हेलो दोस्तों, मेरा नाम पीयूष है। मैं गुड़गांव, हरियाणा का रहने वाला हूँ। उम्र 28 साल, कद 5 फीट 10 इंच, रंग गोरा, और बदन अच्छा-खासा फिट, क्योंकि मैं रोज़ जिम जाता हूँ। आज मैं आपको अपनी ज़िंदगी का एक ऐसा सच्चा अनुभव सुनाने जा रहा हूँ, जो मेरे लिए किसी जन्नत से कम नहीं था। ये कहानी उस वक्त की है, जब मैं करनाल, हरियाणा में रहता था। उस समय मेरी गर्लफ्रेंड शालिनी दिल्ली में एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में जॉब करती थी। शालिनी 26 साल की थी, स्लिम फिगर, 34-28-34 का, और उसका चेहरा इतना खूबसूरत कि कोई भी उसे देखकर पागल हो जाए। मैं अक्सर उसके साथ दिल्ली में उसके फ्लैट पर रहता था, और हम दोनों की सेक्स लाइफ भी काफी मस्त थी। लेकिन दोस्तों, ये कहानी शालिनी की नहीं, बल्कि एक ऐसी औरत की है, जिसने मेरी ज़िंदगी में आग लगा दी।
ये सर्दियों का मौसम था, जनवरी की ठंडी रात। दिल्ली से करनाल लौटते वक्त मैं अपनी कार चला रहा था। बाहर कोहरा इतना घना था कि रास्ता मुश्किल से दिख रहा था। मैंने हीटर ऑन कर रखा था, और कार में हल्का म्यूजिक बज रहा था। दिल्ली से कुछ किलोमीटर दूर एक सुनसान सड़क पर मैंने देखा कि एक बस खराब होकर खड़ी थी। आसपास कई लोग दूसरी बस का इंतज़ार कर रहे थे। तभी मेरी नज़र एक औरत पर पड़ी, जो बाकियों से थोड़ी अलग, अकेली सी खड़ी थी। उम्र करीब 30-32 साल, रंग गोरा, और फिगर ऐसा कि दिल धक-धक करने लगा। उसने लाल रंग का सलवार-सूट पहना था, ऊपर से काली जैकेट, लेकिन ठंड की वजह से वो थोड़ी परेशान दिख रही थी। मैंने हिम्मत जुटाई और कार रोककर उससे पूछा, “एक्सक्यूज़ मी, अगर आपको बुरा न लगे, तो क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ?”
उसने मेरी तरफ देखा, थोड़ा हिचकिचाई, फिर बोली, “हाँ जी, मुझे अंबाला जाना है। ये बस खराब हो गई, और दूसरी बस का पता नहीं कब आएगी।” उसकी आवाज़ में हल्की सी घबराहट थी, लेकिन चेहरा इतना खूबसूरत कि मैं उसे देखता ही रह गया। मैंने तुरंत मौके का फायदा उठाया और कहा, “अरे, मैं भी तो अंबाला ही जा रहा हूँ। अगर आप चाहें, तो मैं आपको वहाँ तक छोड़ सकता हूँ।”
वो थोड़ा सोच में पड़ गई। उसने इधर-उधर देखा, फिर बोली, “ऐसे किसी अंजान इंसान पर मैं कैसे भरोसा कर लूँ?” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “देखिए, भरोसा करना या न करना आपका हक है। मैंने आपको अकेले और परेशान देखा, इसलिए गाड़ी रोकी। वरना यहाँ तो ढेर सारे लोग खड़े हैं। वैसे, मेरा नाम पीयूष है, और मैं अंबाला में रहता हूँ।” मेरे इतना कहते ही वो थोड़ा हल्की हुई, लेकिन फिर भी खिड़की से दूर हट गई। मुझे लगा, शायद जा रही है। मैंने गाड़ी स्टार्ट कर ली, तभी उसकी आवाज़ आई, “अरे, मेरा बैग तो गाड़ी में रख दो!”
