मौसा ने अपना मोटा खीरा मेरी चूत में घुसाया

Mausa ke mote lund se meri gulabi chut ki chudai ki kahani: मैं, शुभांगी, अपने माँ-पापा की इकलौती बेटी हूँ। अभी मेरी उम्र 18 साल की है, और मैंने हाल ही में बारहवीं की परीक्षा पास की है। मेरा रंग गोरा है, हाइट 5 फुट 4 इंच, और मेरी फिगर 34-28-35 की है। मेरी आँखें नशीली हैं, गाल गुलाबी और उभरे हुए, होंठ मुलायम और रसीले, और मेरे लंबे, घने बाल मेरी कमर तक लहराते हैं। मेरी नाक पर छोटी सी चाँदी की नथ और पैरों में पायल मेरी खूबसूरती को और बढ़ाती है। मैं अक्सर अपनी कमर में एक पतली चाँदी की चैन पहनती हूँ, जो मेरी गोरी त्वचा पर चमकती है। मेरे पापा, रमेश, 45 साल के हैं, और मम्मी, सुनीता, 42 साल की, दोनों ही मेरे लिए बहुत केयरिंग हैं। मेरी मौसी, राधा, 40 साल की हैं, और उनके पति, कर्नल अंकल, जिन्हें मैं मौसाजी बुलाती हूँ, 50 साल के हैं। मौसाजी आर्मी में कर्नल रह चुके हैं और अब रिटायर हो चुके हैं। उनका एक बेटा, रोहन, 28 साल का है, जिसकी शादी हो चुकी है, और वो अपनी पत्नी के साथ अमेरिका में सेटल है।

बारहवीं का रिजल्ट आने के बाद मेरे अच्छे मार्क्स की वजह से शहर के एक नामी कॉलेज में मेरा दाखिला पक्का था। मम्मी-पापा ने कई कॉलेजों पर विचार किया, लेकिन मम्मी ने फैसला लिया कि मुझे शहर के एक कॉलेज में भेजा जाए। इसके दो कारण थे। पहला, मेरी मौसी शहर में रहती थीं, तो मुझे रहने की कोई दिक्कत नहीं होगी। दूसरा, मेरी नानी की तबीयत अक्सर खराब रहती थी, और मौसी को उनकी देखभाल के लिए बार-बार गाँव जाना पड़ता था। मेरे वहाँ रहने से मौसाजी का खाना-पीना वगैरह का ध्यान रखा जा सकता था, और मौसी भी दादी की देखभाल ठीक से कर पातीं।

एक दिन मैं और पापा शहर के लिए निकल पड़े। रात की ट्रेन पकड़ी और सुबह-सुबह शहर पहुँच गए। मौसाजी, जिनका नाम विनोद है, हमें स्टेशन लेने आए। वो लंबे-चौड़े, कसरती बदन वाले इंसान हैं, जिनके बाल अब सफेद होने लगे हैं, लेकिन उनकी आँखों में एक मर्दाना चमक है। हम उनके घर पहुँचे, फ्रेश हुए, और कॉलेज में दाखिला लिया। दाखिला लेने के बाद हम घर लौटे, और रात को खाना खाने के बाद पापा उसी रात की ट्रेन से गाँव वापस चले गए। मौसी, जो स्कूल टीचर थीं, ने दादी की बीमारी की वजह से रिटायरमेंट ले लिया था। मौसाजी का घर अनुशासित था, क्योंकि उनकी आर्मी की आदतें अभी भी बरकरार थीं।

पहले कुछ दिन हमने शहर घूमा। वाटर पार्क गए, मॉल में शॉपिंग की, और खूब मस्ती की। मौसाजी और मौसी ने मुझे पूरा शहर दिखाया। फिर मैंने कॉलेज जॉइन किया और धीरे-धीरे शहर की जिंदगी में ढल गई। मौसी ने एक नौकरानी, मीना, को काम पर रखा था। मीना 19 साल की थी, साँवली लेकिन आकर्षक, और उसकी फिगर 32-26-34 थी। उसका काम था घर की साफ-सफाई और खाना बनाना, ताकि मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे सकूँ। लेकिन मेरे लिए ये नई जिंदगी इतनी आसान नहीं थी। गाँव में मेरे तीन-चार बॉयफ्रेंड्स थे—रोहित, संजय, विक्की, और राहुल। मैं हफ्ते में कई बार उनके साथ होटल में चुदाई का मजा लेती थी। उनके मोटे-मोटे लंड मेरी चूत को रगड़ते थे, और मुझे उसकी आदत पड़ चुकी थी। लेकिन मौसाजी की सख्ती की वजह से यहाँ मेरी चूत प्यासी रहने लगी थी। मेरी जवानी की आग बुझाने के लिए कोई लंड नहीं मिल रहा था, और ये लैंगिक कुपोषण मुझे रातों को बेचैन कर रहा था।

एक रात, जब मेरी चूत की खुजली बर्दाश्त से बाहर हो गई, मैं अपनी स्टडी टेबल छोड़कर बाथरूम में घुस गई। गाँव में अपने बॉयफ्रेंड्स के साथ होटल के बाथरूम में शावर के नीचे चुदाई के दिन याद आ रहे थे। रोहित का मोटा लंड मेरी चूत में घुसता था, और संजय मुझे पीछे से पकड़कर मेरी गांड पर थप्पड़ मारता था। लेकिन अब मैं अकेली थी, और मेरी चूत को तुरंत कुछ चाहिए था। मैंने अपनी गुलाबी नाइटी उतारी। अंदर मैंने काली डिज़ाइनर ब्रा और मैचिंग पैंटी पहनी थी, जो मेरे गोरे बदन पर मादक लग रही थी। आईने में खुद को देखते हुए मेरे चूचे ब्रा से बाहर आने को बेताब थे। मैंने अपने हाथों से ब्रा के ऊपर से ही अपने चूचों को मसलना शुरू किया। मेरे निप्पल्स सख्त हो गए, और मेरी उंगलियाँ पैंटी के अंदर चली गईं। मैंने अपनी चूत में उंगली डालकर अंदर-बाहर करना शुरू किया। “आह्ह… उफ्फ…” मेरी सिसकारियाँ बाथरूम में गूँज रही थीं।

