अपनी चाची को चोदना ना भूले

Mastram new sex story दोस्तों, मेरा नाम चंचल कुमार है। मैं एक साधारण सा लड़का हूँ, लंबाई में औसत, गोरा रंग और चेहरे पर हमेशा एक शरारती सी मुस्कान लटकी रहती है। बात उन दिनों की है जब मैं कॉलेज का फर्स्ट ईयर का छात्र था, उम्र में करीब बीस साल का, और छुट्टियों में अपने चाचा के घर रहने के लिए चला गया था। चाचा का घर छोटा सा शहर में था, जहाँ हवा हमेशा ताजी लगती थी और शामें जल्दी ढल जातीं। मेरे चाचा, जिनका नाम रमेश था, एक फैक्ट्री में सुपरवाइजर थे, कड़े स्वभाव के लेकिन परिवार के प्रति समर्पित। उनकी पत्नी, यानी मेरी चाची, नाम था सुनीता, उम्र में तीस के आसपास, लेकिन उनकी खूबसूरती ऐसी थी कि कोई भी देखे तो ठिठक जाए। वो दो बच्चों की माँ थीं – एक बेटा आठ साल का और बेटी छह साल की – लेकिन उनका शरीर अभी भी जवानी की तरह कसा हुआ था। लंबे काले बाल, गेहुंआ रंग की चमड़ी, पतली कमर और भरी हुई छाती-कूल्हे, जो साड़ी में लिपटे हुए किसी मूर्ति जैसे लगते। वो इतनी आकर्षक थीं कि चाहे तो किसी को भी अपने इशारों पर नचा सकती थीं, लेकिन घर संभालने में भी माहिर।

मैं जब चाचा के घर पहुँचा, तो शाम के चार बज रहे थे। गर्मी ज्यादा थी, और मैंने बैग कंधे पर लटकाए हुए दरवाजे की ओर बढ़ा। दरवाजा खुला हुआ था, शायद हवा आने के लिए, और मैंने सोचा किसी को आवाज़ देकर आने से बेहतर है चुपचाप अंदर चले जाना। घर में सन्नाटा था, बच्चे शायद पड़ोस में खेलने गए थे, और चाचा काम पर। मैं जूतों की आवाज़ दबाते हुए अंदर दाखिल हुआ, हॉल के पास से गुजरते हुए बाथरूम की ओर नजर पड़ी। तभी मेरे कदम थम गए। चाची अपना पेटीकोट पहन रही थीं, ऊपर से ब्लाउज अभी तक नहीं चढ़ा था, और उनकी नंगी चुचियाँ – वो भरी हुई, गोल, हल्के भूरे निप्पलों वाली – हवा में हल्के-हल्के झूल रही थीं। चमकदार गोरी चमड़ी पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं, जैसे अभी नहाकर निकली हों।

मैं एक पल के लिए वहीं खड़ा रह गया, दिल की धड़कन तेज हो गई, आँखें उनकी चुचियों पर ठहर गईं। फिर होश आया और मैंने झटके से नजरें हटाईं। ‘सॉरी चाची जी…’ बोलते हुए मैं तेज़ी से आगे वाले कमरे में चला गया, चेहरा लाल हो चुका था, और मन में एक अजीब सी उत्तेजना दौड़ रही थी। कमरे में पहुँचकर मैंने बैग पटका और बिस्तर पर लेट गया, साँसें अभी भी भारी थीं।

कुछ ही मिनटों बाद चाची मेरे पास आईं। अब वो पूरी तरह तैयार थीं – हल्की नीली साड़ी में लिपटी हुईं, बाल गीले और खुले, चेहरे पर हल्का सा मेकअप। लेकिन उनकी आँखों में एक गुस्सा साफ झलक रहा था। वो मेरे सामने खड़ी हो गईं और हाथ कमर पर रखकर बोलीं, ‘तुम्हें कम से कम आवाज़ देकर तो आना चाहिए था, चंचल! क्या हालत कर दी हो मेरी?’ उनकी आवाज़ में नाराज़गी थी, लेकिन कहीं न कहीं एक हल्की सी शरारत भी लग रही थी।

यह सुनते ही मुझे थोड़ा बुरा लगा। मैंने भी मन ही मन सोचा कि वो भी तो सावधान रह सकती थीं। उठकर बैठते हुए मैंने जवाब दे दिया, ‘आपको भी तो दरवाज़ा बंद करके नहाना चाहिए था, चाची! मैं तो सोचकर भी अंदर आया, लेकिन ये…’ मेरी बात अधर में लटक गई, शर्म से नजरें नीची हो गईं।

