बहकती बहू-20

Sasur Bahu ka risky sex  – कहानी का पिछला भाग: बहकती बहू-19

अब आगे…

दूसरे दिन सुबह-सुबह सुनील अपने दोस्तों के साथ चला गया, शाम को लौटने की बात कहकर। ये उसकी पुरानी आदत थी—आने के दो दिन बाद से दोस्तों के साथ सारा दिन घूमता रहता। काम्या अभी बिस्तर से उठी नहीं थी। शांति और मदनलाल बैठकर चाय पी रहे थे। आज शांति के चेहरे पर अलग ही रौनक थी, मानो जवानी लौट आई हो। जब काम्या उठकर आई, तो देखा बाबूजी और माँजी चाय पी रहे हैं। उसने गौर किया कि आज माँजी ने भक्ति चैनल नहीं लगाया, बल्कि टीवी पर पुराने फिल्मी गाने चल रहे थे। काम्या मन-ही-मन बुदबुदाई, “एक ही रात में बुढ़िया को नशा चढ़ गया। देखो, रंग-ढंग बदल गए। आज फिल्मी गाने देख रही, दो-चार दिन में फैशन टीवी शुरू कर देगी।”

काम्या ने करीब आकर दोनों को नमस्ते की, तो नजर पड़ी कि शांति का हाथ मदनलाल की जाँघ पर रखा है। काम्या अंदर ही अंदर जल-भुन गई। जब वो वहाँ से निकली, तो मदनलाल एकटक उसकी मटकती गाण्ड को देखता रहा। कुछ देर बाद काम्या नहाने के कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गई। अचानक शांति ने मदनलाल से कहा,

शांति: अरे, मैं तो भूल ही गई। मुझे मंदिर जाना है, वहाँ आज कथा है। तुम तो सब भुला देते हो। मैं जा रही हूँ, दोपहर तक लौटूँगी।

शांति ने मदनलाल को कातिलाना नजरों से देखा और बाहर चली गई। शांति के जाने की बात सुनते ही मदनलाल के मन में लड्डू फूटने लगे।

शांति के जाते ही मदनलाल ने फौरन घर को अंदर से लॉक किया और धीरे-धीरे बाथरूम की ओर बढ़ा। बाथरूम पहुँचकर उसने दरवाजा खटखटाया।

बाथरूम में काम्या बिल्कुल नंगी शावर ले रही थी। ऊपर से रिमझिम पानी बरस रहा था, नीचे उसका भीगा बदन जल रहा था। वो अपने मम्मों को पकड़कर मसल रही थी। पहले काम्या के मम्मे औसत थे, सिर्फ हिप्स बड़े थे, पर अब मम्मे भी औसत से बड़े हो गए थे—सब मदनलाल की मेहनत का नतीजा। मौका मिलते ही बाबूजी बहू के मम्मों पर पिल पड़ते। शांति के घर में रहते भी, किचन हो या छत, मदनलाल को जरा-सा मौका मिला, तो वो काम्या के मम्मों से खेलने लगता। इस दिन-रात की मेहनत से बहूरानी का सीना गर्व से ऊँचा हो गया था। अब सामने से भी काम्या बेहद कामोत्तेजक, बल्कि घातक और मारक हो गई थी।

काम्या बड़ी तन्मयता से अपनी जवानी से खेल रही थी कि अचानक दरवाजे पर खट-खट की आवाज हुई। वो चौंक गई। कहीं बाबूजी तो नहीं आ गए, जैसे पहली बार आए थे? पर दिल ने कहा, “नहीं, मम्मी बाबूजी के साथ थी, वो ऐसी हिम्मत नहीं करेंगे।” तभी उसकी नजर मम्मी के कपड़ों पर पड़ी, जो टंगे थे। सोचा, मम्मी लेने आई होगी। टॉवल लपेटकर दरवाजा खोलने वाली थी कि कल रात की घटना याद आ गई। उस घटना के लिए वो शांति को कुछ कह नहीं सकती थी, पर नारी मन की ईर्ष्या जाग उठी। सोचा, “कल बुढ़िया मजे लूट रही थी। आज इसे दिखाती हूँ, असली जवानी क्या होती है। बहुत बन रही थी—‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम’!”

