नमस्ते दोस्तों, आज मैं आपको एक ऐसी सच्चाई सुनाने जा रहा हूँ, जिसे मैंने कई सालों तक अपने दिल में दबा कर रखा। यह कहानी उन दिनों की है जब मैं जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था। मेरा नाम विकास है। मेरे घर में मेरी माँ, पिताजी और मेरी छोटी बहन रहती थी, जो मुझसे कुछ साल छोटी थी। हमारा परिवार छोटा-सा था, लेकिन हमारे घर का माहौल हमेशा गर्मजोशी से भरा रहता था।
मेरे पिताजी की नौकरी शिफ्ट में थी। महीने के आधे दिन उनकी रात की ड्यूटी होती थी, जिसके चलते घर अक्सर खाली-सा हो जाता था। हमारा घर शहर के बाहरी इलाके में था, जहाँ आसपास कोई और मकान नहीं था। उस समय बिजली की भी कमी थी, और रातें लालटेन की रोशनी में कटती थीं। हमारे घर एक बड़े भैया आया करते थे, जिनका नाम कमल था। वो कॉलेज में पढ़ते थे और हमें ट्यूशन पढ़ाने आते थे। कमल भैया की आवाज में एक अजीब-सी सख्ती थी, जिससे मैं और मेरी बहन डरकर चुपचाप पढ़ाई में लग जाते थे। मेरी माँ, जिनका नाम मधु था, बेहद खूबसूरत थीं। उनकी देह इतनी संवरी हुई थी कि कोई भी उनकी ओर आकर्षित हो जाए। उनकी कमर पतली थी, पर उनकी गाँड इतनी भारी और उभरी हुई थी कि वो हर किसी का ध्यान खींचती थी।
एक दिन, पिताजी की रात की ड्यूटी थी। वो खाना खाकर सात बजे के आसपास निकल गए। मैं और मेरी बहन अपनी किताबों में डूबे हुए थे। तभी दरवाजे पर खटखट की आवाज आई। माँ ने दरवाजा खोला, और कमल भैया अंदर आ गए। उनकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी, जैसे वो किसी जल्दबाजी में हों। उन्होंने हमें पढ़ने का आदेश दिया और सीधे रसोई की ओर चले गए, जहाँ माँ कुछ काम कर रही थीं। थोड़ी देर बाद मुझे माँ की धीमी-सी आवाज सुनाई दी, “अभी नहीं, प्लीज!” उस आवाज में हल्की-सी घबराहट थी, जो मेरे कानों में अटक गई।
मैं चुपके से रसोई की ओर गया और दरवाजे की आड़ से झाँकने लगा। कमल भैया ने माँ की साड़ी को पीछे से थोड़ा ऊपर उठा रखा था। उनका हाथ माँ की गाँड पर धीरे-धीरे फिसल रहा था, जैसे वो हर इंच को महसूस करना चाहते हों। माँ की साँसें तेज थीं, और उनकी आँखों में एक अजीब-सा भाव था—शायद डर और उत्तेजना का मिश्रण। मुझे तब ज्यादा समझ नहीं थी, लेकिन जो कुछ हो रहा था, वो गलत लग रहा था। मैं अचानक रसोई में घुस गया और चिल्लाया, “मम्मी को छोड़ दो!”
मेरी आवाज सुनते ही कमल भैया ने झट से माँ की साड़ी छोड़ दी। माँ ने तुरंत अपनी साड़ी ठीक की और हँसते हुए बोलीं, “बेटा, मेरे पैर में दर्द हो रहा था, कमल बस मालिश कर रहे थे।” उनकी आवाज में हल्की-सी घबराहट थी, लेकिन वो मुझे शांत करने की कोशिश कर रही थीं। कमल भैया ने मेरी ओर देखा और कहा, “रात को आता हूँ,” फिर चुपके से निकल गए।
माँ ने हमें खाना खिलाया और सुला दिया। लेकिन मेरे दिमाग में कमल भैया की बात गूँज रही थी। मैंने सोने का नाटक किया, पर मेरी आँखें खुली थीं। रात करीब ग्यारह बजे फिर से दरवाजे पर खटखट हुई। माँ चुपके से उठीं और दरवाजा खोला। कमल भैया धीरे से अंदर आए। उनकी चाल में एक अजीब-सी हड़बड़ी थी। जैसे ही वो अंदर आए, उन्होंने माँ को गले से लगा लिया और बोले, “आज तो बाल-बाल बच गए!”
