बहकती बहू-4

School me Desi chudai story कहानी का पिछला भाग: – बहकती बहू-3

काम्या की सिसकारियाँ अब तेज हो चुकी थीं। मदनलाल की उंगलियाँ उसकी चूचियों की घुंडियों को मसल रही थीं, और उसका लंड उसकी गांड से टकरा रहा था। काम्या का बदन पूरी तरह गर्म हो चुका था। उसकी चूत से पानी की धाराएँ बह रही थीं, जैसे कोई नदी उफान पर हो। अचानक मदनलाल ने चूचियों को और जोर से मसला, तो काम्या सिसक पड़ी, “उई माँ… स्स्स… बाबूजी, दर्द दे रहा है, धीरे दबाइए ना!”

ये सुनकर मदनलाल के चेहरे पर शातिर मुस्कान तैर गई। थोड़ी देर पहले जो बहू “छोड़िए” चिल्ला रही थी, अब वही “धीरे दबाइए” कह रही थी। “सॉरी, बहू, अब धीरे करेंगे,” कहते हुए उसने काम्या के कंधे पर हल्के से दाँत गड़ाए। काम्या का बदन सिहर उठा। “बाबूजी, काट क्यों रहे हैं?” उसने सिसकते हुए पूछा।

मदनलाल ने प्यार से पुचकारा, “ये काटना नहीं, बहू, लव बाइट है। दर्द हुआ क्या?”
काम्या: जी नहीं, दर्द तो नहीं हुआ, मगर कोई दाँत गड़ाता है क्या?
मदनलाल: अरे, बहू, ये तो प्यार का तरीका है। —कहते हुए उसने काम्या के कंधे और गर्दन पर लव बाइट्स देना शुरू कर दिया।

मदनलाल का हर स्पर्श काम्या को और गर्म कर रहा था। वो किसी मांसाहारी जानवर की तरह उसकी देह को नोच रहा था, और काम्या का जिस्म उसकी भूख का शिकार बन रहा था। अचानक, मदनलाल ने उसकी टी-शर्ट ऊपर खींचनी शुरू की। काम्या ने विरोध किया, “बाबूजी, ये क्या कर रहे हैं?”

मदनलाल: बस, जरा गुलाल लगाना है, बहू।
काम्या: ऐसे ही ऊपर से लगा लीजिए ना।
मदनलाल: नहीं, बहू, ऐसे नहीं चलेगा। जरा हाथ ऊपर करो।
काम्या: नहीं, बाबूजी, हमें शरम आती है। ऊपर से ही लगा लीजिए।
मदनलाल: ये तो गलत बात है, बहू। पूरे मोहल्ले के साथ होली खेली, और अपने ससुर के साथ मना कर रही हो?
काम्या: हाय राम! हमने कब मोहल्ले वालों के साथ होली खेली?
मदनलाल: अरे, हमने खिड़की से सब देखा। वो सक्सेना का लड़का तेरी छाती में हाथ डालकर रंग लगा रहा था।
काम्या: वो तो कमीना है। औरतों ने पहले ही बता दिया था कि वो बदमाश है। हमने उसे डाँटा भी था।
मदनलाल: और मिश्रा जी का दामाद? वो तो तुझे पीछे से पकड़कर मसल रहा था। कितनी देर तक मसला उसने!
काम्या: उसके बारे में तो हमें कुछ पता ही नहीं था। अचानक पकड़ लिया। छुड़ाने की कोशिश की, मगर वो ताकतवर था। कमीना हरामी है! मिश्रा जी को ऐसा ठरकी दामाद कहाँ से मिला?
मदनलाल: जब सबने तुझसे होली खेली, तो हमें क्यों रोक रही है? ये तो वही बात हुई, “सबको बाँटो, हमें डाँटो!”
काम्या: क्या! हमने क्या बाँटा सबको?
मदनलाल: अरे, त्योहार की खुशियाँ बाँटीं ना। अब हमें मना कर रही हो?

