Ashram me chudai sex story – कहानी का पिछला भाग: गुरु जी का आशीर्वाद
मैं अपनी चूत को जोर-जोर से उंगली से चोद रही थी, सिसकारियाँ ले रही थी, “आह्ह… उह्ह…” और जब मैंने अपनी आँखें खोलीं, तो देखा कि गुरु जी का एक शिष्य, दरवाजे पर खड़ा होकर मुझे घूर रहा था। मैं अपनी चुदाई के नशे में इतनी डूबी थी कि अब मैं बस उसे देख-देखकर अपनी चूत में उंगली ऊपर-नीचे कर रही थी। मेरी टाँगें पूरी खुली थीं, और मेरी गीली चूत की चमक शायद उसे साफ दिख रही थी। मैंने जानबूझकर अपनी चूत को और खोलकर उसे दिखाया, जैसे उसे ललकार रही हो।
उस शिष्य का नाम विजय था, उम्र करीब 28 साल, लंबा-चौड़ा, गोरा, और आकर्षक चेहरा। वो बस दरवाजे पर खड़ा मुझे देख रहा था, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी उत्तेजना थी। मैंने भी अपनी चूत को और खोलकर, टाँगें चौड़ी करके, उंगली की रफ्तार बढ़ा दी। आज पहली बार दिन के उजाले में गुरु जी ने मुझे चोदा था, और पहली बार किसी पराए मर्द ने मुझे इस तरह नंगी होकर चूत में उंगली करते देखा था। मेरे मन में एक अजीब सी मस्ती थी, शायद गुरु जी के दिए उस दूध का नशा अभी भी मेरे दिमाग पर छाया था।
मैं लगातार अपनी चूत को रगड़ रही थी, मेरी साँसें तेज थीं, और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं, “आह्ह… ओह्ह…”। विजय का चेहरा देखकर लग रहा था कि वो भी उत्तेजित हो रहा था। उसने अचानक कहा, “नेहा जी, आप हमारे गुरु जी की इतनी प्यारी भक्त हैं। आपको ये सब नहीं करना चाहिए। वैसे भी गुरु जी बाहर आपका इंतजार कर रहे हैं।”
मैंने अपनी चूत में उंगली चलाते हुए, नशीली आवाज में जवाब दिया, “देखो विजय, भले ही गुरु जी बाहर मेरा इंतजार कर रहे हों, लेकिन मेरी चूत अभी भी प्यासी है। तुम वहाँ खड़े-खड़े क्या देख रहे हो? पास आकर देखो ना, कितना मजा आ रहा है।”
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मेरी बात सुनकर विजय थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन फिर धीरे-धीरे मेरे पास आया और बेड पर मेरे बगल में बैठ गया। उसकी आँखें मेरी चूत पर टिकी थीं, जो अब पूरी गीली हो चुकी थी। मैंने अपनी उंगली और तेज की, और अचानक मेरी चूत ने इशारा किया। मेरा शरीर अकड़ गया, और मेरे मुँह से एक जोरदार चीख निकली, “आह्ह… ओह्ह… मैं मर गई… उह्ह…” मेरी चूत ने फिर से पानी छोड़ दिया, और मैं सिसकारियों के साथ ढीली पड़ गई।
जब मैंने विजय की तरफ देखा, तो उसका हाथ अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड को पकड़े हुए था। उसका लंड पजामे के अंदर से साफ दिख रहा था, एकदम कड़क और खड़ा। मैं बेड पर उसके पास सरक गई। मेरा मन कर रहा था कि मैं उसका लंड पकड़ लूँ, लेकिन हम दोनों इतने करीब होने के बावजूद हिचक रहे थे। आखिरकार मैंने ही हिम्मत की और अपना चेहरा उसके चेहरे के पास ले गई, जैसे उसे इशारा दे रही हो। विजय ने मेरा इशारा समझ लिया और मेरे होंठों को अपने होंठों में ले लिया। वो मेरे होंठों को चूसने लगा, और मैं भी उसके होंठों को चूसने लगी।
