गुंडों से माँ की चुदाई

मेरा नाम विजय है, और मैं दिल्ली में रहता हूँ। मेरी उम्र 24 साल है। मेरे परिवार में मेरी माँ सावित्री, जो 39 साल की हैं, मेरे पिता हरीश, जो 45 साल के हैं, और मेरी छोटी बहन मोना, जो 18 साल की है, शामिल हैं। मेरी माँ बहुत खूबसूरत हैं। उनकी गोरी त्वचा, भरे-पूरे मम्मे, और मोटी-मोटी गांड मुझे हमेशा से पसंद रही है। उनकी साड़ी में लिपटी कमर, जब वो चलती हैं तो लहराती है, और उनका गहरा ब्लाउज उनके मम्मों को और उभारता है। मैं बचपन से ही मोटी गांड और बड़े मम्मों वाली औरतों की तरफ आकर्षित रहा हूँ। 15 साल की उम्र से ही मैं अपनी माँ और बहन को चोदने के सपने देखता था, पर कभी हिम्मत नहीं हुई। आज मैं आपको एक ऐसी घटना सुनाने जा रहा हूँ, जिसने मेरी जिंदगी बदल दी।

मेरे पापा को ऑफिस के काम से 10 दिन के लिए बाहर जाना था। उसी दौरान मेरे मामा की शादी थी, जो पंजाब के एक गाँव में होने वाली थी। मेरी बहन मोना शादी से 15 दिन पहले ही मामा के यहाँ चली गई थी। मुझे और मेरी माँ को शादी से 5 दिन पहले पहुँचना था। हमने ट्रेन से जाने का फैसला किया। सुबह 10 बजे की ट्रेन थी, लेकिन दिल्ली स्टेशन पर इतनी भीड़ थी कि पैर रखने की जगह नहीं थी। हम गलती से जनरल डिब्बे में चढ़ गए, जहाँ हालत बदतर थी। सामान रखने की जगह तक नहीं थी। मैंने मौके का फायदा उठाया और माँ से चिपककर खड़ा हो गया। माँ ने सिल्क की साड़ी पहनी थी, जो उनकी नाभि से नीचे बंधी थी, और उनका ब्लाउज इतना टाइट था कि उनके मम्मे बाहर निकलने को बेताब थे। मैंने अपना लंड उनकी गांड से सटाया और भीड़ का बहाना बनाकर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। माँ को शायद शक नहीं हुआ, क्योंकि भीड़ में कोई कुछ कह नहीं सकता था। मेरा लंड खड़ा हो गया, और करीब आधा घंटा मैं ऐसे ही मजे लेता रहा। उनकी गांड की गर्मी मेरे लंड को और उत्तेजित कर रही थी। अगले स्टेशन पर हमने डिब्बा बदला और अपनी सीट पर जाकर बैठ गए।

ट्रेन दो घंटे तक तेज चली, लेकिन फिर लाइन न मिलने की वजह से देरी होने लगी। रात के 11 बजे हम जालंधर उतरे। वहाँ से हमने बस पकड़ी, जो हमें गाँव के पास छोड़ने वाली थी। गाँव पक्की सड़क से 4 किलोमीटर अंदर था। बस से उतरने के बाद मैंने मामा को फोन लगाने की कोशिश की, लेकिन नेटवर्क नहीं था। रात के 11:30 बज चुके थे, और चारों तरफ गन्ने के खेत थे। मेरे मन में अजीब-अजीब खयाल आने लगे। माँ भी डर रही थीं, उनकी आँखों में बेचैनी साफ दिख रही थी। हम करीब 1 किलोमीटर अंदर चले, तभी पीछे से एक काली सफारी गाड़ी आई। उसमें से एक लंबा-चौड़ा सरदार उतरा और बोला, “कहाँ जाओगे?” मैंने कहा, “आगे जो गाँव है, वही जाना है।” उसने कहा, “आगे गाँव तो 10 किलोमीटर दूर है।” हम कन्फ्यूज हो गए, क्योंकि हमें ठीक-ठीक नहीं पता था कि गाँव 4 किलोमीटर है या 10। सरदार ने कहा, “हम छोड़ देंगे, हमें भी उसी तरफ जाना है।” मुझे लगा शायद गाड़ी में सिर्फ वही है, लेकिन जब उसने दरवाजा खोला, तो अंदर 8 लंबे-चौड़े सरदार बैठे थे। मुझे थोड़ा डर लगा, लेकिन माँ के साथ अकेले रात में खेतों में भटकने से बेहतर यही था।