कहते हुए मदनलाल ने फिर से टी-शर्ट खींची। काम्या ने मजबूरी में हाथ ऊपर कर दिए, और टी-शर्ट उतर गई। अब वो कमर के ऊपर पूरी नंगी थी। मदनलाल झुका और उसकी मखमली पीठ पर चुम्बन शुरू कर दिए। बीच-बीच में वो हल्के से दाँत भी गड़ा देता। काम्या फिर से गर्म होने लगी। अचानक, मदनलाल ने उसे कंधों से पकड़कर घुमाया। अब काम्या की चूचियाँ उसके सामने थीं—गोल, मक्खन जैसे, और उनके ऊपर काले अंगूर जैसे निप्पल। मदनलाल की साँसें रुक गईं। वो एकटक उन्हें निहारने लगा।

काम्या की आँखें बंद थीं। जब कुछ देर तक सन्नाटा रहा, तो उसने हल्के से आँखें खोलीं। देखा, बाबूजी पागलों की तरह उसकी चूचियों को घूर रहे हैं। “बाबूजी, हो गई होली? अब मैं जाऊँ?” उसने धीरे से पूछा।

मदनलाल की तंद्रा टूटी। “बस एक मिनट, बहू,” कहते हुए उसने काम्या की एक चूची मुँह में ले ली। फिर तो वो पागलों की तरह चूसने लगा। काम्या की सिसकारियाँ फिर शुरू हो गईं। “आह… बाबूजी… ओह माय गॉड… स्स्स… जोर से मत काटिए… धीरे चूसिए…”

सुनील भी काम्या की चूचियाँ चूसता था, मगर मदनलाल की कला उसके सामने फीकी थी। काम्या मन ही मन बुदबुदाई, “बाप बाप ही होता है, बेटा कभी बाप नहीं बन सकता।” करीब 15 मिनट तक मदनलाल ने बारी-बारी से उसकी चूचियों को चूसा। काम्या की चूत से पानी की धाराएँ बह रही थीं। अचानक, मदनलाल साँस लेने के लिए रुका। काम्या आँखें मूँदे खड़ी थी, उसकी नंगी सुंदरता रति को भी चुनौती दे रही थी। मदनलाल ने उसकी गर्दन पकड़कर अपनी ओर खींचा और उसके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए। काम्या अब पूरी तरह आग का गोला बन चुकी थी। पराए मर्द का चुंबन उसे और रोमांचित कर रहा था।

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कुछ देर बाद उसे होश आया। “बाबूजी, अब छोड़ दीजिए। बहुत होली खेल ली,” उसने कहा।
मदनलाल: बस, बहू, एक मिनट। जरा गुलाल तो लगा लूँ।

उसने कुरते की जेब से गुलाल निकाला और काम्या के पेट, चूचियों और गर्दन पर रगड़ने लगा। गुलाल का खुरदरापन काम्या को और उत्तेजित कर रहा था। उसकी साँसें फिर तेज हो गईं। अचानक, मदनलाल ने उसकी लेगिंग की इलास्टिक में उंगली फँसाई और उसे गांड तक नीचे खींच दिया। फिर उसने काम्या की गांड पर गुलाल रगड़ना शुरू किया। ये वही गांड थी, जो उसके सपनों में रोज आती थी। वो बहक गया और उसकी गांड में उंगली डाल दी।

काम्या को झटका लगा। उसने आँखें खोलीं और देखा कि उसकी लेगिंग नीचे खिसकी पड़ी है। “बाबूजी, ये क्या कर रहे थे?” उसने घबराते हुए कहा और लेगिंग ऊपर खींच ली।

मदनलाल: कुछ नहीं, बहू, बस गुलाल लगा रहा था।
काम्या: नहीं, बाबूजी, नीचे बिल्कुल नहीं!

उसने टी-शर्ट उठाई और नंगी ही अपने कमरे में भाग गई। मदनलाल उसकी थिरकती गांड को देखता रहा। उसकी हर मटक के साथ उसका लंड झटके खा रहा था। फिर वो बाथरूम की ओर चला गया।

अपने कमरे में जाकर मदनलाल सोचने लगा। आज का दिन उसके लिए मील का पत्थर था। पहली बात, काम्या ने खुद कहा, “धीरे दबाइए,” यानी उसके अंदर आग सुलग रही थी। दूसरा, उसने जी भरकर उसकी चूचियाँ चूसीं। वो जानता था कि चूचियाँ औरत का सबसे संवेदनशील अंग होती हैं। ओशो ने तो यहाँ तक लिखा था कि स्त्री को समाधि के लिए भृकुटी की जगह स्तनाग्र पर ध्यान देना चाहिए। madनलाल को यकीन था कि आज का सुख काम्या को बार-बार उसके पास खींच लाएगा। तीसरी और सबसे बड़ी बात—काम्या ने अपनी टी-शर्ट उतारने की इजाजत दे दी। एक बार औरत अपने कपड़े उतारने को तैयार हो जाए, तो उसका चारित्रिक पतन हो चुका होता है। अब वो सिर्फ वासना की लालच में बार-बार गिरती चली जाती है। madनलाल निश्चिंत था कि अब वो काम्या को ऊपर से तो नंगी कर ही लेगा। अब बस उसे लेगिंग उतारने के लिए राजी करना था। अगर वो नीचे भी हाथ लगाने दे दे, तो फिर उसका फौलादी लंड काम्या की मखमली चूत की गहराइयों में रोज सैर करेगा।

