मैं शालू हूँ। पिछले भाग(पति के सामने दर्जी ने चोदा-2) में आपने पढ़ा कि कैसे मैंने अपने पति विनोद के सामने एक अनजान दर्जी से चुदवाया। शादी के सिर्फ चार महीने बाद ही मैंने दूसरे मर्द के लौड़े का मजा लिया। उस रात दर्जी की दुकान में मैं करीब तीन घंटे रही। उसने मुझे नंगा होने को कहा, फिर खुद मेरे कपड़े उतारे, और आखिर में मुझे चोदना शुरू किया। विनोद ने दिखाने के लिए भी उसे एक बार नहीं रोका। दर्जी की चुदाई मुझे इतनी पसंद आई कि मैंने दोबारा उससे चुदवाया। उसने मुझे तीसरे दिन ट्रायल के लिए बुलाया, और मेरे दिल में फिर से उसका मूसल जैसा लौड़ा लेने की आग सुलगने लगी।
हम रात 12 बजे के करीब उसकी दुकान में घुसे थे। दो बार चुदवाने के बाद, जब हम दुकान से निकले, तो सुबह के 3 बज चुके थे। कार स्टार्ट हुई। रात की सन्नाटे में सिर्फ इंजन की आवाज गूँज रही थी। मैं अभी भी उसी नशे में थी—दर्जी के गठीले बदन, उसके 9 इंच के लौड़े, और उसकी बेरहम चुदाई की यादें मेरे दिमाग में तैर रही थीं। मेरी चूत अभी भी गीली थी, और मेरे बदन में एक अजीब सी बेकरारी थी। मैंने साड़ी नहीं पहनी थी, सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थी, जो दर्जी ने आधे-अधूरे ढंग से मुझे पहनाए थे।
मैंने विनोद की ओर देखा और पूछा- विनोद, जब दर्जी ने मुझे नंगा होने को कहा, तो तुमने उसे डाँटा क्यों नहीं? वो मेरे कपड़े उतारने लगा, तब भी तुमने नहीं रोका। उसकी चुदाई मुझे इतनी बढ़िया लगी कि दूसरी बार मैंने खुद चुदवाया। लेकिन जब उसने मुझे उठाकर टेबल पर लिटाया, तब भी तुमने उसे क्यों नहीं रोका?
विनोद एक हाथ से स्टीयरिंग संभाल रहा था, और उसका दूसरा हाथ मेरी नंगी जांघों पर फिसल रहा था। उसका स्पर्श गर्म था, लेकिन मेरे दिमाग में दर्जी के मजबूत हाथों की याद थी, जिन्होंने मेरी चूत और चूचियों को मसला था। विनोद ने हँसते हुए कहा- शालू, जब तुम उसकी दुकान में घुसी, तो मुझे बहुत गुस्सा आया था। लेकिन जब उसने तुमसे नंगा होने को कहा, तो ना जाने मुझे क्या हो गया। मैं अपने भगवान से प्रार्थना करने लगा कि तुम उसके सामने नंगी हो जाओ और मेरे सामने उससे चुदवाओ।
उसकी बात सुनकर मैं मन ही मन खुश हो गई। मेरा पति खुद चाहता था कि मैं किसी और से चुदवाऊँ! मैंने शरारत से कहा- यानी तुम चाहते थे कि मैं दूसरों से चुदवाऊँ? मेरी रंडीपना देखकर तुम मुझे तलाक दे दोगे और किसी दूसरी हसीना से शादी कर लोगे? कौन हरामजादी है, जिसके लिए तुम मुझे छोड़ना चाहते हो?
विनोद ने मेरे पेटीकोट के ऊपर से मेरी चूत को जोर से मसला। मैं पूरी नंगी उसके बगल में बैठी थी, मेरी चूचियाँ ब्लाउज से बाहर झाँक रही थीं। उसने कहा- रानी, मैं पागल हूँ जो तुम्हें अपने से दूर जाने दूँगा। तुम्हें नंगा देखना, तुम्हें चोदना बहुत बढ़िया लगता है। लेकिन आज तुम्हें उस दर्जी से चुदवाते देखकर उससे भी ज्यादा मजा आया। सच, रानी, तुम बहुत मस्त माल हो। उस दर्जी से जितना चुदवाना है, चुदवाओ। लेकिन मेरे फायदे के लिए जल्दी किसी और से भी चुदवाना होगा। मना नहीं करोगी ना?
