बहकती बहू-8

Sasur ji ka mota lund – कहानी का पिछला भाग: – बहकती बहू-7

सुबह मदनलाल और शांति चाय पी रहे थे। सुनील ऑफिस के काम से निकल चुका था। चाय पीते-पीते मदनलाल की आँखों में मोरनी बनी काम्या का नंगा बदन घूम रहा था। तभी उसने देखा कि काम्या ढेर सारा गेहूँ लेकर किचन के बाहर बैठकर बीनने लगी। मदनलाल को लगा कि ये लिंग दर्शन समारोह के लिए सुनहरा मौका है। सुनील जा चुका था, और शांति पूजा करने जाने वाली थी। उसने फटाफट चाय खत्म की और अपने कमरे में गया। वहाँ उसने 100 mg की मैनफोर्स गोली निगल ली। आधे घंटे में गोली अपना असर दिखाएगी। कुछ देर बाद शांति पूजन कक्ष में चली गई। मदनलाल हॉल से काम्या को देख रहा था। भले ही काम्या ने कपड़े पहने थे, मगर उसकी आँखों में उसका नंगा बदन ही था—वो गाण्ड, जो उसकी आँखों से हट नहीं रही थी। गोली और काम्या की जवानी का असर ऐसा हुआ कि लुंगी में कोबरा फनफनाने लगा।

मदनलाल उठा, टॉवल लिया और बाथरूम में घुस गया। जल्दी-जल्दी नहाकर उसने चड्डी उतारी और काम्या को याद कर मुठ मारने लगा, ताकि उसका मूसल विकराल रूप में आ जाए। जब लंड पूरे शबाब पर था, उसने टॉवल इस तरह लपेटा कि हल्का झटका लगते ही गिर जाए। न बनियान, न दूसरी चड्डी। जैसे ही उसने बाथरूम का दरवाजा खोला, आवाज सुनकर काम्या ने उसकी ओर देखा। ससुर को सिर्फ टॉवल में अर्धनग्न देखकर उसने शर्म से सिर झुका लिया और गेहूँ बीनने लगी। मदनलाल नपे-तुले कदमों से उसकी ओर बढ़ा। काम्या का सिर झुका था, जो उसके खेल के लिए मुफीद था। जैसे ही वो पास पहुँचा, उसने टॉवल की गाँठ ढीली की, और अगले पल टॉवल जमीन पर गिर पड़ा।

काम्या ने कुछ गिरने की आवाज सुनी और नजर उठाई। सामने ससुर का साढ़े सात इंच का मोटा मूसल, उसकी कलाई जितना मोटा, इधर-उधर डोल रहा था। वो साँप सूँघने जैसी हालत में थी। उसकी आँखें स्थिर हो गईं, पलकें बंद करना भूल गई। उसने कभी नहीं सोचा था कि मर्द का लंड इतना बड़ा हो सकता है। उसकी साँसें थम गईं, शरीर जड़वत। मदनलाल ने उसके चेहरे पर भय और आश्चर्य देखा। गुलाबी सुपाड़ा, नसों का जाल—काम्या सब गौर से देख रही थी। धीरे-धीरे भय कम हुआ, और उत्सुकता ने जगह ले ली। उसकी आँखों में गुलाबीपन उतर आया। वो दीन-दुनिया से बेखबर उस अजूबे को देख रही थी। मदनलाल चुपचाप खड़ा रहा, टॉवल उठाने की कोशिश नहीं की। दो मिनट तक काम्या उसका कोबरा देखती रही। तभी पूजन कक्ष से घंटी की आवाज आई। काम्या की तंद्रा टूटी, वो लज्जित होकर सूप रखकर कमरे में भाग गई। मदनलाल उसकी थिरकती गाण्ड देखता रहा और बुदबुदाया, “बहू, तेरी इस गाण्ड ने हमें दीवाना बनाया है। इसकी सील हम ही तोड़ेंगे।”

