मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-5

कहानी का पिछला भाग: मैंने बेटे से सिनेमा हॉल में चुदवाया-4

मैं करिश्मा, इकतालीस साल की एक ऐसी औरत, जिसकी जवानी कोलकाता की गलियों में “मस्त माल” का खिताब दिलाती थी। मेरी गोरी चूचियाँ, चिकनी जांघें, और पतली कमर देखकर मर्दों की साँसें अटक जाती थीं। वो मॉनसून की उमस भरी रात मेरे लिए खास थी। मेरा बेटा विनोद मुझे “मॉडर्न सिनेमा” ले गया, जहाँ सवा घंटे की गंदी फिल्म ने मेरे जिस्म में आग लगा दी। मैंने विनोद के मूसल के साथ-साथ दो अनजान मर्दों—सुदेश और लल्लन—के लौड़ों को सहलाया। लल्लन का नौ इंच का मूसल चूसकर, उसका गर्म, नमकीन रस निगलकर, मैं हॉल के सैकड़ों लोगों की नज़रों में नंगी हो गई। घर लौटकर विनोद ने पहली बार मेरी चूत में अपना लौड़ा पेला, और उसकी जवान ताकत ने मुझे झकझोर दिया।

उस रात दो-दो डबल पेग व्हिस्की ने मेरे जिस्म में बिजली दौड़ा दी। हमारे कोलकाता के मिडिल-क्लास फ्लैट के बेडरूम में, मैं सिर्फ एक पतला बाथ गाउन पहने, लगभग नंगी, बेड पर थी। मेरे पति विजय मेरी चूचियों को मसल रहे थे, उनके होंठ मेरे गालों पर रेंग रहे थे। विनोद मेरी चूत को प्यार से सहला रहा था, उसकी उंगलियाँ मेरे भोसड़े में मखमली लहरों की तरह घूम रही थीं। हम तीनों ने दो-दो डबल पेग चढ़ाए थे, और व्हिस्की की गर्मी ने हमें बेकाबू कर दिया था। कमरे में पुरानी बॉलीवुड पोस्टरों की दीवारें, मॉनसून की नमी, और व्हिस्की की महक हवा में तैर रही थी।

मैंने दोनों को थोड़ी देर मस्ती लेने दी, फिर उन्हें खुद से अलग किया। बेड पर लेटते हुए मैंने कहा, “बेटा, व्हिस्की ने मुझे बहुत गर्म कर दिया। तुम रूम के बाहर जाओ। मुझे अभी तुम्हारे बाबा से ज़बरदस्त चुदाई चाहिए।” मेरी आवाज़ में मादकता थी, लेकिन मेरी चूत में लल्लन के मूसल और कुंदन की चुदाई की यादें धधक रही थीं।

विजय नशे में डूबे थे, उनकी आँखें धुंधली थीं। लेकिन विनोद ने हिम्मत दिखाई। उसने मेरी नंगी जांघ को सहलाना शुरू किया, उसकी उंगलियाँ मेरी चिकनी त्वचा पर साँप की तरह रेंग रही थीं। “बाबा,” वो बोला, “मैं ज़िंदगी भर आपका गुलाम रहूँगा। आप जो कहेंगे, सब करूँगा। आपका लौड़ा भी चूस दूँगा। मैं अपनी माँ, आपकी घरवाली को नंगा देखना चाहता हूँ। उनके अंग-अंग को सहलाना चाहता हूँ। मैं माँ को प्यार करना चाहता हूँ। प्लीज़, एक बार मुझे मेरे डिज़ायर्स पूरे करने दीजिए।”

बोलते-बोलते उसका हाथ मेरी जांघों से सरकता हुआ मेरी चूत पर आ गया। मैंने उसका हाथ झटका और गाउन से अपनी चूचियाँ और जांघें ढक लीं। शाम को विनोद ने मुझे चोदा था, लेकिन मुझे यकीन नहीं था कि वो अपने बाप के सामने मेरी चूत सहलाएगा। विजय के सामने पहली बार किसी ने मेरी चूत को छुआ। छह महीने से विजय मुझे अपने बॉस मुकर्जी से चुदवाने को कह रहे थे। मैंने मुकर्जी से नहीं चुदवाया था, लेकिन विनोद की हिम्मत देखकर विजय का नशा और चढ़ गया।

