हाय, मेरा नाम विद्या है। मैं 28 साल की शादीशुदा औरत हूँ। मेरा रंग गोरा है, कद 5 फीट 4 इंच, और फिगर 34-28-36, जो मुझे बेहद आकर्षक बनाता है। मेरे बूब्स भरे हुए और कसे हुए हैं, और मेरी कमर पतली होने के साथ-साथ मेरी गांड उभरी हुई है, जो मेरी साड़ी में और निखरती है। मेरे पति का नाम किशन है, उम्र 32 साल, रंग सांवला, कद 5 फीट 10 इंच, और वो एक फिट और मेहनती इंसान हैं। किशन सेक्स में अच्छे हैं, पर शादी के एक साल बाद हमारा सेक्स जीवन रूटीन और बोरिंग हो गया था। हर रात वही ढर्रा, वही पोजीशन, कोई नयापन नहीं। फिर एक दिन ऐसी घटना हुई, जिसने मेरी ज़िंदगी में तूफान ला दिया। ये कहानी उसी की है।
हम दोनों शहर में अपने छोटे से दो बेडरूम वाले घर में रहते थे। एक बेडरूम हमारा था, और दूसरा मेहमानों के लिए खाली रहता था। मैं दिनभर घर की साफ-सफाई, खाना बनाने, और सजावट में व्यस्त रहती थी। किशन अपने ऑफिस में डूबे रहते थे। एक दिन किशन ने एक पत्र पढ़ते हुए कहा, “विद्या, मेरा एक कज़िन, मनीष, जो पास के गाँव में रहता है, उसकी एस.एस.सी. की परीक्षा का सेंटर हमारे शहर में पड़ा है। वो कुछ दिन यहाँ रहकर पढ़ाई और परीक्षा देना चाहता है। तुम्हें कोई ऐतराज़ तो नहीं?” मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया, “अरे, भला मुझे क्या दिक्कत होगी? तुम्हारा भाई है, तो मेरा देवर हुआ ना। देवर के आने से भाभी को क्या परेशानी?” किशन ने हँसकर बात टाल दी।
कुछ दिन बाद मनीष आ गया। उसका पूरा नाम मनीष शेखर था, पर सब उसे मनीष ही बुलाते थे। वो 18 साल का था, कद 5 फीट 8 इंच, मज़बूत और कसा हुआ बदन, हल्की-सी मूछें, जो उसकी जवानी को और उभारती थीं। उसका रंग हल्का सांवला था, और आँखों में एक शरारती चमक थी, जो मुझे पहली बार मिलते ही महसूस हुई। उसकी मांसपेशियाँ तनी हुई थीं, और उसका सीना चौड़ा था, जो उसकी टी-शर्ट में साफ दिखता था। मनीष के आने से घर में रौनक आ गई। सुबह हम तीनों—मैं, किशन, और मनीष—साथ नाश्ता करते। किशन ऑफिस चले जाते, और पहले मैं घर में अकेली रहती थी। अब मनीष मेरे साथ था। वो दिनभर अपनी पढ़ाई में डूबा रहता, और मैं उसे डिस्टर्ब नहीं करती थी। दोपहर में हम साथ लंच करते और चाय पीते। चाय के वक्त हम हल्की-फुल्की बातें करते—उसकी पढ़ाई, गाँव की बातें, या कभी-कभी मज़ाक। जब मैं दोपहर की नींद से उठती, तो मनीष के कमरे की तरफ जाती और पूछती, “पढ़ाई कैसी चल रही है, मनीष?” वो जवाब देता, “ठीक है, भाभी।” फिर मैं पूछती, “चाय पियोगे ना?” वो हाँ कहता, और मैं चाय बनाने चली जाती।