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लेकिन मेरी नाज़ुक उंगलियाँ उस मोटे लंड की जगह नहीं ले सकती थीं, जो मेरी चूत को चाहिए था। मैंने ब्रा का हुक खोल दिया, और मेरे चूचे आज़ाद हो गए। मेरी पैंटी भी चुभने लगी थी, तो मैंने उसे भी उतार दिया। अब मैं पूरी नंगी थी, और बाथटब में बैठकर जोर-जोर से उंगली करने लगी। “उम्म… आह्ह…” मेरी चूत गीली हो रही थी, लेकिन वो आग शांत होने का नाम नहीं ले रही थी। मुझे कुछ ऐसा चाहिए था, जो लंड जैसा मोटा और कड़क हो। तभी मेरे दिमाग में आया कि मौसाजी आज बाज़ार से कुछ सब्जियाँ लाए थे। हाँ… खीरा! वो मोटा, लंबा, हाइब्रिड खीरा, जिसकी सतह पर छोटे-छोटे दाने थे, मेरी चूत की प्यास बुझा सकता था।

मैंने जल्दी से पैंटी पहनी, ब्रा ढूँढने की कोशिश की, लेकिन वो कहीं गायब थी। समय बर्बाद न करते हुए मैंने एक पतला सा गाउन पहन लिया, जो मेरी जाँघों तक ही आता था। गाउन के कंधों पर सिर्फ दो पतली स्ट्रिप्स थीं, और बिना ब्रा के मेरे निप्पल्स उसमें साफ नजर आ रहे थे। मन तो कर रहा था कि नंगी ही किचन में जाऊँ और खीरा लेकर भागूँ, क्योंकि घर में सिर्फ मैं और मौसाजी थे, और वो जल्दी सो जाते थे। लेकिन रिस्क न लेते हुए मैंने गाउन पहन लिया। बाथरूम से बाहर निकलते ही ठंडी हवा ने मेरे बदन को छुआ। बाहर बारिश हो रही थी, और मेरा गाउन इतना पतला था कि ठंड मेरे बदन में सिहरन पैदा कर रही थी। मेरे निप्पल्स और सख्त हो गए, जो गाउन के ऊपर से साफ दिख रहे थे। मैंने दीवार पर घड़ी देखी—रात के बारह बज रहे थे।

मैं तेजी से किचन में पहुँची। बाहर की स्ट्रीटलाइट की रोशनी किचन में आ रही थी, तो मुझे लाइट जलाने की जरूरत नहीं पड़ी। मैंने फ्रिज का दरवाजा खोला। ठंडी हवा मेरे बदन से टकराई, और मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैंने झट से सब्जी वाला ड्रावर खोला और एक मोटा, लंबा, हाइब्रिड खीरा निकाल लिया। वो ताज़ा था, और उसकी सतह पर छोटे-छोटे दाने उसे और आकर्षक बना रहे थे। मैंने उसे हाथ में पकड़कर ऊपर से नीचे तक देखा। “हाय… ये तो बिल्कुल लंड जैसा है…” मैंने बुदबुदाया। उत्तेजना में मैंने उसे अपनी जीभ से चाटना शुरू किया, जैसे वो मेरे बॉयफ्रेंड का लंड हो। मैंने अपने मुँह को खोलकर खीरे को चूसना शुरू किया। “उम्म… आह्ह…” मेरी चूत गीली हो रही थी।

मैं किचन में ही खड़े-खड़े खीरे को अपनी जाँघों पर रगड़ने लगी। खीरे के दानों का ठंडा स्पर्श मेरी त्वचा पर सनसनाहट पैदा कर रहा था। “स्स्स… ओह्ह…” मैंने अपने पैर फैलाए और खीरे को पैंटी के ऊपर से अपनी चूत पर रगड़ना शुरू किया। मेरी साँसें तेज हो रही थीं। मैंने पैंटी को एक तरफ सरकाया और खीरे को अपनी चूत की दरार पर रगड़ने लगी। “आह्ह… हाय…” खीरे के दाने मेरी चूत के दाने को रगड़ रहे थे, और मैं पागल हो रही थी। मैंने एक हाथ से अपनी चूत की पंखुड़ियाँ खोलीं और दूसरे हाथ से खीरे को धीरे-धीरे अंदर घुसाने लगी।

“आह्ह… ऊई माँ… उम्म…” खीरे का ठंडा, दानेदार स्पर्श मेरी गर्म चूत में घुसते ही मैं सिहर उठी। पिछले कई महीनों से मेरी चूत में कोई लंड नहीं गया था, और ये खीरा मेरे बॉयफ्रेंड्स के लंड से भी मोटा था। मेरी चूत की दीवारें फैल रही थीं, और खीरे के दाने अंदर रगड़ खा रहे थे। “हाय… कितना मोटा है… आह्ह…” मैं कामवासना में पागल हो रही थी। मैंने आधा खीरा अपनी चूत में घुसा लिया और अपनी जाँघों को सिकोड़कर उसे महसूस करने लगी। “उम्म… ओह्ह…” मैंने अपने पैरों को पास लाते हुए दाहिने पैर की उंगलियों पर खड़ी हो गई, फिर बाएँ पैर की उंगलियों पर। मेरी जाँघें एक-दूसरे से रगड़ रही थीं, और खीरा मेरी चूत की दीवारों से टकरा रहा था। “स्स्स… आह्ह…” उस घर्षण से मेरी चूत में सनसनाहट हो रही थी।

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मैंने स्कूल की परेड की तरह कदमताल शुरू की—दाहिना, बायाँ, दाहिना, बायाँ। खीरा मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, और इसके दाने मेरी चूत के दाने को रगड़ रहे थे। “आह्ह… उफ्फ… कितना मज़ा…” मेरी आँखें बंद हो गईं। मैं अपने कदमताल की रिदम में खो गई थी, और खीरा मेरी चूत में गचागच रगड़ खा रहा था। अचानक खीरा मेरी चूत से फिसलकर नीचे गिर गया। “ओह शिट!” मैंने झट से नीचे झुककर उसे उठाया। फ्रिज की रोशनी में मेरे चूत के रस से चमकता खीरा मुझे और उत्तेजित कर रहा था। मैंने उसे फिर से अपनी चूत में घुसाया और कदमताल शुरू कर दी। “आह्ह… उफ्फ… हाय…” मैं सातवें आसमान पर थी।

