नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम राहुल है, और मैं हरियाणा के एक छोटे से गाँव का रहने वाला हूँ। हमारा गाँव ऐसा है जहाँ खेतों की हरियाली और भैंसों की मवक-मवक दिन का हिस्सा है। मेरी उम्र अब 30 साल की हो चुकी है, लेकिन शादी अभी तक नहीं हुई। घरवाले मेरे लिए लड़की ढूंढने में लगे हैं, पर हर बार बात कहीं अटक जाती है। गाँव में लोग कहते हैं, “राहुल, तनै इब जल्दी सै जल्दी बीवी ल्यावै, नहीं तौ कब तक अकेला रहगा?” पर मुझे तो भाभियाँ और 40-45 साल की औरतें ज्यादा भाती हैं। लड़कियाँ चुदाई में बहुत नखरे करती हैं, लेकिन भाभियाँ! हाय, वो तो बिस्तर पर ऐसा मज़ा देती हैं कि बस दिल बाग-बाग हो जावे। उनकी बातें, उनका तजुर्बा, और वो हरियाणवी अंदाज़, सबकुछ जन्नत सा लगता है।
बात उस वक्त की है जब हमारी भैंस ने दूध देना बंद कर दिया। गाँव में भैंस का दूध बंद होना मतलब घर में हलचल मच जाना। पापा ने गाँव में थोड़ी दूर रहने वाले रमेश भाई के घर से रोज़ 2 किलो दूध का इंतज़ाम कर लिया। रमेश भाई मेरे दूर के भाई लगते हैं। मैं उन्हें थोड़ा-बहुत जानता था, लेकिन ज्यादा लेन-देन नहीं था। बस इतना पता था कि वो खेती-बाड़ी करते हैं और गाँव के ठेठ देसी मर्द हैं। उनके घर में चार लोग हैं—रमेश भाई, उनकी बीवी सुनीता भाभी, और उनके दो बच्चे, जो दिल्ली में मामा के घर रहकर पढ़ाई करते हैं। गाँव में अब सिर्फ रमेश भाई और सुनीता भाभी रहते हैं। उनके पास दो भैंसें हैं, और वो खेतों के साथ-साथ दूध का धंधा भी देखते हैं। गाँव में लोग उनकी भैंसों का दूध खूब लेते हैं, क्योंकि उनका दूध “पक्का मलाईदार” होता है, जैसा गाँव वाले कहते हैं।
रमेश भाई की उम्र 40 के आसपास है। चेहरा सख्त, कद ठीक-ठाक, और बातों में वो हरियाणवी ठसक। सुनीता भाभी 36 साल की हैं, ये उन्होंने खुद बताया था। भाभी गोरी-चिट्टी हैं, जैसे हरियाणा की देसी औरतें होती हैं, जिनकी गोरी चमड़ी पर खेतों की धूप की हल्की छाप दिखती है। लेकिन फिगर के मामले में वो कुछ खास नहीं। उनकी चूचियाँ छोटी-छोटी हैं, पेट थोड़ा सा निकला हुआ है, पर उनकी गांड! हाय राम, वो तो ऐसी चौड़ी और मटकती है कि बस देखते ही लंड सलामी देने लगे। जब भाभी साड़ी में चलती हैं, तो उनकी गांड का लचकना ऐसा लगता है जैसे कोई गाना बजा रहा हो। गाँव में लोग कहते हैं, “सुनीता की चाल में तो जादू सै।”
