बूढ़े दादा के लंड से जवान पोती चुदी

मेरा नाम रिंकी है। मैं २१ साल की हूँ, कॉलेज में पढ़ती हूँ, और गाँव में अपनी हॉट, मॉडर्न लुक्स के लिए जानी जाती हूँ। मेरी गोरी चमड़ी, कंधों तक लहराते काले बाल, और ३४-२८-३४ की फिगर लड़कों को पागल कर देती है। मेरी चुचियाँ गोल, संतरे जैसी टाइट हैं, और गांड इतनी भरी हुई कि जीन्स में फटने को होती है। पर मुझे जवान लड़के बोर करते हैं। उनकी जल्दबाज़ी और अनुभव की कमी मुझे पसंद नहीं। मुझे बूढ़े मर्दों का तजुर्बा, उनकी गहरी नजरें, और उनका मोटा, तगड़ा लंड ज्यादा भाता है। मेरे दादा जी, रामलाल, ठीक ऐसे ही हैं। सत्तर साल के हैं, पर शरीर अभी भी कड़क। लंबा कद, सफेद दाढ़ी, और आँखों में एक ठरकी चमक। गाँव में सब उनके सूद के धंधे की वजह से इज्ज़त करते हैं। उनके पास पैसा है, और वो लड़कियों को गिफ्ट्स देकर पास बुलाते हैं। कोई शक नहीं करता, क्यूँकि “बूढ़ा आदमी तो ऐसा ही होता है”। पर मैं जानती हूँ, उनकी नजर जवान चूत पर रहती है।

मेरी चचेरी बहन पिंकी, २२ साल की, पतली कमर, बड़ी-बड़ी चुचियाँ, और हल्की गुलाबी चमड़ी वाली लड़की, दादा जी की पहली शिकार थी। उसने मुझे बताया था कि दादा जी ने उसकी चूत का उद्घाटन कैसे किया। मैं सुनकर हैरान थी, पर कहीं न कहीं मेरी चूत में भी गुदगुदी हुई। फिर मेरी बारी आई। मेरी जवानी देखकर दादा जी की आँखें चमक उठीं। एक दिन मौका मिला, और उनके बूढ़े लंड ने मेरी चूत की सील तोड़ दी। ये कहानी उसी रात की है, जो मेरे लिए एक सपने जैसी थी, पर इतनी वास्तविक कि मैं आज भी सिहर उठती हूँ।

बात उस दिन की है जब मम्मी-पापा मामा के घर गए थे। घर में सिर्फ मैं और दादा जी थे। मैं कॉलेज से लौटी, हाथ में दादा जी के लिए उनकी पसंदीदा जलेबी की डिब्बी थी। मैंने टाइट कुर्ती और लेगिंग्स पहनी थी, जो मेरी चुचियों और गांड को उभार रही थी। दादा जी की नजरें मेरे जिस्म पर टिक गईं। हमने जल्दी खाना खाया और उनके कमरे में बैठकर बातें करने लगे। कमरा पुराना था, लकड़ी की चारपाई, पुरानी अलमारी, और हल्की सी खट्टी-सी महक। दादा जी ने अपनी धोती और कुरता पहना था, पर उनकी छाती अभी भी चौड़ी थी, और बाहें मजबूत।

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वो अपनी सुहागरात की बातें करने लगे। “रिंकी, तेरी दादी सोलह की थी जब मेरी शादी हुई। उनकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड अंदर गया तो वो चीख पड़ी।” उनकी बातें सुनकर मेरी साँसें तेज हो गईं। वो लंड, चूत, चुदाई की बातें इतने आराम से कर रहे थे, जैसे चाय की चुस्की ले रहे हों। मैंने पूछा, “दादा जी, दादी की चुचियाँ कितनी बड़ी थीं?” वो ठहाका मारकर हँसे, “तेरी जितनी नहीं, पर टाइट थीं।” मैंने मज़ाक में कहा, “आपको मेरी चुचियों का साइज़ कैसे पता?” वो मेरे करीब सरक आए, मेरी छाती की तरफ देखते हुए बोले, “बेटी, तेरा कुर्ता तो सब बता रहा है। छूकर देखूँ तो पक्का बता दूँ।” मैं हँसी, पर मन में कुछ और चल रहा था।

उन्होंने मेरी चुचियों पर धीरे से हाथ रखा। उनकी खुरदरी हथेलियाँ मेरे नरम जिस्म पर रगड़ रही थीं। मैंने कुछ नहीं कहा, बस उनकी आँखों में देखा। उनकी नजरें भूखी थीं। मैंने पूछा, “दादा जी, दादी को गए तीस साल हो गए। आपको चुदाई का मन नहीं करता?” वो बोले, “क्यूँ नहीं, बेटी? मूठ मारता हूँ, पर वो मज़ा कहाँ?” मैंने जानबूझकर पूछा, “मूठ मतलब?” वो हँसे, “अरे, हस्तमैथुन। तू तो जानती है।” रात गहरी हो रही थी, और कमरे में सिर्फ हमारी साँसों की आवाज़ थी। मैंने पूछा, “दादा जी, आप कितनी उम्र तक चुदाई कर सकते हो?” वो जोश में आ गए, “मैं अभी भी जवान हूँ, रिंकी। मेरा लंड देखकर तेरी दादी डरती थी। इतना मोटा और लंबा है कि आज भी लड़के फेल हैं।”

