मेरा नाम अनिल है, और मैं रोहतक, हरियाणा का रहने वाला हूँ। मेरी औरतों के कपड़ों की दुकान है, जो शहर के मुख्य बाज़ार में अच्छा चलती है। पंद्रह साल पहले मेरी ज़िंदगी में एक तूफान आया, जब मेरी बीवी को बीमारी ने छीन लिया। उस वक़्त मेरी बेटी शालू सिर्फ़ चार साल की थी। दिल टूट गया था, और मन में डर था कि शालू का ख्याल कौन रखेगा। रिश्तेदारों ने सलाह दी कि उसे उसकी नानी के गाँव भेज दूँ, पर मैं नहीं माना। मैं चाहता था कि मेरी बेटी शहर के अच्छे स्कूल में पढ़े, और आखिरकार मैंने उसे अपने पास रखने का फैसला किया।
मैंने एक कामवाली रखी, जो खाना बनाती और घर का काम संभालती। मैं अपनी दुकान पर दिन-रात मेहनत करता, ताकि शालू को हर सुख दे सकूँ। समय बीतता गया, और शालू अब 19 साल की हो चुकी थी। उसका कॉलेज में नया दाखिला हुआ था। स्कूल के दिनों तक मेरे मन में शालू के लिए कोई गलत ख्याल नहीं था। वो मेरी बेटी थी, मेरा गर्व। लेकिन जब वो बारहवीं के आखिरी साल में थी, तब उसके जिस्म में बदलाव आने लगे। उसके सीने का उभार इतना बढ़ गया कि जब वो घर पर सलवार-सूट पहनती, तो उसकी गहरी गलियाँ साफ़ दिखतीं। मुझे लगता था कि वो भी ये बात समझती थी। कई बार वो जानबूझकर ऐसे कपड़े पहनती, जिनमें उसका फिगर और उभर कर सामने आता।
कॉलेज में दाखिले के वक़्त उसका फिगर और निखर गया। उसकी पतली कमर, भरे हुए उभार, और पीछे का गोलापन ऐसा था कि कोई भी मर्द उसकी ओर देखे बिना न रह सके। शालू न सिर्फ़ खूबसूरत थी, बल्कि समझदार भी हो गई थी। वो घर का सारा काम संभालने लगी थी—खाना बनाना, घर की सफाई, और मेरे कपड़े तक तैयार करना। वो मेरे साथ खुलकर बातें करती, और मैं उसकी हर बात में अपनी बीवी की छवि देखता।
एक रविवार की सुबह, मैं दुकान जाने की तैयारी कर रहा था। शालू फर्श पर पोंछा लगा रही थी। उसने टाइट सलवार-सूट पहना था, जिसमें उसके गोल-मटोल, गोरे उभार बाहर निकलने को बेताब थे। उसने ब्रा नहीं पहनी थी, और सलवार को नीचे से मोड़कर ऊपर किया था, जिससे उसकी चिकनी, गोरी टाँगें नज़र आ रही थीं। उसकी हर हरकत में एक अजीब-सी कशिश थी। मुझे देखते ही वो चौंक गई और जल्दी से सूट ठीक करने लगी। शायद उसे लगा था कि मैं पहले ही दुकान चला गया हूँ। सूट टाइट होने की वजह से उसे ठीक करने में दिक्कत हो रही थी। मैंने कुछ नहीं कहा और दुकान के लिए निकल गया, लेकिन मेरा दिमाग उसी दृश्य में अटक गया।
शाम को जब मैं घर लौटा, शालू खाना बना रही थी। उसने अब अपनी माँ का ढीला-ढाला सूट पहना था, जो उसकी माँ का पसंदीदा था। उसका रंग हल्का गुलाबी था, और नेकलाइन इतनी गहरी कि उसकी गोरी त्वचा चमक रही थी। हम दोनों ज़मीन पर बैठकर खाना खाते थे। जब वो खाना परोसने के लिए झुकी, तो सूट की गहरी नेकलाइन से उसके भरे हुए उभार साफ़ दिखे। उनका आकार इतना भरा हुआ था कि मेरी नज़रें वहीं अटक गईं। कसम से, मेरा लंड तुरंत खड़ा हो गया। पिछले पंद्रह सालों में मुझे ऐसा जुनून कभी नहीं हुआ, जैसा उस पल शालू को देखकर हुआ। वो अपनी माँ से भी ज़्यादा कामुक लग रही थी। मैंने सोचा, अगर एक झलक ने ये हाल कर दिया, तो उसे बाहों में भरने का मज़ा क्या होगा?