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इस पर वो कुछ नहीं बोलीं। बस एक गहरी साँस ली, आँखें सिकोड़ीं और चली गईं। मैं वहीं रह गया, मन में पछतावा हो रहा था। क्या गलत कह दिया? लेकिन थोड़ी देर बाद वो लौटीं, एक गिलास पानी लेकर। ‘लो, पी लो। सफर की थकान मिट जाएगी,’ उन्होंने कहा, आवाज़ अब नरम थी। मैंने पानी पिया, ठंडा और ताज़ा, और फिर वो मुझसे मेरे घर के सभी लोगों के बारे में पूछने लगीं – मम्मी-पापा कैसे हैं, बहन की पढ़ाई कैसी चल रही, भाई का जॉब।

मैंने उनसे कहा, ‘सब ठीक है, चाची। सबको आपकी याद आ रही है।’ बातें करते-करते समय कट गया, लेकिन मन में वो दृश्य बार-बार घूम रहा था। फिर मैंने कहा, ‘मैं बाज़ार चला जाऊँ? कुछ सामान लेना है।’ वो मुस्कुराईं और हाँ कह दिया।

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बाज़ार जाना था तो चला गया। वहाँ घूमते हुए, दुकानों में बस्ता घुसते हुए, लेकिन दिमाग में चाची का वो नंगा ऊपरी बदन ही अटका था। कितना सॉफ्ट लग रहा था, कितना…। शाम ढलने लगी, सूरज लाल हो गया, और मैंने कुछ फल-सब्जियाँ भी खरीद लीं घर के लिए। वापस लौटने में शाम हो गई, करीब सात बजे पहुँचा। तभी चाची का फोन आया। मैंने फोन उठाया, ‘हाँ चाची?’ वो बोलीं, ‘कहाँ हो बेटा? खाना तैयार है।’ मैंने कहा, ‘आ रहा हूँ, बस दो मिनट।’

जब मैं घर आया तो रात के दस बज चुके थे। बच्चे सो चुके थे, चाचा अभी तक नहीं लौटे। मैंने खाना खाया – गरम रोटियाँ, दाल और सब्जी, चाची ने खुद परोसी – और थकान महसूस हुई। चाची से कहा, ‘मैं अब सोने जा रहा हूँ, चाची। कल सुबह जल्दी उठना है।’ उन्होंने कहा, ‘ठीक है, बेटा। अच्छे से सोना।’

ठीक एक घंटे बाद, रात के ग्यारह बजते-बजते, चाची मेरे कमरे में आईं। कमरे में लाइट धीमी थी, सिर्फ एक छोटा बल्ब जल रहा था। वो सफेद नाइटि में थीं, जो उनके शरीर से चिपकी हुई लग रही थी। ‘सो गए क्या चंचल?’ उन्होंने धीरे से कहा, दरवाज़ा बंद करते हुए।

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मैंने जवाब दिया, ‘नहीं चाची, ऐसे ही लेटा हूँ। क्यों, कोई काम है?’ मन में एक हल्की सी घबराहट हुई, लेकिन उत्सुकता भी।

तो चाची ने कहा, ‘आज तुम्हारे चाचा की नाइट शिफ्ट है, वो रात भर नहीं आएँगे। और मुझे भी नींद नहीं आ रही है। चलो, कुछ बातें करते हैं। मन भारी है आज।’ उनकी आवाज़ में थकान थी, लेकिन आँखों में कुछ और – शायद अकेलापन।

तो मैंने कहा, ‘ठीक है!’ और बिस्तर पर थोड़ा ऊपर सरक गया, उन्हें जगह दी।

और हम इधर-उधर की बातें करने लगे। पहले तो स्कूल-कॉलेज की, फिर चाचा के काम की, बच्चों की शरारतों की। चाची हँस रही थीं, उनकी हँसी कमरे में गूँज रही थी। लेकिन अभी तक मेरे मन में चाची को चोदने की कोई बात नहीं थी। सब कुछ सामान्य लग रहा था, बस एक आरामदायक रात। बातें करते-करते आधी रात हो गई, चाची की आँखें भारी लगने लगीं। वो मेरे ही बिस्तर पर लेट गईं, साड़ी अभी भी पहने हुए, लेकिन कमर पर लिपटी। ‘थोड़ा और बातें करें?’ उन्होंने कहा, लेकिन धीरे-धीरे उनकी साँसें गहरी हो गईं। मैंने भी सोचा, ‘सोने दो, थक गई होंगी।’ और मैं भी उनके बगल में ही सो गया, बीच में थोड़ी सी दूरी रखते हुए।

