेरी साँसें तेज़ हो गईं, और मैं वहाँ से भागकर अपने कमरे में आ गई।

वो सीन मेरे दिमाग़ से निकल नहीं रहा था। रात को मैं बिस्तर पर लेटी थी, लेकिन नींद नहीं आ रही थी। विक्रम सर का लंड मेरी आँखों के सामने था। मेरी चूचियाँ सख़्त हो गई थीं, और मेरी बुर से पानी टपकने लगा। मैंने अपनी नाइटी ऊपर की और अपनी चूत को सहलाने लगी। मेरी उंगलियाँ मेरी गीली बुर में अंदर-बाहर हो रही थीं। मैं सोच रही थी—लंड चूसना कैसा लगता होगा? अगर मैं विक्रम सर का लंड चूसूँ, तो क्या वो मेरी बुर चाटेंगे? ये ओरल सेक्स की बातें सोचकर मेरी बुर में खलबली मच गई। मैं चाहने लगी थी कि विक्रम सर मुझे छूएँ, मेरे जिस्म को और गहराई से चोदें।

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कुछ दिन बाद, एक शाम विक्रम सर आए। उस दिन पापा ऑफिस में लेट थे, और मम्मी पड़ोस की आंटी के घर गई थीं। घर में सिर्फ़ मैं और विक्रम सर थे। वो बोले, “रिया, आओ मैं तुम्हें मैथ का ये फारमूला सिखा दूँ!” मैं उनके पास बैठ गई। वो बहाने से मेरी चूचियों को सहलाने लगे। इस बार मुझे मज़ा आने लगा। मेरी साँसें तेज़ हो गईं, और मैंने अनजाने में अपनी टाँगें फैला दीं। उन्होंने अपना हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर डाला और मेरी बुर को पैंटी के ऊपर से रगड़ने लगे। मेरी बुर गीली हो चुकी थी।

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मैंने डरते हुए कहा, “मम्मी आ जाएगी, अभी कुछ मत करो!” वो बोले, “चल मेरी जान, तेरी मम्मी भी मुझसे डलवाती है, आ भी जाए तो भी कोई फ़रक नहीं पड़ेगा।” उन्होंने मेरी स्कर्ट और पैंटी उतार दी। मेरी चिकनी, गोरी बुर उनके सामने थी। वो मेरी चूचियों को चूसने लगे। उनकी जीभ मेरे निप्पल्स पर गोल-गोल घूम रही थी, और मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “आह… सर… ये क्या… इतना मज़ा!” फिर वो नीचे आए और मेरी बुर पर मुँह रख दिया। उनकी गर्म जीभ मेरी बुर के दाने को चाट रही थी। मेरी बुर से पानी बह रहा था, और वो उसे चाट-चाट कर पी रहे थे।

फिर उन्होंने अपनी पैंट उतारी और अपना लंड मेरे मुँह के पास लाया। इतना बड़ा लंड देखकर मैं ख़ुश हो गई। मैंने मज़े से चूसना शुरू किया। उसका नमकीन स्वाद मेरे मुँह में घुल रहा था। मैं अपने होंठों से उनके लंड को चूम रही थी, और वो मेरे बाल पकड़कर मेरे मुँह को और गहराई में धकेल रहे थे। “आह… रिया… तू तो मज़ा दे रही है!” वो बोले। मैं उनके लंड को गले तक ले रही थी, और मेरी बुर फिर से गीली हो रही थी।

तभी मम्मी कमरे में आ गईं। वो ग़ुस्से से लाल होकर बोलीं, “ये तुम दोनों क्या कर रहे हो। ज़रा मुझे भी बताओ?” मैं डर गई और लंड मुँह से निकाल लिया। लेकिन विक्रम सर बोले, “मैं तुम्हारी बेटी को तैयार कर रहा हूँ। इसकी चूत बहुत मीठी है, इसे तुम भी चाटो।” मम्मी पहले तो गुस्से में थीं, लेकिन फिर वो मेरे पास आईं और मेरी बुर पर मुँह रख दिया। उनकी जीभ मेरी बुर के अंदर तक जा रही थी, और मैं चिल्ला उठी, “मम्मी… आह… ये क्या… इतना मज़ा!” मम्मी मेरी बुर को चूस रही थीं, जैसे कोई प्यासी औरत पानी पी रही हो।