उसके शब्द मेरे लिए जन्नत का तोहफा थे। मेरा पति खुद मुझे किसी और से चुदवाना चाहता था! लेकिन अभी तो मेरे दिमाग में सिर्फ दर्जी का लौड़ा था—वो मोटा, लंबा, कड़क लौड़ा, जो मेरी चूत को फाड़कर अंदर तक गया था। मैंने उसे चिढ़ाते हुए कहा- जितने दिन ससुराल में रही, मुझे लगा कि तुम्हारे बाबूजी बार-बार मुझे छूने की कोशिश करते थे। मैंने उन्हें हाथ नहीं लगाने दिया, शायद इसलिए उन्होंने मुझे दीवाली में घर आने से मना किया। मेरे ना जाने से दीप्ति कितनी उदास है।
विनोद ने मेरी चूत को फिर से दबाया और बोला- तुमने ठीक ऑब्जर्व किया। बाबूजी मुझसे कई बार तुम्हारी खूबसूरती और जवानी की बात करते थे। तुम उन्हें बहुत पसंद हो।
मैंने हँसकर कहा- और अगर तेरा बूढ़ा बाप भी मुझे चोदना चाहे, तो? विनोद ने जवाब दिया- मेरे बाबूजी बूढ़े नहीं हैं। रजनी, जो ससुराल की नौकरानी है, तुम्हारी ही उम्र की है। वो सिर्फ बाबूजी से चुदवाने के लिए घर में रहती है।
हमारी बातें चल ही रही थीं कि कार सोसाइटी के गेट पर रुकी। गार्ड मेरी तरफ आया। कार की अंदर की लाइट बंद थी, लेकिन बाहर की स्ट्रीटलाइट्स की रोशनी में मेरी नंगी जवानी उसे साफ दिख रही थी। मैंने अपनी जांघों को क्रॉस करके बैठी थी, लेकिन मेरी चूचियाँ ब्लाउज से बाहर उभरी थीं। गार्ड ने कहा- मैडम, जब से आप यहाँ आई हैं, हर कोई सिर्फ आपके बारे में ही बात करता है। वो कल्पेश टेलर शान से सबको बताता है कि वो आपका दोस्त है। आप जैसी सुंदर औरत मैंने पहले कभी नहीं देखी, और आज तो मेरी किस्मत खुल गई।
मैंने अपनी जांघें खोलीं और टाँगें फैलाकर बैठ गई। मेरी झांटों से भरी चूत उसे साफ दिख रही होगी। मैंने कहा- कल्पेश मेरे गाँव का है, हम बचपन से एक-दूसरे को जानते हैं। अगर तुम मुझे बदनाम नहीं करोगे, तो हम भी दोस्त बन सकते हैं। तुम्हारा नाम क्या है?
