दोस्तो, मैं आपकी मीरा यादव, उम्र 20 साल, एक बार फिर आपके सामने अपनी चुदाई की कहानी लेकर हाजिर हूँ। मेरी फिगर इतनी मस्त है कि हर मर्द की नजर मेरे बड़े-बड़े बूब्स पर अटक ही जाती है। मेरे डैड बिजनेसमैन हैं, और मैं अपने पापा के चाचा-चाची, यानी मेरे दादा-दादी के पास रहती हूँ। दादा-दादी से मुझे बहुत प्यार है, लेकिन ये कहानी मेरे दादा जी की वासना और मेरी चुदाई की प्यास की है।
एक रात की बात है, मैं अपने कमरे में सो रही थी। अचानक मेरी नींद खुली, क्योंकि कहीं से हल्की-सी रोशनी आ रही थी। मैंने देखा कि रोशनी दादा-दादी के कमरे से आ रही है। उत्सुकता में मैं बिस्तर से उठी और चुपके से उनके कमरे की खिड़की के पास गई। खिड़की की झिरी से मैंने अंदर झांका तो मेरा दिल धक-धक करने लगा। दादा जी दादी को जोर-जोर से चोद रहे थे। दादा जी का मूसल जैसा लंड, मोटा और लंबा, दादी की चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। दादा जी जोश में थे, उनका पसीना चू रहा था, और वो हर धक्के के साथ दादी को पेल रहे थे। लेकिन दादी को कोई खास मजा नहीं आ रहा था। उनकी चूत ढीली और फैली हुई थी, और उनके लटकते बूब्स हिल रहे थे, लेकिन चेहरे पर कोई उत्तेजना नहीं थी। शायद उम्र की वजह से उनकी चुदाई की भूख मर चुकी थी।
ये सब देखकर मेरी जवान चूत में आग लग गई। मेरा दिल बल्लियों उछल रहा था। दादा जी का वो मूसल लंड मुझे इतना दिलकश लगा कि मैंने ठान लिया—मुझे भी इसी लंड से चुदवाना है। मैंने अपनी चूचियों को मसलना शुरू कर दिया, और अपनी चूत को रगड़ने लगी। मेरी चूत गीली हो चुकी थी, पानी रिस रहा था। मैं चुपके से अपने कमरे में लौटी, मोबाइल उठाया और सेक्स कहानियाँ पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते मैंने अपनी चूत में उंगली डाल ली। दादा जी के लंड को अपनी टाइट चूत में घुसता हुआ सोचकर मैंने मुठ मारी। इतना मजा आया कि बस पूछो मत। उस रात से मेरी चूत में उंगली करने की आदत पक्की हो गई। जब भी मन करता, मैं अपनी चूत को रगड़ती, उंगली अंदर-बाहर करती, और दादा जी के लंड की कल्पना में खो जाती।
कुछ दिन बाद दादी की तबीयत बिगड़ गई। पापा ने उन्हें इलाज के लिए शहर बुला लिया। मेरे एग्जाम थे, तो मैं और दादा जी गाँव में ही रुक गए। अब घर में सिर्फ मैं और दादा जी थे। एक रात मैं अपने कमरे में सेक्स कहानी पढ़ रही थी। कहानी इतनी गर्म थी कि मैं नंगी हो गई और अपनी चूत में उंगली करने लगी। मैंने खुद को कहानी की नायिका मान लिया था, और अपनी चूचियों को मसलते हुए चूत रगड़ रही थी। गलती से मैंने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ दिया था।
