Bahu ki shuhagrat Sasur ke sath – कहानी का पिछला भाग: बहकती बहू-16
काम्या की टाँगें हवा में थीं, और उसके जाँघों के बीच का जन्नत का नजारा मदनलाल की आँखों के सामने चमक रहा था। उसका मुँह लार से भर गया, मानो कोई भूखा शेर रसीले मांस को देख रहा हो। लेकिन इस बार वो कोई जोखिम नहीं लेना चाहता था। अपने पुराने अनुभवों से उसने सीखा था कि पहली चुदाई में सावधानी बरतना जरूरी है, वरना खेल बिगड़ सकता है। वो उठा और काम्या के ड्रेसिंग टेबल की ओर बढ़ गया। एक-एक कर दराज खंगालने लगा। इधर, टाँगें उठाए बेड पर लेटी काम्या को हर पल एक युग-सा लग रहा था। उसकी बेसब्री छुपाए नहीं छुप रही थी। उसने अपनी कातिलाना जवानी की ओर इशारा करते हुए कहा,
काम्या: ओह हो! अब वहाँ क्या ढूँढ रहे हो? जो चाहिए, वो यहाँ बेड पर पड़ा है!
मदनलाल: क्या बात है, कुछ ज्यादा ही जल्दी है?
काम्या: हाँ, जल्दी है! हमें अपनी सुहागरात मनानी है! लड़कियाँ इस रात का सारी उम्र इंतजार करती हैं।
तब तक मदनलाल को कोल्ड क्रीम की डिब्बी मिल गई। उसे काम्या को दिखाते हुए बोला,
मदनलाल: जानू, ये ढूँढ रहे थे। अब तुम्हें कम तकलीफ होगी। आखिर तुम्हारी तकलीफ का ख्याल भी तो रखना है।
काम्या बाबूजी की इस फिक्र को देखकर दिल से खुश हो गई। उसका नया प्रेमी इतना ख्याल रखता था कि उसका दिल प्यार से लबालब भर गया। वो बोली,
काम्या: प्लीज, आप हमारी ज्यादा चिंता मत करो। जो होगा, देखा जाएगा। हर लड़की के साथ ये होता है, हम कोई अलग थोड़ी हैं? अब हम कुछ नहीं बोलेंगे। अगर चीखें, चिल्लाएँ, तो भी आप मत रुकना। अपना काम करके ही रहना। हमें आज के आज प्रेग्नेंट होना है, हाँ!
मदनलाल क्रीम लेकर फिर से काम्या की टाँगों के बीच आ गया। उसने ढेर सारी क्रीम निकाली और उंगली से बहू की चूत में रगड़ दी। उंगली को घुमा-घुमाकर उसने प्रेम गुफा को पूरी तरह चिकना कर दिया। बाबूजी की इस हरकत से काम्या बिस्तर पर मछली की तरह तड़पने लगी। आखिर मचले भी क्यों न? बाबूजी की उंगली सुनील के हथियार जितनी मोटी थी। मदनलाल ने दो-तीन बार क्रीम लगाकर गुफा को अच्छी तरह भरा। आज उसे इस गुफा में प्रवेश जो करना था। फिर उसने अपने मूसल पर भी ढेर सारी क्रीम चुपड़ दी। काम्या कनखियों से बाबूजी के लिंग महाराज का क्रीम अभिषेक देख रही थी। उसका मन तो कर रहा था कि अपने हाथों से लिंग का अभिषेक करे, लेकिन पहली बार की शर्म उसे रोक रही थी।
लिंग और योनि को अच्छी तरह लुब्रिकेट करने के बाद मदनलाल फिर से टाँगों के बीच आ गया। उसने अपना सुपाड़ा काम्या की चूत के मुहाने पर फिट कर दिया। मेहमान के कदम पड़ते ही काम्या ने दहशत में आँखें मूँद लीं। महीनों से वो इस मेहमान का इंतजार कर रही थी। मदनलाल भी जानता था कि चुदाई के शुरुआती पल मिसाइल लॉन्चिंग जैसे क्रिटिकल होते हैं। लंड जब चूत को फैलाता हुआ आगे बढ़ता है, वही सबसे मुश्किल वक्त होता है। उसने सोचा, बस किसी तरह सुपाड़ा अंदर हो जाए। एक बार सुपाड़ा अंदर गया, तो लंड सेल्फ-गाइडेड मिसाइल की तरह अपने रास्ते पर बढ़ता जाएगा। सारी समस्या सुपाड़े की एंट्री में थी, क्योंकि बहू हिल-डुलकर निशाना भटका सकती थी। एक बार एंट्री हो जाए, तो हिलना-डुलना मुश्किल।
मदनलाल: जानू, बस सामने वाला हिस्सा अंदर जाते वक्त थोड़ा दर्द होगा। उस वक्त को-ऑपरेट करना। डेढ़ इंच अंदर चला जाए, तो दर्द नहीं होगा। समझ रही हो?