मैंने हल्का सा विरोध किया, लेकिन विजय ने गाउन का बेल्ट खोल दिया और दोनों पल्लों को मेरे जिस्म से अलग कर दिया। मैं अपने पति और बेटे के सामने पूरी नंगी थी। मेरी चूचियाँ हवा में तनी थीं, मेरी चूत की नमी चमक रही थी। दोनों ने मुझे छुआ नहीं, लेकिन उनकी भूखी नज़रें मेरे जिस्म को चाट रही थीं।

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विजय बोले, “करिश्मा रानी, जब विनोद छोटा था, तुम सैकड़ों बार उसके सामने नंगी होकर उसे खिलाती-पिलाती, नहलाती थी। अब बेटा बड़ा हो गया, तो क्या? उसका तुम पर उतना ही हक है, जितना मेरा। ये गाउन हटा दो, और एक बार अपने बेटे के डिज़ायर्स पूरे करो। थोड़ी देर के लिए भूल जाओ कि तुम उसकी माँ हो। अपने को उसकी प्रेमिका समझो, और उसे प्यार करने दो।”

मैं तो विजय की इसी इजाज़त का इंतज़ार कर रही थी। “तुम दोनों कसम खाओ,” मैंने कहा, “कभी किसी को नहीं बताओगे कि मैंने अपने बेटे को अपना नंगा बदन दिखाया, और उसे सब कुछ छूने दिया।”

विनोद ने मेरे गालों को चूमते हुए कहा, “मैं मर जाऊँगा, जीभ काट लूँगा, लेकिन किसी से नहीं कहूँगा कि मैंने तुम्हें नंगा देखा।” विजय ने भी कसम खाई कि घर की बात बाहर नहीं जाएगी।

“मैं ये गाउन उतार दूँगी,” मैंने मादक अंदाज़ में कहा। “विनोद को सहलाने भी दूँगी। लेकिन पहले तुम दोनों अपने कपड़े उतारो।”

विनोद तो अपने बाप के सामने माँ को चोदना चाहता था। विजय को भी कोई शर्म नहीं थी। विनोद ने अपने कपड़े उतारे, और विजय भी पलक झपकते नंगा हो गया। विजय का लौड़ा टाइट था, लेकिन विनोद का मूसल देख मेरा दिल खुशी से नाच उठा। मेरी चूत गीली हो गई। बेटे का लौड़ा बाप से एक इंच लंबा, मोटा, और लोहे की तरह कड़क था।

मैंने दोनों हाथ बढ़ाए, और एक-एक हाथ से बाप-बेटे के मूसल पकड़कर दबाने लगी। “विजय,” मैंने कहा, “तुम्हारा लौड़ा मुझे हमेशा पसंद रहा। इसलिए तुमसे पहली बार चुदवाने के बाद मैंने किसी और मर्द को हाथ नहीं लगाया।” ये झूठ था—लल्लन का मूसल मेरे मुँह में अभी ताज़ा था। “मुझे खुशी है कि हमारा बेटा भी पूरा मर्द हो गया। कितनी भी कच्ची चूत हो, तुम दोनों उसे एक धक्के में फाड़ सकते हो।”

मैं आगे झुकी। पहले विजय का सुपारा चूसा, उसका नमकीन स्वाद मेरे होंठों पर रेंग गया। फिर विनोद का सुपारा, थोड़ी देर तक, विजय के सामने। विजय ने ना रोका, ना कुछ कहा। मैंने दोनों मूसल छोड़े और बेड पर खड़ी हो गई। गाउन उतारकर फेंक दिया। मैं पूरी नंगी थी, मेरी चूचियाँ हवा में तनी थीं, मेरी चूत चमक रही थी।