माँ ने उन्हें धीरे से धक्का देकर अलग किया और कहा, “रुको, पहले देख लूँ ये शैतान सोए या नहीं।” वो मेरे और मेरी बहन के पास आईं। मैंने आँखें बंद कर लीं, ताकि उन्हें शक न हो। माँ निश्चिंत होकर वापस गईं। हमारे घर में बस एक कमरा और एक रसोई थी। मैं और मेरी बहन बिस्तर पर सो रहे थे। माँ ने नीचे एक गद्दा बिछाया और उस पर बैठ गईं। कमल भैया अभी भी खड़े थे, उनकी आँखें माँ के शरीर पर टिकी थीं।
माँ ने अचानक कमल भैया की पैंट के ऊपर से उनके लंड को पकड़ लिया और हँसते हुए बोलीं, “ये आजकल बड़ा परेशान करता है ना? आज मैं इसे शांत कर देती हूँ।” उनकी आवाज में एक शरारत थी, जो मैंने पहले कभी नहीं सुनी थी। फिर माँ ने कमल की पैंट नीचे खींच दी। लालटेन की मद्धम रोशनी में कमल का लंड साफ दिख रहा था—लंबा, मोटा और उभरा हुआ, जैसे कोई हथियार हो। माँ ने उसे अपने हाथ में लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगीं। उनकी उंगलियाँ उसकी नसों पर फिसल रही थीं, और कमल की साँसें तेज हो गईं।
माँ ने धीरे से उसका लंड अपने मुँह में लिया और चूसने लगीं। उनकी जीभ उसके सुपारे पर गोल-गोल घूम रही थी, और कमल के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं, “आह्ह… मधु… मेरी जान… और चूस… और!” वो माँ के बालों को सहलाने लगा, जैसे वो उन्हें और गहराई में ले जाना चाहता हो। माँ की आँखें बंद थीं, और वो पूरी तन्मयता से उसका लंड चूस रही थीं। उनकी साड़ी का पल्लू कंधे से खिसक गया था, और उनका ब्लाउज उनके भारी दूधों को मुश्किल से संभाल पा रहा था।
कमल ने माँ का मुँह छुड़ाया और उनके ब्लाउज के बटन खोल दिए। माँ के दूध बाहर उछल पड़े, जैसे वो आजाद होने को बेताब थे। कमल ने उनके निप्पल को अपनी उंगलियों से दबाया, और माँ के मुँह से एक हल्की-सी “उह्ह” निकली। फिर कमल ने माँ की साड़ी को और ऊपर उठाया, उनकी टाँगें खोल दीं और उनकी बुर को चाटने लगा। उसकी जीभ माँ की बुर के होंठों पर फिसल रही थी, और माँ की साँसें और तेज हो गईं। वो अपने होंठ काट रही थीं, जैसे सुख को दबाने की कोशिश कर रही हों। “कमल… आह्ह… बस कर… अब और मत तड़पा!” माँ की आवाज में एक बेचैनी थी।
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कमल ने एक उंगली उनकी बुर में डाली और अंदर-बाहर करने लगा। माँ की सिसकारियाँ अब और तेज हो गईं, “उह्ह… आह्ह… कमल… और तेज!” उनकी बुर से पानी टपक रहा था, और कमल उसे चाटने में मस्त था। माँ ने अपनी टाँगें और चौड़ी कर लीं और बोलीं, “अब डाल दे… और मत सता!” कमल ने अपना लंड उनकी बुर पर रगड़ा, उसका सुपारा माँ की गीली बुर पर फिसल रहा था। फिर एक जोरदार धक्के के साथ उसने अपना लंड अंदर पेल दिया। माँ के मुँह से एक चीख निकली, “आह्ह… धीरे… मर गई मैं!”