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उनकी बातों से मेरी चूत गीली होने लगी। मैंने सोचा, क्यूँ ना आजमाया जाए? मैं उनके करीब गई और उनकी धोती के ऊपर से उनका लंड पकड़ लिया। वो सचमुच मोटा और सख्त था, जैसे लोहे की रॉड। मैंने कहा, “दादा जी, ये तो वाकई जवान है!” वो मुस्कुराए, “चाहिए क्या, बेटी?” मैंने हँसकर कहा, “क्यूँ नहीं!” और बस, खेल शुरू हो गया।

दादा जी चारपाई पर लेट गए, धोती खोल दी। उनका लंड तनकर खड़ा था। गुलाबी टोपा, उभरी नसें, और इतना मोटा कि मेरे हाथ में मुश्किल से आया। मैंने उसे सहलाया, फिर धीरे-धीरे मुँह में लिया। उसका नमकीन स्वाद मेरी जीभ पर फैल गया। दादा जी सिसकारियाँ ले रहे थे, “आह, रिंकी, तू तो कमाल है!” वो मेरी चुचियों को दबाने लगे, मेरे निप्पल्स को उंगलियों से मसलने लगे। मैंने अपनी कुर्ती उतारी, फिर ब्रा और लेगिंग्स भी। मेरी गुलाबी पैंटी गीली हो चुकी थी। मैंने वो भी उतार दी और नंगी हो गई।

दादा जी ने मुझे चारपाई पर लिटाया। उनकी जीभ मेरे पैरों से शुरू हुई, मेरे अंगूठों को चूसा, फिर जाँघों तक आए। मेरी चूत पर उनकी गर्म साँसें पड़ीं तो मैं सिहर उठी। वो मेरी चूत को चाटने लगे, उनकी जीभ मेरे दाने को सहला रही थी। मैं चिल्ला रही थी, “दादा जी, और चाटो! आह!” वो मेरी गांड को दबाते, मेरी चुचियों को मसलते, और चूत को चूसते रहे। मेरा जिस्म आग की तरह जल रहा था।

फिर उन्होंने मेरी गांड के नीचे तकिया रखा और अपने लंड को मेरी चूत पर रगड़ा। मैंने कहा, “धीरे, दादा जी, मेरी चूत टाइट है।” वो बोले, “चिंता मत कर, मैं संभाल लूँगा।” पहला झटका इतना जोर का था कि मैं चीख पड़ी। उनका लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर गया। दर्द से मेरी आँखें भर आईं, पर वो रुके नहीं। तीन-चार धक्कों में उनका पूरा लंड मेरी चूत में समा गया। मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “आह, दादा जी, धीरे!” वो मेरे गालों को चूमते हुए बोले, “बस, बेटी, अब मज़ा आएगा।”

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पाँच मिनट बाद दर्द कम हुआ, और मज़ा शुरू हो गया। दादा जी जोर-जोर से झटके मार रहे थे। उनकी हर धक्के में मेरी चूत गीली होती जा रही थी। मैं चिल्ला रही थी, “और जोर से, दादा जी! चोदो मुझे!” वो मेरी चुचियों को चूसते, मेरी गांड पर थप्पड़ मारते, और चोदते रहे। चारपाई चरमरा रही थी, और हमारी साँसें कमरे में गूँज रही थीं। मैंने उन्हें ऊपर खींचा और खुद उनके लंड पर चढ़ गई। उनके मोटे लंड पर उछलते हुए मेरी चुचियाँ हिल रही थीं। दादा जी मेरी गांड को थामकर मुझे और जोर से चोदने लगे।

रात भर चुदाई चलती रही। कभी मैं कुतिया बनी, तो कभी वो मुझे गोद में उठाकर चोदने लगे। उनकी ताकत देखकर मैं हैरान थी। सत्तर साल की उम्र में भी वो जवान लड़के को फेल कर रहे थे। सुबह तक मैं थक गई थी, पर मेरी चूत तृप्त थी। दादा जी ने मुझे दर्द भी दिया, मज़ा भी दिया। अब जब भी मम्मी-पापा घर से बाहर होते हैं, दादा जी मेरी चूत मारते हैं। वो मुझे नई-नई चुदाई की कहानियाँ सुनाते हैं, और मैं उनकी वासना में डूब जाती हूँ। उनका बूढ़ा लंड मेरी जवान चूत का मालिक बन चुका है।

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