वैसे तो काम्या ने ही शांति के हक पर डाका डाला था, पर अब उसकी सोच बदल गई थी। उसे लग रहा था, जैसे शांति ने उसका हक मार लिया हो। वो बुदबुदाई, “उम्र देखो, हाफ सेंचुरी पार, बालों में खिजाब, बदन में चर्बी, हर जोड़ दुखता है, पर कल कैसे उछल रही थी। लंड मिला, तो चीखी जैसे कल ही सील तुड़वाई हो।” तुलसीदास ने लिखा था, “नारी न मोहै नारी के रूपा।” काम्या की ईर्ष्या उफान पर थी। उसने फैसला किया, जो उसने कभी सोचा भी नहीं था—मम्मी के सामने नंगी ही दरवाजा खोलेगी, ताकि सास उसकी जवानी देख जल-भुन जाए।

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काम्या ने धीरे से चिटकनी हटाई और फौरन शावर के नीचे आकर आँखें बंद कर लीं। आँखें बंद थीं, पर कान शांति के कदमों की आहट पर लगे थे। धीरे-धीरे दरवाजा खुलने की आवाज आई, फिर कदम उसकी ओर बढ़े। जब कदम ठीक पीछे रुके, तो काम्या सोचने लगी कि सास उसकी जवान हसीन देह, मांसलता, चिकनाई, और नपे-तुले अंगों को देखकर जल रही होगी। वो बेफिक्र होकर गुनगुनाते हुए नहाने लगी।

इधर, बाथरूम का दरवाजा खुलते ही मदनलाल ने जो देखा, उसे सन्निपात-सा हो गया। ऊपर की साँस ऊपर, नीचे की साँस नीचे रह गई। अगर साँस लेना इंसान के हाथ में होता, तो आज मदनलाल की हृदय गति रुकने से मृत्यु तय थी। शावर के नीचे मालिका-ए-हुस्न काम्या निर्वस्त्र नहा रही थी। उसका एक-एक अंग साँचे में ढला था। पिछली बार जब मदनलाल ने उसे यहीं नंगी देखा था, तब से अब तक उसके हुस्न में और निखार आ गया था। बाबूजी की दी खुशी और संतुष्टि से काम्या के अंग और खिल उठे थे। मम्मे अब हिमालय के श्वेत शिखरों-से उन्नत। दोनों हाथ सिर पर थे, जिससे उरोज और ऊपर उठकर मदनलाल को खुला निमंत्रण दे रहे थे। मदनलाल चित्रवत खड़ा, कुदरत की नायाब करामात निहार रहा था। काम्या का सौंदर्य अप्सरा-सा। पानी की बूँदें उसके बदन से धीरे-धीरे गिर रही थीं, मानो स्वर्ग की अप्सरा जल विहार कर रही हो।

काम्या गुनगुनाते हुए नहा रही थी, पर ध्यान इस बात पर कि शांति की क्या दशा हो रही होगी। मदनलाल ने अंदर आने से पहले कुर्ता उतार दिया था, सिर्फ लुंगी में था। सम्मोहित-सा आगे बढ़ा, काम्या की पीठ के पास खड़ा हो गया। काम्या को उसकी गर्म साँसें महसूस हुईं, पर वो समझ नहीं पाई कि साँसें किसकी हैं। अचानक मदनलाल का मर्द जागा। उसने पीछे से दोनों हाथ आगे ले जाकर काम्या के संतरों को मुट्ठियों में भींच लिया। काम्या आँखें बंद किए नहा रही थी। चुचियाँ क़ैद होते ही भौंचक रह गई। शांति से ऐसी उम्मीद नहीं थी। सपने में भी नहीं सोचा था कि सास लेस्बियन हो सकती है। उसने फौरन शावर बंद किया और हड़बड़ाते हुए बोली,

काम्या: मम्मी, ये क्या कर रही हैं? आपको क्या हो गया?

