बहकती बहू-10

Sasur Bahu Blowjob – कहानी का पिछला भाग: – बहकती बहू-8

काम्या की आँखें बंद थीं, और वो धीरे-धीरे बाबूजी के सुपाड़े पर अपनी जीभ चला रही थी। कुछ देर तक ये सिलसिला चला, फिर मदनलाल ने आगे बढ़ने का फैसला किया। उसने दोनों हाथों से काम्या का सिर पकड़ा और धीरे से कमर हिलाई। लगभग चार इंच लंड काम्या के मुँह में चला गया। मदनलाल, काम्या का सिर पकड़कर कमर आगे-पीछे करने लगा। काम्या ने बैलेंस बनाए रखने के लिए बाबूजी की नंगी कमर पकड़ ली। दो मिनट तक ससुर अपनी प्यारी बहुरानी की माउथ फकिंग करता रहा। जब उसे यकीन हो गया कि काम्या नाराज़ नहीं है, उसने कमर का मूवमेंट रोका और काम्या का सिर आगे-पीछे करने लगा। कुछ देर बाद उसने अपने हाथ हटा लिए, लेकिन आश्चर्य! काम्या का सिर अभी भी चल रहा था। उसकी आँखें बंद थीं, चेहरे पर लाली छाई थी, और वो सम्मोहित-सी बाबूजी को ब्लो जॉब दे रही थी।

मदनलाल महीनों से जिस नज़ारे की कल्पना कर रहा था, वो आज साकार हो रहा था। बहू के गुलाबी होंठों में फँसा उसका हथियार उसे अपार खुशी दे रहा था। लंड चुसाई से ज्यादा मज़ा उसे अपनी आँखों से मिल रहा था। वो सोच रहा था, “काश, इस दृश्य को देखने के लिए मेरे पास हज़ार आँखें होतीं।” पाँच मिनट तक मज़ा लेते-लेते उसके अंडकोषों में उबाल आने लगा। उसे लगा कि वो किसी भी पल झड़ सकता है। उसने फिर से काम्या का सिर पकड़ा और मुँह चोदने लगा। लाखों साल के शारीरिक विकास ने पुरुषों में ये सहज वृत्ति दी है कि स्खलन से ठीक पहले वो नियंत्रण ले लेता है। मदनलाल तेज़ी से काम्या को चोदने लगा। उसकी नसें फूलने लगीं, लंड मोटा होता जा रहा था। काम्या पहली बार मुख मैथुन कर रही थी, इसलिए उसे अंदाज़ा नहीं था कि बाबूजी झड़ने वाले हैं। मदनलाल ने गहरा शॉट मारा और काम्या के मुँह में रबड़ी उड़ेल दी। वीर्य पड़ते ही काम्या ने बाबूजी को हटाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। बाबूजी ने पूरा वीर्यपान कराकर ही लंड बाहर निकाला।

काम्या: छिः छिः बाबूजी! कितनी गंदी चीज़ हमारे मुँह में डाल दी।
मदनलाल: क्या बोल रही हो, बहू? ये गंदी नहीं, सबसे शुद्ध चीज़ है।
काम्या: अच्छा, ये कहाँ से शुद्ध हो गया?
मदनलाल: हनी, ये इंसान के शरीर का सबसे शुद्ध प्रोटीन है। ये हमारा तेज़, ओज और सत्व है। और बहुत पवित्र भी।
काम्या: पवित्र कैसे?
मदनलाल: क्योंकि ये नए जीवन का सृजन करता है। जैसे नवजात शिशु पवित्र होता है, वैसे ही इसका बीज रूप पवित्र है। और तुम्हारे लिए सेहतमंद भी।
काम्या: सेहतमंद मतलब?
मदनलाल: साइंस कहता है, जो स्त्री वीर्य का सेवन करती है, वो ज़्यादा जवान रहती है। उसकी स्किन खिली-खिली और लावण्य से भरपूर रहती है।
काम्या: यही ज्ञान मम्मी को दिया होगा, तभी तो वो वीडियो में आपका सब पी रही थी।
मदनलाल: वो तो अब तुम भी पियोगी।
काम्या: व्हाट? जबरदस्ती पिलाओगे?