हम गाड़ी में बैठ गए। माँ ने मुझे चिंता भरी नजरों से देखा। सभी सरदार माँ को घूर रहे थे, जैसे भूखे भेड़िए मांस के टुकड़े को देखते हैं। माँ की साड़ी में उनकी गोरी कमर और गहरे ब्लाउज में उभरे मम्मे सबका ध्यान खींच रहे थे। पता चला कि सभी ने शराब पी रखी थी। एक सरदार ने माँ से पूछा, “इतनी रात में क्या कर रही हो?” और उसने माँ के कंधे पर हाथ रख दिया। माँ ने हाथ हटाने की कोशिश की, लेकिन उसने और जोर से पकड़ लिया। मैंने गुस्से में कहा, “हाथ हटाओ!” उसने कहा, “हाथ नहीं हटाया तो?” मैंने कहा, “अच्छा नहीं होगा।” इतना कहते ही पीछे से एक सरदार ने मेरे गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया। माँ डर के मारे रोने लगीं। बाकी सरदार गुस्से में आ गए। एक ने गाली दी, “भोसड़ी के, ज्यादा हीरो बनता है, तेरी माँ की चूत फाड़ देंगे और तुझे मार-मार के अधमरा कर देंगे।” मैं समझ गया कि मैं गलत लोगों के चक्कर में पड़ गया हूँ। मैं चुप हो गया। माँ रोते हुए गिड़गिड़ाने लगीं, “हमें छोड़ दो, हमें जाने दो।” लेकिन वो सब हँसने लगे।

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अचानक एक सरदार ने माँ पर झपट्टा मारा। माँ ने विरोध किया, लेकिन दूसरे सरदार ने उनके गाल पर 3-4 थप्पड़ जोर से मारे। माँ का चेहरा लाल हो गया, और वो बुरी तरह रोने लगीं। एक सरदार, जो आगे की सीट पर था, पलटा और माँ का ब्लाउज फाड़ दिया। उनके मम्मे बाहर आ गए, क्योंकि ब्रा भी टूट गई थी। उसने माँ के एक मम्मे को जोर से मसलना शुरू किया, जैसे कोई आटा गूंथ रहा हो। दूसरा सरदार दूसरे मम्मे को मसलने लगा। तीसरा सरदार ने माँ की साड़ी ऊपर उठाई और उनकी चूत पर हाथ फेरने लगा। माँ बेचारी कुछ नहीं कर पा रही थीं, और मैं भी बेबस था। एक सरदार चिल्लाया, “बहेन के लौड़े, पहले इसे पूरी नंगी करो। साली मस्त माल है, ऐसी मैंने आज तक नहीं चोदी।” उन्होंने माँ की साड़ी खींचकर उतार दी, फिर पेटीकोट भी। माँ ने अपनी टाँगें जोड़ लीं, लेकिन एक सरदार ने उनकी काली पैंटी भी फाड़ दी। अब माँ पूरी नंगी थीं। एक सरदार बोला, “अबे, तेरी माँ तो गजब का माल है, एकदम मक्खन जैसी, अंदर से तो अंग्रेज लग रही है।” बाकी सरदार हँसने लगे।

तभी गाड़ी रुकी। मैंने देखा कि हम एक बड़ी हवेली में पहुँच गए थे। हवेली पूरी सफेद थी, और रोशनी इतनी तेज थी कि सब कुछ चमक रहा था। माँ की गोरी त्वचा और चमक रही थी। एक सरदार ने माँ के बाल पकड़े और उन्हें खींचते हुए अंदर ले गया। बाकी 6 सरदार भी तेजी से अंदर गए। एक सरदार ने मुझे पकड़कर अंदर खींच लिया। अंदर एक बड़ा सा हॉल था। उन्होंने माँ को बीच में खड़ा किया और उनके चारों तरफ घेरा बना लिया। माँ अब भी रो रही थीं। मुझे एक कोने में बाँध दिया गया। सरदारों ने अपने कपड़े उतारने शुरू किए। मैं उनके लंड देखकर दंग रह गया। एक का लंड 9 इंच लंबा और इतना मोटा था कि मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। बाकी के लंड भी कम नहीं थे। माँ डर के मारे और तेज रोने लगीं।

