कहानी का पिछला भाग: मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-6
मैं करिश्मा, इकतालीस साल की एक ऐसी औरत, जिसकी जवानी कोलकाता की गलियों में “मस्त माल” का खिताब दिलाती थी। मेरी गोरी चूचियाँ, चिकनी जांघें, और पतली कमर देखकर मर्दों की साँसें अटक जाती थीं। मेरे पति विजय ने मुझे अपने बेटे विनोद से चुदवाने की खुली छूट दे दी थी। अगली रात, बाप-बेटे के सामने मैंने उनके बॉस मुकर्जी का सात इंच का लौड़ा चूसा, उसका गर्म, नमकीन रस निगला। फिर विजय ने मुझे चोदना शुरू किया, और मैंने एक हाथ में विनोद का कड़क मूसल और दूसरे में मुकर्जी का ढीला लौड़ा पकड़कर सहलाना शुरू किया।
हमारे मिडिल-क्लास कोलकाता फ्लैट के लिविंग रूम में, मॉनसून की नमी और व्हिस्की की महक हवा में तैर रही थी। कारपेट पर मैं नंगी थी, मेरी चूचियाँ हवा में तनी थीं, मेरी चूत चमक रही थी। विजय का मूसल मेरी चूत में समंदर की लहर की तरह टकरा रहा था। विनोद और मुकर्जी मेरी चूचियाँ दबाते हुए, बारी-बारी चूस रहे थे, उनके होंठ मेरे निप्पल्स पर बिजली की तरह रेंग रहे थे। मेरी सिसकारियाँ कमरे में तूफान की तरह गूंज रही थीं।
मुकर्जी, मेरी चूचियाँ मसलते हुए, अपनी कहानी सुनाने लगा। “बेटा विनोद, तू बहुत किस्मतवाला है कि तेरी माँ इतना मस्त माल है। मेरी माँ भी बहुत सुंदर थी, लेकिन जब मेरा लौड़ा चोदने लायक हुआ, वो मर गई। मैंने उसे कई बार हमारे ड्राइवर और माली से चुदवाते देखा। बड़ा हुआ तो मैं भी चुदाई करने लगा। सब कहते हैं मेरा लौड़ा गज़ब का है, मैं मस्त चोदता हूँ। फिर भी मेरी घरवाली मीता दूसरों से चुदवाती थी। तब मेरे दिमाग में खयाल आया, और मैंने मीता को अपने बॉस से चुदवाकर प्रमोशन लिया।”
उसकी आवाज़ में नशा और नॉस्टैल्जिया था। “मैंने मीता से बहुत खुशामद की, लेकिन उसने मेरे सामने कभी किसी से नहीं चुदवाया। वो क्या करती थी, मुझे नहीं पता, लेकिन मेरा बॉस कहता था कि मीता को चोदने का मज़ा उसे किसी और के साथ नहीं आया। मेरा एक बॉस सिन्हा उसे बाहर भी ले जाता था। आखिरकार मैं जनरल मैनेजर बन गया। उसके बाद मैंने अपने जूनियर्स की बीवियों और बहनों को चोदना शुरू किया। लेकिन जो मज़ा, जो खुशी मुझे आज करिश्मा के साथ मिल रही है, वैसी मस्ती मुझे पहले कभी नहीं आई।”
मैं मुकर्जी से चूत चटवाना चाहती थी। “विजय,” मैंने मादक अंदाज़ में कहा, “तुमने बहुत चोद लिया। अब बॉस को मेरी चूत का मज़ा लेने दे।” विजय ने तीन-चार धक्के और मारे, फिर लौड़ा मेरी चूत से खींच लिया। “बॉस, देख क्या रहे हो?” मैंने कहा। “अपने लौड़े को मेरी चूत से रगड़ो, अंदर घुसाने की कोशिश करो।”
मुकर्जी का लौड़ा ढीला था। फिर भी वो मेरे ऊपर आ गया। मैंने उसका ढीला लौड़ा पकड़ा और अपनी चूत पर रगड़ने लगी। लौड़ा अंदर नहीं गया, लेकिन मैंने उसे तेज़ी से अपनी चूत की फाँकों पर रगड़ा। बूढ़ा मेरी चूचियाँ मसलता और चूसता रहा। दस-बारह मिनट रगड़ने के बाद उसका लौड़ा फिर झड़ गया, उसका गर्म रस मेरी जांघों पर टपक रहा था।