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“शुभांगी बेटा, तुम ठीक तो हो ना?” अचानक मौसाजी की मर्दाना आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैंने चौंककर दरवाजे की तरफ देखा। मौसाजी वहाँ खड़े थे। मेरे होश उड़ गए। “हाय भगवान… क्या देख लिया इन्होंने?” मैं शर्म से मर रही थी। मेरी चूत में खीरा अभी भी घुसा था, और मेरी जाँघें गीली थीं। मेरी नाइटी इतनी पतली थी कि मेरे उभरे हुए निप्पल्स साफ दिख रहे थे।

“शुभांगी बेटा, तुम ठीक हो ना?” उनकी आवाज़ फिर गूँजी। मैं होश में आई। बाहर की हल्की रोशनी में उनका चेहरा साफ दिख रहा था, लेकिन उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। क्या वो सचमुच कुछ नहीं देख पाए थे, या एक्टिंग कर रहे थे? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

“हाँ… हाँ, मौसाजी, मैं ठीक हूँ,” मैंने हड़बड़ाते हुए कहा। मैंने फ्रिज का दरवाजा बंद किया, लेकिन खीरे ने मेरी चूत के दाने को रगड़ा, और मेरी सिसकारी निकल गई। “आह्ह…” मैंने आँखें बंद कर लीं।

“शुभांगी, इतनी रात को फ्रिज में क्या ढूँढ रही हो?” मौसाजी ने फिर पूछा। उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।

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“क… कुछ नहीं, मौसाजी… बस भूख लगी थी, तो खीरा खाने आई थी,” मैंने हड़बड़ाते हुए जवाब दिया।

“खीरा? भूख लगी थी?” उनके होंठों पर हल्की मुस्कान थी। “कम खाना खाया था क्या आज?” उनकी नजर मेरी जाँघों की तरफ गई, और मैं डर गई। क्या उन्होंने सचमुच सब देख लिया था? मेरी चूत में खीरा अभी भी था, और मैं उसे सिकोड़कर पकड़े हुए थी।

“हाँ… बस थोड़ा सा… आप यहाँ इतनी रात को?” मैंने टॉपिक बदलने की कोशिश की।

“बेटा, नींद नहीं आ रही थी, तो सोचा एक पेग मार लूँ,” मौसाजी ने कहा। “तुम ठीक हो ना? इतनी ठंड में काँप रही हो।” उन्होंने अपनी शाल उतारी और मेरे कंधों पर डाल दी। उनकी उंगलियाँ मेरे कंधों को सहलाने लगीं, और मेरे बदन में सिहरन दौड़ गई। “थ… थैंक्स, मौसाजी,” मैंने कहा। उनकी केयरिंग हरकतों ने मुझे और उत्तेजित कर दिया। मेरी चूत में खीरा अभी भी था, और उनकी मर्दाना छुअन मुझे पागल कर रही थी। मौसाजी पचास साल के थे, लेकिन उनकी कसरती बॉडी और छाती पर सफेद बाल उन्हें और आकर्षक बना रहे थे।

“खीरा खा रही थी, हाँ?” उन्होंने फिर पूछा, और उनकी मुस्कान गहरी हो गई।

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“हाँ… बस… भूख थी,” मैंने शर्माते हुए कहा।

“चलो, मैं पेग बनाता हूँ, तुम बैठो,” उन्होंने कहा और डाइनिंग टेबल की तरफ चले गए। मैंने नीचे देखा तो मेरी पैंटी फ्रिज के पास पड़ी थी। “ओह शिट!” मैंने जल्दी से एक पैर उस पर रख दिया, ताकि मौसाजी न देख लें।

“क्या हुआ, बेटा? कुछ ढूँढ रही हो?” मौसाजी ने पूछा।

“न… नहीं, मौसाजी, मैं पेग बनाती हूँ,” मैंने कहा और धीरे-धीरे किचन टेबल की तरफ बढ़ी। मैं पैरों को पास-पास रखकर चल रही थी, ताकि खीरा नीचे न गिरे। लेकिन हर कदम पर खीरे के दाने मेरी चूत में रगड़ रहे थे, और मेरी सिसकारियाँ निकल रही थीं। “उम्म… आह्ह…” मैंने गिलास निकालने की कोशिश की, लेकिन वो ऊपर की शेल्फ पर था। मैं उंगलियों के बल खड़ी हो गई, लेकिन खीरा मेरी चूत में और रगड़ रहा था।

अचानक मुझे अपने नितंबों पर एक सख्त स्पर्श महसूस हुआ। मैंने पीछे देखा तो मौसाजी मेरे ठीक पीछे खड़े थे। “हाथ नहीं पहुँच रहा तो बोल देती, मैं निकाल देता,” उन्होंने कहा और मेरे कंधे पर हाथ रखकर गिलास निकाला। इस दौरान उनका बदन मेरे बदन से सट गया। उनकी लुंगी में बना तंबू मेरी गांड पर रगड़ रहा था। “आह्ह… मौसाजी…” मेरी सिसकारी निकल गई। उनकी गर्म साँसें मेरी गर्दन पर टकरा रही थीं।

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“क्या चाहिए पेग में?” मैंने पूछा, मेरी आवाज़ काँप रही थी।

“खीरा,” उन्होंने कहा, और मेरे होश उड़ गए। उनकी मुस्कान और गहरी हो गई। “तुम खा रही थी ना, मीठा होता है।”

“हाँ… मीठा है,” मैंने हड़बड़ाते हुए कहा और अपनी गांड को पीछे करके उनके लंड पर दबा दिया। उनकी साँसें तेज हो गईं। “आपको भी चाहिए?” मैंने शरारत से पूछा।