खाना खाने के बाद, मैंने उसे मेरे कमरे में बुलाया। वो थोड़ा हिचक रही थी, शायद उसे भी कुछ अहसास हो रहा था। उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी, और उसकी साँसें थोड़ी तेज़ थीं। जैसे ही वो कमरे में आई, छत से कुछ आवाज़ आई। खिड़की से देखा, तो बाहर आँधी चल रही थी, और बारिश होने वाली थी। शालू ने बताया कि छत पर कपड़े सूख रहे हैं। हम दोनों जल्दी से कपड़े लेने ऊपर चले गए। छत पर घुप्प अंधेरा था, और हमारी छत काफ़ी बड़ी थी। शालू को अंधेरे से डर लगता था, इसलिए वो मेरे बिल्कुल पास-पास थी। उसके गर्म उभार मेरी कमर से बार-बार टकरा रहे थे, और मेरा जिस्म गर्म होने लगा। कपड़ों में उसकी ब्रा और पैंटी भी थीं, जो अब उसके साइज़ से छोटी हो चुकी थीं। उनकी लेस और रंग मेरे हाथों में महसूस हो रहे थे। कपड़े लेकर जब हम नीचे आए, तो उसने मेरे हाथ से अपनी ब्रा छीनकर अलमारी में रख दी। उसका चेहरा लाल था, और वो मेरी नज़रों से बच रही थी।
हम मेरे कमरे में लौट आए। मैंने देखा कि वो अब काफ़ी गर्म हो चुकी थी। उसकी साँसें तेज़ थीं, और उसका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। मैंने उससे पूछा, “शालू, तूने अपनी मम्मी का सूट क्यों पहना?” वो बोली, “पापा, मेरे सारे सूट भीग गए हैं, और अंडरगारमेंट्स भी।” अंडरगारमेंट्स का ज़िक्र सुनकर मैं चौंक गया, लेकिन खुशी भी हुई कि वो मुझसे इतनी खुलकर बात कर रही थी। आखिर मैं ही उसका सबकुछ था—पिता भी, और उसकी माँ की जगह भी। मैंने कहा, “शालू, ऐसे टाइट कपड़े मत पहना कर, जिनमें तुझे तकलीफ हो।” वो समझ गई कि मैं सुबह की बात का ज़िक्र कर रहा हूँ। मैंने आगे कहा, “मैं तेरे लिए नए सूट सिलवा दूँगा। घर पर अपनी मम्मी के सूट पहन, लेकिन अंडरगारमेंट्स ज़रूर पहना कर, कोई भी आ सकता है।”
वो भोली आवाज़ में बोली, “पापा, आपके सिवा और कौन आएगा?” उसका लहजा ऐसा था, जैसे वो कह रही हो कि मैं उसके जिस्म को देख सकता हूँ। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा, लेकिन मैंने जल्दबाज़ी नहीं की। समझदारी से कहा, “जैसी तेरी मर्ज़ी।” अब वो शरारती मूड में आ चुकी थी। उसने कहा, “पापा, मम्मी के बारे में कुछ बताओ ना।” मैंने मना किया, लेकिन वो ज़िद करने लगी। बोली, “जब तक नहीं बताओगे, मैं यहीं रहूँगी।” मैंने हार मान ली और कहा, “तेरी मम्मी मुझे बहुत प्यार करती थी। मेरी हर बात मानती थी, घर का सारा काम करती थी, मेरी टाँगें दबाती थी, और जब कमर दर्द करती, तो वो भी।”
वो तपाक से बोली, “पापा, मैं भी आपकी टाँगें दबाऊँगी।” मैंने कहा, “नहीं, लड़कियाँ ऐसा नहीं करतीं।” तो वो बोली, “तो कमर ही दबाने दो।” मैंने कहा, “कल दबाना।” वो मान गई और अपने कमरे में सोने चली गई। कसम से, उस रात मेरा दिल कर रहा था कि अपनी बेटी को अभी बाहों में भर लूँ, लेकिन मैंने खुद को रोका। सोचा, थोड़ा इंतज़ार और करूँगा। उस रात के बाद सबकुछ बदल गया।