मुकर्जी मेरे ऊपर हाँफते हुए पस्त हो गया। कुछ लंबी साँसें लेने के बाद वो उठा और कपड़े पहनने लगा। “झूठ नहीं कहता, विजय,” उसने कहा, “करिश्मा ने जो मज़ा मुझे दिया, वैसा मज़ा मुझे पहले किसी के साथ नहीं आया।”
“बॉस,” मैंने मादक लहजे में कहा, “मैं आपकी हूँ। जब चाहे लौड़ा चुसवाना हो, मेरी चूत चाटनी हो, या मुझे चोदना हो, आ जाना। और भी ज़्यादा मज़ा दूँगी।” उसका ड्राइवर बाहर इंतज़ार कर रहा था। रात बारह बजे से पहले बूढ़ा चला गया।
उसके जाते ही विनोद ने अपने बाप के सामने मुझे मिशनरी पोज में चोदा। उसका मूसल मेरी चूत में तलवार की तरह चीर रहा था, मेरी सिसकारियाँ फ्लैट में गूंज रही थीं। विजय पास बैठा अपनी घरवाली की चुदाई देख रहा था, उसकी आँखों में भूख और उत्तेजना थी। दूसरे राउंड में मैंने विजय का लौड़ा चूसा, उसका नमकीन स्वाद मेरे मुँह में घुल रहा था। विनोद ने मुझे कुतिया बनाकर चोदा, उसके धक्के मेरे जिस्म में बिजली दौड़ा रहे थे। मेरी चूत की नमी मेरी जांघों पर टपक रही थी, और विजय की सिसकारियाँ मेरे कानों में गूंज रही थीं।
अगले दिन, दोपहर तीन बजे से कुछ मिनट पहले, मैं और विनोद “मॉडर्न सिनेमा” के कम्पाउंड में थे। लल्लन वहाँ पहले से था। उसने सबके सामने मुझे गले लगाया, मेरी चूचियाँ उसके सीने से दब गईं। वो मुझे मुख्य हॉल में नहीं, किनारे की सीढ़ियों से ऊपर बालकनी में ले गया।
बालकनी एक अंधेरी, गंदी जगह थी, जहाँ कुर्सियाँ नहीं, छह खटिया थीं। तीन खटियों पर एक-एक औरत के साथ दो-दो मर्द थे, दो पर एक औरत और एक मर्द। सारी औरतें लगभग नंगी थीं, उनकी सिसकारियाँ और मर्दों की हाँफने की आवाज़ें हवा में तैर रही थीं। खटियाँ चुदाई के ताल पर चरमरा रही थीं, और मर्दों की मर्दानी खुशबू ने मेरी चूत को गीला कर दिया। हम खाली खटिया पर आए।
अंधेरा छा गया, और हॉल में पिछले दिन जैसी घोषणा हुई: “सभी लोग अपनी मर्ज़ी से यहाँ हैं। जो चाहे करें, लेकिन किसी को जबरदस्ती न करें।” घोषणा के साथ लल्लन और विनोद ने मुझे नंगा कर दिया, और दोनों भी नंगे हो गए। मैंने दोनों के मूसल पकड़े—विनोद का लौड़ा लल्लन के जितना ही कड़क था। मेरी चूत खुशी से फुदक रही थी।
फिल्म शुरू हुई, लेकिन यहाँ कोई फिल्म देखने नहीं आया था। मैं पहले लल्लन से चुदवाना चाहती थी, लेकिन वो कुछ और चाहता था। “रानी,” उसने कहा, “तूने मेरा लौड़ा गज़ब चूसा था। थोड़ी देर चूस दे, फिर चोदूँगा।”
लल्लन खटिया के किनारे, टाँगें फैलाकर बैठ गया। मैं खटिया के बीच में, घुटनों के बल, उसे चूमने लगी। लल्लन ने भी मुझे प्यार करना शुरू किया, बिना जल्दबाज़ी के। उसकी उंगलियाँ मेरे बदन पर मखमली साँप की तरह रेंग रही थीं, मेरी चूचियाँ प्यार से दबाते हुए वो मुझे चूम रहा था। उसका मूसल मेरे हाथ में ज्वालामुखी की तरह धधक रहा था।
लेकिन विनोद को जल्दी थी। वो मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए, मेरी गांड के छेद से लेकर क्लिट तक चूसने और चाटने लगा। उसकी जीभ मेरे भोसड़े में तूफान की तरह घूम रही थी। पिछले दो दिनों में विनोद ने मुझे चार बार चोदा था, तीन बार अपने बाप के सामने। पिछली रात उसने मुकर्जी के सामने मेरी चूचियाँ दबाईं और चूसीं। मैंने भी उसके लौड़े को सहलाया था। लेकिन अब वो मुझे एक बाहरी मर्द के सामने, चौदह-पंद्रह लोगों की भीड़ में, चोदने वाला था।