काम्या: जी, बाबूजी। करिए, हम अब सब सहने को तैयार हैं। हमें पूरी औरत बना दीजिए।
मदनलाल ने पोजीशन ली और मूसल पर दबाव डाला। लंड धीरे-धीरे नन्हा छेद फैलाकर अंदर घुसने की कोशिश करने लगा। काम्या के चेहरे पर दर्द के भाव उभर आए। मदनलाल ने हल्का झटका मारा, आधा सुपाड़ा अंदर। काम्या के मुँह से हल्की चीख निकली, आँखों में आँसू छलक आए। बाबूजी के टोपे ने उसकी नन्ही परी को बुरी तरह फैला दिया था। भयंकर दर्द हो रहा था, लेकिन वो दर्द को पी रही थी। सुपाड़ा सही पोजीशन में फँसा देख, मदनलाल ने एक और शॉट मारा। कोल्ड क्रीम की वजह से फ्रिक्शन बिल्कुल नहीं था, और इस धक्के से पूरा सुपाड़ा बहू के अंदर गुम हो गया। काम्या के मुँह से घुटी-सी चीख निकली, माथे पर पसीना छलक आया। उसे लगा, जैसे किसी ने उसके नाजुक हिस्से में गरम खंजर घुसेड़ दिया हो, और वो बीच से दो हिस्सों में चिर गई हो।
काम्या की दशा देखकर मदनलाल को भी तरस आने लगा, लेकिन वो कर भी क्या सकता था? आखिर बहू को माँ भी बनाना था, और एक पूर्ण स्त्री भी, जो अपने यौवन का असल अनुभव ले सके। काम्या बिस्तर पर तड़प रही थी, लेकिन उसने एक बार भी बाबूजी को मना नहीं किया। मानो वो संकल्प लेकर आई थी कि आज इस सुख को पाकर रहेगी। मदनलाल पीड़ा को लंबा नहीं खींचना चाहता था। जो होना है, उसे एक बार में कर देना चाहता था। उसने एक लंबी साँस ली, एक हाथ काम्या के मुँह पर रखकर आवाज दबाई, और एक जबरदस्त देसी शॉट मार दिया। इस शॉट के साथ काम्या जोर से चीखी, लेकिन आवाज अंदर ही रह गई। क्रीम से लिपटा मूसल पूरा का पूरा जड़ तक बहू की कोख में समा गया।
काम्या को लगा, उसका अंत समय आ गया। जाँघों के जोड़ में महाभयंकर दर्द, सिर कटे बकरे-सी तड़प। बीच-बीच में अर्धबेहोशी छाने लगी। एक पल को लगा, इस खूंखार कोबरा को बेवजह प्यार किया। मगर असल मर्द से चुदने की आकांक्षा ने उसे चुप करा दिया। इधर, किला फतह करने के अहसास से मदनलाल बावरा हुआ जा रहा था। छह महीने से जिस बहू को चोदने के लिए तड़प रहा था, वो आज उसके नीचे बिछी थी, और वो आसमान बनकर छाया था। उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी अभिलाषा पूरी हो गई थी—काम्या के मादक, उत्तेजक, महासेक्सी बदन को भोगने की। इस बेइंतहा खुशी के बावजूद वो काम्या के दर्द के प्रति सजग था। वो चाहता था कि बहू को आराम मिले, ताकि वो भी सेक्स को एंजॉय कर सके और सुहागरात यादगार बन जाए।
मदनलाल ने काम्या की जाँघों को और ऊपर किया, अपने को बीच में अच्छे से अडजस्ट किया, ताकि काम्या निकल न पाए। हालाँकि, उसे नहीं पता था कि आज काम्या किसी भी हाल में निकलना नहीं चाहती थी। उसने अपना हाथ काम्या के मुँह से हटाया और अपने प्यासे होंठों को उसके तपते होंठों से लगा दिया। वो काम्या को फिर से गरम करना चाहता था, ताकि उसका ध्यान दर्द से हट जाए। उसने एक हाथ बढ़ाकर काम्या के संतरों पर रखा और उनका रस निचोड़ने लगा। ससुर की मेहनत रंग लाने लगी। काम्या को अब