TMKUC – Gokuldham fantasy sex story: शाम का वक्त था, और गोकुलधाम सोसाइटी का माहौल बारिश की फुहारों से भरा हुआ था। आसमान में काले बादल छाए थे, और कभी-कभी बिजली की गड़गड़ाहट पूरे मोहल्ले को हिलाकर रख देती थी। चंपक लाल, उम्र करीब 60 साल, गठीला बदन, सफेद कुर्ता-पायजामा पहने, अपने घर के छोटे से लिविंग रूम में टीवी के सामने बैठे थे। उनकी आँखें टीवी पर टिकी थीं, लेकिन दिमाग कहीं और भटक रहा था। उनकी बहू दया, 32 साल की, गोरी-चिट्टी, भरा हुआ बदन, नीली साड़ी में लिपटी हुई, किचन में खाना बना रही थी। दया की साड़ी उसकी कमर को इस तरह लपेटे थी कि उसकी चिकनी, गोरी कमर बार-बार झलक रही थी। जेठालाल, दया का पति, काम के सिलसिले में शहर से बाहर गया था, और टप्पू अपने दोस्त के घर रुका हुआ था। घर में सिर्फ चंपक लाल और दया ही थे।
दया ने किचन में गर्मागर्म रोटियाँ बनाईं, दाल का तड़का लगाया, और सब्जी को थाली में सजाकर डाइनिंग टेबल पर ले आई। उसकी साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, और उसकी गहरी नाभि चंपक लाल की नजरों में चुभ रही थी। टीवी पर एक पुरानी फिल्म का रोमांटिक गाना चल रहा था, जिसमें हीरो-हिरोइन बारिश में भीगते हुए एक-दूसरे के करीब आ रहे थे। चंपक लाल का ध्यान अब टीवी से हटकर दया की कमर पर टिक गया। उसकी नीली साड़ी बारिश की ठंडक में और भी कामुक लग रही थी। दया की हल्की-सी चाल, उसकी कमर का लचकना, और उसकी साड़ी का गीला पल्लू चंपक लाल के मन में आग लगा रहा था। उसका लंड धीरे-धीरे तनने लगा, और उसने अपनी टाँगें मोड़कर अपनी उत्तेजना को छिपाने की कोशिश की।
दया ने टेबल पर खाना सजाते हुए पुकारा, “बापूजी, खाना तैयार है! आइए, बैठ जाइए!” उसकी आवाज में वही मासूमियत थी, जो हमेशा चंपक लाल को अपनी ओर खींचती थी। चंपक ने रिमोट उठाकर टीवी बंद किया और डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ा। उसने दया को भी साथ बैठने को कहा, “अरे बहू, तू भी बैठ! अकेले क्या खाऊँगा?” दया ने हल्की-सी मुस्कान के साथ सिर हिलाया और उसके सामने बैठ गई। दोनों ने चुपचाप खाना खाया, लेकिन चंपक लाल की नजरें बार-बार दया की साड़ी के किनारे से झाँकती उसकी चिकनी कमर और गहरे ब्लाउज में दबे हुए चूचों पर जा रही थीं। खाना खत्म होने के बाद चंपक अपने कमरे में चले गए, और दया ने बर्तन साफ किए।
रात गहराने लगी थी। दया को अचानक याद आया कि बापूजी ने अपनी दवाई नहीं ली। उसने एक गिलास पानी लिया और चंपक लाल के कमरे की ओर बढ़ी। कमरे का दरवाजा हल्का-सा खुला था। उसने जैसे ही दरवाजा धकेला, उसकी साँसें थम गईं। चंपक लाल बिस्तर पर लेटे हुए थे, उनका पायजामा घुटनों तक नीचे था, और उनका मोटा, काला लंड उनके हाथ में था। वह जोर-जोर से मुठ मार रहे थे, और उनके दूसरे हाथ में एक तस्वीर थी। दया ने झट से दरवाजा बंद किया और बाहर खड़ी हो गई। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसने मन ही मन सोचा, “बापूजी ये क्या कर रहे हैं? और वो तस्वीर किसकी थी?” उसका दिमाग उलझन में पड़ गया।