मेरे तो जैसे लड्डू फूट गए। मैं झट से उतरा, उसका बैग लिया, और पीछे वाली सीट पर रख दिया। वो गाड़ी में बैठ गई, और हम दिल्ली से अंबाला की तरफ चल पड़े। ठंड बहुत थी, इसलिए मैंने हीटर चालू रखा। उसने अपनी जैकेट की ज़िप खोली, और नीचे उसका गहरा गला वाला सलवार-सूट साफ दिख रहा था। उसके बूब्स, करीब 36 साइज़ के, इतने मस्त थे कि मेरा लंड पैंट में तन गया। मैंने हिम्मत करके पूछा, “वैसे, आपका नाम क्या है?”
उसने मुस्कुराते हुए कहा, “मेरा नाम रवीना है। मैं अपने पति को एयरपोर्ट छोड़ने आई थी। उनकी फ्लाइट लेट हो गई, इसलिए मुझे वक्त लग गया।” मैंने मौका देखकर बात आगे बढ़ाई, “अच्छा, तो आपके पति बाहर रहते हैं?” वो बोली, “हाँ, वो ज्यादातर बाहर ही रहते हैं। मैं घर पर अपनी सास, ससुर, और देवर के साथ रहती हूँ। हमारे बच्चे नहीं हैं, और मैं साल में ज्यादातर अकेली ही रहती हूँ।” उसकी आवाज़ में हल्की सी उदासी थी। मैंने पूछा, “शादी को कितना वक्त हो गया?” वो बोली, “6 साल।”
मैं: “6 साल, और अभी तक कोई बच्चा नहीं?”
रवीना: “नहीं, मेरे पति का अभी मन नहीं है।”
मैं: “और आपका?”
वो लंबी साँस लेकर बोली, “मेरे मन से क्या फर्क पड़ता है?” उसकी बातों से मुझे लगा कि वो अंदर से बहुत अकेली और उदास है। मैंने बात बदलते हुए कहा, “वैसे, अगर बुरा न मानें, तो एक बात बोलूँ? आप बहुत सुंदर हैं। आपका पति बहुत लकी है।”
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वो हल्के से हँसी और बोली, “हाँ, वो तो बहुत लकी है, लेकिन मेरी किस्मत? पता नहीं कब खुलेगी।”
मैं: “ऐसा क्यों बोल रही हैं?”
रवीना: “छोड़ो, तुम अपने बारे में कुछ बताओ।”
मैंने बताया, “मैं गुड़गांव में कंप्यूटर ऑपरेटर हूँ। और हाँ, एक बात और, इतने सालों बाद भी आपने अपने फिगर को इतना मेंटेन किया हुआ है, कमाल है। ज्यादातर औरतें तो शादी के बाद…” मैंने बात अधूरी छोड़ दी।
वो हँसते हुए बोली, “अच्छा? ऐसा क्यों लगा आपको?”
मैं: “सच कहूँ, जब आपने जैकेट की ज़िप खोली, तो मेरी नज़र…” मैंने हँसते हुए बात काट दी।
रवीना ने तुरंत मेरी बात काटी, “हाँ, मुझे पता है, हर लड़के की नज़र सबसे पहले वहीँ जाती है।” वो हँसने लगी और बोली, “मुझे दिनभर कोई काम थोड़े ही है, बस अपने शरीर को संभालती रहती हूँ।”
मैं: “वैसे, अगर आप मेरी पत्नी होतीं, तो मैं आपका पूरा ख्याल रखता।”
रवीना: “हाँ, लेकिन जिसके पास जो होता है, वो उसकी कदर नहीं करता।”
मैं: “हम तो करते हैं। अगर चाहो, तो कभी आज़मा कर देख लो।”
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वो हँसते हुए बोली, “मुझे क्या आज़माना? जो तुम्हारी बीवी आएगी, वही तुम्हें आज़माएगी।”
मैं: “हाँ, वो तो आज़माएगी, लेकिन आप जैसी हॉट बीवी हो, तो कसम से मज़ा आ जाए।”
रवीना: “हॉट? सच में? लेकिन अब मुझे बुरा लगने लगा है।”
मैं: “अरे, माफ करना, मेरा मतलब सुंदर था।”
रवीना: “क्यों, सिर्फ हॉट? और कुछ नहीं?”