अगले कुछ दिन शालू और मेरे बीच एक अजीब-सी खामोश तनाव था। वो जानबूझकर मेरे आसपास ज़्यादा रहती। कभी मेरे लिए चाय बनाती, तो कभी मेरे कपड़े प्रेस करती। उसकी हर हरकत में एक छिपा हुआ न्योता था। एक शाम, मैं दुकान से थककर लौटा। बाहर बारिश हो रही थी, और घर में सिर्फ़ हम दोनों थे। कामवाली छुट्टी पर थी। शालू ने मेरे लिए खाना बनाया था—पसंदीदा आलू-पराठे और दही। उसने एक पतला, गीला सलवार-सूट पहना था, जो बारिश में भीगने की वजह से उसके जिस्म से चिपक गया था। उसके उभार साफ़ नज़र आ रहे थे, और उसने जानबूझकर दुपट्टा नहीं लिया था।
खाना खाते वक़्त वो बार-बार मेरी तरफ देख रही थी। मैंने कहा, “शालू, तू इतना काम क्यों करती है? आराम भी कर लिया कर।” वो मुस्कुराई और बोली, “पापा, आप मेरी इतनी फिक्र करते हो, तो मैं आपकी क्यों न करूँ?” उसकी बातों में एक अजीब-सी मिठास थी। खाना खत्म होने के बाद, वो मेरे पास बैठ गई और बोली, “पापा, आपकी कमर दर्द कर रही होगी ना? दुकान पर सारा दिन खड़े रहते हो। लेट जाओ, मैं दबा देती हूँ।” मैंने मना किया, लेकिन वो नहीं मानी। बोली, “पापा, आपने कहा था कि मम्मी आपकी कमर दबाती थी। अब मैं हूँ ना।”
मैं बिस्तर पर लेट गया। शालू मेरे पास बैठी और मेरी कमर दबाने लगी। उसका स्पर्श गर्म था, और मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ रही थी। उसने धीरे-धीरे अपने हाथ मेरी पीठ पर फिराए, और फिर मेरी जाँघों की तरफ बढ़ने लगी। मैंने कहा, “शालू, बस कर।” लेकिन मेरी आवाज़ में वो ताकत नहीं थी। वो हँसी और बोली, “पापा, आप तो शरमा रहे हो।” उसका लहजा शरारती था। तभी अचानक बिजली चली गई, और कमरा अंधेरे में डूब गया। बाहर बारिश की आवाज़ तेज़ हो रही थी।
शालू डर के मारे मेरे और करीब आ गई। उसका जिस्म मेरे जिस्म से सट गया, और उसके उभार मेरी छाती पर दब रहे थे। मैंने कहा, “शालू, मोमबत्ती ला।” वो बोली, “पापा, मुझे डर लग रहा है। आप मेरे साथ चलो।” हम दोनों रसोई की तरफ गए, लेकिन अंधेरे में उसका हाथ मेरे हाथ से बार-बार टकरा रहा था। मोमबत्ती जलाने के बाद हम कमरे में लौटे। अब वो मेरे बिल्कुल पास बैठी थी। उसने कहा, “पापा, आज रात मैं आपके पास सो जाऊँ? बारिश की वजह से डर लग रहा है।”
मेरा दिमाग कह रहा था कि ये गलत है, लेकिन मेरा जिस्म उसकी गर्मी को महसूस कर रहा था। मैंने हाँ में सिर हिलाया। वो मेरे बगल में लेट गई। उसका सूट गीला होने की वजह से उसकी त्वचा साफ़ दिख रही थी। मोमबत्ती की रोशनी में उसका चेहरा और कामुक लग रहा था। मैंने कहा, “शालू, कपड़े बदल ले, नहीं तो बीमार पड़ जाएगी।” वो हँसी और बोली, “पापा, अब क्या छिपाना। आपने तो सब देख लिया।” उसकी बात सुनकर मेरा लंड और सख्त हो गया।