कुछ देर बाद उसने हिम्मत जुटाई और दरवाजे पर दस्तक दी, “बापूजी!” चंपक लाल ने जल्दी से तस्वीर को तकिए के नीचे छिपाया और चादर से अपने खड़े लंड को ढक लिया। “आ जा बहू, दरवाजा खुला है!” उसने सामान्य आवाज में कहा। दया अंदर गई, लेकिन उसकी नजरें बापूजी से मिलने से बच रही थीं। वह उनके पास पहुंची और गिलास आगे बढ़ाते हुए बोली, “बापूजी, आपकी दवाई!” चंपक ने दवाई ली, पानी पिया, और गिलास वापस दया को थमा दिया। तभी अचानक बिजली गुल हो गई, और कमरे में घुप्प अंधेरा छा गया।
“अरे, ये लाइट कैसे चली गई?” चंपक ने झुंझलाते हुए कहा। फिर उन्होंने दया से कहा, “बहू, थोड़ी देर यहीं बैठ जा। अंधेरे में कैसे जाएगी?” दया का मन नहीं था, लेकिन बापूजी को मना करना उसे ठीक नहीं लगा। वह बेमन से बिस्तर के किनारे बैठ गई। अंधेरे में चंपक को लगा कि शायद दया चली गई। “बहू, यहीं हो ना?” उन्होंने पूछा। “जी बापूजी, यहीं हूँ,” दया ने धीमी आवाज में जवाब दिया। चंपक ने हल्के से हँसते हुए कहा, “अरे, तो चुपचाप क्यों बैठी है? कुछ बात तो कर!”
दया के दिमाग में अभी भी वही सीन घूम रहा था—बापूजी का मोटा लंड, उनकी हरकतें, और वो तस्वीर। वह सोच रही थी कि आखिर वो तस्वीर किसकी थी। शायद सासू माँ की? या किसी और की? उसका मन बेचैन था। चंपक भी दया की खामोशी से परेशान हो गए। “क्या हुआ बहू? इतनी चुप क्यों है? कुछ परेशानी है?” दया ने हड़बड़ाते हुए कहा, “नहीं बापूजी, बस थोड़ी थकान है। नींद आ रही है।” चंपक ने तुरंत कहा, “अरे, नींद आ रही है तो यहीं सो जा! लाइट आएगी तो मैं जगा दूँगा।”
दया को अपनी बात पर पछतावा हुआ। उसने सोचा, “मैंने ये क्या कह दिया?” लेकिन अब पीछे हटना मुश्किल था। चंपक ने फिर जोर दिया, “सो जा बहू, शरमाने की क्या बात है?” उनका हाथ अब दया के कंधे पर था। दया ने मन ही मन सोचा, “शायद मैं ज्यादा सोच रही हूँ। बापूजी को सासू माँ की याद आई होगी। मुठ मारने में क्या बुराई है? जेठालाल भी तो कभी-कभी ऐसा करते हैं।” उसने खुद को समझाया और बिस्तर पर लेट गई। “बापूजी, अगर लाइट आ जाए तो मुझे जगा देना,” उसने करवट लेते हुए कहा।
चंपक को यकीन नहीं था कि दया इतनी आसानी से मान जाएगी। वह बिस्तर पर लेटी थी, और उसकी साड़ी का पल्लू हल्का-सा सरक गया था, जिससे उसकी गोरी कमर और गहरी नाभि चंपक की आँखों के सामने थी। दया सचमुच थक गई थी। बिस्तर पर लेटते ही उसकी आँखें भारी होने लगीं, और वह गहरी नींद में चली गई। लेकिन चंपक को नींद कहाँ थी? उनका लंड अभी भी सख्त था, और दया का पास में होना उनकी उत्तेजना को और बढ़ा रहा था।
