ये कहानी बहुत पुरानी है, जब मैं, मेरा नाम मेजेस्टी है, अपने दोस्तों अरुण और अविजित के साथ जिंदगी की मस्ती में डूबा हुआ था। उस वक्त मैं 20 साल का था, मॉर्निंग कॉलेज में ग्रेजुएशन कर रहा था। दिनभर खाली समय, जवान जism, और मस्ती का जुनून—बस यही मेरी जिंदगी थी। मेरा जिगरी दोस्त आकाश, पढ़ाई में बहुत तेज था, लेकिन उसका परिवार बेहद गरीब था। आकाश को इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया, और उसके बाप ने मेरे पिताजी से कुछ पैसे उधार लिए ताकि वो पढ़ाई कर सके। इसके बाद आकाश का परिवार हमारा एहसान मानने लगा, और मेरा उनके घर आना-जाना बढ़ गया।
आकाश के घर में उसकी एक बड़ी बहन थी, आशा, जिसकी उम्र करीब 24 साल थी। तीन छोटी बहनें और एक सबसे छोटा भाई भी था। आशा की शादी नहीं हुई थी, क्योंकि गरीबी ने उनके परिवार को मजबूर कर रखा था। आशा जो कपड़े पहनती थी, वो इतने पतले और फटे हुए थे कि उसका पूरा बदन साफ दिखाई देता था। उसके स्तन, निप्पल्स, और शरीर का हर हिस्सा कपड़ों के पार से नजर आता था। एक दिन मैंने हिम्मत करके पूछ लिया, “आशा, ऐसे कपड़े क्यों पहनती हो?” उसने उदास होकर कहा, “पैसे नहीं हैं, मेजेस्टी, नये कपड़े कहां से खरीदें?” मैंने अपनी जेबखर्च की बचत से एक ब्रा खरीदकर उसे दे दी। वो बहुत खुश हुई, उसने थैंक्स कहा और ब्रा ले ली। लेकिन मैं जब भी उनके घर जाता, वो बिना ब्रा के ही नजर आती। मुझे हैरानी भी होती और मजा भी आता, क्योंकि उसके निप्पल्स साफ दिखते थे, जो मुझे बहुत पसंद थे।
एक दिन मैंने हंसी-मजाक में पूछ लिया, “आशा, पैंटी का साइज क्या है? अगर तुम चाहो तो मैं अपनी जेबखर्च से खरीद दूं।” उसने मुस्कुराते हुए कहा, “जो तुम कर सको, कर दो। मुझसे क्या पूछते हो?” मैंने एक पैंटी भी खरीद दी। फिर मैंने मजाक में पूछा, “ब्रा तो पहनी नहीं, पैंटी का क्या किया?” उसने हंसते हुए जवाब दिया, “जिस दिन ब्रा पहनूंगी, उसी दिन पैंटी भी पहनूंगी।” मैंने कहा, “वो दिन कब आएगा?” वो बस मुस्कुरा दी।
लेकिन एक दिन ऐसा आया जब आकाश के परिवार में किसी रिश्तेदार की मौत हो गई। मेरे परिवार ने मुझे आदेश दिया कि जब तक आकाश के पिताजी वापस नहीं आते, मैं उनके घर पर रहूं और उनकी मदद करूं। मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई। अब मैं आशा के घर 24×7 रहने वाला था। आकाश की मां और दो छोटे बच्चे भी रिश्तेदार के घर चले गए, और मुझे उनके घर का एक कमरा मिल गया, वो कमरा जिसमें आशा के मम्मी-पापा सोते थे। पहले दिन दोनों छोटी बहनें खाना खाकर सो गईं, और मैं और आशा जाग रहे थे। आशा मेरे पास बैठी थी, इतने करीब कि उसकी सांसें मुझे छू रही थीं। उसने वही पुरानी फटी हुई सलवार-कमीज पहनी थी, जिसमें से उसका बदन साफ दिख रहा था। ना ब्रा, ना पैंटी। उसकी सेक्सी फिगर देखकर मेरा मन डोलने लगा।
मैंने हल्के से कहा, “आशा, आज तो ब्रा-पैंटी पहन लो।” उसने नजरे झुकाकर कहा, “तुम ही पहना दो।” मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। मैंने सोचा, ये मौका है। मैंने कहा, “लाओ, कहां हैं?” वो बोली, “अभी लाती हूं,” और अपने कमरे में चली गई। थोड़ी देर बाद वो ब्रा और पैंटी लेकर आई। मैं उसे देख रहा था, फिर ब्रा-पैंटी को, फिर उसे। उसने शरमाते हुए कहा, “सब सुरक्षित है। बच्चों का कमरा बाहर से लॉक कर दिया है। वो सुबह ही उठेंगे। अब तुम क्या सोच रहे हो? पहना दो ना।”
मैंने धीरे-धीरे उसके कपड़े उतारने शुरू किए। पहले उसकी कमीज उतारी। जैसे ही कमीज हटी, उसके 34DD साइज के स्तन मेरे सामने थे। गोल, भरे हुए, और निप्पल्स तने हुए। मेरा लंड मेरी पैंट में उछलने लगा। मैंने उसकी सलवार की डोरी खोली, और जैसे ही सलवार नीचे गिरी, मैंने उसकी चूत देखी। घना जंगल, लेकिन उस जंगल के बीच गुलाबी रंग की चूत साफ दिख रही थी। शायद उसने कभी सफाई नहीं की थी, लेकिन वो जंगल मुझे और भी कामुक लग रहा था। मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया और कहा, “आशा, पहले ब्रा पहनाते हैं।” लेकिन मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उसके स्तनों को अपने हाथों में लिया, उन्हें दबाया, और एक निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा। “आह्ह…” आशा के मुंह से सिसकारी निकली। वो कसमसाने लगी और बोली, “हाय दइया, मेजेस्टी, ये क्या कर रहे हो?”