मैं: “हॉट भी, सुंदर भी, और सेक्सी भी।” मैंने हँसते हुए कहा।
वो मेरी बात काटते हुए बोली, “इतना बच्चों जैसा क्यों बोल रहे हो? मुझे पता है मैं सेक्सी और हॉट हूँ। जब बाहर निकलती हूँ, तो पड़ोस के सारे लड़के मुझे घूरते हैं।”
मैं: “सच में, आप इतनी सेक्सी हैं कि आपके साथ सेक्स करने वाला बहुत लकी होगा।” ये बोलते ही मुझे लगा कि मैंने कुछ ज़्यादा बोल दिया। मैं तुरंत बोला, “प्लीज़, माफ करना, मैं अपने आपको रोक नहीं पाया।”
रवीना: “कोई बात नहीं, होता है।”
फिर हम दोनों चुप हो गए। बाहर कोहरा और गहरा हो गया था। रास्ता अब मुश्किल से दिख रहा था। मैंने गाड़ी की स्पीड कम कर दी। तभी एक गाड़ी तेज़ी से हमारे पास से निकली और अचानक आगे वाली गाड़ी से टकरा गई। मैंने तुरंत अपनी गाड़ी रोक दी।
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रवीना: “ये क्या हुआ?”
मैं: “शायद कोहरे की वजह से टक्कर हो गई।”
रवीना: “तो हमारा भी एक्सीडेंट हो सकता है?”
मैं: “हाँ, डर तो है। चलो, पानीपत तक पहुंचते हैं। अगर कोहरा कम हुआ, तो आगे चलेंगे, वरना किसी होटल में रुक जाएँगे।”
रवीना: “होटल में? वो भी एक पराए मर्द के साथ?”
मैं: “अरे, अब मैं पराया मर्द कहाँ? इतनी देर से तो बात कर रहे हैं।”
वो हँसते हुए बोली, “मज़ाक कर रही थी। चलो, होटल ढूँढते हैं। रात के 10:30 बज गए हैं।”
मैंने गाड़ी धीरे-धीरे चलाई, और करीब 30 मिनट बाद हम पानीपत पहुँच गए। रवीना की जैकेट की ज़िप अब और नीचे थी, और उसके बूब्स का नज़ारा मेरे लंड को पागल कर रहा था। वो मेरे तने हुए लंड को देखकर बार-बार मुस्कुरा रही थी। पानीपत में कोहरा थोड़ा कम था। मैंने कहा, “थैंक गॉड, हम पानीपत तो पहुँच गए।”
रवीना: “हाँ, मुझे बहुत नींद आ रही है। जल्दी कोई अच्छा सा होटल ढूँढो।”
मैंने एक ठीक-ठाक होटल देखकर गाड़ी पार्क की और कहा, “हमें दो कमरे लेने होंगे न?”
