नमस्ते दोस्तों, मेरा नाम अविनाश है, और आज मैं पहली बार अपनी जिंदगी की एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो मेरे दिल और दिमाग में गहरे तक उतर चुकी है। ये कहानी मेरी माँ की है, और कैसे मेरा ही दोस्त, विनीत, उनकी जिंदगी में आया और सब कुछ बदल गया। ये कहानी थोड़ी तीखी है, थोड़ी गर्म, और बिल्कुल सच्ची-सी लगने वाली, तो तैयार हो जाइए।
सबसे पहले मैं अपने बारे में बता दूँ। मैं 26 साल का हूँ, पटना में रहता हूँ, और यहाँ एक छोटे से किराए के कमरे में अपनी पढ़ाई पूरी करता हूँ। मेरी फैमिली में सिर्फ तीन लोग हैं – मैं, मेरी माँ, और मेरा बाप। मेरा बाप गाँव में रहता है, एक छोटी-सी किराने की दुकान चलाता है। लेकिन उसका और मेरी माँ का रिश्ता, क्या कहूँ, बिल्कुल कड़वा है। वो दारू पीता है, गाली-गलौज करता है, और कई बार माँ को हाथ भी उठा देता है। मैंने कई बार माँ को समझाया कि वो गाँव छोड़कर मेरे पास आ जाएँ, लेकिन वो कहती थीं, “बेटा, गाँव की जिंदगी छोड़कर शहर में क्या करूँगी?” पर इस बार बात बिगड़ गई। एक दिन बाप ने फिर दारू पीकर माँ को इतना मारा कि माँ का सब्र टूट गया। मैंने फोन पर सुना तो तुरंत बोला, “माँ, तुम ट्रेन पकड़कर पटना आ जाओ। यहाँ मेरे पास रहो, कुछ दिन सुकून मिलेगा।”
अगले ही दिन माँ पटना आ गईं। मेरा कमरा छोटा-सा है, एक ही कमरे में रसोई, बिस्तर, और मेरी पढ़ाई का सामान। माँ को देखकर थोड़ा सुकून मिला, लेकिन साथ में टेंशन भी थी कि अब हम दोनों इस छोटे से कमरे में कैसे रहेंगे। माँ ने कहा, “अविनाश, तू चिंता मत कर। मैं नीचे बिस्तर डालकर सो जाऊँगी, तू ऊपर चौकी पर सो जा।” मैंने हामी भर दी। गाँव में बाप को खाना देने के लिए पड़ोस की भाभी थी, जो पहले से ही उसकी दुकान पर खाना पहुँचा देती थी। सो, उसकी चिंता नहीं थी।
अब माँ के बारे में बताता हूँ। मेरी माँ, उम्र 45 साल, लेकिन देखने में ऐसी कि कोई भी मर्द एक बार पलटकर देख ले। उनका नाम राधा है। गोरा रंग, भरा हुआ बदन, और वो साड़ी में इतनी खूबसूरत लगती हैं कि क्या बताऊँ। उनके स्तन इतने उभरे हुए हैं कि साड़ी के पल्लू से भी नहीं छिपते। और उनकी गाँड़, उफ्फ, वो चलती हैं तो कूल्हों का लचकना किसी का भी मन डोल दे। मैंने कई बार गाँव में देखा, लोग माँ को घूरते थे, लेकिन माँ हमेशा साड़ी संभालकर, आँखें नीची करके चलती थीं। पर अब शहर में, मेरे कमरे में, वो थोड़ी खुल गई थीं। शायद गाँव की बंदिशों से दूर, उन्हें थोड़ी आजादी महसूस हो रही थी।
पहली रात हमने साथ खाना खाया। माँ ने दाल, चावल, और आलू की सब्जी बनाई। खाते वक्त वो हँसकर बातें कर रही थीं, “बेटा, तू तो शहर में बिल्कुल पतला हो गया है। अब मैं हूँ ना, तुझे अच्छा खाना खिलाऊँगी।” मैंने हँसकर कहा, “माँ, तुम बस यहाँ रहो, मुझे और कुछ नहीं चाहिए।” रात को सोने का वक्त आया। मैं ऊपर चौकी पर लेट गया, और माँ ने नीचे चटाई पर बिस्तर बिछाया। उनकी साड़ी का पल्लू थोड़ा सा सरक गया था, और मैंने देखा कि उनकी कमर का उभार कितना गजब का था। मैंने नजरें हटा लीं, लेकिन मन में कुछ अजीब-सा चल रहा था।
रात को करीब 2 बजे मेरी नींद खुल गई। मैंने नीचे देखा तो माँ की साड़ी नीचे से थोड़ी ऊपर सरक गई थी। उनकी गोरी जाँघें साफ दिख रही थीं। माँ करवट लेकर सो रही थीं, और उनकी साड़ी का किनारा उनकी जाँघों के बीच में फँस गया था। मैंने पहली बार माँ को इस तरह देखा, और मेरा मन बेकाबू होने लगा। वो बिल्कुल किसी कामदेवी की तरह लग रही थीं। मेरा लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा। मैंने खुद को संभाला, बाथरूम गया, पेशाब किया, और ठंडे पानी से मुँह धोया। वापस आया तो देखा माँ ने करवट बदली थी। अब उनकी साड़ी और ऊपर चढ़ गई थी। उनकी गाँड़ का उभार साफ दिख रहा था। साड़ी का कपड़ा उनकी गाँड़ की दरार में फँस गया था, और वो दृश्य मेरे लिए बर्दाश्त करना मुश्किल था। मेरा लंड फिर से तन गया। मैं चुपके से अपनी चौकी पर लेट गया, लेकिन नींद कोसों दूर थी। मैं बस माँ को देखता रहा। उनकी साँसें धीरे-धीरे चल रही थीं, और हर साँस के साथ उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। मैंने खुद को डाँटा, “अविनाश, ये तेरी माँ है, ये गलत है।” लेकिन मेरा जिस्म मेरे दिमाग की नहीं सुन रहा था। किसी तरह मैंने खुद को काबू किया और सो गया।