मदनलाल को अपनी गलती का अहसास हुआ।
मदनलाल: पागल हो? हम तुमसे कभी जबरदस्ती करेंगे? हम तो इसलिए बोले कि कोई स्त्री अपने प्रेमी का इतना अनमोल खजाना व्यर्थ नहीं जाने देती।
काम्या: लेकिन आपने चीटिंग की। बोला था ब्लो के लिए नहीं कहेंगे, फिर क्यों कराया?
मदनलाल: हमने तो बिल्कुल नहीं बोला। तुमने किसिंग शुरू की, फिर हमने कहा।
काम्या: मतलब मैंने खुद सकिंग की? लेकिन कैसे?
मदनलाल: हनी, इसमें कुछ अनहोनी नहीं। स्त्री-पुरुष का शारीरिक-मानसिक विकास ऐसा है कि स्त्री अपनी अचेतन गहराइयों में पुरुष अंग को भीतर लेना चाहती है। ये सहज वृत्ति है, सीखने की ज़रूरत नहीं। तुम जब लिक कर रही थी, अनायास मुँह में ले लिया और परिपूर्णता महसूस करने लगी।
काम्या: लेकिन आप माल निकालते वक्त हट सकते थे, आपने तो और अंदर ठेल दिया।
मदनलाल: हनी, ये भी सहज वृत्ति है। सभी नर प्रजातियाँ स्खलन के वक्त अपने बीज को मादा की गहराइयों में डालना चाहती हैं। खैर, अब ये रूटीन वर्क हो जाएगा।
काम्या: धत, बदमाश कहीं के! ऐसा कुछ नहीं होगा।

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अगले दो दिन काम्या ने स्खलन के वक्त मुँह हटा लिया, लेकिन उसका चेहरा और चादर वीर्य से भीग गए। काम्या के सामने धर्मसंकट था—सकिंग करे तो कम शॉट पीना पड़ेगा, न करे तो छोड़ना नहीं चाहती थी। पहला, वो बाबूजी को खुश देखना चाहती थी। दूसरा, लंबा-मोटा लंड मुँह में लेना उसे रोमांचकारी लगने लगा था। बाबूजी की सिसकारियाँ सुनकर उसे लगता था कि वो उनके गुलाम हो गए हैं। लंड चुसाई उसका रोज़ का काम हो गया था।

एक दिन दोपहर में जब वो आराम कर रही थी, तभी मधु का फोन आया। कई महीनों बाद मधु का कॉल था।