“हाँ, काटकर दे दो, नमक लगाकर,” उन्होंने कहा और मेरी कमर पर हाथ रख दिया। उनकी उंगलियाँ मेरी गांड पर घूमने लगीं, और मुझे एहसास हुआ कि उन्हें मेरी बिना पैंटी वाली हालत का पता चल गया था। मैंने कोई विरोध नहीं किया, और उनकी हिम्मत बढ़ गई। “थैंक्स, बेटा, तुम बहुत मदद करती हो,” उन्होंने मेरे गालों को सहलाते हुए कहा।

“मौसी नहीं हैं, तो आपकी जिम्मेदारी मेरी है,” मैंने कहा। हमारी आँखें मिलीं, और एक नाज़ुक पल पैदा हो गया। मौसाजी का चेहरा मेरे करीब आया, और मेरे होंठ उनकी साँसों को महसूस कर रहे थे। अचानक बिजली कड़की। “धड़ाम!” मैंने बाहर देखा। बारिश तेज हो रही थी।

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“चलो, पेग बनाओ,” मौसाजी ने कहा और पीछे हट गए। मैंने खीरा काटा, बर्फ निकाली, और गिलास में पेग बनाया। “गुड नाइट, मौसाजी, ज्यादा मत पीना,” मैंने कहा और किचन से बाहर निकल गई। बाहर आते ही मैंने दीवार के पीछे खीरे को अपनी चूत से निकाला। मेरी पैंटी किचन में ही रह गई थी। “ओह शिट!” मैं वापस लेने गई, तभी मुझे मौसाजी की सिसकारियाँ सुनाई दीं।

“आह्ह… शुभांगी…” मैंने किचन में झाँका। मौसाजी कुर्सी पर बैठे थे, उनकी लुंगी खुली थी, और वो मेरी पैंटी को सूँघते हुए अपने लंड को सहला रहे थे। उनका लंड मोटा और लंबा था, कम से कम 9 इंच, और मैं उसे देखकर पागल हो रही थी। मैंने अपने खीरे को फिर से चूत में घुसाया और बाहर खड़े-खड़े अंदर-बाहर करने लगी। “उम्म… आह्ह…” खीरे के दाने मेरी चूत की दीवारों को रगड़ रहे थे।

“शुभांगी… ओह्ह… मेरी सेक्सी शुभांगी…” मौसाजी मेरे नाम की माला जप रहे थे। अचानक उनके लंड से पिचकारी छूटी, और मैंने भी अपनी चूत का रस बहने दिया। “आह्ह… हाय…” मेरा बदन काँप रहा था। मैंने दीवार का सहारा लिया। मौसाजी ने मेरी पैंटी से अपना वीर्य साफ किया और गिलास खाली कर लिया। मैं चुपके से अपने कमरे में भाग गई और थकान से सो गई।

अगली सुबह, काँच टूटने की आवाज़ से मेरी नींद खुली। घड़ी में आठ बज रहे थे। मैंने नीचे देखा तो मीना रसोई में टूटे हुए जग के टुकड़े समेट रही थी। “सॉरी, दीदी, मेरे हाथ से छूट गया,” उसने कहा।

“कोई बात नहीं, मैं नया ले आऊँगी,” मैंने कहा। मैंने बाहर देखा तो मौसाजी बालकनी के छोटे-से गार्डन में काम कर रहे थे। उनकी नजर मुझसे मिली, लेकिन उन्होंने तुरंत नजरें फेर लीं। फर्श पर मिट्टी के निशान थे, जो बालकनी से अंदर आ रहे थे। मीना के कंधे पर भी मिट्टी थी, और उसकी चोली की एक डोर खुली थी। मुझे शक हुआ कि मौसाजी ने सुबह मीना के साथ कुछ किया होगा। लेकिन मुझे कॉलेज के लिए देर हो रही थी, तो मैं तैयार होकर निकल गई।

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शाम को लौटने के बाद मैंने फिर से उसी खीरे से अपनी चूत को शांत किया और नंगी ही सो गई। रात को बिजली कड़कने की आवाज़ से मेरी नींद टूटी। “धड़ाम!” मैंने काली ब्रा-पैंटी और गुलाबी नाइटी पहनी और बाहर निकली। तभी फिर से कुछ टूटने की आवाज़ आई।

“शुभांगी, क्या हुआ?” मौसाजी दौड़कर आए। वो सिर्फ लुंगी में थे, और उनकी छाती की मांसपेशियाँ साफ दिख रही थीं।

“पता नहीं, मौसाजी, कोई आवाज़ आई,” मैंने कहा। बिजली फिर कड़की, और मैंने डरकर मौसाजी को पकड़ लिया। उनकी उंगलियाँ मेरी पीठ पर घूम रही थीं, और मेरी धड़कन तेज हो गई। “मौसाजी… क्या हुआ होगा?” मैंने पूछा।

“चलो, देखते हैं,” उन्होंने कहा। हम बालकनी के गार्डन में गए। वहाँ कुछ गमले थे, जिनमें गुलाब और छोटे पौधे लगे थे। एक गमला हवा की वजह से टूट गया था, और मिट्टी बिखरी पड़ी थी। “अरे, ये तो टूट गया,” मौसाजी ने दुखी होकर कहा। पास ही एक मोटा, हाइब्रिड खीरा पड़ा था, जो मौसाजी ने सुबह बाज़ार से लाकर बालकनी पर रखा था, ताकि वो ताज़ा रहे। “ये खीरा तो यहाँ रखा था, शायद हवा में उड़कर गिर गया,” उन्होंने कहा।

“हाँ, मौसाजी, आपका गुलाब का गमला…” मैंने कहा। वो झाड़ू लेकर मिट्टी साफ करने लगे, लेकिन बारिश की बूँदें अभी भी गिर रही थीं। उन्होंने अपनी टी-शर्ट उतार दी। उनका भीगा हुआ कसरती बदन देखकर मेरी चूत फिर गीली हो गई। उनकी लुंगी भी गीली होकर चिपक गई थी, और उनका 9 इंच का तंबू साफ दिख रहा था। मैं उनकी मदद के लिए बिना छतरी के बाहर गई।

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“बेटा, तुम क्यों भीग रही हो?” उन्होंने पूछा।