कमल ने उनकी टाँगें अपने कंधों पर रखीं और जोर-जोर से धक्के मारने लगा। कमरे में उनकी चुदाई की आवाजें गूँज रही थीं—थप-थप-थप। माँ की सिसकारियाँ अब रुक नहीं रही थीं, “आह्ह… उह्ह… कमल… और जोर से… फाड़ दे मेरी बुर!” कमल का लंड उनकी बुर में बार-बार अंदर-बाहर हो रहा था, और माँ की चूचियाँ हर धक्के के साथ उछल रही थीं। कमल बीच-बीच में उनके निप्पल चूस लेता, जिससे माँ और बेकाबू हो जातीं।
करीब आधे घंटे तक ये चुदाई चलती रही। माँ की बुर से पानी बार-बार निकल रहा था, और कमल का लंड उसमें डूबा हुआ था। आखिरकार कमल ने एक जोरदार धक्का मारा और अपना सारा पानी माँ की बुर में उड़ेल दिया। “आह्ह… मधु… ले मेरा माल!” वो माँ के ऊपर ढेर हो गया, दोनों पसीने से लथपथ थे। माँ उसकी पीठ सहलाने लगीं, उनकी साँसें अभी भी तेज थीं।
थोड़ी देर बाद माँ ने फिर से कमल के लंड को सहलाना शुरू किया। वो अभी भी सख्त था, जैसे उसका मूड खत्म ही न हुआ हो। माँ ने हँसते हुए कहा, “क्या बात है, अभी भी तेरा ये शांत नहीं हुआ?” कमल ने जवाब दिया, “तेरी गाँड देखकर तो ये और बेकरार हो रहा है!” माँ ने हल्का-सा विरोध किया, “नहीं, गाँड में दर्द होगा!” लेकिन कमल ने उनकी बात नहीं मानी। उसने माँ को घोड़ी बनाया, उनकी साड़ी को पूरी तरह ऊपर उठाया और पास रखी वैसलीन की डिब्बी उठाई। उसने अपने लंड और माँ की गाँड पर वैसलीन लगाई और धीरे-धीरे अपना लंड अंदर घुसाने लगा।
माँ के मुँह से एक दर्दभरी चीख निकली, “आह्ह… कमल… धीरे… मर गई मैं!” लेकिन कमल ने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। उनकी गाँड इतनी टाइट थी कि कमल का लंड बार-बार फिसल रहा था। वो माँ की कमर पकड़कर जोर-जोर से उनकी गाँड मारने लगा। “उह्ह… आह्ह… कमल… बस कर… ओह्ह!” माँ की सिसकारियाँ अब दर्द और सुख के मिश्रण में बदल गई थीं। कमल ने करीब पंद्रह मिनट तक उनकी गाँड मारी और फिर अपना सारा पानी उनकी गाँड में छोड़ दिया। दोनों थककर एक-दूसरे से लिपट गए।
थोड़ी देर बाद माँ उठीं और अपनी साड़ी ठीक करने लगीं। कमल अभी भी गद्दे पर लेटा था, उसका लंड अब ढीला पड़ चुका था। माँ ने हँसते हुए कहा, “बस, आज के लिए इतना काफी है!” दोनों ने अपने कपड़े ठीक किए और कमल चुपके से निकल गया। मैंने ये सब अपनी आँखों से देखा, और मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था।
कुछ समय बाद हम अपने पुराने घर को छोड़कर एक नए घर में शिफ्ट हो गए। नया घर भी शहर के बाहर था, जहाँ ज्यादा लोग नहीं आते-जाते थे। हमारे घर से थोड़ी दूरी पर एक और परिवार रहता था, जिनके साथ हमारा अच्छा तालमेल था। उनके घर का सबसे बड़ा बेटा सपन था, जो एक न्यूज एजेंसी में रिपोर्टर था। वो अक्सर अपनी गाड़ी हमारे घर के पास खड़ी करता था, क्योंकि उनके घर तक पक्की सड़क नहीं थी। सपन भैया हमें और माँ को बहुत पसंद थे। वो माँ को “चाची” कहते थे, और माँ भी उनके साथ हँसी-मजाक करती थीं।