काम्या कमरे में हाँफ रही थी, पसीने से तर। वो सोचने लगी, “हे भगवान, क्या सचमुच इतना बड़ा होता है? पिंकी जो अपने पति के बारे में कहती थी, वो सच था।” कॉलेज में पिंकी ने उसे पॉर्न क्लिप दिखाई थी, मगर काम्या को लगा था कि वो ट्रिक फोटोग्राफी है। पिंकी ने अपने पति के बड़े लंड की बात की थी, जिसे काम्या ने गप्प समझा था। सुनील का चुन्नू-मुन्नू देखकर उसे यकीन हो गया था कि पिंकी झूठ बोलती थी। मगर आज बाबूजी का खतरनाक हथियार देखकर उसकी धारणा बदल गई। ढाई फीट की दूरी से दो मिनट तक उसने कोबरा फुफकारते देखा था। “कितना खतरनाक था, फिर भी देखने का मन कर रहा था,” उसने सोचा। फिर उसे शक हुआ कि बाबूजी ने जानबूझकर टॉवल गिराया। “हाय राम, कितने बेशरम हैं। अपनी बहू को दिखा रहे थे। मौका मिले, तो रगड़ डालेंगे।” बाबूजी का हथियार उसकी आँखों के सामने था। “इतना बड़ा वहाँ जाता कैसे होगा? कितना दर्द होगा?” उसे पिंकी की बातें याद आईं।

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पिंकी की शादी काम्या से पहले हुई थी। शादी के बाद मायके आने पर काम्या ने उसे घेर लिया और सुहागरात के बारे में पूछा। पिंकी, जो पहले से चली-चलायी थी, खुलकर बोली, “काम्या, उनका इतना मोटा है कि मैं, चली-चलायी लड़की, दूसरे दिन लंगड़ाकर चल रही थी। रात में तीन बार बाजा बजाया। सुबह लड़खड़ाकर चल रही थी, तो ननदें टॉन्ट मार रही थीं। एक बोली, ‘भैया जालिम हैं, पहले दिन इतना कचर दिया। पहले दिन गाड़ी कम स्पीड पर चलानी थी।’ दूसरी बोली, ‘भाभी किस्मत वाली हैं, ऐसा गबरू जवान मिला। अब जिंदगी मजे ही मजे।’” पिंकी ने बताया कि उसे एडजस्ट करने में पंद्रह दिन लगे। काम्या सोचने लगी कि बाबूजी का भी इतना बड़ा है कि महीनों लग जाएँ।

पिंकी की एक बात उसे कचोट रही थी। पिंकी बोली थी, “काम्या, चुदाई का मजा, लज्जत, लंबे-मोटे लंड से है। छोटे में वो बात नहीं। मैंने शादी से पहले आधा दर्जन लंड खाए, मगर पति के महाभयंकर हथियार का कोई मुकाबला नहीं। पहले गुड़ था, अब गुलाबजामुन। मोटा लंड चूत को चीरता है, दीवारों को रगड़ता है। स्वर्ग अगर कहीं है, तो चुदाई में। जब तेरा पति तेरी चीरेगा, तब मेरी बात याद करेगी।” काम्या सोच रही थी कि “चूत चीरना” क्या होता है। सुनील तो कभी चीर नहीं पाया।

दिन भर वो बाबूजी से दूरी बनाए रही, मगर उनका हथियार उसके जेहन में था। बाबूजी आँखों से उसे चोद रहे थे। काम्या इसलिए दूर थी कि उसे यकीन था कि अकेले में बाबूजी उसे नहीं छोड़ेंगे। वो गर्म थी, मन कर रहा था कि बाबूजी से दूध मसलवा ले, मगर सुनील की मौजूदगी ने उसे सतर्क रखा। शाम को शांति का फरमान आया, “बहू, ये लिस्ट है। बाबूजी के साथ बाजार जाओ। सुनील के जाने से पहले नमकीन, गुजिया बनानी है।” काम्या तैयार होकर बाबूजी के कमरे में गई और फरमान सुना दिया। बाबूजी बोले, “एक्टिवा निकालो, हम तैयार होकर आते हैं।”

दोनों बाजार गए। काम्या पीछे बैठी थी। बाबूजी मौका मिलते ही ब्रेक लगाता, जिससे काम्या आगे खिसकती और उसके दसहरी आम उसकी पीठ में धँस जाते। काम्या उसकी चालाकी समझ रही थी, मगर चुप रही। उसे ये बदमाशी अच्छी लग रही थी। सामान खरीदकर लौटते वक्त काम्या बोली, “मम्मी ने फल लाने को कहा था।”