वे माँ पर टूट पड़े। एक सरदार ने माँ के एक मम्मे को मुँह में लिया और चूसने लगा, जैसे कोई बच्चा दूध पी रहा हो। “आह्ह… ऊह्ह…” माँ की सिसकारियाँ निकलने लगीं, लेकिन वो दर्द और डर की थीं। दूसरा सरदार माँ की चूत को सहलाने लगा, उसकी उंगलियाँ माँ की चूत के होंठों को खोल रही थीं। तीसरा उनकी गांड पर थप्पड़ मार रहा था, जिससे “थप-थप” की आवाज गूँज रही थी। चौथा माँ के होंठों को चूस रहा था, उनकी जीभ को अपने मुँह में खींच रहा था। सभी के लंड खड़े थे, और मैं ये सब देखकर हैरान था। मुझे मजा भी आ रहा था, और दुख भी हो रहा था। माँ की मोटी गांड और बड़े मम्मे इतने सेक्सी लग रहे थे कि मेरा लंड भी खड़ा हो गया।

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उन्होंने माँ को फर्श पर लिटा दिया। जो सरदार सबसे बड़ा था, उसने अपना लंड माँ की चूत पर रखा। माँ ने टाँगें जोड़ने की कोशिश की, लेकिन दो सरदारों ने उनकी टाँगें चौड़ी कर दीं। उसने माँ की चूत पर ढेर सारा थूक लगाया और अपने लंड पर भी। फिर उसने एक जोरदार धक्का मारा। “आआआह्ह्ह!” माँ की चीख निकली, लेकिन सिर्फ लंड का टोपा ही अंदर गया था। सरदार बोला, “बहेन की लौड़ी, आज तक ढंग का लंड नहीं लिया, तभी इतना चिल्ला रही है। साली, इतनी टाइट चूत हमारे लिए ही रखी थी क्या?” उसने एक और जोरदार धक्का मारा, और इस बार पूरा लंड माँ की चूत में समा गया। “आआआह्ह्ह… ऊऊऊह्ह…” माँ इतनी जोर से चिल्लाईं कि उनकी आवाज दूर तक गई होगी। उनकी चूत से खून निकलने लगा, और वो दर्द से बेहोश हो गईं। सरदार ने पानी की बाल्टी मँगवाई और माँ के मुँह और चूत पर डाल दिया। माँ होश में आईं, लेकिन दर्द से पागल सी हो रही थीं।

वो सरदार माँ के मम्मों को पकड़कर पागलों की तरह चोदने लगा। “थप-थप-थप…” हर धक्के के साथ माँ की चूत से आवाज आ रही थी। माँ की सिसकारियाँ, “आह्ह… ऊह्ह… ना… प्लीज…” कमरे में गूँज रही थीं। वो 20 मिनट तक माँ को चोदता रहा। फिर उसने अपना लंड निकाला और माँ के मम्मों पर अपनी पिचकारी छोड़ दी। उसका माल माँ के चेहरे तक गया। वो हँसते हुए अंदर एक कमरे में चला गया। बाकी सरदार माँ पर टूट पड़े। एक ने माँ की चूत में लंड डाला, “फच-फच” की आवाज के साथ। दूसरा माँ के मुँह में लंड घुसाने लगा। “उम्म… गम्म…” माँ की आवाज दबी-दबी सी थी। दो सरदार माँ के मम्मों को मसल रहे थे, उनके निप्पल्स को चूस रहे थे। दो ने माँ के हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिए, और माँ को उन्हें सहलाने को मजबूर किया।

15 मिनट तक ये सब चला। फिर वो सरदार, जो पहले गया था, वापस आया। उसके हाथ में तेल की शीशी थी। उसने माँ को उल्टा किया और उनकी गांड पर तेल डालने लगा। माँ समझ गईं कि वो उनकी गांड मारना चाहता है। वो गिड़गिड़ाने लगीं, “प्लीज, मैंने आज तक गांड नहीं मरवाई।” सरदार हँसा, “तो आज मरवा ले, साली।” माँ रोने लगीं, लेकिन उसने एक न सुनी। उसने माँ को घोड़ी बनाया, अपने लंड पर ढेर सारा तेल लगाया, और एक जोरदार धक्के के साथ माँ की गांड में लंड घुसा दिया। “आआआह्ह्ह… ना…!” माँ की चीख निकली, और उनकी गांड से भी खून निकलने लगा। वो दर्द से पागल हो रही थीं। लेकिन उस हरामी ने कोई रहम नहीं किया। उसने दूसरे सरदार से कहा, “चल, तू चूत में डाल।” दूसरा सरदार माँ के नीचे आया और अपनी चूत में लंड घुसा दिया। “फच-फच-थप-थप…” दोनों लंड एक साथ माँ को चोद रहे थे। माँ का बुरा हाल था, पहली बार वो इतने बड़े और मोटे लंड ले रही थीं।