एक दोपहर मेरी नींद जल्दी खुल गई। मैं मनीष के कमरे की तरफ गई। दरवाज़ा बंद था, और अंदर से अजीब-सी आवाज़ें आ रही थीं— “आह… आह…” की सिसकारियाँ। मैं ठिठक गई। समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। मैंने दरवाज़ा खटखटाने की सोची, पर फिर ख्याल आया कि पहले खिड़की से देख लूँ। उस कमरे की एक खिड़की हॉल में खुलती थी, जो हल्की-सी खुली थी। मैंने धीरे से धक्का दिया और खिड़की को थोड़ा और खोल लिया। अंदर का नज़ारा देखकर मेरी साँसें रुक गईं। मनीष पूरी तरह नंगा खड़ा था। उसका लंड, जो करीब 7 इंच लंबा और मोटा था, पूरी तरह तना हुआ था। वो अपने हाथ में लंड पकड़े ज़ोर-ज़ोर से हस्तमैथुन (masturbation) कर रहा था। उसकी हरकत के साथ उसकी मांसपेशियाँ उभर रही थीं। उसका चौड़ा सीना, मज़बूत जांघें, और बीच में तना हुआ लंड—क्या नज़ारा था! मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। मेरे सामने एक 18 साल का जवान लड़का, अपनी पूरी जवानी में, नंगा खड़ा था। उसका चेहरा सेक्स की तड़प से लाल हो रहा था। मैंने सुना था कि मर्द हस्तमैथुन करते हैं, पर आज पहली बार अपनी आँखों से देख रही थी।
मेरे संस्कार चीख रहे थे, “विद्या, ये गलत है! तुरंत यहाँ से चली जा!” पर मेरा शरीर वहाँ से हटने को तैयार नहीं था। मेरी नज़रें मनीष के लंड पर टिकी थीं, जो हर पल और सख्त होता जा रहा था। उसकी साँसें तेज़ थीं, और चेहरे पर कामुकता साफ झलक रही थी। मैं खिड़की के पास खड़ी रही, और वो दिलकश नज़ारा देखती रही। खिड़की थोड़ी ही खुली थी, इसलिए उसका ध्यान मुझ पर नहीं गया। वो अपने काम में मगन था। कुछ देर बाद उसके लंड से पानी की पिचकारी छूटी, “आह… उह…” उसने सिसकारी भरी, और वो ढीला पड़ गया। मैं चुपके से वहाँ से हट गई। अपने कमरे में जाकर देखा तो मेरी पैंटी गीली हो चुकी थी। मैंने उसे बदला और बाथरूम में ठंडे पानी से मुँह धोया, पर मनीष का वो नज़ारा मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रहा था। मेरी चूत में एक अजीब-सी सनसनी थी, जैसे वो मनीष के लंड के लिए तड़प रही हो।
रात को जब मैं किशन के साथ सोने गई, तो मेरा दिमाग उसी सीन में अटका था। मैं इतनी गर्म हो गई थी कि मैंने किशन को बिस्तर पर खींच लिया। मैं उनके ऊपर चढ़ गई, उनकी शर्ट फाड़ी, और उनके होंठों को ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगी। “आह… किशन… चोदो मुझे…” मैं सिसकार रही थी। मैंने उनकी पैंट उतारी और उनके लंड को अपने मुँह में लिया। “ओह… विद्या… आज तुझे क्या हो गया?” किशन हैरान थे। मैंने उनके लंड को चूसा, फिर उनकी छाती पर सवार होकर खूब चुदवाया। “आह… किशन… और ज़ोर से… फाड़ दो मेरी चूत…” मैं चिल्ला रही थी। “थप… थप… थप…” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। किशन ने भी पूरी ताकत से मुझे चोदा, और मैं दो बार झड़ गई। बाद में किशन ने हँसते हुए कहा, “अरे, आज तुझे क्या हो गया? कोई ब्लू फिल्म तो नहीं देख ली?” मैंने हँसकर टाल दिया, “नहीं, बस ये सोच रही थी कि तुम कल से 10 दिन के टूर पर जा रहे हो, इसलिए आज मन कर रहा है।” किशन हँस पड़े। अगली सुबह वो टूर पर चले गए।