काम्या को याद करके उसका लंड फिर अंगड़ाई लेने लगा। उसने उसे मुठियाते हुए कहा, “बस, बेटा, थोड़ा सब्र कर। तेरे अच्छे दिन आने वाले हैं।”

इधर, काम्या अपने कमरे में हाँफ रही थी। उसे लग रहा था कि बाबूजी अभी भी उसकी चूचियाँ चूस रहे हैं। “हाय भगवान, बाबूजी क्या-क्या करते हैं! कहीं काटते हैं, कहीं निप्पल पर जीभ चुभलाते हैं, कहीं घुंडियों को दाँतों में हल्के से चबाते हैं। पता नहीं कहाँ से सीखा होगा ये सब!” फिर वो बुदबुदाई, “बाप इतना सयाना है, और बेटा बिल्कुल भोंदू। झल्ले को कुछ नहीं आता। कम से कम बाप से कुछ सीख लिया होता!”

वो इन बातों को याद करके गर्म हो रही थी, मगर उसे आश्चर्य भी था कि उसने बाबूजी को इतना कुछ करने दिया। ससुर तो बाप के समान होता है। पहले जो हुआ, वो अचानक हुआ, मगर आज तो उसने खुद टी-शर्ट उतार दी। और वो बेशर्मी से कह रही थी, “जोर से मत काटिए, धीरे करिए!” उसे अपनी हरकतों पर शरम आने लगी। वो इज्जतदार घर की बेटी और संस्कारी बहू थी। “हम तो कच्ची उम्र की हैं, मगर बाबूजी तो सयाने हैं। फिर भी बच्चों की तरह चपर-चपर दूध पीने लगे!” अपनी चूचियों को सहलाते हुए उसने सोचा, “मर्द चाहे कोई हो, इनके जोश से बचकर कहाँ जाएगा?”

तभी उसे याद आया कि सुनील के अलावा उसकी चूचियों से खेलने वाला madनलाल दूसरा पराया मर्द नहीं था। उससे पहले उसके फिजिक्स के टीचर पटेल सर ने उसके नए-नए नींबुओं से मनमानी की थी। वो घटना उसके सामने चलचित्र की तरह घूमने लगी।

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बारहवीं कक्षा की बात थी। प्रैक्टिकल एग्जाम का दिन था। एक दूसरी स्कूल की लेडी टीचर निरीक्षक थी। उसने क्लास का दौरा किया, सवाल पूछे और चली गई। काम्या का पेपर खराब हो गया था, और वो ढंग से जवाब भी नहीं दे पाई थी। पटेल सर कुछ लिख रहे थे। एग्जाम के बाद उन्होंने काम्या और पिंकी को रोक लिया। एक लिस्ट दिखाई, जिसमें दोनों को 50 में से 10 नंबर मिले थे। काम्या के पैरों तले जमीन खिसक गई। दोनों सर के सामने रोईं, मगर सर बोले, “ये नंबर मैडम ने दिए हैं।”

रो-धोकर जब वो जाने लगीं, तो कुछ दूर पर पटेल सर ने पिंकी को बुलाया। दोनों कुछ देर बात करते रहे। जब पिंकी लौटी, तो खुश थी।