काम्या: हाय मधु, कैसी है?
मधु: आई एम फाइन, डार्लिंग। तू कैसी है?
काम्या: मैं भी ठीक हूँ। मोहन कैसा है?
मधु: मोहन को कंपनी ने दो साल के लिए यूएस भेज दिया।
काम्या: ओहो! यार, तब तो तेरी बड़ी मुश्किल हो गई। रात को दिक्कत होती होगी?
मधु: हाँ यार, शुरू के दो महीने मुश्किल में कटे, लेकिन फिर मैंने इंतज़ाम कर लिया।
काम्या: व्हाट? इंतज़ाम मतलब?
मधु: बेबी, इंतज़ाम मतलब रात का साथ।
काम्या: क्या? कौन है वो? तू सच बोल रही है?
मधु: हाँ, जान, सच बोल रही हूँ।
काम्या: लेकिन वो है कौन?
मधु: अरे यार, सिंपल। बेटा विदेश गया, बाप तो नहीं गया।
काम्या: व्हाट! मधु, तू ये क्या बोल रही है? पागल हो गई?
मधु: नो बेबी, मैं ठीक हूँ। लेकिन दो साल खराब तो नहीं कर सकती थी।
काम्या: लेकिन ये हुआ कैसे?
मधु: बहुत सिंपल, डार्लिंग। औरतों को ऊपरवाले ने यही पावर दी है। स्त्री का बदन देखकर मर्द रिश्ते-नाते भूल जाते हैं और लार टपकाने लगते हैं। बाज़ार या पार्क में कॉलोनी के लड़के मंडराते थे। मोहन के यूएस जाने के बाद उनकी उम्मीदें बढ़ गईं, जैसे थोड़ी मेहनत से मैं उनकी झोली में टपक जाऊँगी।
काम्या: फिर तूने क्या किया?
मधु: कई लड़के स्मार्ट थे, लेकिन बदनाम होने का रिस्क नहीं ले सकती थी। मगर मेरा जिस्म मुझे परेशान कर रहा था। डार्लिंग, अगर लड़की शादी न करे, तो शांति से जिंदगी काट सकती है। लेकिन शादी के बाद लंड का स्वाद चख लिया, तो उसके बिना रहा नहीं जाता। घर में मैं और पापा थे। अचानक ख्याल आया, व्हाय नॉट फादर-इन-लॉ? सब काम घर में हो जाएगा, टेंशन फ्री। मैंने सोचा, “पापा को पटा लिया, तो लाइफ झिंगालाला।” बस, जाल बिछाना शुरू किया।
काम्या: ओह माय गॉड! तू तो निम्फो है। फिर क्या किया?
मधु: पूछ क्यों रही है, कमीनी? तुझे भी निम्फो बनना है?
काम्या: सॉरी यार, गलत मत समझ। प्लीज़ बता, कैसे सिड्यूस किया?
मधु: कुछ खास नहीं। वही जो औरतें हज़ारों साल से करती हैं। बदन एक्सपोज़ किया। कभी बिना साड़ी, सिर्फ ब्लाउज़-पेटीकोट में किचन में काम करती। पेटीकोट से उभरी मेरी गाण्ड पापा को छुरी-सी लगती। कभी पारदर्शी नाइटी पहनती, जिसमें मेरी मांसल गोरी जाँघें झाँकतीं। कभी डीप-कट ब्लाउज़ में पोंछा लगाती। एक दिन छोटी कुर्ती और अल्ट्रा-शॉर्ट मिनी स्कर्ट पहनी, जो सिर्फ हिप्स ढँक रही थी। मेरी चिकनी, गोल जाँघें खुलेआम नज़र आ रही थीं।

मैं दो कप चाय लेकर गई और सामने बैठ गई। पापा मेरी थाइज़ को देख रहे थे। मैंने टाँग पर टाँग चढ़ाई। मुझे यकीन था, पैंटी भी दिख रही होगी। पापा समझ चुके थे कि मैं लाइन दे रही हूँ। मेरी जालिम जवानी और उनका विधुर जीवन—आखिर उन्होंने बहती गंगा में डुबकी लगाने का फैसला किया। देर तक मेरी जाँघें देखने के बाद वो बोले—

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काम्या: क्या बोले?
मधु: सब्र कर, तुझे जल्दी है।
काम्या: सॉरी, आराम से बता।
पापा: बहू, ये स्कर्ट कब खरीदी? पहले नहीं देखी।
मधु: जी पापा, हनीमून में गोवा गए थे, तब इन्होंने जबरदस्ती खरीद दी। अच्छी नहीं लग रही?
पापा: नहीं-नहीं, बहुत अच्छी लग रही है। तुम्हारी थाइज़ इतनी वेल-शेप्ड और सेक्सी हैं कि स्कर्ट, जीन्स, शॉर्ट्स बहुत जमते हैं। घर में रोज़ यही पहनो, कम्फर्टेबल लगेगा।
मधु: रोज़ कैसे पहनें, पापा? एक ही तो है।
पापा: कोई बात नहीं, हम और लाएँगे। लेकिन एक रिक्वेस्ट है।
मधु: क्या, पापा?
पापा: इसे बाहर मत पहनना। बस घर में पहनो।
मधु: (पैर बदलते हुए) क्यों, पापा?