दादा जी उस रात मेरे कमरे में आए। शायद वो देखना चाहते थे कि मैं ठीक हूँ या मुझे कुछ चाहिए। उन्होंने बिना आवाज किए धीरे से दरवाजे की झिरी से अंदर झांका। मैं पूरी नंगी थी, मेरी चूचियाँ हवा में तनी हुई थीं, और मैं अपनी चूत में उंगली डाले सिसकारियाँ भर रही थी। दादा जी ये देखकर पागल हो गए। उनकी आँखों में वासना चमकने लगी। उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला और वहीं दरवाजे के पास मुठ मारने लगे। मैंने अधखुली आँखों से उन्हें देख लिया, लेकिन कुछ बोली नहीं। उनकी वासना देखकर मेरी चूत और गीली हो गई। मैंने उंगली तेजी से अंदर-बाहर की और उनके लंड को देखते हुए झड़ गई। दादा जी ने भी मुठ मारकर अपना पानी निकाला और चुपके से अपने कमरे में चले गए।
अगली सुबह मैं एग्जाम देकर लौटी। दादा जी मुझे कुछ अलग नजरों से देख रहे थे। उनकी नजर बार-बार मेरे बूब्स पर जा रही थी। दोपहर में वो मेरे पास आए और बातों-बातों में मुझे अपनी गोद में बिठा लिया। उनका मोटा लंड मेरी गांड के नीचे चुभ रहा था। मैं समझ गई कि उनका लंड खड़ा हो चुका है। उन्होंने मेरी चूचियों पर हल्के से हाथ फेरा, और मेरे कान के पास फुसफुसाए, “मीरा, तू तो बड़ी सुंदर हो गई है।” उनकी साँसें मेरे गले पर लग रही थीं। मैंने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुराई और उनकी गोद से उठकर अपने कमरे में चली गई। जाते वक्त मैंने जानबूझकर अपनी गांड मटकाई, ताकि उनके लंड में और आग लगे।
कमरे में जाकर मैंने दरवाजा खुला छोड़ दिया और कपड़े बदलने लगी। मैंने दर्पण में देखा कि दादा जी चुपके से मुझे देख रहे हैं। वो अपना लंड मसल रहे थे। मेरी चूत में फिर से खुजली होने लगी। मैंने जानबूझकर अपनी ब्रा और पैंटी धीरे-धीरे उतारी, ताकि उन्हें मेरा नंगा बदन दिखे। उस वक्त कुछ नहीं हुआ, लेकिन मुझे यकीन हो गया कि आज रात कुछ बड़ा होने वाला है।
रात को खाना खाकर हम अपने-अपने कमरे में चले गए। आधी रात को मुझे लगा कि कोई मेरी टाँगों पर हाथ फेर रहा है। वो हाथ धीरे-धीरे मेरी जाँघों से होता हुआ मेरी चूत के पास पहुँचा। मैंने नींद का नाटक किया, लेकिन मेरी चूत गीली होने लगी। दादा जी ने मेरी टी-शर्ट ऊपर की, और मेरे बूब्स नंगे हो गए। वो मेरे मम्मों को देखकर पागल हो गए। उन्होंने मेरे एक बूब को अपने मुँह में लिया और चूसने लगे। दूसरा बूब वो जोर-जोर से दबा रहे थे। उनकी जीभ मेरे निप्पल पर गोल-गोल घूम रही थी। मैं मस्ती में सिसकारियाँ लेने लगी, लेकिन अभी भी सोने का नाटक कर रही थी।
थोड़ी देर बाद दादा जी ने मेरा पैंट उतार दिया। मेरी टाँगें फैलाकर उन्होंने अपनी जीभ मेरी चूत पर रख दी। जैसे ही उनकी गर्म जीभ मेरी चूत से टकराई, मेरे बदन में बिजली दौड़ गई। मैंने उनके बाल पकड़ लिए। दादा जी डर गए और अलग होने लगे, लेकिन मैंने कहा, “दादा जी, रुको मत… मेरी चूत चाटो, प्लीज!” वो समझ गए कि मैं भी चुदना चाहती हूँ। उन्होंने मेरी चूत को चाटना शुरू कर दिया। उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को चूस रही थी, और मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “आह… दादा जी… और चाटो… उफ्फ!” पहली बार किसी मर्द की जीभ मेरी चूत का मजा ले रही थी। मैं पागल हो रही थी।