“आप अकेले से नहीं कर पाए, तो मदद करने आई,” मैंने कहा। हम दोनों ने गमले के टुकड़े समेटने शुरू किए। मौसाजी मुझे देख रहे थे। मेरी नाइटी भीगकर पारदर्शी हो गई थी, और मेरी काली ब्रा-पैंटी साफ दिख रही थी। मेरे निप्पल्स उभरे हुए थे। मैंने उनकी आँखों में वासना देखी। “मौसाजी, ये तो पूरी तरह टूट गया, अब क्या करेंगे?” मैंने थककर पूछा।

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“कोई बात नहीं, नया गमला लाएँगे,” उन्होंने कहा और मेरे करीब आए। “शुभांगी, तू तो पूरी तरह भीग गई,” उन्होंने मेरे गाल को सहलाते हुए कहा। उनकी उंगलियाँ मेरी गर्दन पर फिसलीं, और मैं सिहर उठी। “आह्ह… मौसाजी…” मेरी सिसकारी निकल गई।

“क्या हुआ, बेटा?” उन्होंने पूछा, लेकिन उनकी उंगलियाँ मेरी कमर पर थीं। वो मेरी गर्दन पर चूमने लगे। “मौसाजी… प्लीज…” मैंने विरोध किया, लेकिन मेरी चूत गीली थी। उन्होंने मेरे चूचों को मसलना शुरू किया। “आह्ह… मत करो…” मैंने कहा, लेकिन मेरा बदन उनकी छुअन से पिघल रहा था। उनका एक हाथ मेरी नाइटी के कट से मेरी पैंटी में घुस गया। उनकी उंगलियाँ मेरी चूत की दरार पर घूमने लगीं। “उम्म… आह्ह… मौसाजी…” मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। “हाय… मैं आ गई…” मैंने सिसकारी भरी।

मौसाजी ने अपनी उंगलियाँ मेरी चूत में घुसा दीं और अंदर-बाहर करने लगे। “आह्ह… ओह्ह… मौसाजी…” मैं फिर से झड़ गई। वो मेरी गांड पर अपना लंड रगड़ रहे थे। मैंने अपनी नाइटी ऊपर की, और वो मेरी पीठ पर चढ़ गई। “ओह, शुभांगी… तेरी गांड…” वो सिसक उठे। मैंने अपनी गांड को उनके लंड पर दबाया। उनकी लुंगी पहले ही खुल चुकी थी।

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मैंने अपनी उंगलियाँ अपनी चूत में घुसाईं, और वो मेरी गांड पर लंड रगड़ रहे थे। “शुभांगी… मेरा हो रहा है…” उन्होंने कहा और मेरा हाथ अपने लंड पर रखा। मैंने उनके लंड को मुठ मारना शुरू किया, और उनकी उंगलियाँ मेरी चूत में थीं। “आह्ह… मौसाजी… मैं फिर आ गई…” मेरी चूत ने फिर रस छोड़ा, और उसी पल उनके लंड से गर्म वीर्य मेरी गांड पर गिरने लगा। “उम्म… आह्ह…” हम दोनों थककर बालकनी की रेलिंग पर झुक गए। बिजली कड़की, और हम होश में आए।

मौसाजी ने मुझे चूमा, और मैं उनके होंठों को चूसने लगी। हमारी जीभें एक-दूसरे से उलझ रही थीं। लंबे, रोमांटिक चुम्बन के बाद मैं शर्माकर घर में भाग गई। अगले दिन मुझे बुखार था। मौसाजी ने मुझे नाश्ता और दवाई दी। वो सामान्य व्यवहार कर रहे थे। दोपहर को मैं रसोई में गई, लेकिन मीना और मौसाजी कहीं नहीं थे। तभी उनके कमरे से सिसकारियाँ सुनाई दीं। मैंने झाँका तो मौसाजी मीना को चोद रहे थे। “आह्ह… मालिक… कितना मस्त चोदते हो…” मीना सिसक रही थी।

“मीना, तेरी चूत अभी भी टाइट है,” मौसाजी ने कहा। मीना ने उनका लंड चूसना शुरू किया, और मैं बाहर खड़े-खड़े अपनी चूत में उंगली करने लगी। “आह्ह… उफ्फ…” मेरी चूत गीली थी। “मालिक, दीदी उठ जाएँगी तो?” मीना ने पूछा।

“उसकी दवाई का असर अभी बाकी है,” मौसाजी ने कहा। तभी दरवाजे की घंटी बजी। मैंने “आती हूँ” चिल्लाया, और मौसाजी-मीना ने जल्दी से कपड़े पहने। मैंने दरवाजा खोला और उनके दोस्तों को अंदर लिया। मौसाजी नीचे आए, लेकिन मीना डरकर छिप गई। बाद में मीना ने मुझसे माफी माँगी और बताया कि वो और मौसाजी तीन महीने से चुदाई कर रहे थे।

रात को खाना खाने के बाद मौसाजी अपने कमरे में चले गए। मैं अपने रूम में थी, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। “शुभांगी बेटा…” मौसाजी की आवाज़ थी।

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“आइए, मौसाजी,” मैंने कहा। वो अंदर आए और माफी माँगने लगे। “प्लीज, मौसी को कुछ मत बताना,” वो रोते हुए बोले।

“ठीक है, मौसाजी, मैं नहीं बताऊँगी,” मैंने उनके आँसू पोंछते हुए कहा। “मौसाजी, आप मेरी जरूरतों को कौन समझेगा?” मैंने शरारती अंदाज़ में कहा, और मेरी आँखों में चमक थी। मैंने उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो चौंक गए, लेकिन मेरे होंठों को चूसने लगे। “आह्ह… शुभांगी… तू कितनी नॉटी है…” वो सिसक उठे।

