पायलट फूफाजी का रॉकेट मेरे अंदर

Fufa Bhatiji ki chudai: सभी दोस्तों को मेरा नमस्ते! कुछ गलतियाँ ऐसी होती हैं जो सालों तक हमें कचोटती हैं। आज मैं ऐसी ही एक कहानी आपसे साझा कर रही हूँ, जिसे करके मुझे बहुत पछतावा है। बात 2013 की दीवाली की है। मैं, रंभा (नाम बदला हुआ), 22 साल की थी, बीएससी पूरी कर चुकी थी, और मेरा सपना था एयर होस्टेस बनना। लेकिन पापा इसके खिलाफ थे। मेरी और पापा की खूब बहस हुई। मैंने ठान लिया था कि मैं ट्रेनिंग लूँगी, चाहे कुछ हो जाए। पापा टस से मस न हुए। तभी बुआ ने मेरा साथ दिया। फोन पर सारी बात सुनकर उन्होंने मुझे चेन्नई आने को कहा। मैं थोड़ा सोचकर राज़ी हो गई। बुआ स्कूल टीचर थीं, उनका 4 साल का बेटा गणेश था, और फूफाजी इंडियन एयर फोर्स में पायलट थे। उनकी पोस्टिंग पंजाब में थी, तो बुआ गणेश के साथ अकेली रहती थीं। मम्मी ने मुझे पैसे दिए, और पापा के मना करने के बावजूद मैं चेन्नई पहुँच गई। वहाँ अन्नानगर में एयर होस्टेस ट्रेनिंग जॉइन कर ली। फीस कम पड़ी तो बुआ ने फूफाजी से पैसे मँगवाकर मुझे दिए।

ट्रेनिंग के 4 महीने बीत चुके थे। तभी फूफाजी की एक महीने की छुट्टी हुई, और वो घर आए। मैं उनसे कब से नहीं मिली थी। फूफाजी की मैं बहुत इज़्ज़त करती थी—हैंडसम, इंटेलिजेंट, और एयर फोर्स पायलट—क्या बात थी! मैं ट्रेनिंग के बाद घर आती, पढ़ाई करती या टीवी देखती। बुआ सुबह गणेश को किंडरगार्टन छोड़कर स्कूल जातीं, शाम को लौटतीं। फूफाजी ज़्यादातर घर पर ही रहते। मैं घर में कैज़ुअल टी-शर्ट और हाफ पैंट में रहती। लेकिन जल्द ही मैंने नोटिस किया—फूफाजी की नज़रें मुझे घूरती थीं। किचन जाऊँ, बालकनी में खड़ी होऊँ, वो किसी बहाने पीछे-पीछे आ जाते। बातें करते-करते मेरे कंधों पर, कमर पर हाथ रखते। कभी मेरी चोटी खींचते, फिर हँसी में टाल देते। मैं कुछ कह न पाती—शायद उनके एहसानों की वज़ह से, या शायद मुझे अंदर-अंदर अच्छा लगता था। मैं जानती थी उनकी नीयत ठीक नहीं, तो हाफ पैंट छोड़कर सलवार-कमीज़ पहनने लगी। लेकिन 22 की उम्र में मेरा बदन पक चुका था—मेरी चूचियाँ दो पके आमों सी थीं, जो सलवार-कमीज़ में भी उभरती थीं। फूफाजी 30 के पार थे—लंबे-चौड़े, पतली टेढ़ी मूँछें, मर्दाना शख्सियत। मेरा उन पर सालों से क्रश था, पर उनके बारे में सोचना गलत लगता। वो छेड़खानी की कोशिश करते, मैं दूरी बनाती, लेकिन बुआ से कुछ न कहती। मुझे क्या पता था कि मेरी चुप्पी उनकी हिम्मत बढ़ा रही थी।