विक्रम सर ने मम्मी की साड़ी खींचकर उतार दी। उनका ब्लाउज़ फट गया, और उनकी भारी चूचियाँ बाहर आ गईं। वो मम्मी की चूत में अपना लंड घुसाने लगे। मम्मी सिसकारियाँ ले रही थीं, “आह… विक्रम… और ज़ोर से… मेरी चूत को चोद!” वो मेरी बुर चाट रही थीं, और विक्रम सर मम्मी की चूत में ज़ोर-ज़ोर से धक्के मार रहे थे। कमरे में चुदाई की आवाज़ें गूँज रही थीं—थप-थप की आवाज़, मम्मी की सिसकारियाँ, और मेरी चीखें।

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विक्रम सर ने मुझे पलटा और मेरी गाँड को सहलाने लगे। “रिया, तेरी गाँड तो मक्खन जैसी है,” वो बोले। उन्होंने मेरी गाँड पर ज़ोर से थप्पड़ मारा, और मैं दर्द से चिल्ला उठी। फिर उन्होंने अपनी उंगली मेरी गाँड के छेद में डाल दी। दर्द के साथ मज़ा भी आ रहा था। वो बोले, “तेरी गाँड भी चोदूँगा, लेकिन पहले तेरी चूत का मज़ा लूँ।” उन्होंने अपना लंड मेरी चूत में धीरे-धीरे घुसाया। मैं दर्द से कराह रही थी, “सर… धीरे… दुखता है!” लेकिन वो नहीं रुके। धीरे-धीरे मज़ा आने लगा। वो ज़ोर-ज़ोर से धक्के मार रहे थे, और मेरी चूचियाँ हवा में उछल रही थीं। मैं चिल्ला रही थी, “आह… सर… और ज़ोर से… मेरी चूत को चोद दो!”

मम्मी मेरे सामने लेट गईं और अपनी चूत मेरे मुँह के पास लाईं। “रिया, अब तू मेरी चूत चाट,” वो बोलीं। मैंने उनकी गीली चूत को चाटना शुरू किया। उनका स्वाद मेरे मुँह में घुल रहा था। मैं उनकी चूत को जीभ से चोद रही थी, और वो चिल्ला रही थीं, “आह… रिया… और चाट!” विक्रम सर मेरी चूत और मम्मी की गाँड में बारी-बारी से लंड डाल रहे थे। वो मम्मी की गाँड में ज़ोर-ज़ोर से धक्के मार रहे थे, और मम्मी चिल्ला रही थीं, “विक्रम… मेरी गाँड फट जाएगी… और ज़ोर से!”

ये चुदाई घंटों चली। विक्रम सर का लंड कभी मेरी चूत में, कभी मम्मी की गाँड में, तो कभी हमारे मुँह में था। कमरे में पसीने की गंध थी, चुदाई की थप-थप की आवाज़ें थीं, और हमारी सिसकारियाँ थीं। आख़िरकार, विक्रम सर झड़ गए। उनका गर्म माल मेरी चूचियों पर, मम्मी के मुँह पर, और बिस्तर पर गिरा। हम तीनों थककर बिस्तर पर पड़े थे। मेरी साँसें तेज़ थीं, मम्मी की आँखें बंद थीं, और विक्रम सर हँस रहे थे।

उस दिन के बाद, मम्मी और विक्रम सर ने मुझे सेक्स की हर बात सिखाई। हमारा घर अब चुदाई का अड्डा बन गया। मम्मी और मैं, हम दोनों उनके लंड की गुलाम बन गईं। लेकिन मेरे दिल में एक कसक थी। मेरी अपनी मम्मी ने मुझे इस रास्ते पर धकेला। मैं उनकी बेटी थी, लेकिन अब उनकी सौतन भी। ये कहानी मेरे लिए एक ज़ख़्म है, लेकिन साथ ही एक ऐसा नशा, जो मैं आज तक नहीं भूल पाई।

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