पर वहाँ मम्मी होती, तो कुछ बोलती। मदनलाल चुप रहा और जोर-जोर से चुचियाँ मसलने लगा। इस जद्दोजहद में उसकी लुंगी खुलकर नीचे गिर गई। काम्या को अचानक गाण्ड में कुछ चुभता-सा महसूस हुआ। ताकत लगाकर थोड़ा घूमी और पीछे देखा, तो साँप सूँघ गया। बाबूजी उसी की तरह नंग-धड़ंग खड़े, उसे पकड़े हुए। भयभीत काम्या के मुँह से निकला,

काम्या: बाबूजी, ये क्या कर रहे? मम्मी आ गई, तो गजब हो जाएगा। प्लीज, यहाँ से जाएँ। आपके हाथ जोड़ती हूँ।

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पर मदनलाल पर कोई असर नहीं। स्तन मर्दन जारी रखते हुए उसने काम्या के नाजुक कंधों को चूमना शुरू किया। साथ ही कमर अडजस्ट कर छोटू को गाण्ड की दरार में फिट कर दिया। बाबूजी के लंबे, मोटे मूसल की रगड़ काम्या को बेचैन कर रही थी। दो दिन से सुनील के छोटे लंड से काम चलाना पड़ रहा था, जो उसे संतुष्ट नहीं कर पा रहा था। बाबूजी की हरकतों और जवान जिस्म की माँग से उसका बदन बेकाबू होने लगा। साँसें तेज, आँखों में सरूर। पर वक्त ऐसा नहीं था कि भावनाओं में बह जाए। सास घर में थी, वो भी फ्री। ससुर के साथ नहाते हुए रंगरेलियाँ मनााना बड़ा रिस्क था। काम्या ने फिर छुड़ाने की कोशिश की।

काम्या: बाबूजी, छोड़िए। ये क्या पागलपन? मम्मी घर पर हैं, दिन-दहाड़े मस्ती सूझ रही?

पर मदनलाल अपनी मस्ती में डूबा रहा। काम्या का बदन मक्खन-सा चिकना, गीला होने से मछली-सा फिसल रहा था। मदनलाल ने उसे कसकर पकड़ा, एक हाथ चुचे से हटाकर चूत पर रखा। क्लिट पर हाथ लगते ही काम्या काँप गई। पूरे बदन में चीटियाँ रेंगने लगीं। मदनलाल मजे लेते हुए मुनिया सहलाने लगा।

काम्या का शरीर अब कंट्रोल से बाहर जा रहा था, पर दिमाग अभी थोड़ा काबू में था। कातर स्वर में बोली,

काम्या: बाबूजी, प्लीज, आपके पैर पड़ती हूँ, छोड़ दीजिए। मम्मी घर पर हैं, समझते क्यों नहीं? वो अभी आ गई, तो अनर्थ हो जाएगा।

काम्या के स्वर में कंपन और रुआँसापन था। मदनलाल को दया आ गई। उसने धीरे से कान में कहा,

मदनलाल: जान, चिंता मत करो। शांति घर पर नहीं है।
काम्या: क्या? मम्मी घर पर नहीं? अभी तो आपके साथ थीं।
मदनलाल: वो मंदिर में कथा के लिए गईं। दोपहर तक लौटेंगी।

ये सुनते ही काम्या की जान में जान आई। टेंशन दूर, शरीर हल्का। उसने कहा,

काम्या: तभी इतनी दिलेरी दिखा रहे। मैं तो समझी, आपको हो क्या गया?

मदनलाल ने काम्या को घुमाकर आमने-सामने किया। सामने से उसके संतरे कहर ढा रहे थे। मदनलाल घुटनों पर बैठा और प्यारे फलों को मुँह में भर लिया। बारी-बारी दोनों चुचों को जोर-जोर से चूसने लगा। एक हाथ जाँघों के बीच डालकर चूत पर अटैक किया। लंबी उंगली सुरंग में घुसी, तो काम्या सिसकारियाँ लेने लगी।

काम्या: आह, शी… शी… उई माँ! जानू, प्लीज मत तड़पाओ।

मदनलाल ने दो उंगलियाँ लव टनल में डाल दीं। जी की गठान पर सर्कुलर मोशन में घुमाने लगा। काम्या के बदन में आग लग गई। उसे लगा, चूत में अनारदाना जल रहा हो। बेसब्र होकर बोली,

काम्या: बाबूजी, उंगली से नहीं, उससे करिए।
मदनलाल: किससे?
काम्या: धत, आप बहुत गंदे हैं। अपने उससे करिए ना।
मदनलाल: हम ही सब करेंगे? तुम कुछ नहीं करोगी?
काम्या: ये काम तो मर्दों का है। हम क्या करें?
मदनलाल: चाहो, तो बहुत कुछ कर सकती हो।
काम्या: बोलिए, हम क्या करें?