गार्ड ने जवाब दिया- उदय सिंह। आपको किसी भी तरह का काम करवाना हो, मुझे बोलिए। आपके लिए कुछ भी करूँगा, मुझे बहुत खुशी होगी।
मैंने उसे गौर से देखा। 24-25 साल का गबरू जवान, लंबा, चौड़ा सीना, और आँखों में वासना की चमक। मैंने विनोद की ओर एक नजर डाली। उदय मुझे विनोद से ज्यादा आकर्षक लगा। मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा- किसी को मत बताना कि तुमने मुझे नंगा देखा। कोई तुम्हारी बात मानेगा नहीं, सब तुम पर ही हँसेंगे। दीवाली के दिन समय निकालकर घर आना। इनाम दूँगी। चलो, विनोद।
विनोद ने कार घर की ओर बढ़ाई। उसने कहा- तुम सारे मर्दों को बर्बाद कर दोगी। सच कहता हूँ, तुम्हें इस तरह नंगा देखना बहुत बढ़िया लग रहा है।
मैंने जवाब दिया- मुझे ऐसा देखकर सब यही समझेंगे कि मैं छिनार हूँ, और तुम नमर्द हो, जो अपनी बीवी को दूसरों से चुदवाता है। दीवाली के दिन अपने बॉस को घर बुलाओ। मैं तुम्हारा प्रमोशन चाहती हूँ।
विनोद ने घर के सामने कार पार्क की और कार में ही मुझे गले लगाकर चूम लिया। उसने कहा- मैं भी तुम्हें अपने बॉस से चुदवाने की बात कर रहा था।
मैंने शरारत से कहा- मैं तुम्हारे इमीडिएट बॉस की नहीं, फैक्ट्री के जनरल मैनेजर, सीईओ को बुलाने की बात कर रही थी। अगर बॉस को ही खुश करना है, तो छोटे बॉस क्यों, बड़े को ही खुश करो ना।
दर्जी ने मुझे दो बार चोदकर मेरी चुदाई की प्यास बुझा दी थी। उसकी चुदाई ने मुझे बेशर्म बना दिया था। विनोद से जब भी चुदवाती थी, हर बार मेरे दिमाग में “कुछ और चाहिए” वाला ख्याल घूमता था। लेकिन दर्जी के लौड़े ने मेरी चूत को ऐसा रगड़ा कि अब मुझे सिर्फ उसका लौड़ा और उसके धक्के चाहिए थे। उस रात जब उसने मुझे टेबल पर लिटाया, तो उसका 9 इंच का लौड़ा मेरी चूत में घुसते ही मैं चीख पड़ी थी। उसने मेरी चूत को इतना खोला कि हर धक्के के साथ मेरी चूचियाँ उछल रही थीं, और मेरी चूत चप-चप की आवाज कर रही थी। दूसरी बार जब उसने मुझे कुतिया बनाकर चोदा, तो मेरी गांड पर उसकी चपत और उसके धक्कों ने मुझे पागल कर दिया था। मेरी चूत बार-बार झड़ रही थी, और उसका गर्म माल मेरी चूत में भर गया था।
हम घर के अंदर घुसे। सुबह के 4 बज रहे थे। विनोद सो गया, लेकिन मैं सो नहीं पाई। मैंने फ्रेश होकर चाय बनाई और नंगी ही सोफे पर बैठ गई। टीवी पर म्यूजिक चैनल लगा, लेकिन मेरा दिमाग उस रात की घटनाओं में खोया था। सब कुछ समझ आ रहा था। विनोद के साथ चुदाई से मैं कभी संतुष्ट नहीं हुई थी। इसलिए मौका मिलते ही मैंने दर्जी से चुदवा लिया। लेकिन ये बात मेरे गले नहीं उतर रही थी कि कोई मर्द, चाहे कितना भी कमजोर हो, अपनी बीवी को दूसरे के सामने नंगा देखकर और चुदवाते देखकर कैसे खुश हो सकता है?