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रवीना: “नहीं, एक ही कमरा लेंगे। तेरा पेट्रोल का खर्चा भी तो हुआ है। रूम का किराया मैं दे दूँगी।”
मैं: “हाँ, लेकिन एक पराए मर्द के साथ रात गुज़ारनी पड़ेगी।” मैंने हँसते हुए कहा।
वो भी हँसी और बोली, “हाँ, ठीक है।”
हमने एक कमरा बुक किया और खाने का ऑर्डर दिया। रवीना फ्रेश होने बाथरूम गई। जब वो वापस आई, तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसने ब्रा और पैंटी उतार दी थी, और सिर्फ पतला सा सलवार-सूट पहना था, जिसमें उसके निप्पल साफ चमक रहे थे। 36 साइज़ के बूब्स इतने टाइट और मस्त थे कि मेरा लंड पैंट में उछलने लगा।
रवीना: “जाओ, तुम भी फ्रेश हो जाओ। तब तक खाना आ जाएगा।”
मैं बाथरूम गया। वहाँ उसकी ब्रा और पैंटी लटक रही थी। मैंने उसकी पैंटी सूँघी, और मेरा लंड और सख्त हो गया। मैंने मुठ मारना शुरू कर दिया, लेकिन तभी रवीना की आवाज़ आई, “खाना आ गया, जल्दी बाहर आओ। मुझे भूख लगी है।” मैं रुक गया, जल्दी से फ्रेश हुआ, और सिर्फ लोअर पहनकर बाहर आ गया।
रवीना: “क्या बात है? अंदर इतना टाइम क्यों लगा? ज़्यादा गरम तो नहीं हो गए?” वो हँसने लगी।
मैं: “नहीं, बस पानी ठंडा था।”
वो समझ गई थी कि मैं क्या कर रहा था। वो फिर मुस्कुराई और बोली, “चलो, खाना खाते हैं।”
मैं: “तुम्हें भूख थी, तो खा लेती।”
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रवीना: “अरे, मैं रोज़ अकेले खाती हूँ। किसी के साथ खाने का मौका कम ही मिलता है।”
हम दोनों बेड पर बैठ गए, रज़ाई ओढ़ी, और आमने-सामने खाना खाने लगे। मैं खाते-खाते उसके बूब्स को घूर रहा था। वो इतने मुलायम और बड़े थे कि मेरा लंड बार-बार तन रहा था। तभी वो बोली, “इनको देखने से पेट नहीं भरेगा। पहले खाना खा लो।”
मैंने हँसते हुए कह दिया, “अगर देखने से पेट नहीं भरेगा, तो एक बार चूसने दो। इनका दूध पीकर पेट भर जाएगा।” ये सुनते ही वो गुस्से से मुझे घूरने लगी और वॉशरूम चली गई। मुझे लगा, शायद रोने लगी होगी। लेकिन वो कुल्ला करके वापस आई और गुस्से में बोली, “जल्दी खाना खाओ, मुझे सोना है।”
मैंने चुपचाप खाना खत्म किया और बर्तन टेबल पर रख दिए। जैसे ही मैं मुड़ा, वो मेरे सामने खड़ी थी। मेरी आँखों में आँखें डालकर बोली, “क्या कह रहा था? चूसने दो?” उसने मेरे बाल पकड़े और खींचते हुए बोली, “चूसेगा क्या इनको? बोल अब!” मैं डर गया और बोला, “नहीं, आप बुरा मान गईं। मेरा वो मतलब नहीं था।”
रवीना: “हाँ, और बोल, क्या मतलब था तेरा?”
मुझे गुस्सा आ गया। मैंने ज़ोर से कहा, “हाँ, चूसूँगा, अगर तुम चूसने दोगी तो।”
उसने मेरे बाल खींचकर मेरा मुँह अपने बूब्स के बीच दबा दिया और बोली, “ले, चूस इनको!” मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। मैंने उसके बूब्स को दोनों हाथों से पकड़ा और ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा। उसका सूट ऊपर उठाकर मैंने एक बूब बाहर निकाला और चूसना शुरू कर दिया। दूसरा बूब मैं दबा रहा था। “आह्ह्ह… उफ्फ्फ… पीयूष, थोड़ा धीरे,” वो सिसकने लगी। उसके बूब्स इतने मुलायम थे, जैसे रूई के गोले। 36 साइज़ के, गोल, और निप्पल गुलाबी। मैंने निप्पल को दाँतों से हल्का सा काटा, तो वो चिहुंक पड़ी, “उईई… धीरे, कुत्ते!”
मैंने उसका सूट पूरा उतार दिया। अब वो सिर्फ सलवार में थी। मैंने उसके निप्पल को चूसना और काटना जारी रखा। वो सिसकियाँ ले रही थी, “आह्ह्ह… उफ्फ्फ… और ज़ोर से दबा… पी जा मेरा दूध… उईईई!” मैंने एक बूब को चूसते हुए दूसरे को इतना ज़ोर से दबाया कि वो चीख पड़ी। मेरा लंड अब पैंट फाड़ने को तैयार था। तभी उसने मेरे लोअर में हाथ डाला और मेरे आंड को इतनी ज़ोर से पकड़ा कि मैं चीख पड़ा, “आह्ह… ये क्या!”