अचानक रात के दो बजे मेरी नींद खुली। गर्मी लग रही थी, गला सूखा। मैं उठा, किचन की ओर गया और पानी पिया – ठंडा, तरोताज़ा। वापस लौटकर बिस्तर पर लेटा, तो नजर चाची पर पड़ी। मेरी बची-कुचि नींद भी उड़ गई। चाची सोई हुई थीं, गहरी नींद में, लेकिन उनकी साड़ी घुटनों तक ऊपर सरक चुकी थी – शायद सोते हुए। उनकी गोरी-गोरी जांघें चाँदनी की रोशनी में चमक रही थीं, मोटी लेकिन सुडौल, चिकनी चमड़ी पर हल्की सी झुर्रियाँ भी नहीं। हवा चल रही थी खिड़की से, और वो जांघें हल्की-हल्की काँप रही थीं। मन में एक अजीब सी सनसनी हुई, जैसे कोई आग सुलग रही हो।

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मैं धीरे से गया और चाची के थोड़ा करीब जाकर सो गया। दिल धड़क रहा था, लेकिन रोक नहीं पाया। फिर धीरे से अपनी कोहनी चाची की दाईं चुची पर रख दी, और हाथ हिलाने लगा – ऐसे जैसे नींद में हरकत हो रही हो। कोहनी दब रही थी उनकी साड़ी के ऊपर से, नरम, गर्म। चाची हिलीं नहीं, साँसें एकसमान। अब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि चाची गहरी नींद में हैं। हिम्मत बढ़ी, और मैं धीरे-धीरे अपनी हथेली उनकी चुची पर फेरने लगा – साड़ी के ऊपर से, लेकिन दबाव बढ़ाते हुए। वो नरम थीं, भरी हुई, निप्पल सख्त हो रहा था मेरी उँगलियों के छूने से। चाची अभी भी सो रही थीं, लेकिन उनकी साँसें थोड़ी तेज़ हो गईं।

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फिर मेरा हाथ नीचे सरका, उनकी जांघों पर। चिकनी, गर्म चमड़ी – जैसे रेशम। मैंने हल्के-हल्के सहलाना शुरू किया, ऊपर-नीचे, घुटने से लेकर जांघ के अंदर तक। उस वक्त मेरा छह इंच का लंड अपने पूरे जोर पर था, पैंट में तनकर दर्द कर रहा था। मैंने पैंट का नाड़ा ढीला किया, लेकिन अभी तक बाहर नहीं निकाला। मन में डर था, लेकिन उत्तेजना ज्यादा।

धीरे-धीरे मेरा हाथ और ऊपर गया, साड़ी के किनारे से अंदर। उनकी चूत पर हाथ लगाया – पेटीकोट के ऊपर से, लेकिन गर्मी महसूस हुई। वो किसी हीटर की तरह गर्म थी, नम भी लग रही। चूत के होंठ फूले हुए, और मेरी उँगलियाँ वहाँ दब रही थीं। चाची की साँसें अब तेज़ थीं, लेकिन आँखें बंद।

अब मैं आपे से बाहर हो चुका था। मेरे अंदर किसी का डर नहीं था – न चाचा का, न किसी और का। जो होगा, देखा जाएगा। दिल की धड़कन कान में गूँज रही थी। मैंने अपना लंड बाहर निकाला – छह इंच का, मोटा, नसों वाला, सुपारा चमकदार। पेटीकोट को हल्का सा ऊपर किया, चूत पर सुपारा टिका दिया, और धीरे से दबाव डाला। लेकिन तभी…

जैसे ही मैंने अपना छह इंच का लंड उनकी चूत में डालने गया, उन्होंने मेरा लंड पकड़ लिया। उनकी उँगलियाँ सख्त, गर्म, लंड की जड़ पर कसी हुईं।

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मेरी तो हालत खराब हो गई – जैसे ‘काटो तो खून नहीं!’ सारा शरीर जम गया, साँस रुक गई। क्या कहूँ? भागूँ? माफी माँगूँ?