वो उठी और मेरे सामने ही अपना सूट उतारने लगी। उसने धीरे-धीरे सलवार का नाड़ा खोला, और वो नीचे सरक गई। उसकी गोरी जाँघें चमक रही थीं। फिर उसने सूट ऊपर खींचा, और उसके भरे हुए उभार बाहर आ गए। उसने ब्रा नहीं पहनी थी, और उसके गुलाबी निप्पल सख्त हो चुके थे। मैंने कहा, “शालू, ये क्या कर रही है?” वो मेरे पास आई और बोली, “पापा, मैं जानती हूँ आप अकेले हो। मम्मी के जाने के बाद आपने कभी किसी को नहीं देखा। मैं आपकी बेटी हूँ, लेकिन आपकी हर ज़रूरत पूरी करना मेरा फर्ज़ है।”
उसकी बातों ने मेरे सारे बंधन तोड़ दिए। मैंने उसे अपनी बाहों में खींच लिया। उसका गर्म जिस्म मेरे जिस्म से सट गया। मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, और वो भी मेरे साथ बहने लगी। उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी, और उसकी साँसें मेरे चेहरे पर गर्म हवा की तरह महसूस हो रही थीं। मैंने उसके उभारों को अपने हाथों में लिया और धीरे-धीरे दबाया। वो सिसकारी, “आह… पापा…” उसकी आवाज़ में वासना और प्यार दोनों थे।
मैंने उसका सूट पूरी तरह उतार दिया। अब वो सिर्फ़ पैंटी में थी। उसकी चूत की हल्की-सी झलक पैंटी के ऊपर से दिख रही थी। मैंने उसकी पैंटी पर हाथ फेरा, और वो गीली हो चुकी थी। मैंने धीरे से उसकी पैंटी उतारी। उसकी चूत गुलाबी थी, और हल्के-हल्के बाल उसकी खूबसूरती बढ़ा रहे थे। मैंने अपना मुँह उसकी चूत पर रखा और जीभ से चाटना शुरू किया। उसका स्वाद नमकीन और मीठा था। वो सिसकार रही थी, “पापा… आह… और करो…” उसने मेरा सिर अपनी चूत पर दबा लिया। मैंने उसकी चूत को तब तक चाटा, जब तक वो काँपते हुए झड़ नहीं गई। उसका पानी मेरे मुँह में था, और मैंने उसे चख लिया।
तभी अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई। हम दोनों चौंक गए। बिजली अभी भी नहीं आई थी, और बारिश तेज़ हो रही थी। मैंने जल्दी से कपड़े पहने और दरवाज़ा खोला। पड़ोस की आंटी थीं, जो बारिश में भीगकर कुछ सामान माँगने आई थीं। मैंने जल्दी से सामान दिया और उन्हें भेज दिया। शालू ने तब तक अपने कपड़े ठीक कर लिए थे, लेकिन उसकी आँखों में वही भूख थी।
दरवाज़ा बंद करते ही वो फिर मेरे पास आई। उसने मेरी शर्ट उतारी और मेरी छाती पर kisses करने लगी। उसकी जीभ मेरे निप्पल्स पर घूम रही थी, और मेरा लंड पैंट में तंबू बना रहा था। उसने मेरी पैंट खोली और मेरा लंड बाहर निकाला। वो बोली, “पापा, ये कितना बड़ा है…” उसने मेरे लंड को अपने नाज़ुक हाथों में लिया और धीरे-धीरे हिलाने लगी। फिर उसने अपना मुँह खोला और मेरे लंड का सुपारा चूसना शुरू किया। उसकी गर्म जीभ मेरे लंड पर जादू कर रही थी। मैं सिसकारी, “शालू… और चूस…” वो तेज़ी से चूसने लगी, और उसका मुँह मेरे लंड को पूरा निगल रहा था।
मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया और उसकी टाँगें फैलाईं। उसकी चूत अभी भी गीली थी। मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ा। वो बोली, “पापा, अब और मत तड़पाओ… डाल दो…” मैंने धीरे से अपने लंड का सुपारा उसकी चूत में डाला। वो टाइट थी, और उसकी चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी। मैंने धीरे-धीरे धक्का मारा, और मेरा आधा लंड अंदर चला गया। वो चीखी, “आह… पापा… दर्द हो रहा है…” मैं रुक गया और उसके होंठों को चूमने लगा। उसका दर्द कम होने के बाद मैंने फिर धक्का मारा, और इस बार मेरा पूरा लंड उसकी चूत में समा गया।
मैंने धीरे-धीरे धक्के मारना शुरू किया। उसकी चूत गर्म और गीली थी, और हर धक्के के साथ उसकी सिसकारियाँ तेज़ हो रही थीं। “पापा… और ज़ोर से… आह…” वो अपनी कमर उठाकर मेरा साथ दे रही थी। मैंने अपनी स्पीड बढ़ाई, और कमरा हमारी साँसों और चूत-लंड की आवाज़ों से गूँज रहा था। तभी अचानक बिजली आ गई, और कमरे में रोशनी फैल गई। हम दोनों ने एक-दूसरे को देखा। उसकी आँखों में प्यार और वासना थी। मैंने उसे और ज़ोर से चोदा, और वो चीख रही थी, “पापा… मैं झड़ रही हूँ…” उसकी चूत ने मेरे लंड को और जकड़ लिया, और वो काँपते हुए झड़ गई।
मैं अभी नहीं झड़ा था। मैंने उसे घोड़ी बनाया और पीछे से उसकी चूत में लंड डाल दिया। उसका गोल गधा मेरे सामने था, और मैंने उसे थप्पड़ मारा। वो सिसकारी, “पापा… और मारो…” मैंने उसके गधे को फिर थप्पड़ मारा और तेज़ी से धक्के लगाने लगा। उसकी चूत फिर से गीली हो गई थी। मैंने उसकी कमर पकड़ी और ज़ोर-ज़ोर से चोदा। आधे घंटे की धकापेल चुदाई के बाद मैंने कहा, “शालू, मेरा होने वाला है…” वो बोली, “पापा, मेरे अंदर ही छोड़ दो… मैं गोली खा लूँगी।” मैंने तेज़ धक्के मारे और उसकी चूत में अपना सारा माल छोड़ दिया। हम दोनों हाँफते हुए बिस्तर पर गिर पड़े।
कुछ देर बाद वो मेरे सीने पर सिर रखकर लेट गई। उसने कहा, “पापा, मैं आपकी हर ज़रूरत पूरी करूँगी। आप अकेले नहीं हो।” मैंने उसके माथे पर चूम लिया। उस रात हमने फिर दो बार चुदाई की। हर बार वो और खुल गई, और उसकी सिसकारियाँ मेरे कानों में मधुर संगीत की तरह बजीं। अब हम दोनों जब भी मौका मिलता है, एक-दूसरे की प्यास बुझाते हैं। शालू मेरी बेटी है, लेकिन अब वो मेरी बीवी का प्यार भी देती है।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी, ज़रूर बताएँ।