बहकती बहू-6

Jiju Sali ki chudai – कहानी का पिछला भाग: – बहकती बहू-5

उस दिन के बाद से ससुर-बहू की झिझक खत्म हो चुकी थी। मदनलाल ठरकी ससुर बन गया, और काम्या उसकी ठरकी बहू। हर दूसरे-तीसरे दिन मदनलाल मिस कॉल देता, और काम्या गाण्ड मटकाते हुए टावर पहुँच जाती। वहाँ शुरू होता रगड़म-रगड़ाई का खेल। हफ्ते भर बाद मदनलाल ने मिस कॉल भी बंद कर दी। अब वो काम्या के कमरे का दरवाजा खटखटाता, और वो अपने को नुचवाने चली आती। मदनलाल ने काम्या के ऊपरी माले पर पूरी तरह कब्जा कर लिया था। उसकी मेहनत का फल काम्या के जिस्म में दिखने लगा—उसके बूब्स डेढ़ गुना बड़े हो गए, गाण्ड और चौड़ी हो गई। ससुर की दी हुई खुशियों से उसका वजन भी बढ़ गया। पुराने जमाने में मायके आने पर लड़की का मोटापा ससुराल की खुशी का पैमाना माना जाता था। काम्या के गालों में नूर आ गया था। मदनलाल ये बदलाव देख रहा था और सोच रहा था कि आधी-अधूरी खुशी में ये हाल है, तो पूरी मस्ती में काम्या की जवानी क्या कहर ढाएगी!
एक रात मदनलाल काम्या का दरवाजा खटखटाने गया। अंदर से उसकी गुनगुनाने की आवाज आई। दरवाजा भिड़ा था। मदनलाल ने धीरे से धक्का दिया। अंदर का नजारा देखकर उसके होश उड़ गए। काम्या सिर्फ ब्रा-पैंटी में आईने के सामने खड़ी थी। उसकी गदराई, नशीली गाण्ड पीछे से जानलेवा लग रही थी। मदनलाल का मूसल आकाश मिसाइल की तरह खड़ा हो गया। वो सीधे काम्या के पीछे जाकर चिपक गया। आईने में बाबूजी को देखकर काम्या चीखते-चीखते बची। मदनलाल ने उसे पीछे से पकड़ लिया और उसकी चूचियों पर कब्जा कर लिया।
काम्या: बाबूजी, आप यहाँ? ऊपर जाइए, हम वहीं आ जाएँगे।

मदनलाल: क्या ऊपर, क्या नीचे, बहू? यहीं हो जाने दो।
उसने कमर से दबाव बढ़ाया, और उसका मूसल काम्या की गाण्ड के छेद से टकराया। काम्या गनगना उठी। मदनलाल उसकी चूचियाँ मसलते हुए उसकी गर्दन चूमने लगा। काम्या की ब्रा कब पैरों में गिरी, उसे पता ही नहीं चला। मदनलाल नंगी चूचियों को जोर-जोर से मसलने लगा।
काम्या: बाबूजी, दर्द हो रहा है, धीरे करिए ना।