तब चाची ने आँखें खोलीं, धीरे से, और बोलीं, ‘यह क्या हो रहा है, चंचल?’ उनकी आवाज़ में नाराज़गी नहीं, बल्कि एक हल्की सी हैरानी और… उत्तेजना? चेहरा लाल था, आँखें चमक रही थीं।

मैंने झटके से हाथ पीछे खींचा, लंड अभी भी उनके हाथ में। ‘सॉरी चाची, मैं बहक गया था। मुझे माफ कर दीजिए! ये सब गलती से… नींद में…’ बातें बनाते हुए, शर्म से मर रहा था।

उन्होंने लंड को हल्का सा दबाया, फिर छोड़ा। ‘नहीं, जो काम अधूरा छोड़ दिया है, उसे पूरा करना पड़ेगा। लेकिन मेरे तरीके से!’ उनकी आवाज़ अब गहरी थी, आँखों में एक चमक। वो मुस्कुराईं, धीरे से।

मैं खुश हो गया। दिल में जैसे फूल खिल गए। ‘जी चाची, जैसा आप कहें।’

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तो उन्होंने अपनी टांगें फैलाईं – धीरे-धीरे, साड़ी ऊपर सरकाते हुए। पेटीकोट के नीचे कुछ नहीं पहना था। उनकी चूत नंगी, बालों वाली लेकिन साफ-सुथरी, होंठ गीले चमक रहे। ‘पहले मेरी चूत चाटो, चंचल। धीरे से, जीभ से सहलाओ।’ उनकी आवाज़ में हुक्म था, लेकिन कामुक।

मैंने बिना समय गंवाए काम पर लग गया। घुटनों पर बैठा, चेहरा उनकी जांघों के बीच। पहले नाक से सुँघा – मादक, नम गंध। फिर जीभ निकाली, होंठों पर लगाकर चूत के ऊपरी हिस्से पर फेरा। चाची सिहर उठीं, कमर हल्की सी ऊपर उठी। ‘अह्ह्ह… उमम्म… अम्मा…’ उनकी सिसकी कमरे में गूँजी। मैंने जीभ अंदर डाली, चूत के रस को चखा – खट्टा-मीठा। जीभ घुमाई, क्लिट पर दबाई। चाची के हाथ मेरे बालों में, दबा रही थीं। ‘रुकना मत चंचल… ओह अह्ह्ह… ऐसे ही… जीभ अंदर तक… उफ्फ्फ… हाँ…’ वो सिसक रही थीं, टांगें मेरे कंधों पर लिपट गईं। मैंने चूसना शुरू किया, होंठों को चूत पर चिपकाकर। उनकी चूत और गीली हो गई, रस बहने लगा। पाँच मिनट तक चाटता रहा, कभी जीभ तेज़, कभी धीमी। चाची की साँसें तेज़, ‘अम्म्मा… चंचल… तू तो कमाल है… ओह्ह्ह… चूत जल रही है…’ फिर उन्होंने मेरे सिर को ऊपर खींचा।

और फिर उन्होंने मेरे लंड को सहलाया – दोनों हाथों से, ऊपर-नीचे रगड़ते हुए। सुपारा पर उँगली फेरी। ‘तेरा सामान तो बड़ा तगड़ा है, चंचल। छह इंच का मोटा लंड… मुट्ठ मारते हो क्या रातों में?’ उनकी आँखें शरारती, मुस्कान।

मैंने शरमाते हुए कहा, ‘कभी-कभी… और तेल से मालिश भी करता हूँ। सोचता हूँ किसी को… लेकिन कभी सोचा नहीं आपको।’

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तो चाची ने कहा, ‘अब अपना लंड डालो लेकिन आराम से! जल्दी मत करना, पहली बार तो है न?’ उन्होंने मेरी कमर पकड़ी, करीब खींचा।

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मैंने उनकी साड़ी को कमर तक उठाया – धीरे से, किनारे समेटते हुए। पेटीकोट भी ऊपर किया। चूत नंगी, गीली। अपना लंड डालने लगा – सुपारा चूत पर रगड़ा, लेकिन कई बार कोशिश करने के बाद भी नहीं गया। फिसल रहा था, टेढ़ा हो रहा। घबराहट हुई।

चाची ने पूछा, ‘पहली बार है क्या?’ उनकी आवाज़ नरम, समझदार।

मैंने कहा, ‘हाँ…’ चेहरा शर्म से जल रहा था।

तो चाची हंसने लगीं – हल्की, प्यारी हँसी। ‘रुको, मैं सिखाती हूँ। घबराओ मत।’ फिर कहा, ‘जाओ, रसोई से सरसों का तेल लेकर आओ! जल्दी।’

