Adhuri Chudai Kahani हैलो दोस्तो! मैं बिहार के भागलपुर से हूँ। मेरा नाम दिवाकर है, उम्र 24 साल, और मैं एक जवान, तगड़ा लड़का हूँ। मेरा शरीर अच्छा-खासा गठीला है, कद 5 फीट 10 इंच, और चेहरा ऐसा कि लड़कियाँ एक बार तो जरूर पलट कर देखें। मैंने कई बार अपनी जवानी के जलवे दिखाए हैं, लेकिन जो कहानी मैं आज आपको सुनाने जा रहा हूँ, वो मेरे दिल के करीब है। ये मेरी ममेरी बहन परिधि के साथ की एक सच्ची और गर्मागर्म घटना है, जो आज तक मेरे दिमाग में ताजा है।
बात दो साल पुरानी है, जब मैं गर्मी की छुट्टियों में अपने मामा के गाँव गया था। मामा का घर गाँव में है, खेत-खलिहान के बीच, जहाँ चारों तरफ हरियाली और शांति बिखरी रहती है। मामा की तीन बेटियाँ हैं। सबसे बड़ी परिधि, जो मेरी ही उम्र की है, यानी 24 साल की, गोरी, भरा-भरा बदन, कद 5 फीट 4 इंच, और उसकी आँखें ऐसी कि किसी को भी घायल कर दें। उसकी चूचियाँ मध्यम आकार की, करीब 34C, और कूल्हे ऐसे कि सलवार में फंस कर उसकी गोलाई और निखर आती थी। दूसरी बहन 20 साल की थी, और तीसरी अभी 18 की, लेकिन मेरी कहानी परिधि के इर्द-गिर्द ही घूमती है।
एक रात को, शायद 11 बजे होंगे, मैं पेशाब करने के लिए उठा। मामा का घर पुराना था, बाथरूम बाहर आँगन के पास था। मैं जैसे ही वहाँ पहुँचा, देखा कि परिधि पहले से ही वहाँ थी। उसने सलवार-कमीज पहनी थी, लेकिन सलवार घुटनों तक नीचे थी, और वो पेशाब कर रही थी। मैं रुक गया और छुपकर उसे देखने लगा। अंधेरे में चाँद की रोशनी उसकी गोरी टाँगों पर पड़ रही थी, और उसकी चूत की हल्की-सी झलक ने मेरे लंड में हलचल मचा दी। पेशाब करने के बाद, उसने अपनी चूत पर हाथ फेरा और धीरे-धीरे उंगली अंदर-बाहर करने लगी। उसकी साँसें तेज थीं, और हल्की-सी सिसकारी, “उह्ह…”, उसके मुँह से निकल रही थी। मेरा 7 इंच का लंड पजामे में तन गया, ऐसा लगा जैसे अभी फट जाएगा। तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी, और वो चौंक गई। उसने जल्दी से सलवार ऊपर की और भाग गई। मैं भी डर गया, लेकिन मेरे दिमाग में बस वही नजारा घूम रहा था।
अगले दिन सुबह, जब मैंने परिधि को देखा, वो मुझे देखकर शरमाई और हल्का-सा मुस्कुराई। उसकी मुस्कान में एक अजीब-सी चमक थी, जैसे वो कुछ कहना चाहती हो। मैंने भी जवाब में मुस्कुरा दिया। चूंकि मैं उससे उम्र में थोड़ा बड़ा था, वो मुझसे थोड़ी शरमाती थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ और ही बात थी। उस दिन मामा और मामी खेतों में काम कर रहे थे। दोपहर को मामी ने हमें कहा, “दिवाकर, परिधि, जाओ, बोरिंग से पानी भरकर ले आओ।” बोरिंग खेतों के बीच, थोड़ी दूर पर थी, जहाँ चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे गन्ने और मक्के के पौधे थे, जो एकदम जंगल जैसा माहौल बनाते थे।
हम दोनों बोरिंग की तरफ चल दिए। परिधि ने लाल रंग की सलवार-कमीज पहनी थी, जो उसके बदन पर चिपकी हुई थी। गर्मी की वजह से पसीना उसकी कमीज को और टाइट कर रहा था, और उसकी चूचियों का उभार साफ दिख रहा था। वो पानी भरते हुए हँस रही थी, और बार-बार मेरी तरफ देखकर शरमाती थी। मैं उसकी चूचियों को घूर रहा था, जो सलवार के ऊपर से उभरी हुई थीं। जब वो बाल्टी भरने के लिए झुकती, तो उसकी सलवार उसके गोल-मटोल चूतड़ों की दरार में फंस जाती, और उसकी चूत की हल्की-सी शेप दिखाई देती। मेरे बदन में बिजली-सी दौड़ रही थी। मेरा लंड फिर से तन गया, और मैंने सोचा, यही मौका है।
पानी भरने के बाद, जब वो जाने लगी, मैंने कहा, “परिधि, जरा रुक, थोड़ा सुस्ता लें।” वो रुक गई और मेरी तरफ देखकर फिर मुस्कुराई। मैंने हिम्मत करके उससे रात वाली बात पूछी, “कल रात तू क्या कर रही थी?” वो शरमा गई, उसका चेहरा लाल हो गया, और उसने नजरें झुका लीं। मैंने उसका हाथ पकड़ा और धीरे से अपनी तरफ खींचा। उसने कोई विरोध नहीं किया। मैंने उसका हाथ अपने लंड पर रख दिया, जो पजामे में तनकर सख्त हो चुका था। वो चौंकी, लेकिन उसने हाथ नहीं हटाया। उसकी साँसें तेज हो गईं, और मैंने मौका देखकर उसे अपनी बाहों में खींच लिया।