मदनलाल: सॉरी, बहू, इन कबूतरों को देखकर कंट्रोल नहीं होता।

काम्या: सब्र रखिए, बाबूजी, ये कबूतर कहीं उड़ने वाले नहीं।
मदनलाल ने काम्या को घुमाया और उसके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उसका कोबरा अब काम्या की नाभि पर चुभ रहा था। होंठ चूसते हुए उसने अपने लंड को हाथ से नीचे किया, और वो सीधे काम्या की चूत से जा टकराया। सुपाड़ा क्लिट पर दबाव डाल रहा था। काम्या का बदन काँप उठा। छह महीने बाद कोई लंड उसकी चूत के करीब था। मदनलाल ने दबाव बढ़ाया, तो सुपाड़ा क्लिट को पीसने लगा। काम्या को लगा, उसका सारा खून चूत में जमा हो गया। मदनलाल के हाथ चूचियों पर पीले पड़ रहे थे। ऊपर-नीचे से हमला हो रहा था। काम्या की चूत पानी छोड़ने लगी। मदनलाल ने काम्या की कलाई पकड़कर अपनी लुंगी पर रख दी। काम्या ने कड़ा, लंबा लंड महसूस किया और तुरंत हाथ छुड़ा लिया। मदनलाल ने जोर नहीं दिया, डर था कि कहीं बहू बिदक न जाए।
उसने अपनी “नेवर फेल” चाल चली। वो काम्या को पकड़कर बिस्तर पर लुड़क गया। मदनलाल नीचे था, काम्या ऊपर औंधी। उसने दोनों चूचियों को पास-पास किया और एक साथ मुँह में भर लिया। काम्या के शरीर में 440 वोल्ट के झटके लगने लगे। मदनलाल का सालों का अनुभव था—दोनों चूचियाँ एक साथ चूसने से ठंडी से ठंडी औरत भी पिघल जाती है। काम्या भी आपा खो बैठी। चूचियाँ ससुर के मुँह में और चूत पर मूसल का हमला। वो बड़बड़ाने लगी, “हाँ, बाबूजी, ऐसे ही करो… गजब का मजा आ रहा है… ओह माय गॉड… आह… बाबूजी, आप जादूगर हैं… मैं मर जाऊँगी… पापा, जोर से काटिए इन्हें… पूरा दूध पी लीजिए… आपका बेटा तो कुछ करता नहीं… आप ही पी लो…”
कामावेग में काम्या ने मर्दों की तरह कमर ऊपर-नीचे करनी शुरू की। उसने चूत को मदनलाल के मूसल पर पटकना शुरू किया। मदनलाल उसकी गाण्ड सहलाकर नीचे दबा रहा था। दो मिनट में काम्या झड़ गई और ससुर के सीने पर सिर रखकर हाँफने लगी। मदनलाल ने फिर उसका हाथ अपने लंड पर रखना चाहा, मगर काम्या तुरंत उठी, कपड़े पहने और कमरे में भाग गई। मदनलाल बाथरूम में अपनी गर्मी निकालकर लेट गया। वो सोचने लगा, “काम्या किस मिट्टी की बनी है, जो इतना कंट्रोल करती है? मोहिनी तो दोनों चूचियाँ चूसते ही टाँगें उठा लेती थी।”
काम्या बिस्तर पर लुड़क गई। उसका शरीर जल रहा था। उसे शर्मिंदगी भी थी—पहली बार वो अपने ससुर के साथ अपनी सेज पर थी। उसे सब याद आने लगा—कैसे बाबूजी उसे लंड पकड़ाने की कोशिश कर रहे थे, कैसे वो उनकी मूसल पर चूत पटक रही थी। “हाय भगवान, मुझे क्या हो रहा है? मैं इतनी बेशरम कैसे हो गई?” उसकी चूत में फिर खुजली शुरू हो गई, और उसका हाथ वहाँ चला गया।
मदनलाल को काम्या का चूत पटकना याद आया, तो उसकी साली मोहिनी की याद ताजा हो गई। मोहिनी शांति से चार साल छोटी थी। मदनलाल की शादी के वक्त शांति 22 की थी, मोहिनी 18 की। मगर फिगर में मोहिनी बीस नहीं, बाइस थी। उसका नाम जैसा, वैसी ही मनमोहक। मदनलाल उसे देखते ही दीवाना हो गया था। जीजा-साली का रिश्ता वैसे भी खास होता है। मदनलाल ससुराल में मोहिनी को छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ता—कभी बूब्स दबा देता, कभी गाण्ड पर हाथ फेर देता। मोहिनी शरमाकर भाग जाती, मगर सावधान रहती कि सास या दीदी न देख ले। धीरे-धीरे मदनलाल ने लिप-किस शुरू किया। ससुराल पाँच किलोमीटर दूर था, तो वो अकेले भी चला जाता। मोहिनी तब ज्यादा चहकती, शायद उसकी जवानी भी संभल नहीं रही थी। बात यहाँ तक पहुँची कि जब घर खाली होता, मदनलाल मोहिनी की चूचियाँ पीने लगता। उसके हाथ मोहिनी के पूरे भूगोल को नाप चुके थे। कई बार उसने पैंटी में भी हाथ डाला।
एक दिन मदनलाल अकेले ससुराल पहुँचा। मोहिनी उसे देखकर खिल गई। सास-ससुर दूसरे गाँव गए थे। मदनलाल मस्त हो गया। दस मिनट में मोहिनी का कुरता जमीन पर था, ब्रा कुर्सी पर। मदनलाल उसके कटोरे जैसे नींबुओं पर टूट पड़ा। उसने चूचियाँ काट-काटकर लाल कर दीं। मोहिनी सिसकार रही थी। मदनलाल आज खाली नहीं जाना चाहता था। उसने पैंट खोली, और उसका सात इंच का मोटा लंड फनफनाता हुआ बाहर आया।
मोहिनी की साँसें थम गईं। पहली बार उसने जवान मर्द का लंड देखा। मदनलाल ने उसका हाथ पकड़कर लंड थमा दिया। मोहिनी के शरीर में झुरझुरी दौड़ गई।
मदनलाल: पकड़े ही रहोगी क्या?