मैं तेल लेकर आया – छोटी बोतल, पीली चिपचिपी। चाची ने अपने हाथों में तेल लिया, फिर मेरे लंड पर लगाया – धीरे-धीरे, पूरी लंबाई पर मालिश की। उँगलियाँ नसों पर फेरतीं, सुपारे पर घुमातीं। लंड और सख्त हो गया, चमकदार। ‘अच्छा लग रहा है न?’ उन्होंने पूछा, आँखों में चमक। फिर मुझसे कहा, ‘अब तुम मेरी चूत पर तेल लगाओ। अंदर तक उँगली डालकर।’

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मैंने वैसा ही किया। तेल हाथ में लिया, चूत पर पोता। होंठों को खोला, उँगली अंदर डाली – गर्म, चिपचिपी। दो उँगलियाँ घुमाईं, चाची सिसकीं, ‘उम्म्म… हाँ… ऐसे… गहरा…’ चूत तेल से चिकनी हो गई।

अब चाची ने अपनी दोनों टाँगें फैलाईं – चौड़ी, घुटने मोड़े। मेरे लंड को अपनी चूत पर टिका दिया, सुपारा क्लिट पर रगड़ा। ‘डालो अब! धीरे से, साँस रोककर।’ उनकी साँसें तेज़।

मैंने एक ही झटके में आधा लंड उनकी चूत में डाल दिया। तंग, गर्म, चूत ने लंड को चूसा। वो चीख पड़ीं, ‘अरे कमीने, आराम से डाल! रंडी नहीं हूँ मैं… ओह्ह्ह… दर्द हो रहा है…’ कमर हिलाई, लेकिन पीछे नहीं हटीं।

लेकिन मैंने उनकी बात को अनसुना कर दिया। उत्तेजना में आग लगी थी। धीरे-धीरे धक्के मारने लगा – पहले धीमे, आधा-आधा अंदर-बाहर। चूत तेल से चिकनी, लेकिन तंग। ‘चाची… कितनी टाइट है… उफ्फ…’ मैं सिसका। चाची की चुचियाँ साड़ी के ऊपर से उछल रही थीं। उन्होंने मेरी पीठ पर नाखून गाड़े, ‘धीरे… अह्ह्ह… हाँ… अब ठीक… ओह्ह्ह… लंड गर्म है…’ धीरे-धीरे स्पीड बढ़ी। मैंने पूरी तरह डाल दिया, छह इंच अंदर तक। चोदते हुए चूत की दीवारें महसूस हो रही थीं, रस बह रहा।

थोड़ी देर बाद उन्हें भी मज़ा आने लगा। वो कमर हिलाने लगीं, मेरे कूल्हों को पकड़कर। ‘हाँ चंचल… ऐसे ही… जोर से… अम्मा… चूत फाड़ दी… उफ्फ्फ…’ हमारी साँसें मिल रही थीं। मैंने पोज़िशन बदली – चाची को साइड पर लिटाया, एक टांग ऊपर उठाई, और पीछे से डाला। लंड सीधा अंदर गया, गहरा। ‘अह्ह्ह… चाची… आपकी चूत… स्वर्ग…’ धक्के तेज़, कमरे में ‘पच-पच’ की आवाज़। चाची सिसक रही थीं, ‘हाँ… पीछे से… गहरा… ओह्ह्ह… लंड मोटा… अम्म्मा…’ पसीना बह रहा था दोनों का, बिस्तर गीला।

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फिर फोरप्ले – मैंने चुचियाँ निकालीं साड़ी से, ब्लाउज खोला। निप्पल चूसे, काटे हल्के से। चाची हँसीं, ‘शरारती… चूस ले… दूध नहीं निकलेगा…’ उनके हाथ मेरे लंड पर, रगड़ते। फिर मैं नीचे आया, जांघों को चूमा, काटा। चूत पर फिर जीभ फेरी, लेकिन अब तेल मिक्स रस चाटा। चाची तड़पीं, ‘बस कर… अब डाल… सह न पा रही…’

करीब पंद्रह मिनट बाद, मैं झड़ गया – लंड फड़फड़ाया, गरम वीर्य चूत में भरा। उसी टाइम चाची भी झड़ चुकी थीं, चूत सिकुड़ रही थी, ‘अम्मा… आ गया… ओह्ह्ह… चंचल… भर दिया…’ हम दोनों पड़े रहे, साँसें तेज़।

अब जब भी मैं चाची के घर जाता, उनकी चुदाई जरूर करता। कभी किचन में, कभी बाथरूम में, धीरे-धीरे। और जब उनका मन करता, तो वो मुझे फोन करके बुला लेतीं – ‘आ जाओ चंचल, बच्चे सो गए।’ यह सिलसिला आज भी जारी है।

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