मौसाजी ने मुझे अपनी बाहों में खींच लिया, और मैंने उनके होंठों को और जोर से चूसा। उनकी जीभ मेरी जीभ से उलझ रही थी, और उनकी गर्म साँसें मेरे चेहरे पर टकरा रही थीं। “शुभांगी… तू तो आग है…” उन्होंने मेरे गालों को सहलाते हुए कहा। उनकी उंगलियाँ मेरे बालों में उलझीं, और वो मेरी गर्दन पर धीरे-धीरे चूमने लगे। “उम्म… मौसाजी… आप भी तो कम नहीं…” मैंने शरारत से कहा। उन्होंने मेरी नाइटी की स्ट्रिप्स को धीरे से नीचे सरकाया, और मेरी काली ब्रा साफ दिखने लगी। “हाय… ये गोरे-गोरे चूचे… जैसे मलाई के गोले…” उन्होंने मेरे चूचों को ब्रा के ऊपर से सहलाते हुए कहा। मैं शर्म से लाल हो रही थी, लेकिन मेरी चूत गीली हो रही थी।

“मौसाजी… ये गलत है…” मैंने धीरे से कहा, लेकिन मेरी आवाज़ में चाहत साफ थी। “गलत? तू तो खुद मुझे तड़पा रही है, मेरी रंडी,” उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाया और मेरी ब्रा का हुक खोल दिया। मेरे चूचे आज़ाद हो गए, और मेरे निप्पल्स सख्त होकर उनकी छुअन का इंतज़ार कर रहे थे। “हाय… शुभांगी… ये चूचे तो बिल्कुल मखमल हैं…” वो मेरे निप्पल्स को अपनी उंगलियों से मसलने लगे। “आह्ह… मौसाजी… धीरे… मेरे चूचों को मसल डालोगे क्या?” मैं सिसक उठी। वो मेरे एक निप्पल को मुँह में ले गए और उसे चूसने लगे, जैसे कोई बच्चा दूध पी रहा हो। उनकी जीभ मेरे निप्पल के चारों ओर चक्कर काट रही थी, और मेरे बदन में करंट दौड़ रहा था। “उम्म… ओह्ह… मौसाजी… कितना मज़ा दे रहे हो…” मैंने उनके बालों को पकड़ लिया।

“शुभांगी, तेरे ये मलाई जैसे चूचे… इन्हें तो चूसते रहने का मन करता है,” उन्होंने मेरे दूसरे चूचे को मसलते हुए कहा। उनकी उंगलियाँ मेरे निप्पल को खींच रही थीं, और मैं पागल हो रही थी। “मौसाजी… प्लीज… मेरी चूत को भी तो देखो…” मैंने सिसकारी भरी। उन्होंने मेरी नाइटी को पूरी तरह उतार दिया, और मैं सिर्फ पैंटी में थी। उनकी आँखें मेरे बदन को घूर रही थीं। “तू तो बिल्कुल अप्सरा है… ये कमर… ये नाभि… जैसे कोई चाँद का टुकड़ा,” वो मेरी कमर को चूमने लगे। उनकी जीभ मेरी नाभि के आसपास घूम रही थी, और मैं सिहर रही थी। “मौसाजी… आप तो मुझे पागल कर दोगे… मेरी चूत को चूमो ना…” मैंने हँसते हुए कहा।

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वो मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी चूत को सहलाने लगे। “उम्म… ये तो पहले से गीली है, मेरी रंडी… तू तो पहले ही चुदने को तैयार है,” उन्होंने शरारती अंदाज़ में कहा। मैं शर्म से मर रही थी, लेकिन उनकी गंदी बातें मुझे और उत्तेजित कर रही थीं। “मौसाजी… आप तो मुझे रंडी बोल रहे हो… लेकिन मुझे तो आपका मोटा लंड चाहिए,” मैंने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा। “हाँ, मेरी प्यारी रंडी… देख तेरा ये गुलाबी फूल कितना खिल रहा है,” उन्होंने मेरी पैंटी को धीरे-धीरे नीचे सरकाया। मेरी गुलाबी चूत उनके सामने थी। “हाय… कितनी मस्त चूत है तेरी… जैसे गुलाब की पंखुड़ियाँ,” वो मेरी चूत की पंखुड़ियों को सहलाने लगे। उनकी उंगलियाँ मेरे दाने को छू रही थीं, और मैं सिसक रही थी। “आह्ह… मौसाजी… प्लीज… मेरी चूत को चाटो…” मैंने अपनी टाँगें फैला दीं।

वो मेरी चूत को चूमने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत की दरार में गहरे तक जा रही थी, और मैं पागल हो रही थी। “उम्म… ओह्ह… मौसाजी… तेरी जीभ तो जादू कर रही है…” मैंने उनके सिर को अपनी चूत पर दबाया। वो मेरे दाने को चूस रहे थे, और उनकी उंगलियाँ मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रही थीं। “आह्ह… मैं आ गई… मौसाजी… मेरी चूत का रस पी लो…” मेरी चूत ने रस छोड़ दिया, और वो उसे चाटने लगे। “शुभांगी… तेरा रस तो अमृत से भी मीठा है…” उन्होंने कहा और मुझे चूमने लगे। मैंने उनके होंठों पर अपने रस का स्वाद चखा।

“चल, बालकनी में चलते हैं, मेरी रानी,” मौसाजी ने कहा और मुझे अपनी बाहों में उठा लिया। बालकनी का गार्डन छोटा-सा था, जिसमें गुलाब के कुछ गमले रखे थे। बारिश रुक चुकी थी, लेकिन हवा ठंडी थी, और गुलाब की हल्की महक हवा में तैर रही थी। मौसाजी ने मुझे रेलिंग के पास खड़ा किया। पास ही वो हाइब्रिड खीरा पड़ा था, जो सुबह से वहाँ रखा था। “मौसाजी… यहाँ… कोई देख लेगा…” मैंने कहा, लेकिन मेरी आवाज़ में उत्तेजना थी। “कोई नहीं देखेगा, मेरी रंडी… ये रात सिर्फ हमारी है,” उन्होंने मेरी गर्दन को चूमते हुए कहा। उनकी उंगलियाँ मेरी चूत पर फिर से घूमने लगीं। “आह्ह… उफ्फ… मौसाजी… तुम तो मुझे तड़पा रहे हो…” मैं सिसक रही थी।