काम्या: क्या बात है? अचानक खुश क्यों हो रही है?
पिंकी: सर पास करने को तैयार हो गए हैं।
काम्या: कैसे? अचानक क्यों बदल गए?
पिंकी: कल हमें 11 बजे लैब में बुलाया है।
काम्या: स्कूल की छुट्टियाँ हो गईं, फिर लैब में क्यों?
पिंकी: तेरी पूजा करने को बुलाया है।
काम्या: मतलब? समझी नहीं।
पिंकी: सुन, पटेल सर की बीवी दूसरे शहर में है। वो यहाँ अकेले शांड-भुसंड की तरह पड़े हैं। बोले हैं, थोड़ा एंजॉय करा दो, तो पास कर देंगे।
काम्या: क्या! तू पागल हो गई है? ये क्या बकवास है?
पिंकी: ना मैं पागल हूँ, ना बकवास बोल रही हूँ। मुझे फेल नहीं होना, ना बारहवीं में दोबारा बैठना है।
काम्या: तो क्या इज्जत बेच देगी? होश में तो है?
पिंकी: इज्जत-विज्जत बेचने की जरूरत नहीं। सर सिर्फ ऊपर-ऊपर करेंगे। मैंने साफ बात कर ली है।
काम्या: पिंकी, तू पागल है। एक बार फिर सोच ले।
पिंकी: मैंने सब सोच लिया। मुझे साल बर्बाद नहीं करना। तू भी सोच ले—साल बर्बाद करना है या थोड़ा दूध मसलवाना। सर बस किसिंग-विसिंग करेंगे, हाथ फेरेंगे।
काम्या: सॉरी, मुझे कुछ नहीं करना। तेरी सलाह तुझे मुबारक। मैं ऐसी-वैसी लड़की नहीं।
पिंकी: मैं भी ऐसी-वैसी नहीं, मगर हालात मजबूर करते हैं। फेल हो गई, तो पिताजी घर में बैठा देंगे।

दोनों अलग हो गए। काम्या का दिमाग भन्ना गया। “हाय राम, कहीं सचमुच फेल हो गई तो?” रात भर वो सो नहीं पाई। सुबह पिंकी का फोन आया।

पिंकी: बोल, लेने आऊँ?
काम्या: पिंकी, स्कूल बंद है। कहीं सर जबरदस्ती करें तो?
पिंकी: चिंता मत कर। सर से बात हो गई है, सिर्फ ऊपर-ऊपर करेंगे। प्रिंसिपल और चौकीदार भी होंगे। और हम दो हैं, अकेले तो नहीं।
काम्या: कहीं सर ने किसी को बता दिया तो? बदनाम हो जाएँगे।
पिंकी: वो ऐसा नहीं करेंगे। उनका नुकसान ज्यादा है—नौकरी जाएगी, बीवी भी छोड़ सकती है। टेंशन मत ले।

दोनों लैब पहुँचीं। काम्या को देखकर पटेल सर की आँखें चमक उठीं। उन्हें यकीन नहीं था कि वो मानेगी। पिंकी अंदर गई, सर से बात की, फिर काम्या से बोली, “मैं दरवाजे पर हूँ। तू अंदर जा, साले को थोड़ा एंजॉय करा दे। डर मत।”

काम्या सिर झुकाए टेबल तक पहुँची। पटेल सर ने उसे दीवार से सटा दिया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो भूखे भेड़िए की तरह चूसने लगा। उसका हाथ काम्या के नए-नए बूब्स पर पहुँच गया और जोर-जोर से मसलने लगा। “सर, दर्द दे रहा है, जोर से मत करिए,” काम्या बोली।

“सॉरी, डार्लिंग, अब धीरे करूँगा,” कहकर सर ने बारी-बारी से उसके बूब्स मसले। वो लगातार उसके होंठ चूस रहा था। काम्या की साँसें तेज हो गईं। हालाँकि वो अनिच्छा से ये सब सह रही थी, मगर प्रकृति के नियम अलग हैं। पहली बार किसी मर्द का स्पर्श उसे मिल रहा था। उसके निप्पल कठोर हो गए, जाँघों में सिहरन होने लगी।

पटेल सर लंबे थे, उन्हें परेशानी हुई, तो उन्होंने काम्या को कुर्सी पर बिठाया और उसके बूब्स पर टूट पड़े। थोड़ी देर बाद वो उसका ब्लाउज ऊपर करने लगे।

काम्या: सर, नहीं! ऊपर से ही करिए।
पटेल: बस, बेबी, थोड़ी देर की बात है। ज्यादा नहीं करूँगा।
काम्या: नहीं, सर, सिर्फ ऊपर की बात हुई थी।
पटेल: ऊपर का मतलब कमर के ऊपर। अगर इन्हें देख भी नहीं पाया, तो क्या मतलब?