रवीना: “चुप रह, मादरचोद! चोदना है मुझे, या सो जाएगा?”
मैं: “चोदना है, यार!”
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उसने मेरे लोअर को नीचे खींचा, और मैंने उसे पैरों से उतार दिया। वो मेरे आंड को खींचते हुए मुझे बेड तक ले गई और बोली, “वाह, तेरा लंड तो मस्त है। मेरे पति से बड़ा और मोटा।” उसने मेरे आंड पर थप्पड़ मारा, और मैं कराह उठा, “आह्ह… ये क्या कर रही हो?”
रवीना: “चुप रह! मुझे चोदना है, तो लेटा रह।” उसने मेरे आंड को चूसना शुरू किया और लंड को हाथ से हिलाने लगी। फिर अचानक उसने मेरे आंड को दाँतों से काट लिया। मैं चीखा, “उफ्फ्फ… धीरे!” लेकिन वो नहीं रुकी। वो मेरे लंड को थप्पड़ मारने लगी, और कुछ ही देर में मेरा वीर्य बाहर निकल गया। वो मेरे पेट पर गिरा, और वो उसे चाटने लगी। मैं हैरान था कि ये औरत इतनी जंगली कैसे हो सकती है। फिर वो मेरे ऊपर आई और मेरे होंठ चूसने लगी। मुझे अपने ही वीर्य का स्वाद अजीब लगा, लेकिन दो मिनट बाद सब ठीक हो गया। हम 10 मिनट तक एक-दूसरे की जीभ चूसते रहे।
मैंने उसे नीचे किया और उसकी गर्दन से लेकर चूत तक चूमता हुआ पहुँच गया। उसकी चूत साफ और गीली थी। मैंने जीभ से चाटना शुरू किया। “आह्ह्ह… उफ्फ्फ… पीयूष, और चाट… उईईई!” वो सिसक रही थी। मैंने अपना लंड उसके मुँह के पास किया, और वो उसे चूसने लगी। हम 69 की पोजीशन में आ गए। तभी उसने मेरी गांड में उंगली डाल दी। मैं चौंक गया, लेकिन मेरा लंड और सख्त हो गया। मैंने भी उसकी गांड में उंगली डाली, और वो चीख पड़ी, “आह्ह… मादरचोद, और कर!”
मैंने उसे उठाया, उसके होंठ चूसे, और उसकी चूत पर ढेर सारा थूक लगाया। उसके पैर कंधों पर रखकर मैंने अपना 7 इंच का लंड एक झटके में उसकी चूत में डाल दिया। “आह्ह्ह… उईईई… मादरचोद, धीरे! तेरा लंड बहुत बड़ा है… उफ्फ्फ… मैं मर जाऊँगी!” वो चीख रही थी। मैंने एक और ज़ोरदार झटका मारा। वो कराह रही थी, “प्लीज़, थोड़ा धीरे… आह्ह… उईई!”
मैंने उसकी चूत को धीरे-धीरे चोदना शुरू किया और साथ में उसके बूब्स दबाने लगा। उसकी सिसकियाँ तेज़ हो गईं, “आह्ह्ह… पीयूष, और ज़ोर से… मुझे गर्भवती कर दे… उफ्फ्फ… मेरा पति तो चूतिया है… उसका 4 इंच का लंड क्या खाक चोदेगा!” मैंने पूछा, “तेरी चूत इतनी टाइट कैसे?” वो बोली, “आह्ह… स्स्स… चोदो मुझे… मैं तुमसे गर्भवती होना चाहती हूँ… और ज़ोर से!”