सुबह मैं कोचिंग के लिए निकल गया। मेरा एक दोस्त है, विनीत। वो 29 साल का है, लंबा-तगड़ा, बॉडी बिल्डर जैसा। जिम में घंटों पसीना बहाता है, और उसका बदन ऐसा कि लड़कियाँ उसे देखकर पिघल जाती हैं। उसका चेहरा भी ठीक-ठाक है, और वो मेरे साथ कॉलेज में पढ़ता था। उस दिन वो मेरे कमरे पर आया, उसे नहीं पता था कि माँ पटना आई हुई हैं। माँ ने मुझे फोन करके बताया, “अविनाश, तेरा दोस्त विनीत आया है।” मैंने कहा, “माँ, मैं दो घंटे में आ जाऊँगा। तुम उससे कहो कि वो रुके, या फिर मैं बाद में उससे मिल लूँगा।” मैंने सोचा वो चला गया होगा, लेकिन जब मैं घर पहुँचा तो देखा विनीत माँ के साथ बैठा है, और दोनों हँस-हँसकर बातें कर रहे हैं। माँ ने साड़ी पहनी थी, लेकिन उनका पल्लू थोड़ा सा सरक गया था, और विनीत की नजरें बार-बार उनके सीने पर जा रही थीं। मुझे अजीब-सा लगा, लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा। मैंने विनीत से कहा, “यार, शाम को मिलते हैं।” वो हँसकर चला गया।
दोपहर में हमने खाना खाया। माँ ने फिर से गजब का खाना बनाया था। खाते वक्त वो बोलीं, “तेरा दोस्त विनीत बहुत अच्छा लड़का है। कितना हँसता-हँसाता है।” मैंने हल्के से हामी भरी, लेकिन मन में कुछ और ही चल रहा था। शाम को मैं ट्यूशन पढ़ाने चला गया, और विनीत से मिलने का प्लान भी था। रात को जब मैं घर लौटा, तो माँ बाथरूम में थीं। मैं मोबाइल चला रहा था, तभी माँ के फोन पर एक मैसेज आया। मैंने देखा तो मेरे होश उड़ गए। मैसेज विनीत का था, और उसका नंबर माँ के फोन में “विनीत बेटा” के नाम से सेव था। उसने लिखा, “आंटी, आप सो गईं? आपके हाथ का बना नाश्ता बहुत स्वादिष्ट था।” मुझे गुस्सा आया, लेकिन साथ में शक भी हुआ। इसका मतलब विनीत शाम को फिर से मेरे कमरे पर आया था? माँ ने उसे नाश्ता खिलाया था? मैंने कुछ नहीं कहा, माँ का फोन रख दिया, और सोने की एक्टिंग करने लगा।
माँ बाथरूम से निकलीं, अपनी साड़ी ठीक की, और मोबाइल उठाकर देखने लगीं। मैसेज देखकर वो मुस्कुराईं, और कुछ टाइप करने लगीं। मैं चुपके से देख रहा था। करीब आधा घंटा वो विनीत से चैट करती रहीं, फिर सो गईं। रात को जब माँ गहरी नींद में थीं, मैंने उनका फोन उठाया और चैट पढ़ने लगा। मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। माँ ने जवाब दिया था, “विनीत, तुम रोज आकर नाश्ता कर लिया करो।” विनीत ने लिखा, “आंटी, आप तो बहुत सुंदर और प्यारी हैं। आपके हाथ का नाश्ता खाऊँगा तो दस दिन में मोटा हो जाऊँगा।” माँ ने जवाब दिया, “कोई बात नहीं, तुम फिर जिम में कसरत करके बॉडी बना लेना।” ऐसी ही कुछ और बातें थीं, लेकिन मुझे साफ समझ आ गया कि विनीत का माँ पर दिल आ गया था। और माँ को भी उसका लंबा-तगड़ा बदन और हँसमुख स्वभाव पसंद आ गया था। मेरा दिमाग उलझ गया। एक तरफ गुस्सा था कि मेरा दोस्त मेरी माँ के साथ ऐसा कैसे कर सकता है, और दूसरी तरफ मन में कुछ और ही चल रहा था। मैं सोचने लगा, कल क्या होगा? क्या विनीत फिर आएगा? और माँ उसका स्वागत कैसे करेंगी?
दोस्तों, ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती। आगे क्या हुआ, वो अगले हिस्से में बताऊँगा। आप लोग क्या सोचते हैं, मुझे कमेंट में जरूर बताएँ।
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