मदनलाल खड़ा हुआ, काम्या के कंधे पकड़कर दबाने लगा। बहूरानी समझ गई, बाबूजी क्या चाहते हैं। इठलाते हुए बोली,

काम्या: जानू, हमारे बीच समझौता था, कुछ दिन नहीं पिएँगे।
मदनलाल: समझौता पीने का था, चूसने का नहीं। थोड़ी मेहनत तुम भी करो। सिर्फ मजे लेना जानती हो?

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काम्या ने कामुक, कातिलाना नजरों से मदनलाल को देखा।

काम्या: मजे लेना भी जानती हूँ, देना भी। ये सब आपने ही सिखाया।

काम्या घुटनों पर बैठी। बाबूजी का कोबरा फन फैलाए डोल रहा था। उत्तेजना से सुपाड़ा लाल, मानो गुस्से में हो। काम्या ने गप्प से उसे मुँह में लिया और चपर-चपर चूसने लगी। अब सिसकारी मदनलाल की बारी थी। उसने काम्या का सिर पकड़कर कंट्रोल करने लगा। काम्या ने ब्लोजॉब देना देर से सीखा, पर महारत हासिल कर ली। आखिर कोच एक नंबर का था। जितना हो सके लंड अंदर लेती, होंठ कसकर वापस आती, पंप-सा वैक्यूम बनता। मदनलाल के लंड में उबाल आने लगा। दो मिनट सकिंग के बाद मदनलाल ने उसे खड़ा किया, पीछे घुमाया। काम्या की सलोनी गाण्ड सामने थी। मदनलाल ने उसे दीवार की ओर झुकाया। काम्या ने कमर कर्व कर नितंब बाहर उछाले। दुकान प्रवेश के लिए तत्पर। फिसलने से बचने को नल की टोंटी पकड़ी। मदनलाल और सब्र न कर सका। सुपाड़ा चूत के मुहाने पर लगाया और करारा शॉट मारा। दोनों के बदन पानी से लुब्रिकेटेड थे। पहले धक्के में लंड तीन-चौथाई अंदर समा गया। काम्या के मुँह से दर्दभरी चीख निकली।

काम्या: उई मम्मी, मर गई! आह… स्स्स… शीशीशी!
मदनलाल: क्या हुआ, जान?
काम्या: बहुत दर्द दे रहा। एक झटके में क्यों डाल देते? आराम से नहीं कर सकते?
मदनलाल: जानेमन, तुम्हें देख आराम हराम हो जाता। बोलो, निकाल लें?
काम्या: जी नहीं, अब ज्यादा मत बनिए। निकालने को डाला था? धीरे-धीरे करते रहिए। लंबे-लंबे शॉट अच्छे लगते हैं।
मदनलाल: लंबे शॉट अच्छे, या लंबा वाला भी?
काम्या: धत, बेशर्म कहीं के। बहू से ऐसी बात करते शर्म नहीं? सचमुच बहुत गंदे हो।

मदनलाल ने काम्या की नाजुक कमर पकड़ी और लंबे, गहरे स्ट्रोक मारने लगा। हर धक्के के साथ काम्या की सिसकारियाँ बढ़ती गईं। उसकी कामुकता चरम पर थी। वो जोर-जोर से आवाजें करने लगी। भीगे बदन में बाबूजी का लंड चूत में कोहराम मचा रहा था। जब काम्या चरम पर पहुँचने लगी, आदतन बड़बड़ाने लगी।

काम्या: ओह यस, बाबूजी, फक मी लाइक योर बिच! आइ एम योर स्लट! यू ऑलवेज वॉन्टेड टु फक मी इन डॉगी स्टाइल! नाउ शो मी योर पावर एंड स्टैमिना!

काम्या की बातों ने मदनलाल को गरमा दिया। वो भकाभक शॉट मारने लगा। लंड मिसाइल-सा अंदर-बाहर हो रहा था। दो मिनट में काम्या काँपने लगी, खुद को रोक न पाई। जोर की सिसकारी के साथ झड़ने लगी। ऑर्गेज्म इतना जबरदस्त था कि टाँगें बोझ न संभाल पाईं। वो गिरने को हुई, तभी मदनलाल ने परिस्थिति भाँपकर उसे बाहों में संभाल लिया। थोड़ी देर स्थिर रहा। जब काम्या संभली, तो मदनलाल ने बची ताकत लगाई और दनादन पेलता रहा, जब तक कोख को अपने बीज से नहीं भर दिया।

कहानी का अगला भाग कल प्रकाशित होगा

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