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मोहिनी: तो क्या करूँ?

मदनलाल: इससे खेलो ना।

मोहिनी: ये कोई खिलौना है? —शरमाते हुए बोली।

मदनलाल: जवान लड़कियाँ इसी से खेलती हैं।

मोहिनी: छी! हमें नहीं खेलना। कितना खतरनाक खिलौना है।

मदनलाल: तुम्हारी जैसी दिलेर लड़की को खतरों से खेलना चाहिए।

मोहिनी: जी, हम कोई दिलेर-विलेर नहीं।

मदनलाल: अच्छा, थोड़ा सहला तो दो। बेचारा कब से तुम्हारा प्यार माँग रहा है।
मोहिनी ने धीरे-धीरे हाथ चलाया।

मोहिनी: दीदी इसे प्यार नहीं देती?

मदनलाल: दीदी को छोड़ो। इसे तुम पसंद हो। ये कह रहा था, अगर तुम्हें पहले देख लिया होता, तो तुम्हें ब्याहता।

मोहिनी: अहा! हमारी दीदी भी हजारों में एक है।

मदनलाल: मगर तुम करोड़ों में एक हो। जन्नत का तोहफा हो।
मोहिनी ने जोर से लंड दबाया, तो मदनलाल की चीख निकल गई। उसने मोहिनी को घुटनों पर बिठाया। उसका मूसल मोहिनी के मुँह के सामने था।
मदनलाल: इसे मुँह में लेकर चूसो।