मैंने अपने पैर डेढ़ फुट दूर रखे। दोनों हाथों की उंगलियों से अपनी चूत की फाँकें फैलाईं। बाप-बेटे को मेरी चूत का गुलाबी माल साफ दिखा। “विनोद,” मैंने कहा, “यही औरत की चूत है। इसी के लिए तुम मर्द पागल रहते हो। पिछले तेईस सालों में तुम्हारे बाबा ने कम से कम पाँच हज़ार बार इस चूत में लौड़ा पेला होगा। तुम भी इसी चूत से निकले हो। देख रही हूँ, तेरा लौड़ा भी माँ की चूत में घुसना चाहता है। बेटे से चुदवाना पाप है। वो पाप मैं नहीं करूँगी। लेकिन आधे घंटे के लिए मैं तुम दोनों को पूरी चूत देती हूँ। जितनी मस्ती ले सकते हो, लो। बस, बाबा के सामने चूत में लौड़ा मत पेलना।”

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लेकिन मुझे यकीन था, विनोद मुझे चोदेगा। मैं घूम गई, मेरी पीठ और चूतड़ उनकी तरफ थे। मैं दोनों को इतना उत्तेजित करना चाहती थी कि विजय खुद विनोद से मुझे चोदने को कहे। एक मिनट भी नहीं बीता कि विनोद बोला, “माँ, तुम्हारे चूतड़ कितने कड़क हैं, और कितने चिकने भी।” उसका एक हाथ मेरे चूतड़ों को मसल रहा था। विजय भी मेरे चूतड़ दबाने लगा। मैं धीरे-धीरे आगे झुकने लगी।

मैंने अपनी टाँगें जितना फैला सकती थी, फैला दीं। इकतालीस साल की उम्र में भी मैं पूरी तरह झुक सकती थी, ये देखकर मुझे खुशी हुई। इस पोजीशन में मैं अपने घुटनों के बीच से दोनों के कड़क मूसल देख सकती थी। वो मेरी चूत, चूचियाँ, और गांड का छेद भी देख सकते थे। मैंने दोनों हाथ पीछे किए और अपने चूतड़ फैलाए, ताकि मेरी गांड का छेद साफ दिखे।

“बेटा,” मैंने कहा, “तेरे बाबा ने पाँच हज़ार बार मेरी चूत में लौड़ा पेला, लेकिन कभी मेरी गांड के छेद में नहीं। मेरी कई सहेलियाँ कहती हैं, गांड मरवाने में गज़ब का मज़ा है।”

मैं बोल ही रही थी कि विनोद ने अपनी मिडिल फिंगर मेरी गांड में घुसाने की कोशिश की। “माँ,” वो बोला, “तुम कह रही हो कि तुम्हारी सहेलियों को गांड मरवाने में मज़ा आता है। मुझे तो एक उंगली घुसाने में इतनी तकलीफ हो रही है। मेरा मोटा लौड़ा इस पतले छेद में कैसे घुसेगा?”

व्हिस्की का नशा या मेरी नंगी जवानी का असर, विजय का कंट्रोल टूट गया। उसने मुझे खींचकर बेड पर लिटाया और चोदना शुरू कर दिया। उसका मूसल मेरी चूत में समंदर की लहर की तरह टकरा रहा था। मैंने विनोद का लौड़ा पकड़कर मुठियाना शुरू किया। उसका मूसल मेरे हाथ में ज्वालामुखी की तरह धधक रहा था। विनोद मेरी चूचियाँ दबाते हुए, निप्पल्स को बारी-बारी चूसने लगा।

विजय ने कुछ देर आराम से चोदा, फिर उसकी स्पीड बढ़ गई। मैं नहीं चाहती थी कि वो मेरी चूत में झड़े। मैंने उसका लौड़ा पकड़ लिया। “विजय,” मैंने कहा, “बहुत दिन से मैंने तेरा लौड़ा नहीं चूसा। राजा, मुझे चुसवा। आज मैं तेरा रस पीना चाहती हूँ।” मैंने विनोद को आँख मारी।

विनोद बोला, “बाबा, मैं पहली बार किसी की चुदाई देख रहा हूँ। मैं ये भी देखना चाहता हूँ कि औरत लौड़ा कैसे चूसती है, रस कैसे पीती है। माँ को चूसने दीजिए।”