थोड़ा आराम मिलने लगा। इतनी देर में उसकी चूत बाबूजी के मूसल के हिसाब से अडजस्ट हो गई थी, हालाँकि दर्द अभी भी काफी था। समय की नजाकत को देखते हुए मदनलाल बिना कुछ किए उसके रसीले होंठों का रस पीता रहा। बीच-बीच में वो उसकी मांसल जाँघों को सहलाता, ताकि काम्या को जल्दी आराम मिले। कोल्ड क्रीम ने काम काफी आसान कर दिया था। पहले वो क्रीम सिर्फ गाण्ड मारने के लिए इस्तेमाल करता था, क्योंकि चूत चोदने में क्रीम से रगड़ का मजा खत्म हो जाता था। लेकिन बहू के लिए सब माफ था।
अचानक मदनलाल ने देखा कि काम्या का हाथ उसकी पीठ पर आ गया और वो उसे सहलाने लगी। इसका मतलब? बहू आगे के सफर के लिए तैयार थी। औरत मुँह से नहीं बोलती, इशारों से “मन की बात” कह देती है। काम्या बाबूजी को सहला रही थी, लेकिन दर्द अभी बाकी था, हालाँकि काफी कम हो गया था। नीचे लेटी वो बाबूजी के हथियार को अपने अंदर महसूस कर रोमांचित हो रही थी। उसे लग रहा था कि लंड उसकी नाभि से भी आगे चला गया है। बाबूजी का इतना मोटा था कि उसकी पूरी चूत ने लंड को जकड़ लिया था। काम्या को अपनी चूत ठसाठस भरी हुई लग रही थी। आज उसने अपनी अनछुई गहराई को नए सिरे से जाना। वो चकित थी कि इतनी बड़ी और मोटी चीज उसके अंदर कैसे समा गई। जितनी देर से बाबूजी अंदर डाले पड़े थे, उतनी देर में तो सुनील सो जाता था।
मदनलाल: बहू, दर्द दे रहा है क्या?
काम्या: हाँ, बाबूजी, अभी भी दर्द हो रहा है।
मदनलाल: तो निकाल लें क्या?
काम्या: नहीं, नहीं! तपाक से। थोड़ा दर्द तो होगा ही। आप हमारी फिक्र न करें।
मदनलाल: तुम्हारी फिक्र न करें, तो किसकी करें? तुम तो अब हमारी साँस में बस गई हो। अगर माँ बनाने का चक्कर न होता, तो हम ये करते भी नहीं।
काम्या: अच्छा, बिना किए रह लेते? इठलाते हुए।
मदनलाल: रह तो नहीं पाते, लेकिन तुम्हें तकलीफ देना पसंद नहीं।
काम्या: आपसे किसने कहा कि आप हमें तकलीफ दे रहे हैं? हमने कोई शिकायत की?
मदनलाल: नहीं, लेकिन तुम बहुत दर्द में दिख रही हो।
काम्या: वो तो हर औरत के साथ होता है। “There is no gain without pain.” जब हम शिकायत करें, तब बोलिए।
काम्या ने बाबूजी के चूतड़ों को कसकर पकड़ा और अपनी ओर खींच लिया। मदनलाल इशारा समझ गया, लेकिन मजा लेने के लिए फिर पूछा,
मदनलाल: बोलो ना, जान, करें कि नहीं?
काम्या: करें क्या होता है? आपने हमें करें बोलने के लिए मना किया, फिर खुद क्यों कह रहे?
मदनलाल: ओह, सॉरी, सॉरी। हमारा मतलब, चुदाई करें क्या?
काम्या: बाबूजी, एक बात बताइए, आपका वो पूरा हमारे अंदर धंसा है, अब चुदाई क्या किसी और चीज को बोलते हैं, जो परमिशन माँग रहे हो?
मदनलाल समझ गया कि चुदाई शुरू हो चुकी, अब धकापेल बाकी है। उसने लंड सुपाड़े तक बाहर खींचा। लंड की रगड़ से काम्या के अंदर दर्द की लकीर खिंच गई, और दर्द-आनंद की मिश्रित सिसकारी निकल पड़ी।
काम्या: आह, बाबूजी! धीरे करिए, दर्द हो रहा है। ओ मम्मी, किस जालिम के हत्थे पड़ गई मैं? ये तो जान लेने पर तुले हैं!