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काम्या ने फिर मना किया, मगर पटेल गुस्से में बोला, “मैं तुम्हारे लिए नौकरी दाँव पर लगा रहा हूँ, और तुम नखरे कर रही हो? फाइनल लिस्ट बनानी है, प्रिंसिपल ने मैडम की ओरिजिनल शीट माँगी, तो मेरी नौकरी जाएगी। ज्यादा दिक्कत है, तो जा, पिंकी को भेज।”

काम्या चुप रही। पटेल ने फिर ब्लाउज खोला। इस बार उसने विरोध नहीं किया। उसके बूब्स बाहर आए, तो पटेल अवाक रह गया। अगले ही पल उसका एक बूब पटेल के मुँह में था। काम्या सिहर उठी। आज तक उसने सिर्फ बच्चों को चूचियाँ चूसते देखा था। पहली बार एक जवान मर्द उसकी चूची चूस रहा था। उसका बदन फिर से गर्म होने लगा।

पटेल की वासना बढ़ती गई। उसका हाथ काम्या की जाँघों पर घूमने लगा। उसे होश तब आया, जब सर उसकी पैंटी खींचने लगे। “सर, ये क्या कर रहे हैं? छोड़िए!” काम्या चिल्लाई।

पटेल: बस, बेबी, एक मिनट। अपनी गुड़िया के दर्शन करा दे।
काम्या: नहीं, सर, आप हद पार कर रहे हैं!

काम्या की तेज आवाज सुनकर पिंकी अंदर झाँकी। देखा, सर का हाथ काम्या की स्कर्ट में है। वो समझ गई कि सर की नियत बिगड़ गई है। उसने काम्या को बाहर भेजा और खुद अंदर रही। कुछ देर बाद पिंकी की सिसकारियाँ सुनाई दीं, फिर सर की कराहट। काम्या ने धीरे से झाँका।

अंदर का नजारा देखकर उसका कलेजा मुँह को आ गया। पटेल सर नंगे कुर्सी पर बैठे थे, और पिंकी भी नंगी घुटनों पर थी। सर का लंड पिंकी के मुँह में था, और वो उसे चाव से चूस रही थी। काम्या काँप गई और बाहर देखने लगी। मगर जवानी दीवानी होती है। उसने फिर झाँका। पिंकी सर के लंड को जड़ तक चूस रही थी, और सर नीचे से कमर उछाल रहे थे। शरम के मारे काम्या फिर बाहर देखने लगी।

15 मिनट बाद पिंकी बाहर आई।
पिंकी: चल, बन्नो, अब पास होने की चिंता छोड़।
काम्या: तूने कहा था, सर सिर्फ ऊपर-ऊपर करेंगे। फिर ये क्या था?
पिंकी: वो तुझसे भी यही चाहता था, मगर तू नहीं मानी। मुझे मालूम था, तू फेल हो जाएगी, पर ये नहीं करेगी। सो, मुझे अकेले संभालना पड़ा।
काम्या: तूने वो कैसे कर लिया? डिस्गस्टिंग था!
पिंकी: टेक इट ईजी। मेरा बीएफ है, मैं आदी हूँ।

कुछ दिन बाद काम्या को पता चला कि सर की लिस्ट फर्जी थी। उसे गुस्सा आया, मगर रिजल्ट ने उसका गुस्सा शांत कर दिया। खराब पेपर के बावजूद उसे 50 में 40 नंबर मिले, और पिंकी को 48। आखिर, उसने ज्यादा “सेवा” जो की थी।

वर्तमान में
काम्या इन पुरानी यादों में खोई थी। पटेल सर की वो हरकतें और अब बाबूजी की छेड़छाड़—दोनों ने उसकी जवानी को भड़काया था। मगर बाबूजी की कला में कुछ और ही जादू था। वो सोच रही थी, “हाय राम, बाबूजी ने तो ऐसा कर दिया कि सुनील की सारी कसर निकल गई।” मगर उसे डर भी था। “ये रिश्ता गलत है। अगर मम्मी को पता चला, तो घर में हंगामा मच जाएगा।” फिर भी, उसकी चूत की गर्मी उसे बार-बार बाबूजी की ओर खींच रही थी।

उधर, मदनलाल भी अगले कदम की योजना बना रहा था। उसे यकीन था कि काम्या अब पूरी तरह उसके जाल में फँस चुकी है। बस, एक धक्का और, और वो उसकी चूत तक पहुँच जाएगा।

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क्या काम्या अब और डूबेगी, या अपनी संस्कारी इज्जत बचा लेगी? आप क्या सोचते हैं, कमेंट में बताएँ!

कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-5

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