Devar Bhabhi ki thukai हेलो, मेरा नाम प्रीति है। मैं शादीशुदा हूँ और अपनी जिंदगी में काफी खुश थी। मेरी उम्र करीब २६ साल की है, गोरी चिट्टी, लंबे बाल, और फिगर ऐसा कि लोग देखते रह जाते हैं। मेरे बूब्स ३४ के साइज के हैं, कमर पतली और गांड थोड़ी उभरी हुई। मैं अपने पति के साथ शहर में रहती थी, घर में सिर्फ हम दोनों ही थे। मेरे पति अच्छे इंसान हैं, जॉब करते हैं और सेक्स में भी वो ठीक-ठाक हैं, लेकिन कभी-कभी लगता था कि कुछ नया ट्राई करना चाहिए। शादी को एक साल हो चुका था और सब कुछ नॉर्मल चल रहा था।
एक दिन मेरे पति ने एक लेटर पढ़ा और बोले, “प्रीति, मेरा एक कजिन है राजेश, जो पास के छोटे गाँव में रहता है। उसकी एसएससी की एग्जाम का सेंटर इस शहर में है। वो पढ़ाई और एग्जाम के लिए यहाँ आ रहा है। कुछ दिन हमारे साथ रहेगा, तुम्हें कोई प्रॉब्लम तो नहीं?” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे, क्या प्रॉब्लम होगी? वो तुम्हारा भाई है, तो मेरा देवर हुआ ना। देवर के आने से भाभी को क्या ऐतराज हो सकता है?” और अगले ही दिन वो आ गया। राजा, मतलब राजेश, उम्र करीब १८ साल की, लेकिन दिखने में काफी मेच्योर। हाइट ५ फुट ८ इंच, बॉडी मजबूत और कसी हुई, मोटा नहीं लेकिन एथलीट जैसा। हल्की मूंछें थीं, जो उसे और आकर्षक बनाती थीं। वो शर्मीला सा था, लेकिन आँखों में एक चमक थी।
सुबह का ब्रेकफास्ट हम तीनों साथ करते थे—मैं, मेरे पति और राजा। पति ऑफिस चले जाते, तो पहले मैं घर में अकेली रहती थी, लेकिन अब राजा था। वो दिन भर पढ़ाई में लगा रहता, मैं उसे डिस्टर्ब नहीं करती। लंच और दोपहर की चाय साथ पीते। दोपहर में नींद के बाद मैं उसके रूम में जाती और पूछती, “पढ़ाई कैसी चल रही है?” वो कहता, “ठीक है भाभी।” फिर मैं पूछती, “चाय पियोगे?” वो हाँ कहता और मैं चाय बना लाती। चाय पीते हुए हम बातें करते—उसके गाँव की, उसकी पढ़ाई की, थोड़ी-बहुत हँसी-मजाक। वो बहुत सुशील लगता था, लेकिन मुझे पता नहीं था कि आगे क्या होने वाला है।
एक दिन दोपहर की नींद जल्दी पूरी हो गई। मैं उसके रूम की तरफ गई, दरवाजा बंद था और अंदर से कुछ आवाजें आ रही थीं—आह… आह… जैसी। मैं रुक गई और सुनने लगी। समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। नॉक करने वाली थी, लेकिन खिड़की से झांकने का ख्याल आया। खिड़की हॉल की तरफ खुलती थी, थोड़ी सी खुली हुई थी। मैंने हल्के से धक्का दिया और अंदर देखा। ओह माय गॉड! राजा पूरी तरह नंगा खड़ा था, उसका लंड पूरा तना हुआ, करीब ७ इंच का, मोटा और सख्त। वो हाथ में पकड़कर जोर-जोर से हिला रहा था। मेरी आँखें फटी रह गईं, दिल की धड़कन तेज हो गई। मैंने मर्दों के मुठ मारने के बारे में सुना था, लेकिन पहली बार देख रही थी। क्या सीन था! १८ साल का जवान लड़का, कसी हुई बॉडी, चौड़ा सीना, मजबूत जांघें, और बीच में वो तना हुआ लंड—वाह! मेरी सांसें तेज हो गईं।