अब मेरा मन मनीष में अटक गया था। उसका लंड, उसका कसा हुआ बदन, उसकी जवानी—सब मेरे दिमाग में घूम रहा था। मेरा बदन उसके लिए तड़प रहा था। पर डर भी था। मनीष एक सुशील और सीधा-सादा लड़का था। अगर मैंने कुछ कहा और उसने मना कर दिया, तो मेरी इज़्ज़त का क्या होगा? मैंने सोचा कि ऐसा कुछ करना होगा कि मनीष खुद मेरे लिए तड़पे। मैंने धैर्य रखने का फैसला किया।
अगले दिन मैं नहाकर निकली। मेरे दिमाग में एक योजना बन चुकी थी। मैंने अपनी अलमारी से अपनी शादी की एक पुरानी लो-कट ब्लाउज़ निकाली। तब से मेरे बूब्स और बड़े हो चुके थे, क्योंकि किशन रोज़ उन्हें मसलते थे। मैंने जैसे-तैसे अपने 34D के बूब्स को उस टाइट ब्लाउज़ में ठूँसा। ब्लाउज़ इतना टाइट था कि मेरा क्लीवेज पूरी तरह दिख रहा था, और मेरे बूब्स उभरकर बाहर आ रहे थे। साड़ी भी मैंने ऐसी बाँधी कि क्लीवेज खुला रहे। मैंने साड़ी को नाभि के नीचे बाँधा, ताकि मेरी कमर और नाभि भी दिखे। आईने में खुद को देखा तो मैं खुद पर फिदा हो गई। मैंने हल्का मेकअप किया—काजल, लिपस्टिक, और बाल खुले छोड़े। नाश्ते की तैयारियाँ कीं और मनीष को बुलाया। वो आया और डाइनिंग टेबल पर बैठ गया, पर उसका ध्यान अपनी किताबों में ही था। मैंने जानबूझकर कुछ आइटम्स टेबल पर कम रखे। वो जल्दी खा गया और और माँगने लगा। मैं मन ही मन मुस्कुराई।
मैं मनीष के पास गई। सारे आइटम्स उसके बाएँ तरफ रखे थे, और मैं उसकी दाईं तरफ खड़ी थी। मैंने झुककर आइटम्स उठाने शुरू किए। मेरे बूब्स उसके मुँह के इतने करीब आ गए कि उसकी साँसें मेरे क्लीवेज पर महसूस हो रही थीं। उसकी नज़र मेरे बूब्स पर पड़ी, और वो देखता ही रह गया। मेरे गोरे-गोरे बूब्स, लो-कट ब्लाउज़ में साफ दिख रहे थे। मैंने ऐसा जताया जैसे मुझे कुछ पता ही नहीं। मैंने एक गहरी साँस ली, जिससे मेरी छाती और उभरी, और मेरे बूब्स हल्के से हिले। “आह…” मनीष की साँस तेज़ हो गई। मैंने कहा, “देवरजी, नाश्ता कीजिए ना।” वो चौंका और खाने लगा, पर बार-बार मेरे बूब्स की तरफ देख रहा था। मैं समझ गई कि मेरा प्लान काम कर रहा है।
अगले दिन मैंने एक स्लीवलेस और लो-कट ब्लाउज़ पहना। मेरी गोरी बाहें अब उसे और लुभा रही थीं। तीसरे दिन मैंने एक पारदर्शी ब्लाउज़ पहना, जिसमें से मेरी काली ब्रा साफ दिख रही थी। मनीष अब चोरी-छिपे मेरे बूब्स को देखने लगा। चौथे दिन मैंने ब्रा पहनना ही छोड़ दिया। ब्लाउज़ पारदर्शी, स्लीवलेस, और लो-कट था। मैंने उसे साइड से ऐसा सिलवाया कि मेरे बूब्स की साइड भी दिखे। पाँचवें दिन नाश्ता परोसते वक्त मैं इतना झुकी कि मेरे बूब्स उसके मुँह के और करीब आ गए। उसकी गर्म साँसें मेरे बूब्स को छू रही थीं। कई बार उसका चेहरा मेरे बूब्स से टकरा गया। उसकी आँखों में तड़प साफ दिख रही थी। मैं जान गई कि मेरा जाल कामयाब हो रहा है।