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एक शाम बुआ नीचे खाना बना रही थीं। मैं गणेश को लेकर छत पर छुपन-छुपाई खेल रही थी। तभी फूफाजी आ गए। बोले, “मैं भी खेलता हूँ।” खेलना बहाना था। छत पर सिर्फ़ चाँद की रोशनी थी—कोई और नहीं। मौका पाकर वो मुझे पकड़ने लगे। पहले कमर, फिर चूचियाँ—हर जगह हाथ मारने लगे। जब तक गणेश हमें ढूँढता, वो मेरे बदन पर हाथ फेर लेते। उनके छूने से मेरी कमर और चूचियों पर गुदगुदी होती—मैं हँसती रही। लेकिन वो रुके नहीं। मौका देखकर मेरी कमीज़ उठाई, सलवार में हाथ डाला, मेरी गांड दबाने लगे। मैं चौंकी, पलटने वाली थी कि गणेश सामने आ गया। मैंने गणेश से कहा, “चलो, घर चलते हैं।” पर वो फिर छुप गया। इतने में फूफाजी ने मेरी सलवार और पैंटी नीचे खींच दी—मेरी गांड नंगी। मैं बोली, “छोड़िए, कोई आ जाएगा!” पैंटी ऊपर करने लगी, तभी एक गर्म लंड मेरी गांड के बीच रगड़ने लगा। मेरी हालत खराब—मैं छटपटाई, पर उनके हाथों ने मेरी कमर कसकर पकड़ रखी थी। उनका लंड मेरी गांड में घिस रहा था।

तभी बुआ की आवाज़ आई—खाने का बुलावा। हमने फटाफट कपड़े ठीक किए, उनके सामने जा खड़े हुए। इस वाकये ने मुझे सावधान कर दिया। सोचा, फूफाजी को एक और मौका मिला तो क्या होगा? बुआ को बताने का हक भी मैं खो चुकी थी। लेकिन जो हुआ, उसका अंदाज़ा मुझे नहीं था। एक रात फूफाजी मेरे कमरे में घुस आए, मुझ पर टूट पड़े। मैंने विरोध किया, “फूफाजी, ये गलत है! मैं आपकी बेटी जैसी हूँ।” वो बोले, “बस एक बार, रंभा। जब से तुझे नंगा देखा, नींद नहीं आती।” मैं चौंकी, “नंगा? कब?” वो बोले, “नहाते वक़्त—स्काइलाइट से। प्लीज़, मेरी बात मान ले।”

मुझे डर था—अगर बुआ ने देख लिया तो पापा-मम्मी को बता देंगी, मेरी ट्रेनिंग अधूरी रह जाएगी। मैंने सोचा, साँप भी मर जाए, लाठी भी न टूटे। मैंने कहा, “फूफाजी, अभी बुआ पकड़ लेंगी। कल जब कोई न हो, जो चाहे ले लो।” वादा कर उन्हें टाला। अगले दिन ट्रेनिंग में यही सोचती रही—क्या करूँ? देर से जाऊँ ताकि बुआ आ जाएँ, या वादा पूरा करूँ? तभी एक तरकीब सूझी—एक तीर से तीन शिकार। मैं जल्दी घर पहुँची। अंदर घुसी तो फूफाजी ने मुझे पकड़ लिया, चूमने लगे। मैंने रोका, “फूफाजी, रुकिए। ये गलत है।”

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वो बोले, “रंभा, ऐसा मत कर। तूने वादा किया था। मैं बेचैन हूँ। दो दिन बाद जा रहा हूँ। अब क्यों मुकर रही है?” मैंने कहा, “आपने मेरी बहुत मदद की। लेकिन ये करने से मैं अपवित्र हो जाऊँगी। बुआ को पता चला तो? कुछ भी हो सकता है।” वो बोले, “बता, क्या चाहती है?” मैंने कहा, “ट्रेनिंग के बाद प्लेसमेंट में खर्चा होगा। कहीं और रहना पड़ा तो? आप मदद करेंगे न?” वो बोले, “बस इतनी बात? मैं हमेशा मदद करूँगा। मेरी बात मान ले।” मैंने मौका देखा, “एक स्कूटी खरीद दो आज। बस में आने-जाने में दिक्कत होती है।” वो बोले, “ठीक है, वादा। आज शाम लाकर दूँगा।”

ये सुन मुझे राहत मिली। डर था कि मेरे डिमांड सुन वो भाग न जाएँ। फिर मैंने बैग फेंका, सोफे पर लेटकर फूफाजी को चूमने लगी। वो जंगली जानवर सा मेरे बदन को नोचने को बेताब थे। मैंने उनके कपड़े उतारे, लंड हाथ में लिया—मोटा, गर्म। उस पर थूककर हिलाया, “कंडोम है न?” वो बोले, “हाँ… सुबह पूरी पैकेट खरीदी।” मैंने अपनी यूनिफॉर्म की शर्ट उतारी, पैंट, ब्रा, पैंटी फेंकी—नंगी खड़ी। जानती थी बुआ घंटे-दो घंटे में आएँगी—फोरप्ले का टाइम नहीं। वो मुझे नंगा देखकर उछले, मुझे सोफे पर पटका, ऊपर चढ़ गए। मेरी गर्दन से चूमते हुए चूचियों पर मुँह लगाया—चूसने लगे। मैं पागलों सी उन्हें धकेल रही थी, “आहिस्ता, फूफाजी!”

