बहकती बहू-15

कहानी का पिछला भाग: बहकती बहू-14

सुबह से काम्या ने मेरून सिल्क साड़ी पहनी थी, मदनलाल को तड़पाने के लिए। साड़ी नाभि से चार इंच नीचे बँधी थी, गोरा नाजुक पेट उत्तेजक ढंग से झलक रहा था। डीप कट ब्लाउस में उरोज आधे नजर आ रहे थे। साड़ी शरीर से चिपकी थी, नितंब पूरे शेप में। मदनलाल की नजरें बार-बार नितंबों पर ठहरतीं। काम्या नोट कर रही थी। उसके चेहरे पर लाज और हया थी। कल माँग भरी थी, और माँग भरने वाला अभी वसूलने को तैयार था। मदनलाल से नजरें मिलते ही वो शरम से सिर झुका लेती। आज रात सुहागरात थी। मदनलाल बेशर्म हो रहा था। काम्या की नजर मिलते ही लूँगी के ऊपर से मूसल सहलाने लगता। काम्या लज्जा से गड़ जाती।

चाय के वक्त शांति बोली,

शांति: क्या बात, बहू? बहुत दिन बाद साड़ी पहनी।
काम्या: जी, माँजी। बहुत दिन से नहीं पहनी, आज मन हुआ।
शांति: अच्छा किया। आजकल बहुएँ साड़ी पहनती नहीं। साड़ी में बहुत सुंदर दिखती हो। क्यों, सुनील के पापा, गलत बोल रही हूँ?
मदनलाल: बिल्कुल सही। मॉडर्न कपड़ों में भी सुंदर, पर साड़ी की बात अलग। सच, बहू, बहुत सुंदर लग रही हो। मूसल मसला, नितंबों को घूरा।

काम्या चुपचाप मुस्कराई। चाय के बाद किचन चली गई। शांति पूजन कक्ष में। मदनलाल लपककर किचन में घुसा। काम्या ने सिर झुकाया, जानती थी बाबूजी आएँगे। मदनलाल ने पीछे से पकड़ा, मूसल गाण्ड से टकराया। दोनों हाथों से संतरे मसले। काम्या गर्म हुई, झनझनाहट होने लगी। मदनलाल बावला होकर जोर-जोर से मसलने, गर्दन चूमने लगा। काम्या को खड़ा रहना मुश्किल हुआ। पैंटी में हलचल मच गई। संयम रखते हुए बोली,

काम्या: जानू, छोड़िए। ये समय है?
मदनलाल: प्यार का कोई समय नहीं। गाना सुना? “सुबह से लेकर शाम तक मुझे प्यार करो।”
काम्या: ये घर है, फिल्म नहीं। मैं हीरोइन नहीं। ये काम रात का है।
मदनलाल: मेरी हीरोइन तुम हो। साड़ी उठाने लगा।
काम्या: प्लीज, जाइए। माँजी हैं। लफड़ा मत करिए।
मदनलाल: जरा छू लेने दो। और कुछ नहीं। मांसल जाँघों पर हाथ फेरा।
काम्या: यार, तंग मत करो। रात को सुहागरात है। सबर नहीं कर सकते? माँजी को आवाज सुनाई दी, तो?
मदनलाल: सबर नहीं हो रहा। इस साड़ी में इतनी सेक्सी लग रही हो, अगर माँजी न होती, तो किचन में ही सुहागरात मना लेता।
काम्या: चुप! किचन में सुहागरात? आउ! हाथ हटाओ। काम करना है।
मदनलाल: तुम अपना काम करो, हमें अपना करने दो।
काम्या: यही है आपका काम? सी सी! आह, क्या कर रहे हो? उंगली मत डालो। उई माँ! खाना बनाते वक्त गंदा मत करो। आपको गंदा नहीं लगता, हमें खराब कर दोगे। जाओ!
मदनलाल: कहाँ जाओगी? जहाँ जाओगी, हम पहुँच जाएँगे। “तेरा पीछा नहीं छोड़ेंगे, सोणiye।”
काम्या: माँजी के पास बैठ जाऊँगी, फिर देखूँगी तुम्हारी दिलेरी।
मदनलाल: अपने चाहने वाले को तड़पाते नहीं। एक चुम्मी दे दो।
काम्या: नो! किचन छोड़ो। ज्यादा तंग किया, तो रात का प्रोग्राम कैंसिल।
मदनलाल: अरे, ऐसा जुल्म मत करो। जान निकल जाएगी।