छठे दिन मैंने साड़ी को और नीचे बाँधा, ताकि मेरी नाभि और कमर पूरी तरह दिखे। मैंने पूरा मेकअप किया—गहरा काजल, लाल लिपस्टिक, और बालों में गजरा लगाया। नाश्ते के वक्त मनीष मेरे बूब्स को देखता रहा। मैंने जानबूझकर गहरी साँसें लीं, जिससे मेरे बूब्स ऊपर-नीचे हो रहे थे। मैंने ब्लाउज़ का हुक ढीला रखा था। अचानक एक साँस लेते वक्त हुक टूट गया, और मेरे बूब्स उछलकर बाहर आ गए। “ओह…” मैंने शरमाने का नाटक किया और अपने कमरे में जाकर हुक ठीक किया। मनीष की हालत देखने लायक थी। उसकी आँखें लाल थीं, और वो बेचैन लग रहा था।
उसी दोपहर मैं हॉल में सोफे पर लेट गई। मैंने एक नॉवेल लिया, जिसमें देवर-भाभी के नाजायज़ रिश्ते (इन्सेस्ट) की कहानी थी। मैंने वो पेज खोलकर रखा, जहाँ सेक्स का खुला वर्णन था, और किताब को उल्टा रखकर सोने का नाटक किया। साड़ी मैंने घुटनों तक सरका रखी थी। चाय का समय हुआ, पर मैं जानबूझकर नहीं उठी। मनीष चाय के लिए मुझे बुलाने आया। उसने मुझे सोया हुआ देखा और किताब उठाई। वो पढ़ने लगा। किताब में देवर-भाभी के सेक्स का ज़िक्र था। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। मैंने करवट बदली और साड़ी को कमर तक सरका दिया। मेरी गोरी जांघ पूरी तरह दिख रही थी। मैंने आँखें हल्की-सी खोलीं तो देखा कि उसका लंड उसकी चड्डी में तन गया था। उसने एक हाथ से किताब पकड़ी थी, और दूसरा हाथ अपनी चड्डी में डालकर लंड को मसल रहा था। फिर उसने हाथ मेरी तरफ बढ़ाया। मैं खुश हो गई और इंतज़ार करने लगी, पर वो रुक गया। उसकी हिम्मत नहीं हुई। वो किताब लेकर अपने कमरे में चला गया।
मैं उसके कमरे की तरफ गई। दरवाज़ा बंद था। मैंने फिर खिड़की से देखा। मनीष फिर हस्तमैथुन कर रहा था। उसका लंड आज और बड़ा लग रहा था, करीब 7.5 इंच, और इतना मोटा कि मेरी चूत में सनसनाहट होने लगी। मुझे बहुत अफसोस हुआ। वो लंड जो मेरी चूत में होना चाहिए था, वो उसके हाथ में था। पर मुझे भी तो खुलकर कुछ नहीं कहना था। मैं बस देखती रही। “आह… उह…” उसकी सिसकारियाँ तेज़ हो रही थीं। थोड़ी देर में उसके लंड से फव्वारा छूटा, और वो शांत हो गया।
उस रात मैंने सातवें दिन का प्लान बनाया। मैंने अपने कमरे का फ्यूज़ निकाल दिया और कहा कि मेरा गीज़र खराब है। मैंने मनीष के अटैच्ड बाथरूम में नहाने का फैसला किया। नहाकर मैं बाहर निकली, सिर्फ एक तौलिया लपेटे हुए, जो मेरे निपल्स से शुरू होकर मेरी चूत तक था। मेरे बूब्स का ऊपरी हिस्सा और जांघें पूरी खुली थीं। मेरे गीले बाल मेरे गोरे बदन पर पानी की बूँदों के साथ चमक रहे थे। मैं बेहद सेक्सी लग रही थी। बाहर निकली तो मनीष सिर्फ चड्डी पहने पंखे के नीचे खड़ा था। मुझे देखकर वो ठिठक गया। उसने मुझे इतना नंगा पहली बार देखा था। मैंने उसकी बेड पर वही किताब देखी और पूछा, “कैसी लगी ये कहानी?” उसने कहा, “बड़ी रोचक है, पर ऐसा तो सिर्फ कहानियों में होता है ना?” मैंने कहा, “कहानियाँ भी तो समाज से मिलती हैं। किताब में महेश ने हिम्मत की, तो हंसा को पाया। हंसा की भी इच्छा थी, पर महेश ने शुरूआत की, तो उसने साथ दिया ना।” मनीष बात समझ गया।