वो बोले, “रंभा, स्वर्ग की अप्सरा भी तुझसे कम है। तू वर्जिन है?” तारीफ सुन मैं झूम उठी, “हाँ, फूफाजी। पर… आह… कॉलेज में एक लड़के का लंड चूसा है।” वो मेरी नाज़ुक चूचियाँ चूसते रहे। मैंने उन्हें धकेला तो वो मेरी जाँघों पर चूमते हुए चूत की ओर बढ़े। जब तक वो वहाँ पहुँचे, मेरी जान निकल गई। मैंने उनके बाल पकड़कर चूत पर दबाए। उनकी जीभ से मेरा जिस्म सिकुड़ने लगा। मैं चूचियाँ मसलते हुए चीखी, “स्स्स… हाय… राम… आह… ह्म्म…”

उन्होंने उंगली डाली—उत्तेजना बढ़ी। मेरी चूत से गंगा-जमुना बही—मैं झड़ गई। चूत का अकड़न कम हुआ। मैंने कहा, “फूफाजी, इधर आओ।” उन्हें खींचकर होंठ चूमने लगी। तभी महसूस हुआ—वो लंड चूत पर सेट कर रहे थे। मैंने उनके कान में फुसफुसाया, “ज़रा आहिस्ता चोदना, जान।” लेकिन वो तो पूरा ज़ोर लगाकर पेलने लगे। मेरी साँस अटकी। लंड थोड़ा अंदर गया—मैं ज़ोर से चीखी। पड़ोस में कोई सुनता तो रेप समझता। लेकिन उन्होंने मेरा मुँह दबा दिया। फिर जो हुआ, बयान नहीं कर सकती। उनका लंड मेरे जिस्म को चीरता अंदर घुसा। मुँह बंद होने से चीख न निकली, पर आँखों से आँसू टपके। मेरी वर्जिनिटी खत्म। तभी याद आया—कंडोम! मैं बोलना चाहती थी, पर मुँह दबा था। प्रेगनेंसी का डर लगा। मैंने उनका हाथ हटाया, “फूफाजी, कंडोम!” वो झटके से लंड निकालकर बेडरूम भागे।

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मेरी चूत को राहत मिली। उठकर देखा—चूत की बाईं ओर लाल दाग, झिल्ली फट चुकी थी। फूफाजी कंडोम पहनकर लौटे, फिर चढ़ गए। मैंने स्कूटी की बात सोच पैर फैलाए। उनके कंडोम वाले लंड को पकड़कर चूत पर सेट किया—रॉकेट सा घुसा। इस बार दर्द नहीं—आराम से अंदर समाया। डॉट्स कंडोम का मज़ा मिला। चुदाई का सुख लेते हुए हम सिसकारियाँ भरने लगे। थोड़ी देर बाद वो झड़ गए। पसीने से लथपथ मुझे बाँहों में भरे लेट गए। मैंने हाँफते हुए पूछा, “फूफाजी, अब दिल को ठंडक मिली न मुझे चोदकर?”

वो हँसकर उठे, सिगरेट जलाई। वादे के मुताबिक शाम को “सरप्राइज़ गिफ्ट” कहकर स्कूटी दिलवाई। परसों वो जाने वाले थे। मैंने अगले दिन छुट्टी ली, उनकी दासी बनकर हर पोज़ में चुदवाया—कुतिया बनी, गोद में बैठी, उनका लंड चूसा। जो बोले, किया। उन्हें इतना खुश किया कि जाने से पहले 20,000 रुपये चुपके से दिए।

हालांकि मैंने सब सावधानी से किया, पर डर है—अगर बुआ या किसी को पता चला तो? ट्रेनिंग के बाद मैं एक नामी एयरलाइन में एयर क्रू हूँ। दुआ करती हूँ फूफाजी से फिर न मिलूँ, और वो ये बात किसी से न कहें।

दोस्तों, कहानी कैसी लगी? अच्छी हो या बुरी, बताइए। धन्यवाद!

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