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काम्या ने अदा से कान पकड़ा, किचन के दरवाजे तक खींचा।

काम्या: जहाँपनाह, तस्सरुफ ले जाइए। रात तक करीब मत आना।

वो जानती थी, ये आशिक एक घंटा भी नहीं रुकेगा। दिनभर छेड़छाड़ चलती रही। मदनलाल थोड़ी देर में पास पहुँचकर नाजुक अंगों से खिलवाड़ करता। काम्या मुश्किल से भगाती। अगर मदनलाल एक घंटे नहीं आता, तो काम्या बैचेन होकर तांक-झाँक करती। शाम को मदनलाल कुर्ता-पायजामा पहनकर बाजार गया। लौटा, तो कपड़े नहीं बदले। दूल्हा बनना चाहता था। अंधेरा होते ही काम्या ने मदनलाल को छत पर शराब पीते देखा।

काम्या: ये क्या? पी क्यों रहे हैं?
मदनलाल: बस, मूड बना रहे हैं।
काम्या: इससे मूड नहीं बनता। नशा है।
मदनलाल: तुम क्यों परेशान? जरा-सा नशा।
काम्या: हमारे रहते नशे की जरूरत? मुँह बनाया।
मदनलाल: तुम्हारे नशे के सामने शराब क्या? तुम्हारे लिए पी रहा हूँ।
काम्या: झूठ! मेरे लिए क्यों?
मदनलाल: शराब से सोचने की शक्ति कम होती है। ध्यान तुम पर रहेगा। आज रात सिर्फ तुम दिखो। मक्खन मारा।
काम्या: लिमिट में पीना। ज्यादा हुई, तो बिस्तर में बेहोश हो जाओगे। गोल्डन नाइट बर्बाद। जल्दी खत्म करो, नीचे आओ।

डिनर में शांति, मदनलाल और काम्या थे। मदनलाल पर नशा हावी था। वो काम्या को घूरता, काम्या डर जाती, माँजी को शक न हो। शांति सीरियल में खोई थी। खाने के बाद शांति दवाइयाँ खाकर सोने चली गई। मदनलाल काम्या की ओर लपका। काम्या ने रोका।

काम्या: सबर करो, बेसबरे सैंया! रूम में जा रही हूँ। आधा घंटा लगेगा। टीवी देखो या छत पर घूमो।
मदनलाल: आधा घंटा? क्या करोगी?
काम्या: आपकी फंतासी है, दुल्हन बनूँ। ब्राइडल मेकअप में टाइम लगता है। जीभ निकालकर चिढ़ाया, रूम में भागी।

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मदनलाल अपने कमरे गया, शांति को देखा, गोली खाई, छत पर टहलने लगा। मन काम्या पर अटका था। दारू और गोली का असर, मूसल नब्बे डिग्री पर। बार-बार मसलकर शांत करता।

काम्या ने साड़ी, ब्लाउस, पेटीकोट उतारा, आईने के सामने नंगी खड़ी हुई। ब्रा-पैंटी में गजब ढा रही थी। फिर वो भी उतारा, “बर्थ डे सूट” में। अपनी जवानी देख बुदबुदाई, “हम फिदा हो रहे हैं, उनका क्या हाल होगा? कचूमर निकाले, तो दोष न दूँ। कौन मर्द होश में रहेगा?” मोबाइल पर गजल बजी, “होश वाले क्या जाने बेखुदी क्या चीज है।” नहाने गई, डोव साबुन से रगड़ा। जवानी की महक गनगना रही थी। नहाकर टॉवेल उतारा, नई पारदर्शी ब्रा-पैंटी पहनी, सुनील वाली सुहागरात की साड़ी पहनी, मेकअप किया, बेड पर दूल्हे का इंतजार करने लगी।

दस मिनट बाद मदनलाल आया। काम्या को देख पलक झपकाना भूल गया। मेरून साड़ी में काम्या कामदेवी थी। बिंदिया, माँग टीका, बाली, नथनी, मंगलसूत्र। रसीले होंठ, मदर डेरी के टैंकर, लचकती कमर, नाभि। सिल्क साड़ी में नितंब। मदनलाल भाग्य सराहने लगा। “कितना किस्मतवाला हूँ, बुढ़ापे में ऐसी कमसिन, सेक्सी बीवी!” घूँघट पीछे, चेहरा खुला। मदनलाल उसमें खो गया।