दोनों अपनी चालें चल रहे थे। मधु जानती थी कि मर्द की सबसे बड़ी कमज़ोरी नारी का शरीर है, खासकर उसकी थाइज़, जिन पर उसे हमेशा कॉम्प्लिमेंट्स मिलते थे। ससुर भी स्त्री की सुंदरता की तारीफ को उसकी कमज़ोरी जानता था। वो पिन-पॉइंट अटैक कर रहा था।

पापा: पहला कारण, तुम्हारी थाइज़ इतनी सेक्सी हैं कि बाहर कोई लड़के अनकंट्रोल हो गए, तो तुम परेशानी में फँस जाओगी। दूसरा, तुम हमारे घर की अमानत हो, धरोहर हो। हम नहीं चाहते कि हमारी दौलत कोई और देखे।
मधु: पापा, हम आपकी नहीं, आपके बेटे की अमानत हैं।
पापा: बहू, एक ही बात है। बाप का सब बेटे का, और बेटे का सब बाप का।
मधु: वाह पापा, आप तो बड़े चालाक निकले।

मधु उठी और गाण्ड मटकाते हुए चली गई। उसी दिन शाम को पापा दो माइक्रो स्कर्ट ले आए।

काम्या: फिर आगे क्या हुआ?
मधु: दूसरे दिन मैंने कयामत ढा दी। नहाने के बाद सिर्फ टॉवल लपेटे कमरे की ओर गई। टॉवल बूब्स से लेकर ग्रॉइन एरिया तक बस ढँक रहा था। मेरी गोरी, मांसल, कदली जाँघें नंगी थीं। पापा आँगन में पेपर पढ़ रहे थे। उनके पास से मटकती हुई निकली, तो वो मुँह फाड़े मेरी पठों को देखने लगे। उनके लोअर में लंड ठुनकी मारने लगा। एक पल को डर गई कि आज रेप हो जाएगा। कमरे में टाँगें काँप रही थीं। टॉवल के नीचे ब्रा-पैंटी भी नहीं थी। सोचा, अगर टॉवल गिर जाता, तो जलजला आ जाता, सारी मर्यादा बह जाती। शर्म से एक घंटे तक बाहर नहीं निकली। फिर साहस बटोरा। स्किन-फिट टी-शर्ट और पापा की लाई माइक्रो स्कर्ट पहनी और नाश्ता बनाने निकली। पापा अपने कमरे में आँखें मूँदे लेटे थे।

मधु: पापा, क्या हुआ? इस वक्त क्यों लेटे हो?
पापा: कुछ नहीं, बहू। बस सिरदर्द है।
मधु: अरे, हमें तो बताना था।
पापा: बताने आए थे, लेकिन तुम टॉवल में घूम रही थीं, तो सोचा शायद रूम में बिना कपड़ों के हो। —कामुक नज़रों से मेरी थाइज़ देखकर जीभ फिराने लगे।
मधु: धत, बेशरम! हम नहाकर निकले थे। रुकिए, नवरत्न तेल लगाते हैं।

मधु पीछे मुड़ी, तिरछी नज़र से देखा कि ससुर लोअर के ऊपर से अपने को मसल रहे थे। वो बुदबुदाया, “बहू, तुम्हारे लेग पीस हमसे तुम्हारा उद्धार करवा देंगे।” मधु नवरत्न लेकर पापा के बिस्तर पर पालथी मारकर बैठ गई। ससुर का सिर गोद में रखकर तेल मलने लगी। पालथी से स्कर्ट पीछे हो गई, गदराई जाँघें दिखने लगीं। पापा चित लेटे थे। मधु देख रही थी कि उनके लोअर में तंबू बन गया।

मधु: पापा, करवट लो। दूसरी तरफ भी मालिश कर दें।

ससुर ने करवट ली, और उसकी आँखों के सामने मधु की चिकनी जाँघें आ गईं। मधु हौले-हौले मालिश करती रही। ससुर बर्दाश्त करता रहा, फिर अचानक उसकी जाँघें किस करने लगा। होंठ अंदरूनी जाँघों पर लगते ही मधु गनगना गई। ढाई महीने बाद किसी ने उसकी जाँघें चूमी थीं। वो बहुत गर्म हो गई। ससुर चूमता-चाटता रहा, फिर दाँत काटने लगा।