मदनलाल ने एक करारा शॉट मारा, मूसल फिर बच्चेदानी से टकराया।
काम्या: ओह, जालिम! धीरे करो ना! हमें मारना है? थोड़ा सबर नहीं कर सकते?
मदनलाल: तुम ही तो बोली थी, हमारी चिंता मत करो। अब क्या हुआ? जान, बस दो-चार धक्के सह लो, फिर देखना कितना मजा आएगा। आज तुम जवानी का असली मजा लूटोगी। ऐसा लगेगा जैसे आकाश में उड़ रही हो।
काम्या: तो आकाश में उड़ाइए ना, जल्दी से! बस आप भी हमारे साथ उड़ना, हाँ!
मदनलाल: हम तो साथ में ही रहेंगे। आखिर पाइलट तो हम ही हैं!
काम्या: तो पाइलट साहब, अब उड़ने चले? नीचे से गदराई गाण्ड उछाल दी।
मदनलाल कच्ची कलियों को फूल बनाने में माहिर था। काम्या अभी फूल बनने की शुरुआत में थी। उसने अपने पैंतीस साल के अनुभव का इस्तेमाल शुरू किया। हल्के और स्थिर गति से स्ट्रोक लगाने लगा। हर धक्के के साथ काम्या की चूत ससुरजी के मूसल को आत्मसात करती जा रही थी। हर गुजरते धक्के के साथ दर्द कम होता गया, और मजा बढ़ता गया। बीस-पच्चीस धक्कों के बाद चूत ने बाबूजी के विशाल लंड के हिसाब से अपने आप को ढाल लिया और उसी के रंग में रंग गई। अब हर धक्का काम्या को आनंद के एक नए संसार में ले जा रहा था।
मदनलाल ने जब देखा कि काम्या लंड का लुत्फ उठाने लगी, तो उसने शॉट में तेजी लानी शुरू कर दी। अब वो बहू को असली मर्द का मजा देना चाहता था। उसके स्ट्रोक अब लंबे और गहरे होने लगे। मोटा लंड जब चूत की नाजुक मगर संवेदनशील त्वचा को रगड़ता, तो काम्या सिहर उठती। वो अब वास्तव में आकाश में उड़ने लगी थी।
मदनलाल का लंड खासा लंबा था, जो काम्या के सर्विक्स को छूता। हर बार ऐसा लगता, जैसे उसके शरीर में छोटे-मोटे परमाणु बम फट रहे हों। बमों की गर्मी उसे पागल कर रही थी। आज उसे समझ आया कि हीरोइन क्यों गाती है, “जागी बदन में ज्वाला, सैंया तूने क्या कर डाला।” मर्द सोचते हैं कि वो सेक्स का मजा लेते हैं, लेकिन असली मजा औरत का होता है। कामशास्त्र कहता है, औरत में पुरुष से आठ गुना ज्यादा काम होता है। छह फुट के पुरुष में सिर्फ छह इंच का लिंग, और उसमें भी एक इंच कामानंद लेता है। लेकिन औरत अपने हर अंग से भोगती है—होंठ, गर्दन, कंधे, चुचे, पेट, आर्मपिट, जाँघ, नितंब—सब कामानंद के द्वार। मर्द तो औरत का कामसेवक। जैसे अखाड़े में पहलवान चेलों से मालिश करवाता है, वैसे ही औरत मर्द से सेवा करवाती है, और दिखावा करती है कि वो बलिदान दे रही है। मर्द एक बार स्खलन में ऑर्गेज्म पाता है, लेकिन औरत मल्टीपल ऑर्गेज्म भोगती है।
प्रकृति औरत के साथ है। उसने औरत को तीन अंग दिए—क्लिट, जी-स्पॉट, और सर्विक्स। क्लिट बाहर, छेड़छाड़ से मजा देता। जी-स्पॉट दो इंच अंदर, गठान-सी आकृति, स्पर्श से तीव्र सुख। सर्विक्स गर्भाशय के मुख पर, सात इंच गहराई में, परमानंद देता। सिर्फ 10% औरतें सर्विक्स ऑर्गेज्म पाती हैं, क्योंकि इसके लिए सात इंच का अंग चाहिए। काम्या उन भाग्यशाली औरतों में थी, जिनकी किस्मत में अश्वलिंग आया था। बाबूजी का मूसल उसे सातवें आसमान की सैर करा रहा था। तीनों पॉइंट्स पर चोट। काम्या सुध-बुध खो रही थी। उसकी सारी एकाग्रता योनि में स्थिर। संभोग अब समाधि बन रहा था। आँखें गुलाबी, पुतलियाँ फैली, सिर दाएँ-बाएँ पटक रही थी।
सहना मुश्किल हुआ, तो उसने madनलाल की पीठ पर नाखून गाढ़ दिए। madनलाल को चुभन महसूस हुई, लेकिन ऐसी मादक बहू, जो ससुर पर मेहरबान हो, उसके लिए तलवार की चोट भी हँसकर सह लेता। बुढ़ापा जवानी से बेहतर। उसने काम्या की टाँगें कंधों पर रखीं। चूत उभर आई, मूसल और गहरा। फाइनल धमाचौकड़ी शुरू। शक्तिशाली कुल्हों की टक्कर से बेड हिलने लगा। ठप-ठप की आवाज, मानो तबले का आविष्कार यहीं हुआ। काम्या की मादक सिसकारियाँ, कोमल चूतड़ों पर टक्कर—उत्तेजना का तूफान। काम्या शिखर पर। उसने बाबूजी के कुल्हे पकड़े, हर धक्के में खींचा। हालत बेकाबू हुई, तो उटपटांग बकने लगी।
काम्या: ओह माय गॉड! व्हाट अ प्लेजर दिस इस! हनी, फक मी हार्ड! आई वॉन्ट टु डाय इन योर आर्म्स!