मैंने स्पीड बढ़ाई। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड फंस रहा था। “उफ्फ्फ… तेरी चूत तो जन्नत है… आह्ह!” मैंने धक्के तेज़ किए। वो चीख रही थी, “आह्ह्ह… और तेज़… मैं झड़ने वाली हूँ… उईईई!” दो मिनट बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए और एक-दूसरे से लिपट गए। 20 मिनट की चुदाई के बाद हम थककर लेट गए।
थोड़ी देर बाद रवीना ने मेरा लंड फिर से चूसना शुरू किया। वो बोली, “आजा, मेरे कुत्ते, इस कुतिया को चोद!” मैंने उसे उठाया, उसके पैरों से मेरी कमर पकड़वाई, और हवा में चोदना शुरू किया। “आह्ह्ह… उफ्फ्फ… पीयूष, और ज़ोर से… काश तू मेरा पति होता!” वो मेरे होंठ चूस रही थी। मैंने उसे दीवार के सहारे लगाया और 15 मिनट तक चोदता रहा। उसकी चूत से रस टपक रहा था। “आह्ह… और चोद… मेरी चूत फाड़ दे!” वो चीख रही थी।
मैं झड़ने वाला था। मैंने उसे बेड पर लिटाया और उसकी चूत में हल्के-हल्के धक्के देकर झड़ गया। वो बोली, “आह्ह… पीयूष, मुझे गर्भवती बना दे… मुझे तेरा बच्चा चाहिए!” मैं थक गया था, लेकिन वो बोली, “क्या थक गया? ऐसी गांड रोज़ मिलती है क्या? अभी तो मेरी गांड बाकी है।”
वो मेरे लंड को चूसने लगी। फिर उसने अपने पर्स से वोड्का का हाफ निकाला और नीट पीने लगी। मैंने पूछा, “ये क्या?” वो बोली, “तुझे भी पिलाऊँगी।” उसने अपने मुँह में वोड्का भरा और मेरे मुँह में डाल दिया। हमने पूरा हाफ पी लिया। उसने मेरे लंड पर वोड्का डाला और चूसने लगी। फिर उसने मेरी गांड में उंगली डाली। मैं बोला, “गांड मारनी है, या मरवानी है?”
रवीना: “तेरी गांड नहीं मारूँगी। तू मेरी मार।”
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मैंने उसे झुकाया, उसकी गांड चाटी, और थूक से चिकनी की। मेरा लंड उसकी टाइट गांड में धीरे-धीरे डाला। “आह्ह्ह… उफ्फ्फ… धीरे, मादरचोद!” वो कराह रही थी। मैंने स्पीड बढ़ाई। उसकी गांड इतनी टाइट थी कि मेरा लंड कट गया, लेकिन नशे में मज़ा दोगुना था। “आह्ह… मेरी वर्जिन गांड चोद… उईईई!” वो सिसक रही थी। मैंने उसके बाल पकड़े, होंठ चूसे, और चूतड़ों पर थप्पड़ मारे। आधे घंटे बाद मैं उसकी गांड में झड़ गया और उसके ऊपर गिर गया। हम बात करते-करते सो गए।
सुबह हमने नहाते हुए एक बार फिर सेक्स किया। फिर नाश्ता करके अंबाला के लिए निकल गए। उसके घर पहुँचकर वो कॉफी बनाने लगी। मैंने उसे पीछे से हग किया और उसके बूब्स दबाए। वो बोली, “कल रात तो खूब खेला, अभी भी मन नहीं भरा?”
मैं: “ऐसी चीज़ों से मन कहाँ भरता है?”
वो हँसी और बोली, “अगले हफ्ते फिर से 6-7 बार तेरी गर्मी निकालूँगी।”
मैंने उसका नंबर लिया और चला गया। अगले हफ्ते फिर उसकी चुदाई हुई, और हफ्ते में 2-3 बार तो होती ही थी। कुछ महीनों बाद वो मेरे दो बच्चों की माँ बन गई। अब भी जब मौका मिलता है, मैं उसकी चुदाई ज़रूर करता हूँ।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी? क्या आपने भी कभी ऐसी चुदाई का मज़ा लिया है? कमेंट में ज़रूर बताएँ!
Very nice story, bahut acha , kash aisi koi bhabhi hamko bhi mile , maza aa gaya bhai
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