दो और सरदार आए। एक ने माँ का एक मम्मा मुँह में लिया और चूसने लगा, “चप-चप” की आवाज के साथ। दूसरा माँ के दूसरे मम्मे को दाँतों से काट रहा था। एक और सरदार ने माँ के मुँह में लंड डाल दिया, “गम्म… उम्म…” माँ की आवाज अब सिर्फ सिसकारियों तक सीमित थी। तभी एक सरदार, जो अब तक सिर्फ देख रहा था, बोला, “हम सब नंगे हैं, इसके बेटे को भी नंगा करते हैं।” उसने मेरी पैंट उतार दी। मेरा लंड खड़ा देखकर वो हँसने लगा, “देखो यार, इसका भी लंड खड़ा है अपनी माँ के लिए।” माँ, जो पूरी तरह चुद रही थीं, ने मेरी तरफ देखा। मैंने शर्मिंदगी में सिर झुका लिया।

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जो सरदार माँ की गांड मार रहा था, उसने मुझे बुलाया और बोला, “तू भी अपनी माँ की लेगा क्या?” मैंने कहा, “हाँ, मैं तो बचपन से इसे चोदना चाहता था, पर कभी मौका नहीं मिला। तुम लोगों की वजह से आज इसे इस हाल में देख लिया।” उसने कहा, “चल, अब तू अपनी माँ की चूत मार।” माँ ने हैरानी से मेरी तरफ देखा। नीचे वाला सरदार हटा, और मैंने उसकी जगह ले ली। उस सरदार ने खड़े होकर माँ की कमर पर मुठ मारी। मैंने नीचे से माँ को पागलों की तरह चोदना शुरू किया। “थप-थप-फच-फच…” मेरे धक्कों की आवाज गूँज रही थी। मैंने माँ के एक मम्मे को मुँह में लिया और चूसने लगा, “आह्ह… ऊह्ह…” माँ की सिसकारियाँ फिर शुरू हो गईं। दूसरे मम्मे को मैंने दाँतों से काटा और जोर-जोर से मसला। माँ दर्द से रोने लगीं।

जो सरदार माँ की गांड मार रहा था, वो खुश हुआ और बोला, “तू तो मेरे जैसा है।” उसका काम पूरा हो गया, और वो माँ की गांड में ही झड़ गया। उसने लंड निकाला, तो दूसरा सरदार आया। उसने देखा और बोला, “पाजी, कोई फायदा नहीं, ये तो फट के बहुत चौड़ी हो गई है।” सरदार बोला, “कोई गल नहीं, दो लंड एक साथ डाल दो।” दो सरदारों ने एक साथ माँ की गांड में दो लंड डाले। “आआआह्ह्ह…!” माँ फिर चिल्लाईं। मैं भी अब झड़ने वाला था। मैंने अपना लंड निकाला और माँ के मुँह में डाल दिया। जो सरदार माँ का मुँह चोद रहा था, उसे चूत मारने को कहा।

फिर हमने पेट की दारू पी। बाकी सरदारों ने माँ को खूब चोदा। उनकी चूत और गांड का बँटवारा कर दिया। “फच-फच-थप-थप…” की आवाजें पूरी हवेली में गूँज रही थीं। माँ को 20 घंटे तक नंगा रखा गया, और हम सब चोदते रहे। अगले दिन शाम को हम शादी में गए। सरदार ने माँ को नए कपड़े दिए, क्योंकि उनके पुराने कपड़े फट चुके थे। अब माँ मुझसे ज्यादा बात नहीं कर रही थीं। बस इतना कह रही थीं, “जो हुआ, वो किसी को मत बताना, वरना बदनामी होगी।” हम शादी में गए। मैंने तो खूब मजे किए, लेकिन माँ 2-3 दिन तक कुछ एन्जॉय नहीं कर पाईं, क्योंकि उनकी चूत और गांड फट गई थी, और दर्द हो रहा था। मैं समझ सकता था, इसलिए शहर गया और माँ के लिए दवाई लाकर दी।

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