काम्या: क्या हुआ? रातभर देखना है?
मदनलाल: जान, दुल्हन के लिबास में इतनी खूबसूरत, बस देखता रहूँ।
काम्या: देखने के लिए माँग भरी? बिना रुकावट देख सकते थे।
मदनलाल: तो क्या करें?
काम्या: आपको मालूम है। दो बच्चे पैदा कर चुके हो।
मदनलाल: अभी छुआ भी नहीं, दो बच्चे कहाँ से?
काम्या: धत, बदमाश! अपनी बात नहीं।
मदनलाल: आज सिर्फ अपनी बात।
काम्या: तो सुहागरात मनाओ, जिसके लिए पीछे पड़े थे।

मदनलाल ने टीस बंद की। वो काम्या को कपड़ों से मुक्त करना चाहता था। चेहरा उठाकर होंठों से होंठ मिलाए। काम्या में सिहरन हुई। चुंबन बरसते रहे। साड़ी पेटीकोट से जुदा होकर फर्श पर। ब्लाउस उतरा, बेड पर पड़ा। मदनलाल ने संतरों को निचोड़ा। सिसकारियाँ गूँजीं। नशे में मदनलाल जालिम था। ब्रा उछाल दी। कबूतर फड़फड़ाए। मदनलाल ने एक को मुँह में लिया, जोर-जोर से चबाया। काम्या की दर्द-आनंद की सिसकारियाँ। जाँघें सहलाते हुए चूत की ओर गया, काम्या चिहुँकी।

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काम्या: आह, धीरे! दर्द दे रहा। चूसो, काटो मत। दारू की वजह से जंगली बन गए।

मदनलाल नीचे गया। पैंटी में कारू का खजाना। पैंटी उतारी, काम्या ने कमर उठाई। हल्के रोएँ वाली चूत, अनछुई, गुलाबी पंखुड़ियाँ, काजू दाना। मदनलाल बुदबुदाया, “धरती में स्वर्ग जाँघों के बीच है।” टाँगें मोड़कर फैलाईं, चूत को घूरा। काम्या ने मुँह ढका। मदनलाल टाँगों के बीच आया। काम्या ने कनखियों से देखा, मदनलाल जीभ निकालकर चूत की ओर झुका। “हे राम, पूसी लिकिंग करेंगे? पॉर्न जैसा! बाबूजी सो फनी एंड नॉटी।”

मदनलाल ने टाँगें फैलाईं, झिर्री ने मदहोश किया। जीभ नीचे से ऊपर चाटी। गर्म चिपचिपी जीभ से काम्या थरथराई। सिसकारी निकली।

काम्या: आह, उई माँ!

मदनलाल नीचे से ऊपर चाटता रहा। क्लिट पर जीभ छुई, चिंगारियाँ भड़कीं। शातिर मदनलाल ने क्लिट को कमजोर पॉइंट समझा, हमला केंद्रित किया। काम्या बर्दाश्त न कर सकी। सुनील ने कभी चूत नहीं देखी, और बाबूजी मुनिया पर प्यार लुटा रहे थे। क्लिट पौन इंच फूल गई। मदनलाल ने होंठों में लिया, निपल की तरह चूसा। काम्या का संयम टूटा, तकिया पकड़ा, सिर दाएँ-बाएँ। मदनलाल ने मचलते देखा, समझ गया, बहू लंड माँगेगी। क्लिट में हल्का दाँत गाड़ा। काम्या हिल गई।

काम्या: उई माँ! आह, शी! येस, लिक इट, हनी! वाउ, यू आर मेकिंग मी क्रेजी! व्हाट अ प्लेजर! येस, सक इट, अस आई सक योर कॉक! जानू, यू आर अमेजिंग!

कमर कमान की तरह उठी। चरम पर काम्या ने मदनलाल का सिर चूत पर दबाया। मदनलाल ने पूरी चूत मुँह में ली। सिसकारियाँ और मचलने की आवाज गूँजी। उंगली से चूत फैलाई। गुलाबी प्रेम गुफा, संकरी, सुर्ख, फेरोमोन्स की सुगंध। मदनलाल जानता था, काम्या रस छोड़ने वाली है। जीभ मुहाने पर लगाई, अमृत पीने को तैयार।

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