विजय ने मेरी जीभ को अपने मुँह में खींच लिया और उसे चूसने लगा। मैं भी उसका साथ दे रही थी। “उम्म… आह्ह…” मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं। मुझे ऐसा मजा पहले कभी नहीं आया था। रमेश ने तो कभी मेरे साथ ऐसा नहीं किया। वो हमेशा जल्दबाजी में सेक्स करते थे, और जीभ से चूसने का तो सवाल ही नहीं उठता था। लेकिन विजय के होंठों और जीभ का स्पर्श मुझे पागल कर रहा था।
विजय का हाथ अब मेरे बूब्स पर चला गया। वो मेरे बूब्स को जोर-जोर से दबाने लगा। उसके दबाने से मेरे शरीर में करंट सा दौड़ रहा था। “आह्ह… विजय… और दबाओ…” मैं सिसकारी ले रही थी। मेरी साँसें गर्म हो रही थीं, और मैं फिर से उत्तेजित होने लगी थी। विजय मेरे होंठों को चूसते हुए मेरे बूब्स को दबा रहा था। फिर उसने मेरे निप्पल्स को अपनी उंगलियों में लिया और उन्हें मसलने लगा। मेरे पूरे शरीर में एक अजीब सी सनसनी दौड़ गई। “आह्ह… उह्ह… विजय… कितना मजा आ रहा है…” मैं सिसकार रही थी।
फिर विजय ने अपने होंठ मेरे होंठों से हटाए और मेरे निप्पल को अपने मुँह में ले लिया। वो मेरे निप्पल को चूसने लगा, जैसे कोई बच्चा दूध पी रहा हो। “आह्ह… ओह्ह… विजय… और चूसो…” मैं मस्ती में डूब रही थी। उसका चूसना इतना सुखद था कि मुझे लग रहा था जैसे मैं किसी और ही दुनिया में हूँ। मैं अपने बूब्स को और आगे बढ़ा रही थी, ताकि वो और गहराई से चूस सके।
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कुछ देर चूसने के बाद विजय खड़ा हुआ और उसने अपना पजामा उतार दिया। फिर उसने अपनी अंडरवियर उतारी, और उसका लंड बाहर आ गया। उसका लंड करीब 8 इंच लंबा और बहुत मोटा था, एकदम कड़क और लाल। मैं उसे देखकर दंग रह गई। मेरा मन कर रहा था कि मैं अभी इसे अपनी चूत में ले लूँ।
विजय ने कहा, “लो, इसे मुँह में लेकर चूसो। बड़े मजे से चूसो।”
मैंने उसका लंड देखा, तो मेरे मन में खुशी थी, लेकिन मैंने पहले कभी लंड मुँह में नहीं लिया था। मुझे ये सब गंदा लगता था। मैंने हिचकते हुए कहा, “विजय, मैं इसे मुँह में नहीं लूँगी। ये तो गंदा होता है।”
विजय ने हँसते हुए कहा, “एक बार लेकर तो देख, फिर देख कैसे मजा आएगा।”
मैंने उसकी बात मान ली और अनमने मन से उसका लंड अपने मुँह में ले लिया। जैसे ही मैंने चूसना शुरू किया, विजय के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं, “आह्ह… आह्ह… नेहा… और चूसो…” मुझे भी अब मजा आने लगा था। ये मेरा पहला मौका था, जब मैं किसी का लंड मुँह में लेकर चूस रही थी। मैं धीरे-धीरे उसके लंड को अपने मुँह में ऊपर-नीचे कर रही थी। मेरी चूत से पानी टपक रहा था, ये सोचकर कि मैं ऐसा कुछ कर रही हूँ, जो मैंने पहले कभी नहीं किया।