मैं रोज़ शाम को उनके घर दूध लेने जाता था। गाँव की पगडंडियों से गुज़रते हुए, खेतों की सैर करते-करते वहाँ पहुँचता। रमेश भाई कभी-कभार ही घर पर मिलते थे। जब मिलते, तो बस “राम-राम” करके हाल-चाल पूछ लेता। वो खेतों में पानी लगाने या भैंसों को चारा डालने में व्यस्त रहते। भाभी के साथ मेरी अच्छी-खासी बात होने लगी थी। लेकिन जब रमेश भाई घर पर होते, तो भाभी मुझसे कम बात करतीं, बस दूध डालकर बर्तन थमा देतीं। मैं तो उनकी गांड को घूरता रहता। उनकी साड़ी जब चूतड़ों पर चिपकती, तो मन करता कि बस अभी पीछे से पकड़ लूँ और लंड घुसा दूँ। लेकिन गाँव का माहौल है, भाभी की आवाज़ भी थोड़ी भारी है। अगर वो चिल्ला देतीं, तो गाँव के चौपाल तक बात पहुँच जाती, और मेरी बेइज्जती हो जाती। गाँव में लोग कहते हैं, “जे कदे भूल कर बी किसी की इज्जत पे हाथ डाल्या, तौ गाँव छोड़न पड़ जा सै।”
मैंने सोच लिया कि भाभी को पटाना ही है। हरियाणा में लड़के ऐसे ही होते हैं, दिल में बात आई, तो आर या पार। जब भाभी दूध का बर्तन देतीं, मैं जानबूझकर उनका हाथ छू लेता और हल्का सा दबा देता। उनकी उंगलियाँ मुलायम थीं, लेकिन खेतों में काम करने की वजह से हल्की सख्त भी। शुरू में भाभी चुप रही, लेकिन कुछ दिन बाद उन्होंने मुझसे बात करना बंद कर दिया। मैं समझ गया कि मेरी हरकत से वो नाराज़ हैं। मैंने भी चुपके से दूध लेना शुरू किया, बस बर्तन लेता और घर लौट आता। गाँव में लोग कहते हैं, “जे औरत चुप हो जा सै, तौ समझ लै, तूने कुछ गलत कर्या सै।” फिर कुछ दिन बाद भाभी खुद ही बात करने लगीं। वो हँसकर कहतीं, “के रै राहुल, इब तू बात बी ना करता?” मैंने सोच लिया कि अब मौका है, आर-पार करना है। या तो भाभी हाँ कहेंगी, या मैं उनकी तरफ देखना छोड़ दूँगा।
एक दिन भाभी ने मुझे दूध का बर्तन दिया। मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और सीधे बोल दिया, “भाभी, तू मने बहुत बढ़िया लाग सै।” भाभी ने एक पल मेरी तरफ देखा, फिर सख्त आवाज़ में बोलीं, “हाथ छोड़ दे, राहुल।” मैं चुपचाप नज़रें नीचे करके घर लौट आया। उस दिन के बाद मैं दूध लेने नहीं गया। पापा ही दूध लाने लगे। करीब दस दिन बाद पापा को गाँव से बाहर जाना पड़ा, तो मुझे फिर से दूध लेने जाना पड़ा। मैं भाभी के घर गया, बर्तन रखा, और चुपके से खड़ा रहा। भाभी ने दूध डाला, और जब मैं जाने लगा, तो बोलीं, “के बात सै, राहुल? आना ही छोड़ दिया?” मैं चुप रहा। फिर भाभी ने हरियाणवी अंदाज़ में कहा, “तू तो बढ़िया लड़का सै। अपणा नंबर दे जा, बात करूँगी।”
मेरे तो जैसे लड्डू फूट पड़े। मैंने तुरंत उनका नंबर लिया, एक मिस्ड कॉल दी, और घर लौट आया। रात को भाभी का फोन आया। वो बोलीं, “राहुल, तनै मेरे में के बढ़िया लाग्या? बता ना, जो तू मने बढ़िया कह रया सै?” मैंने हिम्मत करके कहा, “भाभी, तेरी गांड। मस्त लाग सै।” भाभी हँस पड़ीं और बोलीं, “हप्प! तू तो बड़ा हरामी सै।” मैंने कहा, “भाभी, तनै बाहों में लेन का जी करता सै।” भाभी ने