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मधु: पापा, प्लीज़, गुदगुदी हो रही है।

ससुर शांत रहा, फिर दोबारा चूमने-काटने लगा। मधु पानी छोड़ने लगी।

मधु: पापा, लगता है सिरदर्द ठीक हो गया, तभी इतनी मस्ती सूझ रही है।

“मस्ती” सुनकर ससुर समझ गया कि लाइन क्लियर है।

पापा: बहू, सिरदर्द तो ठीक हो गया, लेकिन कहीं और दर्द शुरू हो गया।
मधु: कहाँ दर्द है? वहाँ भी तेल लगा दें।

ससुर ने लोअर खिसकाकर अपना खूँटा निकाला।

पापा: बहू, इसमें दर्द शुरू हो गया। तेल लगा दो।

ससुर का लंड देखकर मधु की आँखें चमक उठीं। आकार-प्रकार में मोहन जैसा मज़बूत था। मोहन का लंड देखते ही वो मुँह में भर लेती थी, लेकिन अभी सिर्फ देख रही थी।

पापा: बहू, तेल लगा दो।
मधु: धत! हमें तेल लगाना नहीं आता। मैंने कभी नहीं लगाया।
पापा: क्यों, मोहन इसको मालिश नहीं करवाता?
मधु: जी नहीं, उन्होंने कभी तेल नहीं लगवाया।
पापा: खैर, उसे ज़रूरत नहीं होगी। वो तो सीधा तेल की कढ़ाई में डुबो देता होगा।

मधु का चेहरा लाल हो गया।

पापा: बहू, बहुत दर्द है। थोड़ा तेल मल दो।
मधु: पापा, हमसे नहीं होगा।

ससुर ने सोचा, अब टाइम खराब करना बेकार है।

पापा: तुम तेल नहीं लगाओगी, तो हम इसे कढ़ाई में डुबो देते हैं।

ससुर उठा, लोअर उतारकर नंगा हो गया और मधु को बाँहों में भरकर चूमने लगा। उसके हाथ मधु के कपड़े उतारने लगे। मधु विरोध करती रही, लेकिन कमज़ोर और दिखावटी। पाँच मिनट बाद मधु नंगी बिस्तर पर थी, ससुर उसके ऊपर। उसकी आँखें लाल थीं। उसने मधु की टाँगें उठाईं और लंड चूत के मुहाने पर सेट किया। लंड के अहसास से मधु गरमा गई। महीनों बाद चूत के द्वार पर मेहमान आया था। उसकी चूत खुशी से पानी बहाने लगी। ससुर ने साँस खींची और ज़ोरदार शॉट मारा। मधु चिल्लाई, “पापा, धीरे, बहुत दर्द हो रहा!” सुपाड़ा अंदर धँस गया। ससुर सुनने के मूड में नहीं था। तीन धक्कों में लंड जड़ तक उतार दिया। मधु को तीन महीने बाद लंड मिला था, इसलिए एडजस्ट करने में तकलीफ हो रही थी। वो हर शॉट पर कराहती रही। जड़ तक लंड पहुँचने पर ससुर रुका, शायद तसल्ली हुई कि किला फतह हो गया। उसने मधु का चेहरा पकड़कर बेतहाशा किस किया। फिर बूब्स को इतना मसला कि मधु के आँसू निकल आए। अब तक मधु ने लंड को एडजस्ट कर लिया था। ससुर फिर पंपिंग करने लगा। मधु भी नीचे से ताल मिलाने लगी। ससुर बौरा गया, उसकी मालगाड़ी शताब्दी बन गई। कमरे में थप-थप की मादक ध्वनि गूँजने लगी, जो उनके नशे को बढ़ा रही थी। ससुर पाँच साल बाद किसी स्त्री का भोग कर रहा था। मधु की ताज़ा चूत की कसावट के सामने वो दो मिनट में झड़ गया और ढेर सारा लावा मधु की कोख में उड़ेल दिया। मधु, जो अब तक रुकी थी, इस ताप से पिघल गई और झरने-सी बहने लगी।

कहानी का अगला भाग: बहकती बहू-11

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