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अचानक विजय ने मेरा सिर पीछे से पकड़ लिया और मेरे मुँह में अपने लंड को जोर-जोर से धक्के देने लगा। उसका लंड मेरे गले तक जा रहा था, और मेरे मुँह की चिकनाहट से वो और चिकना हो गया था। “आह्ह… उह्ह…” मैं सिसकार रही थी, और मुझे भी अब मजा आने लगा था। विजय और जोर से मेरे मुँह को चोदने लगा। अचानक मुझे उसके लंड की गर्मी महसूस हुई, और मैंने उसे मुँह से निकालना चाहा, लेकिन उसने मेरा सिर इतनी जोर से पकड़ रखा था कि मैं कुछ कर नहीं पाई। तभी उसके लंड ने मेरे मुँह में पिचकारी छोड़ दी। उसका गर्म पानी मेरे मुँह में भर गया।
मुझे उसका स्वाद ठीक लगा, तो मैंने सारा पानी पी लिया और फिर से उसके लंड को चूसने लगी। मेरा मन अभी और चूसने को कर रहा था। मुझे हैरानी हो रही थी कि गुरु जी ने मुझे एक ही दिन में इतना बदल दिया था। मैं, जो कभी सती-सावित्री थी, अब एकदम मस्त और बिंदास हो गई थी। शायद ये उस दूध का असर था, जो गुरु जी ने मुझे पिलाया था।
विजय ने कहा, “अब तुम लेट जाओ। मैं तुम्हारी चूत चूसूँगा। इतनी मस्त चूत हर किसी को नसीब नहीं होती।”
मैं बेड पर लेट गई। विजय ने मेरी चूत पर अपना मुँह रखा और अपनी जीभ से उसे चाटने लगा। “आह्ह… ओह्ह… विजय… और चाटो…” मैं सिसकारी ले रही थी। वो अपनी जीभ से मेरे चूत के दाने को चाट रहा था, कभी उसे चूस रहा था। मुझे ऐसा मजा पहले कभी नहीं मिला था। मैं पूरी मस्ती में थी और अपनी चूत को और आगे बढ़ा रही थी, ताकि वो और गहराई से चाट सके।
विजय ने अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर डाल दी और उसे चोदने लगा। मैं मजे में चिल्ला रही थी, “आह्ह… विजय… और चाटो… कितना मजा आ रहा है… आज तक मुझे ऐसा कोई नहीं चाट पाया… और करो…” मेरी बातें सुनकर वो और जोश में आ गया। वो मेरी चूत को जोर-जोर से चाटने लगा और साथ ही मेरे बूब्स को दबाने लगा। मेरी चूत ने फिर से इशारा किया, मेरा शरीर अकड़ गया, और एक जोरदार चीख के साथ मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। “आह्ह… उह्ह… मैं गई…” विजय ने मेरे चूत का सारा पानी चाट-चाटकर पी लिया।
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फिर विजय ने मुझे नीचे किया और मेरे ऊपर आ गया। उसने मेरी टाँगें अपने कंधों पर रखीं और अपने लंड को मेरी चूत पर सेट किया। मेरी चूत पहले से ही गीली और चिकनी थी, लेकिन उसका लंड इतना बड़ा था कि पहली बार में अंदर नहीं गया। उसने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका लंड मेरी चूत में घुस गया। “आह्ह… विजय… धीरे… दर्द हो रहा है…” मैं चीख पड़ी। उसने मेरी चीख को दबाने के लिए अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और मुझे चूमने लगा।
मुझे बहुत दर्द हो रहा था, लेकिन साथ ही मजा भी आ रहा था। विजय ने मेरी टाँगें अपने कंधों से नीचे कीं और मेरे साइड में रख दीं। फिर वो मेरी चूत को अपने लंड से चोदने लगा। “थप… थप… थप…” उसके धक्कों की आवाज कमरे में गूँज रही थी। मैं दर्द और मजे के बीच झूल रही थी। “आह्ह… विजय… धीरे… ओह्ह… कितना मजा आ रहा है…” मैं सिसकारी ले रही थी।