वो मेरे से चिपक गई। उसका नंगा बदन मेरे बदन से टकरा रहा था। मेरा लंड अब पैंट फाड़ने को तैयार था। मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रखा। उसने जैसे ही उसे छुआ, वो चौंक गई और बोली, “हाय, ये तो कितना सख्त है! अब इसका क्या होगा?” मैंने हंसते हुए कहा, “चलो, देखते हैं इसका क्या करना है।” मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया और उसके बदन को चूमने लगा। उसके स्तनों को, उसकी गर्दन को, फिर धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ा। उसकी चूत के पास पहुंचकर मैंने उसकी जांघों को चूमा। वो सिसकारियां ले रही थी, “उफ्फ… मेजेस्टी… आह्ह…” उसकी आवाज मेरे अंदर आग लगा रही थी।
मैंने उसकी चूत को छुआ, वो गीली हो चुकी थी। मैंने अपनी उंगली से उसकी चूत को सहलाया, और वो जोर से सिसकारी, “आह्ह… हाय… और करो…” मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटना शुरू किया। उसका स्वाद, उसकी गंध, सब कुछ मुझे पागल कर रहा था। वो अपने कूल्हे हिला रही थी, “उफ्फ… मेजेस्टी… हाय… ये क्या कर रहे हो… आह्ह…” मैंने उसकी चूत को और गहराई से चाटा, मेरी जीभ उसके अंदर तक जा रही थी। वो अब जोर-जोर से सिसकार रही थी, “आह्ह… उह्ह… मेजेस्टी… बस करो… नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगी…”
मैंने अपने कपड़े उतारे। मेरा 7 इंच का लंड अब पूरी तरह तना हुआ था। आशा ने उसे देखा और बोली, “हाय राम, ये तो बहुत बड़ा है!” उसने मेरे लंड को अपने हाथ में लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगी। “उफ्फ… कितना गर्म है…” वो बोली। मैंने कहा, “आशा, अब इसे चूमो।” उसने शरमाते हुए मेरे लंड को अपने होंठों से छुआ, फिर धीरे-धीरे उसे चाटने लगी। “उह्ह…” मेरे मुंह से सिसकारी निकली। वो अब मेरे लंड को अपने मुंह में ले रही थी, और मैं उसके बालों को सहला रहा था। उसकी गर्म सांसें मेरे लंड को और उत्तेजित कर रही थीं।
मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। मैंने उसे बिस्तर पर पटका और उसके ऊपर चढ़ गया। मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ा। वो सिसकार रही थी, “आह्ह… मेजेस्टी… डाल दो… प्लीज…” मैंने धीरे से अपने लंड को उसकी चूत में डाला। “उफ्फ…” उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड अटक रहा था। मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए। “आह्ह… उह्ह… मेजेस्टी… धीरे… दर्द हो रहा है…” वो बोली। लेकिन उसकी सिसकारियों में मजे का पुट था। मैंने धक्के तेज किए। “फच… फच…” मेरे लंड के धक्कों की आवाज कमरे में गूंज रही थी। आशा की सिसकारियां और तेज हो गईं, “आह्ह… उह्ह… और जोर से… मेजेस्टी… चोदो मुझे…”
उसकी चूत से खून निकलने लगा। वो घबरा गई, “हाय… ये क्या हुआ?” मैंने उसे शांत किया, “कुछ नहीं, आशा। पहली बार ऐसा होता है।” मैंने धक्के जारी रखे। उसकी चूत अब गीली हो चुकी थी, और मेरा लंड आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था। “फच… फच… फच…” धक्कों की आवाज के साथ आशा की सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं, “आह्ह… उह्ह… मेजेस्टी… कितना मजा आ रहा है…” मैंने उसके स्तनों को दबाया, उसके निप्पल्स को चूसा, और धक्के लगाता रहा। वो अब पूरी तरह मजे में थी, “हाय… और जोर से… चोदो मुझे… उफ्फ…”
करीब 20 मिनट तक मैं उसे चोदता रहा। आखिरकार, मैं झड़ने वाला था। मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उसके पेट पर झड़ गया। आशा भी उसी वक्त झड़ गई, उसकी सिसकारियां धीमी हो गईं, “आह्ह… मेजेस्टी… कितना मजा आया…” हम दोनों हांफ रहे थे। फिर हम बाथरूम गए, चादर धोई, और एक-दूसरे के प्राइवेट पार्ट्स को साफ किया। साफ करते-करते मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। आशा ने हंसते हुए कहा, “हाय, ये तो फिर तैयार है!” मैंने उसे बाथरूम की दीवार से टिकाया और फिर से उसकी चूत में लंड डाल दिया। “फच… फच…” हमने फिर से चुदाई शुरू कर दी। आशा की सिसकारियां फिर गूंजने लगीं, “आह्ह… मेजेस्टी… और करो… उफ्फ…” इस बार हमने 15 मिनट तक चुदाई की, और फिर मैं उसके पेट पर झड़ गया।
करीब 3 बजने को थे। आशा ने ब्रा-पैंटी पहनी, अपने कपड़े पहने, और बच्चों का कमरा खोलकर उनके पास चली गई। मैं अपने लंड को सहलाता हुआ अपने कमरे में चला गया।
आपको ये कहानी कैसी लगी? क्या आशा और मेजेस्टी का ये रोमांच आगे बढ़ेगा? अपने विचार कमेंट में जरूर बताएं!