वो मेरे करीब आया। मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। क्या वो हिम्मत करेगा? मैं डर और उत्तेजना दोनों महसूस कर रही थी। उसने अपने दोनों हाथ मेरे गीले बालों में डाले और मेरे कानों पर रखे। उसने मेरा चेहरा ऊपर किया। मैं भी वासना भरी नज़रों से उसे देख रही थी। वो झुका और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। “आह…” मेरे बदन में सिहरन दौड़ गई। मैंने उसे अपने होंठ चूसने दिए। उसकी साँसें मेरे चेहरे पर गर्माहट बिखेर रही थीं। उसकी हिम्मत बढ़ी, और उसने मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। मैंने धीरे से तौलिया खोल दिया, और वो ज़मीन पर गिर पड़ा। अब मैं पूरी नंगी थी, और मनीष सिर्फ चड्डी में। मैं उससे चिपक गई। मेरे बूब्स उसकी छाती से दब गए। उसने किस को और तेज़ किया। वो नया था, इसलिए उसे ज्यादा अनुभव नहीं था। मैंने भी अपनी जीभ और होंठों से उसे जवाब देना शुरू किया। “उम्म… मनीष…” मैं सिसकार रही थी। वो जल्दी सीख गया। हम दोनों एक लंबी, गहरी किस में खो गए। हमारे होंठ और जीभ एक-दूसरे से मिल रहे थे। “आह… मनीष… और ज़ोर से चूसो…” मैंने कहा। उसने मेरे होंठों को और तेज़ी से चूसा।
मैंने अपनी बाहें उसके गले में डाल दीं। उसकी बाहें मेरी नंगी पीठ पर फिर रही थीं। मैंने कहा, “मनीष, अपनी बाहों से मुझे और ज़ोर से दबाओ।” उसने ज़ोर बढ़ाया। मेरे बूब्स और निपल्स उसकी छाती से चिपक गए। “आह… मनीष… क्रश कर दो मुझे…” मैं सिसकार रही थी। उसने और ज़ोर लगाया। “ओह… हाँ… क्रश कर दो अपनी भाभी को…” मेरे बूब्स उसकी छाती से दबकर चपटे हो गए। मेरे निपल्स चुभ रहे थे, पर मज़ा इतना था कि मैं चीख रही थी, “आह… मनीष… और ज़ोर से… मेरे बूब्स दबा दो…” वो मेरे होंठ चूसता रहा, और उसकी बाहें मेरी कमर को मसल रही थीं। मैं उसकी बाहों में पिघल रही थी।
उसने मेरे होंठ छोड़े और मेरी ठुड्डी, फिर गर्दन, फिर कंधों पर किस करना शुरू किया। उसकी गर्म साँसें मेरे बदन को और गर्म कर रही थीं। वो मेरे बूब्स पर आया। उसने मेरे बूब्स को पहले हल्के से सहलाया, फिर दबाया। “आह… मनीष… दबाओ… और ज़ोर से…” मैं सिसकार रही थी। उसने मेरे बूब्स को मसला, उनके निपल्स को चूमा, और फिर एक निपल मुँह में लेकर ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। “ओह… मनीष… चूसो… मेरे निपल्स को काट लो…” मैं चिल्ला रही थी। उसने दूसरा बूब मसलना शुरू किया, और उसकी उंगलियाँ मेरे निपल को चुटकी में लेकर मरोड़ रही थीं। “आह… दर्द हो रहा है… पर मत रुको…” मेरे बदन में आग लग रही थी। वो मेरी कमर पर किस करता हुआ नीचे गया। उसकी उंगलियाँ मेरी जांघों को सहला रही थीं। वो मेरी चूत के पास रुका। उसे समझ नहीं आया कि क्या करे। मैंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा, अपनी टाँगें फैलाईं, और उसके सिर को अपनी चूत पर रखा। “मनीष… चाटो