गंभीर होकर कहा, “रुक जा, गाँव का माहौल सै। जे किसी न पता चल गया, तो बेइज्जती हो जावेगी। गाँव में तो तू जानता सै, बात हवा सा फैल जा सै।” मैंने कहा, “भाभी, तू बस किसी को मत बताना। चाहे तेरी कोई सखी हो, बस चुप रहियो।” भाभी बोलीं, “डर लाग सै, पर तू बी तो मने बढ़िया लाग सै। कल दिन में आजा, तेरा भाई खेत में पानी लावेगा।” मैंने कहा, “ठीक सै, तू फोन कर देना।” भाभी ने हाँ कहा, और मैंने फोन रख दिया। रात को भाभी की गांड के बारे में सोचकर मुठ मार ली और सो गया। गाँव में लोग कहते हैं, “जे रात को नींद ना आवे, तौ समझ लै, दिल में कुछ चल रया सै।”
सुबह से मैं भाभी के फोन का इंतज़ार करने लगा। गाँव की सुबह की ठंडी हवा और खेतों की खुशबू में मन बेकरार था। करीब 11 बजे भाभी का फोन आया, “राहुल, जल्दी आजा, थोड़ा टाइम सै।” मैंने फटाफट “ठीक सै” कहा और उनके घर की ओर चल पड़ा। गाँव की गलियों से गुज़रते हुए, मैंने इधर-उधर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा। भाभी के घर पहुँचकर मैं चुपके से अंदर घुस गया। भाभी कमरे में झाड़ू लगा रही थीं। उनकी लाल साड़ी उनकी गांड पर चिपकी हुई थी, और वो मटकता हुआ उभार देखकर मेरा लंड तुरंत खड़ा हो गया। मैं चुपके से कमरे में घुसा और पीछे से भाभी को बाहों में भर लिया। भाभी एकदम डर गईं और बोलीं, “अरे, रुक! गेट बंद करके आती हूँ। नहीं तौ कोई देख ल्या, तौ गाँव में बात फैल जावेगी।”
भाभी ने जल्दी से गेट बंद किया और कमरे में लौट आईं। मैंने फिर से उन्हें बाहों में लिया और उनके होंठों को चूमने लगा। उनके होंठ रसीले थे, जैसे गाँव के ताज़े गन्ने का रस। मैं उन्हें चूसते हुए ऐसा महसूस कर रहा था जैसे कोई नशा चढ़ रहा हो। भाभी भी पूरा साथ दे रही थीं, उनकी साँसें गरम थीं। मैंने धीरे से उनके होंठों को दाँतों से हल्का सा काट लिया। भाभी ने हरियाणवी लहजे में कहा, “पागल सै के? जे मत कर, निशान पड़ जावेगा!” मैंने माफ़ी माँगी और फिर से उनके होंठों को चूमने लगा। उनकी आँखों में प्यार के साथ-साथ चुदास की चमक थी। हम दोनों बेड पर आ गए और एक-दूसरे को चूमने लगे। मैंने उनकी साड़ी के ऊपर से उनकी चूचियों को दबाया और हल्का सा काट लिया। भाभी ने सिसकारी भरी, “आहह… सीईई… धीरे रै…”
मैंने धीरे-धीरे उनकी साड़ी खोलनी शुरू की। भाभी ने मुझे रोका नहीं। साड़ी हटते ही वो सिर्फ हरे रंग के ब्लाउज़ और पेटीकोट में थीं। मैंने उनका ब्लाउज़ खोला, और उनकी छोटी-छोटी चूचियाँ मेरे सामने थीं। उनके निप्पल गहरे भूरे और सख्त हो चुके थे। मैंने एक चूची को मुँह में लिया और चूसने लगा। भाभी की सिसकारियाँ तेज हो गईं, “आहह… और चूस… हाय राम…” मैं बारी-बारी से दोनों चूचियों को चूस रहा था, और मेरे हाथ उनकी गांड पर चले गए। उनकी गांड इतनी मुलायम थी कि बस मन करता था कि दबाता ही रहूँ। मैंने पेटीकोट का नाड़ा खोला, और वो नीचे गिर गया। भाभी अब सिर्फ नीली पैंटी में थीं। उनकी पैंटी गीली हो चुकी थी, और उसमें से चूत की हल्की सी महक आ रही थी।