मदनलाल: ठीक, क्या लोगी?
काम्या: वो सामने ठेले पर केले ले लेते हैं।
मदनलाल: ये तो छोटे-छोटे हैं। बहू, केले हमेशा बड़े खाने चाहिए। बड़े केले से पेट को लगता है कि कुछ आया।

काम्या डबल मीनिंग समझ गई और शर्म से नीचे देखने लगी। मदनलाल दूसरे ठेले से बड़े केले लाया और बोला, “देखा, कितने बड़े हैं। बड़ा केला खाओगी, तो छोटा भूल जाओगी।”

काम्या: आपको भी कोई फल लेना है, तो ले लीजिए।
मदनलाल: (काम्या की चूचियों और गाण्ड को देखते हुए) हमें दसहरी आम और तरबूज पसंद हैं।
काम्या: (चिढ़ाते हुए) घर चलिए, लगता है फल खाना आपकी किस्मत में नहीं।

लौटते वक्त मदनलाल गाड़ी लहरा रहा था। सुनसान इलाके में उसने गाड़ी रोकी।
काम्या: क्या हुआ, बाबूजी?
मदनलाल: बस एक मिनट।

वो पेशाब करने लगा। काम्या उसे देख रही थी, और सुबह का कोबरा याद आ गया। मदनलाल ने शरारत की। पेशाब के बाद लंड अंदर किए बिना मुड़ा। काम्या फिर सम्मोहित हो गई। मदनलाल पास आया, लंड को उंगलियों से हिलाया, कुछ बूँदें गिरीं।

मदनलाल: बहू, चलें, या और देखना है?

काम्या झेंप गई, पल्लू से मुँह ढँक लिया। मदनलाल बोला, “तुम गाड़ी चलाओ, हम थक गए।” गाड़ी चलते ही उसने काम्या की कमर पर हाथ फेरना शुरू किया।

मदनलाल: हमारा केला पसंद आया?
काम्या: (हड़बड़ाते हुए) क्या? हम समझे नहीं।
मदनलाल: अरे, वही केला जो खरीदा।
काम्या: जी, वो। अच्छा है। बड़े-बड़े हैं।
मदनलाल: मजा तो बड़े केले में है। तुम्हारी सास को भी बड़े केले पसंद थे।
काम्या: वो आपसे मँगवाती थीं। हम तो किसी से मँगवा भी नहीं सकते।
मदनलाल: क्यों, हम नहीं हैं? जब कहोगी, ला देंगे बड़ा केला।

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कहते हुए उसने उंगली काम्या की नाभि में डाल दी। काम्या गर्म हो गई, उसकी चूत से झरना फूट पड़ा। बाबूजी के डबल मीनिंग शब्द कामोत्तेजक थे।

मदनलाल: बहू, आज रात खाओगी हमारा केला?
काम्या: रात को फल खाने से ठंड लगती है। कल दिन में खाएँगे। रात को माँजी को खिलाइए।
मदनलाल: कोई बात नहीं, दिन में खा लेना। बस हम चाहते हैं कि तुम हमारा केला खाओ।

कहते हुए उसने काम्या की पीठ पर किस किया।

काम्या: बाबूजी, प्लीज मत करिए, हम बहक जाएँगे।
मदनलाल: तो बहक जाओ। हम तो कब से चाहते हैं।
काम्या: हम गाड़ी बहकने की बात कर रहे हैं।
मदनलाल: अच्छा, हम क्या सोच रहे हैं, बताओ।
काम्या: हमें आपसे बात नहीं करनी।

फ्लर्ट करते हुए दोनों घर पहुँचे। रात को सबने साथ खाना खाया। मदनलाल छत पर गया। शांति ने काम्या को कहा, “बाबूजी को केला दे आओ।” काम्या को आशंका थी कि बाबूजी अँधेरे में बदमाशी करेंगे। छत पर मदनलाल टहल रहा था। जैसे ही काम्या ने केला दिया, उसने उसकी कलाई पकड़कर टावर की ओर खींचा।