मोहिनी: क्या? ये कोई मुँह में लेने की चीज है? गंदी चीज है।

मदनलाल: कौन बोला गंदी है? सब चूसते हैं। तुम्हारी दीदी भी चूसती है।

मोहिनी: झूठ मत बोलिए।

मदनलाल: पगली, इससे दोनों को मजा आता है। पहले इसे किस करो।
मोहिनी पहले से गर्म थी। उसने सुपाड़े पर किस कर दी, फिर चारों तरफ चूमने लगी। मदनलाल ने कहा, “जानू, मुँह में लेकर चूसो। खूब मजा आएगा।” मोहिनी ने सुपाड़ा मुँह में ले लिया। उसे गर्व महसूस हुआ—मर्द की मर्दानगी उसके कब्जे में थी। वो जोर-जोर से चूसने लगी। मदनलाल को ऐसी उम्मीद नहीं थी। उसकी गोटियों में वीर्य उबाल मारने लगा। उसने मोहिनी का सिर पकड़ा और कमर चलाने लगा। स्खलन से पहले वो मुँह चोदने लगा। चरम पर पहुँचकर उसने लंड मोहिनी के गले तक उतारा और सारी मलाई उसके गले में डाल दी।
जीजा-साली की हया टूटने के बाद दोनों ठरकी बन गए। दो महीने की छुट्टी में मदनलाल ने दर्जन बार मोहिनी से लंड चुसवाया। मोहिनी की लंड चूसने की कला ने उसे दीवाना बना दिया। शांति को लंड चूसना पसंद नहीं था, मगर मोहिनी मस्ती से चूसती। उसका चेहरा ऐसा लगता, जैसे बच्चे को मनपसंद खिलौना मिल गया। सबसे बड़ा बोनस—उसे मलाई खाना पसंद था। कच्ची उमर में लंड का स्वाद मिलने से मोहिनी बेकाबू हो गई थी। मदनलाल के करीब आते ही वो उसका मूसल निकाल लेती और खेलती रहती। मदनलाल ने उसे अपने साथ भागने को कहा, मगर मोहिनी ने मना कर दिया। “जीजू, मैं दीदी को धोखा नहीं दे सकती। बाकी जो चाहोगे, वो मिलेगा।”
मदनलाल ड्यूटी पर लौटा, मगर उसका दिल मोहिनी के पास रहा। छह महीने बाद वो फिर आया। दो दिन शांति पर गर्मी उतारी, फिर ससुराल गया। मोहिनी ने जी भरकर लंड चुसाई की, मगर आगे मौका नहीं मिला। एक हफ्ते बाद मोहिनी सुबह मदनलाल के घर चली आई। उसने घर पर कहा था कि कॉलेज जा रही है, मगर सीधे जीजू के पास पहुँची। घर में मदनलाल अकेला था। उसने किला फतह करने की ठान ली।
उसने मिलिट्री कोटे की ब्लैक डॉग स्कॉच निकाली और रूहअफजा में मिलाकर मोहिनी को दी।
मोहिनी: दारू क्यों लाए?

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मदनलाल: ये दारू नहीं, मूड फ्रेशनर है। तुम्हारे लिए खरीदा।

मोहिनी: पागल हो गए? हम दारू पिएँगे?

मदनलाल: इससे नशा नहीं चढ़ता। जरा पी लो, फिर एंजॉय करेंगे।

मोहिनी: एक बूँद भी नहीं। हमें घर भी जाना है।

मदनलाल: तुम्हें मुझ पर भरोसा है ना? कुछ नहीं होगा।
मोहिनी ने शरबत में डेढ़ पैग पिया। मदनलाल ने उसकी चूचियाँ दबानी शुरू कीं। मोहिनी आँखें बंद कर मजा ले रही थी। मदनलाल ने उसे ऊपर से नंगा कर दिया और निप्पलों से जलतरंग बजाने लगा। मोहिनी सिसकारने लगी और जीजू का सिर चूचियों में दबाने लगी। उसने मदनलाल की चेन खोली। लंड बाहर आया, तो वो झुकी।
मदनलाल: जानू, पहले पी तो लो।