मैंने उसके गालों को सहलाया और धीरे से उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो पहले थोड़ा हिचकिचाई, फिर उसने भी मुझे चूमना शुरू कर दिया। उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी, और उसका गर्म साँस मेरे चेहरे पर महसूस हो रहा था। मैंने उसकी कमीज के ऊपर से उसकी चूचियों को दबाया, जो नरम और भारी थीं। वो सिसक उठी, “उह्ह… दीवाकर… ये क्या कर रहे हो?” लेकिन उसकी आवाज में विरोध कम और मस्ती ज्यादा थी। मैंने उसकी कमीज ऊपर उठाई और उसकी ब्रा के ऊपर से उसकी चूचियों को चूसना शुरू किया। उसकी निप्पल सख्त हो चुकी थीं, और वो “आह्ह… उह्ह…” की आवाजें निकाल रही थी।
मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला, और वो धीरे-धीरे नीचे सरक गई। उसकी गोरी टाँगें और काली पैंटी मेरे सामने थी। मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से उसकी चूत को सहलाया, जो पहले से ही गीली थी। वो सिहर उठी और बोली, “दिवाकर… कोई देख लेगा…” मैंने कहा, “यहाँ कोई नहीं आएगा, बस तू मजे ले।” मैंने उसकी पैंटी उतार दी, और उसकी चूत मेरे सामने थी—गुलाबी, चिकनी, और गीली। मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में डाली, और वो “आह्ह… उह्ह…” करते हुए मेरे कंधे पर झुक गई। मैंने धीरे-धीरे उंगली अंदर-बाहर की, और उसकी सिसकारियाँ तेज हो गईं, “उह्ह… दीवाकर… और करो… आह्ह…”
उसने मेरे पजामे का नाड़ा खोला और मेरा लंड बाहर निकाला। मेरा 7 इंच का लंड तनकर लोहे की तरह सख्त था। उसने उसे अपने नरम हाथों में लिया और धीरे-धीरे हिलाने लगी। मैं मदहोश हो रहा था। फिर उसने झुककर मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया। उसकी गर्म जीभ मेरे लंड के टोपे पर घूम रही थी, और वो “म्म्म…” की आवाजें निकाल रही थी। मैंने उसके बाल पकड़े और धीरे-धीरे उसके मुँह में लंड अंदर-बाहर करने लगा। वो चूस रही थी, और उसकी चूसने की आवाज, “चप-चप…”, मेरे कानों में मस्ती भर रही थी। मैंने कहा, “परिधि… तू तो जादू कर रही है… आह्ह…”
मैंने उसे खेत में गन्नों के बीच ले जाकर जमीन पर लिटा दिया। उसकी कमीज और ब्रा पूरी तरह उतर चुकी थीं, और उसकी चूचियाँ चाँदनी में चमक रही थीं। मैंने उसकी चूचियों को फिर से चूसा, और मेरे दाँत उसके निप्पल पर हल्के से लगे, तो वो सिहर उठी, “आह्ह… धीरे… उह्ह…” मैंने उसकी टाँगें फैलाईं और अपनी जीभ उसकी चूत पर रख दी। उसकी चूत का स्वाद नमकीन और गर्म था। मैंने उसकी चूत को चाटना शुरू किया, और वो पागल हो गई, “आह्ह… दीवाकर… ये क्या… उह्ह… मत रुको…” उसकी चूत और गीली हो गई, और मेरी जीभ उसके दाने को छू रही थी।
अब मेरा लंड बेकाबू हो रहा था। मैंने उसकी टाँगें और फैलाईं और अपने लंड का टोपा उसकी चूत के मुँह पर रखा। वो सिहर रही थी, और उसकी आँखें बंद थीं। मैंने धीरे से एक झटका मारा, और मेरा लंड आधा उसकी चूत में घुस गया। वो चीखी, “आह्ह… दर्द हो रहा है…” मैं रुक गया और उसके होंठों को चूमने लगा। फिर मैंने धीरे-धीरे लंड अंदर-बाहर किया, और उसकी चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी। “पच-पच…” की आवाज खेत में गूँज रही थी, और उसकी सिसकारियाँ, “उह्ह… आह्ह… और जोर से…” मेरे जोश को बढ़ा रही थीं। मैंने एक जोरदार झटका मारा, और मेरा पूरा लंड उसकी चूत में समा गया। वो “आह्ह…” करके मेरे सीने पर झुक गई।
अचानक उसकी चूत से खून निकलने लगा। वो डर गई और बोली, “दिवाकर… ये क्या हो गया?” मैं भी घबरा गया। हमने देखा कि उसकी चूत से हल्का-सा खून बह रहा था। शायद वो पहली बार थी। मैंने उसे शांत किया, “कुछ नहीं, बस पहली बार होता है।” हमने जल्दी से खून साफ किया। मैंने अपनी कमीज़ से खून पोंछा, और उसने अपनी सलवार-कमीज ठीक की। हम दोनों ने कपड़े पहने और बाल्टी उठाकर वापस चल दिए। मेरे मन में डर था, लेकिन साथ ही एक अजीब-सी तृप्ति भी थी।
वापस घर पहुँचने के बाद, परिधि मुझसे नजरें नहीं मिला रही थी। कुछ दिन बाद मुझे अपने घर वापस आना पड़ा। समय बीतने के साथ परिधि ने शायद वो बात भुला दी, लेकिन मेरे दिल में वो पल आज भी जिंदा हैं।
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