काम्या: प्लीज, बाबूजी, छोड़िए। कोई देख लेगा।
मदनलाल: इसलिए टावर में ले जा रहे हैं।
काम्या: नहीं, छोड़िए। हम सिर्फ केला देने आए।
मदनलाल: हम केला खाते नहीं, खिलाते हैं। अब तुम खाओगी हमारा केला।

काम्या काँप उठी, डर थी कि बाबूजी जबरदस्ती न कर दें।

काम्या: नहीं, बाबूजी, गजब हो जाएगा। फिर कभी खिला देना।
मदनलाल: कह देना ठंडी हवा खा रहे थे।

उसने केला छीला और काम्या के मुँह में ठूँसा।

मदनलाल: कैसा लगा हमारा केला?
काम्या: बहुत बड़ा था। पेट भरा था, अब गले तक भर गया।
मदनलाल: हमने कहा था, बड़ा केला खाओगी, तो गले तक महसूस होगा।
काम्या: हमें जाने दीजिए।
मदनलाल: खुद खा लिया, हमें भी कुछ खाने दो।

उसने काम्या के होंठों पर होंठ रख दिए और चूचियों पर कब्जा कर लिया। काम्या छुड़ाने की कोशिश में नाकाम रही। मदनलाल ने अधरामृत पिया और चूचियाँ मसलीं।

काम्या: बाबूजी, हाथ जोड़ते हैं, जाने दीजिए। सुनील के जाने के बाद मनमानी कर लेना।

मदनलाल ने समय की नजाकत देखकर उसे छोड़ा और बोला, “एक सवाल का जवाब देती जाओ। ये बताओ, जो केला खाया, वो बड़ा है, या ये वाला?” उसने काम्या का हाथ अपने लंड पर रख दिया। लंड पर हाथ पड़ते ही काम्या के बदन में झुरझुरी दौड़ गई। गरम, फड़कता अजगर। उसने जल्दी हाथ हटाया।

मदनलाल: बताओ, कौन सा बड़ा है?
काम्या: हमें नहीं मालूम। माँजी से पूछ लीजिए, उन्होंने दोनों खाए हैं। —जीभ निकालकर चिढ़ाया और भाग गई।

मदनलाल छत पर टहलता रहा। रात को वो काम्या की खिड़की पर गया। अंदर काम्या गाउन में थी, सुनील चड्डी में। सुनील बात कर रहा था, काम्या छत की ओर देख रही थी, उदास। सुनील ने अपना पनियल साँप निकाला और काम्या को पकड़ाया। काम्या ने हाथ हटा लिया। सुनील ने कई बार कोशिश की, मगर काम्या ने छुआ तक नहीं। आखिरकार सुनील ने नाइटी ऊपर की और अपनी लुल्ली अंदर डाल दी। बिना प्रतिरोध के लंड अंदर चला गया। काम्या निश्चल पड़ी रही। सुनील ने दस सेकंड उछल-कूद की और हाँफते हुए लेट गया। काम्या ने उसे हटाया और करवट लेकर लेट गई। मदनलाल को बुरा लगा। वो जानता था कि काम्या ने उसका कोबरा देखा है, इसलिए सुनील के पनियल साँप में रुचि नहीं थी। सुनील उसका बेटा था। उसकी कमजोरी ने मदनलाल को हिला दिया। वो कमरे में लेट गया, नींद कोसों दूर थी।

काम्या भी सो नहीं पाई। वो सोच रही थी, “बाप बुढ़ापे में दुनाली बंदूक लिए घूम रहा है, और बेटा भरी जवानी में टॉय पिस्टल। मेरी जिंदगी का क्या होगा?”

अगले दिन मदनलाल बुझा-बुझा था। काम्या भी अपनी अतृप्ति से उदास थी, मगर उसे बाबूजी की उदासी का कारण समझ नहीं आया। वो सोच रही थी कि सुनील के जाते ही बाबूजी भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ेंगे, मगर वो शांत थे। सुनील के जाने के चार दिन बाद भी मदनलाल ने कुछ नहीं किया। पाँचवें दिन शांति पड़ोसन के साथ बाजार चली गई। काम्या नहाने बाथरूम गई। तभी उसका फोन बजा। मदनलाल ने देखा, समधन का फोन था। उसने रिसीव नहीं किया। फिर समधन का फोन उसके मोबाइल पर आया।