मैं अपनी पहली रंडीपना और विनोद के बारे में सोच रही थी कि दरवाजे पर खटखट हुई। मैंने समय देखा—सुबह 6:30। पारो अपने समय पर आई थी। मैंने नंगी ही दरवाजा खोला। पारो ने मुझे नंगा देखा और झट से मुझे अंदर धकेलकर दरवाजा बंद किया। उसने कहा- दीदी, शायद कोई घटिया रंडी भी अपने घर में ऐसा नहीं रहती। साहब आपकी आग नहीं बुझा सकते, तो बोलिए, मैं अपने घरवाले को भेज दूँ। बलदेव एक ही धक्के में आपकी सारी गर्मी उतार देगा। मादरचोद, जब भी चोदता है, जंगली जानवर जैसा चोदता है। चुदाई के बाद मैं भी घर में ऐसा ही नंगी रहती हूँ।
मैंने हँसकर कहा- तेरे साहब ने भी रात में ऐसा ही पेला। एक के बाद एक, साले ने लगातार तीन बार चोदा। मादरचोद ने जान निकाल दी। पहले एक कप बढ़िया चाय पीते हैं, फिर काम करेंगे।
पारो बोली- मैं भी चाय पीकर नहीं आई। आप बैठिए, मैं बनाती हूँ।
मैंने कहा- पारो, तू मेरी सगी बहन जैसी है। इसे अपना घर समझ। जब चाहे, कुछ भी खा-पी सकती है।
पारो चाय बनाने गई। मैं बाथरूम से फ्रेश होकर आई। मुझे घर में नंगा घूमना और रहना अच्छा लगने लगा था। थोड़ी देर बाद हम दोनों आमने-सामने बैठकर चाय पीने लगीं। पारो ने कहा- दीदी…
मैंने उसे टोका- पारो, मुझे “मैडम” बिल्कुल पसंद नहीं। बाहरवाले बोलें, तो बोलने दे, लेकिन तू मत बोल। अगर मेरे नाम से नहीं बुला सकती, तो दीदी बोल। मैडम या मालकिन नहीं।
मेरी बात सुनकर पारो मुस्कुराई और बोली- दीदी, आप विनोद साहब को संभालकर रखिए।
मैंने पूछा- क्या हुआ? तुझे चोदने की कोशिश करता है क्या?
पारो ने कहा- धत्त, दीदी, आप बहुत गंदी हैं। जिस आदमी की इतनी खूबसूरत घरवाली हो, वो दूसरी की ओर क्यों देखेगा? सोसाइटी की कई औरतें और कुंवारी लड़कियाँ विनोद साहब की दीवानी हैं। 5-6 औरतें और 2 कॉलेज की लड़कियाँ मुझे कई बार खुशामद कर चुकी हैं कि मैं उन्हें विनोद साहब से मिलवाऊँ।
मैंने कहा- तो मिलवा दे ना! एक बार मेरा घरवाला किसी और को चोद लेगा, तो मेरे लिए भी रास्ता साफ हो जाएगा। जहाँ भी जाती हूँ, लोग मुझे ऐसे घूरते हैं, जैसे खड़े-खड़े चोद लेंगे। लेकिन अभी तक किसी मर्द को देखकर मेरे दिल में कोई उथल-पुथल शुरू नहीं हुई। मैं दिल से चाहती हूँ कि विनोद जल्दी किसी को चोदे, ताकि वो मुझे भी दूसरों से चुदवाने से मना ना करे। तू ही क्यों नहीं पटाती उसे? विनोद बढ़िया चुदाई करता है।
पारो बोली- आप बहुत गंदी हैं, आपसे बात नहीं करूँगी। वो अपना कप लेकर किचन में चली गई।
करीब आधे घंटे बाद मैं नहा-धोकर एक पंजाबी सूट पहनकर बाहर आई, तो देखा कि विनोद किचन में है। वो पारो के बिल्कुल सटकर खड़ा था, और उसके दोनों हाथ पारो की कमर को सहला रहे थे। ये देखकर मुझे यकीन हो गया कि विनोद पारो को चोदता है। मैं थोड़ा पीछे हटी और जोर से बोली- पारो, मुझे बहुत भूख लगी है। कुछ खिला-पिला।
पारो ने जवाब दिया- अभी लाती हूँ, दीदी।
कुछ देर बाद पारो ने नाश्ता सर्व किया। सर्व करने के बाद वो किचन में जाने लगी, तो मैंने उसका हाथ पकड़कर कहा- पारो, आज से, अभी से, तू हमारे साथ नाश्ता करेगी, खाना खाएगी। जा, अपनी प्लेट ले आ।