वो मेरे पीछे खड़े हो गए और मेरी गांड को सहलाने लगे। “शुभांगी… तेरी गांड तो बिल्कुल मखमल है… इसे तो चोदने का मन करता है,” उन्होंने मेरी गांड पर हल्का सा थप्पड़ मारा। “आह्ह… मौसाजी… आप तो बहुत गंदे हो…” मैंने हँसते हुए कहा। उन्होंने अपनी अंडरवियर उतार दी, और उनका 9 इंच का मोटा लंड मेरे सामने था। मैंने उसे हाथ में लिया और सहलाने लगी। “हाय… मौसाजी… ये तो पत्थर जैसा है… कितना मोटा लंड है तुम्हारा…” मैंने शरारत से कहा। वो मेरे चूचों को चूस रहे थे, और मैं उनके लंड को मुठ मार रही थी। “शुभांगी… इसे चूस, मेरी रंडी… तुझे तो मेरा लंड चूसना अच्छा लगेगा,” उन्होंने शरारती अंदाज़ में कहा।

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मैं घुटनों पर बैठ गई और उनके लंड को मुँह में ले लिया। उनकी गोटियाँ मेरे ठोड़ी से टकरा रही थीं, और मैं उनके लंड को जीभ से चाट रही थी। “आह्ह… शुभांगी… तू तो रंडी से भी बढ़कर चूस रही है…” वो सिसक रहे थे। मैंने उनके लंड को गहरे तक लिया, और मेरी जीभ उनके सुपारे पर चक्कर काट रही थी। “उम्म… कितना मोटा है… जैसे कोई लोहे का डंडा…” मैंने सिसकारी भरी। वो मेरे बालों को पकड़कर मेरे मुँह में धक्के मारने लगे। “हाँ… मेरी रानी… ऐसे ही चूस… मेरे लंड को पूरा गीला कर दे…” उनकी साँसें तेज थीं।

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“मौसाजी… अब मुझे चाहिए… मेरी चूत को चोदो ना…” मैंने खड़े होकर कहा। लेकिन वो जल्दी में नहीं थे। “जल्दी क्या है, मेरी रंडी… पहले तुझे और तड़पाऊँगा,” उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाया। उन्होंने पास पड़े उस हाइब्रिड खीरे को उठाया। “ये देख, तेरा प्यारा खीरा… इससे कितना मज़ा लिया तूने?” उन्होंने खीरे को मेरी जाँघों पर रगड़ा। “आह्ह… मौसाजी… प्लीज… मुझे तड़पाओ मत…” मैं तड़प रही थी। “बता, कैसा लगा ये खीरा?” उन्होंने शरारत से पूछा। “लेकिन मेरा खीरा तो इससे भी मोटा है, देख…” उन्होंने अपने 9 इंच के लंड को मेरी चूत पर रगड़ा। मैं पागल हो रही थी। “मौसाजी… आपका खीरा… हाय… कितना मोटा है… ये तो मेरी चूत फाड़ देगा…” मैंने सिसकारी भरी।

“चल, अब हॉल में चलते हैं, मेरी रानी,” उन्होंने कहा और मुझे अपनी गोद में उठाकर हॉल में ले गए। हॉल में एक बड़ा सा सोफा था, जिस पर मुलायम गद्दी बिछी थी। उन्होंने मुझे सोफे पर लिटाया और मेरे ऊपर झुक गए। “शुभांगी… तू तो बिल्कुल रंडी बन गई है… आज तेरी चूत को ऐसा चोदूँगा कि तू चल नहीं पाएगी,” उन्होंने मेरे चूचों को मसलते हुए कहा। मैं हँसी और उनके लंड को सहलाने लगी। “मौसाजी… आपका ये खीरा तो उस खीरे से कहीं बड़ा है… इसे मेरी चूत में डालो ना…” मैंने शरारत से कहा।

वो मेरी चूत को फिर से चूमने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत में गहरे तक जा रही थी। “उम्म… मौसाजी… तेरी जीभ तो मेरी चूत को पागल कर रही है…” मैं हँसी। वो मेरे चूचों को मसल रहे थे, और उनकी जीभ मेरे दाने को चूस रही थी। “शुभांगी… तेरी चूत तो जन्नत है… इसे तो चाटते रहने का मन करता है…” उन्होंने कहा। उन्होंने मेरी टाँगें फैलाईं और मेरी चूत पर अपने लंड को रगड़ा। “देख, कैसा लगा मेरा खीरा?” उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत की दरार पर रगड़ते हुए कहा। “आह्ह… मौसाजी… ये तो बहुत मोटा है… मेरी चूत को फाड़ दो ना…” मैं चिल्ला रही थी।

उन्होंने अपने लंड को मेरी चूत में धीरे-धीरे घुसाया। “आह्ह… मौसाजी… कितना मोटा है… हाय… मेरी चूत फट रही है…” मैं चिल्ला उठी। वो मेरे होंठों को चूसते हुए धीरे-धीरे धक्के मारने लगे। “गचागच… गचागच…” मेरी चूत की आवाज़ हॉल में गूँज रही थी। “शुभांगी… तेरी चूत कितनी टाइट है… जैसे कोई कुंवारी चूत हो,” वो सिसक रहे थे। मैंने अपनी टाँगें उनकी कमर पर लपेट दीं और उनके धक्कों का जवाब देने लगी। “आह्ह… जोर से… मौसाजी… मेरी चूत को चोद डालो…” मैं चिल्ला रही थी। “हाँ… मेरी रंडी… ले मेरा खीरा… तेरी चूत को आज फाड़ दूँगा…” वो तेजी से चोद रहे थे।

“मौसाजी… मुझे पलट दो… मेरी गांड को भी चोदो…” मैंने सिसकारी भरी। उन्होंने मुझे पलटा और सोफे पर मुझे झुका दिया। मैं घुटनों पर थी, और मेरी गांड उनके सामने थी। “शुभांगी… तेरी गांड तो जन्नत है… इसे देखकर तो मेरा लंड और सख्त हो गया,” उन्होंने मेरी गांड पर हल्का सा थप्पड़ मारा और अपने लंड को मेरी चूत में पीछे से घुसा दिया। “आह्ह… मौसाजी… हाय… तेरा लंड तो मेरी चूत को छेद रहा है…” मैं चिल्ला उठी। वो मेरे चूचों को पकड़कर तेजी से धक्के मारने लगे। “पचपच… पचपच…” मेरी चूत और उनकी गोटियों की टक्कर की आवाज़ हॉल में गूँज रही थी। “शुभांगी… तू तो बिल्कुल रंडी है… तेरी चूत को तो आज रगड़-रगड़ कर चोदूँगा…” वो जोर-जोर से चोद रहे थे। मैंने अपनी गांड को पीछे धकेला और उनके धक्कों का जवाब दिया। “मौसाजी… और जोर से… मेरी चूत को फाड़ दो… मुझे रंडी बना दो…” मैं चिल्ला रही थी।