मैंने भाभी को बेड पर लिटाया और उनकी पैंटी को धीरे से उतार दिया। उनकी चूत पर छोटे-छोटे बाल थे, और वो पूरी तरह गीली थी। मैंने उनके पैर फैलाए और उनकी चूत के पास अपनी जीभ ले गया। भाभी ने एक लंबी सांस ली और मेरी तरफ देखने लगीं। मैंने उनकी चूत के होंठों को चूमा और धीरे से जीभ अंदर डाली। भाभी की सिसकारी निकली, “आआहह… सीईई… और कर, राहुल…” मैं उनकी चूत को चाटने लगा, कभी जीभ अंदर डालता, तो कभी उनके दाने को चूसता। भाभी की चूत से पानी टपकने लगा था, और उनकी सिसकारियाँ अब जोर-जोर की चीखों में बदल रही थीं, “आहह… ओहह… बस कर… ना… और चाट… हाय राम…”
मैंने अपनी जीभ की स्पीड बढ़ा दी। भाभी की चूत अब उछल रही थी, और वो अपने कूल्हों को हिला-हिलाकर मेरे मुँह पर रगड़ रही थीं। अचानक भाभी ने जोर से चीख मारी, “आआहह… निकल रया सै… ओहह…” और उनकी चूत से गर्म-गर्म पानी की पिचकारी निकल पड़ी। मैंने उनका सारा पानी पी लिया और उनके ऊपर आ गया। भाभी ने मेरे होंठों को चूमा और अपनी चूत के पानी का स्वाद लिया। वो बोलीं, “तू तो बड़ा हरामी सै… इतना मज़ा दे रया सै।”
मैंने अपने कपड़े उतारे। मेरा लंड पूरी तरह टाइट था, करीब 6 इंच लंबा और मोटा। भाभी ने उसे देखा और हरियाणवी अंदाज़ में बोलीं, “हाय राम, तेरा लौड़ा तो मने मार डालेगा।” मैंने हँसकर कहा, “भाभी, मारूंगा नहीं, मज़ा दूँगा।” मैंने फिर से उनकी चूचियों को चूसना शुरू किया, और मेरा लंड उनकी चूत के ऊपर रगड़ने लगा। भाभी फिर से गर्म हो गईं और बोलीं, “बस कर… अब डाल दे… चोद मने…” मैंने अपने लंड को उनकी चूत के मुँह पर रखा और हल्का सा धक्का दिया। मेरा लंड धीरे-धीरे उनकी चूत में घुसने लगा। भाभी की चूत टाइट थी, शायद रमेश भाई ने उन्हें लंबे समय से चोदा नहीं था।
भाभी की सिसकारियाँ फिर से शुरू हो गईं, “आहह… सीईई… धीरे… दर्द हो रया सै…” मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। उनकी चूत गीली थी, लेकिन टाइट होने की वजह से मेरा लंड पूरा अंदर नहीं जा रहा था। मैंने थोड़ा और जोर लगाया, और मेरा पूरा लंड उनकी चूत में समा गया। भाभी ने जोर से चीख मारी, “आआहह… मर गई… धीरे कर, राहुल…” मैंने धक्के मारने शुरू किए, और हर धक्के के साथ उनकी चूचियाँ हिल रही थीं। मैं कभी उनकी चूचियों को दबाता, तो कभी उनके होंठों को चूसता। भाभी की सिसकारियाँ अब जोर-जोर की हो रही थीं, “आहह… और तेज… चोद मने… फाड़ दे मेरी चूत…”