उनका हाथ अपने लंड पर चला गया, और वह धीरे-धीरे हिलाने लगे। लेकिन मुठ मारने में अब मजा नहीं आ रहा था। उन्होंने सोचा, “क्यों ना दया के पीछे लेटकर हिलाऊँ?” जैसे ही वह बिस्तर पर खिसके, उनका हाथ गलती से दया की गांड पर लग गया। दया की साड़ी ऊपर सरक गई थी, और उसकी नरम, गोल गांड की गर्मी ने चंपक को और बेकाबू कर दिया। उन्होंने जल्दी से हाथ हटा लिया और पीछे लेट गए। तभी लाइट आ गई। चंपक ने देखा कि दया का मुँह दूसरी तरफ था, और वह गहरी नींद में थी।
उन्होंने लाइट बंद कर दी और फिर से अपने लंड को हिलाने लगे। अब उनके दिमाग में सिर्फ दया थी—उसकी चिकनी कमर, उसकी भारी गांड, और उसका नरम जिस्म। उनकी उत्तेजना चरम पर थी। उनका दूसरा हाथ धीरे से दया की पीठ पर चला गया। दया की साड़ी का पल्लू पूरी तरह सरक चुका था, और उसकी पीठ की गर्मी ने चंपक को पागल कर दिया। उन्होंने धीरे-से अपनी जीभ दया की पीठ पर फेरी। दया की नींद इतनी गहरी थी कि उसे कुछ पता नहीं चला।
चंपक की हिम्मत बढ़ी। उन्होंने धीरे-धीरे दया के ब्लाउज के ऊपर से उसके चूचों को छुआ। दया के गोल, भारी चूचे उनके हाथों में दब रहे थे, और उनके निप्पल सख्त हो चुके थे। चंपक ने एक हाथ से दया की साड़ी को और ऊपर उठाया, और उसकी जाँघों को सहलाने लगे। दया की चिकनी, मुलायम जाँघों की गर्मी ने उनके लंड को और सख्त कर दिया। उन्होंने अपनी उंगली धीरे-से दया की चूत की ओर बढ़ाई, जो पहले से ही गीली थी। “ओह्ह… ये तो पूरी तरह गीली है,” चंपक ने मन ही मन सोचा।
तभी दया को अपनी गांड पर कुछ रगड़ता हुआ महसूस हुआ। उसकी नींद टूटी, लेकिन अंधेरा होने की वजह से चंपक को पता नहीं चला कि दया जाग चुकी थी। चंपक अब दया की गर्दन को चूम रहे थे, और उनका मोटा लंड उसकी गांड के बीच रगड़ रहा था। “आह्ह… कितनी मुलायम है ये,” चंपक ने धीमी आवाज में बड़बड़ाया। दया को गुस्सा तो आया, लेकिन साथ ही उसका जिस्म भी गर्म होने लगा। उसने चुप रहने का फैसला किया। उसकी चूत में पानी बह रहा था, और वह अपनी सिसकारियों को रोकने के लिए होंठ दबाए हुए थी।
चंपक ने अब दया की साड़ी पूरी तरह खोल दी। उसका ब्लाउज और पेटीकोट ही बचा था। उन्होंने दया को पेट के बल लिटाया और उसकी गांड के छेद पर अपना लंड रगड़ना शुरू किया। “उफ्फ… कितनी टाइट है ये,” चंपक ने सोचा। उन्होंने धीरे-से अपना लंड दया की गांड में डाला। “आह्ह… ओह्ह…” दया के मुँह से हल्की-सी सिसकारी निकली, लेकिन उसने उसे दबा लिया। चंपक ने धीरे-धीरे झटके देना शुरू किया। “फच… फच…” उनके लंड और दया की गांड के टकराने की आवाज कमरे में गूँज रही थी।
दया को दर्द हो रहा था। जेठालाल ने कभी उसकी गांड नहीं मारी थी, और चंपक का लंड मोटा और सख्त था। “आह्ह… बापूजी… धीरे,” दया ने मन ही मन सोचा, लेकिन कुछ बोली नहीं। चंपक अब पूरी तरह दया की गांड मारने में खो गए थे। उनकी स्पीड बढ़ती गई, और दया की सिसकारियाँ भी तेज होने लगीं। “उह्ह… आह्ह…” दया ने अपने होंठ काट लिए ताकि आवाज न निकले। चंपक का लंड अब तेजी से अंदर-बाहर हो रहा था, और उनकी साँसें हाँफ रही थीं।