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वो मेरे बालों को पकड़कर और जोर से धक्के मारने लगे। “शुभांगी… तेरी चूत तो मेरा लंड निचोड़ रही है… तू तो सच्ची रंडी है…” उनकी साँसें तेज थीं। मेरी चूत में एक अजीब सा दबाव बन रहा था। “मौसाजी… कुछ हो रहा है… आह्ह… मेरी चूत… ओह्ह…” अचानक मेरी चूत से एक जोरदार पिचकारी छूटी। “आह्ह… मौसाजी… मैं झड़ रही हूँ…” मेरी चूत ने रस की फुहार छोड़ी, और सोफा गीला हो गया। “हाय… शुभांगी… तू तो स्क्वर्ट कर रही है… मेरी रंडी… कितना मज़ा दे रही है…” वो और जोर से चोदने लगे।

“मौसाजी… रुको मत… और चोदो… मेरी चूत को बर्बाद कर दो…” मैं चिल्ला रही थी। उन्होंने मुझे फिर से पलटकर सोफे पर लिटा दिया और मेरी टाँगें अपने कंधों पर रख दीं। “शुभांगी… तेरा ये गुलाबी फूल तो आज मुरझा दूँगा…” वो मेरे होंठों को चूसते हुए और जोर से चोदने लगे। “पचपच… पचपच…” मेरी चूत की आवाज़ अब और तेज थी। “मौसाजी… तेरा खीरा तो मेरी चूत का राजा है… इसे और अंदर डालो…” मैंने उनके कंधों को पकड़ लिया और उनकी कमर पर टाँगें लपेट दीं। “शुभांगी… तू तो मेरे लंड की दीवानी हो गई… ले, और ले मेरा खीरा…” वो मेरे चूचों को मसलते हुए और तेज धक्के मार रहे थे।

“मौसाजी… मुझे फिर से पलट दो… मेरी गांड को और रगड़ो…” मैंने सिसकारी भरी। उन्होंने मुझे फिर से झुकाया और मेरी गांड पर थप्पड़ मारते हुए अपने लंड को मेरी चूत में घुसा दिया। “आह्ह… शुभांगी… तेरी चूत तो अब मेरे लंड की गुलाम है…” वो मेरे बालों को खींचते हुए चोद रहे थे। “मौसाजी… हाँ… मुझे अपनी रंडी बना लो… मेरी चूत को चोद-चोद कर फाड़ दो…” मैं चिल्ला रही थी। मेरी चूत फिर से दबाव महसूस कर रही थी। “आह्ह… मौसाजी… फिर से हो रहा है…” मेरी चूत ने फिर से एक जोरदार पिचकारी छोड़ी, और मैं काँप रही थी। “हाय… मेरी रंडी… तू तो बार-बार स्क्वर्ट कर रही है… मेरा लंड तो तेरे रस में नहा गया…” वो हँसे और और जोर से चोदने लगे।

“मौसाजी… अब मुझे ऊपर आने दे…” मैंने कहा। उन्होंने सोफे पर लेट गए, और मैं उनके ऊपर चढ़ गई। मैंने उनके लंड को अपनी चूत में लिया और उछलने लगी। “आह्ह… मौसाजी… तेरा खीरा तो मेरी चूत को छेद रहा है…” मैं चिल्ला रही थी। वो मेरे चूचों को पकड़कर मसल रहे थे। “शुभांगी… तू तो मेरे लंड की सवारी कर रही है… जैसे कोई रंडी घुड़सवारी करती है…” वो सिसक रहे थे। मैंने अपनी कमर को और तेजी से हिलाया, और मेरी चूत फिर से स्क्वर्ट करने लगी। “आह्ह… मौसाजी… मैं फिर झड़ रही हूँ…” मेरी चूत का रस उनके लंड पर गिर रहा था, और सोफा पूरी तरह गीला हो गया था।

“शुभांगी… अब मेरा होने वाला है… तेरा ये गुलाबी फूल तो मेरा लंड निचोड़ रहा है…” उन्होंने कहा। “मौसाजी… मेरी चूत में ही झड़ जाओ… मुझे तेरा माल चाहिए…” मैं चिल्ला रही थी। उन्होंने मेरी कमर को पकड़ लिया और नीचे से तेज-तेज धक्के मारने लगे। “आह्ह… शुभांगी… ले मेरा खीरा… ले मेरा माल…” उनके लंड ने मेरी चूत में गर्म वीर्य की पिचकारी मारी। “आह्ह… हाय… मौसाजी… कितना गर्म है…” मैं उनके ऊपर गिर पड़ी। मेरी टाँगें काँप रही थीं, और मुझे लगा कि मैं चल नहीं पाऊँगी। “मौसाजी… तूने तो मेरी चूत को बर्बाद कर दिया… मैं तो अब लंगड़ा कर चलूँगी…” मैंने हँसते हुए कहा।

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“शुभांगी… तेरा ये गुलाबी फूल तो मेरे खीरे का दीवाना हो गया… कैसा लगा मेरा खीरा?” उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाया। “मौसाजी… तेरा खीरा तो मेरी चूत का बादशाह है… उस खीरे से तो लाख गुना बेहतर,” मैंने शरारत से कहा। हम दोनों थककर सोफे पर पड़े रहे, और मेरा बदन अभी भी काँप रहा था।

बाद में, जब भी मौसी नहीं होती थी, मैं और मीना मौसाजी के जोश को संभालती थीं।

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1 thought on “मौसा ने अपना मोटा खीरा मेरी चूत में घुसाया”

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