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मदनलाल: नमस्कार, कैसे हैं?
समधन: हम ठीक हैं। आप? काम्या फोन नहीं उठा रही। घर पर है?
मदनलाल: घर पर है, शायद छत पर गई हो। मैं बता दूँगा।

कॉल खत्म कर वो काम्या को बताने её कमरे की ओर गया। अंदर कदम रखते ही वो साँस लेना भूल गया। काम्या लाल ब्रा-पैंटी में आईने के सामने गीले बालों में कँघी कर रही थी। वो साक्षात कामदेवी लग रही थी। चिकना संगमरमरी बदन, सुराहीदार गर्दन, छरहरी पीठ, बलखाती कमर, और कयामत बरपाती गाण्ड। उसकी मांसल जाँघें मदनलाल को घंटों चाटने को मजबूर कर सकती थीं। काम्या बेफिक्र थी, क्योंकि बाबूजी शांत थे। वो धीरे-धीरे पास गया। काम्या की कमल जैसी सुगंध ने उसे पागल कर दिया। उसकी साँसें गहरी हो गईं। आवाज से काम्या को अहसास हुआ और वो पलटी।

काम्या: बाबूजी, आप यहाँ! —उसने चूचियाँ ढँकने की कोशिश की।
मदनलाल: तुम्हारी माँ का फोन था। कह रही थीं, तुम फोन नहीं उठा रही।
काम्या: हम नहाने गए थे। —उसने टॉवल उठाया।

मदनलाल ने टॉवल छीन लिया, “रहने दो, तुम ऐसे अच्छी लग रही हो।” उसने काम्या को बाँहों में दबोच लिया। पिछले हफ्ते का वैराग्य हवा हो गया। विश्वामित्र को मेनका ने पिघलाया था, मदनलाल तो शौकीन था। उसने ब्रा फाड़कर फेंक दी। काम्या शर्म और डर से काँपने लगी। मदनलाल ने उसे बेड पर पटका। काम्या चित पड़ी थी, सिर्फ पैंटी में। उसकी गाण्ड का दो-तिहाई हिस्सा बाहर था। मदनलाल उसके ऊपर आ गया और चूचियाँ बेदर्दी से मसलने लगा। काम्या के मुँह से दर्द और मजा मिली सिसकारियाँ निकलने लगीं।

मदनलाल: चूची पर कोई निशान नहीं। वो उल्लू इन्हें छूता नहीं था?
काम्या: वो प्यार से आहिस्ता करते हैं। आपके जैसे जालिम नहीं।
मदनलाल: बताओ, आहिस्ता अच्छा लगता है, या हमारा जालिमपना?
काम्या: (आँखें बंद कर) मर्द प्यार में जालिम हो, तो बुरा नहीं लगता।
मदनलाल: ठीक, तो हम जालिम हो जाते हैं।

उसने काम्या के बदन पर दाँत गड़ाए, चूचियाँ मसलीं, गूँथीं। काम्या के बदन में ज्वालामुखी भड़क उठा। वो जोर-जोर से सिसकार रही थी। मदनलाल जानता था कि चूचियाँ उसका कमजोर पॉइंट हैं। वो चूस रहा था, जैसे दूध निकल रहा हो। काम्या ने कमर उठाकर धनुषाकार बनाया। मदनलाल ने देखा कि लोहा गर्म है। उसने काम्या के दोनों तरफ पैर किए और लुंगी हटाई। कोबरा फनफनाता हुआ बाहर आया, काम्या के चेहरे के पास डोलने लगा।

मदनलाल ने उसका हाथ पकड़कर लंड थमाया। गरम, मोटा लंड हाथ में आते ही काम्या के बदन में चींटियाँ रेंगने लगीं। डर से उसने हाथ हटाया।

मदनलाल: बहू, पकड़ो। ये तुम्हारा प्यार माँग रहा है।

काम्या दुविधा में थी। संस्कार उसे रोक रहे थे, मगर प्यासी जवानी और सुनील की नाकामी उसे उकसा रही थी। इतिहास गवाह है, जवानी में तन की सुनता है। मदनलाल ने फिर उसकी कलाई पकड़कर लंड थमाया। इस बार काम्या ने कसकर पकड़ लिया। मदनलाल का शरीर झनझना गया।

कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-10

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