कुछ देर बाद चंपक का माल निकलने को हुआ। “ओह्ह… बहू… तू तो जन्नत है,” उन्होंने धीमी आवाज में कहा। उनका गर्म वीर्य दया की गांड और चूतड़ों पर पिचकारी बनकर गिरा। “आह्ह…” चंपक हाँफते हुए पीछे लेट गए। दया को अब थोड़ी राहत मिली। उसने सोचा, “अच्छा हुआ, बापूजी का माल निकल गया। वरना पता नहीं मैं कब तक चिल्लाने से रोक पाती।” लेकिन उसकी चूत अभी भी गीली थी, और वह गर्म थी।
चंपक को अब डर लगने लगा। “अगर बहू को पता चल गया तो? अगर उसने जेठालाल को बता दिया?” उन्होंने सोचा। उन्होंने फैसला किया कि वह दया की गांड से अपना वीर्य साफ करेंगे और उसे कपड़े पहना देंगे। जैसे ही उन्होंने लाइट जलाई, दया ने अपनी आँखें बंद कर लीं। वह अभी भी पीठ करके लेटी थी, मानो उसे कुछ पता ही न हो। चंपक ने धीरे-से दया के चूतड़ों को साफ किया, लेकिन उनकी नजरें दया के नंगे जिस्म पर टिक गईं। उसका गोरा बदन, गहरे ब्लाउज में दबे चूचे, और चिकनी जाँघें देखकर उनका लंड फिर से खड़ा हो गया।
चंपक ने खुद को रोकने की कोशिश की, लेकिन नहीं रोक पाए। उन्होंने फिर से अपना लंड हाथ में लिया और दया की जाँघों पर रगड़ने लगे। उनकी उंगली दया की चूत में चली गई, जो पूरी तरह गीली थी। “उफ्फ… ये तो पूरी तरह तैयार है,” चंपक ने सोचा। उन्होंने दया के चूचों को फिर से मसला, और उनका लंड फिर से झड़ने को तैयार था। इस बार उन्होंने अपना लंड दया के मुँह के पास ले जाकर मुठ मारी। उनका वीर्य दया के गाल पर गिरा और उसके होंठों तक बह गया। “आह्ह…” चंपक फिर से हाँफते हुए लेट गए।
दया ने चुपके से अपनी जीभ से बापूजी का वीर्य चाट लिया। उसका स्वाद उसे अजीब लेकिन उत्तेजक लगा। चंपक ने उठकर दया का मुँह साफ किया और उसे साड़ी पहना दी। वह दया के जिस्म को एक बार फिर निहारना नहीं भूले। फिर उन्होंने लाइट बंद की और सो गए। लेकिन दया की नींद उड़ चुकी थी। वह बापूजी के वीर्य का स्वाद ले रही थी, और उसकी चूत में आग लगी थी। उसने अपनी उंगलियाँ अपनी चूत में डालीं और फिंगरिंग शुरू की। “आह्ह… उह्ह…” उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। कुछ देर बाद वह थककर सो गई।
अगली सुबह दया उठी और कमरे से बाहर जाने लगी। तभी उसकी नजर तकिए के नीचे रखी तस्वीर पर पड़ी। उसने उसे उठाया और देखा—यह उसकी अपनी तस्वीर थी! उसके चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान आ गई। वह तस्वीर को वापस रखकर अपने बेडरूम में चली गई। बाथरूम में घुसते ही उसने अपने कपड़े उतारे और नहाने लगी। वह बापूजी की गंध को मिटाना चाहती थी, लेकिन रात का हर पल उसके दिमाग में बार-बार घूम रहा था। उसकी चूत अभी भी गीली थी, और वह खुद को रोक नहीं पाई। उसने शावर के नीचे अपनी चूत को सहलाया और बापूजी के लंड को याद करके एक बार फिर सिसकारियाँ भरीं।
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