एक दिन सपन भैया हमारे घर आए। मैंने उन्हें माँ से बात करते सुना। उनकी आवाज में एक शरारत थी, “चाची, मेरा नया घर बन रहा है, कभी आओ तो दिखाऊँ!” बोलते हुए उन्होंने अपनी पैंट के ऊपर से अपने लंड को सहलाया। माँ ने हँसकर जवाब दिया, “हाँ, देखूँगी ना, तेरा घर कितना मजबूत है!” उनकी बातों में एक छिपा-सा इशारा था, जो मुझे समझ नहीं आया। सपन भैया बोले, “पकड़कर देखोगी तो और मजबूत हो जाएगा!” माँ ने हँसते हुए कहा, “कल मार्केट से लौटते वक्त आऊँगी।”
अगले दिन माँ ने मुझे बाजार चलने को कहा। वो तैयार होने लगीं, और उस दिन उन्होंने परफ्यूम भी लगाया था, जैसे कोई खास मौका हो। बाजार से सामान खरीदने के बाद माँ ने मुझसे कहा, “चिंटू, तूने सपन भैया का नया घर नहीं देखा ना? चल, तुझे घुमाकर लाती हूँ।” मैं चॉकलेट के लालच में उनके साथ चल दिया। माँ ने रिक्शा लिया, और हम एक सुनसान इलाके में पहुँचे, जहाँ एक अधबना घर था। मैंने सपन भैया की गाड़ी वहाँ खड़ी देखी।
माँ ने मुझे शोर न करने को कहा, “चुप रह, नहीं तो मार पड़ेगी!” हम घर के अंदर गए। वहाँ रेत और सीमेंट की बोरियाँ पड़ी थीं। दो कमरे पार करने के बाद हम एक कमरे में पहुँचे, जहाँ एक खाट पर सपन भैया लुंगी और बनियान में लेटे थे। जैसे ही माँ अंदर घुसी, सपन भैया ने कहा, “आओ मेरी जान!” माँ ने उनकी बात काटते हुए कहा, “चिंटू भी है!” सपन भैया ने हँसकर जवाब दिया, “अरे, वो तो अभी बच्चा है!”
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तभी वहाँ का चौकीदार आ गया। सपन भैया ने उसे देखकर कहा, “चौकीदार, जा, चिकन और दारू ला। चिंटू को भी साथ ले जा, उसे चॉकलेट और पतंग दिला दे।” उन्होंने चौकीदार को पाँच सौ का नोट दिया और कहा, “आराम से आना, समझा?” माँ ने भी मुझे कहा, “जाओ चिंटू, घूमकर आ। ज्यादा चॉकलेट मत खाना!”
मैं चौकीदार के साथ बाहर निकल गया, लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे माँ से कुछ पूछना था, तो मैं वापस लौट आया। जैसे ही मैं कमरे के पास पहुँचा, मैंने देखा कि सपन भैया माँ को पकड़कर चूम रहे थे। उनकी साड़ी का पल्लू नीचे गिर चुका था, और सपन भैया का एक हाथ उनकी कमर पर था। मुझे देखते ही वो अलग हुए, और सपन भैया ने कहा, “चिंटू, जा, आराम से आ!”
मैं वापस चौकीदार के साथ चला गया, लेकिन मेरे दिमाग में माँ और सपन भैया की बातें घूम रही थीं। थोड़ी देर बाद मैंने चौकीदार से कहा, “मेरे दोस्त का घर यहीं है, मैं बाद में आता हूँ।” चौकीदार दारू के चक्कर में मस्त था, तो उसने मुझे जाने दिया। मैं चुपके से वापस घर की सीढ़ियों पर चढ़ गया, जहाँ से मुझे कमरे का साफ नजारा दिख रहा था।
माँ अब खाट पर बैठी थीं। सपन भैया ने खिड़की पर एक पुरानी चादर टांग दी थी, ताकि बाहर से कोई न देख सके। वो माँ के पास आए और उनकी साड़ी को धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगे। माँ ने चड्डी नहीं पहनी थी, और उनकी बुर पूरी तरह साफ थी। सपन भैया ने हँसते हुए कहा, “लगता है तू आज पूरा मूड बनाकर आई है!” माँ ने शरमाते हुए जवाब दिया, “हाँ, तेरा मक्खन जैसा घर तो देखना ही था!”