लल्लन मुझे प्रेमी की तरह प्यार कर रहा था, जैसे कोई पति अपनी पत्नी को बेडरूम में करता है। लेकिन मेरा बेटा मुझे एक घटीया रंडी समझ, सबके सामने चोदने पर तुला था। मैंने लल्लन का सुपारा चूसना शुरू किया, उसका मोटा लौड़ा मेरे मुँह में समंदर की लहर की तरह टकरा रहा था। विनोद ने मेरे चूतड़ ऊपर उठाए, मेरी कमर पकड़ी, और एक ज़ोरदार धक्का मारा। उसका मूसल मेरी चूत में घुसता चला गया।
नीचे मैं लल्लन के लौड़े की लंबाई अपने मुँह में ले रही थी, और विनोद एक के बाद एक धक्के मार रहा था। मैं सिसकना चाहती थी, लेकिन लल्लन का मूसल इतना मोटा था कि मेरे मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकली। मुझे लौड़ा चूसने और बेटे से चुदवाने का दोहरा मज़ा आ रहा था। लेकिन मैं लल्लन के लंबे, मोटे मूसल को अपनी चूत में चाहती थी। मैं जानना चाहती थी कि ये घोड़े का लौड़ा मेरी चूत में कितनी देर टिक सकता है।
विनोद इतने ज़ोरदार धक्के मार रहा था कि मैं उसे मना नहीं कर पाई। मैंने उसे करीब आधा घंटा चोदने दिया। जब मुझे लगा कि वो जल्दी ठंडा नहीं होगा, मैंने अपनी चूत उसके लौड़े से खींच ली। मैं कुतिया पोज में चुदवा रही थी। फुर्ती से मैं खटिया पर सीधी हो गई। लल्लन का लौड़ा मेरे मुँह से निकल गया। मैंने विनोद का मूसल पकड़कर कहा, “विनोद, तूने दो दिन में सात-आठ बार चोद लिया। अब बाद में चोदना। मुझे इस घोड़े के लौड़े से चुदवाना है। लल्लन, चोद इस रंडी को।”
लल्लन भी मुझे चोदने के लिए पागल था। मैंने अपनी दोनों जांघें और पैर मिशनरी पोज में सेट किए। चूतड़ उछालकर मैंने लल्लन को चोदने का इशारा किया। विनोद मेरे मुँह में लौड़ा पेलना चाहता था। मैंने उसका मूसल पकड़ लिया। “विनोद,” मैंने कहा, “मुझे लल्लन के साथ अकेले मस्ती करने दे। तू बाथरूम जा। तेरा मस्त लौड़ा देख कोई न कोई रंडी तुझसे चुदवाने आएगी।”
मेरी बात खत्म हुई, और बालकनी में एक औरत की आवाज़ गूंजी। “मैडम, आप दो-दो मर्दों को एक साथ नहीं संभालना चाहतीं, तो अपने एक यार को मेरे पास भेज दीजिए। मेरे दोनों मर्द ठंडे हो गए, लेकिन मैं वैसे की वैसी गर्म हूँ।”
मैंने चेहरा घुमाया। एक नंगी औरत हमारे पास आई और विनोद का हाथ पकड़कर अपनी खटिया पर ले गई। उसकी और हमारी खटिया के बीच एक खटिया थी। उसकी आवाज़ फिर सुनाई दी, “वाह, बहुत मस्त लौड़ा है। चूत चूसने-चाटने में टाइम वेस्ट मत करो। इन दोनों ने खूब चाटा है। तू बस जितना चोद सकता है, चोद।”
विनोद बोला, “तू भी मस्त माल है। चिंता मत कर, पूरा ठंडा कर दूँगा।”
औरत ने सिसकारी, “वाह राजा, ऐसे ही धक्कों का इंतज़ार था।”
एक तरफ विनोद उस औरत को चोदने लगा, उसकी खटिया चरमराने लगी। दूसरी तरफ लल्लन ने मेरी चूत में अपना मूसल पेला। “फाड़ डालो राजा,” मैंने सिसकारते हुए कहा। “ये चूत कब से ऐसे लंबे, मोटे, कड़क लौड़े के धक्कों के लिए तरस रही थी। पेलते रहो, ये रंडी और ये चूत तुम्हारी है।”
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