विजय अपने बेटे को खुश करना चाहता था। उसने कुछ और धक्के मारे, फिर लौड़ा मेरी चूत से खींचकर मेरे बगल में आ गया। मैंने उसका मूसल मुँह में लिया। विजय मेरा मुँह चोदने लगा, उसका लौड़ा मेरे गले तक उतर रहा था। विनोद मेरी टाँगों के बीच बैठा और मेरी चूत सहलाने लगा। उसकी उंगलियाँ मेरे भोसड़े में मखमली साँप की तरह रेंग रही थीं।

“बाबा,” विनोद बोला, “आपको जो लड़की सबसे ज़्यादा पसंद है, जिसे आप चोदना चाहते हैं, उसी से मेरी शादी करवा दीजिए। मेरी दुल्हन के साथ आप सुहागरात मनाना। उसे दिन-रात चोदिए, मैं कभी नहीं रोकूँगा। लेकिन मुझे एक बार अपनी घरवाली, अपनी माँ को चोदने दीजिए। अगर इस मस्त माल को नहीं चोद पाया, तो मर जाऊँगा। उफ्फ, माँ, मुझे चोदने दे।”

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“विनोद, नहीं…” मैं चिल्लाई, लेकिन उसका मूसल मेरी चूत में घुसता चला गया। वो मेरी चूचियाँ सहलाते हुए, निप्पल्स चूसते हुए, पूरी ताकत से चोदने लगा। हर धक्का मेरे जिस्म में बिजली दौड़ा रहा था। विजय आँखें फाड़कर देख रहा था कि उसका बेटा उसकी घरवाली को कैसे चोद रहा है। मैं झूठ नहीं बोलूँगी—विनोद के धक्के मुझे मेरे प्रेमी कुंदन की याद दिला रहे थे। मेरा बदन हर धक्के के साथ थिरक रहा था, मेरी सिसकारियाँ बेडरूम में तूफान की तरह गूंज रही थीं।

विनोद की चुदाई देखकर विजय इतना उत्तेजित हुआ कि उसने मेरा मुँह अपने रस से भर दिया। मैंने सारा गर्म, नमकीन रस मुँह में लिया। उसका लौड़ा ढीला होकर बाहर निकला। मैंने मुँह खोला, और विनोद ने एक ज़ोरदार धक्का मारकर अपना मूसल मेरी चूत में दबाए रखा। दोनों को दिखाते हुए मैंने विजय का सारा रस निगल लिया।

विनोद ने उस दिन दूसरी बार मुझे लौड़े का रस पीते देखा—पहले सिनेमा हॉल में लल्लन का, और अब अपने बाप का। दोनों चुप थे। “मैंने पढ़ा है,” मैंने कहा, “जो औरतें अपने मर्द का रस पीती हैं, वो हमेशा जवान रहती हैं। विजय, मैं कब से तेरा रस पीना चाहती थी, लेकिन तूने कभी नहीं दिया। अब तू मना करेगा, तब भी मैं तेरा रस पीती रहूँगी। बहुत टेस्टी है।”

विजय बिल्कुल नाराज़ नहीं था। “मैंने कभी नहीं सोचा था,” वो बोला, “कि तुम्हें किसी और से चुदवाते देख इतना मज़ा आएगा। तुम्हें चोदना तो हमेशा मस्त लगता है, लेकिन तुम्हें विनोद से चुदवाते देख गज़ब का मज़ा आ रहा है।” उसने विनोद की पीठ सहलाते हुए कहा, “बेटा, तेरी माँ बहुत गर्म माल है। मैं अकेला इसे ठंडा नहीं कर सकता। तू पूरा मर्द हो गया है। बहुत मस्त चुदाई कर रहा है। मैं बिल्कुल नाराज़ नहीं। तू जब चाहे अपनी माँ को चोद सकता है।”

मैं खुशी से झूम उठी। मैंने अपनी जांघें विनोद की कमर पर और कस दीं। “मुझे भी गज़ब का मज़ा आ रहा है,” मैंने कहा। “आज से, अभी से, मैं तुम दोनों बाप-बेटे की रंडी हूँ। तुम दोनों मेरे घरवाले हो।” मैंने विजय का लौड़ा फिर से मुँह में लिया, उसका ढीला मूसल मेरे होंठों पर रेंगने लगा।

आगे की कहानी अगले हिस्से में।

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