सपन भैया ने माँ के ब्लाउज के बटन खोल दिए। उनके दूध इतने बड़े और भारी थे कि वो बाहर उछल पड़े। सपन ने उनके निप्पल को अपने मुँह में लिया और चूसने लगा। माँ की साँसें तेज हो गईं, “आह्ह… सपन… धीरे… उह्ह!” वो सपन के बालों को सहलाने लगीं। सपन ने अपनी एक उंगली माँ की बुर में डाली और अंदर-बाहर करने लगा। माँ की सिसकारियाँ अब और तेज हो गईं, “उह्ह… आह्ह… सपन… और तेज… ओह्ह!” उनकी बुर से पानी टपक रहा था, और सपन उसे चाटने में मस्त था।
माँ ने अब बेकरारी में कहा, “सपन, अब और मत तड़पा… डाल दे अपना लंड!” सपन ने अपनी लुंगी उतारी। उसका लंड नौ इंच का था, काला और मोटा, जैसे कोई हथियार। माँ ने उसे अपने मुँह में लिया और चूसने लगीं। उनकी जीभ उसके सुपारे पर गोल-गोल घूम रही थी, और सपन की सिसकारियाँ गूँज रही थीं, “आह्ह… मधु… मेरी रानी… और चूस!” वो माँ की चूचियों को जोर-जोर से मसल रहा था।
माँ ने अपनी टाँगें ऊपर उठाईं और कहा, “आ जा अब!” सपन ने माँ की बुर पर अपना लंड रगड़ा और एक जोरदार धक्के के साथ अंदर पेल दिया। माँ के मुँह से चीख निकली, “आह्ह… धीरे… मर गई मैं!” लेकिन सपन रुका नहीं। वो जोर-जोर से धक्के मारने लगा, और कमरे में थप-थप की आवाजें गूँजने लगीं। माँ की सिसकारियाँ अब बेकाबू थीं, “उह्ह… सपन… और जोर से… फाड़ दे मेरी बुर!” सपन ने माँ की एक टाँग ऊपर उठाई और पीछे से धक्के मारने लगा। माँ की चूचियाँ हर धक्के के साथ उछल रही थीं, और वो अपने होंठ काट रही थीं।
करीब बीस मिनट तक ये चुदाई चलती रही। माँ की बुर से पानी बार-बार निकल रहा था, और सपन का लंड उसमें डूबा हुआ था। आखिरकार सपन ने अपनी गति तेज की और अपना सारा पानी माँ की बुर में उड़ेल दिया। “आह्ह… मधु… ले मेरा माल!” वो माँ के ऊपर ढेर हो गया। दोनों पसीने से लथपथ थे। माँ उसकी पीठ सहलाने लगीं, उनकी साँसें अभी भी तेज थीं।
थोड़ी देर बाद माँ ने फिर से सपन के लंड को सहलाना शुरू किया। सपन ने हँसते हुए कहा, “तेरी गाँड का तो जवाब नहीं, मधु!” माँ ने विरोध किया, “नहीं, गाँड में दर्द होगा!” लेकिन सपन ने उनकी बात नहीं मानी। उसने माँ को पेट के बल लिटाया और उनकी गाँड पर वैसलीन लगाई। फिर धीरे-धीरे अपना लंड अंदर घुसाने लगा। माँ के मुँह से दर्दभरी चीख निकली, “आह्ह… सपन… निकाल… मर गई मैं!” लेकिन सपन ने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। उनकी गाँड इतनी टाइट थी कि सपन का लंड बार-बार फिसल रहा था। वो माँ की कमर पकड़कर जोर-जोर से उनकी गाँड मारने लगा। “उह्ह… आह्ह… सपन… बस कर… ओह्ह!” माँ की सिसकारियाँ अब दर्द और सुख के मिश्रण में बदल गई थीं।
करीब दस मिनट बाद सपन ने अपना सारा पानी माँ की गाँड में छोड़ दिया और उनके ऊपर लिपट गया। दोनों थककर एक-दूसरे से चिपक गए। माँ ने पास में रेत पर मूत दिया, और उनके मूत के साथ सपन का पानी भी बाहर निकल आया। फिर माँ ने अपनी साड़ी ठीक की और सपन को उसकी लुंगी दी, “पहन ले, कोई आ जाएगा!”
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दस मिनट बाद मैं जोर-जोर से आवाज करते हुए वहाँ पहुँचा। माँ ने मुझे देखते ही कहा, “आ गया चिंटू! चल, हम चलें। तूने देखा ना, तेरे सपन भैया की इमारत कितनी मजबूत है!” सपन ने हँसते हुए कहा, “अगले शुक्रवार को फिर आना, और दिखाऊँगा!” माँ गाना गुनगुनाते हुए बाहर निकलीं, उनकी चाल में एक अजीब-सी मस्ती थी।
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