मुझे पता था कि मुझे वहाँ से चले जाना चाहिए, लेकिन पैर नहीं हिले। मैं छुपकर देखती रही। वो अपनी दुनिया में खोया था, चेहरा लाल, आँखें बंद, और लंड को और तेज हिला रहा था। थोड़ी देर में उसके लंड से पानी की धार निकली, वो झड़ गया और लंड ढीला हो गया। मैं चुपके से वहाँ से हटी, लेकिन मेरी पैंटी गीली हो चुकी थी। कमरे में जाकर बदली, लेकिन वो सीन दिमाग से नहीं निकल रहा था। रात को पति के साथ सोई, तो भी वही घूम रहा था। मैं इतनी गर्म हो गई कि पति पर चढ़ गई, जोर-जोर से चुदवाई। वो बोले, “आज क्या हो गया तुझे? कोई ब्लू फिल्म देख ली क्या?” मैंने कहा, “नहीं, तुम कल से १० दिन के टूर पर जा रहे हो ना, इसलिए…” वो हँस पड़े। अगले दिन सुबह वो चले गए।
अब घर में सिर्फ मैं और राजा। मेरा मन उसमें अटक गया था। बॉडी उससे चुदवाने को तड़प रही थी, लेकिन कैसे कहती? वो सुशील था, अगर ठुकरा देता तो इज्जत जाती। सोचा, उसे खुद तरसाना पड़ेगा। मैंने प्लान बनाया। स्नान करके निकली, तो पुरानी लो-कट ब्लाउज निकाली—शादी के समय की, अब मेरे बूब्स बड़े हो चुके थे। जैसे-तैसे दबाकर पहनी, लो-कट से क्लिवेज पूरी दिख रही थी, बूब्स उभरे हुए। साड़ी ऐसे बाँधी कि आँचल न छुपाए। आईने में देखा, सेक्सी लग रही थी। ब्रेकफास्ट तैयार किया, टेबल पर चीजें प्लान से रखीं। राजा को बुलाया। वो आया, लेकिन ध्यान नहीं गया, पढ़ाई में व्यस्त था। मैंने कम चीजें दीं, वो माँगा तो मैं मुस्कुराई और उसके पास गई। दाईं तरफ खड़ी होकर झुकी, बूब्स उसके मुँह के पास आ गए। अब उसकी नजर पड़ी, वो देखता रह गया—गोरे उभरे बूब्स, क्लिवेज… मैं ऐसे ऐक्ट कर रही थी जैसे पता नहीं। लंबी सांस ली, बूब्स ऊपर-नीचे हुए। प्लेट परोसी, बोली, “देवरजी, नाश्ता करो।” वो चौंका, लेकिन बार-बार देख रहा था। प्लान काम कर रहा था।
अगले दिन स्लीवलेस लो-कट ब्लाउज पहनी, गोरी बाहें दिखीं। तीसरे दिन ट्रांसपेरेंट ब्लाउज, काली ब्रा साफ दिखती। वो चोरी-चोरी देखता। चौथे दिन ब्रा छोड़ी, ट्रांसपेरेंट ब्लाउज में बूब्स की शेप साफ, साइड से भी दिखते। पाँचवें दिन परोसते वक्त इतना झुकी कि उसकी सांसें बूब्स पर लगीं, कभी चेहरा छू जाता। उसकी आँखों में चाहत दिख रही थी। छठे दिन साड़ी नीचे बाँधी, मेकअप किया। परोसते वक्त ब्लाउज का हुक ढीला था, सांस से टूट गया, बूब्स उछलकर बाहर। मैं शर्मा के कमरे में गई, ठीक करके आई। उसकी हालत खराब हो गई। दोपहर को हॉल में सोई, एक किताब रखी—देवर-भाभी के अवैध रिश्ते पर, सेक्स सीन वाला पेज खुला। साड़ी घुटनों तक सरकाई। चाय का टाइम हुआ, लेकिन नहीं उठी। राजा आया, किताब देखी, पढ़ने लगा। किताब में देवर-भाभी की चुदाई का डिटेल था, वो उत्तेजित हुआ। मैंने करवट बदली, साड़ी कमर तक सरकी, गोरी जांघें दिखीं। उसका लंड चड्डी में तना, हाथ डाला, पकड़ा। मेरी जांघें और बूब्स देखता रहा, हाथ बढ़ाया लेकिन हिम्मत नहीं हुई, चला गया। मैंने देखा, वो फिर मुठ मार रहा था, लंड घोड़े जैसा। अफसोस हुआ, लेकिन प्लान जारी रखा।