मोहिनी: जीजू, हम पहले ये पिएँगे। —लंड की तरफ इशारा करते हुए।
मोहिनी ने लंड मुँह में ले लिया। कुछ दिनों में वो लंड की पूरी एनाटॉमी समझ गई थी। कहाँ जीभ फेरनी है, कहाँ काटना है, कहाँ चूसना है। वो अनुभवी रंडी को भी मात दे सकती थी। स्खलन से पहले वो नस दबा देती थी। मदनलाल छह महीने की भूख के साथ उसके मुँह में झड़ गया। मोहिनी सारी मलाई चाट गई।
दस मिनट सुस्ताने के बाद दोनों फिर पिए। मदनलाल ने मोहिनी को पूरी तरह नंगा कर दिया। उसका अनावृत यौवन देखकर मदनलाल बेकाबू हो गया। ब्लैक डॉग का सुरूर भी चढ़ रहा था। उसने मोहिनी को उठाकर बेड पर पटका। वो सिर से पाँव तक उसके चिकने, गदराए जिस्म को चाटने लगा। दोनों जिस्म एक-दूसरे की गर्मी से तपने लगे। मदनलाल ने मोहिनी को उलटकर दोनों संतरे एक साथ मुँह में भरे। मोहिनी आपा खो बैठी। “जीजू, काट डालो इन्हें, नोंच दो, रस निचोड़ लो… दीदी को भी इतने धीरे मसलते हो?” मदनलाल और बोखलाया। मोहिनी की कमर नीचे पटकने लगी। उसकी चूत लंड से भिड़ रही थी। उसने लंड को जाँघों में फँसाकर चूत की मालिश शुरू की।
मोहिनी: जीजू, करिए ना, अब रहा नहीं जाता।

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मदनलाल: क्या करना है? —अनजान बनते हुए।

मोहिनी: चुप करिए, आपको सब मालूम है।

मदनलाल: बोलो ना, दीदी के साथ जो करते हो, वही करो।

मोहिनी: दीदी के साथ क्या-क्या करते हो?

मदनलाल: लंड चुसाते हैं, गाण्ड मारते हैं, बुर भी मारते हैं।

मोहिनी: वो लास्ट वाला करिए। —नशे में लड़खड़ाते हुए।

मदनलाल: तो बोलो ना, जीजू, अपना लंड हमारी चूत में डालकर खूब चोदो।

मोहिनी: छी! गंदे कहीं के, कोई ऐसा बोलता है?
मदनलाल ने ज्यादा जिद नहीं की। उसने मोहिनी की चूत देखी—कसी हुई, छोटा सा छेद। उसने फाँकें फैलाईं और चाटना शुरू किया। मोहिनी फड़फड़ाने लगी। “उई माँ, जीजू, मैं पागल हो जाऊँगी!” मदनलाल ने जीभ छेद में घुसेड़ी। मोहिनी चिल्लाई, “जीजू, डाल दो ना… दीदी की फाड़े जैसे, मेरी फाड़ दो… नहीं तो मर जाऊँगी!”
मदनलाल ने वैसलीन निकाली, चूत और लंड में लगाई। मोहिनी की टाँगें उठाकर लंड स्वर्गद्वार पर रखा और जोरदार धक्का मारा। सुपाड़ा अंदर गया, और मोहिनी की मर्मांतक चीख निकली। “हाय मम्मी, मर गई! जीजू, निकालो, मर जाऊँगी!” मदनलाल ने होंठ उसके होंठों पर रखे और दूसरा धक्का मारा। आधा लंड अंदर गया। मोहिनी तड़पने लगी, मगर फौजी के सामने बेचारी की क्या बिसात? चूत ने लंड को जकड़ रखा था। मदनलाल रुका, फिर तीसरे धक्के में लंड जड़ तक धँस गया। मोहिनी की चीखें जारी थीं। मदनलाल उसके ऊपर लेट गया, चूचियाँ पीने लगा, जाँघें सहलाने लगा। मोहिनी की सिसकियाँ कम हुईं। उसने लंड बाहर खींचा और फिर जड़ तक पेल दिया। मोहिनी सिसक रही थी, मगर धीरे-धीरे उसकी गाण्ड उछलने लगी। मदनलाल मैराथन ठाप मार रहा था। कसी चूत के आगे वो भी बेबस हो गया और चीखते हुए झड़ गया। उसी वक्त मोहिनी भी पहली बार ऑर्गेज्म पर पहुँची और मदनलाल से चिपक गई।
क्या काम्या अब मदनलाल की मोहिनी बन जाएगी, या अपने को बचा लेगी? आप क्या सोचते हैं, कमेंट में बताएँ!

कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-7

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