इसे…” मैंने धीरे से कहा। उसने मेरी चूत पर किस करना शुरू किया। “आह… मनीष… और गहराई में…” मैं सिसकार रही थी। मैंने अपने हाथों से अपनी चूत के होंठ फैलाए, और उसकी जीभ अंदर गई। “ओह… मनीष… मेरे देवर… अपनी भाभी की चूत चाटो… आह…” मैं चीख रही थी। वो अब बखूबी चाट रहा था। उसकी जीभ मेरी चूत के अंदर गहरे तक जा रही थी। “आह… हाँ… ऐसे ही… ओह… मज़ा आ रहा है…” मेरा बदन तड़प रहा था।
मैंने उसे रोका और कहा, “अब मेरी बारी।” मैं उठी और उसकी चड्डी उतार दी। उसका 7.5 इंच का लंड बाहर उछला, मोटा और गर्म। मैंने उसे जड़ से चूमा, फिर चारों तरफ किस किया। मैंने उसके लंड को दोनों हथेलियों में लिया और रगड़ा, जैसे लस्सी बनाते वक्त घुमाते हैं। “आह… विद्या भाभी… मेरी रानी… चूसो अपने देवर का लंड…” वो चिल्ला रहा था। मैंने उसकी टॉप स्किन हटाई और उसके गुलाबी सुपारे को मुँह में लिया। “ओह… भाभी… चूसो… और ज़ोर से…” वो पागल हो रहा था। मैंने थोड़ा चूसा और देखा कि उसका लंड पूरी तरह तैयार है। मैंने उसे अपनी चूत की तरफ धकेला। मैं बेड पर लेट गई। मैंने अपनी टाँगें चौड़ी कीं, और उसने अपना लंड मेरी चूत पर रखा। “मनीष… धीरे…” मैंने कहा, पर उसने एक ज़ोरदार धक्का मारा। “आह…” उसका लंड मेरी चूत में पूरा घुस गया। “ओह… मनीष… चोदो… अपनी भाभी को चोदो…” मैं चिल्ला रही थी। उसका लंड गर्म और मोटा था। हर धक्के के साथ मेरी चूत में दर्द और मज़ा दोनों हो रहे थे। “थप… थप… थप…” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी।
“आह… मनीष… और ज़ोर से… फाड़ दो अपनी भाभी की चूत…” मैं चीख रही थी। उसने कहा, “हाँ, भाभी… साली… तूने एक हफ्ते से मेरी नींद हराम कर रखी है… कभी बूब्स दिखाती है, कभी चूत… आज तेरी चूत फाड़ दूँगा…” उसकी गंदी बातें मुझे और गर्म कर रही थीं। वो ज़ोर-ज़ोर से चोद रहा था। “आह… मनीष… चोद… और ज़ोर से… ओह… फक मी…” मैं चिल्ला रही थी। उसने मेरे बूब्स को मसला, मेरे निपल्स को चूसा, और धक्के मारता रहा। “थप… थप… थप…” की आवाज़ के साथ मेरी चूत गीली हो रही थी। मैंने अपनी टाँगें और चौड़ी कीं, ताकि उसका लंड और गहराई में जाए। “आह… मनीष… मेरे देवर… चोदो… अपनी भाभी को रंडी बना दो…” मैं बड़बड़ा रही थी। उसने कहा, “हाँ, मेरी रानी… आज तुझे रंडी बनाकर चोदूँगा…” हम दोनों पसीने से तर थे। उसने मुझे आधे घंटे तक चोदा। मैंने अपनी कमर उछाली, और मेरी चूत ने उसका लंड भीगो दिया। “आह… मनीष… मैं झड़ रही हूँ…” मैं चीखी। वो भी झड़ गया, और उसका गर्म माल मेरी चूत में भर गया। “ओह… भाभी… तू कितनी गर्म है…” वो हाँफते हुए बोला।
हम दोनों थककर बेड पर गिर पड़े। उसके बाद हमारे पास तीन दिन और थे। अब कोई झिझक नहीं थी। हमने हर पल साथ गुज़ारा। न जाने कितनी बार उसने मुझे चोदा—कभी बेड पर, कभी बाथरूम में, कभी किचन में। हर बार नया मज़ा था। तो ये थी मेरी कहानी। आपको कैसी लगी, ज़रूर बताइए।