मैंने उससे कहा, “विजय… धीरे चोदो… आह्ह… बहुत मजा आ रहा है, लेकिन दर्द भी हो रहा है… प्लीज, मुझे घर भी जाना है… मेरे पति मुझे इस हालत में देख लेंगे, तो क्या सोचेंगे… आह्ह… धीरे…” लेकिन मेरी बातों का उस पर कोई असर नहीं हुआ। वो लगातार मेरी चूत को अपने लंड से चोदता रहा। मेरी चूत इतनी टाइट लग रही थी, जैसे किसी कुंवारी लड़की की चूत हो, और उसमें एक गर्म लोहे का रॉड घुस रहा हो।
मैं अब कुछ नहीं कर पाई और उसकी चुदाई का मजा लेने लगी। करीब 10 मिनट की चुदाई के बाद मेरी चूत फिर से अकड़ने लगी। मैंने चीख मारकर कहा, “आह्ह… विजय… मैं गई… उह्ह…” मेरी चूत ने फिर से पानी छोड़ दिया। लेकिन विजय अभी भी रुका नहीं। वो और जोर-जोर से मेरी चूत को चोदता रहा। करीब 10 मिनट और चुदाई के बाद हम दोनों का एक साथ निकल गया। जब उसका पानी मेरी चूत में गया, तो मुझे उसकी हर बूंद का अहसास हुआ। “आह्ह… विजय… कितना गर्म है तेरा पानी…” मैंने उसे जोर से जकड़ लिया।
विजय ने करीब 10 मिनट तक अपना सारा पानी मेरी चूत में छोड़ा। फिर वो थककर मेरे ऊपर ही लेट गया। जब वो उठा, तो उसने देखा कि मेरी चूत से खून निकल रहा था। उसने मेरी चूत को इतना जोर से चोदा था कि वो फट गई थी। वो कपड़े पहनकर बाहर चला गया।
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मैं पूरी तरह थक चुकी थी। मेरी आँख फिर से लग गई। करीब 2 घंटे बाद जब मैं उठी, तो मेरी चूत में बहुत दर्द हो रहा था। मैं उठकर वॉशरूम जाने की कोशिश की, लेकिन मेरे से चला नहीं जा रहा था। मैंने दीवार का सहारा लिया और किसी तरह वॉशरूम तक पहुँची। मैं नहीं चाहती थी कि कोई मुझे इस हालत में देखे।
वॉशरूम में मैं शावर के नीचे खड़ी हो गई। मेरी चूत का दर्द इतना था कि मेरी आँखों से आँसू निकलने लगे। मैंने खुद को अच्छे से धोया और बाहर आकर कपड़े पहने। फिर मैं कमरे से बाहर निकली। बाहर गुरु जी अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। मुझे देखते ही वो मेरे पास आए और बोले, “बेटी, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो गए हैं। अब तुम रो मत। घर जाकर कल हनुमान जी के मंदिर में लड्डू बाँट देना।”
उन्होंने मुझे कुछ मिठाइयाँ दीं और कहा, “इसे घर जाकर खाना और सबको खिलाना।” मैं वहाँ से घर के लिए निकल गई। रास्ते भर मैं यही सोचती रही कि ये सब अपने पति को बताऊँ या नहीं। शाम को जब रमेश घर आए, तो उन्होंने खुशी-खुशी बताया कि उन्हें मैनेजर की जॉब मिल गई है, और अब उनकी सैलरी 50,000 रुपये महीना होगी। ये सुनकर मुझे गुरु जी पर यकीन हो गया।
अगले दिन मैंने ये बात गुरु जी को बताई। उन्होंने फिर से मुझे अपनी बातों में फँसा लिया और कहा कि घर की और शांति के लिए मुझे हफ्ते में 4 बार हवन के लिए आना होगा। मैं भी घर की खुशी को देखकर गुरु जी के पास जाने लगी। उनके साथ झूठी पूजा-पाठ करके मैं खूब चुदवाती और मजा लेती। अब तो मेरे पति भी अपने काम में व्यस्त हो गए थे, इसलिए मैं कभी गुरु जी से चुदवाती, तो कभी विजय से। ये सिलसिला अब हमेशा के लिए चल पड़ा था।
दोस्तों, मेरी कहानी कैसी लगी? कृपया अपने विचार कमेंट में जरूर बताएँ।
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