मदनलाल: ओह बेबी, ऐसा मत बोलो। मरे तुम्हारे दुश्मन। आज जीने की बात करो, सोना। जस्ट एंजॉय एंड हैव द प्लेजर ऑफ योर बॉडी।
काम्या: हनी, फक मी, फक मी, एंड ओनली फक मी! फक मी अस हार्ड अस यू कैन! डोंट बी मर्सी ऑन मी! जस्ट टियर मी! ओह बाबूजी, व्हाट अ वंडरफुल फकर यू आर? व्हाट अ लवली बहुचोद यू आर?
काम्या की अश्लील बातों ने madनलाल के ज्वालामुखी को भड़का दिया। वो नंदी साँड़-सा गचगच पिलाई करने लगा। लावा रोकना अब मुश्किल था। पौन घंटा हो चुका था। इतनी रसीली जवानी के सामने इतना कंट्रोल ताज्जुब था। ताबड़तोड़ हमले करते हुए बोला,
मदनलाल: ले रानी, असली मर्द के लंड का मजा! तू भी हमारे लंड के लिए तड़प रही थी। ले, भरपूर मजा! आज ऐसा चोदेंगे कि तू जान जाएगी मर्द कौन। आज के बाद सुबह-शाम हमारे लंड की पूजा करेगी।
मदनलाल ने अंतिम और भीषण हमला शुरू किया। कमरा जलजले-सा काँपने लगा। तरह-तरह की आवाजें—कभी काम्या की सिसकारी, कभी चूतड़ों की थाप, कभी पलंग की चरमराहट। सब एक-दूसरे से आगे निकलना चाह रहे थे। काम्या कितनी बार झड़ चुकी थी, उसे होश नहीं। madनलाल की बातों ने उसमें और आग भरी। वो जोर-जोर से नीचे से गाण्ड उछालने लगी।
काम्या: हाँ, जानू, जितना मजा दे सकते हो, दो! सुबह-शाम क्यों, हम तो चौबीस घंटे आपके लौड़े की पूजा करेंगे। ये है ही पूजने लायक। औरत को पागल बना देता है।
मदनलाल ने देखा कि वो छूटने वाला है। उसने मूसल पूरा अंदर पेल दिया। स्खलन के समय स्ट्रोक रोके, सिर्फ माँसपेशियों के सहारे बीज कोख में भरा। फुहार के बाद वो बहू पर पसर गया। मूसल अंदर ही रखा, ताकि वीर्य बाहर न जाए। वो आज बाप/दादा बनना चाहता था।
काम्या के बदन में शोले भड़क रहे थे। उसकी आँखों में madनलाल ने एक अजीब नशा देखा—वही नशा, जो उसने हर चुदाई में औरतों की आँखों में देखा था। शादीशुदा औरतें भी छुपकर उसका लंड खाती थीं। बाबूजी समझ गए, काम्या अब दीवानी हो गई। उसका मूसल अब उसे दिन-रात दिखेगा। जैसे ही लावा बच्चेदानी में पड़ा, काम्या खुशी नहीं संभाल पाई। एक बार फिर झरझर बही। उत्तेजना के चरम पर उसका बदन काँप रहा था। उसने जोर से madनलाल को पकड़ा और छिपकली-सी चिपक गई।
कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-18