सातवें दिन रूम का फ्यूज निकाला, उसके बाथरूम में नहाने गई। निकली तो सिर्फ टॉवल लपेटा—निप्पल से चूत तक, ऊपर बूब्स का हिस्सा और नीचे टांगें खुली। बाल गीले, बदन पर पानी। वो चड्डी में खड़ा था, मुझे देखता रह गया। मैं बोली, “कैसी लगी वो किताब, भाभी-देवर की चुदाई वाली?” वो बोला, “बड़ी इंटरेस्टिंग है, लेकिन ऐसा रियल लाइफ में नहीं होता ना?” मैंने कहा, “कहानियाँ समाज से ही आती हैं। महेश ने हिम्मत की तो हंसा मिली। शुरुआत मर्द को करनी पड़ती है।” वो समझ गया, पास आया, हाथ बालों में डाले, कान पर रखे, चेहरा ऊपर किया। मैं वासना से देख रही थी। वो झुका, होंठों पर होंठ रखे। मैं रोमांचित हो गई।
उसे चूसने दिया, कोई विरोध नहीं। उसने मुझे खींचा, मैंने टॉवल खोल दिया, गिर गया। अब मैं पूरी नंगी, वो चड्डी में। चिपक गई, किस तेज की। मैंने जीभ डाली, वो सीख गया। लंबी किस, जीभें मिलीं। बाहें उसके गले में डालीं, उसकी मेरी पीठ पर। मैं बोली, “हाथों से दबाओ।” उसने जोर लगाया, बूब्स उसके सीने से चिपके। निप्पल दबे, दर्द हुआ लेकिन मजा आया। “आह… राजा… और जोर से…” वो पिसता रहा, होंठ चूसता। फिर होठ छोड़ नीचे उतरा, गर्दन पर किस। बूब्स पर आया, सहलाया, दबाया, मसला। “ओह… राजा… चूसो इन्हें…” एक निप्पल मुँह में लिया, जोर से चूसा, दूसरे को मसला। “आउच… दर्द हो रहा है… लेकिन रुकना मत…” दर्द और मजा मिला, बॉडी गर्म हो गई। वो बेरहमी से मसलता रहा, मैं सिसकारियाँ लेती रही। “आह… हाँ… ऐसे ही…”
फिर नीचे उतरा, कमर पर किस, जांघों को छुआ। चूत के पास रुका। मैंने सिर पकड़ा, टांगें फैलाईं, होंठ चूत पर लगाए। वो किस करने लगा। हम बेड पर गए, मैं लेटी, टांगें फैलाईं। “जीभ से चाटो…” वो चाटने लगा, लिप्स फैलाए, जीभ अंदर। “ओह… राजा… गहराई तक… आह…” मैं गर्म हो गई, बॉडी तड़पी। अंगड़ाई ली, उसका मुँह हटाया। “अब मेरी बारी।” चड्डी उतारी, लंड उछला—७ इंच, मोटा। किस किया, चारों तरफ चाटा। हेड पर जीभ फेरी, हाथों से रगड़ा। “ओह… भाभी…” वो सिसकारा। स्किन हटाई, हेड चूसा। फिर उसे धकेला, ऊपर खींचा। लंड चूत पर रखा। धक्का मारा, अंदर गया। “आ!!!! राजा… हाँ… चोदो मुझे…”
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वो चोदने लगा, लंड गर्म और बड़ा, दर्द और मजा। स्पीड बढ़ी। “राजा… बुरी तरह चोद… फाड़ डाल इस रंडी चूत को… आह… हाँ… जोर से…” वो बोला, “चिंता मत करो भाभी… एक हफ्ते से तड़पा रही हो… आज चूत फाड़ दूँगा… आह…” जोर-जोर से धक्के, मैं चिल्लाई, “आ… आ… हाँ… गहराई तक… ओह…” बूब्स उछलते, निप्पल दबे। वो मसलता रहा, मैं कूल्हे उठाती। “पच… पच…” की आवाजें, चूत गीली। “राजा… और तेज… मैं झड़ने वाली हूँ…” वो तेज हुआ, मैं झड़ी, “आआआह…” फिर वो झड़ा, अंदर पानी छोड़ा। हम लेट गए, सांसें तेज।
उसके बाद तीन दिन और थे। हमने हर मौके पर चुदाई की—कभी किचन में, कभी सोफे पर। कभी मैं ऊपर चढ़ती, कभी डॉगी स्टाइल। हर बार नया मजा। तो ये थी मेरी भाभी-देवर की चुदाई कहानी।
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