मैंने उन्हें बेड के किनारे खींचा और उनकी टाँगें अपने कंधों पर रख लीं। अब मैं खड़े-खड़े उनकी चूत में धक्के मार रहा था। हर धक्के के साथ उनकी गांड हिल रही थी, और “पच-पच” की आवाज़ पूरे कमरे में गूंज रही थी। मैं बीच-बीच में रुक जाता, और भाभी तुरंत आँखें खोलकर कहतीं, “रुक क्यों गया? चोद ना… गाँव का मर्द सै, रुकता क्यूँ सै?” मैं हँस देता और फिर एक जोरदार धक्का मारता। भाभी की चीख निकल जाती, “आआहह… मारेगा के मने!” मैं उनकी एक चूची को दबाता और चूत की चुदाई तेज कर देता। भाभी चिल्ला रही थीं, “आहह… और तेज… फाड़ दे… मेरी चूत बाड़ दे… आआहह…”
कुछ देर बाद भाभी फिर से झड़ गईं। उनकी चूत से गर्म पानी की पिचकारी निकली, और वो एकदम निढाल होकर बेड पर गिर पड़ीं। मैं अब भी नहीं रुका। मैंने कहा, “भाभी, बस थोड़ी देर और… घोड़ी बन जा।” भाभी बोलीं, “मने दर्द हो रया सै… पर ठीक सै, तू अपना पानी निकाल ले।” वो घोड़ी बन गईं, और उनकी चौड़ी गांड मेरे सामने थी। मैंने उनकी गांड को सहलाया और पीछे से अपनी उंगलियाँ उनकी चूत में डालीं। भाभी फिर से सिसकारियाँ लेने लगीं, “आहह… बस कर… अब डाल दे…”
मैंने अपना लंड उनकी चूत में डाला और धक्के मारने शुरू किए। उनकी गांड हर धक्के के साथ हिल रही थी, और मैंने उनके दोनों चूतड़ों को पकड़ लिया। मैंने उनके कूल्हों को थपथपाया और चुदाई की स्पीड बढ़ा दी। भाभी चिल्ला रही थीं, “आहह… सीईई… और तेज… मेरी गांड मार ले…” मैंने उनके बाल पकड़े और उनकी पीठ पर चढ़कर चोदने लगा। मेरे हाथ उनकी चूचियों को दबा रहे थे, और मेरा लंड उनकी चूत को फाड़ रहा था। कुछ ही देर में मेरा लंड भी झड़ गया। मैंने इतना पानी छोड़ा कि उनकी चूत भर गई। मैं थोड़ी देर तक वैसे ही पड़ा रहा, उनकी चूचियाँ दबाता रहा। फिर मैंने लंड निकाला और बेड पर लेट गया।
भाभी भी मेरे बगल में औंधे मुँह लेट गईं। मैंने करवट ली और उनके माथे को चूमा। भाभी ने पास पड़ा तौलिया लिया और अपनी चूत पोंछने लगीं। वो बोलीं, “कहाँ से सीखा इतना सब? तू तो हरियाणा का असली मर्द सै।” मैंने हँसकर कहा, “नंगी फिल्मों से, भाभी।” भाभी बोलीं, “सच में, इतना मज़ा आया… तू बस ऐसा ही प्यार देता रहियो। एक किलो दूध रोज़ मेरी तरफ से फ्री।” मैं हँस पड़ा। फिर भाभी ने कहा, “अब जा, तेरा भाई कभी भी आ जावेगा। नहीं तौ गाँव में बात फैल जावेगी।” मैंने जल्दी से कपड़े पहने, भाभी के होंठ चूمه, और घर की ओर निकल गया।
दोस्तों, अब तो जब भी मौका मिलता है, मैं भाभी को चोद लेता हूँ। अब तक छह बार उनकी चूत का मज़ा ले चुका हूँ। आप लोगों को मेरी कहानी कैसी लगी? अपनी राय ज़रूर बताइए।