वो बहुत ना-नुकुर करने लगी, लेकिन विनोद ने भी जोर दिया, तो वो शरमाते हुए अपनी प्लेट लेकर आई और मेरे बगल में बैठकर खाने लगी। पारो मेरी ही उम्र, 19 साल की थी, लेकिन उसकी शादी मुझसे पहले हो गई थी। अभी तक उसका कोई बच्चा नहीं था। वो मेरी तरह खूबसूरत चेहरेवाली नहीं थी। मेरा चेहरा गोल था, उसका अंडाकार। उसका रंग साफ नहीं था, लेकिन चेहरे और स्किन की चमक उसे आकर्षक बनाती थी। वो 5 फीट 2 इंच लंबी थी, लचकदार बदन, 34 इंच की चूचियाँ, पतली कमर, और शायद 34 इंच के चूतड़। ज्यादातर सलवार-कुर्ता पहनती थी। अगर मेरा पति उसके बदन को छू सकता है, तो जरूर और भी कई लोग पारो की जवानी का मजा लेते होंगे।
मैंने कभी नहीं पूछा कि पारो इस घर में कब से विनोद की सेवा कर रही है। जब मैंने इस घर में पहली बार कदम रखा, तो मेरे सास-ससुर के साथ पारो भी मेरा स्वागत करने खड़ी थी। सास-ससुर एक हफ्ते बाद चले गए, और उनके जाने के सातवें दिन मैंने दर्जी से चुदवाया।
पारो ने कहा- दीदी, जितना हो सका, मैंने घर साफ कर दिया। लेकिन कुछ भारी सामान है। उसे शिफ्ट करने के लिए एक और आदमी चाहिए।
उसकी बात सही थी। कुछ फर्नीचर और अलमारियाँ बहुत भारी थीं। मैंने विनोद की ओर देखा। उसने कहा- पारो, आज नहीं तो कल बलदेव को बुला लो। उसके साथ मिलकर बाकी सफाई कर लो।
मैंने कहा- हाँ, ये भी ठीक है। मैं भी तेरे घरवाले से ठीक से नहीं मिली। इस बहाने हमारी दोस्ती हो जाएगी।
पारो ने हँसकर कहा- कितनी मुश्किल से एक आदमी ने मुझसे शादी की। और आप उसे भी मुझसे छीनना चाहती हैं? आप उस हरामी को जरा भी छूट देंगी, तो बहनचोद मेरी ओर देखेगा भी नहीं।
मैंने कहा- घबरा मत। मैं तेरे घरवाले से इतनी जल्दी नहीं चुदवाऊँगी। कल उसे बुला ले।
पारो बोली- दीदी, आप इतनी आसानी से गंदी बातें कैसे बोल लेती हैं?
मैंने जवाब दिया- आज से नहीं, बचपन से ऐसी बातें सुनती और बोलती आई हूँ। हमारे गाँव में बेटी भी अपने बाप को बेटीचोद बोलकर गाली देती है। मादरचोद, बहनचोद बोलना तो आम है।
खैर, रविवार और अगला दिन सोमवार आराम से गुजर गया। जैसा कहा था, अगले दिन पारो अपने पति बलदेव को लेकर आई। दोनों ने सचमुच बहुत मेहनत की और घर को चमका दिया। मैंने कई बार बलदेव को मुझे घूरते पकड़ा। जब भी मैं उसकी ओर देखती, उसकी आँखें मेरे बदन को भेद रही होती थीं। सारा काम खत्म होने के बाद मैंने पारो से बढ़िया नाश्ता और चाय बनाने को कहा। पारो किचन में चली गई। बलदेव मेरे सामने जमीन पर बैठा था।
मेरे पूछने पर उसने अपनी और पारो की फैमिली के बारे में बताया। फिर उसने राज खोला- मालकिन, आपको शायद नहीं पता, मेरी घरवाली विनोद साहब के साथ सेक्स करती है। मैंने अपनी आँखों से दोनों को मस्ती करते देखा है। मैंने पारो को कई बार मना किया, लेकिन वो कहती है कि मैं चाहे उसे छोड़ दूँ, वो विनोद साहब को कभी नहीं छोड़ेगी। पारो शादी से पहले से ही विनोद साहब से चुदवा रही है।
मैंने शांत स्वर में कहा- तो तुम भी विनोद साहब की घरवाली को चोद लो। मैं तुमसे चुदवाने को तैयार हूँ। चोदोगे मुझे?