कुछ देर चूत चाटने के बाद दादा जी ने अपना पजामा उतारा। उनका लंड खड़ा था, मोटा और लंबा, जैसे कोई अजगर फुफकार रहा हो। मैंने उसे देखा तो मेरी चूत और गीली हो गई। दादा जी ने अपना लंड मेरी चूत पर टिकाया और धीरे से अंदर घुसा दिया। मेरी चूत इतकी टाइट थी कि मुझे लगा कि वो फट जाएगी। मैं चिल्ल्लाई, “आया… उफ्फ… दादा जी, दर्द हो रहा है!” दादा जी ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे और कहा, “बस थोड़ा सा दर्द है, मीरा… पहली बार तो ऐसा होता ही है।। मजा ले, मेरी जान।”
उन्होंने एक और झटका मारा, और उनका लंड और अंदर घुस गया। मेरी चूत से खून निकला, लेकिन दादा जी धीरे-धीरे धक्के मारते रहे। थोड़ी देर बाद दर्द कम हुआ, और मुझे मजा आने लगा। मैं अपनी गांड उठा-उठाकर उनके धक्कों का जवाब देने लगी। दादा जी अब जोर-जोर से चोदने लगे। वो मेरे बूब्स चूसते हुए बोले, “आह… क्या टाइट चूत है तेरी, मीरा… इतना मजा तो तेरी दादी की फटी भोसड़ी में कभी नहीं आया।” मैं भी मस्ती में बोल रही थी, “हाँ, दादा जी… मेरी चूत को फाड़ दो… अब ये चूत सिर्फ आपके लंड की है!”
दादा जी मुझे धकापेल चोद रहे थे। वो मेरे बूब्स को बारी-बारी चूसते, काटते और दबाते। मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “आह… और जोर से… चोदो मुझे…” थोड़ी देर बाद दादा जी ने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और सारा गर्म रस मेरी जाँघों पर गिरा दिया। मैं उनके रस की गर्मी को महसूस कर रही थी। वो हाँफते हुए मेरे ऊपर लेट गए। हम दोनों की साँसें तेज थीं, और कमरे में सिर्फ हमारी हांफने की आवाज थी।
कुछ देर बाद हम बाथरूम में गए। दादा जी ने मुझे नहलाना शुरू किया। वो मेरे बूब्स पर साबुन लगाते हुए मेरी चूत में उंगली करने लगे। उनकी उंगली मेरी चूत के अंदर-बाहर हो रही थी, और मैं फिर से गर्म हो गई। दादा जी का लंड भी फिर से खड़ा हो गया। इस बार उन्होंने मेरी एक टाँग उठाई, मुझे दीवार से टिकाया, और अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया। बाथरूम में पानी की फुहारों के बीच वो मुझे जोर-जोर से चोदने लगे। मेरी चूत से फच-फच की आवाज आ रही थी। मैं चिल्ला रही थी, “आह… दादा जी… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दो!” हम दोनों इतने गर्म थे कि जल्दी ही झड़ गए। नंगे ही हम बिस्तर पर लेट गए और सो गए।
उसके बाद जब तक दादी नहीं आईं, दादा जी ने मुझे न जाने कितनी बार चोदा। कभी किचन में, कभी खेतों में, कभी रात को मेरे कमरे में। अब तो मुझे उनके लंड की आदत हो गई थी। दादी के आने के बाद भी, जब वो सो जातीं, दादा जी मेरे कमरे में आते और मेरी चूत की प्यास बुझाते। एक बार तो दादी के बगल वाले कमरे में ही उन्होंने मुझे चोदा। मैंने उनकी गोद में बैठकर धीरे-धीरे उनकी लंड पर उछली, और हमने चुपके से मजा लिया।
तो दोस्तो, ये थी मेरी और दादा जी की चुदाई की कहानी। अब तो दादा जी मेरे लिए वो मर्द हैं जो मेरी चूत की आग को शांत करता है। मैं उम्मी-द करती हूँ कि आपको मेरी कहानी पसंद आई होगी। तब तक अपनी चूत और लंड को सहलाते रहो, मैं फिर से नई चुदाई की कहानी लेकर आऊँगी। बाय!